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आजादी के दीवाना : सुभाष चंद्र बोस (23 जनवरी जयंती विशेष)

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जनम 23 जनवरी 1897 में उड़ीसा के कटक शहर में एक बंगाली परिवार में होय रिहिसे । एकर बाबूजी के नाँव श्री जानकी नाथ बोस अउ दाई के नाँव श्रीमती प्रभावती रिहिसे । एकर बाबूजी ह कटक शहर के जाने माने वकील रिहिसे ।

पढ़ई – लिखई – सुभाष चंद्र बोस ह पढ़ई – लिखई में बहुत हुशियार रिहिसे । वोला पढ़े लिखे के अब्बड़ सँउख रिहिसे । प्राथमिक शाला ल वोहा कटक शहर में पूरा करीस हे । ओकर बाद कालेज ल कलकत्ता में जाके पूरा करीस हे । अंग्रेजी शासन काल में पढ़ई – लिखई करना बहुत कठिन काम राहय , फेर सुभाष चंद्र बोस ह हार नइ मानीस , अउ मन लगा के पढ़ई करत रिहिसे । भारतीय प्रशासनिक सेवा ( इंडियन सिविल सर्विस) के तैयारी करे बर ओकर दाई – ददा ह इंग्लैंड भेज दीस । इंग्लैंड के कैंम्ब्रिज विश्व विद्यालय में पढ़ के सिविल सर्विस के परीक्षा में बहुत बढ़िया अंक से पास होगे , अउ नौकरी करे ल धरलीस ।

राजनीति में प्रवेश- वो समय अंग्रेज मन के अत्याचार ह बढ़ गे रिहिसे अउ जगा – जगा आजादी बर आंदोलन चलत रिहिसे । तब सन 1921 में सुभाष चंद्र बोस ह अपन नौकरी ल छोड़ के भारत में आ गे । इंहा आ के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़गे अउ आजादी के आंदोलन में शामिल होगे । सुभाष चंद्र बोस ह महात्मा गाँधी के अहिंसा वादी विचार से सहमत नइ रिहिसे । ओकर कहना राहय के अहिंसा से या हाथ जोड़ के भीख मांगे ले आजादी नइ मिले । आजादी पाय बर क्रांतिकारी कदम उठाय ल परही । इही मतभेद के सेती महात्मा गाँधी अउ सुभाष चंद्र बोस अलग- अलग होगे । महात्मा गाँधी नरम दल के नेता रिहिसे अउ सुभाष चंद्र बोस ह गरम दल के नेता । सुभाष चंद्र बोस ह नेताजी के नाम से प्रसिद्ध होगे । सबले पहिली गाँधी जी ल राष्ट्रपिता कहिके नेता जी ह संबोधित करे रिहिसे ।

आजाद हिन्द फौज के गठन- भारत माता ल अंग्रेज मन के गुलाम ले स्वतंत्र कराय बर नेताजी ह “आजाद हिन्द फौज ” के गठन करीस । नवयुवा लड़का – लड़की ल फौज में भरती करीस , अउ अंग्रेज मन खिलाफ आवाज उठाइस । आजाद हिन्द फौज के सभा में अपन भाषण में सुभाष चंद्र बोस ह “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा ” के नारा दीस । तब उँहा बइठे हजारों आदमी मन हम अपन खून दे बर तैयार हन कहिके प्रतिज्ञा पत्र में खून से हस्ताक्षर करके नेताजी ल दीस ।

ऐतिहासिक भाषण- रंगून के जुबली हाल में सुभाष चंद्र बोस जी ह जो भाषण दीस वोहा इतिहास के पन्ना में स्वर्ण अक्षर में अंकित हो गे ।
वोहा बोले रिहिसे-  स्वतंत्रता संग्राम के मोर साथियों स्वतंत्रता बलिदान चाहथे । आप सब आजादी बर बहुत त्याग करे हो , फेर अभी प्राण के आहुति देना बांचे हे । आजादी पाय बर आज अपन सिर ल फूल के जइसे चढ़ा देने वाला पुजारी के जरुरत हे । जे अपन सिर काट के स्वाधीनता के देवी ल भेंट चढ़ा सके । तुमन मोला लहू दो अउ मेंहा तुमन ल आजादी देहूँ । लहू एक – दू बूँद नहीं अतका लहू चाहिए के एक महासागर बन जाय , अउ वो महासागर में ब्रिटिश साम्राज्य पूरा बूड़ जाय । ब्रिटिश साम्राज्य के अंत हो जाय ।

नेताजी के अंतिम यात्रा- 18 अगस्त सन 1945 के नेताजी हवाई जहाज से सिंगापुर से बैंकाक जावत रिहिसे । वो जहाज ह दुर्घटना ग्रस्त होगे।
ओकर बाद ले सुभाष चंद्र बोस के पता नइ चलीस । सुभाष चंद्र बोस के मृत्यु ह आजतक अनसुलझा रहस्य बन गेहे । कई झन ह दुर्घटना में मरगे कहिथे अउ कई झन येला माने बर तैयार नइहे । देश के अलग- अलग जगा नेताजी ल देखे के दावा करे जाथे । फैजाबाद के “गुमनामी बाबा ” से ले के छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला में नेताजी के रहे के दावा करथे ।

छत्तीसगढ़ में तो सुभाष चंद्र बोस के मामला राज्य सरकार तक घलो गेहे , फेर राज्य सरकार ह येला हस्तक्षेप के योग्य नइ मान के मामला के फाइल ल ही बंद कर दीस ।

महेन्द्र देवांगन माटी
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला- — कबीरधाम
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

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मोर ददा ला तनखा कब मिलही

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दस बच्छर के नीतिन अउ एक महिना बड़े ओकर कका के बेटी टिया अँगना मा खेलत रहिस। दूनो मा कोन जनी काय सरत लगिस तब टिया हा कहे लगिस मेहा हार जहूँ ता मोर पइसा ला मोर पापा ला तनखा मिलही तब देहँव। नीतिन समझ नइ सकिस कि ओकर कका हा कहाँ ले तनखा पाथय,कोन ओला तनखा देथय। ओहा ओतका बेरा तो खेल लिहिस फेर ओखर मन मा बइठ गे कि हमर ददा ला तनखा कब मिलथे।
संझा नीतिन अपन ददा मोहन के रद्दा देखत रहय।खेत ले रापा ला खाँद मा डारे घर आवत देख के थोरिक खुश होय लगिस।हाथ मुहूँ धोके चहा पीये बर बइठिस ओतकी बेरा नीतिन अपन ददा ला पूछे लगिस, तोला तनखा कब मिलही। सात बच्छर के लइका के मुहूँ ले उदुपहा ये सवाल सुनके अकबका गे।
थोकिन स्वांस लेके अउ चाय ला चुहकत नीतिन ला कहिस- तोला कोन पूछिस हे बाबू? नीतिन कहिस- कोनों नइ पूछिस हे, टिया के पापा हा हर महिना तनखा पाथय, ओहा कहाँ ले पाथय? ओला कोन देथय।
मोहन अपन नानकन लइका के बड़े जबड़ सवाल के जुवाब देय बर लजलजहा होगे।फेर अपन लइका ला तो कइसनो करके भुलवारे लागही। मोहन कहिस- सुन बाबू! तोर कका हा सहर मा आफिस मा नौकरी करथे।सरकार अउ जनता के बुता करथे तब ओकर बदला मा सरकार ओला महिना पूरे के पाछू तनखा माने पइसा देथय। ओहा मिले पइसा ला अपन घर के साग भाजी, तेल नून, साबुन सोडा, कपड़ा लत्ता लेथय, घर के किराया, टिया के इस्कूल के फीस पटाथे। जइसे तुहँर इस्कूल के मास्टर साहब मन हा सब लइका ला दिनभर पढ़ाथे, ओकर सेती सरकार हा ओला तनखा देथय।अइने जौन मन सरकारी, गैरसरकारी, पराइवेट कंपनी, कारखाना, आफिस, दुकान मा बुता करथे, सबोमन तनखा पाथे।
नानकन नीतिन हा अपन ददा के जुवाप ला कलेचुप सुनत रहय। उदुपहा कहे लगिस- तोला काबर तनखा नइ मिलय, तहूँ हा सरकार बर धान बोथस, सरकारी सुसायटी मा लेगथस। फेर नानकन लइका के बड़का सवाल हा मोहन ला चुप्पा बना दिस। तभो ले कहिस- जौन हा नउकरी ,चाकरी करथे ओला तनखा ओखर मालिक मन देथय।ओहा छुट्टी घलाव अपन मालिक ला पूछ के लेथय।मैं मालिक आँव। अपन खेत के मालिक।मालिक ला कोन तनखा देही। मालिक हा तनखा देथय।
नीतिन फेर सवाल करिस- ता मालिक हा तो अमीर होथय। फेर हमन तो गरीब हन।कका मेर फटफटी हावय, एलइडी टीवी, कूलर, सोफा,दीवान, बइठ के खायबर कुर्सी, दर्पन वाले अलमारी हावय।हमर मन करा तो पंखा भर हवय, टीवी कतका जुन्ना होगे हवय। मालिक मन तो नवा नवा कुरता अंगरखा पहिरथे।मलकाइन हा सोन चांदी के गहनागुठा अउ रोज नवा लुगरा पहिरथे।फेर तँय तो मइलहा कुरता ला तीन दिन होगे पहिरे हावस।मोर पैंट हा कब के चिराय हावय।
हमर गुरुजी काहत रहिस कि किसान ला धरती के भगवान कहे जाथय। काबर कि किसान के उपजात अन्न ले मनखे अउ कतको जीव के पेट भरथय।अइसे तो मनखे ला छोड़ दूसर जीव जन्तु मन अपन खाय पीये के बेवस्था प्रकृति ले कर डारथे।सब अपन पेट भरेबर मिहनत करके खाथे।काली के चिंता मा कोनों जीव नइ रहय। मनखे हा चौरासी लाख जीव मा सबले अलगेच जीव आय। ओहा ये नइ जानय कि काली तक जीही कि स्वांस बंद हो जाही फेर लालच मा भरे मनखे सात पीढ़ी बर अन्न धन सकेलथय।
किसान सबके पेट भरइया, तन ढकइया, छत बनइया हरय। फेर आज ओ हा आत्महत्या अउ फाँसी चढ़इया बनगे हावय।किसान कर्जा मा लदाके कर्जादार बनत हावय। कभू प्रकृति के मार पीठ मा परथे। कभू कीरा मकोरा मन खातिर ता कभू हत्थी, बेंदरा, सूरा, भालू जइसन जीव हा फसल ला बरबाद कर देथय।
भगवान के किरपा ले जब फसल अउ उपज हा बने होथय तब ओला बजार मा सही भाव नइ मिलय। तब सड़क मा फेंके अउ ट्रेक्टर मा रउँदे के बुता होथय। काबर कि किसान ला ओकर उपज के वाजिब दाम नइ मिलय। पैदावारी जादा होगे तभो किसान ला घाटा होथय अउ कम होथय तब तो ओला लगाय लागत के पुरतन पइसा नइ मिलय। धान लुए के पाछू ओला सरकारी सुसायटी मा बेचेबर लेगथे। तौलभाँज करे के पाछू खाता मा पइसा मिलथे। ऊपर वाला भगवान के कोनों किसम के नराज हो जाथय तब धान पान कम हो जाथे। अंकाल हो जाथय।तब सरकार हा मुआवजा बाँटथय। अउ किसान ला थोकिन राहत देथय।
नानकन नीतिन के मन मा अबड़ अकन सवाल रहय कि जब खातू सरकार देथय, करजा सरकार देथय, सब्सिडी सरकार देथय, बीज, यूरिया, समर्थन मूल्य, बीमा सरकार देथय। सबो बुता सरकार करथे तब हर महिना तनखा काबर नइ दे सकय। सरकार के पढ़े लिखे अधिकारी मन किसान ला हर महिना तनखा देय के नियम काबर नइ बना सकय।
दस बच्छर के नानकन लइका के मति मा ये सवाल घेरी बेरी घुमथय कि दू भाई मा एक नउकरी वाला हे तब ओला हर महिना तनखा अउ दूसरा किसान हे तब ओहा गरीबी मा जीएबर मजबूर हे।
नीतिन ला अगोरा हे मोर ददा ला हर महिना तनखा कब मिलही।

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा,जिला-गरियाबंद

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रीतु बसंत के अवई ह अंतस में मदरस घोरथे

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हमर भुईयां के मौसम के बखान मैंहा काय करव येकर बखान तो धरती, अगास, आगी, पानी, हवा सबो गोठियात हे। छै भाग में बाटे हाबय जेमे एक मोसम के नाव हे बसंत, जेकर आय ले मनखे, पशु पक्षी, पेड़ पऊधा अऊ परकिरती सबो परानी म अतेक उछाह भर जथे जेकर कोनों सीमा नईये। माघ के महीना चारों कोती जेती आँख गड़ाबे हरियरे हरियर, जाड़ के भागे के दिन अऊ घाम में थोरको नरमी त कहू जादा समे घाम ल तापे त घाम के चमचमई। पलाश के पेड़ ल देखबे त अंगरा आगी असन पिवरा पिवरा फुल के खिलई, बौरे आमा पेड़ के ममहई, कोयल के कुहकई, चिरई चिरगुन के ये डारा ले वो डारा फुदकई, तरिया, डबरी, नदिया नरवा के पानी के गहरई, चारों कोती देख ले कोनों मेर सुन्ना नीं लागय सबो जगा भरे भरे उचास लागथे। घर होवय ते बन, खेत खार बियारा बारी अईसन निक लागथे अंतस के पीरा ह बसंत के आय ले भगा जथे। शादी बिहाव के होवई, गीता भागवत पूजा पाठ के चारों मुड़ा गियान बगरत रीथे। तिहार असन उछाह, कोनों नाचत हे, कोनों गावत हे, झांझ मंजीरा बजात कतको झन स्नान धियान अऊ मेला मंडई ते कोनों ह तीरथ बरथ करत दान पुन करत पुन कमात हे। अऊ ओकरे सेती कला, संगीत, वाणी, परेम, बिदया, लेखनी, ऐश्वर्य के देवी सरसती ह सबो परानी ऊपर अपन आशीष ल घलो बरसात रीथे।
शुभ मंगल सबो काम सजय,
चहूं ओर मिरदंग बाजै।
शीतल सुरभित मदमस्त पवनवा,
अमुआ के बौर ले खुशबु बाटै।
कुक कुक कुक कोयली कुहकय,
तभे तरुवर ले कमलिनी झाकै।
मतवाला माहोल देखके,
अंतस के तरंग बड़ हिलोरे मारे।

तभे तो बसंत के महीना ल रीतु मन के राजा कीथे। ये महीना ल सबो परानी के सेहत बर बड़ अच्छा माने गेहे, सबो परानी मन में नवचेतना अऊ नवउमंग के जोश समाथे। चारों कोती बहारे बहार ओनहारी पाती के गदबदाय झुमई ल देख डोकरा मन जवान हो जथे, ठुड़गा मन पहलवान बन जथे। सरसों के खेत के महर महर महकई, गेहूं के बाली के निकलई, पंखुड़ियों में तितली के मंडरई, भंवरा के गुनगुनई, अईसे लागथे चारों मुड़ा प्यारे प्यार के बरसात होत हे। धरती में होले होले पवन के चलई, मतवाला मनखे के इतरई, तरिया डबरी में कमल के खिलई देख के अईसने अभास होथे कि कोनों नवा बहुरिया के घर दुवार में आगमन होय हे। जेकर सुगंध ह पूरा घर दुवार ल सुगन्धित करत हे। अऊ ओकर आय ले सब नाचत, गावत, झूमरत उछाह मनात हे। ये सब ल देख के अईसे लागथे कि कोनों आके अंतस में मदरस घोरत हे।
का धरती, का अगास,
विहंग उड़य बुझाय बर पियास।
परकिरती के नवा रंगत देख,
झुमै नाचै सबो परानी आज।

विजेन्द्र वर्मा अनजान
नगरगांव (जिला-रायपुर)

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बसंत पंचमी अउ ओखर महिमा

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बसंत पंचमी हमर हिंदूमन के तिहार म ले एक बिसेस तिहार हे। ये दिन गियान के देबी दाई माता सरस्वती के आराधाना करे जाथे। भारत अउ नेपाल जेहा पहिली हिंदू देस रहसि, म बछर भर ल छै भाग म बांटे गे हे। येमा बसंत रितु सबसे सुखद रितु हे। जब परकिरिती म सबो कती नवसिरिजन अउ उल्लास के वातावरण होथे। खेत म सोना के रूप म सरसों के फूल चमके लगते। गेंहूॅं अउ जौ म बाली आ जाथे। आमा के रूख म बउर लग जाथे अउ उपर ले कोेयली के मीठ तान मन ल सुघ्घर लगे लगथे। टेसू, सेम्हर अउ गुलमोहर के चटक लाल रंग ह सब जीव ल अपन कति खींचे लगथे। महुआ के फूल के सुगंध वातावरण म सब्बो जीव ल मदमस्त करे लगथे। वातावरण म सबो कती नाना परकार के फूल खिले के कारन परकिरिती म सुघ्घर हवा चले लगथे अउ भवंरा के भनन-भनन के नाद निक लगे लगथे। जेखर ले मानव जाति के जीवन म नया उल्लास छा जाथे। बसंत पंचमी माघ महिना के सुुक्ल पछ के पंचमी के मनाये जाथे, जेखर कारन ये तिहार ल हमन बसंत पंचमी के नाव ले घलो जानथन। बसंत रितु के आतेच परकिरिती के कोना-कोना खिल जाथे। सब्बो जड़-चेतन समुदाय उल्लास ले भर जाथे। स्कूलों म घलो लईकन मन माता सरस्वती के पूजा-अरचना करके बिद्या के बरदान मांगथे। माता सरस्वती के पूजा बर लईकन मन के उत्साह ह देखत बनथे।
परकिरिती म हर ओर एक नया उमंग,उत्साह अउ नव सक्ति के संचार होय लगथे। परकिरिती के ये उत्सव म समाये संदेश हमर जीवन म घलो सकारात्मकता भर देथे। आवश्यकता ये बात के हेै कि हममन परकिरिती के पास कुछ समय बितावन अउ अपन जीवन ल घलो आनंद,उमंग और उल्लास ले भर देवन।
भारत म जुन्ना समय ले ही ये दिन भारत के मनखेमन, गियान अउ कला के देवी दाई मॉं सरस्वती (सारदा) के पूजा कर ओखर करा अउ जियादा गियानी होये के बरदान मांगथन।
पउरानिक महिमा- भगवान सिरीराम बसंत पंचमी के दिन अपन भाई लछमन के साथ (बनवासकाल) के समय हमरे छत्तीसगढ़ परेदस के जांजगीर जिला के सिवरीनानायन म माता सबरी के कुटिया म पहुंचे रहिस। अउ ओखर जूठा बोईर ल बड़ा परेम भाव के साथ खाये रहिस।
ऐतिहासिक रूप ले – कहे जाथे के पिरिथिवी राज चउहान ह बिदेसी आक्रमणकारी, आतातायी मोहम्मद गोरी ल सोलह बार हराये रहिस पर सत्रहवां बार पिरिथिवी राज चउहान ह हार गईस त मोहम्मद गोरी ओला अफगानिस्तान कैद करके अपन गोर देश लेगईस अउ ओखर आंखी ल फोड़ देहे रहिस। पिरिथिवी राज चउहान ह राजा दसरथ के बाद एक अइसे राजा रहिस जे ह सब्द भेदी बान चलाये के कला जानत रहिस। मोहम्मद गोरी ह ओखर से ये कला ल सीखना चाहत रहिस अउ ओखर कला के परदरसन करवाये के खातिर अपन सामने ओ कला ल दिखाये बर पिरिथिवी राज चउहान करा कईथे त पिरिथिवी राज चउहान के दरबारी कबी अउ ओखर दोस्त चंदबरदाई ह दोहा पारथे-

चार बांस चउबीस गज, अंगुल अस्ट परमान।
ता ऊपर सुल्तान हे, मत चूक चउहान।।

त पिरिथिवी राज चउहान ह अपन सब्द भेदी बान ल चला देथे। वो 1192 ई. के दिन ही बसंत पंचमी के तिथि रहिस अउ ये तिथि के दिन ही पिरिथिवी राज चउहान अउ ओखर राजकवि चंदबरदाई एक-दूसर ल छुरा घोप कर आत्मबलिदान हो गे रहिस।
साहित्यिक महिमा- बसंत पंचमी की तिथि 28 फरवरी सन् 1899 के दिन हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार अउ छायावाद के चारा आधार इस्तंभ म ले एक पं.सूर्यकांत त्रिपाठी ‘‘निराला‘‘ जी के जनम हो रहिस। निराला जी के मन म गरीब मन के परति अपार परेम अउ पीड़ा रहिस। वो ह अपन पईसा अउ कपड़ा-लत्ता ल खुले मन ले गरीब मन ल दे डालत रहिस। ये कारन से लोगनमन उनला महाप्राण कहत रहिस।
हिंदी साहित्य म सेनापति जी घलो बिसेस इस्थान रखथे। हिंदी साहित्य म उंखर योगदान ल भूलाय नई जा सके। सेनापति जी ह अपन रचना रितु बरनन म बसंत रितु के बड़ा ही मनोहारी बरनन करे हे। ओहा परकिरिती के उपादान ल लेके मानवीकरण अलंकार के बहुत ही मनोरम चित्र खींचे हे। ओहा अपन ये कविता म बसंत ल रितु के राजा बता अपन चतुरंगिनी सेना के साथ बवात बहुत ही सोभायमान लगत हे।
जईसे उखर रचना म –

बनन-बरन तरू फूले उपवन-वन,
सोई चतुरंग संग दल लहियतु है।
बंदी जिमी बोलत विरद वीर कोकिल है,
गुंजत मधुप गान गुन गहियतु है।
आवे आस-पास पहुपन की सुवास सोई,
सोने के सुगंध माझ सने रहियतु है।
सोभा को समाज सेनापति सुखसाज आजु,
आवत बसंत ऋतुराज कहियतु है।

प्रदीप कुमार राठौर ‘अटल‘
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला -जांजगीर चांपा (छ.ग.)

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बसंत पंचमी के तिहार

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बसंत रितु ल सब रितु के राजा कहे जाथे। काबर के बसंत रितु के मौसम बहुत सुहाना होथे। ए समय न जादा जाड़ राहे न जादा गरमी। ए रितु में बाग बगीचा सब डाहर आनी बानी के फूल फूले रहिथे अउ महर महर ममहावत रहिथे। खेत में सरसों के फूल ह सोना कस चमकत रहिथे। गेहूं के बाली ह लहरावत रहिथे। आमा के पेड़ में मउर ह निकल जथे। चारों डाहर तितली मन उड़ावत रहिथे। कोयल ह कुहू कुहू बोलत रहिथे। नर नारी के मन ह डोलत रहिथे। ए सब ला देखके मन ह उमंग से भर जथे। एकरे पाय एला सबले बढ़िया रितु माने गेहे।
बसंत पंचमी ल माघ महिना के पंचमी के दिन याने पांचवां दिन तिहार के रुप में मनाय जाथे। ये दिन ज्ञान के देवइया मां सरस्वती के पूजा करे जाथे। एला रिसी पंचमी भी कहे जाथे। ए दिन पीला वस्तु अऊ पीला कपड़ा के बहुत महत्व हे। आज के दिन सब मनखे मन पीला रंग के कपड़ा पहिर के पूजा पाठ करथे।
बसंत पंचमी के दिन ल शुभ काम के शुरुवात करे बर बहुत अच्छा दिन माने गेहे।
जइसे – नवा घर के पूजा पाठ, छोटे लइका के पढ़ाई लिखाई के शुरुवात, नींव खोदे के काम, दुकान के पूजा पाठ, मोटर गाड़ी के लेना आदि।
बसंत पंचमी के कथा – जब ब्रम्हा जी ह संसार के रचना करीस त सबसे पहिली मानुस जोनी के रचना करीस। फेर वोहा अपन रचना से संतुष्ट नइ रिहीस। काबर के आदमी मन में कोई उतसाह नइ रिहीस। कलेचुप रहे राहे। तब विष्णु भगवान के अनुमति से ब्रम्हा जी ह अपन कमंडल से जल (पानी) निकाल के चारो डाहर छिड़कीस। एकर से पेड़ पौधा अऊ बहुत अकन जीव जंतु के उतपत्ति होइस।
एकर बाद एक चार भुजा वाली सुंदर स्त्री भी परगट होइस। ओकर एक हाथ में वीणा दूसर हाथ में पुस्तक तीसरा हाथ में माला अऊ चौथा हाथ ह वरदान के मुद्रा में रिहीस। ब्रम्हा जी ह ओला वीणा ल बजाय के अनुरोध करीस। जब ओहा वीणा ल बजाइस त चारो डाहर जीव जंतु पेड़ पौधा अऊ आदमी मन नाचे कूदे ल धरलीस। सब जीव जंतु में उमंग छागे। जीव जंतु अऊ आदमी मन ल वाणी मिलगे। सब बोले बताय बर सीखगे। तब ब्रम्हा जी ओकर नाम वाणी के देवी अऊ स्वर के देने वाली सरस्वती रखीस। मां सरस्वती ह विदया अऊ बुद्धि के देने वाली हरे। संगीत के उतपत्ति मां सरस्वती ह करीस।
ए सब काम ह बसंत पंचमी के दिन होइस। एकरे पाय बसंत पंचमी ल मां सरस्वती के जनम दिवस के रुप में मनाय जाथे।
पतंग उड़ाय के परंपरा – बसंत पंचमी के तिहार ह खुशी अऊ उमंग के तिहार हरे। ये दिन पतंग उड़ाय के भी परंपरा हे। आज के दिन छोटे बड़े सब आदमी पतंग उड़ाथे अऊखुशी मनाथे। कतको जगा पतंग उड़ाय के प्रतियोगिता भी होथे।
ए प्रकार से बसंत पंचमी के तिहार ल सब झन राजीखुशी से मनाथे अऊ एक साथ मिलके रहे के संदेश देथे।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला – कबीरधाम (छ. ग)
पिन- 491559
मो.- 8602407353

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छत्‍तीसगढ़ के वेलेंटाईन : झिटकू-मिटकी

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लोक कथा म कहूँ प्रेमी-प्रेमिका मन के बरनन नइ होही त वो कथा नीरस माने जाथे। छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाका मन म जहां लोरिक-चंदा के कथा प्रचलित हे, वइसनहे बस्तर म झिटकू-मिटकी के प्रेम कथा कई बछर ले ग्रामीण परवेश म रचे-बसे हे। पीढ़ी दर पीढ़ी इंकर कथा बस्तर के वादी म गूंजत रहे हे। बस्तरवासी इनला ल धन के देवी-देवता के रूप म कई बछर ले पूजत आवत हें। इंकर मूर्ति मन ल गांव वाले मन अपन देव गुड़ी म बइठारथें, उन्हें इहां अवइया सैलानी मन झिटकू-मिटकी के प्रतिमा ल संग ले जाथें अऊ ए मन ल बस्तर के अमर प्रेमी के रूप म सम्मान देथें।
कोन रहिन झिटकू-मिटकी
बस्तर म झिटकू-मिटकी के कथा अलग-अलग नांव मन ले चर्चित हे। झिटकू-मिटकी के कहानी ल मनखे खोड़िया राजा अऊ गपादई के कहानी के नाम ले घलोक जानथें। कोनो गांव म झिटकू नाम के एक युवक रहिस। एक दिन मेला म ओखर भेंट मिटकी नाम के युवती ले हो गीस। संयोग ले वो युवती घलोक स्वजातीय रहिस। पहली नजर म ही दुनों एक-दूसरे के प्रति आसक्त हो गें। बात परिवार तक पहुंचीस।
स्वजातीय होए के सेती परिवार वाले मन ल कोनो आपत्ति नइ रहिस, फेर मिटकी के सात भाई एखर बर तियार नइ रहिन। ओ मन नइ चाहत रहिन के उंखर बहननी बिहाव करके उंखर ले दूरिहा चल दे। ओ मन चाहत रहिन के मिटकी बर अइसन युवक के तलाश करे जाय जऊन घरजमाई बनके ऊंखरे संग रहय। मिटकी के भाइ मन के सरत ले झिटकू के परिवार के मन गुसिया गें। झिटकू न परिवार ल छोड़ सकत रहिस, नइ ही अपन प्रेमिका मिटकी ल। ओ हर बीच के रद्दा निकालिस।
झिटकू ह कहिस के वो मिटकी ले बिहाव तो करही, फेर वो ओखर भाइ मन के घर म नइ रहय। वो मिटकी के गांवे म घर बनाके अपन गृहस्थी बसाही। मिटकी के भाइ मन ह सरत मान लीन। ओ मन झिटकू के संग मिटकी के बिहाव करे ल तइयार हो गे। बिहाव के बाद झिटकू मिटकी के गांव म धोरई (मवेशी चराए के काम) करे लगिस अउ जिदंगी हंसी-खुशी बीते लागिस।
…अऊ फेर कहानी म आइस ये मोड़
कुछ साल बाद अकाल परिस। मनखे मन भूख ले मरे लागिन। ए समस्या ले निपटे बर गांव वाले मन के एक बैठक होइस। बैठक म ये बात आघू आइस के पियासे खेत मन बर कहूं गांव म सिंचाई तरिया होही त समस्या खतम हो सकत हे। गांव वाले मन ह श्रमदान करके बड़का तरिया कोड़ लीन। तरिया तो तइयार हो गे, फेर बरसा के पानी भरा गे। बरसा खतम होतेच तरिया सूखा गीस।
गांव वाले मन के फेर बैठक होइस। ये मां गांव के सिरहा-गुनियां (तांत्रिक मन) ह ये ऐलान कर दीन के जब तक तालाब म कोनो मनखे के बलि नइ दे जाही, तरिया म पानी नइ रूकय। बलि के बात सुनके गांव वाले मन पाछू घुंच गें, फेर गांव म कुछ अइसे युवक घलोक रहिन, जेन मिटकी ल पाये के लालच रखत रहिन। अइसन युवक मन ह मिटकी के भाइ मन ल भरमाइन के झिटकू तो दूसर गांव के ये। अउ रहिस बात मिटकी के त, ओकर संग कोनो युवक शादी कर लेही, कहूं तुमन झिटकू के बलि दे देहू त गांव म तुंहार मान बाढ़ जाही। मिटकी के भाई मन स्वार्थी युवक मन के बात म आ गें। एक दिन जब मिटकी के भाई अऊ झिटकू जंगल म मवेशी चरात रहिन, तब योजना बनाके मिटकी के भाइ मन ह झिटकू ल मारे के कोसिस करिन।
झिटकू उहां ले जान बचाके भागिस। एक भाई ह टंगिया ले झिटकू उपर वार करिस। ये टंगिया वोकर गोड़ म परिस। तभो ले वो भागत रहिस, तरिया तीर मिटकी के भाइ मन ह झिटकू ल धर लीन अऊ टंगिया ले ओकर गला ल काटके मूड़ी ल तरिया म फेंक दीन। ए घटना के बाद अच्‍छा बरसा होइस।
ओती, पति के अगोरा करत मिटकी परेशान रहिस। रात म ओ ह सपना देखिस के तरिया पानी ले लबालब भरे हे अऊ बीच तरिया म झिटकू खड़े हे। सपना म ये देख के मिटकी डेरा गीस। वो बिना कुछ सोचे तरिया कोति दउंड़ गे। तरिया पहुंचिस त मिटकी आश्चर्य म पड़ गीस। काबर के सपना म ओ ह जऊन देखे रहिस, वो दृश्य प्रत्यक्ष रूप ले ओखर सामने रहिस।
येती झिटकू ह मिटकी ल ऊंखर भाइ मन के करतूत बता दीस। झिटकू बर अगाध प्रेम करइया मिटकी ह घलोक तालाब म कूद के अपन जान दे दीस। दूसर दिन भिनसरहा जब गांव वाले मन तरिया पहुंचिन, त मिटकी के लास तैरत मिलीस। ए प्रकार से प्रेमी युगल के दुखद अंत हो गीस। टंगिया लगे के बाद दंउड़त रहे के सेती झिटकू खोड़िया देव अऊ तरिया पार बांस के टोकरी छोड़ के मौत ल गले लगाय के सेती मिटकी गपादई के नाम ले चर्चित होइस।
गांव वाले करथे पूजा
बस्तर के आदिवासी समाज झिटकू-मिटकी ल धन के देवी-देवता मानथे। कई ठन मेला-मंडई म झिटकू-मिटकी के पीतल अऊ लकड़ी ले बने प्रतिमा बेचे बर लाए जाथे। गांव वाले मन अपन परिवार के खुसहाली बर ए मन ल देवगुड़ी म अर्पित करथें। येती बस्तर अवइया हजारों सैलानी मन घलोक ए प्रेमी के कठवा अऊ धातु के मूर्ति मन बड़ आस्था के संग अपन संग ले जाथें।

हेमंत कश्यप
जगदलपुर
(जागरण समाचार म छपे लेख के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद – संजीव तिवारी)

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चिन्हारी- नरवा-गरूवा-घुरवा-बारी

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देस होय चाहे राज्य ओखर पहिचान उहां के संसकरिति ले होथे। सुंदर अउ सुघ्घर संसकरिति ले ही  उहां के पहिचान दूरिहा दूरिहा मा बगरथे।  अइसने हमर छत्तीसगढ़ राज के संसकरिति के परभाव हा घलो हमर देस म अलगे हे। इहां के आदिवासी संसकरिति के साथ-साथ इहां के जीवन यापन, लोकगीत संगीत हा इहां के परमुख विसेसता आय। फेर ऐखर अलावा भुंइया ले जुरे संसकरिति के रूप म गांव अंचल के दैनिक जीवन के सब्बों क्रियाकलाप  घलो जमीनी संसकरिति आय। जेला आज बचाय के जरूरत हे। काबर ए हा समय के संगे-संग कम होवत हे। आजकाल बिग्यान के परभाव तो होगे हे, फेर सिकछा अउ रोजगार बर आदमी सहर डाहर पलायन करत हे। अउ अपन जमीनी संसकरिति ले दुरिहात हे। आज के दौर मा हमर चार ठन जमीनी संसकरिति ’’नरवा-गरूवा-घुरवा-बारी’’ ला बचाय के जरूरत हे। जेखर ले हमर जुन्ना संसकरिति हा बाचे रहि। काबर इही हमर राज के विसेसता आय। 
हमर सबले पराचिन धरोहर नदी-नरवा आय, ये मन आज अधमरा हो गे हे। ये मन ला फेर जियाय ल परहि। गरूवा माने पशुधन, हमर राज ह कृषि परधान आय। इहां गरूवा मन के अब्बड़ महत्ता हे। गरूवा के अलावा सब्बो जीव मन ला बचाना हमर पुराना संसकरिति आय। अब घुरूवा बचाय के मतलब आय, जैविक खेती ला बढ़ा के शुध्द अउ अच्छा अनाज उगाना। अउ आखिरी मा बारी के विकास के माने हरियाली अउ खुशहाली ले हे। हमर आसपास के संगे-संग सब्बो डाहर हरियाली के वातावरण ला बनाय ला परही। राज के सब्बों संसकरिति ला बचाय ले इंहा के मान हा बांचहि। फेर ये भुंइया ले जुरे संसकरिति ला बचाना अब्बड़ जरूरी हे। काबर ’’नरवा-गरूवा-घुरवा-बारी’’ हमर ’’चिन्हारी’’ आय।

अमित कुमार 
गाड़ाघाट, गरियाबंद
7771910692

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मानस मा प्रयाग

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तीर्थराज प्रयाग मा कुंभ मेला चलत हावय।एक महिना तक ये मेला चलथे। छत्तीसगढ़ मा एक पाख के पुन्नी मेला होथय। ये बखत यहू हा प्रयाग हो जाथय। तुलसीदास बाबा हा तीर्थराज प्रयाग के महत्तम ला रामचरित मानस मा बने परिहाके बताय हे।मानस के रचना करत शुरुआत मा जब बाबा तुलसी वंदना करधँय तब साधु संत के वंदना अउ उँखर गुनगान करथँय।संत मन के समाज हा कल्याणकारी असीस देवइया अउ आनंद देवइया होथँय।संसार मा जौन जगा साधु संत सकलाथँय उही जगा मा सक्षात् तीर्थराज प्रयागराज हा खुदे आ जाथय। इही ला तुलसीदास हा मानस मा गढ़े हावय-

मुद मंगल मय संत समाजू, जो जग जंगम तीरथराजू।

अइसने प्रयाग के विसय मा बतावत कहिथँय कि प्रयाग मा रामकथा, रामभक्ति, शिवभक्ति अउ ब्रम्हभक्ति होथँय।इही तीनों हा गंगा, जमुना अउ सरसती के त्रिवेणी संगम आवँय।जिहाँ ये तीनों मिल जाथँय उही हा प्रयाग बन जाथय।अइसे तो रामचरित मानस हा घलाव प्रयाग आवय।जौन एकर पाठ करथे,कथा सुनथे, कथा कहिथे ओला प्रयाग के त्रिवेणी संगम के नहाय के पुण्य मिल जाथय।
बाबा तुलसी कहिथँय कि प्रयाग मा भरद्वाज मुनि के बसेरा हावय।जिहाँ रामकथा रोजेच होथय।संत मन एला अइसे घलाव कहि सकथन कि जिहाँ रामकथा होथय उही प्रयाग हो जाथय। मानस मा लिखाय हे-

भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा,तिन्हहिं राम पद अति अनुरागा।

तुलसीदास जी मानस मा बताय हावय कि जब माघ महिना मा सुरुज देवता हा मकर राशि मा आतँय तब सब देवी देवता, राक्षत, किंनर अउ मनखे मन खलाकुजर के त्रिवेणी संगम मा नहाय बर आथँय।ओकरे सेती जिहाँ रामचरित मानस के कथा होथय उहाँ घलाव सबो देवी देवता मन ला बलाय जाथय।नवग्रह मन ला आसन देके बइठारे जाथय।मानस मा तुलसीदास लिखे हावय-

माघ मकर गत रबि जब होई, तीरथ पतिहिं आव सब कोई।
देव दनुज किंनर नर श्रेणी, सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी।

जौन मन माघ महिना मा प्रयाग मा आथँय ओमन अक्षयवट ला छुथँय। त्रिवेणी माधव के पूजा पाठ करथँय अउ असीस पाथँय।तीर्थराज प्रयाग मा जतका साधू संत मन आथँय ओमन भरद्वाज मुनि के आश्रम मा रहिथँय।पहट बिहनिया गंगा मा नहाथँय, पाछू भगवान के कथा कहिथँय सुनथँय अउ सत्संग करथँय।

जहाँ होई मुनि रिषय समाजा,जाहि जे मज्जन तीरथराजा।
मज्जहिं प्रात समेत उछाहा, कहहिं परस्पर हरिगुन गाहा।।

एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं,पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं।
प्रति संबत अति होई अनंदा , मकर मज्जि गवनहिं मुनिवृंदा।

बाबा तुलसीदास कहितँय- हर बच्छर साधू संत मन सकलाथँय।माघ महिना भर बिहनिया नहाथे,यज्ञ, पूजा करके कथा सुनथँय।पाछू सब अपन अपन आश्रम मा चल देथँय।

संकलन
हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा, जिला गरियाबंद

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दादा मुन्ना दास समाज ल दिखाईस नावा रसदा

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रायगढ़ जिला के सारंगढ़ विकास खंड के पश्चिम दिसा म सारंगढ़ ल 16 किलोमीटर धुरिया म गांव कोसीर बसे आय। जिन्हा मां कुशलाई दाई के पुरखा के मंदिर हावे अंचल म ग्राम्य देवी के रूप म पूजे जाथे। इंहा के जतको गुन गान करी कम आय। समाज म अलग अलग धरम जाति पांति के लोगन मन के निवास होथे अउ अपन अपन धरम करम ले पहिचाने जाथे फेर कोनो महान हो जाथे त कोनो ग्यानी – धयानि अउ दानी इसनेहे एक नाम कोसीर गांव के हावय जेखर नाम ल आज भी लोगन मन याद रखे हें जेन हर अपन जीवन म समाज ल बहुत कुछ दिस अउ ओखर नाम ल नावा पीढ़ी ल बताना जरूरी हावे।



पुरखा के बात नाईते भुला जाथें मुन्ना दास पुरखा मन बर तो नया नाम नोहे फेर नावा पीढ़ी बर नावा जरूर लागहि काबर हमन अपन पुराना रिति रिवाज अउ पुरखा ल भूलत हन तेखरे सेती मुन्ना दास जी के बारे म चरचा करना जरूरी हे। जेनहर समाज ल नावा रसदा दिखाईस अउ नावा पीढ़ी ल कछु करे के सपना दिखाईस। रायगढ़ जिला के कोसीर गांव के किसान परिवार म पंचम दास के घर म 25 फरवरी1926 के दादा मुन्ना दास लहरे जनम लिस पंचम दास गांव के बड़े किसान रहिस कम पढ़े लिखे अउ संत बाबा गुरुघासी दास जी के अनुयायी रहिस। तेखर सेती संत बाबा गुरुघासी दास जी के संदेस उपदेस के पालन घर म होवत रहिस। मुन्ना दास अपन पिता पंचम दास के एकठन औलाद रहिस अबड़ दुलार म रहिस। पहली स्कूल म लईका के भरती होवय त अपन कान ल छू दारे त भरती ले लेवै 1933 म मुन्ना दास ल बालक शाला म भरती करिन स्कूल के स्थापना ह 1908 म होय रहिस फेर अबड़ दुलार के कारन स्कूल जाए बर कोतहा रहिस अउ पहली कक्षा ल घलो नी पढ़ पाइस कोसीर बड़े गांव रहिस इहाँ धुरिया धुरिया ले पढ़े बर आय। अपन पिता संग खेत खार के काम बचपन ल ही सिख गे अउ 19 बछर के आस पास म दूसर पाठोनी घलो हो गिस मुन्ना दास जी के विवाह श्रीमती राम बाई के साथ होय रहिस राम बाई सरल घरेलू महिला रहिस। मुन्ना दास जी के 2 पुत्र अउ 3 पुत्री होइस अपन मंझला बेटा त्रिलोचन ह बड़े होइस त घर परिवार ल उही ह सम्हालीस। मुन्ना दास अपन खेती किसानी के संगे संग सामाजिक काम काज म घलो हाथ बाटावय।




गांव म 5 वीं तक स्कूल रहिस अउ मिडिल स्कूल खुले रहिस फेर भवन के अभाव अउ शिक्षक के घलो जरूरत रहिस ओ समय 1956 म आजादी के 10 बछर होवत रहिस 15 अगस्त के दिन आय स्कुलही लईका मन परभात फेरी म नारा लगावत रहिन स्कूल बचाओ लईका पढ़ाओ ये विसय म गांव के साहित्यकार तीरथ राम चन्द्रा अउ गांव के मन बताथे की 7 वीं कक्षा बर भवन अउ शिक्षक अंग्रेजी मास्टर के जरूरत रहिस त रुपया के जरूरत रहिस जेला लईका मन परभात फेरी म नारा बनाये रहीन ये नारा ल सुन के मुन्ना दास जी हर 10 हजार रुपया अपन खेत ल बेच के दिन तब पढ़ाई आगे बढ़ीस ओखर समाज के परतीं परेम अउ काम के गांव म अबड़ चरचा होइस लोगन मन परसंसा करिन अउ गांव म बड़े बड़े आदमी रहिन फेर मुन्ना दास के साहस के परसंसा होइस 31 बछर के कम उमर म ओखर सूझ बूझ के अबड़ परसंसा करिन। आज भी मुन्ना दास ल ओखर काम से गांव म याद करथे ओखर ल बड़े बड़े ग्यानी अउ दानी रहिन फेर साहस नी रहिस ऐसे गांव के मन कहिथे। मुन्ना दास जी के तबीयत बिगड़ीस फेर सुधार नई हो पाइस अउ 18 अक्टूबर 1987 म निधन हो गिस ओखर निधन ले पूरा गांव म दुख के बादर छागे पूरा गांव सोक म रहिस अउ जेन स्कूल म दान करे रहिन उही दिन स्कूल म दुख के साथ सोक मनाईंन अउ याद करिन आज ओ स्कूल ह हायर सेकंडरी बन गेहे हे। आज विचार के जरूरत हे स्कूल के नाम ल मुन्नादास के नाम से होना चाही ? आज भी मुन्ना दास जी के परसंसा होथे कोसीर अंचल के गौरव आय आज 25 फरवरी के उंखर 93 वीं जनम दिवस आय सादर नमन



लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
कोसीर सारंगढ़
जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़

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उम्मीद म खरा उतरे बर आज के बुद्धिजीवीमन ल सामने आना चाही : खुमान लाल साव

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खुमान लाल साव जी से कुबेर अउ पद्मलोचन के गोठ बात, श्रुत लेखन – कुबेर

आज (25 फरवरी 2019) मंझनिया पाछू भाई पद्मलोचन शर्मा ’मुँहफट’ के फोन आइस। जय-जोहार के बाद वो ह पूछिस – ’’कुबेर, अभी तंय ह कहाँ हस? खुमान सर से मिले बर जाना हे। बहुत दिन होगे, जाना नइ होवत हे, अब परीक्षा शुरू हो जाही तहाँ फेर दू महीना समय नइ मिल पाही।’’
खुमान सर के अस्वस्थ होय के अउ अस्वस्थता ले उबरे के बाद महू हर वोकर से मिल नइ पाय हंव। मंय ह केहेंव – ’’जरूर चलबोन जी, आप इहाँ, स्कूल म, कन्हारपुरी म आ जाव, इहें ले चलबोन।’’
ये तरह ले हम दूनों झन गोधूली बेला म ठेंकवा पहुँच गेन। आरो पा के खुमान सर ह अपन शयनकक्ष ले उठ के आइस। नांदगाँव के गांधी सभागृह म उँकर 89 वाँ जन्मदिन (5 सितंबर 2018 के दिन) के मौका म चंदैनी गोंदा के कलाकार, संगेसंग छत्तीसगढ़ के जम्मों लोक कलाकार, साहित्यकार मन डहर ले उँकर नागरिक अभिनंदन होय रिहिस। वो समय वोमन अपन अस्वस्थता ले उबर नइ पाय रिहिन अउ बहुत कमजोर दिखत रिहिन। आज वोमन ह वो दिन के तुलना म बहुत स्वस्थ दिखिन। फेर पहिली ले आजो वोमन ह शारीरिक रूप ले कुछ कमजोर दिखिन। पन उँकर आवाज म वइसनेच खनक, चेहरा म वइसनेज तेज, मिले के वइसनेच अंदाज अउ स्वभाव म वइसनेच आत्मीयता, अभी घला कायम हे। हमन उँकर चरण छुएन। खुमान सर ह कहिथे – ’’कहाँ ले आवत हव तुमन?’’
पद्मलोचन ह समझिस होही, सर ह हमन ल पहिचान नइ पावत हे, किहिस – ’’मंय ह पद्मलोचन हरंव’’।
खुमान सर ह बीच म बात ल काट के मंद-मंद मुसकात कहिथे – ’’जान डरेव, तंय ह पद्मलोचन हरस, फेर ये बता, कहाँ ले आवत हस?’’
मंय ह खुमान सर के ’कहाँ ले आवत हस’ के भाव ल बहुत अच्छा ढंग ले जानथंव।
’कहाँ ले आवत हस’ के मतलब अतिक दिन के बाद तोला आज फुरसत मिलिस? नांदगाँव ले ठेकवा आय म कतका समय लगथे? अतेक दिन लगथे? आत्मीयता प्रगट करे के ये ह खुमान सर के अपन अदा, अपन तरीका हरे। इही ह वोकर मया-दुलार हरे। वो ह आगू किहिस – ’’ले चलव, बइठबोन।’’
ये समय वो ह हमन ल अपन दरबार हाल म नइ लेगिस। ये ’दरबार हाल’ विशेषण ह मोर गढ़ल आय। काबर कि मोर हिसाब ले उँकर बैठक जमाय के तरीका ह अउ उँकर बैठक खोली ह, मोला कोनों राजा-महाराजा के, कोनों सामंत के दरबार हाल ले कम नइ लगय। आज हमन परछी म लगे सोफा म बइठेन अउ गोठबात शुरू होइस।
पद्मलोचन शर्मा ’मुँहफट’ माने जथा नाम तथा गुण। वोकर पटर-पटर ह शुरू होगे। सर के संग फोटू-वोटू घला खिचेन। मंय ह पद्मलोचन ले केहेंव, अब तंय ह अपन अटर-पटर ल बंद कर अउ कुछू काम के बात कर। मंय ह तुँहर गोठबात ल अपन मोबाइल म रिकार्ड करत हंव। अउ खुमान सर के संग हमर ये तरह ले गोठबात होइस। ये गोठबात ह खालिस अनौपचारिक गोठबात आय। पूर्व निर्धारित या पूर्व तैयारी के, पहिली ले तय कोनों साक्षातकार नो हे। चहा-पानी के बाद बातचीत अअइसन ढंग ले शुरू होइस –
पद्मलोचन – ’’सर! आपके जतका गीत हे वो जम्मोमन ह वो समय के छत्तीसगढ़ के नामी साहित्यकार मन के रचना हरे। आज के रचनाकारमन वइसन गीत नइ लिख पावत हें, लिखत घला होहीं त वो मन ह गीत के रूप म संगीतबद्ध हो के आगू नइ आ पावत हें। आज के साहित्यकार मन ले आपके का अपेक्षा हे?’’
खुमान सर – ’’खास बात तो ये हे, जितना भी कंपोजिंग होवत जात हे, जेकर ठिकाना नइ हे, वोमा सुधार लाना चाहिए। अउ सुधार ला करके, छत्तीसगढ़ ल
सुधरे हुए चीज ल प्रस्तुत करना चाही। वोकर से हमर संस्कृति ल लाभ हो सकथे। अइसन मंय ह सोचथंव।’’
पद्मलोचन – ’’अब तो गीत के धुन के ट्रेक ह पहिली बन जाथे। बाद म वोकर अनुसार गीत लिखे जाथे। आपके समय म आप का करव?’’
खुमान सर – ’’ये ट्रेक वगैरह ह का चीज होथे, वो जमाना म जानबे नइ करंव, आज ले। अउ कोनों ट्रेक के बात करे त अकबका जांय सुनइया ह। वास्तव में ये जो ट्रेकवाला बात हे, अभी-अभी बहु…त जादा हो गे हे। अउ वोमा दम हे के नइ हे, येकर बारे में कुछू बोल नइ सकंव। काबर, कुछू बोलहूँ, त दुनिया ह मोरे करा झर्रा के जाही। तेकर ले अच्छा हे, जउन भी करत हें, तउन ल बने समझ-बूझ के करंय। काबर कि संगीत के काम ह विचित्र हे। कोनों दिक्कत झन होय।’’
पद्मलोचन – ’’पहिली जउन गीत-संगीत होवय अउ आज जउन होवत हे, वोमा निश्चित रूप ले बहुत अंतर हे। फेर येमा आप ल कुछू पाजिटिव नजर आथे?’’
खुमान सर – ’’ये मन तो सब होत हे। उम्मीद में खरा उतरे बर आज के बुद्धिजीवीमन ल सामने आना चाहिए अउ वोमन ल कुछू करना चाहिए।’’
पद्मलोचन – ’’आपमन अपन गीत के रिकार्डिंग कइसे करव? लाइव (माने सब झन बइठ के कोनों गीत के धुन बनावव) कि धुन पहिली बना लव अउ बाद म रिकार्डिंग करव?’’
खुमान सर – ’’दुनों प्रकार ले होवय। लाइव घला होय अउ अभी जइसन होवत हे तइसनों घला होय। फेर लाइव ह जादा पावरफूल रहय। अइसे मोर अंदाज हे।’’
पद्मलोचन – छत्तीसगढ़ी गीत संगीत म पहिली पारंपरिक वाद्य यंत्रमन के प्रयोग होवय अउ अब नवा-नवा वाद्य यंत्रमन के प्रयोग होवत हे ……..’’
खुमान सर – ’’नुकसान हे। ये जो हे, नवा प्रकार के वाद्य यंत्र, जेकर हमर संस्कृति ले कोई लेना-देना नइ हे, अच्छा लागही करके वोला जोड़ देय गे हे, अइसे मोला लागथे।’’
पद्मलोचन – ’’आप छत्तीसगढ़ म हारमोनियम के पर्याय बन चुके हव। हारमोनियम ल पकड़े के पीछू का कारण हे?’’
खुमान सर – ’’वोला मंय नइ जानव। ….’’
पद्मलोचन – ’’रूचि के आधार म होय हे?’’
खुमान सर – ’’रूचि के आधार में वो ह होय हे।’’
पद्मलोचन – ’’हारमोनियम के अलावा घला आप कुछू बजाथव?’’
खुमान सर – ’’पहिली चिकारा बजावत रेहेंव, मदराजी ल देख के। मदराजी ह चिकारा बजावत रिहिस। विही ल देख के महूँ ह चिकारा बजाय के शुरू करेंव। लेकिन जो चिकारा में दम हे, वो हारमोनियम में नइ हे। (मोर डहर देख के) कइसे कुबेर जी।’’
कुबेर – ’’हमला वोकर बारे म जानकारी नइ हे। पहिली हम फिल्मी गीत सुनन। वोमा चिकारा तो बजेच। वायलिन। वोकर बिना तो गीत नइ बने?’’
पद्मलोचन – ’’आजकल के लोक संगीत म …।’’
खुमान सर – ’’नइ बजांय।’’
पद्मलोचन – ’’कोन व्यक्ति ले आप ल प्रेरणा मिलिस?’’
खुमान सर – ’’सबले पहिली नाव मदराजी के हे। वोकर ले प्रेरणा मिलिस। काबर कि हम वोकरे परिवार के आदमी आवन। वो ह जो कुछ भी देय के कोशिश करिस हमन ल, वोला वो ह खुदे नइ जानय। त हमला वो ह का दिस?’’
पद्मलोचन – ’’मदराजी ह?’’
खुमान सर – ’’हाँ।’’
पद्मलोचन – ’’रवेली मदराजी महोत्सव, जउन ह छत्तीसगढ़ म अपन पहिचान बना चुके हे, येकर प्रेरणा आप ल कइसे मिलिस?’’
खुमान सर – ’’वइसे काई बात नइ रिहिस हे। छत्तीसगढ़ी नाचा, छत्तीसगढ़ में होवत रिहिस हे, चाहे वो ह मड़ई के नाव से (मड़ई के अवसर म) होय, चाहे शादी के नाव से होय, किसी भी नाव से होय, वो ह होवत रिहिस हे। वोला वृहत्त रूप देय के काम हमन करे हवन। वोमें कन्हारपुरी के कुछ गुनी मन घला शामिल हवंय। आजकल के मन नहीं, वोमन सब गुजर गें।’’
कुबेर – ’’वो निर्मलकर रिहिस हे न, का नाव रिहिस हे …. ?’’
खुमान सर – ’’रामलाल।’’
कुबेर – ’’हाँ, रामलाल।’’
खुमान सर – ’’भक्त रिहिस वो ह छत्तीसगढ़ी संस्कृति के, अउ मदराजी दाऊ के। अउ कन्हारपुरीवाले … भक्त हरे वो ह।’’
पद्मलोचन – ’’नवा पीढ़ी के कलाकार मन ल आप का संदेश देना चाहत हव?’’
खुमान सर – ’’हमर सांस्कृतिक चीज के अध्ययन करंय। वोला जानंय। अउ अच्छा-अच्छा चीज ल हमन ल पेश करंय। ताकि छत्तीसगढ़ी संस्कृति ह फले-फूले।’’
पद्मलोचन – ’’आप ल अपन कोन गीत ह जादा पसंद हे?’’
खुमान सर – ’’वइसे कोई बात नइ हे कि फलाना गीत ह मोला जादा पसंद हे। वइसे कोई बात नइ हे। काबर कि हमर पैदा करे सबे चीज ल हमला मया करना लाजिमी हे। ये दे ह मोला जादा अच्छा लागथे कहना उचित नइ हे।’’
कुबेर – ’’एक बार आप केहे रेहेव जी, ’फुल गे, फुल गे, चंदैनी गोंदा’, मोला जादा पसंद हे।’’
पद्मलोचन – ’’टाइटिल गीत?’’
खुमान सर – ’’हूँ …. का केहेव आप?’’
कुबेर – ’’एक बार आप केहे रेहेव, ’फुल गे, फुल गे, चंदैनी गोंदा’, गीत ह मोला जादा पसंद हे।’’
खुमान सर – ’’हमर छत्तीसगढ़ी में जतका भी गीत-संगीत हे, वो सब गोंदा फूल सरिख चमकनेवाला हे।’’ (अर्थात् मोर बर सबे छत्तीसगढ़ी गीत मन ह ’फुल गे, फुल गे, चंदैनी गोंदा’, समान हे।)
कुबेर – ’’रिगबिग ले।’’
खुमान सर – ’’रिगबिग ले। अउ वोकर कारण प्रभाव ह, हार्दिक प्रभाव ह, वोकर कोती झुके हावय। आज भी कोई चंदैनी गोंदा ल टोर के कोनों फेंक देही, तो बहुत तकलीफ होथे मोला।’’
पद्मलोचन – ’’बचपन म चंदैनी गोंदा के मंच म मंय ह सुने रेहेंव, एक झन आदमी ह आप ल चंदैनी गोंदा म भड़कीला गीत बजाय बर पूछे रिहिस। आप एकदम मना कर देय रेहेव। चंदैनी गोंदा के स्क्रिप्ट म कोनों बदलाव नइ लाय के कोई कारण हे?’’
खुमान सर – ’’वो ह शुरू ले ही हृदय में बसे हावय। वो ह वहाँ से निकलना, या वोला निकालना, बड़ मुश्किल हे।’’
कुबेर– ’’दाऊ रामचंद्र देशमुख के समय म चंदैनी गोंदा के मंच म छत्तीसगढ़ के जनता के शोषण अउ जनता ल जागरूक करे के नाटक होवय। अब तो खाली गीत-संगीत होथे।’’
खुमान सर – ’’राम चंद्र देशमुख ह संगीत के बारे में बहुत कम जानत रिहिस। सलाह देय में बहुत पावरफूल रिहिस हे वो ह। वोकर बताय अनुसार हमन बहुत अकन काम ल प्रेरित होके करे हवन। वोकर बारे में कुछ कहना मुश्किल हे। बहुत पावरफूल आदमी रिहिस हे वो ह।’’
कुबेर – ’’आपमन ले गोठबात करके आनंद आ गे। हमला समय देव, हमर सवाल मन के जवाब देव तेकर बर धन्यवाद। बहुत-बहुत आभारी। अब जाय के इजाजत देवव’’
खुमान सर ह किहिस, ’’बइठो। चहा पी के जाहू।’’ अउ वो बहू मन ल, चहा अउ भजिया बनाय के आदेश जारी कर दिस। हमन क्षमा मागेन अउ बहूमन ल मनाकर देयेन।
खुमान सर ह कहिथे, ’’तब जाहू? ठीक हे। अइसने आवत रेहे करव। हमू ल बने लागथे।’’
ये तरह ले भेट पैलगी करके ’खुश रहव’, के आशीर्वाद पायेन अउ बिदा होयेन।

श्रुत लेखन – कुबेर

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शिवरात्री मनाबो –महादेव में पानी चढाबो

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शंकर भगवान ल औघड़ दानी कहे गेहे। काबर पूजा पाठ करे के सबले सरल विधि एकरे हे। अऊ बहुत जल्दी खुस होके वरदान भी देथे। शंकर भगवान ल भोला कहिथे त सीरतोन में भोलेच भंडारी हरे। शिवरातरी के दिन एकर बिसेस पूजा पाठ करे जाथे। फागुन महीना में अंधियारी पांख के चौदस के दिन शिवरात्री ल मनाय जाथे। कहे जाथे की इही दिन शिव जी ह तांडव करके अपन तीसरा आंखी ल खोले रिहिसे अऊ पूरा ब्रमहांड ल समाप्त कर दे रिहिसे। एकरे पाय ए दिन ल महाशिवरात्री या कालरात्री भी कहे जाथे। कोई कोई काहनी में माने जाथे के भगवान शंकर के बिहाव ह इही दिन होइस हे।
शंकर भगवान के रुप ह निराला रहिथे। अपन हाथ गोड़ में राख ल पाऊडर बरोबर चुपरे रहिथे। गला में नाग सांप के माला, कान में बिच्छी के कुंडल, कनिहा में बघवा के छाला अऊ नंदी बैला के सवारी रहिथे। शिव जी ह अपन भक्त मन उपर जल्दी खुस हो जथे अऊ तुरते वरदान देथे।

पौरानिक कथा – एक बार एक शिकारी ह शिकार करे बर जंगल में जाथे। शिकार करत करत वोला रात हो जथे अऊ रसता भटक जाथे। त वोहा अराम करे बर एक ठन बेल के पेड़ में चढ़ जथे। वो शिकारी ह रात भर जागत जागत बेल पत्ता ल टोर टोर के खाल्हे में फेंकत जाय। पेड़ के खाल्हे में एक ठन शिवलिंग रखाय रिहिसे। बेल के पत्ता ह उही शिवलिंग में गिरत रिहिसे। वो दिन शिवरात्री रिहिसे। एकर से शिव जी ह भारी खुस होगे अऊ शिकारी के कलियान बर वरदान दीस।
एक अऊ कथा में आथे की एक मंदिर में सोना के घंटी बंधाय रहिथे। रात में एक झन चोर ह चोरी करे बर जाथे। वो घंटी ल निकालना चाहथे लेकिन ओकर हाथ ह घंटी तक अमरात नइ राहे। तब वोहा शिवलिंग के उपर चढ़गे अऊ घंटी ल निकाले लागीस। शिवलिंग उपर चढ़ीस त शंकर भगवान परगट होगे अऊ वरदान मांगे बर बोलीस। तब वो चोर डररा जथे अऊ बोलथे के मेंहा तो तोर पूजा पाठ कुछु नइ करे हों भगवान, अऊ मोर ऊपर कइसे खुस होगेस। तब भगवान बोलथे के सब आदमी आथे अऊ मोर ऊपर फूल पान नरियर भर चढ़हाथे , लेकिन तेंहा तो अपन पूरा शरीर ल चढ़हा देस। एकर से मेंहा खुस हों। अइसे बोल के वोहा चोर ल वरदान दीस अऊ चोर के गरीबी दूर होगे।
ए परकार से शंकर भगवान ह जल्दी खुस होके वरदान देवइया हरे। शिवरातरी के दिन जेहा भी सच्चे मन से पूजा पाठ करथे ओकर मनोकामना जरुर पूरा होथे।

ॐ नम: शिवाय ।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला – कबीरधाम (छ. ग)
पिन- 491559
मो.- 8602407353
Email -mahendradewanganmati@gmail.com

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दिनेश चौहान के छत्तीसगढ़ी आलेख- सेना, युद्ध अउ सान्ति

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हमर देस के जम्मू कास्मीर राज के पुलवामा जिला म 42 ले जादा जवान के शहीद होय के बाद पूरा देस म सेना अउ युद्ध के चर्चा छिड़े हे। पूरा देस जानथे के भारत म होने वाला जम्मो आतंकवादी हमला म पाकिस्तान के हाथ हे। पाकिस्तान हमर वो पड़ोसी देस हरे जउन आजादी के पहिली भारत के हिस्सा रिहिस। अंगरेज मन हरदम फूट डाल के राज करिन अउ जावत-जावत देस के दू टुकड़ा कर दिन। ये बँटवारा धरम के नाँव ले के करे गिस। बँटवारा के बाद दुसमनी खतम हो जाना रिहिस फेर अइसन नइ होइस दुसमनी अउ बाढ़ गे। पाकिस्तान के एके उद्देस्य रहि गे हे के भारत ल नीचा देखाना। एखरे सेती वो कभू युद्ध छेड़ देथे तौ कभू समय-कुसमय आतंकवादी घटना करवावत रहिथे।

पुलवामा आतंकवादी घटना म घलो पाकिस्तान के हाथ होना साबित हो गे हे फेर पाकिस्तान वोला माने बर त इयार नइ हे। एखरे सेती हमर वायु सेना एयर अटेक करिस। तब जाके पाकिस्तान के आँखी उघरिस। बाद म दुर्भाग्य ले हमर वायुसेना एक झन वाइस कमाण्डर अभिनंदन वर्धमान ह पाकिस्तानी सेना के कब्जा म आ गे। पाकिस्तान के ये हरकत के दुनियाभर म थू-थू होय लगिस अउ भारत के कूटनीतिक दबाव बनिस तौ अभिनंदन वर्धमान ल ससम्मान वापिस लौटाना परिस। ये बीच म पूरा भारत म युद्ध अउ पाकिस्तान ऊपर हमला के माहौल बन गे। जिहाँ युद्ध के समर्थन म बहुमत दिखिस उहें सान्ति के समर्थक मन घलो चुप नइ बइठिन। सोसल मीडिया म अपन-अपन पक्ष म समर्थन अउ विरोध आजो चालू हे।
भारत अउ पाकिस्तान के बीच चार युद्ध लड़े जा चुके हे । फेर कोनो ये दावा के साथ नइ कहि सकय के युद्ध ले समस्या के निराकरन होइस अउ कोई प्रकार के लाभ होइस। आज फेर ये सोच लेना के युद्ध ले समस्या हल हो जाही कोनो बुद्धिमानी के बात नइ होही। समस्या के हल बातचीत ले ही निकल सकथे। सान्ति प्रक्रिया कोनो सीमित कार्यवाही नइ होय। एखर बर लगातार अउ हमेसा प्रयासरत रेहे ल पड़थे। युद्ध हमेसा अउ लगातार न इ लड़े जा सके। युद्ध ले सान्ति इस्थापित होय के दुनिया म एक भी उदाहरण नइ मिलय। युद्ध के परिणाम तबाही अउ विनास के छोड़ दूसर नइ होय।
बहुत झन सवाल करथे- कोई बार-बार हमर ऊपर हमला करत राहय तौ का तभो हम सान्ति पाठ करत राहन?

एखर जवाब हे-दुसमन के हमला ले बचाव करना अउ युद्ध छेड़ना दूनों अलग-अलग बात हरे। दुसमन ले बचाव अउ बिरोधी सेना के अतलंग हरकत ले बचाव करे बर हथियार तो उठाय्च् ल परही। वोला सबक सिखायेच् बर तो सीमा म सेना तैनात करे जाथे। वो समय दुसमन ल मुँमतोड़ जवाब देय बर सेना ल सरकार के परमीसन लेय के जरूरत नइ राहय। देस म सेना अउ हथियार एखरे सेती जरूरी हे। सेना अउ हथियार के उद्देश्य युद्ध छेड़ना नइ अपन आत्मरक्षा होथे। फेर युद्ध बिना सरकार के परमीसन के नइ छेड़े जा सकय। आतंकवादी अउ घुसपैठी मन ल मारे म कोनो मनाही नइ हे। एखर बर युद्धोन्माद फैलाय के घलो कोई जरूरत नइ हे।
आवव हमन युद्धमुक्त अउ सान्ति ले भरपूर दुनिया बनाय बर आगू बढ़न। हमर देस तो विश्वगुरु हरे। हम तो अहिंसा के बल म आजादी हासिल करके दुनिया म मिसाल कायम करे हन। का अब हम वो रस्ता ल छोड़ दन?
दिनेस चौहान

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हिसार म गरमी

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चालू होवत हवय गरमी, जम्मो लगावय डरमी कूल।
लागथे सूरज ममा हमन ल, बनावत हे अप्रिल फूल।।

दिन म जरे घाम अऊ, रतिहा म लागथे जाड़।
एईसन तो हवय संगी, हरियाणा म हिसार।‌‌।

कोन जनी का हवय, सूरज ममा के इच्छा‌।
जाड़ अऊ गरमी देके, लेवय जम्मो के परीक्क्षा।‌।

मोटर अऊ इंजन के खोलई, होवत हवे आरी-पारी।
पना-पेंचिस के बुता म, मजा आवत हवय भारी।।

टूरा ता टूरा इहाँ, नोनी मन घला मजा उठावत हे।
अऊ जादा होवत हवय, ताहन मुहुँ ल फुलावत हे।।

इंजन के पढ़ई म, अजय सर के हँसी-ठिठोली।
बड़ा निक लागे ओखर, छत्तीसगढ़ी म बोली।।

फेर चालू होईस हमर, इलेक्ट्रॉनिक के कक्छा।
राम सर के निक पढ़ई, होईस पढ़े के इच्छा।।

बरथे कइसे लट्टू टेक्टर म, तहू ल बताईस।
स्टाटर अऊ बेटरी ल घलो, खोल के दिखाईस।‌।

होली के दिन म खेलेन जम्मो, चिखला संग म गुलाल।
जम्मो के मुँहु धो-धो के, होगे रिहिस लाले लाल।।

ऐखर बाद क्लच अऊ, बेरेक ल समझाईस।
कइसे करबो टेक्टर कन्ट्रोल, तेला घलौ बताईस।।

आंध्रा के भास्कर सर, अऊ इँहा ले सर अरविंद।
दोनों झन के पढ़ई ले, भाग जाथे जम्मो के नींद।।

आज जम्मो झन टेक्टर ल, बने-बने चलावत हवन।
अट्ठो आठ जइसन चलाके, जम्मो मुचमुचावत हन।‌।

सुकरार के बिहिनिया ले, पावर टिलर ल भगायेन।‌
कउनो कउनो त भोरहा म, रूख म घलो टेकायेन।‌।

चाय पियई छोड़ टेक्टर ल, कालोनी म दउड़ायेन।‌
मजा लेके चक्कर म, काँटातार म घला झपायेन।‌।

ताहन नाँगर संग मा होईस, टेक्टर के मुलाकात।‌
पीछू भागिस, जब एक्सीलेटर म परिस लात।‌।

आठ-दस दिन म जम्मो संगी, अपन घर चले जाबो।‌
एक-दूसर मन के संगी, सूरता करतेच रही जाबो।‌।

एखर बाद कभू हमन, मिल पाबो कि नी मिल पाबो।‌
हिसार के ये गोठ ल, कभू नी भुलाबो।‌।

“राज” ल सूरता राखहू, इ़ँहा ले जावत जावत।
बैरी-दुश्मनी ल भुलाके, तुमन रहू मुचमुचावत।।

दिल म समा जाही हमर, दोस्ती के निसानी।‌
बड़ सुरता आही संगी, बीते संझा के कहानी।‌।
बड़ सुरता आही….‌‌।।

पुष्पराज साहू “राज”
छुरा (गरियाबंद)

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सिवनी (नैला) के चैत नवरातरी के संतोषी मेला

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छत्तीसगढ़ म मेला ह हमर समाज संसकिरिती म रचे-बसे हावय जेखर कारन येखर हमर जीनगी म अब्बडेच़ महत्तम रखथे। माघी पून्नी ले जम्मों छत्तीसगढ़ म मेला भराये के सुरू हो जाथे। चाहे वोह राजीम के मेला हो, चाहे शिवरीनारायन के मेला, चाहे कोरबा के कंनकी मेला, चाहे कौड़िया (सीपत) के मेला, चाहे पीथमपुर (चांपा), चाहे सिवनी (नैला) जांजगीर के संतोषी मेला होवय।
मेला के मतलब मोर अनुसार मेला-मिलाप एक माध्यम हावय। काबर के मेला बर गांव के छोटे से छोटे किसान से ले के बड़का किसान मन तक अपन बेटी मन ल, अपन सगे-संबंधी मन ल मेला बर लेहे-नेवते जाथे। अउ एक तरह से मेला ह छोटे-बड़े के भेद-भाव घलो ल मिटाय के सुघ्घर माघ्यम हाबय। मेला एक बछर म एकेच बार लगथे। एकर कारन एकर आउ जादा महत्तम हाबय। छत्तीसगढ़ म मेला उहे लगथे जहां भगवान के प्रति विशेष महत्तम अस्थान हाबय। यानि के जिहां देवता विराजित है उहां बने भक्ति-भाव से चाहे ओ हा तीन दिन के मेला होवय, चाहे पांच दिन के, चाहे नव दिन के। जेतका दिन के मेला ओ गांव के लोगन मन निश्चित करे हाबय तकता दिन तक मेला ह भराथे। ये सब मेला म सिवनी(नैला) के संतोषी मेला के अलगेच अस्थान हाबय अउ शायद पूरा छत्तीसगढ़ म ये मेला ह अपन अलग रूप म पहिचाने जाथे काबर के ए मेला ह चैत नवरात्रि से सुरू हो के नवमीं तक रईथे। अउ माता संतोषी के विधि-विधान से पूजा पाठ करे जाथे। साथ ही मेला भराथे जेमा लोगन मन माता के दर्शन के बाद घूमे जाथे अउ अपन-अपन जरूरत के हिसाब से समान घलो लेथे। लोगन मन सादी-बिहाव के खरीददारी घलो इहां ले करथे। आनी-बानी के खाये के जिनीस जेमा छत्तीसगढ़ के परसिध उखरा-चना के संगे-संग चना चरपटी खाय के अगलेच मजा हावय। एखसंग झूला अउ टूरिंग टाकिज घलों मनोरंजन के साधन रईथे।
जिला मुख्यालय जांजगीर-चांपा ले मात्र 6 कि.मी. दुरिहा म नैला-बलउदा रद्दा के बीच म पड़़ते मॉं संतोषी के धाम सिवनी (नैला) मोर ममा दाई के गांव। जहां विराजे हे मॉं संतोषी। हिंदू नव बछर चैइत नवरात्रि म मोर जानत म छत्तीसगढ़ भर म केवल इहे के संतोषी मंदिर म नव दिन तक जोत जलथे अउ मेला भी भराथे अउ कुआंर नवरात्रि घलो म जोत जलथे। मॉं संतोषी के परति मनखेमन के मन म अपार आस्था हाबय। तभे तो इहां दूरिहा-दूरिहा ले मनखे मन अपन मनो कामना ले के आथे अउ ओमन के मनोकामना मॉं ह जरूर पूरा करथे मॉं संतोषी ह। भक्त मन भूईयां नापत इहां पहुंचते। पिछू पैतालीस बछर ले इहां मेला भरात आवथे। मंदिर के भीतर म मर्ॉ संतोषी के मूरती हावय अऊ ओखर चारो मुड़ा म नव दुर्गा के मूरती भी अस्थापित हाबय। मंदिर के दुआरी म बजरंग बली के मूरती हे अउ मंदिर के सामने म बिसालकाय कालभैरव जी के मूरती हावय।

प्रदीप कुमार राठौर ’अटल’
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला-जांजगीर चांपा
(छत्तीसगढ़)

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राम जन्म : सबके बिगड़े काम सँवारथे श्रीराम

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तुलसीदास हा रामचरित मानस लिखके,गाके अपन जिनगी ला तो सँवारिस अउ संगे संग कलियुग के राम नाम लेवाइया मन के बिगड़ी ला बना दिस।हर कल्प मा राम हा उँखर नाम लेवइया मनके उद्धार करे हे,भाग्य सँवारे हे। प्रभु राम के नाम जपत अहिल्या ला एक जुग पखरा बने बीतगे रहिस।ओकर गृहस्थी हा थोकिन गल्ती मा बिगड़ गे।राम जब ऋषि विश्वामित्र के संग जावत रहिस तब ओकर उद्धार करिस।भीलनी शबरी के जिनगी घलाव बिगड़े रहिस वहू हा अबड़ बच्छर ले राम नाम लेवत रद्दा जोहत रहिस।आखिर मा राम प्रभु उनला दरस देखिके जीनगी ला पबरित करके ओकरो बिगड़ी बना दिस।नवधाभक्ति के ज्ञान दिस। सुग्रीव के बिगड़े गृहस्थी ला राम जी हा सँवारिस हे।बिना गल्ती के भाई हा बैरी बनगे, सुखी गृहस्थी हा छुटगे,परिवार ले अलग रहेबर बिवस होगे।धन ओ ऋषमुख परबत जिहाँ श्राप के सेती बालि नइ जा सकय नइते ओला भाई के हाथ मा मरे बर परतीस।बालि ला मार के सुग्रीव के डर ला भगाईस पाछू प्रभु राम से सुग्रीव के मितानी होगे , ओकरो बिगरे गृहस्थी ला सँवार दिस।



अइसने देव ऋषि दधिची के बिगड़ी ला बना दिस।देवता अउ राक्षस मन के लड़ई बेरा तपस्वी ऋषि दधिची हा देवता मन के गोहार सुनके अपन हाँड़ा ला धनुष अउ वज्र बनाय बर देय रहिस।देवता मन जब लड़ई जीतिस ता धनुष ला शंकर भगवान राख लिस।उही धनुष त्रेताजुग मा मिथला के राजा जनक के घर मा रहिस। हर युग मा प्रान के स्थान अलग अलग बताय गे हवय।जइसे सतजुग मा हाँड़ा, त्रेता मा रकत, द्वापर मा मास, अउ कलजुग मा अन्न। ऋषि दधीचि के प्रान धनुष मा अटके अबड़ बच्छर होगे।प्रभु राम जब धनुषयज्ञ मा धनुष तोड़िस तब ऋषि ला मुक्ति मिलिस।




केंवट के जिनगी के संगे संग ओकर निषाद राजा, परिवार, गाँव के सबोझन के बिगड़ी प्रभु राम बना दिस। गिद्धराज जटायु जौन निरबंशी हँव कहिके राजा दशरथ करा अपन बेटा ला दे देते कहिके गोहार करे गय रहिस। 14 बच्छर के वनवास के आखिरी बेरा मा जब डोकरा होगे रहिस, तब ओकर डेना ला रावन काट दे रहिस, जब घायल होके पीरा खावत परे रहिस तब सीता ला खोजत प्रभु राम रद्दा मा पीरा खात जटायु ला देख के ओकरो उद्धार करिन अउ बेटा बनके ओकर चिता ला आगी दिन अउ पिंड दान करिन।



विभीषण हा श्रापा के सेती राक्षस कुल मा जनम धरे रहिस फेर ओहा हरदम राम नाम लेवत रहिस।लंका मा राक्षस के बीच मा जीयत ओकर जिनगी नरक बरोबर बनगे रहिस।ओकर भाई रावण हा ओकर समझाय ला नइ मानिस उपर ले लात मार के देस निकाला कर दिस। प्रभु राम ओकरो बिगड़ी ला बनाइस अउ ओला लंका के राजा बना के जिनगी सँवार दिस। सोना के लंका ला तियागना छोटे मोटे काम नोहय।




राम प्रभु हा सबके उद्धार करे बर धरती मा अवतार लेय रहिस। देव, दनुज, किन्नर, गंधर्व, धरती, नाग, गाय ,सबके उद्धार करिन।तुलसीदास बाबा हा रामचरित मानस ला लिखके कलयुग के करोड़ो मनखे उपर किरपा कर दिन। आज तो भारत देश के राजनीति मा घलाव श्रीराम के नाम ले सत्ता के डोगा मा चढ़के पार लगा लीन।ओकरे सेती कहे जा सकत हे राम सबके भाग्य सँवारथे।

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा, गरियाबंद


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बियंग : लहू

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लोकतंत्र के हालत बहुतेच खराब होवत रहय। खटिया म परे परे पचे बर धर लिस। सरकारी हसपताल म ये खोली ले ओ खोली, ये जगा ले वो जगा किंजारिन फेर बने होबेच नी करय। सरकारी ले छोंड़ाके पराइवेट हसपताल म इलाज कराये के, काकरो तिर न हिम्मत रहय, न पइसा, न समय, न देखरेख करे बर मनखे। बपरा लोकतंत्र हा लहू के कमी ले जूझत हसपताल के एक कोंटा म परे सरत बस्सावत रहय। तभे चुनाव के घोसना होगे। जम्मो झिन ला लोकतंत्र के सुरता आये लगिस। चरों मुड़ा म खोजाखोज मातगे के लोकतंत्र कतिहां हे ? हसपताल म पोट पोट करत लोकतंत्र ला देख, हरेक मनखे ओकर अइसन हालत बर, एक दूसर ला जुम्मेवार ठहराये लगिन। येमन अभू कइसनो करके लोकतंत्र ला फिर से ठड़ा करे के भरोसा देवइन। लोकतंत्र के लहू अतका कमतियागे रहय के, बपरा हा सांस नी ले सकत रहय। ओला तुरते लहू चइघाये के आवसकता परगे रहय।



लहू देबर कतको मनखे आगू आगिन। हरेक मनखे अपन लहू देके लोकतंत्र ला बचाये के सनकलप करे लगिन। लोकतंत्र ला लहू चइघाये के पहिली लहू मेच करना जरूरी रिहीस। बारी बारी ले मनखे मन अपन अपन लहू के सेमफल दे लगिन। पहिली दिन पूजा इसथल के मनखे मन, अपन लहू हा सबले पबरित आय कहिके, हसपताल के आगू म, लहू मेच कराके दान करे बर लइन लगगे। मेच सुरू होगे। फेर लोकतंत्र के बड़ दुरभाग्य रिहीस। काकरो लहू हिंदू निकलगे, काकरो मुसलमान। काकरो इसाई निकलय, त काकरो हा सिख। फेर मेच हो सकइया, भारतीय लहू, एको झिन के नी निकलिस।




दूसर दिन दूसर किसिम के मनखे मन लहू देबर लइन लगइन। काकरो लहू के ग्रुप मेच नी करिस। लोकतंत्र के लहू के ग्रुप हा ओ प्लस रहय। जतका झिन दे बर सकलाये रिहीन तेमा कन्हो के ओ प्लस नी निकलिस। जम्मो झिन के एबी ग्रुप निकलिस जेहा सिरीफ लेवइया ग्रुप आय देवइया नोहे। जेकर ग्रुप कन्हो काल म मिलीच जाय त यहू म लफड़ा हो जाय। ओकर मन के लहू के रंग, थोक थोक बेर म, कपड़ा ओढ़ना कस, लीडर बदलते साठ, बदल जाय। कन्हो कन्हो मनखे मन चलाकी करके, सिरीफ नाव कमाये बर, अपन लहू के ग्रुप ला, अपन परभाव देखाके, ओ प्लस लिखवा डरिन। फेर आगू के जांच म पता चलिस के, अइसन लहू के भितर स्वेत रक्त कणिका के जगा, स्वेत झूठ कनिका के भारी मातरा रहय। ये रक्त कनिका हा अपन सरीर के भितरी के बिमारी ले नी लड़य बलकी, दूसर मनखे ला बिमार बनाके लड़वा देवय। अइसन लहू ला लड़ केनसर के बिमारी घेरे रहय। काकरो लहू म, हीमोग्लोबिन के जगा लूटोग्लोबिन के मातरा बहुतायत म पाये गिस। प्लेटलेट के जगा, लालचलेट के कण कीरा कस बिलबिलावत रहय। कतको लहू म भरस्टाचार के बिसाणु रहय त, कतको म बईमानी के कीटाणु। दूसर दिन घला लहू नी मिल पइस लोकतंत्र ला।



तीसर दिन, तीसर परकार के मनखे मन अपन लहू देबर लइन लगइन। इंकर लहू के ग्रुप ओ प्लस रिहीस फेर अतेक पतला के पानी असन। भूख गरीबी अऊ लाचारी लहू के हरेक बूंद म हीमोग्लोबिन बनके छा जाये रहय। परेम अऊ भाईचारा म रहवइया जीव म, अपन बिमारी अऊ बेकारी ले लड़त लड़त, स्वेत रक्त कनिका सिरा चुके रहय। प्लेटलेट हा इंकर हिम्मत कस अतका कमतियागे रहय के, कटे फिटे ले लहू के थक्का नी जमय बलकी, धारे धार आंखी डहर ले आंसू बनके लहू हा निथर जाय। इंकर लहू के एक अऊ खासियत निकलगे के, जेकर लबारी के मिठ मिठ बात म फंस जाये तेकरे कस, लहू के रंग बदल जाय। लोकतंत्र ला लहू नी मिलिस। एकदमेच छटपटाये लगिस।
तभे दूसर देस के आतंकवादी मन देस उपर हमला कर दिस। देस के सुरकछा करइया जवान के लहू, जइसे धरती म गिरिस तइसने, इही लहू हा बिगन कन्हो मसीनी उपाय के, लोकतंत्र के देंहें म रग रग रग रग दऊंड़े लगिस। लोकतंत्र के देंहे म गरमी आगे। खटिया ले उठके बिगन काकरो सहायता के अपने अपन खड़ा होगे लोकतंत्र हा।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा

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धुरसा-मुरमुरा के झरझरा दाई

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जिला मुख्यालय गरियाबंद से लगभग 60-65 किलोमीटर के दुरिहा में बसे नानकुन गाँव धुरसा-मुरमुरा,ये गाँव जंगल के तीर मा बसे हे।अउ इही गाँव के डोंगरी में दाई झरझरा अपन सुग्घर रूप ला साज के डोंगरी भीतर डेरा लगाके बइठे हे।जेनला लोगन मन दाई झरझरा रानी के नाव से मानथे।अउ डोंगरी के तीर मा बसे जम्मों गाँव के मनखे मन जुरीया के दाई के पुजा पाठ करथे।अउ लोगन मन के मानना हे की ये दाई झरझरा रानी हा दाई जतमाई के परथम रूप आय।ये क्षेत्र के लोगन मन मानथे की दाई जतमाई हा सबले पहेली इही डोंगरी मा बिराजे रीहीन।ओखर बाद ये जघा ला छोंड़ के दाई जतमाई हाँ कुसुम पानी-गायडबरी मा जाके बिराजे हे।
तब ले लोगन मन ये जघा ला दाई झरझरा डोंगरी के नाव ले जानथे।




अउ ये जघा हा हरियर-हरियर रुख राई जंगल झाड़ी ले सजे हे।जिहाँ बरो महिना जुड़ पुरवइया चलत रथे।अउ लोगन मन ये जघा मा पिकनिक पारटी मा जाके सुग्घर आनंद लेथे। चइत अउ कुँवार के नवरात परब मा सैंकड़ों भक्त मन अपन मनोकामना पुरा करे बर सैकड़ों जोत जलाथे।अउ बताय जाथे की दाई के दुवारी ले कोनो भगत खाली हाँथ नइ लहुटे।दाई के दुवारी में सब अपन मनोकामना पाथे। दाई के महीमा बहुँत निराली हे। अउ झरझरा समिति के डाहर ले दोनों नवरात परब मा नव दिन ले भण्डार घलो रथे जेकर ले अवइया जवइया भक्तन मन माता के परसाद पाके अपन घर जाथे,अउ सुख शांति पाथे।



अउ आठ दिन नवरात ले माता रानी के दुवरीया मा दिन अउ रात ले माता के जस सेवा गुंजत रथे अउ मांदर के थाप में सब भक्त मन माता के सेवा बजाथे। अउ ये झरझरा दाई के दुवारी मा बहुँत सुंंदर झरना घलो चलथे लगभग 10-12 फीट के उँचाई ले झरना गिरथे जेमा क्षेत्र के लोगन मन असाढ़ महिना ले लेके कुँवार कातिक महिना तक झरना के आनंद लेथे। अउ झरना के खालहे मा एक अचरित शिलालेख हावे जेन ला आज तक होगे बड़े से विद्वान मन आगे हे ओला पढ़े बर फेर कोनो नइ बता सकिन शिलालेख में का लिखाय हे,लोगन मन येला दाई झरझरा रानी के देन चिन्हा मानथे। अउ शिलालेख के थोकिन अउ खालहे कोती पथरा के बीचों-बीच एक ठिन गड्ढा हे जेमा बताय जाथे बारो महिना पानी रेहे रथे जेमा जंगल के अवइया जवइया मनखे अउ जंगली परानी मन अपन पियास ला बुझाथे।अउ दाई झरझरा के दुवारी मा बइठ के सुरताथे।



अउ दाई झरझरा के दुवारी मा बघुवा भालु मन के बसेरा हे,जेनला लोगन मन माता के रखवार कथे माता के संगवारी बताथे। अइसन सुग्घर कहिनी हे दाई झरझरा रानी के।अउ दाई कर जतेक मनोकामना माँगथे सब के मनोकामना ला दाई झरझरा रानी हा पुरा करथे।

गोकुल राम साहू
धुरसा-राजिम (घटारानी)
जिला गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
मों.9009047156

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करसी के ठण्डा पानी

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गरमी के मउसम अउ सुरूज नरायन अंगरा बरोबर तिपत हे। गरमी बरसात अउ ठण्डा के मउसम एक के पाछु एक आथे एहा जुग जुग ले चलत हे। फेर आजकल के मउसम बदले के समय हा घलो परिवरतन हो गे हे। आधुनिकता, उदयोग अउ बाढ़त परदूसन ले मउसम म घलो बदलाव होवत जावत हे। ऐ बदलाव के करइया हम मनखे मन आन। हमर राज म घलो तीनों ठन मउसम के अब्बड़ महत्व हे। बरसात फेर ठण्डा अउ ठण्डा के पाछु गरमी के मउसम आथे। ठण्डा तक तो नदी नरवा अउ कुवां मन लबालब भरे रहिथे। फेर जइसे गरमी चालू होथे, अउ नदी नरवा हा घलो सुखाय लागथे।




नदी नरवा के पानी तो काम बुता के पानी आय, फेर पीये के पानी बर गरमी मा भारी समस्या हो लागथे। कुवां झरना अउ पीये के पानी के सब्बों स्रोत ह घलो सुखा लागथे। फेर आजकाल तो बोर बोरिंग के आय ले पीये के पानी बर घलो समस्या हा दूर होगे हे। गरमी म पीये के पानी हा गरम हो जाथे जेन हा हमर बर समस्या आय। आजकाल तो सहर के संगेसंग गांव मन म घलो कूलर फ्रिज के जमाना आगे हे। जेखर ले मनखे ठण्डा रहिथे, अउ पीये के पानी हा घलो ठण्डा। फेर फिरिज के पानी ला अच्छा नि माने जाय अउ येमा स्वाद घलो नि राहय।




इही गरमी मा ठण्डा पानी बर उपाय आय ‘‘करसी के ठण्डा पानी‘‘। जेखर ले गरमी म तन के संगे संग मन ह घलो जुड़ाथे। अउ करसी के ठण्डा पानी के अब्बड़ महत्ता हे। माटी के करसी के पानी ल षुध्द माने जाथे, जेमा वैज्ञानिक महत्ता घलो छुपे हावय। जेखर ले हमर प्यास हा बुझाथे अउ तन ह जुड़ा जाथे। एक ठन हाना घलो हे-
कुम्हार घर के सुघ्घर करसी, जेमा समाय बिग्यान के कहानी।
तन जुड़ाथे, मनो जुड़ाथे, जब पिबे तैं करसी के पानी।।
ये हाना के मतलब आय माटी के करसी ह कुम्हार घर बनथे। हमन भले नि जानन फेर येमा विग्यान समाय हे जेखर ले करसी के पानी हा ठण्डा रहिथे। प्यास के बेरा म तन ह तो करसी के पानी ले जुड़ाथे संगे संग ठण्डा पानी ले मन ह घलो जुड़ा जाथे। सिरतोन हमर जीवन म ‘‘करसी के ठण्डा पानी‘‘ के अब्बड़ महत्ता हे।

अमित कुमार
गाड़ाघाट-पाण्डुका (गरियाबंद)
7771910692



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छत्तीसगढ़ी संस्कृति म गोदना

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छत्तीसगढ़ी लोकाचार परंपरा म गोदना के अब्बड़ महत्म हे, येला छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी संस्कृति सामाजिक-आर्थिक, धार्मिक सब्बो म बढ़ ख्याति मिले हे, अउ ये पीरा देवइया परंपरा ल सब्बो छत्तीसगढ़िया आदिवासी मनखे मन आजो बड़ खुशी अउ जिम्मेदारी ले निभात आत हे, काबर की गोदना गोदवाना कोनो आसान बात नोहे, गोदना गोदाये के सौउख कराईया मनखे मन ल अब्बड़ पीरा सहेन करे ल लागथे। काबर के गोदना ल गोदे बर देवारिन दाई मन सूजी ल कोचक के मास म होब के गोदना ल गोदथे, जेकर से मनखे के मरत तक ओखर देह म चिनहा बने रहिथे। देंह म अतना सुजी होबो ले खून धलोक निकल जाथे, तेखर सेती गोदना गोदवाना हिम्मत के बुता हवय जेमा अब्बड़ पीरा सहे ल लगथे।
वइसे तो गोदना ल सब्बो मनखे मन गोदवाथें फेर ये ल मनखे ले जादा माई लोगिन मन पसंद करथे। गोदमा म अपन अंग म आनी-बानी के छाप आकृति गोदवाथें। जइसे गाल, गला, ठोड़ी, हाथ, गोड़ अउ सब्बो अंग म गोदना गोदवाथें, येमा चिरइ-चुरगुन, जानवर मन के छाप, देवता-धामी के छापा अब्बड़ महत्व रकथे।


सियान मन बताथें के हमर ये गोदना के परंपरा ह छत्तीसगढ़ के संस्कृति म अब्बड़ जुन्ना हे जेला आजो के बेरा म गांव-गांव म रहइया आदिवासी समाज के मनखे मन निभावत आत हें। वइसे गोदना के परम्‍परा आन जाति मन म घलाव प्रचलित हे फेर ये ह गोड़ जनजाति के मनखे मन के धरोहर ये। येही मन अपन गोदना के परंपरा ल बचा के राखे हे।
गोदना के पौराणिक महत्म धलोक हे सियान मन कहिथे के गोदना के निशान ह मरे के बाद हाड़ा म घलोक पर जाथे, जेन ह परलोज जाये के बाद मनखे के जियत भर के करनी ल जागरित करथे। गोदना ह परलोक म मनखे के हिसाब किताब बताथे। गोदना ल माई लोगिन मन के गहना घलोक कइथे, जेला कभू कोनो चोरा नइ सके ना ही बेचे जा सकय जे ह जियत ले मरत तक संग म रहिथे।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर, बिलासपुर
मो.न- 7722906664

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नंदावत हे अकती तिहार

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अकती तिहार हमर छत्तीसगढ़ अँचल के बहुँत बढ़िया प्रसिद्ध परंपरा आय। ये तिहार ला छत्तीसगढ़ के गाँव-गाँव मे बड़ा हर्सोल्लास के संग मनाय जाथे। बैशाख महीना के अँजोरी पाख के तीसरा दिन मा मनाय जाथे।आज के जुग मा नवा-नवा मनखे अउ नवा-नवा जमाना के आय ले अउ हमर जुन्ना सियान मन के नंदाय ले हमर अतेक सुग्घर तिहार हा घलो नंदावत हे। पहेली के सियान मन अकती तिहार के पहेली ले जोरा करत राहय।अकती तिहार आही ता गाँव के डिही डोंगर ठाकुर दिया में अउ शीतला दाई में दोना में धान चइघाके किसानी काम के सुरू करबो कहिके। अउ अकती के दिन ले किसानी काम ला सुरू करय। अउ आज के जुग मा कतको जघा सुने मा मिलथे के ये दोना चघाय के परंपरा हा घलो नंदावत हे।

अउ हमर छत्तीसगढ़ में अकती तिहार के बहुँत सुग्घर विशेषता घलो हावय। अकती के दिन गाँव मा काम बुता ला बन्द करके एक जघा सब जुरयाथे।अउ माटी के पुतरी-पुतरा के बिहाव घलो करे जाथे। बड़ खुशी के संग बिहाव करे जाथे पुतरी-पुतरा के। एक घर पुतरी ला रखथे अउ एक घर में पुतरा ला अउ बिधि बिधान से बिहाव रचाथे। पुतरा वाला मन पुतरी के घर मा बाजा-गाजा के संग बरात (बिहाय ला) जाथे। अउ पुतरी पक्ष के मन घलो सुग्घर बिधि बिधान से पुतरा पक्ष के मन ला परघाके लाथे।अउ पंडित बलाके पूजा पाठ कराथे।अउ सुग्घर धरम टिकान घलो करथे। अउ सुग्घर गीत घलो गाथे…

कोने तोरे टिकय नोनी,
अचहर पचहर ओ
अचहर पचहर ओ।
कोने तोरे टिकय धेनू गाय,
ये ओ बेटी मोर…
कोने तोरे टिकय धेनू गाय।।

अइसन सुग्घर टिकावन गीत गाथे अउ सुग्घर टिकावन टिकथे। अउ टिकावन के बाद मा सुग्घर सिरतोन के बेटी बरोबर पुतरी के बिदा करथे। अइसन सुग्घर पुतरी-पुतरा के बिहाव करथे। अउ आज के मनखे मन अइसन सुग्घर हमर छत्तीसगढ़ के परंपरा ला भुलावत हे। आज घलो ये परंपरा हा कोनो-कोनो मेर जियँत हे। आप सब से निवेदन करत हँव हमर छत्तीसगढ़ के अइसन सुग्घर रीती रीवाज हमर परंपरा ला जियाँय के प्रयास करव।

गोकुल राम साहू
धुरसा-राजिम(घटारानी)
जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
मों.9009047156

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