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Channel: गोठ बात Archives - gurtur goth
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दुसरो के बाढ़ ला देखना चाही : सियान मन के सीख

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सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे।संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! परेवा कस केवल अपनेच बाढ़ ला नई देखना चाही रे दुसरो के बाढ़ ला देख के खुश होना चाही। फेर हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। ए दुनिया में अइसे बहुत कम मनखे हावय जउन मन ला दूसर के तरक्की बर्दाश्त होथे। देखे जाय तो हमन सहीं मनखे के अउ सहीं काम के जतका विरोध करथन ओतके विरोध कहूं गलत मनखे के अउ गलत काम के करन तब तो ये धरती स्वर्ग बन जाय फेर गलत काम के विरोध करे के ताकत हर आदमी में नई होवय अउ अच्छा काम करना अतेक सरल घलाव नई होवय।
अगर हमर मन में अइसे विचार हावय कि मैं देश अउ दुनिया बर कुछ बढ़िया काम करंव तब हमन ला हर विरोध के सामना करे बर अपन आप ला सहर्ष तैयार कर लेना चाही अउ फेर हमर रद्दा मे कतको बाधा आवय हमन ला कभू हार मान के पाछू नई हटना चाही। हमर भारत देश के अनमोल रतन भूतपूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न, प्रखरवक्ता, राजनीति के अजातशत्रु, लोकप्रिय जननायक, महाकवि, विद्वान, विराट व्यक्तित्व, राजनीति के पुरोधा, भारतमाता के दुलरवा बेटा माननीय अटल बिहारी बाजपेयी के जीवन हर हमन ला बहुत बडे़ सीख देथे के जिनगी हर खाली आगू बढे़ बर नई मिले हे बल्कि खुद आगू बढ़के लोगन ला आगू बढ़ाए बर मिले हे। जइसे नींद में लीन मनखे हर कोनो दूसर ला नई जगा सकय।
दूसर ला जगाय के पहिली हमन ला खुद जागे बर परथे। वइसने हमन ला दूसर ला आगू बढ़ाए खातिर आगू बढ़के आए ला परही तभे हमर जिनगी हर सार्थक होही अउह मन भारतमाता के संतान कहे के असली हकदार होबोन। अपन जिनगी में हर अच्छाई के सम्मान करना अउ हरेक बुराई के त्याग करना सबके बस के बात नई होवय। मॉ भारती के सेवा में अपन जिनगी के हर पल समर्पित कर देना सबके बस के बात नई होवय। दुनिया में सबले कठिन काम होथे सेवा करना अउ हमन काखर सेवा करतहन यहू बात हर हमर जिनगी ला बनाथे घलाव अउ बिगाड़थे घलाव।
हमर देश अउ दुनिया ला नवा आयाम देवइया, हमर छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण करइया, हमर छत्तीसगढ़ राज्य में एनटीपीसी सीपत, कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता वि.वि., सुन्दरलाल शर्मा ओपन युनिवर्सिटी, बिलासपुर से अंबिकापुर तक रेल लाईन, रायपुर के बूढ़ातलाब में स्वामी विवेकानंद के प्रतिमा के अनावरण, अउ अपन मन वचन अउ कर्म से देश सेवा अउ देश प्रेम के संदेश देवइया जन-जन के लोकप्रिय व्यक्तित्व के धनी, माननीय अटल बिहारी बाजपेयी के नाम अउ काम जेखर विरोधी घलाव नतमस्तक होवय अपन यही स्वभाव के कारन अजर-अमर होगे काबर कि जिनगी भर उमन केवल अपने बाढ़ ला नई देखिन बल्कि सदा देश अउ दुनिया के विकास के सपना देखिन अउ वो सपना ला साकार करे खातिर अपन तन मन धन सबकुछ अरपन कर दिहिन। भारत माता के अइसे महान सपूत ला संपुर्ण भारतदेश के भावपूर्ण श्रद्धांजली अउ कोटि-कोटि नमन।
-<strong>रश्मि रामेश्वर गुप्ता</strong>
बिलासपुर

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रुद्री के रुद्रेश्वरधाम

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धमतरी जिला ले ६किलोमीटर गंगरेल रोड रक्छेल दिसा रोडेच तिर म लगे रुद्री गांव हे
रुद्री बस्ती म गांव वाले अउ सरकारी कालोनी म सरकारी करमचारी अधिकारी लोगन मन निवासरत हे
गांव अउ कालोनी दुनो मिलाके ईहां के जनसंख्या २०००-२५०० के लगभग हे
रुद्री म सरकारी विभाग के कलेक्ट्रेट,एसपी आफिस, जिला पंचायत,जनपद पंचायत,जल संसाधन, पुलिस लाइन,पुलिस थाना,अउ अन्य विभाग के कारयालय ईहे हे
महानदी के खड़ म बसे रुद्री गांव जिहां के रुद्रेश्वरघाट अउ रुद्री बांध जलाशय खुबचंद बघेल के नांव बड़ बिख्यात हे जेन इतिहास के पन्ना म उल्लेख हे
जेन ल रुद्रीबांध अउ रुद्रेश्वर महादेव के नांव ले जाने जाथे
रुद्री के रुद्रेश्वरधाम मंदिर म रूद्रेश्वर महादेव, शिवलिंग नंदीराज, हनुमान, विष्णु, कृष्ण,सीतला दाई के मु्रति बिराजमान हे
ईहां केंवट,यादव,आदिवासी,साहु, सबो समाज के समुदायिक भवन बनाय हे
सावन महिना म बोल बम कांवरिया मनके टोली सावन सोम्मारी के दिन बिहानिया ले शिवलिंग म जल,फुल-पत्री,दूध, चढ़ाय बर आथे, अउ बाजा गाजा के संग झुम झुमके नाचथे गाथे
रुद्रेश्वर धाम म माघी पुन्नी के दिन मेला भराथे, कतको दुरिहा दुरिहा ले लोगन मन दरस अउ असनान करे बर नहाथे अउ डुबकी लगाथे
आस परोस गांव के मनखे मन साईकिल मोटर फटफटी टेक्टर बईलागाड़ी म चढ़के मेला घुमे ल आथे, ढ़ेलवा राईचुली मेवा मिठई के मजा पाथे
रुद्री के रुद्रेश्वरधाम रुद्रेश्वरमहादेव मंदिर ट्रस्ट बनाय ले धमतरी जिला म बड़ बिख्यात होगे हे!

सोनु नेताम”माया”
रुद्री नवागांव धमतरी



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ब्रत उपास : कमरछठ अउ सगरी पूजा

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नारी मन अपन परिवार के सुखशांति अउ खुसहाली बर अबड़ेच उपास धास करथँय। कभू अपन बर गोसइँया पायबर, पाछू अपन सोहाग ला अमर राखे बर। कतको घाँव तिहार बार मा, देंवता धामी मन के मान गउन करेबर अउ पीतर मन के असीस पायबर घलाव उपास करथँय।अइसने एक उपास महतारी मन अपन लइकामन बर राखथँय।एला कमरछठ , खमरछठ, अउ हलछस्ठी उपास कहिथँय। ये उपास ला बिहाता नारी अउ लोग लइका होय महतारी मन रहिथँय।
कमरछठ मा सगरी पूजा के महत्तम हे।ये दिन महतारी मन बिहनिया ले मंजन ब्रस नइ करके महुवा नइते खम्हार के दतौन करथे।सेम्पू के जगा मुड़मिंजनी माटी मा मुड़ी मिंजथे। नाउ घर ले पतरी दोना लानथे।केवट घर ले परसाद के जिनिस लाई,चना,मन ला लानथे।मंझनिया बेरा ले गाँव , सहर के मंदिर नइते चउँक, मइदान मा सगरी खने जाथय।सगरी के चारो मुड़ा ला बोइर, काँसी, फूल अइसने छै किसम के पेड़ पऊधा संग सजाय जाथय।
सगरी ला जिनगी के अधार माने जाथय। सगरी खनाय अउ सजाय के पाछू सब उपसहीन मन सकलाथँय अउ इही सगरी के चारो मुड़ा बइठ जाथँय। पंडित महराज हा आथे तहान बिधि बिधान के संग पूजा होथय।
कमरछठ उपास के पूजा दूसर उपास के पूजा ले अलग होथय। कमरछठ मा छै के जादा महत्तम माने गय हे। ये भादो महिना के छेटवाँ दिन मनाय जाथय।छै जात के फूल पूजा मा चघाय जाथय। छै ठन कथा सुनाय जाथे।सगरी अउ सिव पारबती के पूजा मा छै किसम के खेलउना बना के चघाय जाथय।छै किसम के सिंगार जिनिस सगरी मा डारे जाथय।गाय के दूध,दही , घी के जगा मा भैंसी के दूध, दही , घी से पूजा करे जाथय । परसाद छै किसम के जिनिस लाई, चना, महुवा फूल, मसूर , बटरा ले बनाय जाथय।उपसहीन मन के खाय बर पसहर चाउँर के भैंसी दूध डार के खीर नइते भात बनाय जाथय।छै जात के भाजी जेमा सेमी, मखना, बरबट्टी, मुनगा, चेंच, अमारी ला संघेर के राँधे जाथय। खाय के पहिली छै जीव गाय, कुकुर, बिलई, मुसवा , चाँटी अउ चिरई के खाय बर भोग निकाले जाथय।
कमरछठ मा सगरी पूजा के कथा आथे।कथा सुनाय पाछू सगरी भरे जाथय।उहाँ जतका उपसहीन रहिथे सबजन एक एक गघरा पानी लान के सगरी मा डारथँय। महतारी मन इही सगरी के पानी मा अपन लुगरा अछरा ला फिलो लेथँय अउ अपन लइका के कनिहा मा छै घाँव छुवाथे।ऐला पोतका मारना घलाव कहे जाथय। कतको महतारी मन नान्हे नान्हे लइका ला सगरी मा बुड़ो घलाव देथँय। सगरी पूजा के आखिर मा भगवान शिव के आरती होथय। सब महतारी मन परसाद बाँटत अपन अपन घर जाथँय । घर मा जाके बड़े मन के पाँव पलगी करके असीस पाथँय । सात जात के भाजी अउ पसहर चाऊँर के भात ला भैंसी दही संग मिला के भोग लगा के खाथँय पीथँय अउ उपास छोंड़थँय।
अइसे किसम के कमरछठ के सगरी पूजा अउ लइका के जुग जुग जीये बर रखे जाथय। फेर आज के पढ़े लिखे अउ नउकरी वाली महतारी मन अब ये उपास के परंपरा ला छोड़त जात हे।जौन हमर संस्कृति बर अच्छा नो हय।

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा,जिला गरियाबंद



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संतान के सुख समृद्धि की कामना का पर्व- हलषष्‍ठी

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वीरेन्द्र ‘सरल‘
संसार में हर विवहित महिला के लिए मातृत्व का सुख वह अनमोल दौलत है जिसके लिए वह कुबेर के खजाने को भी लात मारने के लिए सदैव तत्पर रहती है। माँ अर्थात ममता की प्रतिर्मूत, प्रेम का साकार स्वरूप, त्याग और बलिदान की जीवन्त प्रतिमा। माँ षब्द को चाहे जितने उपमान देकर अलंकृत करने का प्रयास किया जाये पर माँ के विराट व्यक्तित्व के सामने सब बौने सिद्ध होते है। माँ सदैव अपने संतान के सुख समृद्धि की कामना करती है इसके लिए उसे चाहे जीवन में कितना भी कश्ट क्यो न उठाना पड़े।
यदि हमारा देष धर्म प्रधान देष है तो हमारी यह छत्‍तीसगढ़ की पावन भूमि धर्म को पूर्णतः आत्मसात करने वाली धरती है। यहाँ एक ओर माताएं जहाँ पति के लम्बी उम्र के लिए हरीतालिका अर्थात तीजा का कठिन व्रत रखती है तो दूसरी ओर संतान के सुख-समृद्धि और लम्बी उम्र के लिए हलश्श्ठी अर्थात कमरछठ का व्रत रखती है। चूंकि यह पुत्र लिए रखा जाता है इसलिए इसे पुत्रेश्ठी व्रत भी कहा जाता है।
माताएं इस व्रत को भादो माह के कृश्ण पक्ष के छठ के दिन रखती है। कथा के अनुसार इसी दिन भगवान बलराम का जन्म हुआ था। उसके षस्त्र के रूप में हल को मान्यता मिली है इसलिए इसे हलश्श्ठी व्रत भी कहा जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार इसी व्रत को रखकर माता गौरी ने कार्तिकेय को पुत्र के रूप में प्राप्त की थी। जिसकी पत्नी का नाम शश्ठी था इसलिए इसे पुत्रेश्ठि व्रत भी कहते है। कहा जाता है कि सतयुग में समुद्र नाम का एक राजा था जिसकी पत्नी का नाम सुवर्णा था। उसका एक हस्ति नाम का पुत्र था जिसकी मृत्यु अल्पायु में ही हो गई थी। जिसके कारण राजा-रानी विलाप करने लगे थे। तब शश्ठी देवी प्रकट होकर भादो माह के कृश्ण पक्ष के छठ को व्रत रखने पर उसके पुत्र को जीवित कर देने की बात कही। रानी ने इसका पालन किया और जिससे उसका पुत्र जीवित हो गया।
शश्ठी देवी को लक्ष्मी स्वरूपा माना जाता है। लक्ष्मी जी की उत्पिŸा सागर से हुई है। इसलिए इस व्रत में सगरी पूजा का विधान है। चूंकि माता गौरी ने यह व्रत सागर किनारे सम्पन्न किया था। इसलिए इस व्रत में पूजा के समय प्रतीकातमक रूप से सगरी के पास पलाष के डंठल, महुआ के फल तथा लाई छिड़कने का भी विधान है। यहां पर षिव और पार्वती जी की भी पूजा की जाती है इसलिए षिव के नाग देवता के लिए दूध और धान की लाई भी चढ़ाया जाता है।
इस व्रत में केवल भैंस दूध का ही उपयोग किया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन देवताओं ने तांत्रिक विधि से भैंस की उत्पिŸा की थी। इसीलिए भैंस दूध और घी का उपयोग इस व्रत के लिए किया जाता है।
इस व्रत को रखने वाली माताओं के लिए हल चले जमीन पर पांव रखना व उससे उत्पन्न किसी भी प्रकार के अनाज का उपयोग करना निशेध है। इसलिए इस दिन बिना हल चले भूमि से उत्पन्न चांवल जिसे स्थानीय भाशा पसहर चाऊंर कहा जाता है तथा छः किस्म की भाजी जिसमें मुनगा भाजी का विषेश महत्व है, का प्रयोग किया जाता है।
इस दिन व्रती माताएं दिन भर व्रत रखने क बाद षाम के समय स्थानीय व्यवस्था के अनुसार निर्मित सगरी के आस-पास इक्ट्ठा होकर विधि-विधान से सगरी पूजा करती है। पुत्रवती माताएं अपने पुत्र की सुख-समृद्धि की कामना करती है मगर जिनको अभी पुत्र की प्राप्ति नही हो पाई है ऐसी माताए कुष को हाथ में लेकर अपने अँगूठे और एक अंगुली के बल पर गांठ बांधती है। ऐसा माना जाता है कि एक पल वह जितना गांठ बांध लेती है उसको उतने ही पुत्र की प्राप्ति होती है। पूजा स्थल से घर लौटने बाद माताएं पीली पोती जिसे षष्‍ठी देवी की ध्वज स्वरूप माना जाता है उसे अपने पुत्र या परिवार के अन्य सदस्यो के पीठ पर मारती है। इसके पीछे मान्यता यह है कि पीठ पर अधर्म का वास होता है जो पीली ध्वज के प्रहार से नश्ट हो जाता है और मनुश्य धर्म के अनुसार आचरण करता है। सगरी पूजा के समय छत्‍तीसगढ़ के गांवो में माताएं जो कमरछठ कथा कहतीं है। वह इस प्रकार है-




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आठे कन्हैया – 36 गढ़ मा सिरि किसन के लोक स्वरूप

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– प्रोफेसर अश्विनी केसरबानी
छत्तिसगढ़ मा तेरता जुग अऊ द्वापर जुग के किसिम किसिम के बात देखे अऊ सुने बर मिलथे। ये हमर सब्बो छत्तिसगढ़िया मन के सउभाग्य हवे कि अइसे पवित भुइंया म हमर जनम होये हवे अउ इहां रहत हवन। इहां जगह जगह म राधा किसन के मंदिर हवय जेकर दरवाजा म गरूण जी हाथ जोरे बइठे दिखते। इहां के छोटे बड़े, अमीर गरीब अउ जंगल म रहवाइया आदिवासी मन के मन म ओखर प्रति अगाध सरधा हवय। सबके मन म सिरि किसन के लोक स्वरूप के कल्पना सही में लोक रक्छक करे गे हवय। सब्बो जानथे कि ओखर जनम कंस ल मारके ओकर जुलुम ले मथुरा, गोकुल अउ बिरिन्दाबन के लोगन मन ल मुक्ति देहे बर नई रहिस बल्कि पूरा ब्रम्हांड म राक्छस मन ल मारके भक्ति भाव अउ लोक सुराज लाये के रहिस हवय। बिचार करे ले समझ म आथे कि सिरि किसन के मैया देवकी के गरभ ले जनम लेहे, मैया जसोदा ल अपन बाललीला दिखाय अउ कउरव पांडव के माध्यम ले पूरा ब्रम्हांड ले राक्छसी प्रवृत्ति से लोकलीला करके मुक्ति दिलाइस। ओखर पूरा जीवन अनुकरणीय हवय। जेला अलग अलग ढंग ले कवि अउ लिखवइया मन लिखे हवय, गवइया मन गाये हवय। लोगन मन रासलीला करथे अउ गीत गाथे। हमर छत्तिसगढ़ के सौरिनारायेन म भारतेन्दुकालीन कवि पंडित हीराराम तिरपाठी ह रासलीला गीत लिखे हवय जेला रासलीला करत लोगन गावे-
चल वृन्दावन घनस्याम दृष्टि तबै आवै।
होगा पूरन काम जन्म फल पावै।।
द्रुम लता गुल्म तरू वृक्ष पत्र दल दल में।
जित देखे तित श्याम दिखत पल-पल में।।
घर नेह सदा सुख गेह देखु जल थल में।
पावेगा प्रगट प्रभाव हिये निरमल में।।
तब पड़े सलोने श्याम मधुर रस गावै।।1।।
तट जमुना तरू वट मूल लसै घनस्यामैं।
तिरछी चितवन है चारू नैन अभिरामैं।।
कटि कसै कांछनी चीर हीर मनि तामैं।
मकराकृत कुण्डल लोल अमोल ललामैं।।
मन स्वच्छ होय दृग कोर ओर दरसावै।।2।।
सुख पुंज कुंज करताल बजत सहनाई।
अरू चंग उपंग मृदंग रंग सुखढाई।।
मन भरे रसिक श्याम सज्जन मन भाई।
जेहि ढूँढ़त ज्ञानी निकट कबहुं नहिं पाई।।
युग अंखियों में भरि नीर निरखि हुलसावै।।3।।
श्रीकृष्ण प्रीति के रीति हिये जब परसै।
अष्टांग योग के रीति आपु से बरसै।
द्विज हीरा करू विस्वास आस मन हरसै।।
अज्ञान तिमिर मिटि जाय नाम रवि कर से।।
तब तेरे में निज रूप प्रगट परसावै।।4।।
चल वृन्दावन घनश्याम दृष्टि तब आवै।।




छत्तिसगढ़ म जन्माष्टमी ल सिरिकिसन के लोक स्वरूप के कल्पना करे गये हवय अउ येला ‘‘आठे कन्हैया‘‘ कहे जाथे। इही दिन सिरि किसन के जनम होय रहिस। भादो के किसन अष्टमी के रात म रोहनी नछत्र म देवकी मैया के आठवें लइका के रूप म ओकर जनम होइस। ओकर जनम अइनहे समय म होइस जब सब्बो तरफ कंस के आतंक रहिस। ओकर जनम के पहिली ओकर छै भाई मन ल कंस ह मार डारे रहिस। सब्बो डहर दुखी जन रोवत गात रहिस। कहे जाथे-
जब जब होही धरम के हानि, बाड़ ही असुर अधम अभिमानी।
तब तब धरि मनुज सरीरा, हरहिं भवनिधि पीरा।।
कारागार म देवकी अउ वसुदेव अपन छै लइका के मरे के सोक म डूबे दुख मनात रहिस। ईसवर किरपा ले सातवां गरभ रोहिनी के गरभ म चल दिस अउ अब आठवां गरभ म सिरि किसन आइस त सब तरफ खुसी दिखे लागिस। कवि कपिलनाथ अपन सिरि किसन महाकाब्य में लिखे हवय-
जउने दिन ले गरभ आठवां मा प्रभु आइन,
धरती अउ आकास मा प्रभुता अपन देखाइन।
बहिस सुगंधी पवन रूख राई हरियागे,
लागय असमय मा जाना बसंत रितु आगे।।
अमरइया मा आ आ कोयली कूके लागिन,
जहां तहां बन भीतर टेसू फूले लागिन।
फूल फूल जा जाके भंवरा गूंजे लागिन,
डार डार मा सूवा मैना झूले लागिन।।
भादो कारी रात भयानक
बिजली चमकय छिन छिन भरमा।
चारो कइत रहय सन्नाटा
पानी पानी धरती भर मा।।
होइस जब अधरतिया बेरा
रोहिनी लगिस नछत्तर
प्रगट भइन प्रभु बंदी गृह मा
रूप चतुरभुज धर कर।।
संख चक्र अउ गदा पद्म धर
पहिरे दिब्य पितांबर।
कानन कुंडल झिलमिल डोलय
सुंदर बनमाला गर।।
दरस देके कहिन प्रभु, जल्दी
मोला गोकुल अमरावा।
नंद महर घर ले जाके जनमे
कइना जसुदा ले आवा।।
सिरि किसन के लीला ल कोनो नइ समझ सकय। ओकर जनम सब्बो झन ल दुख से मुकति देहे बर होय रहिस। ओला लीला करना रहिस तभे जसोदा मैया के घर जाके लीला करिन। एक एक करके सब्बो राक्छस मन ल मरिस, गउ चराइस अउ दूध दही खाइस। कपिल कवि लिखथे –
मथुरा नगरी जान न देवन, अब गोकुल के दूध दही,
बिन पेट भर खाये तुमन जान न पावा बात सही।
अबले बेंचा मथुरा जाके, चोरी चोरी दूध दही,
भर भरके जो गाय चरावंय, पावंय पीये छांछ मही।।
अऊ किसन अपन संगी मन के साथ सबके घर जाके माखन खावे। घर घर जाके माखन चारी करके खाये खातिर ओखर नाव ‘‘माखन चोर‘‘ रख दिस। किसन अपन तो माखन खाये, अपन संगी मन ल भी माखन खवाय। कवि लिखथे-
बांट बांट के माखन मिसरी खाये लागिन।
एक एक के खा खा के सहराय लागिन,
ब्रम्हा देख किसन के लीला भक्खल होगे,
समझ न आइस चिटको वोला अक्कल खेगे।
कहां ब्रम्ह अवतार कहंय समझ न आवय।
बन म आके गोप ग्वाल के जूठा खांवय।।




छत्तिसगढ़ मा आठे कन्हैया के दिन मटकी म माखन रखके फोड़े के रिवाज हवय। चऊंक चौउराहा म मटकी बांधे जाथे अउ किसन के टोली बाजा गाजा के साथ जा जाके मटकी फोड़थे। दूध दही लुटाथे अउ माउज मस्ती करथे। येला इहां ‘‘दहिकांदों‘‘ कहे जाथे। सब्बो गांव म दहिकांदो होथे।
राइगढ़ म सेठ किरोड़ीमल ह गउरीशंकर के संगमरमर के देखे लाइक मंदिर बनवाय हवय। मंदिर म गउरी शंकर के साथ साथ राधा किसन के भी सुंदर मूरत हवय। इहां आठे कन्हैया के दिन भब्य झांकी बनाथे जेमा किसन के कई रूप बनाय जाथे अउ जेला देखे बर बहुत लोगन इहां आथे। किसिम किसिम के दुकान, झूला अउ प्रदर्शनी लगाये जाथे। इहां के जन्माष्टमी मेला पूरा छत्तिसगढ़ म परसिद्ध हवय। अइसनहे जांजगीर चांपा जिला के नरियरा म राधा किसन के बहुत सुंदर मूरत हवय। इहां के मंदिर परिसर म आठे कन्हैया के दिन रासलीला होवय। रासलीला करे बर दूर दूर के कलाकार आवे। रासलीला के आयोजन म अकलतरा के बैरिस्टर छेदीलाल के बहनोई कोसिरसिंह अउ भांजा विसेसर सिंह ह लगे रहे। अनेक गम्मतहिया, नचकरिहा इहां आवे जेमा सुरमिनदास, धरमलाल, लक्ष्मनदास चिकरहा, गउद के दादू सिंह अउ ननका रहस मंडली इहां रासलीला करय। जेला देखे बर अब्बड़ दूर दूर के लोगन इहां आवय। इहां के रासलीला अतका परसिद्ध होइस कि नरियरा ल ‘‘छत्तिसगढ़ के बृंदावन‘‘ कहे जाय लगिस। कवि सुकलाल पांडेय ह छत्तिसगढ़ गौरव म लिखे हवय-
ब्रज की सी रास देखना हो तो प्यारों
ले नरियर नरियरा ग्राम को शीघ्र सिधारो।
छत्तिसगढ़ म रासलीला करे खातिर सौरिनारायन के पंडित हीराराम तिरपाठी के गीत ल गावे। वोकर गीत बड़ा परसिद्ध रहिस। ये सिरि किसन के पचरंग सिंगार गीत देखव –
पंच रंग पर मान कसें घनश्याम लाल यसुदा के।
वाके वह सींगार बीच सब रंग भरा बसुधा के।।
है लाल रंग सिर पेंच पाव सोहै,
अँखियों में लाल ज्यौं कंज निरखि द्रिग मोहै।
है लाल हृदै उर माल कसे जरदा के।।1।।
पीले रंग तन पीत पिछौरा पीले।
पीले केचन कड़ा कसीले पीले।।
पीले बाजूबन्द कनक बसुदा के ।। पांच रंग ।।2।।
है हरे रंग द्रुम बेलि हरे मणि छज्जे।
हरि येरे वेणु मणि जड़ित अधर पर बज्जे।।
है हरित हृदय के हार भार प्रभुता के।। पांच रंग।। 3।।
है नील निरज सम कोर श्याम मनहर के।
नीरज नील विसाल छटा जलधर के।।
है नील झलक मणि ललक वपुष वरता के।। पांच रंग।।4।।
यह श्वेत स्वच्छ वर विसद वेद जस गावे।
कन स्वेत सर्वदा लहत हृदय तब आवे।।
द्विज हीरा पचरंग साज स्याम सुखदा के।। पांच रंग।।5।।
सिरि किसन के किरपा के कुछु नइ होवय। जेकर उवर वोकर किरपा होथे वोही रासलीला करे सकथे। सिरि किसन के भक्ति के प्रचार पर कवि के गीत हमेसा गाये जात रहिस-
कृष्ण कृपा नहिं जापर होई दुई लोक सुख ताहिं न होई।
देव नदी तट प्यास मरै सो अमृत असन विष सम पलटोई।।
धनद होहि पै न पावै कौड़ी कल्पद्रुम तर छुधित सो होई।
ताको चन्द्र किरन अगनी सम रवि-कर ताको ठंढ करोई।। द्विज हीरा हरि चरण शरण रहु तोकू त्रास देइ नहिं कोई।।
येकरे बर कहे जाथे कि सिरि किसन के किरपा खातिर भक्ति जरूरी हवय। लइका के जनम के समय इहां सोहर गीत गाये जाथे। अइसनहे एक सोहर गीत म कंस के कारागार म देवकी अउ बसुदेव के दुख के मारमिक चित्रण करे गे हवय –
मन मन गुने रानी देवकी
मन म बिचारन लागे ओ
ललना ऐही गरभ मैं कैसे
बचइ लेत्यौं ओ
सात पुत्र राम हर दिये
सबो ल कंस हर ले लिस ओ
ललना आठे गरभ अवतारे
मैं कैसे बचइ लेत्यौं ओ
घर ले निकरे जसोदा रानी
मेर सुभ दिन सावन ओ
ललना, चलत हवै जमुना असनाने
सत सखी आगू सात सखी पीछू ओ
सेने के घइला मूड़ म लिये
रेसम सूत गुड़री हे ओ
ललना, चलत हे जमुना पानी।
सात सखी आगू, सात सखी पीछू ओ
कोनो सखी हाथ पांव छुए
कोनो सखी मुंह धोवै ओ,
कोनो जमुना पार देखै
देवकी, रोवत हवै ओ
घेरि घेरि देखै रानी जसोदा।
मन में बिचारन लागे ओ
कैसे के नहकों जमुना पारे
देवकी ल समझा आतेंव ओ
न तो दिखे, घाट घठौना
नइ दिखे नाव डोंगा ओ
ललना, कइसे नहकों जमुना पारे
जमुना, बैरिन भरे हावय ओ
भिरे कछोरा मुड़ उघरा
जसोदा जमुना घंसिगे ओ
ललना, चलत हावय देवकी के पासे
जमुना ल नहकि के ओ
मत रो तैं मत रो देवकी
मैं तोला समझावत हौं ओ
ललना, कैसे विपत तोला होए
काहे दुख रोवत होवस हो
कोन तोर सखा पुर में बसे
तोर कोन घर दुरिहा है ओ
ललना, कोन तोर सइयां गए परदेसे।
गरभ के दुख ल रोवत हवौं वो
सात पुत्र राम हर दिये
सबे ल कंस हर लिस ओ
ललना, आठे गरभ अवतारे
मैं कइसे बचइलेबौं ओ
इस सोहर गीत म देवकी मैया के मन के पीरा के बड़ा ही मारमिक चित्रण हवय। यानी छत्तिसगढ़िया जन जीवन म सिरि किसन के लोक स्वरूप के दरसन होथे। तभे तो आठे कन्हैया के दिन लोग लइका, सियान अउ माइलोगन तक उपवास रकथे। बड़े भक्ति भाव से किसिम किसिम के जेवनास जैसे मालपुआ, खोवा के कुसली, बइचांदी के गुड़हा अउ सक्कर के पाग, तिखुर, राजगीर के लड्डू, सिंघाड़ा अउ धनिया पंजरी के भोग बनाये जाथे। ये तिहार के सब्बो झन ल बहुत इंतजार रथे। ये जेवनास ल भोग लगाके अपन सब्बो रिस्तेदार के घर भेजे जाथे। ये तिहार मिल बांटके रहे अउ खाये के तिहार कहे जाथे।

-प्रोफेसर अश्विनी केसरबानी
‘‘राघव‘‘ डागा कालोनी,
चांपा, छत्तिसगढ़

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नवा तिहार के खोज

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तिहार के नाँव सुनते भार रोटी पीठा,लिपई पोतई, साफ सफई के सुरता आ जाथे।छत्तीसगढ़ गढ़ मा सबो किसम के तिहार ला मनाय जाथे।छत्तीसगढ़ के तिहार हा देबी देंवता , पुरखा, खेती किसानी ले जुड़े परंपरा के सेती मनाय जाथे।फागुन राँधे चैत खाय के हाना घलाव चले आवत हे। पुरखा मन बर अक्ति, पितर, तिहार आथे। देबी देंवता मन के तो सबो तिहार मा पूजा पाठ होथय।अक्ति, रामनवमीं, रथ दूज, हरेली, राखी, तीजा पोरा, गनेश पक्ष, जवाँरा, नवरात्रि, भोजली, दसहरा,देवारी भाई दूज, अइसने किसम के हर पून्नी मा तिहार ला रखे गे हवय।ये छत्तीसगढ़ के तिहार आय ।
हमर पुरखा मन अप्पड़ रहिस फेर बुधिमानी केरद्दा बताय रहिस।रुख राई, दवई बुटई ला बचाय बर नानम परकार के पूजा तिहार के रचना रचे रहिस। कतको जगा मा गांव , जाति , धरम के चलागन के चले आत परंपरा ला निभाय खातिर तिहार मनाय जाथे।नवाखई , जातरा, करमा, सरहुल मन जातिगत परंपरा के तिहार आय।
आज के नवा पीढ़ी मन , जुन्ना रीति रिवाज ला धरके तिहार नइ मनाय।येमन ला घर के बने रोटी पीठा के जगा पिज्जा , बर्गर मनहा सुहाथे। पढ़े लिखे बेटी बहू मन नानम परकार के राँधे बनाय बर जानथे।फेर ओमन ला आलस हा धर लेहे।सब बने बनाय, पके पकाय खाय के घसेलहा होगे।
छत्तीसगढ़ मा तिहार मनाय के तरीका अलगेच हवय। तिहार ला हबो परिवार मिल जुल के मनाथे।तिहार के दिन सबो सगा अउ परिवार के लोग मन ला एक जगा सकलाय के बइठे के माउका मिलथे । तिहार दिन, तेल तेलई राँधथे खाथे खवाथे अउ मिलथे जुलथे।पुरखा मन एला अपन सोंच के अनुसार दिन तिथी , बेरा बात के हिसाब ले बनाय हवय।इही ला आज ले मानत हवन। हर तिहार के अलग पूजा विधि अउ मनाय के तरीका होथय।जेला गाँव भर के मनखे मिलके मनाथे ओला गाँव तिहार कहिथे।जौन तिहार के चलन प्रांत भर मा रहिथे ओला प्रांतीय तिहार कहे जाथे।पूरा देश जेला मनाथे ओला राष्ट्रीय तिहार कहे जाथे।अइसने ढंग के अपन अपन धरम के अलग अलग तिहार होथय , जौन ला धार्मिक तिहार कहे जाथे। धरम मा बताय रीति ,नीति अउ रद्दा ले एला मनाय जाथय।
फेर अब हमर छत्तीसगढ़ मा नवा तिहार के खोज होय हवय।एला सरकार हा मनावत हवय। एला सरकारी तिहार कहे जात हे। जइसे बिजली तिहार, बोनस तिहार, मोबाइल तिहार, संविलियन तिहार…..।एला सरकार मा बइठे मंतरी मन शासन प्रसासन के संग मिलके गरीब जनता ला सकेल के मनाथे। बड़े बड़े मंच, पंडाल समियाना लगाय जाथे।पोंगा रेडिया अउ सांस्कृतिक कार्यक्रम के बेवस्था करे जाथय। मंतरी मन आथय उँखर सुवागत सत्कार होथय। गरीब जनता बर लाय दाईज, भेंट ला देय जाथय। सबो झन बर खाय पीये के बेवस्था रहिथे। माँगे के अधार से कोनो कोनो गाँव बर लाखों करोड़ों के घोसना घलो करे जाथय।अइसने एला मनाय जाथय। तिहार के दिन सरकार अपन योजना ला जनता तक पहुंचाय के बखान करथे।फेर ये तिहार हा सबो जगा एक दिन नइ मनाय जाय। सरकार अउ मंतरी संतरी के सुबिधा बेवस्था से साल के कोनों भी दिन मनाय जा सकत हे।अइसे अब गनेश चतुर्थी, अक्ति, हरेली, पोरा, कमरछट , मन बर इस्कूल मा छुट्टी बंद होगे। फेर सरकारी तिहार के दिन अतराब के इस्कूल बंद रखे जाथय।नवा तिहार ला अइसे ढ़ंग ले मनाय जथे।

अइसे अब सरकार हा धार्मिक तिहार मन ला पर्यावरण , प्रदूषण के नाँव धरके कम करे के अउ मेटाय के चक्र रचत हे।होली मा गुलाल से नकसान, पानी के बरबादी , देवारी मा पटाखा फोरे ले ध्वनि प्रदूषण होथे कहिके एला कमती करेब बोलत जात हे। एकर परिणाम पाछू देखेबर मिलही। अब इस्कूल मा कोनों तिहार ला , पूजा ला मनाय बर नइ देवय।तब लइका मन काइसे सीखही। छत्तीसगढ़ के तिहार मन हँसी खुशी ला बाँटे के दुख ला भुलाय के अउ संग देवइया मन ला धन्यवाद देय के परंपरा आय।

आज हमर प्रांत मा लाखो चेलिक मन पढ़े लिखे बेरोजगार बइठे हवय ।उँगर बर रोजगार तिहार कब आही ये एक ठन यक्ष सवाल आय?

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा,जिला गरियाबंद

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हमर शिक्षा व्‍यवस्‍था

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पढ़हईया लईका मन ला हमर देश के सिरिजन करईया कहे जाथे। फेर आज के दिन मा ऊखर जिनगी के संग खिलवाड़ होवत हवै। ओ लईका मन ल बिन जबरन के कल्लई करात हवै। आजे काली बिहिनिया कुन पेपर म पढ़ेबर मिलिस कि एक झन लईका ह 12वीं म पहिलि सेरेणी म पास होगे हवै तभो ले कालेज म अपन मन के पढ़ नी सकत हवै।
पेपर म छपय रिहिस कि ओ लईका ह एसो 12वीं के परीक्छा दे रिहिस। फेर ओ लईका के काय गलती। ऐमा गलती तो ओछर पेपर ल जँचईया गुरूजी के रिहिस, जउन हा बिचारा लईका के बने-बने बनाए पेपर ला घलो अईसन जाँचिस कि ओ लईका हा उहिच बिषय मा पूरक आगे। जब ओ लईका ल लागिस कि मोर पेपर मा अंक निच्चट कम आगिस हवै ता अपन ईस्कूल के गुरूजी अऊ घर के सियान मन के केहे म अपन पेपर ला खोलवईस। जउन बिषय म ओ लईका हर फेल हो गे रिहिस ऊही बिषय म दूसरईया जँचवाए के बाद मा बने-बने अंक के संग म पास होगिस। ऐ दूसरईया जँचई के चक्कर मा ओ लईका के समेय ह घलो सिरागे, जेखर सेती ओ बिचारा कालेज मा दाखिला घलो नी पईस। आज ओ लईका हर पहिलि सेरेणी म पास होगिस तभो ले स्वाध्यायी पढ़ईया मन बरोबर ऊँहा पढ़ेबर परत हवै।
ए गोठ-बात म जँचईया मन के संगे-संग म हमर शिक्षा व्‍यवस्‍था के ऊपर म घलो सवाल उठत हवै कि हमर शिक्षा व्‍यवस्‍था ह अईसन कइसे कोनो लईका के जिनगी संग खेल सकत हवै। येहा एके झन लईका के गोठ नोहे, ऐखर असन कतको लईका मन ल अईसन हर बछर म छेले बर परथे। जउन मन ला बड़ कल्लई होथे। हमर राज के शिक्षा व्‍यवस्‍था ह अइसने रहिबे करहि त हमर देश के भाग्य बनईया कहवईया हमर पढ़हईया लईका मन के का होही? जउन मन ह अपन मेहनत ले पढई करथे फेर अईसन शिक्षा व्‍यवस्‍था के सेती ओ मन ल रोये ल पर जाथे।

पुष्पराज साहू
छुरा (गरियाबंद)

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पितर बिदा के दिन आ गय

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कुंवार महीना के प्रतिपदा से लेके अमावस तक पंद्रह दिन पितर पाख के नाम ले जाने जाथे। ए पन्द्रह दिन म लोगन मन अपन अपन पुरखा ला जल चढाथें।अपन पुरखा के आत्मा के शांति अउ तृप्ति बर श्रद्धा के साथ श्राद्ध करम ला यही पितर पाख म करे जाथे।
संस्कृत म कहे जाथे कि “श्रद्धया इदं श्राधम” (जउन श्रद्धा भाव ले करे जाय वही हर श्राद्ध आय)। हमर हिंदू धरम म पितर मन के उद्धार करे बर पुत्र के कामना करे जाथे। पितर पाख म मनखे मन हर मन , बचन, अउ करम ले अपन पितर ला याद करके सूरूज देवता ला जल चढाथें। गरीब अउ ब्राम्हण मन ला दान करे जाथे। ऐ महीना म “गया श्राद्ध” के बड़ महत्तम हावै। ये दिन गया म जाके गंगा नदी के तट म बइठ के अपन पितर के आत्मा के शांति अउ तृप्ति बर गया श्राद्ध करे जाथे। अमावस के दिन धरती म आये पितर मन ला याद करके उमन ला बिदा करे जाथे। अगर पूरा पितर पाख म पितर ला याद नई करे पाय रहय तभो ले अमावस्या के दिन उन मन ला याद करके श्राद्ध तर्पण करना चाही। ए दिन गरीब मनखे मन ला भोजन कराना चाही जेखर ले पितर मन घलाव खुश होके आशीर्वाद देथें। ए दिन सब्बो पितर मन अपन जुन्ना घर के दुवार म बईठे रहिथे अउ फेर अपन अपन प्रसाद ला ग्रहण करके खुशी खुशी आशीर्वाद देवत अपन अपन लोक म चले जाथे। ए दिन अपन अइसन पुरखा मन के घलाव श्राद्ध करे जा सकत हे जेखर पुण्यतिथि मालूम नई हे। जेखर अकाल मृत्यु हो गय हो, ममादाई अउ ननाबबा ला घलाव यही दिन श्राद्ध तर्पण करे जाथे। पितर विसर्जन ला नदी, तालाब अउ अपन अपन घर म घलाव करे जा सकत हे।
पौराणिक मान्यता के अनुसार हमन अपन पुरखा ला कइसे खुश रख सकत हन एखर बढ़िया उपाय बताए गय हे। हमन ला अपन दाई ददा, बूढ़ी दाई, बूढ़ा बाबा, ममा दाई, नना बबा अउ जम्मों सियान मन ला जीते जियत म ही सब्बो प्रकार के सुख देहे के कोशिश कर लेना चाही। उमन ला खुश रखे के प्रयास करना चाही जेखर ले ऐ पुरखा मन पितर बन के घलाव खुश रहि सकय अउ अपन लइका बच्चा मन ला घलाव खूब आशीर्वाद दे सकय।

रामेश्वर गुप्ता “राम”
बिलासपुर

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पितर पाख : पितर अउ कउँवा

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कउँवा के नाँव सुनत एक अइसे चिरई के रुप दिखथे,जेकर रंग बिरबिट करिया, एक आँखी फूटहा माने अपसकुनी, बोली मा टेचरहा, मीठ बोली ला जानय नहीं ,खाय बर ललचहा, झगरहा, कुल मिलाके काम , क्रोध, लोभ मोह, ईर्ष्या, तृष्णा के समिल्हा रुप।सब चिरई मन ले अलग रहइया।अपन चारा ला बाँट के नइ खावय।
अइसे तो कउँवा के महिमा हा सबो जुग मा हावय।सतजुग मा भगवान शंकर हा सबले पहिली राम कथा ला पार्बती ला सुनाईस।वो कथा ला पेड़ मा उपर बइठे ये कउँवा चिरई हा सुन डारिस।शंकर के असीस से पाछू कागभुसुंड नाँव ले जनम धरिन।अऊ सब ला राम कथा सुनावय-

उमा कहिउँ सब कथा सुहाई।जो भुसुंडि खगपतिहि सुनाई।।

एक कथा आथे त्रेता जुग मा जब बनवास बखत राम सीता पंचवटी मा रहत रहिन। एक दिन सीता जी के फूल से सिंगार करिन । ओकर रुप ला देख के इंद्र के बेटा जयंत कउँवा सवाँग (रुप) धरके सीता माता के पाँव ला ठोनक दिस।राम गुस्सा होइस पाछू इंद्र के माफी माँगे ले राम जी हा जयंत के एक आँखी ला फोर दिस।तेकर सेती आज घलो कहे जाथे कि कउँवा एक आँखी ले देखथे।मानस मा तुलसीदास जी लिखे हवय-

सुरपति सुत धरि बायस बेषा। सठ चाहत रघुपति बल देखा ।।

सीता चरण चोंच हति भागा। मूढ़ मंदमति कारण कागा ।।

चला रुधिर रघुनायक जाना। सींक धनुष सायक संधाना ।।
रामचरित मानस मा उत्तरकाण्ड मा काग काकभुसुंड जी के बहुत महिमा बताय हवय। जौन निरन्तर राम नाम के कथा कहिथे अउ सब जीवमन सुनथे।दुवापर जुग मा नानकुन कन्हैया के हाथ ले घीव चुपराय रोटी ला नँगा के लेगे रहिस। कन्हैया के पाछू पाछू रोटी माँगत दउड़े के प्रसंग भागवत मा आय हे।अइसने कवि रसखान अपन हिरदे के भाव ला घलाव लिखे हवय-
काग के भाग बड़े सजनी,
हरि हाथ सो ले गयो माखन रोटी।
कहे जाथय कउँवा हा शनिदेव के सवारी आय।शनिदेव के सवारी होय के सेती ओकर कुछ गुण कउँवा मा घलो आ गय हवय।जइसे शनि ला बने नइ कहे जाय वइसने कउँवा ला बने नइ कहे जाय। कउँवा के नजर हा ठीक नइ रहय।घर भीतर ले खाय के जिनिस मा चोंच मार देथय।
दूसर ए कहे जाथय कि जइसे मनखे मन परेवा (कबूतर) चिरई ला अपन संदेशिया बनाय हवय वइसने गरुड़ पुरान मा लिखाय हवय कि कउँवा ला यमराज के संदेशिया कहे जाथय।कइथँय कि यमराज हा साल मा 15 दिन बर सब जीव ला सुतंत्र करथे तब सब पितर मन कउँवा बनके मिरतुलोक मा आथँय अउ सगा संबंधी,अपन बेटा बहू नाती पंथी ला मिलथे, खुश देखके उकर हिरदे जुड़ा जथे।पितर मन देवता बरोबर परभावसाली होथे।वो मन जतका जादा खुश होथय ओतके जादा असीस देथय।फेर नराज घलाव जल्दी होथय अउ शराप के चल देथँय।पितर पाख मा कउँवा ला खवाय मेवा मिठई हा पितर मन ला मिलथे।
पितर पाख मा ब्राम्हन भोज के परंपरा घलाव हवय।एकर से जीव के मुक्ति होथय।कउँवा हा पहिली ब्राम्हन रहिस।ऋषि के शराप ले कउँवा बनगे।राम चरित मानस मा एकर प्रसंग आय हवय।यहू एकठन कारण आवय कि कउँवा ला पितर पाख मा खवाय पियाय जथे।फेर आजकाल कउँवा मन पितर पाख मा घलो नइ दिखय। जुन्ना सियान मन कहय कि बिहनिया ले जेकर छानी मा कउँवा काँव काँव करही समझव कि ओकर घर मा सगा (मेहमान) जरुर आही।अब तो कतको ला छानी नसीब नइ होय।सहर मा दुमंजिला तिमंजिला मा किराया के घर मा रहिबे तब कहाँ ले कउँवा आही। बिज्ञानिक मन कहिथँय कि नानम् किसम के तरंग के सेती छोटे जीव , चिरई चिरगुन के नास होवत हे।कीटनाशक दवई मन कीरा ला मारथे पाछू उही ला कउँवा खाथे तब ओकर मरना तय हे।हो सकत हे ये बात सच होही । फेर यहू मा एक सच्चई है कि आज पढ़े लिखे बहू बेटा मन अपन पितर के उपर जाय के बेरा मा सेवा, देखरेख नई करय। कतको झन तो वृद्धाश्रम मा छोड़े रहिथे, मरे पाछू ले दे के किरिया करम ला करके छुट्टी पाय रहिथे। एती बेटा बहू अपन छोटे परिवार मा खुश हावन कहिके भरम मा जीथँय।अउ ये सब परंपरा ला ढकोसला कहिथँय।
आज घर मा दुख,धन के कमी,करजा मा लदाय रहे अउ नान नान बिमारी मा परे रहे के काय कारण आय ? थोकिन गुनान करन। हमर घर कउँवा काबर नइ आय ? हमर पितर मन काबर नइ आय ? आज पितर मन के असीस हमला मिलत नइ हे । दुखी होके,पीरा खावत उपर जाय के पाछू दुबारा खाल्हे आय बर उँखरो जीव नइ करय। मनखे कतको पढ़ लय , गुन लय फेर जौन अपन संस्कृति परंपरा ला छोड़ देथय वोहा कभू सुख मा नइ जी सकय।जवानी के रहत ले नइ मानय, जब उमर 45-50 होथे ताहन इही परंपरा हा ओला बने लागथे,अउ पितर तिहार माने बर अरोस परोस ला बला बला के हर बच्छर किसम किसम के रोटी पीठा खवाथे जेला अपन दाई ददा पितर ला कभू खवाय नइ रहिस।फेर अब तो देर होगे हवय , कतको उदिम करले तोर घर कउँवा कभू नइ आय।तँय कतको गोहार कर-कउँवा बनके आबे पितर मोर घर!

हीरालाल साहू”समय”
छुरा,जिला-गरियाबंद

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नवरात्र परब : मानस में दुर्गा

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हमर छत्तीसगढ़ मा महापरब नवरात ला अड़बड़ उछाह ले मनाय जाथे।नौ दिन तक गाँव के शीतला (माता देवाला) मा अखंड जोत जलाय जाथे अउ सेवा गीत गाय जाथे ।गाँव गाँव मा दुर्गा के मूरती मढ़ाके नौ दिन ले पूजा करे जाथे। गाँवभर के जुरमिल के ये परब ला भक्तिभाव ले मनाथे। छत्तीसगढ़ मा गाँव के संगे संग छोटे,मंझला अउ बड़का सहर मा दुर्गा माता के बड़े बड़े मूर्ति, बड़े बड़े जगमग जगमग करत पंडाल, नाच पेखन, जगराता, सांस्कृतिक कार्यक्रम के नवरात परब के दर्शन होथय।
नवरात परब मा छत्तीसगढ़ मा माता दंतेश्वरी, बम्लेश्वरी, महामाया, संबलेश्वरी, गंगामैय्या, चंन्द्रहासिनी,पताल भैरवी …. सबो देबी मंदिर मा हजारो कलस मढ़ा के जोत जलाय जाथे। मनखे मन घर मा घलाव अखंड जोत जला के, जवाँरा बो के नवरात परब ला मनाय जाथे।पूर्णाहुती मा नवकन्या भोज के रसम होथे।
कहे जाथे कि दुर्गा के उत्पत्ति सब देवता मिलके करिन हवय।महिसासुर ला मारे बर ब्रम्हदेव हा उदिम बताइस हे। काबर कि ओहा बरदान पाय रहिस कि ओकर मृत्यु कन्या(नारी) के हाथ मा होही।तब देवता मन महिसासुर के मारे बर नारी के रचना करिन , कोनों अपन तरफ से मुड़ी,कोन्हो हाथ तो कोन्हो गोड़, दाँत, आँखी, कनिहा, अउ अस्त्र सस्त्र दे के बनाय रहिन । आखिर मा शिव जी हा ओमे प्राण डारे रहिस। देवी हा नौ दिन तक नवा नवा रुप धरके लड़ई करिन अउ अाखिर मा कात्यायनी बनके महिसासुर ला मारिन।

हमर वेद पुराण मा एक बच्छर मा चार नवरात्र बताय हवय, जेमा चइत नवरात्र अउ कुवाँर नवरात्रि ला जादा फलदेवइया बताय हे।ये दूनो नवरात हा भगवान रामचंद्र ले जुड़े हवय।चइत नवरात्रि पाछू रामनवमीं ,रामजनम मनाय जाथे।वइसने कुवाँर नवरात्रि के पाछू दशहरा।वेद उपनिषद मा बताय हे कि शारदीय नवरात्र पूजा के शुरुआत भगवान रामचंद्र जी समुंदर के तीर मा करे रहिन अउ दसवाँ दिन लंका विजय बर आघू बढ़े रहिन।
तुलसीदास जी हा रामचरित मानस मा दुर्गा के जतका नाव ला बउरे हे , सीता माता के छोड़ अउ कखरो नाव ला नइ बउरे हे।दुर्गा हा परमशक्ति हरय। मानस मा सतरूपा, कौशिल्या, कैकई, सुमित्रा,उर्मिला, मांडवी, श्रुतिकीर्ति, अनुसुईया, अहिल्या, रति, सबरी, त्रिजटा, मंदोदरी, मंथरा नाँव के नारी पात्र के महिमा बताय हवय।
दुर्गा के सहस्त्र नाव मा सती, पार्वती(पारबती), उमा, भवानी, गौरी (महागौरी), गिरिजा, शक्ति, माता, जगदंबा, माया (महामाया), अंबिका, जगदंबिका,रिद्धीसिद्धि, इंदिरा,विधात्री,बनदेवी,शैलपुत्री,गिरिनंदनी, दक्षसुता, दच्छकुमारी, नाव मन घलाव आथय। रामचरित मानस मा तुलसीदास जी हा ये नाव ला राम कथा मा श्लोक, दोहा, चउपई, छंद मा बउरे हवय। रामचंद्र जी के नाव ला भोलेनाथ हा महामंत्र मानके जाप करथँय। सती, उमा, पारबती, गौरी, भवानी नाव ला ओकर अर्धांगिनी रुप मा बताय हवय।
तुलसीदास जी हा मानस के शुरुआत ही भवानी के बंदना से करे हवय।
।।भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरुपिणौ।।

भवानी शब्द ला अउ बहुत जगा मा अपन श्लोक, दोहा, चउपई, छंद मा बउरे हवय। जइसे –

कीन्ह प्रश्न जेहिं भाँति भवानी।
जद्यपि प्रकट न कहेउ भवानी।
यह प्रसंग मै कहा भवानी।
गई भवानी भवन बहोरी।
सुमिरि भवानी संकरहि, कह कबि कथा सुहाई।

दुर्गा अउ राम मा एक समानता घलाव हवय। दूनो झन अतियाचारी राक्षस मन ला मारिन हे।दुर्गा माता हा चंड, मुंड, शुंभ, निशुंभ, महिषासुर जइसन राक्षस ला मारिन।भगवान रामचंन्द्र हा मारीच, सुबाहू, ताड़का, कुम्हकरण, रावण ला मारिन ।मानस मा अइसने उमा, गिरजा नाव ला अड़बड़ अकन पद मा बउरे हे।जइसे

बहुरी कृपा करि उमहिं सुनावा।
उमा महेश बिवाह बाराती।
जब ते उमा शैलगृह आई।
उमा राम गुन गुढ़।
नाथ उमा मम प्राण सम।
उर धरि उमा प्राण प्रिय चरना।
यह इतिहास पुनीत अति, उमहिं कही वृषकेतु।
कलि विलोकि डाग हित हर गिरजा।
जौ न मिलहिं बरु गिरिजहिं जोगू।
सुन गिरिजा हरि चरित सुहाए।
राम कथा गिरजा मैं बरनी।
रामचरित मानस मा सती प्रसंग के विशेष महत्तम बताय हवय।सती हा सीता रुप धरके राम के परिच्छा लेइस।येकर सेती भोलेनाथ घुसियागे अउ रिसागे।बोलचाल बंद होगे समाधी ले लीस। आखिर मा दक्ष के बेटी हा पति के हिनमान ला नइ सह सकिस अउ अग्नि समाधी ले लीन।पाछू उँखर जनम गिरिराज हिमांचल के बेटी के रुप मा होइस।एकर सेती वोला बनदेवी, शैलसुता, शैलकुमारी, गिरिनंदिनी, दच्छसुता, तपस्वनी कहे जाथे।दुर्गा के पहिली दिन के पूजा शैलपुत्री के रूप मा होथय। मानस मा दुर्गा के इही नाव मन आय हवय।जइसे –

दच्छ सुता कहूँ नहिं कल्याणा।
कलिमल तृण तरु मूल निकंदनी।
बनदेवी बनदेव उदारा।
धन्य धन्य गिरीराज कुमारी।
सीता माता हा गौरी के भक्तिन आय ।रोज ओखर मंदिर जाके पूजा करथे।धनुष जग के बेरा मानस मा गौरी पूजा के बखान हवय।बिहाव मा गौरी गनेश के पूजा के बखान हवय।अइसे तो दुर्गा के एक रुप महागौरी घलाव हरय।यहू मानस मा हवय।

रिबिन गौरी देखी तह कैसी ।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिंय…….
रामचरित मानस मा दुर्गा के नाव ला कथा प्रसंग के अनुसार जोड़े गय हवय। कोन्हो जगा जगदंबा, अंबा, अंबिका, जगदंबिका, इंदिरा, विधात्री लिखे हावय-

सती विधात्री इंदिरा, देखी अमित अनूप।
नमामि इंदिरा पतिम्।
नाम उमा अंबिका भवानी।
जगदंबा तहं अवतरी, सोपुर बरनी न जाई।
जगदंबिका जानि भव माया।
संसार मा दुर्गा ला जगत जननी माता कहे जाथे।रिद्धि सिद्धि दात्री, पारबती, नाव ले घलाव जाने जाथे।तुलसीदास के मानस मा यहू मन ला जगा मिले हवय।
पारबती भल अवसर जानू।
पारबती सम पति प्रिय होऊ।
जब हरि माया दूर निवारी।
माता सुनी बोली सोमति डोली।
हे गज बदन षडानन माता।
रिद्धि सिद्धि सिर धरि मुनिबर बानी ।
राम के सुरुआत किये परंपरा आज हमर हिन्दू संस्कृति मा रच बस गे हवय। न माता के मान कम होय न राम के परभाव मिटय।जब तक दुर्गा के पूजा होही तब तक राम जन्म अउ दशहरा होही।अइसने जब जब राम कथा होही दुर्गा के रुप भवानी, गौरी, उमा, गिरजा के बंदना होही।

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा,जिला-गरियाबंद

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सिंगारपुर के माँवली दाई

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हमर माँवली दाई के धाम

हमर नान्हें छत्तीसगढ़ राज ला उपजे बाढ़हे अभी खूब मा खूब सोला बच्छर होवत हे फेर छत्तीसगढ़ राज के नाँव के अलख जगावत कतको साल होवत हे। हमर छत्तीसगढ़ राज के जुन्ना इतिहास हा बड़ प्रसिद्ध अउ सुग्घर हावय। ए राज के बीचो-बीच मा शिवनाथ नदिया बोहावत हावय। इही शिवनाथ नदिया के दुनो पार मा अठारा-अठारा ठन गढ़ प्राचीन समे मा ठाढ़े रहीन। एखरे सेती ए राज के नाँव छत्तीसगढ़ पड़ीच हे अइसन कहे जाथे। इही छत्तीसगढ़ मा के एकठन गढ़ हमर गवँई-गाँव सिंगारपुर (माँवली) हा घलाव आय। इही गाँव मा चार सौ बच्छर जुन्ना हमर माँवली दाई के प्रचीन मनमोहनी मयारु मूरत इस्थापित हावय।
माँवली दाई के मूरती अउ मंदिर के निरमान कब होय रहीस हे एखर बारे मा कोनो लिखे-धरे प्रमाण नइ मिलय। प्राचीन समे मा ए क्षेत्र हा मंडलागढ़ा कोटा के गोंड़ राजा मन के अधिकार मा रहीस। मराठा मन के शासनकाल मा ए क्षेत्र हा रघुजी तीसर के हक मा आइस। रघुजी तीसर हा सन् 1827 मा रायपुर के जगदेव साव ला इही क्षेत्र के गियारा ठन गवँई गाँव ला ईमान मा दीस जेमा हमर गाँव सिंगारपुर हा घलाव शामिल रहीस। ए हा तब के बात हरय जब भाटापारा क्षेत्र के कोनो गवँई गाँव के नाँव पता नइ रहीस अउ सिंगारपुर मा माँवली दाई हा बिराजे रहीस। ए बात के प्रमाण पहिली अंग्रेजी गजेटियर मा सन् 1901 मा सिंगारपुर के माँवली दाई अउ एती ओती बिराजे अउ जम्मो देवी दाई मन के बारे मा लिखे गे रहीस। एखर हिसाब ले हमर देवी दाई ला सिंगारपुर मा बिराजे चार सौ साल ले जादा समे होगे हावय। माँवली माता के मंदिर अउ मूरती के के बारे मा इस्थानीय जनश्रुति के हिसाब ले राजस्थान ले आय बंजारा जात के लोगन मन गाँव-गाँव गेरु बेचे बर सिंगारपुर आवँय अउ घुम फिर के कई महीना ले गेरु बेंचँय। गाँव के बाहिर सुनसान जघा मा अपन डेरा ला लगावँय। अपन डेरा तीर पखरा के माँवली दाई के मूरती ला बनवा के अपन सुरक्छा खातिर पूजा अर्चना करँय। मंदिर के तीरेच मा दाई के नाँव ले माँवली तरिया के घलाव निर्माण अपन निस्तारी खातिर कराइन। ए तरिया हा पखरा अउ सादा छुही के खदान ले बने हावय। ए अंचल हा आज घलाव सादा छुही अउ पखरा बर बड़ प्रसिद्ध हावय।
माँवली शब्द हा माँ अउ वली दू शब्द ले मिलके बने हावय। ए प्रकार माँ के अर्थ महतारी अउ वली के अर्थ हे संरक्छक, पालक या फेर संरक्छिका, पालन-पोसन करइया। ए प्रकार माँवली के शाब्दिक अर्थ होथे अइसन महतारी जउन हा अबोध अउ अग्यानी लइकामन के पास लन पोसन करइया माता। माँवली महतारी अइसन शक्ति के देवी के नाँव हरय जउन हा कभू अपन लइका मन मा कोनो भेदभाव नइ करय। जम्मों जन ले निच्छल ममता अउ मया करइया मममोहनी मुरतिया सिरिफ सिंगारपुर के माँवली दाई हा हरय। दाई के महिमा अउ प्रताप हा जग परसिद्ध हावय। दुनिया भर के दुखिया, थके हारे अउ सच्चा सरद्धालु मन के मन के मनौती ला माँवली दाई हा सरद्धा के हिसाब ले पूरन करथे। बच्छर मा दू बेर नवरातरी के पावन परब मा माँवली महतारी के अँगना मा भगत मन के मेला लगथे। दुरिहा-दुरिहा देश-परदेश ले इहाँ सरद्धालु आथे अउ दाई के दरसन पाथे। कोनो मन के मनौती पूरा हो ही कहीके ता कोनो मन के मनौती पूरा होगे कहीके दाई के भुवन मा जोत जवाँरा जलवाथे।
मंदिर के तीर मा दाई के नाँव मा शीतल जल ले भरपूर माँवली तरिया हावय। दाई के दरश के पहिली ए तरिया मा असनांदे के परमपरा हावय फेर आजकाल ए परमपरा हा नंदावत जावत हे। पानी छींच के काम चलावत हावँय। तरिया हा बड़ गहिरा हावय। तरिया के बीचोबीच मा सिमेंट ले बने नाँग नाथत श्रीकृष्ण के बड़का मूरती इस्थापित हे। ए तरिया ले पुरईन पान, कमल,पोखरा, खोखमा, सिंघाडा, ढेसकांदा, कुकरीकांदा अड़बड़ मिलथे। मंदिर के सरी जोत जवाँरा हा इही तरिया मा ठंडा होथे। तरिया के शीतल निरमल जल हा चमड़ी के रोग-राई मा फायदा करथे। खेती-खार के बेमार फसल बर माँवली तरिया के जल हा बड़ काट करथे अइसन ए अंचल मा जनश्रुति हे। सरद्धालु अउ पर्यटक मन बर तरिया मा पइड़ल वाले डोंगा के बेवसथा हे फेर देखरेख के कमी मा ए हा अदलहा परे हे।
प्राचीन समे ले माँवली मंदिर मा गोंड़ बईगा मन हा पुजेरी हावँय। आज घलाव इँखर आठवाँ-दसवाँ पीढ़ी हा माँवली दाई के सेवा करत आवत हावँय। आदिकाल ले मंदिर ला सँवारे बर पुजेरी मन हा बड़ मेहनत अउ तियाग करें हें। अभी दस-बारा बच्छर ले मंदिर ला ट्रस्ट के नाँव मा चेतलग मन हा मनमाने ढ़ंग ले चलात हे अउ पुजेरी के इस्थान ला शून्य कर दें हें। माँवली मंदिर के मुख्य मंदिर के संगे-संग 18-20 अलग-अलग देवी-देवता मन के मंदिर देवाला बने हावय। आने-आने जात समाज के धर्मशाला सरद्धालु मन बर बने हावय। ए धर्मशाला मन मा अपन-अपन जात के साल मा एक बेर बैठक होथे अउ समाजिक समस्या के निपटारा होथे। साल मा दू बेर नवरात मा मेला भराथे। खेल, तमाशा, दुकान, ढ़ेलवा, झूलना, नाचा-पेखन के रिंगी-चिंगी आयोजन नवरात परब मा होथे। सिंगारपुर तक पहुँचे के मुख्य दू ठन मार्ग हे। भाटापारा ले मोटर, जीप,कार,टेक्सी ले 12किलोमीटर उत्ती मा अउ निपनिया ले 6 किलोमीटर बूड़ती मा आये जाये के सुविधा हावय। माँलवी मंदिर के संगे संग माँवली तरिया के घलाव बड़ महिमा हावय जउन हा माँवली दाई के तीर मा बसे हे या फेर अइसन घलाव कहे जा सकथे के माँवली तरिया के तीर मा माँवली दाई हा बिराजे हावय। माँवली तरिया हा बड़ गहिला हावय जौन हा सादा छूही माटी के खदान ले बने हावय। माँवली दाई के अँचल मा सादा छूही के भरमार हे। ए सादा छूही ला पबरित मान के घर-दुआर, कोठी-डोली, पूजा-पाठ, जग-हवन मा प्रयोग करे जाथे। सिंगारपुर के पास-परोस के गाँव जरहागाँव, लेवई, कोटमी अउ कोदवा मा छूही माटी के खदान हे। माँवली दाई के प्रताप ले ए क्षेत्र हा सादा छूही माटी बर बड़ परसिद्ध हावय।
माँवली मंदिर मा बच्छर भर मा दू बेर नवरातरी बड़ उच्छल मंगल ले मनाय जाथे। माता के मंदिर मा जोत-जवाँरा जगमग-जगमग जलाय जाथे। सरद्धालु भगत मन हा माँवली दाई के अँगना मा अपन मन के मनौती पूरा हो ही कहीके या फेर मन के मनौती पूरा होगे कहीके जोत जवाँरा जलवाथे। नवरात मा माँवली मंदिर के तीर मा मेला-ठेला भराथे। एमा खेल-तमाशा, ढ़ेलवा-रईचुली, खाई-खजाना, नाचा-गम्मत अउ आनी-बानी के दुकान पानी सजथे। मंदिर अउ मेला के सुग्घर बेवसथा माँवली माता समिती हा करथे जउन हा दानदाता मन के सहयोग ले साज सजावट अउ जीर्णोद्धार के बूता भागीरथ बरोबर करत हावय। एखर संगे संग माँवली मेला मा दुरिहा-दुरिहा ले आये सब्बो सरद्धालु भगत मन बर माँवली माता सेवा समिति हा भण्डारा के आयोजन करथे। एमा दान-दाता मन के दान ले भण्डारा मा समिति के सदस्य मन स्वयंसेवक के रुप मा पून्य के बूता लगिहाँथ करत आवत हे। पाछू दू चार बच्छर ले छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग ले स्थानीय जनप्रतिनिधि अउ उत्साही नवयुवक मन हा माँवली महोत्सव के रिंगी-चिंगी मनोरंजक सांस्कृतिक कार्यक्रम ला घलाव सरलग करावत हावय। हमर छत्तीसगढ़ राज के चिन्हारी अउ गवाही ला अब जतने के बेरा हावय। जतन के, सकेल के, सुरक्छा करके पुरखा मन के चिन्हारी ला बचा के राखे के बेरा हावय। हमर सरकार ला अइसन जगा ला धरोहर बरोबर संभाले के जरुरत हावय अउ सुविधा दे के परयास राज सरकार ला करना चाही। अइसन गवँई-गाँव हा हमर असल गहना हरय। एला कोनो परकार ले गवाँना नइ चाही। एखर विकास अउ सुरक्छा के सरी उपाय सरकार ला हर हाल मा करना चाही।
. . ।।जय माँवली दाई।।…
जय जय हे मोर माँवली दाई, लइका हरन तोरेच नदान।
होवय हमर हिरदय निरमल, बाढ़य बुद्धि अउ गियान।
बाधा बिघन कोनो आवय झन, बिगड़य झन काँहीं बूता कोनो।
सिंगारपुर के माँवली दाई ला, करय कन्हैया हा परनाम।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक-भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9753322055

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बतावव कइसे ?

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मया पिरीत म बँधाय हन जम्मो,
ए बँधना ले पाछू छोड़ावव मै कइसे? !1!

बिना लक्छ के मोर डोंगा चलत हे,
येला बने कुन रद्दा देखावव मै कइसे? !2!

तोर दुख अऊ पीरा ल मानेव अपन मै,
ओ पीरा ल तोर भूलावव मै कइसे? !3!

नी देखे सकव तोर आँखी म आँसू,
बिन जबरन तोला रोवावव मै कइसे? !4!

सुरता ह तोर बड़ सताथे ओ संगी,
अपन सुरता करवावव मै कइसे? !5!

मया त तोर ले बड़ करथो जहुरिया,
ये मया ल तोला जतावव मै कइसे? !6!

ये मया पिरीत के अंधेरी कुरिया म “राज”,
मोर आरूग मया ल बतावव मै कइसे? !7!

पुष्पराज साहू “राज”
बोईरगाँव-छुरा (गरियाबंद)

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सरद पुन्नी अऊ कातिक महिना के महत्तम

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हमर देस राज म हमर संसकिरीति सभियता रचे बसे हावय। हर परब के बिसेस महत्तम हावय। येमा एक परब सरद पुन्नी हे। कुंआर महिना के पुन्नी ल सरद पुन्नी के नाव ले जाने जाथे। हमर हिन्दू धरम म पंचांग के अनुसार वैसे तो हर महिना के बिसेस होथे। अइसने रितु हे सरद।
गोस्वामी तुलसीदास जी अपन रामचरितमानस म भगवान राम अऊ भैया लछमन के बीच संवाद जो कि किसकिंधा कांड म सरद रितु के बरनन अऊ महत्तम के बारे म लिखे हावय। जे रितु के राम भगवान ह अपन मुख से ओखर बिसेसता अऊ महत्तम ल बताये हे ते रितु ह बिसेस रईबे करही।
बरखा बिगत सरद रितु आई। लछिमन देखु परम सुहाई।।
फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषॉं कृत प्रगट बुढ़ाई।।

उदित अगस्ति पंथ जल सोषा। जिमि लोभहि सोषइ संतोषा।।
सरिता सर निर्मल जल सोहा। संत हृदय जस गत मद मोहा।।

रस-रस सूख सरित सर पानी। ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी।।
जानि सरद रितु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए।।

पंक न रेनु सोह असि धरनी । नीति निपुन नृप कै जसि करनी।।
जल संकोच बिकल भइॅं मीना। अबुध कुटुंबी जिमि धनहीना।।

गोस्वामी तुलसीदास कृत
’’रामचरितमानस’’ किस्किंधा काण्ड

बछर भर म केवल सरद रितु के पुन्नी के तिथि के चंदा ह अपन सोलह कला ल धारन करे रईथे। येखर कारन सरद रितु के बिसेस महत्तम हाबय। पुन्नी के रतिहा घरो-घर बिसेसकर अब केवल गांव म कीर्तन-भजन गाये जाथे अऊ तसमई चुरो के चंदा के परकास म अंगना अऊ छानी म रखे जाथे। अऊ रतिहा या भिंसरहा वो तसमई के परसाद ल दवई के रूप म घर के लोगनमन ल अऊ आरा-परोस म बांटे जाथे, काबर के ये रतिहा चंदा अपन सोलह कला के साथ उगे रईथे अऊ हमर पिरिथिवी ले बहुत तीर म आ जाथे ये रतिहा चंदा के परकास म अमरित के धारा बोहात रईथे। जेखर कारन तसमई ल चंदा के परकास म रखे के बिधान हावय।
कईठन दवई ल सरद पुन्नी के रतिहा खाये के बिधान बनाये गे हे। आयुरबेर गरंथ म घलो प़ढ़े बर मिलथे। काबर के सरद पुन्नी के रतिहा चंदा के परकास म चिकित्सकीय गुन रईथे।
कई बैद महाराज मन सरद पुन्नी के रतिहा जीवन रछक बिसेस अउसधी ल बनाके रोगी के उपचार करे बर तसमई के साथ मिला के खवाथे।
सरद पुन्नी ले ही कातिक नहाय के महिना घलो सुरू हो जाथे जेहर कातिक पुन्नी तक रईथे।
ये प्रकार ले देखा जाये त सरद रितु अऊ पुन्नी के अति महत्तम हे। चाहे वो गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस म होवय, चाहे आयुरबेद गरंथ म,चाहे बैद महाराज के उपचार म, चाहे परारकिरितिक उपचार म सरद पुन्नी हमन बर बिसेस हे।

प्रदीप कुमार राठौर ’अटल’
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला-जांजगीर चांपा
(छत्तीसगढ़)

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देवारी बिसेस : हमर पुरखा के चिनहा ल बचावव ग

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……हमर संस्कीरिती, हमर परंपरा अउ हमर सभ्यता हमर पहिचान ये।हमर संस्कीरिती हमर आत्मा ये।छत्तीसगढ़ के लोक परब, लोक परंपरा, अउ लोक संस्कीरिती ह सबो परदेस के परंपरा ले आन किसम के हावय।जिहाँ मनखे-मनखे के परेम, मनखे के सुख-दुख अउ वोखर उमंग, उछाह ह घलो लोक परंपरा के रूप म अभिव्यक्ति पाथे।
जिंनगी के दुख, पीरा अउ हतास, निरास के जाल म फंसे मनखे जब येकर ले छुटकारा पाथे, अउ जब राग द्वेस से ऊपर उठ के उमंग अउ उछाह ले जब माटी के गीत गाथे अउ हमन खुसी ल जब मनखे चार के बीच म खोल देथे तब छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य अउ लोकगाथा सुवा, करमा, ददरिया, पंथी, राऊत नाचा,चंदैनी, भोजली, गेड़ी, बाँसगीत, गौर, सरहुल, मांदरी, दसरहा माटी के सिंगार कहाथे। ये जम्मो नृत्य केवल मनोरंजन के साधन नोहय…..बल्कि हमर हिरदे के अंदर के बात ल कहे के साधन घलो हरय।हमर भाव हमर कला के माधियम ले लोकमानस के बीच आथे।….तब मनखे-मनखे के बीच के दूरी दुरिहा जथे….अउ भेदभाव ल भुलाके…मनखे जब एके स्वर मे गाथे तब उही बेरा लागथे कि परंपरा मनखे ल मनखे ले जोड़े के काम करथे।
फेर आज के कलजुगिया जमाना म हमर परंपरा अउ हमर संस्कीरिती ह दिनो दिन नंदावत हे।
जेन चिंता के बिसय हरे।आज मनखे माया-मोह के जाल म अतेक अरझ गे हे, कि अपन पुरखा के समय ले चले आवत तिहार-बार के महत्तम ल घलो समझ नइ पावत हे। अपन सभ्यता ल खुदे भुलावत हे।
हमर छत्तीसगढ़ म सबले बड़का तिहार के रूप म मनईया तिहार “देवारी” ल ही ले, ले…..पहली कस कुछू सोर नइ राहय अब गाँव म।……तिहार बार के दिन घलो गाँव गली मन सुन्ना-सुन्ना लागथे।
गाँव-गाँव म मातर, गोबरधन पूजा के मनाय के तरीका ह घलो बदलत जात हे।…..मांतर जेकर मतलबे हे मात के मदमस्त होके उमंग उछाह ले मनाय के तिहार हरय। पहिली हमन नानकिन राहन मातर देखेे ल जान गड़वा बाजा अउ मोहरी के सुर म मन घलो बइहा जवय। पान खावत जब परी मन नाचय, कौड़ी के कपडा़ पहिरे, खुमरी ओढ़हे, पाहटिया मन जब सज के निकलय तभे लागय आज मातर हरय।
फेर अब के समे म न पहिली कस दोहा परइया राऊत मिलय न पहिली कस बाजा के बजइया।
जब ले बैंड बाजा ह पाँव पसारिस तब ले हमर कान के सुने के तरीका ह घलो बदल गे हे।
एक जमाना रहिस जब पंदरा दिन पहिली ले मनखे मन घर दुवार के छबई-मुदई, लिपई-पोतई चालू कर देवय। फेर आज मनखे के सोच म फरक आ गे हे। गाँव के नोनी मन घरो-घर सुवा नाचे के चालू कर देवय।फेर आज खोजे ल लागथे सुवा के नचइया मन ल।तभो ले मिलय नहीं।…..कतेक कहिबे आज तो दिया बाती के जलाय के तरीका ह घलो बदलत हे।मनखे रंग-रंग के झालर अउ लाईट ले घर दूवार ल सजावत हे,चमकावत हे फेर मन मंदिर के अंधियार ल अंजोर नइ कर पावत हे।
संस्कीरिती जिंदा हे, सभ्यता जिंदा हे बस संस्कार जिंदा नइ हे। त संगवारी हो पाश्चात्य संस्कीरिती के चक्कर म झन पड़व….अउ अपन परंपरा ल झन छोड़व।अपन संस्कीरिती म अपन छत्तीसगढ़ के दरसन करव….छत्तीसगढ़ के तीज-तिहार अउ लोकपरंपरा ल बचा के राखव…तभे हमर छ्त्तीसगढ़ के मान ह बाढ़ही।

केशव पाल
मढ़ी(बंजारी)सारागांव,
रायपुर(छ.ग.)
9165973868

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देवारी तिहार : देवारी के दीया

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देवारी के नाम लेते साठ मन में एक प्रकार से खुशी अऊ उमंग छा जाथे। काबर देवारी तिहार खुशी मनाय के तिहार हरे।
देवारी तिहार ल कातिक महीना के अमावस्या के दिन मनाय जाथे। फेर एकर तइयारी ह 15 दिन पहिली ले शुरु हो जाथे। दशहरा मनाथे ताहन देवारी के तइयारी करे लागथे।

घर के साफ सफाई – देवारी के पहिली सब आदमी मन अपन अपन घर, दुकान बियारा, खलिहान के साफ सफाई में लग जाथे। घर ल सुघ्घर लीप पोत के चकाचक कर डारथे। बारो महिना में जो कबाड़ सकलाय रहिथे वो सब साफ हो जाथे। घर के खिडखी दरवाजा मन ल भी साफ करके पालीस लगाके चमकाय जाथे।

छबाई – पोताई – – आज भी गांव में घर के चंउरा मन ओदर जाय रहिथे वोला माटी में छाब के बढिया बनाय जाथे अउ साथे साथ घर कोठार के जतका माटी वाला कोठ ओदरे रहिथे वोला छाब के सुधारे जाथे।

किसान मन ह अपन बियारा ल रापा में छोल छुली के साफ करथे अऊ भांडी ल ऊंचा उठाके ओकर उपर कांटा लगाके छेका करथे। ताकि कोनो आदमी या जानवर झन खुसर सके।

माटी के दीया – देवारी तिहार में माटी के दीया जलाय जाथे। कुमहार मन ह माटी के दीया बनाथे अऊ वोला बजार में जाके बेंचथे। माटी के दीया जलाय से घर में लछमी के आगमन होथे अइसे माने जाथे ।

देवारी काबर मनाथे – देवारी मनाय के पीछे भी एक कारन हे कि भगवान श्री राम चन्द्र जी ह इही दिन चौदह बरस के बनवास ल काट के अयोध्या वापिस आइस हे । ओकर खुशी में पूरा अयोध्या वासी मन ह दीया जलाके सुवागत करे रहिसे। वो दिन अमावस्या के घोर अंधियारी रात ल दीया जला के जगमग अंजोर कर दीस । तब से दीपावली या देवारी तिहार ल मनात चले आत हे।

धनतेरस – देवारी के दू दिन पहिली धनतेरस के तिहार मनाये जाथे । धनतेरस के दिन बजार में खूब भीड़ भाड़ रहिथे । सब आदमी मन ह बरतन अउ सोना चांदी खरीदथे । ये दिन ए सबला खरीदना शुभ माने जाथे। सांझ के समय घर में तेरह दीया जला के पूजा करे जाथे ।

नरक चौदस – धनतेरस के दूसर दिन नरक चौदस के तिहार मनाय जाथे । एला छोटे देवारी भी कहे जाथे ।नरक चौदस के दिन बिहनिया ले उठ के स्नान करना शुभ माने जाथे । ए दिन सब आदमी मन ह अपन अपन पसंद के अनुसार मिठाई खरीदथे । खील बतासा के मिठाई ह परसिद्ध हे। गनेस लछमी के फोटू खरीदथे। लइका मन बर कपड़ा अउ फटाका खरीदें जाथे।

दीपावली – देवारी के दिन तो लइका मन ह बिहनिया ले फटाका फोरे के शुरु कर देथे। सांझ के समय मुहुरुत देख के लछमी माता के पूजा अऊ आरती करे जाथे। पूजा करे के बाद पारा परोस में परसाद बांटे जाथे अऊ एक दूसर ल दीपावली के शुभकामना दे जाथे। लइका मन ह खूब फटाका फोरथे। फटाका फोरे में लइका मन ल बहुत मजा आथे। लइका मन के साथे साथ बड़े मन भी फटाका फोरथे अऊ मजा लेथे।

जुंवा खेले के परंपरा– लछमी पूजा करे के बाद जुंवा खेले के गंदा परंपरा हे। ए दिन छोटे बड़े सब आदमी मन जुंवा खेलथे। सियान मन कहिथे कि ए दिन जे जुंवा नइ खेलही वोहा अगले जनम में छुछु बन जाही।
जुंवा खेल के कतको आदमी बरबाद घलो हो जाथे। ए परंपरा ल दूर करना जरुरी हे।

गोवर्धन पूजा – देवारी के दूसर दिन गोवर्धन पूजा करे जाथे। ए दिन गाय बैला के पूजा करे जाथे अऊ खिचरी खवाय जाथे। इही दिन भगवान श्री कृष्ण ह गोवर्धन परवत ल उठा के सबके रक्षा करे रहिसे। ओकरे याद में ए तिहार ल मनाय जाथे।

भाईदूज – एकर बाद भाईदूज के तिहार मनाय जाथे। जेमे बहिनी मन अपन भाई के पूजा करथे अऊ मिठाई खवाथे। ओकर बदला में भाई ह अपन बहिनी ल उपहार भी देथे ।

ए परकार से देवारी तिहार ल सब कोई मिलजुल के उत्साह पूरवक मनाथे। ओकर बाद किसान मन ह अपन खेती किसानी के काम में लग जाथे ।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला – कबीरधाम छ. ग)
8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com

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चुनाव के चिल्लाई म मतदान करना जरूरी हे

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हमर समाज म कुछु के महत्व होवय चाहे झन होवय, तभोले चुनाव के बढ़ महत्व होथे, चुनाव अइसे चीज हे जेखर ले हमन ह कुछु भी अपन मन-पसंद चीज ल चुने के मौका मिलथे, जेखर सब ले बड़े फायदा होथे हमर समाज अउ विकास बर, नेता चुने के अधिकार हमन ल हे, त हमर इहा के नेता मन घलोक कम नइ हे जइसे चुनाव के बेरा तीर म आथे त ओहु मन मनखे के तीर तखार म मंडराए ल चालू कर देथे, जइसने पानी गिरथे त मेढ़क मन नरियात-नरियात नदिया नरवा ले बाहिर निकलथे, वइसने चुनाव आये के बेरा म बड़का-छोटे सब्बो नेता मन अपन घर-दुवारी ले बाहिर निकल के गली-गली घूम के धुर्रा घलोक ल मजा ले चाटथे। अउ जनता ल नरिया-नरिया के हलाकान कर देथे, तहले चुनाव जीते के बाद वही
नेता मन दुरिहा- दुरिहा तक दिखाइ नइ देवय।
त येही बेरा रहिथे जेमा हमन ल अपन अधिकार के बारे म जाने ल अउ समझे ल लगही, अउ चुनाव म अपन अधिकार के उपयोग कर के मतदान करे ल चाही, तभे हमन अपन विकास ल बने ले कर सकथन, अउ अपन देश समाज ल बने नेता के हाथ म शोप सकथन, कही हमन अपन अधिकार के उपयोग नइ कर के मतदान नइ देबो अउ मतदान के दिन ले हमन ल का करना हे कइ के सुते रहिबो त जेन नेता ह दूसर के मतदान ले चुन के हमर बीच म अहि त ओहा पूरा साल भर सुते रही अउ तुहर जिनगी ल घलोक नरक बना डारही, येखरे बर अपन अधिकार अपन मत के उपयोग करके खुसी के संग चुनाव म सामिल होहु। अउ मतदान करहु अपन मत अपन अधिकार के उपयोग करे के बेरा आगे हे।
जय जोहार जय छत्तीसगढ़,
मोर वोट मोर राज के विकास।
मोर अधिकार हे, मतदान करना ये बार हे।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर।

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नान्हे कहिनी –ढुलबेंदरा

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कका! एसो काकर सरकार आही ग?’
‘जेला जनता जिताही तेकरे सरकार आही जी’
‘तभो ले तोर बिचार म का जमत हे?’
‘मोर बिचार म तो कन्हो नी जमत हे। जेला भरोसा करके बइठारथन उही हमर गत बिगाड़ देथे।’
‘फेर एक ठ बात अउ पूछना रिहिस कका?”
“पूछ रे भई! आ मोर पीठ म बैताल असन लटक जा।”
‘ते नराज होगेस कका! फेर बताएच बर लागही तोला।’
पाछू घनी हमन फलाना नेता के केनवासिंग म भीडे रेहेन गा। फेर एसो वोहा ढेकाना पाल्टी म चल दिस।’
ओमन अइसन काबर करथे ग? अपन नहीं त हमर इज्ज़त के धियान रखतिस। अब बता भला! एसो चिन-पहिचान वाला मन ल का जुवाब दुंहू।
कका ह कथे-‘तें ह ढुलबेंदरा मन के चक्कर म मत पड रे बाबू! नेता मन ह कभू अपन जुबान के पक्का नी रहय। ओला जेन समय जेकर कोती ले फयदा दिखथे ओकरे कोती रेंग देथे। तें उंकर पाछू म दउडत अपन रोजी-मजूरी अउ चिन-पहिचान संग अपन संबंध ल झन बिगाड़।’
कका के बात ल सुनके ओहा थे- “सिरतोन काहत हस कका! अउ तुरते फलाना पाल्टी के अपन घेंच म अरोय गमछा ल निकाल के फेंक दिस अउ चलते बनिस।

रीझे यादव
टेंगनाबासा (छुरा)

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देवता मन के देवारी : कारतिक पुन्नी

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हमर हिन्दू धरम मा देवी-देवता के इस्थान हा सबले ऊँच हावय। देवी-देवता मन बर हमर आस्था अउ बिसवास के नाँव हरय ए तीज-तिहार, परब अउ उत्सव हा। अइसने एक ठन परब कारतिक पुन्नी हा हरय जेमा अपन देवी-देवता मन के प्रति आस्था ला देखाय के सोनहा मौका मिलथे। हमर हिन्दू धरम मा पुन्नी परब के.बड़ महत्तम हावय। हर बच्छर मा पंदरा पुन्नी होथे। ए सबो मा कारतिक पुन्नी सबले सरेस्ठ अउ शुभ माने जाथे । कारतिक पुन्नी के दिन भगवान शंकर हा तिरपुरासुर नाँव के महाभयंकर राक्छस ला मारे रहीन हे तब ले एला तिरपुरी पुरनिमा के नाँव जानथें अउ मानथें। शंकर भगवान के नाँव हा इही दिन ले तिरपुरारी के नाँव हा इही दिन ले मिलीस हे। अइसन मानियता हे के कारतिक मा शिवशंकर के दरसन करे ले सात जनम ले मनखे हा गियानी अउ धनवान होथे। इही दिन अकाश मा जब चंदा उवत रथे तभे सिवा, संभूति, संतती,पिरती, अनसुइया अउ छमा ए छै किरतिका मन के पूजा-पाठ करे ले शंकर जी हा अड़बड़ प्रसन्न होथे। इही दिन गंगा मईया मा असनांदे ले बच्छर भर के असनांद के फल मिलथे। एखरे सेती कारतिक पुरनिमा ला महा कारतिकी पूरनिमा घलाव कहे जाथे।
कारतिक पुन्नी के दिन संझा बेरा मा विष्णु भगवान के मछरी अवतार होय रहीस। ए दिन गंगा मा नहाय अउ दान देके महत्तम हावय। ए दिन नदीया मा नहा के दीया के दान दक्छिना ले दस ठन जग बरोबर फल मिलथे। ब्रम्हा, विष्णु, महेश, ऋषि अंगीरा अउ आदित्य मन हा कारतिक पुन्नी ला महापुनीत परब माने हावय। एखर सेती ए दिन गंगा असनांद करके दीया के दान दे के, हूम-जग, उपास अउ पूजा-पाठ करके विशेष महत्तम हमर धरम ग्रंथ मन मा बताय गे हावय। पूजा-अरचना , दान-दक्छिना अउ जग, हवन ला शुभ बेरा मा संपन्न करे जाय ता शुभेच शुभ होथे।
जौन प्रकार ले हमर पिरिथिवी लोक मा कारतिक अमावसिया के दिन मा देवारी के जगमग तिहार ला मनाथे, ठीक अइसने कारतिक पुन्नी के शुभ तिथि मा देवलोक मा देवी-देवता मन अब्बड़ धूमधाम ले देवारी के उत्सव ला मनाथे। एखर सेती कारतिक पुन्नी के परब ला हमन देव देवारी के नाँव ले घलाव जानथन। धरम ग्रंथ अउ पुराश के हिसाब ले असाढ़ महीना के अंजोरी पाख अकादशी के दिन ले भगवान विष्णु हा चार महीना बर योगनिद्रा मा लीन हो जाथे पताल लोक मा। भगवान विष्णु हा कारतिक महीना के अंजोरी पाख के अकादशी के दिन जागथे तेला देवउठनी अकादशी कहिथे। एखर पाँच दिन पाछू कारतिक पुन्नी के दीन सबो देवी-देवता मन खुशी ले झूम-झूम के भगवान विष्णु संग लछमी जी के आरती उतार के उच्छल मंगल के संग दीया बार के देवलोक मा देवारी मनाथे। हमर पिरिथिवी के देवारी मा भगवान विष्णु के चार महीना के नींद मा रहे के सेती लछमीजी के संग देवता मन के परतिनिधी के रुप मा श्री गणेश जी के आरती उतारे जाथे।
कारतिक पुन्नी ला दे्ता मन के त्रिदेव ब्रम्हा, विष्णु अउ महेश मन के द्वारा महापुनीत परब के संज्ञा दे हावय। ए दिन गंगा असनाँद, व्रत, उपास, अन-धन के दान, दीया के दान, हूम-जग, आरती-पूजा के विशेष महत्तम बताय गे हावय। धारमिक मानियता के हिसाब इही दिन कन्यादान करे के संतान व्रत हा पूरा हो जाथे। जौन सरद्धालु मन हा कारतिक पुन्नी ले शुरु करके जम्मों पंदरा पूरनिमा के व्रत, उपास राख के चँदा ला जल अरपन करथें। भगत मन सरद्धा अउ सक्ति के अनुसार दान-पान, शुभ कारज करथे ओखर सभो मनोकामना हा पूरा होथे। इही दिन के रतिहा मा दीया बार के, रतिहा जाग के भजन करत, पूजा-पाठ अउ अराधना करना चाही। इही दिन भगवान विष्णुजी के पूजा-पाठ के संगे संग तुलसी पूजा अउ तुलसी बिहाव करे ले घर मा सुख समरिद्धी अउ शांति के भंडार भरथे। कारतिक महीना मा तुलसी बिहाव अउ तुलसी अराधना के विशेष महत्तम हावय।
पुरान मन के कथा मा गुनबती नाँव के एक झन इस्तिरी हा मंदिर के मुहाँटी अउ अँगना मा तुलसी के सुग्घर फुलवारी ला कारतिक महीना मा लगाइस अउ तन-मन ले सेवा करीस। इही गुनबतु हा अपन आगू जनम मा सतभामा बनके श्री कृष्ण भगवान के पटरानी बनीस। एखरे सेती कारतिक पूरनिमा के दिन तुलसी पूजा अउ तुलसी बिहाव के बड़ महत्तम हावय। इही दिन तुलसी के बिरवा अउ तुलसी चौरा ला सजाय सवाँरे जाथे अउ भगवान सालिगराम के बिधि-बिधान ले पूजा-पाठ करे जाथे अउ तुलसी बिहाव के उत्सव ला सरद्धा के संग मनाय जाथे।

कन्‍हैया साहू ‘अमित’
शिक्षक, भाठापारा

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तभे होही छत्तीसगढ़ी भाखा के विकास

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छत्तीसगढ़िया मन ल पहली अपन भाखा ल अपनाये ल लगही तभे होही छत्तीसगढ़ी भाखा के विकास

छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी भाखा बर राज भाखा आयोग त बना डारे हे फेर भाखा के विकास बर कुछु काम नइ होइस, अठरा बछर होगे छत्तीसगढ़ राज ल बने तभो ले इहा के छत्तीसगढ़ी भाखा ह जन-जन के भाखा नइ बन सकिस, कतको परयास करत हे जन मानुष मन अपन भाखा ल जगाये के, तभो ले अतना पिछड़े त कोनो भाखा नइ होही जतन छत्तीसगढ़ी भाखा हे, काबर के छत्तीसगढ़ी भाखा ल जतका खतरा परदेशिया मन ले हे जेन मन इहा आ के अपन भाखा के विकास करत हे, ओखर ले जादा खतरा अइसे छत्तीसगढ़िया मनखे ले हे जेन ह डिंग मारे बर अपन भाखा ल छोड़ के दूसर भाखा म गोठियाथे, फेर ये कभु नइ सिख पावत हे के दूसर भाषी मनखे मन जब इहा आ के अपन भाखा म गोठियाये बर नइ भुलाये, अपन भाखा कोखरो भी आधु म बोले म कोनो संसो नइ करय, तभो ले येला देख के छत्तीसगढ़िया मन कुछु नइ सीखत हे, येखर बर मोर कहना हे कि परदेशिया मन ले छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी भाखा ल खतरा नो हे खतरा त अपन राज के अइसने मनखे ले हे जेन ह जानबूझ के छत्तीसगढ़ी भाखा बोले गोठियाय म संसो करथे अउ अपन भाखा ल बने ले गोठियाय नइ, अउ तभो ल जतन छत्तीसगढ़िया मनखे हे उमन ठान लेवय की आघु ले जोन भी मनखे कने मिलही चाहे ओ हा छत्तीसगढ़िया होवय या चाहे परदेशिया सब्बो ले छत्तीसगढ़ी भाखा म गोठियाही त हमर भाखा ल कोन परदेशिया कोनो दूसर मनखे ले खतरा नइ रही, अउ येही ल देख के जो बाहरी मनखे हमर छत्तीसगढ़ राज म अही त मजबूरी म छत्तीसगढ़ी भाखा ल शिख के आये ल लगही, त सब्बो ले छत्तीसगढ़ी भाखा म गोठियावव चाहे कोनो भी मनखे होवय, फेर हमर छत्तीसगढ़ी राज अउ इहा के भाखा के विकास होये ले कोनो नइ रोक सकय।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़
मो न- 7722906664

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छत्तीसगढ़ी राजभासा दिवस खास –छत्तीसगढ़ी भासा के अतीत, वर्तमान स्वरूप

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छत्तीसगढ़ी भासा बोले म सहज अउ सुग्घर हे, ये भासा म कुसियार के रस असन मिठास हे। एकर व्याकरन ल अठारह सौ पचीयासी म हिरालाल चन्नाहु ह लिख डारे रहिस हे। ये व्याकरन ल बछर 1890 म कोलकाता के अंग्रेजी कम्पनी ले प्रकासित घलो कराए गए रहिस हे। छत्तीसगढ़ी भासा छत्तीसगढ़िया मन के महतारी भासा आय। अभी के बेरा म एकर बोलइया लगभग दु करोड़ ले ऊपर हे। छतीसगढ के अलावा नागपुर म बसे छत्तीसगढ़िया, दिल्ली, जम्मू, धमधी (महाराष्ट्र), असाम के चाय बागान के प्रवासी छत्तीसगढ़िया मन के दुवारा घलो छत्तीसगढी बेव्यहार के रूप म बऊरे जाथे।
छत्तीसगढ़ी म भासिक गुन के पूरा उपलब्धता हे ये पूर्वी हिंदी उपभासा के बोली रूप आय। छत्तीसगढ़ी म 8 स्वर दु सन्धिअक्चर अउ 29 मूल व्यंजन के अलावा 6 संयुक्त व्यंजन हाजिर हे। छत्तीसगढ़ी के 9 बोली रूप हे जे हर भासाई नजरिया ले छत्तीसगढ़ी ले आनेच रूप म हे, जेमा ख़लताही, पंडो, देवारी, हल्बी, डंनगचघा, सरगुजिहा, आदि हे।
छत्तीसगढ़ी ल 28 नवंबर बछर 2007 म विधानसभा म संविधानिक रूप ले राजभासा के दरजा देहे गए हे। बछर 2008, 14 अगस्त के दिन एकर बढोत्तरी खातिर राजभासा आयोग के घला गठन करे गे हे। छत्तीसगढी म वर्तमान बेरा म हर साहित्य के लेखन होवत हे, कहिनी, कविता ले लेके हरेक विधा के रचना अभी के बेरा म छत्तीसगढि़या प्रेमी कलमकार साहित्यकार मन करत हे। ओमन के प्रोत्साहन खातिर राजभासा आयोग ह दस हजार रुपिया के अनुदान घला देवत हे। छत्तीसगढ़ी हर गोठ बात म तो बउरे जात हे फेर पढ़ई-लिखई अउ सरकारी काम-कारज म बउरे नई जावत हे। जबकि सविधान म बेवस्था हे कि लइका मन ल ओकर महतारी भासा म सुरवाती सिक्छा देहे जाए। एकर संगे-संग सरकारी काम कारज घलो ओकर इस्थानिय भासा म होना चाही। अब तो सुप्रीम कोरट ह घलो दिसा निर्देस दे देहे हे की न्यायालय के फैसला इस्थानिय भासा म करे जाना चाही। ये हिसाब ले छत्तीसगढी म फैसला होना चाही। फेर एको ठन बुता नई हो पावत हे।
छत्तीसगढ़ी ल लेके जरूर ओट के राजनीति होवत हे, अभी चुनई म देख लव पूरा परचार ल लेके पार्टी के उमीदवार मन छत्तीसगढ़ी ल बेलुजर बउरत हे। सोसल मीडिया म घला छत्तीसगढी ल प्रचार के रूप म बउरत हे। अपन भासन बाजी म घलो छत्तीसगढी ल उपयोग करत हे। फेर चुनई जीते के बाद येमन ल छत्तीसगढी गरु धरे ल लग जाथे। चुने के बाद छत्तीसगढी ल भुला लेथे। कोनो विधायक, मंत्री विधानसभा म न तो छत्तीसगढी म बोले न तो प्रस्न दागे। एक बात जरूर हे के पाछू बछर राज्यसभा संसद छाया वर्मा ह उच्च सदन म छत्तीसगढी ल आठवी अनसूचि म संघराये खातिर अपन गोठ बात छतीसगढ़ी म रखे रहिस।
अभी के स्थिति म छत्तीसगढी सिरिफ मनोरंजन के साधन बन के रही गे हे। एक प्रयास रविसंकर विश्वविद्यालय ह छत्तीसगढी के बढोत्तरी खातिर एम. ए. छत्तीसगढी के सुरवात बछर 2013 ले करे हे। एकर अलावा पत्र-पत्रिका टीवी चेनल जइसे हरिभूमि चौपाल, देशबन्धु मड़ई, दैनिक भास्कर संगवारी, अमृत सन्देस अपन डेरा, अंजोर, राजिम टाइम्स, आईबीसी24, ईटीवी, आई.एन.एच., गुरतुर गोठ डॉट कॉम, हांका छत्तीसगढ़ी के अलावा नियूज छत्तीसगढी 24 लाइव, छत्तीसगढी ल जगा दे हे के बुता करे हे। फेर छत्तीसगढी़ ल अब भी वो सम्मान नई मिले हे जेकर वो असली हकदार हे। जब तक इस्कूली सिक्छा अउ सरकारी काम-कारज म येला बउरे नई जाहि तब तक ये अपन साख खातिर जूझत रहिही।
अभी विधानसभा चुनई हे फेर एको राजनीतिक पारटी मन अपन घोसना पत्र छत्तीसगढ़ी म नई जारी करे हे। जबकि एक न्यूज चेनल लल्लू राम ह राजनीतिक पार्टी मन ले छत्तीसगढी म चुनावी घोसना पत्र जारी करे के गोहार करे हवय।
छतीसगढ़ी रेलवे उदघोसना, मोबाइल सेवा अउ रेलवे टेसन के बोर्ड मन म बउरे जरूर जात हे, फेर राज्य सासन म कुछ कुछ जगा नारा अउ विग्यापन ल छोर के कहु एकर बगराव नई होवत हे।
छत्तीसगढी ल घोसना पत्र म सामिल करे खातिर एक प्रोग्राम म साहित्यकार श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ह राज्यसभा संसद श्रीमती छाया वर्मा ले निवेदन करिस जेला उन ह सुविकार करत हुए ओकर निवेदन ल मानिन अउ अपन पारटी के घोसना पत्र म सामिल करे के बात कहिन। छत्तीसगढ़िया महिला कान्ति सेना ह घलो छत्तीसगढी ल अधिकार देवाय खातिर पदयात्रा निकाल के उच्च न्यायालय तीर गोहार लगाए हे। संगे संग छत्तीसगढ़ी के दरखास खातिर एकर पूरा टीम ह दिल्ली तक प्रदर्शन करे रहिस। छत्तीसगढिया कान्ति सेना ह छत्तीसगढी ल ओकर हक देवाय खातिर लगातार उदिम करत हे। कुछ कुछ संगठन बिसेस ह घलो छत्तीसगढी ल लेके विचार गोष्टि अउ प्रोग्राम करवाथे।
छत्तीसगढी भासा बर अब सब ल जुरियाये के जरूरत हे छिर्रा-छिर्रा होय ले छत्तीसगढी ह बिखरत जात हे। पूरा-पूरा जनसमर्थन तैयार करके ही छत्तीसगढी ल उचित मान सम्मान देवाय जा सकत हे। सब ल सकला के छत्तीसगढी के मांग तगड़ा करके ही पढ़ई-लिखाई अउ काम-कारज के माध्यम म बउरे बर दबाव बनाए जा सकत हे।
गाड़ी हे रिंगिर चिंगीर, बइला हे जवान।
छत्तीसगढी हमर महतारी भासा आय,
हावय राज के पहिचान।
जय जोहार, जय छत्तीसगढी, जय छत्तीसगढ़।

रितुराज साहू
शोधार्थि (भासाविज्ञान)
पता-सड्डू रायपुर
मोबाइल.9171649642

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