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जड़कला मा रउनिया तापव

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अइसे तो जड़कला हा कुँवार महिना से सुरु हो जाथे अउ पूस ले आगू तक रहिथे। कातिक महिना ले मनखे मन रउनिया लेय के घलाव सुरु कर देथे। अग्हन अउ पूस महिना मा कड़कड़ाती जाड़ लागथे।ये महिना मा सूरुज देव अपन गर्मी ला कहाँ लुकाथे तेकर पताच नइ चलय। ये दिन मा कतका जल्दी बेरा पंगपंगा जाथे अउ कतका जल्दी बेर बूड़ जाथे। बूता कराइया मन ला अइसे लागथे कि आज कुछू बुताच नइ होइस।
जाड़ दिन के घलाव हमर जिनगी मा भारी महत्तम हावय।इही दिन हा उर्जा सकेले के दिन आवय। फेर अब ओ दिन मन नंदागे। अंगेठा बार के चारो मुड़ा घर परिवार के जम्मो सदस्य बइठ के धान -पान , कोठी- डोली, कोठार- बियारा अउ काली काय बूता करना हवय ओकर गोठबात करय। बिहना ले दउँरी फाँदना, बेलनगाड़ी मा धान मिंजना। उत्ती मा सूरुज देव ला उवत देख के दर्शन करना। 10-15 दिन ले कोठार मा रतिहा सुतई होय। बइला गाड़ा ला चारो मुड़ा पैरा मा ढ़ाँक के झाला बनावय अउ भीतरी मा पैरा जठाके, धान बोरा के पाल उपर कथरी जठाके कमरा ओढ़के डोकरा बबा संग सूतन। तब आज के हजारो रुपया के रजाई गद्दा ले जादा नींद आवय। भीतर मा कंडील हा जुगुर जुगुर बरत रहय। पहट के चार बजे ले बेलन नइ ते दउँरी फँदा जाय।बिहनिया ले ओहो तोतो के रेरी आस परोस के कोठार ले घलाव सुनावय।
बिहना बेर उवत डोकरी दाई हा लाल चहा धरके कोठार मा आवय। बबा हा बइला ला सुरताव कहिके चहा पीयेबर आ जावय।पाछू कका काकी अउ दाई ददा मन आय अउ दू -तीन घंटा ले मिंजाय धान ला कोड़ियाय। फेर बेलन शुरु हो जावय। बेलन अउ दउँरी के पाछू मा उलानबाँटी खायबर संगवारी मन हाथ तीर के लेगय। जाने अंजाने मा पंदरा बीस दिन उवत सुरुज के रउनिया तापेबर मिलय।जोन बच्छर बर निरोग रखय अउ रोग प्रतिरोधक क्षमता ला बढ़ावय।

ज्ञानिक गुनीक मन कहिथँय कि जौन मनखे रोज उवत सुरुज के दर्शन करथँय ओखर नानमुन रोग राई ,सर्दी बुखार,खाँसी ,खजरी हा दूरिहा जाथे। जड़कला के दिन मा सूरुज देव के रउनिया हा फायदा देवइया होथय।जादा बेर तक ओकर रउनिया ला ले सकत हन। सूरुज हा धरती के तीर मा रहिथय ते पाय के ओकर बिहना के रउनिया हा जादा बिटामिन डी देथय अउ रोग प्रतिरोधक क्षमता देथय।हमर ऋषि मुनी मन एकरे सेती बिहनिया ले नहाय अउ सूरुज देव ला अर्ध देय के परंपरा बनाय रहिस।फेर आज तो कुरिया मा खुसर के अकेल्ला नहाय के मजा लेवत हे।
घर मा नहाय के जब ले शुरुवात होइस उही दिन ले मनखे ला नान नान रोग राई धरे लागगे। पाँच मिनट कुरिया मा नहाय के मजा पाछू दिन भर हाय हाय पीरा।ये दे कर फोरा , ये दे करा कसटूटी, दाद , खजरी,आँखी के कमजोरी ,नस पीरा, गैस ….। बिहनिया ले तरिया नदिया मा तउँरना ला व्यायाम मा सबले श्रेष्ठ माने हावय।सहर के हाल तो अउ देखे के लइक हे।खबरिया मन कहिथे कि सहर के साठ सत्तर प्रतिशत मनखे तो अपन जिनगी के आधा दिन तक उवत सूरुज ला देख नइ पाय हे।एकरे सेती घेरी बेरी अस्पताल के फेरी लगाना ,दवाई खाना उँखर भाग मा लिखा जाथे।
हमर संस्कृति मा अइसने किसम के नान नान परंपरा हावय जौन तन मन ला निरोग राखथे।फेर आज के पढ़त लिखत लइका अउ पढ़े लिखे दाई ददा मन नइ मानय, नइ समझय। आधा रात ले मोबाइल, कम्प्यूटर, लेपटाप,टीवी चलावत रहिथे अउ बिहनिया नौ-दस बजत ले सूते रहिथे।पाछू कहिथे कि पढ़े मा मन नइ लगत हे,खाय बर भूख नइ लगत हे। एकरे सेती कहिथे कि बुद्धि बढ़ाना हे, उर्जा पाना हे, निरोग रहना हे, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना हे तब रोज बिहनिया उठव, नहावव अउ उवत सूरुज के राउनिया तापव।

तापय उठके रउनिया, पहट बिहनिया रोज।
अक्षय उर्जा पात हे, काया बनय निरोग।।

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा, जिला- गरियाबंद

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अगहन बिरसपति –लक्ष्मी दाई के पूजा अगहन बिरसपति

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हमर हिन्दू पंचांग में अगहन महीना के बहुत महत्व हे। कातिक के बाद अगहन मास में गुरुवार के दिन अगहन बिरस्पति के पूजा करे जाथे ।

भगवान बिरस्पति देव के पूजा करे से लक्ष्मी माता ह संगे संग घर में आथे।
वइसे भी भगवान बिरस्पति ल धन अऊ बुद्धि के देवता माने गे हे ।

एकर पूजा करे से लछमी , विदया, संतान अऊ मनवांछित फल के प्राप्ति होथे । परिवार में सुख शांति बने रहिथे । नोनी बाबू के जल्दी बिहाव तको लग जाथे ।

पूजा के विधान – गुरुवार के दिन पूजा ल विधि विधान से करना चाही । ए दिन मुंधरहा ले उठके नहा धो के बिरस्पति देव के पूजा करना चाही। बिरस्पति देव ल पीला रंग के वस्तु ह प्रिय हे ओकरे सेती पीला फूल, पीला मिठई, पीला चावल, चना के दाल अऊ केला के भोग चढ़हाना चाही ।
ए दिन दिनभर में एक बार ही भोजन करना चाही अऊ सच्चे मन से भजन पूजन करना चाही । एकर से बहुत लाभ होथे ।

बिरस्पति देव के कथा – एक गांव में एक गरीब बाम्हन रिहिसे। वोहा पूजा पाठ तो रोज करे फेर वोकर बाई ह निच्चट अढ़ही राहे। वोहा भगवान के पूजा पाठ करबे नइ करत राहे । महराज ह वोला बहुत समझाय फेर वोहा ओकर बात ल टाल दे ।
कुछ समय बाद ओकर घर में एक लड़की पैदा होइस। लड़की बहुत सुंदर अऊ गुनवान रिहिस । जइसे- जइसे लड़की बडे होत गीस ओकर सुंदरता ह बढ़त गीस । जब वोहा इस्कूल जाय के लइक होइस त ओला एक ठन इस्कूल में भरती करवा दिस । वो लड़की ह रोज भगवान के पूजा पाठ करे अऊ इस्कूल जाय । जब वोहा इस्कूल जाय तब अपन हाथ में एक मूठा जौं (जवाँ ) ल धर ले अऊ रस्ता भर छींचत छींचत जाय । इस्कूल ले जब घर वापिस आय त ओ जवाँ ह सोन के बन जाय राहेय वोला सकेलत आय ।सोन के जवाँ आय से ओकर मन के गरीबी ह दूर होगे ।
एक दिन वो लड़की ह जब जौं ल निमारत रिहिस त ओकर पिताजी ह बोलथे – बेटी सोन के जौं ( जंवा ) ल निमारे बर सोन के सूपा होतीस त बढ़िया होतीस ।
तब लड़की ह भगवान बिरस्पति देव से प्राथना करिस अऊ सोना के सूपा मांगीस । दूसर दिन जब वो लड़की इस्कूल से घर आत रिहिस त रस्ता में ओला सोन के सूपा मिलीस ।

एक दिन वो लड़की ह अपन घर में सोना के सूपा में जंवा ल निमारत रिहिसे ओतकी बेरा एक झन राजकुमार ह उही रस्ता से जात रिहिसे । वोहा लड़की के रुप ल देख के मोहित होगे।
घर में आ के राजकुमार ह अपन पिताजी ल बताइस अऊ वो लड़की से बिहाव करे के इच्छा जताइस । तब राजा ह बाम्हन देवता घर जाके लड़की के हाथ मांगीस अऊ खुसी खुसी बिहाव कर दीस ।
लड़की के बिदा होय के बाद धीरे धीरे महराज के घर में फेर गरीबी आ गे । काबर महराजीन के आदत ह सुधरेच नइ रिहिसे। वोहा पूजा पाठ करबे नइ करत रिहिसे।

तब लड़की ह अपन दाई ल समझाइस अऊ बिरस्पति देव के पूजा पाठ करे के विधि विधान बताइस ।
तब महराजीन ह रोज विधि विधान से पूजा करे अऊ धीरे धीरे धन के भंडार भरगे। ओकर गरीबी ह दूर होगे।

बोलो बिरस्पति देव की जय ।

महेन्द्र देवांगन “माटी” (शिक्षक)
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला – कबीरधाम ( छ. ग )
मो.- 8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com

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सेहत के खजाना –शीतकाल

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हमर भारत भुईयाँ के सरी धरती सरग जइसन हावय। इहां रिंगी चिंगी फुलवारी
बरोबर रिती-रिवाज,आनी बानी के जात अउ धरम,बोली-भाखा के फूल फूले हावय।
एखरे संगे संग रंग-रंग के रहन-सहन,खाना-पीना इहां सबो मा सुघराई हावय।
हमर देश के परियावरन घलाव हा देश अउ समाज के हिसाब ले गजब फभथे। इही
परियावरन के हिसाब ले देश अउ समाज हा घलो चलथे। इही परियावरन के संगे संग
देश के अर्थबेवसथा हा घलाव चलथे-फिरथे। भारत मा परियावरन हा इहां के ऋतु
अनुसार सजथे संवरथे। भारत मा एक बच्छर मा छै ऋतु होथे अउ एखरे हिसाब ले
परियावरन हा बनथे-बिगङथे। भारत मा ऋतु ला भारतीय महीना के हिसाब ले छै
भाग मा बांटे गे हावय जउन हा बसन्त,गरमी, बरसा, सरद, हेमन्त अउ सिसिर के
नांव ले जाने जाथे। हिन्दू नवा बच्छर मा चइत ले बइसाख बसंत ऋतु, जेठ ले
असाढ गरमी रितु, सावन ले भादो बरसा, कुंवार ले कातिक सरद रितु, अग्घन ले
पूस हेमंत रितु, मांघ ले फागुन सिसिर रितु के मउसम रथे। ए परकार ए छै
रितु हा एक बच्छर मा दु-दी महीना रहीथे। साल भर के छै रितु अलग-अलग अपन
असर देखाथे। सबो रितु के अपन-अपन समे घातेच महत्तम हावय। जिनगी मा संतुलन
बनाय खातिर सबो मउसम के खच्चित जरुरत होथे। कोनो भी एक झन के कमी मा भारी
गङबङी हमर परियावरन अउ जिनगी मा अमा जाही। एखरे सेती सबो रितु पारी-पारी
दु-दु महीना अपन असर देखाथे।
हमर देश के छै रितु मा तन अउ मन के सुख देवइया बङ मनभावन
मउसम हेमन्त रितु हा होथे। हेमंत रितु हा सरद रितु के बिदा होवत साठ आ
धमकथे। इही हेमन्त के बङई महाकवि मलिक मोहम्मद जायसी हा अइसन करे हावय:-
*ऋतु हेमंत संग पिएउ पियाला।*
*अगहन पूस सीत सुख-काला।।*
*धनि औ पिउ महँ सीउ सोहागा।*
*दुहुँन्ह अंग एकै मिलि लागा।।*
हिन्दू गरंथ आयुरबेद के हिसाब ले हेमन्त रितु ला
सुवासथ अउ सुवाद के सुग्घर रितु कहे जाथे। हेमन्त रितु हा जङकाला ला संग
मा धर के लाथे। सरद पुन्नी के पाछू हेमंत रितु हा सुरु होथे। ए जङकाला
हा दु भाग मा बटाय रथे। हल्का-फुल्का सहतुत मनमरजी जाङ हा हेमंत रितु
कहाथे अउ बङ भारी कङकङावत जाङ हा सिसिर रितु कहाथे। हेमंत रितु सुवाद अउ
सुवासथ बनाय के मउसम आय। हेमंत रितु मा सरीर के सरी दोसमन हा सान्त होय
ला धर लेथे अउ अगनी हा ऊंच होय लगथे। एखरे सेती ए रितु हा बच्छर भर मा
सबले बढिया सुवासथ देवइया रितु होथे। ए रितु मा भरपूरहा उरजा, सरीर के
रोगपरतिरोधक सक्ती के बिकास होथे। एकरे सेती डाक्टर मन हा छुट्टी मा चल
देथें। ए रितु मा सरसो तेल के मालिस अउ कुनकुन पानी मा नहाय के जरुरत
होथे। ए मउसम मा कसरत करे ले, गुरतुर अउ अम्मट के संग नुनछुर खाये पीये
ले ए रितु मा सरीर ला बङ उरजा के संग अगनी हा बाढथे। सरद के बीते ले ए
रितु मा मउसम हा बङ मनभावन अउ सुहावन हो जाथे। जोरदरहा घाम ले
नान्हे-नान्हें कीरा-मकोरा मन के नास हो जाथे। एखर ले बेमारी अउ
रोग-मांदी के डर सिरा जाथे। सरीर सुग्घर सुवासथ हो जाथे। पेट के पाचन
सक्ती हा बाढ जाथे। ए मउसम मा सुवाद अउ सुवासथ बाढ जाथे। हेमंत रितु मा
किसिस-किसिम के साग-भाजी,फल-फलहरी,कांदा-कूसा के भरमार हो जाथे।
साग-भाजी,भाजी-पाला मन हा बङ सस्ता हो जाथे। एखर कारन हे गाँव-गवंई के
बारी- बखरी के साग-भाजी के आवक बजार मा बाढ जाथे। साग-भाजी मा गोंदली
भाजी,मेथी भाजी,चउलाई भाजी,पालक,लाल,बर्रे,चना भाजी,मुनगा भाजी,सरस़ो
भाजी,मुरईभाजी के बहार आ जाथे। मूंगफली, बिही, खीरा,गाजर, कुसियार,
छीताफर,संतरा, खोखमा,सिंघाङा अउ जिमीकांदा घलाव अब्बङ मिलथे। साग मा
बटकर, गोलेंदा भाँटा, फूलगोभी, बंधागोभी, गाँठगोभी, सेमी,
मुरई,तुमा,मखना,बटकर,बटर अउ बटरी अउ आनी-बानी के साग के बहार आथे। कँस के
खाये अउ कँस के सेहत बनाय के सबले सोनहा समे इही मउसम हा होथे।
सुरुजनरायन के सोज्झे घाम ले तन-मन मा अगनी के बढती आथे। एखरे सेती ए
मउसम मा पाचन सक्ती जोरदरहा हो जाथे। कथरी, कंबल, अलवान, अलाव,भुर्री
हेमन्त रितु के चिन्हारी हरय। एखर बिन हेमन्त रितु अधूरा होथे,सुन्ना
रथे। बुता काम के पूरा आ जाथे। धान मिंजाई हा फदगे रथे ता गहूं चना के
बोवाई घलो चलत रथे। दिनमान हा झटपट सिरा जाथे,बेरा जलदी बुङ जाथे। रतिहा
हा बङ लाम हो जाथे जउन हा लटपट पहाथे। भिमसरहा उठ के खेती-किसानी के बुता
,दउङ, कसरत-बियाम के सुग्घर पाग हा इही मउसम मा धरा जाथे।
ए हेमंत रितु मा नफा के संग थोरिक नकसानी घलाव हावय। ए
मउसम हा जतका सुख देथे ओतका दुख घलो देथे एखरे सेती ए जङकाला मा थोरिक
चेतलगहा रहे ला परथे। खवई-पियई ले जादा अपन सरीर के घलो धियान दे ला
लागथे। जुङ के दु महीना ला सावधानी ले बिताना चाही। अइसन करे ले नसकान ला
नफा मा बदले जा सकथे। जरुरत हे सिरिफ जागरुक रहे के। ए जुङ के दु महीना
मा मधुमेह जेला सुगर या फेर सक्कर के मरीज मन ला बिसेस धियान दे के जरुरत
रथे। सुगर के मरीज मन ला हिरदे अउ दिमाग मा गहरा अघात के खतरा हा जादा
बाढ जाथे। एखर संगे संग ए जङकाला मा लहू-रकत के नस हा सकला जाथे जेखर ले
रक्तचाप (बल्डप्रेसर) हा बाढ जाथे। ए जुङ के मउसम मा सबले जादा
जुङ-सरदी,खाँसी अउ बोखार हा जादा जोर मारथे। जङकाला के जुङ-सरदी मा 100
ले जादा वाइरस के संग मा रंगे होथे। एखर सेती जुङ मा बेमारी ले बांचे बर
जम्मो लइका,जवान अउ सियान मन ला सावधानी अउ जुङ ले बचाव के नंगत जरूरत
होथे। जङकाला मा जाङ ले बांचे बर
कंबल,कथरी-गोदरी,साल-सेटर,कनटोप-मोजा,मफलर-दस्ताना ज इसन जीनिस के घातेच
जरुरत रथे। जुङ हा सरीर मा मुङी,कान अउ गोङ डहर ले खुसरथे। एखरे सेती ए
अंग मन ला जङकाला मा बने तोप-ढांक के रखना चाही। गरम अंगरक्खा,गरमा-गरम
खानपान के संगे संग थोर-बहुत कसरत-बियाम रोजेच करते रहना चाही। घाम मा
बइठ के रउनिया तापे ले सरीर ला विटामिन डी घलाव मिलही। भुर्री बार के जाङ
ला भगाय के बेवसथा पोठ होना चाही। आनी-बानी के साग -भाजी जोरदरहा खाव फेर
चेतलगहा घलो खाव। ए मउसम हा सुवाद के संग सुवासथ के सुग्घर रितु हरय।
तिल,गुङ,मूंगफली अउ रेवङी के सेवन जङकाला मा भरपूर करे ले सरीर ला भीतर
ले गरमी मिलथे। ए हेमन्त रितु मा सुवाद के सुग्घर मजा हे फेर जाङ मा
थोरिक बेमारी के घलाव सजा हे। जिनगी मा अउ ए मउसम मा संतुलन बनाके बरोबर
चेतलगहा बुता के जरुरत हावय। सुवाद के फेर मा सुवासथ हा झन बिगङय एखर चेत
पहिलीच करे ला परही। चेतलग रहव अउ मउसम के जबर मजा लव।

कन्हैया साहू “अमित”
~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क ~ 9753302055

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भुइंया के भगवान बर एक अऊ भागीरथ चाही

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ये संसार म भुइंया के भगवान के पूजा अगर होथे त वो देस हाबय भारत। जहां भुइंया ल महतारी अऊ किसान ल ओखर लईका कहे जाथे। ये संसार म अन्न के पूरती करईया अन्नदाता किसान हे। हमन इहां उत्तम खेती,मध्यम बान(व्यापार),निकृष्ट चाकरी अऊ भीख निदान म बिसवास करईया मनखे अन। हमर सभ्यता संसकिरती म ’’अन्नदाता सुखी भवः’’ के अवधारणा पर बसे हावय। अन्नदाता याने अन्न उपजईया किसान के खातिर अभार प्रगट करेके हमर परमपरा सनातन काल ले चले आवथ हे। हमर छत्तीसगढ़ के किसान ह हरेली,भोजली,पोरा,छेरछेरा म अपन जो खुसी परगट करत आत रहिस हावय आज ये तिहार के परंपरा ल बनाये तो रखे हावय पर मन से तिहार ल मनाय नई पाथ हावय काबर?
हमर सभ्यता संसकृति अन्नदाता किसान के खातिर आदर अऊ कृतज्ञता के भाव रहिस तभे तो त्रेतायुग म मिथिला के राजा जनक अपन परजा के किसान के खातिर दुकाल के समय खुद नांगर धर के खेत ल जोते रहिस। ये होथे राजा जो परजा के दुख अऊ सुख के घरी म हरदम साथ देथे।पर आज के समय म हमर देस के निती नियंता मन हरित क्रांति अऊ कारपोरेट वैश्वीकरण ल अपना के सतयुग ले चले आथ ये सभ्यता अऊ संसकृति जेमा किसान के खातिर आभार परगट करके परंपरा अन्नदाता सुखी भव के भाव ल उलट के रख देहे हाबय अऊ अब ’’अन्नदाता दुखी भवः’’ के भावना चरितारथ होत दिखत हाबय। जब भुइंया के भगवान ही नई रही त कहां के अन्न ?
पहिली हमर किसान मन जैविक खेती करके अपन अऊ अपन परिवार बर ही अन्न उपजाथ रहिस कहे के मतलब ये हाबय कि अन्न ल बेचत नई रहिस। पर आज किसान ल हरित क्रांति अऊ कारपोरेट वैश्वीकरण ह बेवसाय करे बर मजबूर कर देहे हे। जेखर कारन से जादा फसल के उत्पादन बर हाईबिरीड बिजहा के उपयोग करथ हे। ये हाईबिरीड बिजहा के धान, गेंहू, तिल, सरसों, गन्ना, मटर, राहेर, अरसी अऊ कतको साग-सालन के पैदावार होइस त होईस असन नई होइस त किसान के मरना।
फसल के जादा पैदावार बढ़ाय बर रसायनिक खातू उहू बड़े कंपनी के अऊ बिजहा भी बड़े कंपनी के चाही। अऊ ये सब बर किसान ल करजा ले बर पड़त हे। अऊ फसल के पैदावार नई होईस त किसान करजा बोड़ी ल कईसे छूटय? दूनो कति ले किसान के ही मरना हे। एति कुआ वोति खाईं।
हरित क्रांति हरित क्रांति कही-कही के निजी कंपनी मन के खातू,बिजहा,कीटनाशक दवई,खरपतवार नासक दवई, गंगई नासक दवई अऊ न जाने कतका परकार के बिमारी बता बता के फसल ल बचाये अऊ जादा पैदावार होही कईके किसान के पईसा बड़े बड़े लोगन मन के खिसा म जाथ हाबय। अऊ किसान के हाथ कुछ नई आवथे। वो कईथे न किसान के हाथ दुच्छा। करजा -बोरी के कारण किसान ल अपन खेत खार ल बेचे बर पड़ जाथे। अऊ कहूं रद्दा नई सूझे त किसान अपन परान ल ले लेथे। ओखर जाये के बाद ओखर परिवार के दुख पीरा हरईया कोनो नइये।
पहली हर गांव म किसान ह अपन अपन खेत म धान, गहूं, मटर, बटुरा, राहेर, चना, सरसों, उरिद, कुसियार, तिल, तिवरा जइसे जैव बिबिधता वाले फसल ल लगाये रहत रहिस हाबय जेमा फलीदार पौधा के गांठ म पाये जाने वाला राइजोबियम जीवाणु ह वायुमण्डल के नाईट्रोजन के स्थीरिकरण करके माटी ल उपजाउ बनावय। अऊ घर के घुरूवा के खातू माटी ह खेत बर सोना म सुहागा के काम करत रहिस। जेखर कारन घर ह चाउर,दार,तेल अऊ किसीम किसीम के अन्न ले भरे रहय अऊ घर भर के मनखे मन ल पोस्टिक आहार मिलय। कोठी म धान ल भरे रहय पर आज बैपारिक मानसिकता के चलत ले कोठी घलो ह नंदावत हाबय। पर आज केवल अऊ केवल बेवसाय करके के खतिर किसान मन के ऑखि म जादा पैदावार के सपना दिखा के बड़े-बड़े कंपनी अपन जेब ल भरथ हावय अऊ भुंईया के भगवान के जेब ल खाली करत हाबय। रसायनिक खातू के परयोग से भुईंया ह पहिली ले जर गे हावय वोकर संगे-संग चाऊर,दार,साग-सालन,तिलहन मन भी जहर बन गे हे। जेला खाके मनखे मन के तन खलों जहरीला होत जात हे, जेखर कारन मनखेमन के सरीर म सक्कर के बिमारी,बलड पेसर,गूरदा के बिमारी,हार्ट अटेक, जईसे आनि-बानी के बिमारी ह पांव पसारथ हावय। अऊ अब सासन कईथे जैविक खातू के इस्तेमाल करव। नीम कोटेट यूरिया अपनावव। पर अब तो किसान के घर म न तो गरूवा-बछरू,बईला-भैइसा,छेरी-बोकरी हावय अऊ न तो घूरूवा हावय जेमा ले जैविक खातू-माटी ह निकलही।
आजकल बिजहा घलो अइसहना हाबय जंे आगू बछर बर नइ रखे सकन काबर के ये बिजहा ल हमन जेला हमन हायबिरीट कइके बिसाथन वो एकेच फसल बर काम आथे नइतो कभू-कभू फसल जामे कस नइ करे। बिजहा अनबिजहा हो जाथे जी त किसान के मरना। कंपनी के कोई गारंटी नइ। पहिली के जमाना म फसल म कोनो रोग-राइ नइ आत रहिस पर अब तो आनि-बानी के रोग-राइ अऊ आनि-बानी के ओखर बर दवाइ। सबेच बर पैइसा।
दूसर गोठ ये हावय के किसान मन के आरथिक दसा गिरे के सबले बड़े कारन ओखर फसल के सही दाम नइ मिलना ’ ऊॅंट के मुह म जीना ’ के बरोबर ये। कहे के मतलब ये हावय के ’आमदनी अठन्नी अऊ खरचा रूपैया’। जेतका आज के समय म फसल के लागत बैइठत हाबय चाहे खेत जोते बर टेक्टर के जरूरत होथे त डीजल के दाम दिनों-दिन बाढ़त हावय, बिजहा, दवाइ-पानी, चाहे भुतिआर के रोजी रहय, चाहे खातू-माटी के दाम होवय, चाहे मिसाइ सब किराया बाढ़त हाबय,ओतका घलऊ आमदनी नइ मिलथ हाबय। आमदनी नइ होय के कारन किसान मन ह खेती-किसानी ल बनाये रखे के कारन करजा लेहे बर पर जाथे अऊ करजा नइ छूटे सकय जेखर कारन किसान अंदर रे अंदर दुखी रइथे ओखर पीरा हरइया कोनो नइ दिखय। किसान ल अपन आत्मसमान बहुत प्यारा रइथे, जेखर कारन वोहा आत्महत्या के रद्दा ल अपनालेथे।
पिछु चालीस-पचास बछर ले किसान के फसल के दाम सालों-साल ओतकेच हावय अऊ यदि दाम बढ़थे त कुछ रूपया जो पूरय नइ। महंगाइ ह सौ गुना बाढ़त हावय अऊ दुसर कति सरकारी अधिकारी, करमचारी मन के बेतन म साल म दू घव महंगाइ भत्ता के साथ बढ़े बेतन मिलथ रइथे अऊ हर दस साल म नया-नया बेतनमान बनाये बन बेतन आयोग के गठन किये जाथे पर किसान के फसल लागत, वोकर नुकसानी के मुआवजा के निरधारन करे बर कोनो आयोग के गठन नइ होना ये चिंतन के बिसय हाबय। किसान चाहे कड़कत घाम रहय, चाहे भोंभरा तिपत रहय,चाहे गरजत-लऊकत रहय, चाहे कतको जाड़ पड़त रहय अपन करम ल नइ भुलाये मतलब के वो अन्नदाता हाबय अऊ अन्न उपजाय बर हर दुख-पीरा ल सहत मेहनथ करत आवथे, पर मेहनत के फल नइ मिलय जेखर कारन किसान के दसा ह बिगड़त जावथे। किसान घलो ल एक निसचित मानदेय देहे के नियम रहना चाही। जी तोड़ मेहनत करके के बाद आज किसान अऊ ओखर पिरवार बहुत दुखी जीनगी बितावत हाबय।
भारतीय अरथबेवस्था किरसी परधान हावय अउ किसान ये अरथबेवस्था के रीढ़ हे पर येही रीढ़ ह गलत नीति-निधारन के कारन टूटत हावय। इहां 80 परतिसत मनखेमन खेती -किसानी ले जुड़े हावय। भारत म अगर बाजार ह येतका बिकसीत हो हावय त वो खेती-किसानी के कारन हे। इहां बड़े-बड़े उद्योग धंधा के कच्चा माल खेती-किसानी ले ही मिलथे ।
देस के परधानमंत्री से लेके रास्ट्रपति, मुख्यमंत्री से ले के राज्यपाल अउ बिधायक, सांसद, सासकीय करमचारी, अधिकारी सबो के बेतन ह हर साल बाढ़त जावत हे बेतन के संग सबो ल गृह भाड़ा, यात्रा भत्ता, मेडिकल भत्ता, उकर लईकामन के पढ़ाई बर लोन के बेवस्था, कपड़ा धोय के भत्ता, टेलीफोन भत्ता, हर तीन या चार महिना म महंगाई भत्ता अउ हर दस बछर म नया बेतन आयोग बैठाये जाथे। आनी-बानी के भत्ता हावय पर किसान के फसल के समरथन मूल्य के संग कोनो परकार के भत्ता नहीं जुड़े रहय। का वो जो देस के अरथबेवस्था के रीढ़ हावय जेखर से भारत के बाजार ह टिके हावय वो ह मनखे नोहय। वोला कोनो बिमारी नई होवय जेखर ले वोला मेडिकल भत्ता नई मिलय। वोला महंगाई के कोई असर नई पड़य तेखर ले वोला महंगाई भता नई मिलय। वोला अपन घर के मरम्मत के जरूरत नई पड़य, जेखर ले ओला गृह भाड़ा नई मिलय। ओखर बेटी-बेटा मन ल अच्छा सिक्छा पाये के जरूरत नई हावय तेखर ले ओखर बेटी-बेटा बर बिना बियाज के लोन के जरूरत नई हे। किसान ल कपड़ा के जरूरत नई हे जेखर कारन वोला ओखर फसल के समरथन मूल्य धुलाई भत्ता नई मिलय। किसान ल अपन फसल ल बेचे जाये बर फसल मंडी त जाय बर रूपया-पेसा नई लागय काय जेखर कारन ओला या़त्रा भता देहे के कानो परावधान नई हे किसान ल अपन जरूरी काम बर कोनो करा संपरक करे के जरूरत घलो नई हावय जेखर कारन ओला टेलीफोन भता नई मिलय। बाकी दूसर मनखे मन ल जे ह नोकरी-चाकरी करत हावय या नेता -मंत्री हावय तेला बेतन के सगें-संग आनी बानी के भत्ता मिलथे । ये किसान के संग अनियाव नो ह त काय?
दूसर कती किसान मन ल 25-30 बछर पाछू फसल के जादा पैदावार बर रासायनिक खातू के परयोग करे बर प्रोत्साहित करे गे रहिस पर उही रासायनिक खातू ह आज किसान मन के दुसमन बन गे हावय। काबर के रासायनिक खातू ले भंुईंया जल गे हावय। जेखर से फसल के जड़ ह घलो बने नई जामय। भुंईया ल उपजाऊ बनाये वाला जीव गेंगरूआ घलो रासायनिक खातू अउ कीटनासक के कारन मरत जावत हे। कीटनासक के परयोग के कारन चिड़िया घलो जो किसान के एक परकार ले संगी हे तको ह खेत के कीड़ा-मकोड़ा म ल नई खावत हे अउ खावत हावय त उहू मन मर जावत हे। येमा फायदा काला होवत हावय अउ घाटा काला होवत हे ये सब जानत हावय।
किसान मन अपन करजा चुकावत-चुकावत थक जावथे काबर के जे सोच के वोहा करजा ले रइथे के फसल के पैदावार बने हो जाही त करजा ल चुकाता कर देबो पर यदि फसल के पैदावार नइ होवय तो वोकर आय के एक मात्र सहारा खेती हर हावय करजा नइ चुके सके अऊ उपर ले ओखर बियाज बाढ़त जाथे। किसान अपन आत्मसम्मान बचाये के खातिर आखिरी रास्ता आत्महत्या ल चुनथे । ये हमन सब जानथन कि आत्महत्या कायरता हावय पर किसान कायर नोहय । ये रद्दा ल किसान मजबूरी के कारन उठावत हे। किसान के आत्हतया के परमुख कारन अऊ ओला रोके के कुछ उपाय किये जा सकथ हाबय। जेखर से किसान के दसा सुधर सकथ हे। जब सरकार ह किसान मन के करजा माफ करके बर राजी हो जाथे त बैंक के बड़े अफसर मन ल आपत्ति हो जाथे अऊ उही बड़े अफसर मन देस नामी गिरामी कंपनी जेहा पहिली ले ही करजा में डूबे रईथे तेला हजारो करोड़ो रूपया पहिली करजा देथे अऊ करजा नइ छुटे सके त उंखर करजा ल माफ कर देथे काबर?
आत्महत्या के परमुख कारनः-
1. महंगाइ के अंधाधुंद बढ़ना
2. रसायनिक खातू के जादा इस्तेमाल से पैदावार म कमी।
3. फसल के बिजहा ह अनबिजहा हो जाना।
4. फसल के पैदावार,लागत के सही दाम नइ मिलना।
5. अच्छा पैदावार होय के बावजूद विदेस ले चाऊर,दार,तिलहन के आयात करना।
6. सिंचाइ के समुचित बयवस्था नइ होना।
7. घूसखोरी, भ्रसटाचार।
8. विकास के नाम पर किसान के खेत के अधिग्रहण।
9. प्राकृतिक आपदा के कारन फसल नुकसानी म करजा माफ नइ होना।
आत्हत्या रोके के उपायः-
1. महंगाइ पर रोक जरूरी।
2. जैविक खातू अऊ परांपरिक खेती ल बनाये रखे के जतन ।
3. देसी प्रजाति के बिजहा ल सुरक्षित रखे जाये।
4. फसल के पैदावार,लागत के सही दाम बर किसान आयोग के गठन किया जाये अऊ हर पांच साल म आंकलन कर किसान ल भी एक निसचित मासिक आय दिये जाये।
5. यदि देस म फसल के पैदावार बढ़िया होय हाबय त बिदेस ले किसी परकार के फसल के आया नइ करना चाहीै
6. किसान फसल बर सिंचाइ के समुचति सुविधा बर सासन के जवाबदेही तय किय जाये।
7. घूसखोरी अऊ भ्रसटाचार म पूरा परतिबंद लगाये जावय।
8. विकास के नाव म किसान के खेतीहर जमीन ल अधिग्रहन न किया जावे यदि जरूरी होवय त वाजिब मुआवजा दिया जाये।
9. प्राकृतिक आपदा के कारन फसल नुकसानी म किसान के करजा माफी होना चाही।
10. जी.एम.(जेनेटिक मोडिफाइ) फसल के बेवसायिक उत्पादन पर रोक लगाना चाही।

अभी हाल-फिलहाल म अन्नदाता मन महारास्ट्र अऊ दिल्ली म संसद तक 24 राज्य के किसान मन अपन वाजिब हक बर रैईली,आंदोलन करिस ओहा भुंइंया के भगवान के सहनसीलता के पराकास्टा ए। किसान मन ल ओखर हक जरूर मिलना चाही।
किसान रे किसान,
तोर पिरा हरइया कोनो नइ ए इहां मितान।
तोर दुख देख के मोर करेजा होवथे छलनी,
तय हाबस भुइंया के भगवान,
तोर गोहार सुनइयां नइये इहां मितान,
मिटाथस तय मनखे मन के भुख अऊ पियास,
पर इ मन करा ले नइये हे एको आस,
जे दिन तय छोड़े अपन करनी,
ते दिन ये मन के हो जाही मरनी,
पर तय नइ छोड़स अपन धरम ल
कइसनो करत रहे दुनिया अपन करम ल,
किसान रे किसान,
तोर पिरा हरइया कोनो नइ ए इहां मितान।
तय भुइंया के भगवान तोला जोहार हावय मितान।

प्रदीप कुमार राठौर ’अटल’
ग्राम-देवरी (पंधी), जिला-बिलासपुर
छत्तीसगढ़

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परंपरा –अंगेठा आगी

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परदेशी अब बुढ़वा होगे।69 बच्छर के उमर माे खाँसत खखारत गली खोर मा निकलथे। ये गाँव ला बसाय मा वोहा अपन कनिहा टोरे रहिस। पहाड़ी तीर के जंगल के छोटे मोटे पउधा मन ला काट के खेत बनाय रहिस। डारा पाना के छानी मा अपन चेलिक काया ला पनकाय रहिस। अंगेठा बार के जड़कला ला बिताय रहिस। अपन सब संगवारी मन ला नवा गाँव बनाय बर अउ खेती खार पोटारे बर जिद करके बलाय रहिस। पाँच परिवार के छानी हा आज तीन सौ छानी वाला परिवार के उन्नत गाँव बनगे।
गाँव या पाँच ठन झाला असन घर रहय।चारो मुड़ा जंगल।बिजली पानी के आरो नइ रहय।देस ला नवा नवा अजादी मिले रहय।पाँचो संगवारी के बिहाव पाछू परिवार बाढ़िस।देखा सीखी दूसर गाँव के मनखे मन घलाव जँगल ला चतरा के घर कुरिया, खेत बना लीन। सबो घर मा जंगल के जीव जन्तु ले बांचेबर अंगेठा बारे रहय। जंगल मा लकड़ी के काय कमती।बारो महिना अंगेठा बरे। बीड़ी माखुर पीये बर सुभीता रहय।सरकार बदलीस तब ये गाँव के काया बदल गे। राजस्व गाँव बनगे। पट्टा बनगे, भूमि के अधिकार मिलगे। गाँव मा पहुँच मार्ग, बिजली, इस्कूल धीरे धीरे बने लगिस। गाँव के उन्नति बर परदेशी अउ चारों संगवारी गाँव के मनखे मन संग खाँद जोर के चलिन।
गाँव के शोर अतराब मा बाढ़े लगिस। परदेशी अउ ओकर संगवारी के लइका मन के नउकरी लग गे। सबो मन बहू बेटा नाती पंथी वाला होगे।फेर खेती बूता ला नइ छोड़ पाईन। डारा पाना के घर हा खपरा छानी अउ अब गच्छी वाला मकान मा बदल गे। घर मा टाईल्स बिछ गे।पहिरावा अउ खाय पीये के तरीका बदल गे। गाँव के तीर तखार के जंगल अब दुरिहा होगे। जेन घर मा बारो महिना अंगेठा के आगी रहय उहाँ अब गैस चूल्हा हा आगे।
अंगेठा के तीर मा बइठ के परिवार संग भात साग खवाई, चहा बनाई अउ पीयई छूटगे।नाचा पेखन ला रातभर अंगेठा के तीर मा बइठ के देखाई अब नोहर होगे। जड़कला के दिन मा आज अंगेठा के आगी तापे बर परदेशी खाँसत खखारत गली मा किंदरथे फेर जाकिट अउ सुवेटर पहिरइया मन के बीच मा अंगेठा के आगी कहाँ मिलही!

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा,जिला गरियाबंद

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अपन भासा अपन परदेस के पहचान

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संपादक ये आलेख के लेखक के ‘प्रदेश’ शब्‍द के जघा म ‘परदेस’ शब्‍द के प्रयोग म सहमत नई हे। अइसे हिन्‍दी के अपभ्रंश शब्‍द मन जउन पहिली ले प्रचलित नई ये ओ मन ल बिना कारन के बिगाड़ के लिखई अर्थ के अनर्थ करना हे। ‘परदेस’ से आन देश के भाव आथे..

आज हमर छत्तीसगढ़ ल राज बने अठारह बछर होगे फेर मातृभासा म पढ़ाई -लिखाई नई होवत हे। छत्तीसगढ़ के हमर छत्तीसगढ़ी भासा अबड़ मीठ भासा आय जब दू झन अपन भासा म गोठ – बात करत रहिथे त सुनैया ल अबड़ सुख लागथे अउ हमर भासा छत्तीसगढ़ी के मान ह घलो बढ़थे फेर काबर हमर अपन मन के परदेस म अपनेच भासा के चिन्हारी नई हो पावत हे अपन भासा अपन परदेस के पहचान आय।अब देरी करे ले अपन नावा पीढ़ी मन का सोंछी इही बात ल सोंछ के मोला अबड़ गुनासी लागथे जब हमर भासा ह अतेक सुघ्घर अउ मीठ हावे त काबर आठवीं अनुसूची म सामिल नई होवत हे अऊ काबर पढाई – लिखाई म सामिल नई होवत हे ये विसय म सबो ल गुने ल लागहि तभे हमर भासा ह पोठ होही अऊ हमर छत्तीसगढ़ परदेस के मान बढ़ही।
कक्षा पहली से आठवीं म अब बिना देरी करे पाठ्य पुस्तक म सामिल करे के जरूरत हे।जादा सोंचा बिचारी म नावा पीढ़ी ल ऐखर लाभ मिले बर देरी होही।सिक्षा विभाग ल अब बिचार करे के जरूरत हे, एम. ए. छत्तीसगढ़ी ले निकले लइका मन ल काम मिलहि अऊ हमर अपन छत्तीसगढ़ी भासा ह पोठ होही। 28 नवम्बर 2007 म अपन छत्तीसगढ़ी भासा ह राज भासा तो बनीस फेर 10 बछर म आठवीं अनुसूची म नई सामिल हो पाईस ये बात ल दुख लागथे जब राज भासा के दरजा मिल गिस त अऊ का देरी हे अऊ फेर सबो परदेस के तो अपन -अपन भासा हे फेर हमर छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ी भासा होना चाहि न ? छत्तीसगढ़ राज भासा आयोग के गठन के बाद जरूर आघु आईस हे हमर भासा ह अऊ पोठ होईस हे फेर अऊ तेजी लाये के जरूरत हावे। 25 नवम्बर के दिन जांजगीर जिला म राज्य स्तरीय कवि सम्मेलन होईस हावे अउ सम्मेलन म छत्तीसगढ़ के युवा कवि मन सामिल होइन छंद के छ परिवार अऊ शील साहित्य परिषद जांजगीर के संयुक्त तत्वाधान म हमर छत्तीसगढ़ के जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ल काब्याजंली अरपित करिन अऊ छत्तीसगढ़ी भासा ल घलो पोठ करिन। वरिष्ठ साहित्यकार नन्द किशोर शुक्ला जी छत्तीसगढ़ राज भासा मंच के संयोजक अऊ श्रीमती लता राठौर छत्तीसगढ़िया महिला सेना अध्यक्ष छत्तीसगढ़ी महतारी भासा ल पोठ करे बर छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी पखवाड़ा मनावत हें जेखर सुरुवात बिलासपुर शहर ल करिन हे अऊ जगह – जगह पंहुँच के अपन भासा ल पोठ करत हें अऊ तो अऊ युवा साहित्यकार संजीव तिवारी जी जेन हें “गुरतुर गोठ” बेबसाइट म छत्तीसगढ़ी भासा के अलख जगावत हें अउ पोठ करत हें उहंचे देशबंधु समाचार पत्र ह लगातार मड़ाई अंक म हर रविवार के दिन छत्तीसगढ़ी भासा ल पोठ करे बर कविता, कहनी, लेख ले लोगन मन ल जगावत हे।
जन भासा ले राजभासा बने हमर चिन्हारी हमर महतारी भासा छत्तीसगढ़ी भासा ल अब समय रहत आठवीं अनुसूची म सामिल करे के जरुरत आय अऊ हमर सबो जिला के जिला अध्यक्ष ,पुलिस अधीक्षक ,सिक्षा विभाग के जिला सिक्षा अधिकारी जी मन ल अब अपन भासा म बोलना चाहि जेखर ल आमजन ल बल मिलहि अऊ हमर भासा ह पोठ होही इही विसवास के साथ।
जय जोहार जय छत्तीसगढ़

लक्ष्मीनारायण लहरे “साहिल ”
कोसीर सारंगढ

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बाबा गुरु घासीदास के सब्बे मनखे ल एक करे के रहिस हे विचार मनखे मनखे एक समान

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हमर बाबा गुरु घासीदास दास के सबले बड़े विचार रहिस हे के सब्बो मनखे एक समान हरे कोनो म भेद भाव ऊंचा नीच के भावना झन रहे तेखरे बर अपन जियत भर ले सब्बो मनखे ल जुरियाये के परयास बाबा गुरुघासीदास ह करिस। बाबा ह सब्बो मनखे के चित्त म मया सत्य अहिंसा अउ शांति ल डारे के परयास हमेशा करिस तेखरे सेती बाबा के प्रतीक चिनहा के रूप म सफेद जैतखाम सब्बो जगह गाडियाये रहिथे। जेन ह सत्य अउ ग्यान के प्रतीक हे कहे जाथे की जेन भी मनखे ह स्वेत जैतखाम के तीर ले किंजरथे तेख मन म शांति के भाव जाग जाथे, येही ह पूरा संसार म सबले बड़े सत्य अउ ग्यान ह हवय जेखर ले सब्बो मनखे श्रेष्ठ बनथे, कोनो भी मनखे जाती पाती ल अपन आप ल बड़े महान नइ मान सकय, येखर ले मनखे म अलग-अलग बंटे के भावना जनम लेथे जेखर ले मनखे के मन म कपट भावना ह उत्पन होथे, बाबा गुरु घासीदास ह सब्बो मनखे ल एक समान करे सब्बो के अंदर मया अउ सत्य के जोत जराये बर सतनामी समाज के नीव ल राखिस, सतनामी जेखर मतलब होथे सत्य के नाव सत्य ल ही ईस्वर मानथे ओहि ह महान हे, बाबा के मन म सतनामी जाति के विचार आये के कारन येही हे के मनखे मन के मन ले उंच-निच जाति के भेद भाव एक दूसरे जाति ल छोटे बड़े मान के छुवा छूत के भाव ल सब्बे के मन ले दूरिहा करिस, बाबा गुरु घासीदास के दे संदेश कई बछर तक पूरा देश म बगरे रही काबर के बाबा के संदेश ले सब्बो मनखे ल एक संग एके धागा म जोड़े के परयास रहिस हे, सब्बो मनखे चाहे कोनो जाति पाती के होये सब्बो ल एक समान जिये के रहे के पूरा अधिकार हे, येखर सेती सतनाम के ग्यान ल सब्बो मनखे ल अपना चही, अउ सत्य अहिंसा मया के रददा म रेंगना चाही,

ग्यान जगबो सब म मान जगबो सब म,
मया करे बर आये हं संगी, मया बगरबो सब म।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर मोर छत्तीसगढ़।

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सत अउ अहिंसा के पुजारी गुरु घासीदास

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गुरु घासीदास छत्तीसगढ़ राज मा संत परम्परा के एक परमुख संत आय। सादा जीवन उच्च विचार के धनवान संत गुरु घासीदास छत्तीसगढ़ राज ला नवा दिसा दिस अउ दसा ला सुधारे बर सरलग बुता करिन अउ अपन सरबस लुटादिन।

जीवनी:- बछर 1672 मा हरियाणा राज के नारनौल गाँव मा बीरभान अउ जोगीदास नाव के दु झिन भाई जिनगी चलावत रिहिस। दुनो भाई सतनामी साध मत के साधक रिहिस अउ अपन मत के परचार परसार करत रिहिस।दुनो भाई अब्बड़ स्वाभिमानी रिहिस। सतनामी साध मत के विचारधारा के अनुसार कोनो भी मनखे ला कोनो दूसर मनखे करा झुकना मना रिहिस, लेकिन मनखे के पूरा सम्मान होय ये बात के धियान ये मत मा होवत रिहिस। सन 1672 हा मुगल काल के सासन हमर देस मा चलत रहिस अउ मुगल सासक औरंगजेब के हाथ मा सासन के डोरी हा रिहिस। एक घांव के बात आय की सतनाम साध मत विचारधारा के किसान मन औरंगजेब के सेना अउ ओकर चेला चांगुरिया मन ला झुक के सलाम नइ करिस ता औरंगजेब के सैनिक मन जम्मो किसान मन ला लउठी मा मार दिस। किसान अउ सैनिक मन के बीच मा भयंकर झगरा सुरु होगे। थोक थोक मा बात मुगल सासक औरंगजेब तक पहुँचगे। सतनामी अउ औरंगजेब के झगरा सुरु होगे। सतनामी समाज के अघवा दोनो भाई वीरभान अउ जोगीदास रिहिस। अड़बड़ दिन ले झगरा चलिस, जेमा सतनामी समाज के सैनिक मन औरंगजेब के सेना के धुर्रा छड़ा दिस। जेकर बाद औरंगजेब के अतियाचारी हा दिनो दिन अउ बाढ़हत गिस अउ सतनामी समाज के लोगन मन ला मारे पीटे के सुरु होईस। अतियाचारी ले बाचे बर सतनामी समाज के लोगन मन देस मा येती ओती बगरत गिन। जेकर बाद गुरु घासीदास के पुरखा मन घलो छत्तीसगढ़ राज मा आके बस गिस अउ इहचे जीवन यापन करिस।

गुरुघासीदास के अवतरण:– गुरु घासीदास के जनम अट्ठारह दिसम्बर 1756 मा वर्तमान बलौदाबाजार जिला के बिलाईगढ़ तहसील के गिरौदपूरी गांव के एक साधारण किसान अउ गरीब परिवार मा होईस। गुरु घासीदास के ददा के नाव महंगू दास अउ दाई के नाव अमरौतिन बाई रिहिस। गरीबी मा दिन गुजारे के सेती गरीब अउ सोसित मन के पीरा ला घासीदास भली भांति समझय अउ उकर कल्याण बर सदा सरलग बुता करत करय। घासीदास बबा हा सत के खोज बर छाता पहाड़ ला अपन समाधि इस्थल बनाइस अउ ज्ञान बर सरलग तपस्या करिस।

कुरीति के पुरजोर विरोध:- गुरु घासीदास जी हा समाज के फैले जुन्ना परम्परा जेन हा समाज बर खतरा रिहिस अइसन परम्परा अउ रीतिरिवाज के पुरजोर विरोध करिस। समाज के चार वर्ण के सिद्धांत ला गलत ठहराइस। चार वर्ण के जुन्ना परम्परा मा समाज के लोगन मन स्वाभिमान के जीवन यापन नइ कर सकत रिहिन। वो समय के ब्राम्हण वर्चस्वता ला सिरवाय बर नवा उदिम करिस जेकर ले समाज मा सब जाति के मनखे मन ला समान अधिकार मिलिस। जुन्ना सन्त होय के कारन गुरु घासीदास जुन्ना रीतिरिवाज मन के समाज मा होवइया प्रभाव ला भली भांति समझय अउ छुटकारा देवाय बर सरलग बुता करिस। मनखे मन ला स्वाभिमान ले जीवन जिये के प्रेरणा दिन।

लोगन मन बर सिक्छा:- गुरु घासीदास एक सिद्ध पुरुष संत रिहिस। संत मन अपन करम के द्वारा लोगन मन ला सिक्छा देय के काम करथे। गुरु बाबा के एक सिद्धात् मनखे मनखे एक बरोबर हा समाज के लोगन मन बर एक परमुख सिक्छा आय। संत होय के कारण गुरु घासीदास ज्ञान भक्ति अउ बैराग्य हा कूट कूट के भरे रिहिस। मुगल मन के सासन काल मा बलि प्रथा हा पनपत रिहिस ओकर विरोध गुरुजी के द्वारा करे गिस। मूर्ति पूजा के बदला मा ज्ञान भक्ति वैराग्य के द्वारा ईश्वर ला पाय बर लोगन मा जारूकता लाइस। पशुधन के ऊपर होवत अतियाचारी ला गुरु घासीदास हा रोकिस। सतनाम पंथ मा गाय के उपयोग खेती के कारज मा मनाही हे। सुराजी के लड़ई मा छत्तीसगढ़ राज के पहिली शहीद वीर नारायण सिंह घलो गुरु बाबा के सिखाय रददा मा रेगिन।

सात सिद्धान्त:– गुरु घासीदास के सात सिद्धान्त ला सतनाम पंथ मा सात वचन के रूप मा माने जाथे जेमा सतनाम धरम मा विस्वास, जीव हत्या नइ करना, मांसाहार मा प्रतिबंध, जुआ चोरी ले दुरिहा रहना, नसा ले दुरिहा रहना, जाति पाती के भेद नइ करना, व्यभिचार ले दुरिहा रहना हा शामिल हे। एकर अलावा सत्य अउ अहिंसा, धैर्य, लगन, करुना, करम, सरलता अउ नेक व्यवहार के चरचा सात सिद्धान्त मा करे गे हवय।

गुरु घासीदास हा समाज के लोगन मा नवा सोच अउ विचार पैदा करिस अउ इही बुता बर अपन सरबस लुटा दिस। तेखरे सेती आज संत बाबा गुरु घासीदास के जीवन हा आज के मानव समाज मा एक आदर्श हे।

दीपक कुमार साहू
मोहंदी मगरलोड

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बाबा घासीदास जयंती –सतनाम अउ गुरु परंपरा

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गुरु परंपरा तो आदिकाल से चलत आवत हे। हिन्दू धरम मा गुरु परंपरा के बहुत महिमा बताय हे।गुरु के पाँव के धुर्रा हा चंदन बरोबर बताय हे , प्रसाद अउ चरणामृत के महिमा ला हिन्दू धरम मा बिस्तार से बरनन करे जाथे।घर मा गुरु के आना सक्षात भगवान आयबरोबर माने गय हवय। सनातन धरम मा तो गुरु शिष्य परंपरा के बहुतेच बढ़िया बरनन मिलथे।कबीर पंथ मा घलाव गुरु पुजा के महत्तम ला बताय हे।आज भी गुरु परंपरा सबो पंथ मा चलत हे। कबीरदास जी हा गुरु ला भगवान ले बड़े कहे हे।गुरु हा ज्ञान रुप प्रकाश देवइया होथय। तन अउ मन दूनो के अज्ञान ला मिटाथे।
सतनाम पंथ मा घलाव गुरु परंपरा आज भी चलत हे। गुरु बाबा घासीदास के जनम अइसे बखत मा होइस जब हमर देश के इस्थिति परिस्थिति हा अलगेच किसम के रहिस।शाहजहाँ के मरे के पाछू औरंगजेब हा गद्दी मा बइठिस।वो बखत समाज मा ऊँच नीच, छुआछूत, घृणा, झूठ, कपट के भाव रहिस।जइसे संत अउ गुरु हमेशा समाज ला सुधारे अउ सही रद्दा मा रेंगे बर बताथे। वइसने बाबा घासीदास हा वो बखत गुरु के दायित्व ला निभाईस अउ अपन गिरे पड़े पिछड़े भाई बहिनी मन ला समाज के मुख्य धारा मा लाय के प्रयास करिन।ओकर पाछू उँकर बिचार ला सतनाम आंदोलन बनाके उँखर बेटा अमरदास, बालकदास अउ आगरदास हा घलाव बगराइस।
सतनाम समाज हा गुरु प्रधान समाज आय।इहाँ गुरु सतनाम नियम के अनुसार समाज के सब धार्मिक, सामाजिक अउ सामुदायिक कार्य मा मार्गदर्शन देथँय अउ असीस देथे।सतनाम समाज मा गुरु के निर्णय सर्वमान्य होथे।गुरु उपदेस ला ईश्वर आदेस समझे जाथे।चेला बने के अउ कान फूँकाय के परंपरा पंथ मा हवय। संत चरित्र अउ बाबा जी के जौन भगत होथय वोकर ले कान फूँकाय जाथे उही ला गुरु माने के परंपरा चलत हे।
बाबा घासीदास हा सतनाम समाज के प्रथम गुरु अउ पंथ संस्थापक आय।जब कोनों पंथ के स्थापना होथे तब ओकर कुछ उद्देश्य बनाय जाथे।जौन संस्थापक होथय उही ला प्रथम गुरु माने जाथय।गुरुनानक देव भगवान बुद्ध, कबीर साहेब एहू मन अइसने गुरु आय।सतनाम पंथ के स्थापना करत बाबा जी हा कुछ उद्देश्य बताइस। मनखे मनखे एक समान समझव। गुरु वंशज के मान सम्मान करव।गुरु पूजा, निछावर (दान )अउ चरणामृत लेना अनिवार्य बताइन।सत्य अउ अहिंसा के पालन करे बर सिखाइस।पंच तत्व के चिन्हा गुरुगद्दी जैतखाम के पूजा करेबर जोर करिन।सतनाम धरम बर सोमवार के व्रत , पूजा,प्रसाद बाटना अउ सादा रंग के अंगरखा पहिरना धरम बताइस।गुरु बाबा बताइस कि बिहनिया अउ संझा सुरुज ला माथ नवाय बर चेताइस। जीव हत्या अउ माँस खाय बर बंधन लगाइस।गुरु पूजा, जैतखाम पूजा के संगे संग समाज के मनखे ला छड़ीदार , राजमहंत अउ भंडारी बनाय बर बताइस।अइसने किसम के समाज के कल्याण अउ मनखेमन के जिनगी सुधारे के रद्दा बताइस।सतनाम पंथ गुरु शिष्य परंपरा आज घलाव चलत हे। गुरु हा साधु संत बरोबर होथय , सतनाम पुराण के माध्यम ले समाज के मन ला सुग्घर जिनगी जीये के रद्दा बताथे कान फूँकथे अउ चेला बनाथे।सतनाम पंथ के मनइया मन आज देस अउ बिदेस मा बगरे हवय।गिरौदपुरी धाम अउ जैतखाम के सोर संसार मा बगरे हवय।

संकलन
हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा,जिला-गरियाबंद

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सतनाम पंथ के संस्थापक संत गुरूघासीदास जी

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छत्तीसगढ़ राज्य के संत परंपरा म गुरू घासीदास जी के इस्थान बहुत बड़े रहि से। सत के रददा म चलइया, दुनिया ल सत के पाठ पढ़इया अउ मनखे-मनखे के भेद ल मिटइया। संत गुरूघासीदास जी के जीवन एक साधारन जीवन नइ रहिस। सत के खोज बर वो काय नइ करिस।
समाज म फइले जाति-पाँति, छुआछूत, भेदभाव, इरखा द्वेष ल भगाय बर जेन योगदान वोहा देइस वो कोनो बरदान ले कम नइहे।मनखे ल मनखे ले जोड़े बर, मनखे म मानवता ल इस्थापित करे बर, असत के रददा ल तियाग के सत के रददा म रेंगाय बर जेन परयास करिस उही वोला आज अतका पूजनीय बना दिस। “मनखे-मनखे एक समान” के नारा देवइया घासीदास जी जीव हतिया, मांसभक्छन, चोरी, जुआँ, मंदिरा सेवन, परस्त्रीगमन ल बहुत बड़े पाप मानत रहिस।
गाय-गरूवा, जानवर मन ऊपर अतियाचार करइ ल घासीदास जी सबले बड़े पाप बताय रहिस हे। अपन बचपन ले ही घासीदास जी हिंसा के बिरोधी रहि से। सत ल खोजे बर तपसिया करिस, समाज ल सुधारे बर समाजसेवक बनिस। सत के दरसन करना वोकर जीवन के परम लछ्य रहि से।वोखर समे म समाज म फइले विसंगति, कुरीति, मूरति पूजा, जाति वेवस्था, वर्न भेद ल घासीदास जी ह तियागे के बिसय बताय रहि से। घासीदास जी के पुरा जीवन सत के आराधना करत बितीस।सत, अहिंसा, करूना, परेम, दया, उपकार वोकर जीवन के सिंगार रहिस। छ्त्तीसगढ़ के पावन धाम गिरौदपुरी जिहाँ आज घलो मेला भराथे अउ सबो समाज, जाति धरम के मनखे उंहा जाके माथ नवाथे, येकर ले बड़े सामाजिक एकता, समरसता अउ का हो सकथे। आज घलो 18 दिसंबर के पुरा छत्तीसगढ़ म वोखर जयंती ल धूमधाम ले मनाये जाथे, जैतखाम म पालो घलो चढा़य जाथे। अउ पंथी गीत, नृत्य के माधियम ले बाबा घासीदास जी के अमर संदेस ल जन-जन तक पहुंचाय जाथे। आज गुरू घासीदास जी के उपदेस अउ संदेस ल मनइया दिनों-दिन बाढ़हत जात हे, अउ गाँव-गाँव म अइसन कार्यकरम के आयोजन ह ये बात के परमान हे कि घासीदास जी के उपदेस ह आज घलो जिंदा हे, अउ आगू घलो जिंदा रइही।

केशव पाल
मढ़ी (बंजारी) सारागांव,
रायपुर(छ.ग.)
9165973868

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गढ़बो नवा छत्तीसगढ़

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हमर छत्तीसगढ़ ल बने अठारह बछर पुर गे अउ अब उन्नीसवाँ बछर घलोक लगने वाला हे, अउ येही नवा बछर म हमर छत्तीसगढ़ राज म नवा सरकार के गठन घलोक होये हे येही नवा सरकार बने ले सब्बो छत्तीसगढ़िया मन के आस ह नवा सरकार ले बाढ़ गे हे की नवा सरकार ह छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़िया मन बर कुछु नवा करही जइसे नवा सरकार के परमुख गोठ हे “गढ़बो नवा छत्तसीगढ़” येही गोठ ल धर के सरकार ह छत्तीसगढ़ अउ छत्तीगढिया बर काम बुता करहि त सब्बो छत्तीसगढ़िया मनखे के आस ह पूरा हो जाही, सबले जादा जरूरत हे हमर महतारी भाखा ल छत्तीसगढ़ राज म जगाये के जेखर ले सब्बो छत्तीसगढ़िया के मान सम्मान ह अउ बढ़त जाये, अतना बछर होंगे हे छत्तीसगढ़ राज ल बने अउ छत्तीसगढ़ राज भाखा आयोग ल बने फेर अभी ले छत्तीसगढ़ महतारी के भाखा छत्तीसगढ़ी ल जन-जन के भाखा न हमर जुन्ना सरकार बना सकीस अउ न जुन्ना राज भाखा आयोग के अधिकारी मन जेखर ले हमर छत्तीसगढ़िया भाई-बहनी मन अउ जतना भी छत्तीगढि भाखा के मयारू मनखे हे सब्बो के मन म आक्रोश ह भर गे हे, अब येही आक्रोश के कारण सरकार घलोक बदल गिस, अउ ये बेरा के बदलइया हमर नवा सरकार ल घलोक चाही के छत्तीसगढ़ म छत्तीगढिया अउ छत्तीसगढ़ी भाखा ल आघु बढ़ाये बर अपन निरंतर प्रयास करे, अउ छत्तीसगढ़ राज भाखा आयोग म घलोक अइसे मनखे ल अधिकारी बना के बइठाये जेन ह छत्तीगढिया होये के संगे-संगे महतारी भाखा के मयारू घलोक होवय अउ कोनो भी मनखे के चापलूस झन होये, जेखर ले छत्तीगढिया मनखे सियान संगवारी कवि साहित्यकार मन घलोक मिल जुल के छत्तीसगढ़ महतारी के सेवा कर सके, अउ छत्तीसगढ़ के विकास म सरकार के संगे-संग महतारी भाखा ल आघु बढ़ाये बर अपन पूरा सहयोग दे सके। येही गोठ ल अब हमर आये नवा सरकार ल बने ले समझे लगही, तभे छत्तीसगढ़ म नवा सरकार ह छत्तीगढिया मनखे मन के मया ल बटोर पाहि, नइ ते पिछलैया सरकार आसन येहू ह आघु के बेरा म बोहा जही।

जय जोहार जय छत्तीसगढ़ महतारी

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर
छत्तीसगढ़

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मोला करजा चाही

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पाछू बच्छर दू बच्छर ले करजा के अतेक गोठ चलत हे कि सुन-सुन के कान पिरागे हे।फलाना के करजा,ढेकाना के करजा।अमका खरचा करे बर करजा।ढमका खरचा बर करजा।राज के करजा।सरकार के करजा।किसान के करजा।मितान के करजा। दुकान के करजा।
हंफरासी लागगे करजा के गोठ सुनके।दू साल पहिली एक झन हवई जहाज वाला ह करजा खाके बिदेस भागे हे ते लहुटे के नांव नी लेवत हे।एक झन तगडा चौकीदार तको बैठे हे।फेर को जनी का मंतर जानथे वो करजा खानेवाला मन कि वो कतका बेर बुचकथे कोनो थाहा नी पाय।एती चौकीदार गोठियई म मगन हे ओती करजादार मन भगई म मगन हे।
एसो एकझन अउ भागगे।पहिली वाला लहुटे नीहे एती दूसर करजादार फेर बुचकगे।अउ बिदेस जाके हमर देस के बैंक वाला मन के जरे म नून डारथे।फेर राहन दे जी!हमला का करना हे।जौन हे तौन हे।
फेर एसो करजा के गोठ ह गांव गंवई म मंदरस कस मीठ लागत हे।पारा-पारा,गांव गांव म करजा के गोठ ह मनखे ल मगन कर देहे।हमर पारा म दू झन माईलोगन के गोठ चलत राहय।
‘अई!सुनेस दीदी!एसो करजा माफी होही कथे।हमन तीस हजार करजा लेहन ओ।छूट होही ताहन मोर बर नेकलेस लुंहू काहत हे छोटन के पापा ह!’
ओकर गोठ ल सुनके दूसर माईलोगन के थोथना थोरिक उतरगे।ओहा किहिस-“हमर तो करम फूटे हे बहिनी!हमर घर ओकर पापा ह करजा लेना ठीक नोहय कथे।लटपट मोर हुदरई कोचकई म पांच हजार लेहे।वहू ल तुरते धान बेंचके कटवा डरे हे।हमन का भाग जतेन बहिनी!फेर ओकर पापा के लउहा ल का कबे!करजा छूटे बर अतलंग कर डारथे।”
‘हमर घर तो पुरखौती डिफॉल्टर हरन बहिनी।जेकर खाथन ओला कभू नी लहुटावन।तेकर सेती हमन ल फयदा होगे गोई!!’अतका कहिके ओहा रेंग दिस।
ताहने दूनोझन अपन-अपन बुता म रमगे।उंकर गोठ ल सुनके महूं गुने ल धरलेंव।सहीच बात तो आय।पेपर मे तो घलो पढथन कि फलाना कंपनी के कतका कतका करजा ल सरकार माफ कर दिस किके।करजा खानेवाला मन ह मगन होके करजा खाथे।हमर कते सास्तर म तको लिखाय हे कथे”ऋणं कृत्वा घृतं पीबेत्”माने करजा करके घलो घीव पीना चाही।इही फार्मूला म जम्मो मनखे रेंगत हे।करजा देके नवा परंपरा सुरू होगे हे।सरकार काहत हे करजा लो।बैंक काहत हे करजा लो।टीबी,पंखा,मोटर गाडी बेचनेवाला मन घलो हख खवा देथे कि एला लो ओला लो।नगदी मत लो किस्ती म लो।त अतेक करजामोहनी के मारे मनखे कैसे बांचही?
एसो किसान के करजा माफी ल सुनके अफसर अउ कतको सरकारी करमचारी मन के थोथना ओरमत हे।उंकर कहिना हे हमरो घर,सोना चांदी,अलाट-पलाट अउ कार वार के करजा ल घलो माफी करो।कई झन ह काहत हे हमर टेक्स के पैसा हरे।तुमन ल करजा माफी करना हे त अपन पैसा ल दव।अब काकर-काकर गोठ ल किबे।पान ठेला म बैठे सुखरू काहत राहय-एसो हम सरपंच चुनाव म बोट उही ल देबो जी जेन हमर पान ठेला के चोंगी माखुर अउ गुटका-सिगरेट के पैसा ल पटाही।अतेक बिकटहा असर परत हे करजा माफी के।
एकझन मनखे कना गोठिया परेंव।जतका बडे चद्दर ओतकी गोड लमाव।करजा नी लेना चाही।मोर गोठ ल सुनके बिकट जोर से बगियागे ओहा।मोला घुडकावत किहिस-कोन कथे करजा नी लेना चाही।सब करजा लेथे।केंद्र सरकार विश्व बैंक ले करजा लेथे।राज सरकार केंद्र सरकार से करजा लेथे।बडे बडे पूंजीपति मन बैंक से करजा लेथे।छोटे बेपारी बडे बेपारी से करजा लेथे।जेला देख ओहा करजा लेथे।तें का करजा म नी हस का!तोर दाई ददा तोला जनम देहे त उंखर करजा लागत हस कि नहीं?
ओकर अतेक बिस्तार वाला गियान ल सुनके मे ह तुरते माथ नवालेंव।फेर एक झन बबा के गोठ मोला अभी ले सुरता हे।ओहा करजा माफी के गोठ ल सुनके किहिस-अभी तक किसान ह ईमानदारी के अन्न खाके मिहनत ले अन्न उपजावत रिहिन हे बेटा!फेर ए राजनीति के बेपारी मन ह अपन बोट के फसल ल बोंये बर करजामाफी के मंतर म किसान ल बईमान बनाय के उदीम करत हे।दिनोंदिन किसानी के खरचा बाढत हे।खातू-कचरा अउ दवाई पानी के रेट ह आगी लगत हे।ओकर दाम ल घटाना चाही।ए हाथ ले देके वो हाथ म नंगाय के का मतलब होवत हे।किसान ल दवाई बूटी अउ सस्ता दाम म खातू कचरा चाही।करजा माफी ह किसान ल नी उबार सके।फेर जेन किसान ईमानदारी से अपन करजा पटावत हे वहू मन बईमानी के रद्दा धर लेही।अभी जेन मंतर ह बने सुहावत हे उही ह किसान मन के बईमान होय ले जब टंगिया बनके सरकार के मुडी म परही त ओला पता चलही।
अप्पढ सियान बबा के मुंहु ले अतेक गहरा बात सुनके मोर मति चकरागे।फेर थोरिक दूरिहा म गेंव त तीन-चार मनखे मंद मउहा म मतंग होके करजामाफी के जशन मनावत राहय।ओमन ल देखके सोचथंव”बबा के गियान जाय चूल्हा मे।अब मोला करजा चाही।”

रीझे यादव
टेंगनाबासा (छुरा)

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नंदावत हे अंगेठा

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देवारी तिहार के तिर मा जाड़ हा बाढ जाथे, बरसात के पानी छोड़थे अउ जाड़ हा चालू हो जाथे। फेर अंगेठा के लइक जाड़ तो अगहन-पूस मा लागथे। फेर अब न अंगेठा दिखे, न अगेठा तपइया हमर सियान मन बताथे, पहिली अब्बड़ जंगल रहय, अउ बड़े बड़े सुक्खा लकड़ी। उही लकड़ी ला लान के मनखे मन जाड़ भगाय बर अपन अंगना दुवारी मा जलाय, जेला अंगेठा काहय। कोनो कोनो डाहर अंगेठा तापे बर खदर के माचा घलो बनाथे। अउ उंहे बइठ जाड़ ला भगाय। फेर अब जमाना के संगे संग मनख घलो बदलत हे। अब तो न शहरीकरण के मारे रूख राई बाचे हे, न अब अंगेठा के तपइया दिखे। अब तो मनखे अपन आप ला डिजिटल बना डारे हे, दिन भर शोसल मीडिया, टीबी, सिनेमा बियस्त होगे हे। आजकल तो मनखे मन आठ बजे सुत के उठथे, तब ले जाड़ घलो भाग जाय रहिथे। फेर हमर राज मा जंगल इलाका हवय तिहां के सियान जवान मन अभी घलो चार बजे उठ के अंगेठा तिर बइठथे, अउ दिनभर के काम बुता कि योजना ला बनाथे। फेर जाड़ के दिन हा सियान मनखे मन बर अब्बड़ मुसकुल होथे, अउ इही जाड़ ला भगाय बर अउ सरीर ल गरमाय बर चारा आय अंगेठा। पहिली के सियान मन के एक ठन हाना घलो हे- ’’रतिहा पहाही राखे रा धिर मा खिर, जाड़ भगाही आ बइठ अंगेठा के तिर।’’ अभी घलो जब जाड़ जादा लागथे, तब मनखे ह सुते बर नि सके। एककन निंद परही ता फेर खुल जाथे, फेर परही ता फेर…। अउ अइसे लागथे कतका बेर बिहनिया होतिस अउ सुरूज नरायन के दरसन होतिस ता जाड़ ह भागतिस। ता इही ल हमर सियान मन हाना मा केहे हे- जाड़ मा रतिहा हा तो पहाबे करही, तैं थोकिन सबर कर, अउ आ अंगेठा तिर अइठ के हाथ गोड़ ला सेक ले। जाड़ घलो भाग जाही अउ मया पिरा के गोठ गोठियावत रतिहा घलो पहा जाहि। पहिली गोठ गोठियावत बेरा बुलक जाय फेर पता नइ चलय। जाड़ मा अंगेठा तापे ले जाड़ भर भागथे , अइसन नोहे, एखर ले तो परवार मा एकता घलो बाढ़थे। पहिली के सियान मन बिहनिया अंगेठा तापत पूरा दिन भर के योजना ला बनाय। इही जाड़ के मउसम मा खेती के काम हा घलो चलथे, ता खेती खार के काम काज के योजना हा घलो इही अंगेठा तिर बनय। फेर का कहिबे अब तो आधुनिकता के दउड़ मा ’’नंदावत हे अंगेठा’’।

अमित कुमार
गाड़ाघाट पाण्डुका, गरियाबंद

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युवा दिवस 12जनवरी बिसेस

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“उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत”
“उठव, जागव अउ लक्ष्य पाय के पहिली झन रुकव”

भारत भुँइया के महान गौरव स्वामी विवेकानंद के आज जनम दिन हरय। स्वामी जी के जनम 12 जनवरी सन् 1863 के कलकत्ता (अब कोलकाता) म होय रिहिस। ऊँखर पिताजी के नाँव बाबु विश्वनाथ दत्त अउ महतारी के नाँव सिरीमती भुवनेश्वरी देवी रिहिस। ऊँखर माता-पितामन ऊँखर नाँव नरेन्द्रनाथ रखे रिहिन। बचपन ले ही नरेन्द्रनाथ धार्मिक सुभाव के रिहिन। धियान लगाके बइठे के संस्कार उनला अपन माताजी ले मिले रिहिस। एक बार नरेंद्र एक ठी खोली म अपन संगवारी मन संग धियान लगाय बइठे रिहिन के अकसमात कहूँ ले वो खोली म करिया नाग आके फन काढ़ के फुसकारे लगिस। ओखर संगी साथी मन डर के मारे उहाँ ले भाग के उँखर माता-पिता ल खभर करिन। उन दउड़त-भागत खोली म पहुँचिन अउ नरेन्द्र ल जोर-जोर से अवाज देके बलाय लगिन। फेर नरेन्द्र ल कहाँ सुनना हे। वोतो धियान म मगन हे ते मगने हे। एती नाग देवता अपन फन ल समेट के धीरे-धीरे कोठी ले बाहिर होगे। ये घटना ले माता-पितामन ल आरो हो गे नरेन्द्र कोनो छोटे-मोटे बालक नोहे अउ भगवान जरूर वोला बहुत बड़े काम बर भेजे हे। ये बात बाद म साबित होइस तेला आज सरी दुनिया जानत हे।

इही नरेन्द्रनाथ अपन गुरू स्वामी रामकृष्ण परमहंस के चेला बने के बाद स्वामी विवेकानंद के नाँव ले दुनियाभर म प्रसिद्ध होइन। स्वामी विवेकानंद आज ले लगभग डेढ़ सौ साल पहिली होइन फेर ऊँखर विचार ल जान के आज के पीढ़ी ल अचरज हो सकथे के ऊँच-नीच, जात-पाँत, दलित-सवर्ण के जेन झगरा आज देस के बड़े समस्या के रूप धर ले हवय तेखर विरोध उन वो समय म करिन जब समाज म एखर कट्टरता ले पालन करे जाय अउ एखर विरोध करना कोनो हँसी-ठठ्ठा नइ रिहिस। वो समय म उन नारी जागरन, नारी सिक्छा अउ दलित शोषित मनखे बर आवाज उठइन तेन बड़ जीवट के काम रिहिस। नरेन्द्र बचपन ले ही मेधावी, साहसी, दयालु अउ धार्मिक सुभाव के रिहिन। उन रामकृष्ण परमहंस ल गुरू बनाइन फेर ठोक-बजा लिन तब बनइन। हमर छत्तीसगढ़ म एक ठी कहावत हे-“गुरू बनाए जान के पानी पीयय छान के”। इही नरेन्द्रनाथ रामकृष्ण परमहंस के महाप्रयान के बाद संन्यास धारन करके स्वामी विवेकानंद कहाइन।

अब वो समय आइस जब दुनियाभर म स्वामी विवेकानंद के नाँव के डंका बजना रिहिस। वो समय रिहिस 11 सितंबर 1893, अमरीका के शिकागो सहर म विश्व धर्म महासभा के आयोजन। जेमा स्वामी जी बड़ मुस्किल ले सामिल हो पाइन। अउ जब ऊँखर बोले के पारी आइस तौ अपन गुरुजी के याद करके बोलना सुरू करिन- “अमरीका निवासी बहिनी अउ भाई हो…” बस्स् अतके बोले के बाद धर्म सभा के जम्मो देखइया सुनइया दंग होके खुसी के मारे ताली बजाय लगिन। हरदम “लेडीज़ एंड जेन्टलमैन” सुनइया मन कभू सपना म नइ सोंचे रिहिन के कोनो वक्ता अइसे घलो हो सकथे जेन उनला बहिनी अउ भाई बोल के सम्मान देही। बाद म अपन भासन म हिन्दू घरम के अइसे ब्याख्या करिन के अमरीकावासी मन सुनते रहि गे। धरम के अतका सुंदर ब्याख्या ओखर पहिली कोनो नइ कर पाय रिहिन। बिहान दिन अमरीका अउ दुनियाभर भर के अखबार स्वामी जी के तारीफ म भर गे राहय।
30 साल के उमर म स्वामी जी हिंदू धरम के झंडा फहराय बर अमरीका अउ यूरोप सहित दुनियाभर भर म घूमिन अउ अपन जीवन के ये पाँच-छे साल म जिहाँ भी गीन उहाँ हिंदू धरम के झंडा गड़ा के ये साबित करिन विश्वगुरु होय के योग्यता यदि कोनो धरम हे तो वो हे हिंदू धरम।
स्वदेस वापिस आके उन जघा-जघा रामकृष्ण मिशन के स्थापना करिन। कुछ दिन बाद उनला आभास होगे के आगे के काम बर ये सरीर के कोई जरूरत नइ रहि गे। अब ये सरीर तियागे समय आ गे हे। स्वामी विवेकानंद 4 जुलाई 1902 महासमाधि धारन करके अपन भौतिक सरीर के तियाग कर दिन अउ मात्र साढ़े 39 बरस म कतको महान कारज करके ये साबित कर दिन के जीवन बड़े होना चाही लंबा नहीं।

सन् 1984 म भारत सरकार दुवारा स्वामी विवेकानंद के जनमदिन ल युवा दिवस के रूप म मनाय के घोसना होय रिहिस। तब से हर साल 12 जनवरी ल युवा दिवस के रूप म मनाय जाथे। ऊँखर देय मूलमंत्र-“उठव, जागव अउ लक्ष्य पाय के पहिली झन रुकव” हमेसा युवा मन बर अटूट प्रेरणास्रोत रइही।

दिनेस चौहान,
छत्तीसगढ़ी ठिहा,
सितलापारा, नवापारा-राजिम

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ठगही फेर सकरायेत

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कहे क्रांति कबिराय, नकल ले झन धोका खाना
कोलिहा मन ह ओढ़े हावंय, छत्तीसगढ़िया बाना।
मीठ-मीठ गोठिया के भाई, मूरुख हमला बनाथे
बासी चटनी हमला देथे, अउ काजू अपन उड़ाथे।
बाहिर म बन शेरखान, बिकट बड़ाई अपन बतावै
भीतर जाके चांटे तलुआ, नांउ जइसे तेल लगावै।
आरएसएस ल कहत रहिस वो, अपन गोसंइया
बदलिस कुरसी बदल गइस, ओकर दादा-भईया।
चतुर बहुत चालक हे, वो सकरायेत ये मोर भाई
छत्तीसगढ़िया भेख बनाके, ठगथे हमर कमाई।
सकरायेत के गाड़ा-गाड़ा बधाई के संग

– तमंचा रैपुरी

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छत्तीसगढ़ म दान के महा परब छेरछेरा

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ये संसार म भुइंया के भगवान के पूजा अगर होथे त वो देस हाबय भारत। जहां भुइंया ल महतारी अऊ किसान ल ओखर लईका कहे जाथे। ये संसार म अन्न के पूरती करईया अन्नदाता किसान हे। हमर छत्तीसगढ़ ल धान के कटोरा कहे जाथे। हमर सभियता, संसकिरीति म तिहार के बड़ महत्तम हाबय। हमर सभियता अऊ संसकिरीति म ये तिहार मन रचे बसे हावय। ये तिहार म दान के परब छेरछेरा घलो हावय।
हमर ये छेरछेरा तिहार पुस पुन्नी के दिन मनाये जाथे। फसल ल खेत-खार ले डोहार के कोठार म मिसे बर, कोठार ल बढ़िया छोल-बहार के गोबर पानी म लिप-बहार के अन्न दाई के रूप म आये फसल ल मिसथे ओखर बाद बिंयारा म रास बनाके अन्नपुरना दाई ल लछमी दाई के रूप म नरियर, अगरबत्ती, हूम-धूप, फूल-पान अऊ दूबी ले पूजा करे जाथे। वोखर बाद अन्नदाई ल कोठी म आदर के साथ रखे जाथे। वोखर बाद आथे पुस पुन्नी के तिहार छेरछेरा। ये दिन गांव-गांव म लईकन मन ले सियान मन तक घरो-घर जाके छेरछेरा मांगथें अऊ किसान मन खुसी-खुसी कोठी म रखे अन्न के दान करथे। सबो कतिक एक के गोहार सुनाई देथे – ‘‘ छेरछेरा, माई कोठी के धान ल हेरते-हेरा ’’। ये दिन का लईका का जवान त का सियान सबे बिहनिया ले छेरछेरा मांगे बर घरो-घर जाथे। ये दिन का गरीब का अमीर। कहे के मतलब ये हाबय के ये तिहार ह हमन ल आपस म भाईचारा बनाये के संदेस देथे। ये दिन अमीर अऊ गरीब के भेदभाव मिट जाथे। अऊ सबेच के मुंह म एकेच गोहार होथे छेरछेरा। कई ठन हाना पारे जाथे जईसे के-
अरन-बरन कोदो दरन, जबे देबे तभे टरन।
तारा रे तारा लोहार घर के तारा,
लऊहा- लऊहा बिदा देवव, जाबो आन पारा।

किसान मन भी खुसी-खुसी अन्न के दान करके अपनआप ल धन्य मानथे। असल म छेरछेरा तिहार ह समाजिक अऊ आरथिक समानता के तिहार हाबय। ये तिहार अपन रोटी सबकरा मिल बांट के खायेके संदेस देथें। हमन ल अपन संसकिरीति ल बनाये रखे बर ये तिहार के अंजोर परंपरा ल बनाये रखना हे।

प्रदीप कुमार राठौर ’अटल’
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला-जांजगीर चांपा
(छत्तीसगढ़)

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पीपर तरी फुगड़ी फू

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समारू बबा ल लोकवा मारे तीन बछर होगे रिहिस, तीन बछर बाद जब समारू बबा ल हस्पताल ले गांव लानीस त बस्ती भीतर चउक में ठाड़े पीपर रुख के ठुड़गा ल कटवत देख के, सत्तर बछर के समारू के आँखी कोती ले आँसू ढरक गे। बबा के आँखी में आँसू देख के पूछेंव कइसे बबा का बात आय जी, त बबा ह भरे टोंटा ले बताइस, कथे सुन रे धरमेंद तैं जेन ये पीपर रूख ल देखत हस जेन ल सुखाय के बाद काटत हवे तेन ल हमर बबा के बबा ह लगाय रिहिस, नानपन ले हमन एकर छइंहा में खेल कूद के बाड़े हन, ये रूख ह अपन हरियरपन में आठ कोरी सावन देखे हवे। ये रुख ल आज कटावत देख के नानपन के जम्मो सुरता ह हरिया गे, कहिथे न कि सियानापन के नानपन के लहुटती होथे। बबा ह आगू बतावत किहिस की मैं नानपन में खेल कूद में अब्बड़ माहिर रहे हंव, नानपन के जम्मो खेल गिल्ली डंडा, भौरा बाँटी के, अटकन भटकन, खोखो कबड्डी के तो बाते अलग रिहिस, अउ इही पीपर के डारा ले तो मंगलू के टूरा बिसेसर ह डंडा पिचरंगा खेलत खानी गिरे रिहिस। अब ये जम्मो खेल ह खेले के तो बहुत दुरिहा के बात आय अब तो येकर नाम सुने बर घलो नइ मिले। पहिली पारा भर के जम्मो लइका मन इही पीपर तरी एक जघा सकलाक़े किसम किसम के खेल खेलत रेहेंन। अउ एक जघा सकलाक़े खेले ले तो एक दूसर से मया पिरीत अउ चीन पहिचान बड़थे। फेर अबके लइका मन ह तो खेले के नाम में घर ले बाहिर निकलबे नइ करय। अउ बिचारा मन ल तो खेले कूदे के बेरा बखत कहाँ मिलथे, बिहनिया ले तो अपन बजन ले जादा गरु बेग ल खांद में लाद के इसकुल गे रहिथे तेन ह संझउती कण लहुटथे।
एकात कन सुरताय के बेरा मिलथे तेन ल मोबाइल में बीडीओ गेम खेल के पहा देथे। हमर जमाना में कहां इसकुल राहय, फेर हमन ल डाई ददा अउ छोटे बड़े के मान गउन आदर सत्कार सीखोवय जेन आज कतको किताब रटे रटे मन में चीटिको देखे बर नइ मिलय। दिन भर कमावन, डपट के खावन अउ संझा कन कुदरावन। खेले खुदे ले हाँथ गोड़ के बियाम घलो हो जाय। अब तो लइका मन ह मोबाइल में भुलाय रहिथे, जेकर फायदा कतको झन अतलंगहा मन ह उठाथे अउ ब्लू वेल जइसन जानलेवा खेल ह। आगू आथे, अउ दिन भर मोबाइल में गड़े रहे ले आँखी घलो पतरा जाथे। बतावत बतावत बबा हाँस डरिस, मैं पूछेंव का होगे बबा, त बबा ह बताइस की ओमन नानपन में इही पीपर तरी फुगड़ी खेलत टुरी मन संग अब्बड़ इतरावय, बबा कहिथे की तोर डोकरी दाई ह ओकरे तो नतीजा आय। अब तो न फुगड़ी बाँचीस न तो ज्यादा पेड़, सब पेड़ मन कटावत जात हवे, जेकर ले अंकाल दुकाल परत हवे। फुगड़ी ह तो कब के फू होगेहे, धीरे धीरे पेड़ मन घलो फू होवत जावत हवे। अतका कहिके बबा ह घरघराय टोंटा ले किहिस चल रे बेटा मोला मोर घर अमरा दे, अउ मैं बबा संग ओकर घर कोती चल देंव।

धर्मेन्द्र डहरवाल “हरहा”
सोहागपुर, जिला बेमेतरा

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कहाँ गँवागे मोर माई कोठी

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“पूस के महीना ठूस” कहे जाथे काबर के ये महीना में दिन ह छोटे होथे अउ रात ह बड़े।एहि पूस महीना के पुन्नी म लईका सियान मन ह बड़े बिहनिया ले झोला धर के घर-घर जाथें अउ चिल्ला चिल्ला के कहिथे छेर-छेरा अउ माई कोठी के धान ला हेरते हेरा। घर के मालकिन ला बुलाथें अउ मया दुलार के आसीरबाद ला पाथे।हमर मयारू महतारी मन ह सुपा भर भर के धान ला देके अपन अशीष अउ मया ला बाँटथें।एही दिन हमर लईका जवान संगी मन ह झूम घूम के डंडा नाच म नाचथे फेर कुहकी पार के अपन नाच के गति अउ ताल ला डंडा के संगे संग मिलाके झूमर झूमर के नाच नाच के अपन छेरछेरा ला घर के महतारी दाई मन संग पाके आगू घर नाचे बार चल देथें।गांव के केंवटिन मन के फोरे गजब सुवाद वाले मुर्रा ला खाय के मजा घलाव पाथें।फेर जब ले 1 रुपिया किलो चाउर अउ धान के बोनस मिले ला शुरू होय हावय तब ले हमर किसनहा भाई मन ह सब्बो धान ल सरकारी मंडी म बेच के आ जाथें।खाय बर, बांटे बार अउ इंहां तक बिजहा घलाव बर एको बीजा धान ला संजो के नई राखय,जेखर सेती अब घर घलाव मा माई कोठी ला फोर डारे हावय।अब तो कोठी देखे म कम मिलथे। पहिली सियान मन कहय के कोठी दल त पेट दल।कोठी के धान ला लक्ष्मी दाई मान के ओला रोज दिया देखावन, ओ कोठी ला माथ नवाके ही हमन अउ दूसर काम म बाहिर जावन।कोठी के धान ले ही अमीर अउ गरीब के चिन्हारी होवय।फेर जबले गरीबी रेखा के कार्ड आय हवय तब ले हमर संगवारी मन ह ओ कार्ड बने के सब्बे उधिम ला करथें।जतका उदिम उमन कार्ड बनवाये बर करथें ओतके उदिम अपन अमीर बने बर करतिस अउ घर के माई कोठी ला माथ नवातिस त हमर जिनगी सुधर जातिस।

रामेश्वर गुप्ता

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सियान मन के सीख : ए जिनगी के का भरोसा

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सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। तइहा के सियान मन कहय-बेटा! ए जिनगी के का भरोसा रे। फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। लइकई उमर से ले के सियानी अवस्था तक मनखे के रूप रंग हर अतेक बदलथे जेखर कल्पना नई करे जा सकय। केवल रूप रंग भर बदलथे अइसे नई हे समय हर घलाव बदलत रहिथे अउ समय के अनुसार हमर बानी बिचार हर घलाव बदलत रहिथे।
अइसे मा कहे जा सकथे के समय के घलाव कोनो भरोसा नई हे। फेर हमर सियान मन कहिथे जिनगी के का भरोसा उॅखर कहना सही हरय काबर के समय तो अपन गति ले चलते रही फेर हमन समय के संगे-संग चले सकबो के नहीं तेखर कोनो भरोसा नई हे। जब लइकई उमर रहिथे तब समझ नई रहय, जब खून गरम रहिथे तब होश नई रहय अउ जब सियानी अवस्था आथे तब शरीर में ताकत नई रहय यहू हर अड़बड़ सोचे के बात हरय।
जउन घड़ी म हमर तन म सोंच, समझ अउ ताकत तीनो रइथे तउन घड़ी के हमन ला सदुपयोग कर लेना चाही काबर के मानुष तन अनमोल हावय अउ ए अवसर हमन ला बार-बार मिलय अइसे घलाव जरूरी नई हे। बेरा हर कोनो ला नई अगोरय। हमीं मन ला बेरा ला अगोरे बर पर परथे।
आज हमर तिर जतेक ताकत हावय तेखर उपयोग हम आजे कर सकत हन। अगर आज हम ए ताकत के उपयोग नई करबो तब ए हर बेकार हो जाही अउ ए ताकत के उपयोग हम कल नई करे सकन यहू हर अड़बड़ सोचे के बात हरय। बीते समय फेर लहुट के नई आवय यहू हर खच्चित बात आय तब हमन ला अपन जिनगी के हर एक पल के सहीं उपयोग कर लेना चाही जब तक हमर हाथ-गोड़ चलत हे तब तक।
हमन अपन शरीर के कतको जतन करन फेर एक न एक दिन ए तन हर अपन ताकत ला खो दिही। सब दिन जांगर एक बरोबर नई चलय। देखते-देखत उमर पहा जाथे, पते नई चलय के कब सियानी अवस्था आ गे। अब तो मनखे के उमर घलाव घटत जात हवै। तइहा के सियान मन 100 बछर तक सुखी जीवन जी लेवत रहिन हे। अब तो चालीस पार करे के बाद सोचे ला परत हे के हमन स्वस्थ हावन के नहीं। ए जम्मों बात के एके अर्थ होथे के जिनगी के कोनो भरोसा नई हे। एखरे सेती हमन ला जियत भर अपन जिनगी ला भरपूर जिये के प्रयास करना चाही। सियान बिना धियान नई होवय। तभे तो उॅखर सीख ला गठिया के धरे म ही भलाई हे। सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे।

रश्मि रामेश्वर गुप्ता

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नवा चाउर के चीला अउ पताल के चटनी

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सियान मन के सीख

सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। तइहा के सियान मन कहय-बेटा ? नवा चाउर के चीला अउ पताल के चटनी अबड़ मिठाथे रे। फेर हमन नई मानन। संगवारी हो हमर छत्तीसगढ़ राज ला बने 18 बछर हो गे। ए 18 बछर में हमर छत्तीसगढ़ हर बहुत आगू बढ़िस। हमर छत्तीगढ़ में नवा-नवा उद्योग-धंधा खुल गे, नवा-नवा सड़क बनगे, बिजली के उत्पादन में हमन अगुवा गेन, हमर लोक कला अउ संस्कृति घलाव अगुवाइस फेर हमर छत्तीसगढ़ी पकवान हर खुल के हमर छत्तीसगढ़ के बजार म नई आइस ए हर हमर बर अड़बड़ सोचे के बात हरय।
हमन पूस पुन्नी के दिन छेरछेरा तिहार मनाथन। ए दिन हमन अपन कोठी म आए नवा धान के उमंग अउ उछाह के संग पहिली दान करथन तेखर बाद ए धान के उपयोग अपन घर म खाए बर करथन।

जइसे हमर छत्तीसगढ़ के बजार में नवा चाउर उतरथे वइसने घरों-घर चीला अउ पताल के चटनी के दौर शुरू होथे। चीला के बनत ले चुल्हा के तीर म बइठ के आगी तापे के घलाव अलगे आनंद हावै अउ चीला में अतेक भारी गुन हावै के कतको खावव अउ खाएच के मन चलथे। खवइया हर तो कूद-कूद के खाथे फेर बनइया हर बना-बना के असकिटिया जाथे। फेर दूसर दिन घलाव बिहनिया होते साथ चीला के मांग शूरू होय ले पूरा करे बर परबेच करथे काबर के स्वाद के चलते मन नई मानय। हमन जब नान्हे नान्हे रहेन तब हमर महतारी हर कहय। ए चीला बनाए बर बइठबे तहॉ मांग बढ़ते जाथे कभू खतम नई होवय। अतेक मिठाथे चीला अउ पताल के चटनी।
हमर मन म सोंच आथे के काश हमर छत्तीसगढ़ के भाई बहिनी मन डोसा बनाए के जघा म चीला बना के बेचय तब हमू मन ला जघा-जघा चीला के मजा उड़ाय बर मिल जातिस अउ बाहिर ले आए मनखे मन घलाव चीला के महत्तम ला जान लेतिन फेर उमन अपन राज में जा के घलाव चीला के दुकान खोल लेतिन।

अगर हमर सोच हर बजार म उतर जातिस तब कतका अच्छा होतिस। वो दृश्य हर हमर ऑखी म घुमरत हावय के हमर छत्तीसगढ़ में जघा-जघा चीला अउ पताल के चटनी बेचावत हवय अउ जम्मों मनखे मन स्वाद ले के खावत अउ सहिरावत हवय।
अइसे बात नई हे कि नवा चाउर के केवल चीला भर बनथे। फरा अउ पताल के चटनी, तिलगुझिया अउ पताल के चटनी, पीठिया अउ पताल के चटनी, चौसेला अउ पताल के चटनी, चनौरी अउ पताल के चटनी, धुस्का अउ पताल के चटनी…… का पूछना हे फेर। मीठा बनाना हे लो गुलगुला अउ पताल के चटनी फेर एक बात हे कि पताल के चटनी बिना मजा नई आवय। अगर पताल के चटनी नई लेना हे तब अथान अउ नुनचरा ले काम चलाए जा सकथे अउ मजा उड़ाए जा सकथे। तब छत्तीसगढ़ के जम्मों भाई अउ बहिनी मन भिड़ जावव नवा चाउर के चीला अउ पताल के चटनी बनाए बर खाए बर अउ खवाय बर। अउ वहू म चिरपोटी पताल के अगर चटनी होगे तब तो अउ का कहना, का पूछना।
गढ कलेवा के नाम से हमर भाई बहिनी मन छत्तीसगढ के पकवान ला बजार म लाए के जउन प्रयास करे हावय वो हर बहुत ही सराहनीय हावय अउ उॅखर हमन ला सम्मान करके छत्तीसगढी पकवान के आनंद लेना चाही।
सियान बिना धियान नई होवय तभे तो उॅखर सीख ला गठिया के धरे म ही भलाई हावय। सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हावय।

रश्मि रामेश्वर गुप्ता

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