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परशुराम

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प्रकृति संभव हे, असंभव नइ हो सके, ओ ह सनातन रूप म ले चलत आवत हे अपनेच बनाए नियम रीत ले। फेर रिसीमुनी मन ओही म देवता ल खोजथे। ऋतु के देवता वरूण, मेघ के बरखा के देवता इन्र्न, ओखद (औशधि के अश्विनीकुमार, अग्निदेव इनकर बर प्रकृति के हरेक सक्ति म देवता के वास हे, अउ खुस होके सोचथे कि स्तुति करे ले देवता प्रकृति के नियम ल बदल डालही। फेर अइसन होतिस त जम्मो जग्यकरता विश्णु, ब्रह्मा, जम, सुरूज, वरूण अउ अग्नि असन जब्बर सक्तिवान हो जातिन अउ सबले उपर, इन मन ह जउन आचार संहिता रचे हे नैतिकता वो हे तो देवता के पाख म हे, देविमन के विरूद्ध हे मनखेपुरूश मन के हित बर हे, माईलोगन के विरूद्ध म हे धितकार हे, रेणुका ह एक ठन अंचभो देखिन छुछींद लकलक ले रूप धरे, गंधरव चित्ररथ, नदिया के ओ दूसर तीर म संगी संग पानी म बूड़के खेलत रfहंन। वोमन अपन गोसइन संग मदन तिहार मनावत रfहंन। वो मन पानी म चिभोर-चिभोर के काकरो मेर लपटा जाए, त वो रमणी मन घलो गंधरव मन ले लपटा जावत रfहंन अउ मीठ खेल बर अपन ल समरपित कर देवत रfहंन, फेर गंधरव दूसर के संग मेल जोर कर लेवए। त फेर वो दसर रूपनी गंधरव उपर घात करे, ओला अपन कोति fखंचे ओला पकड़के चूमे ओला रपोटे अउ ओकर छत्तीस गत ल बना लेवे। त फेर वो गंधरव उनमन ल छोड़के पानी म डुबकी मारे जाए अउ दूसर संगी मन संग रमण करे लगे। कहुं कहंु वो सुंदरीमन बाल खेले त कोउनो मौका ल पाके गंधरव ल धरके ओकर उपर चघ जावत रहिन, त कोउनो गुदगुदाए, त कोउनो रंग-बिरंगी पिचाकारी चलाए, कोउनो गुलाल फेेंके त कोउनो गाना गाए कोउनो नाचे त कोउनो रिसा जाए त कोउनो लड़ई झगड़ा करे फेर गंधरव ले पटाए ले सब्बो झिन जोर के हांस परे फेर अपन-अपन म रम जाए, अचानक रेणुका ल लगिस कि गंधरव ह सुंदरी रेणुका ल सोच म मगन रूआसी, मने मन म लड़त मगन देखके, वो ह खेल म बूड़े रूपनी ल छोड़के नदिया के भीतर डुबकी लगावत। उपर आवत फेर डुबकी मारत रेणुका के तिरेच म पानी ले निकलिस अउ खेले बर एकदम तनिया के रेणुका ल पानी म घिच लिहिस, रेणुका एकदम काठ मारे असन होगे, ओह बल लगाके गंधरव ले छुटे के उदीम करिन, ए बेवहार के खतरा का हो सकथे फेर गंधरव ह जब मोहाये मद म मताए नजर ले रेणुका ल देखिन खेल बर गुहारिस त रेणुका के राज सुभाव ह ओकर विरोध नई कर सकिन अउ वो ह गंधरव संग रम गईन। एकेच कोति मन के भागे ले सब्बो आतम सुरता ल विसारके उही दसा म भागे लगिन। रेणुका ल कोउनो होस नई रिहिस, वो नदी के हिलोर संग बोहावत चले गईन अउ गंधरव उनकर काम म फुसफुसात रfहंस, तुमन एकदम घात सुंदरी हव, झन बतावत अपन पहिचान सब्बो ल निसार देवव, ए बसंत म काम तिहार हे, डूब जाव इहि मा अउ ए छन ल अमर बनाव, आवव।

बछर ल मरजादा अउ बंधना ले बंधाए रेणुका के मन टूट गे ओला लगिस कि वोह सपना म कोउनो सुग्घर अनुरागी परेमी संग किंदरत हे। जइसे के कोउनो समाजिक ले प्राकृतिक होगे हो, अउ हरेक सिहरन अउ मीठ थरथरई ल चित म टांकत हो, जउन ल ए अद्भुत अहसास के बल म आगू के रिता जिनगी ल मीठ-मीठ सुरता म बीता दे।
रेणुका ल अचानक ए बात सुरता म आगे अउ गंधरव ल कहे रिहिस कि वोह एक अधेड़ हवय, लगभग आधा उमर ओकर सिरागे हे फेर गंधरव जादू् कस हाँसी हांसिस

पियारी! ए उमर का चीज हे, कहाँ हे, मन उछलथे त जिनगी हे नई उछले त बुढ़वा दसा हे अउ तैं ह त जवान दीखत हस, एकदम नारी, हरेक उमर म अलग-अलग अहसास, सुवाद अउ खेंचाव देथे, तुमन अजब हो, देवि अभी घलो तैं खुलके खेलना कामदेव के ए ह पूजा हे, ए कामाध्यात्म हे! कुंठा कहाँ मेर हे ए ह तो बैकुंठ हे देवव सब्बो झिन बेसुध हे मन के उपास म मस्त मगन हे, अपन मन के करव, कल कउन देखे हे अउ आपमन उन आत्मा के विरोध कइरया जइसन रिसी जटाजूट धरइया नांव के जमराज ले धलो कड़ा उनकर तिर लहुट के काय करहू आपमन थोरहे समे हमन गंधरव मन के तिर म रहव इहाँ संगीत, नाचा, गीत, कविता, नाटक, जल क्रीडा सब्बो हे आपमन काबर लहुटहू? जिहाँ हरेक दूसर के चाकरी, पहरेदारी करथे जिहाँ नारी ल संका के स्त्रोत माने जाथे जिहाँ वोह पांव के जूती समझे जाथे मात्र पुरूश मनखे ल संतान अउ चीज बस के कारन माने गे हे उहाँ कोनो जिम्मेवारी नई हे, हमर संगीत नाचा ह हमन के कला हे उही वेवसाय हे अउ हमन छुछींद हवन, हमन खुद के बस म हवन, आपमन आवव अउ अब कहुँ झन जाव।




अपन पूरा बल भर म कहिस नई गूंज गइस नई नई नई आचेत भुत गंवागे। जब चेत अइस त पहिलीच जघा म बइठे रहिन फेर वो गंधरव लीला नई रिहिस कोउनो नई रिहिस उहाँ वोह मात्र सोच हे ए ह तो बस मन सोच मात्र होथे, ए तभे आथे जब मनखे के बुद्धि बेलगाम हो जाथे, जम्मो झंझट ले छुfछंद रेणुका चकिताए रहिन कि जउन वोह देखिन ओमा तो वोह खुदे रिहिस फेर मोर अचरा सुखाए हे पहिली असन उही पथना म बइठे हंव फेर मैं जउन ल देखेंव जउन करेंव वोह का नजर के भरम रिहिस? का वो जल म मताए असन काम के पीरा मोर भरम, अनकहे अहसास असन रचना रिहिस मात्र इच्छा खास ल जउन पूरा नई होए वो काम इच्छा डाइन असन मात्र मन के सोच हे जउन सहि म नई होवय वोह खुद ले रचे माया जाल हे जउन अहसास म हो जाथे। अहा ए मन ह तो बड़का अजब रचइया निकलिस फेर गंधरव लीला म रंग म रंगाए जल ल काबर अभी तक रंगाए हवय। ए फूल के माला ह अभी तक लहर म भरके होए हे एकर का माने हे गंधरव मन रहिन, इहाँ !! वो भाव बदलतेच मोर दोस म आतेच आचनक कइसे ओझर होगें। गंधरव मनखे के ओ पार के जोनि हे उनकर बर कुछु असंभव नई हे, रेणुका पहिली बार डर म थरथरा गईन, हे देव ए मोर संग म ए का होगे ततकेच छिन म डरावत उठीन अउ कुदत भागिन। उनला लगिस कि उहि गंधरव ह हाथ ल बढ़ोके ओला पकड़त लेग जाही गंधरव बर कोउनो काम मुसकिल नई होवय? तिर म भागत रेणुका देखिन कोनो अनचिनहार हाथ हवा म लहरावत हे अउ ए हाथ उही हाथ हे, वइसनेच कुंवर सुग्घर अउ रतन ले बने चूड़ा पहिरे महमहात। ओला गंधरव रूखरई असन दिखे फेर ओकर ले बचत-बचत भागतिन, फेर उनकर ले बचे कइसे जाए एक डंगाल ओकर उपर ले बसंत हवा के तेज बहाव ले हिले लगिस, जइसे वो रेणुका ल उठा के लेगिच जाही रेणुका क चिचियाहन बंचाव अउ उही मेर गिर गईन।
होस म आए ले उठिन अउ रूखके डंगाल ल अपन जघा म पाके वोह अपने डर म दांत किटकिटाए लगिन मैं ह राजा सुधन्वा के बेटी, इक्ष्वाकु के खुन हंव अउ अपने डर म मरे जावत हंव?

थोरहे थिराए बर देव स्तुति पढ़े लगिन, जउन जमदग्नि के ममा विश्वामित्र के रचे गायत्री मंत्र सुग्घर लगे उही ल जपे लगिन।
ओम् भूर्भवः स्वः तत्सवितुरेण्य भर्गोदेवस्य
धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ओम् ।।

ए मंत्र के जपे ले उनकर चित थिराए लगिस फेर भागत-भागत, गिरतहांफत मंत्र जपत आसरम के दुवारी मेर पहुँचिन, कइयो चिनहार मनखे उनला जोहार करिन फेर उनकर चेत म सब्बो गंधरव असन लगे, फेर उही बात ल सुरता म लावत सरपट भागे लगे। आसरम के दुवारी म विराजे। पंडित अउ रक्छक रहिन अउ पढ़इया लइका मन घलो रिहिन वो सब्बो उनला जोहार करे लगिन देवी माँ आयमन असीस देवव, अरे आपमन के चेत थिर नई लगत हे लागत हे आपमन डराए हवव ?




अचानचकरित आँखी ले निहारत देवी सीधा रिसी जमदग्नि तिर म पहुँचिनं गोसइया जमदग्नि ले आँखी के मेल होगे रिसी सब्बो माजरा ल समझ गईन उनकर मन धन ले जर उठीस ओ हा चिचियाए लगिन कोउनो ए दुरवेवहारिन दुराचरन करइया वाली ल बंदी बनाके एकर हतिया कर देवव? रेणुका तैं ह पाप कर हस तैं ह मरजादा तोंड़ं हस, तैं सजा ल भोगेबे अरे कोउनो हवय कि नई ?
जमदग्नि मारे रिस म दांत ल कटकटावत रिहिन अउ गारी देवत, अरे कोउनो हवय कइयो परत बोले रिसी क परचण्ड रिस ल देखके जम्मो कोति कोहराम मचगे। जउन उनकर बोली ल सुने उही कोति भागे लगे।

रूमण्ववान् सुशेण वसु अउ विश्वावसु भागत हाँफत जमदग्नि क आसन म डर म थरथराए, मुड़ी ल नवाए फेर कलेचुप महतारी रेणुका ल देखके, दसा के गंभीर भाव ल सगझत जमदग्नि रिसी अपन संयम ल बिसारके बइहा असन कहे लगिन
तुमन मोर बिटवा हव फेर तुमन मोला अपन पिता मानत हंव त रेणुका के अभीच बध कर देव, ए ह दुराचरनी होगे हे मरजादा ल तोड़ देहे हे। एला मार डालव नइतो पिता के कहे ल माने सेती तुमन ल सराय देहूँ।

चारों भाई मन काटो तो खुन नई असन बोकबाय हो गईन, तीनो झिन निरनय बर रूमण्ववान् कोति देखिन फेर वोहू ह बोक बाय हो गे रहे, भला पिता के अइसन आरोप ल महतारी ल कइसे मार डालबो ?

ऐति महतारी ल मार डालव, चुप्पी साधे ले तुमन नई बाचहू, मारव एला मार डालव जमदग्नि मारे चिचियावत रहे।

चारो भाई एकमई होके तय करिन कि महतारी ल नई मारन, उनकर पिता के कोप ह धरम के विरूद्ध हे। महतारी ल सुने नई गइस कि आखिर उनकर संग होइस का ? अउ सजा घलो सुना देहे गइस हमर देह ह तो माँ के लहू ले बने हे। उनहा जब्बर पीरा ल सहत कइयो बछर बड़का पीरा ह सहिकेे पाले हे वोह राजकुंवरी रहिन, वो हू घलो सुग्घर इक्ष्वावुवंश के, वोह तो रिसी के रूप गुरू अउ गौरव म मोहाके आसरम म खुद अपन इच्छा ले आके रहिन अउ कतकोन पीरा ल सहिन अब फेर रिसी के अनियाव हमन पिता के सराप ल सहिबो परान जाही त जाए फेर महतारी के आगू म परान के काय मोल हे फेर महतारी ल हमन नई मारन। अउ ऐती जमदग्नि अपन आग्या ल नई मानत देखके अउ दहक गईन अउ जब चारो लइका मन उपर उनकर कहे के कोनो असर नई होइस त रिसी हे कमंडल ले हाथ म जल ल लिहिन अउ सराप मंत्र वुदवुदाए लगिन आसरम म रहइया लोगन त्राहि करे लगिन काबर चारो भाईमन आसरम के चहेता रहिन, छमा रिसी छमा जइसनेच ए शब्द ल सुनिन जमदग्नि थम गईन फेर जोंगिन ए ह अनियाव करे हे, एकर मुड़ी ल काट देबे अउ एकर लास ल उही चित्ररथ गंधरव ल सौंप आवव, जउन संग ए ह करम करे हे। आसरम के रहइया लोगन बोक-बाय हो गईन ए महराज ह बइहा होगे हे अपन परान ले पियारी गोसइन उपर अइसन अतियाचारी आरोप लगावत हे उहू सब्बो झिन के आगू म अउ महतारी रेणुका मेर पूछत घलो नई हे रिसी सिरतौन म बइहा होगे हे एकेच संदेह म रिसी खुद के मरजादा ल बिसार दिहिन। लोगन फेर रोकके कहिन –
हे रिसी छमा छमा करव लइकामन ल झन सरापव, महतारी मेर पूछ लेवव कि उनकर संग का होए हे ?




काय का कहेव तुमन मन ? मैं का नियालय लगाव इहि मेर ? मोला जानकारी म हे कि काय होए हे ? अउ मैं सरापत हंव अपन चारो लइका ल जउन पिता के आग्या ल नई मानिन एकर सेति ओमन अपन होस खोहीं अउ जड़ जाहीं।

रिसी जमदग्नि हाथ म जल ल धरके ओमा मंत्र फूंकके लइकामन कोति फेंकिन। जाद्र असन होइन चारो लइकामन हाथ जोड़े चुप ठाढ़े रहिन वहसनेच जड़ हो गईन, जउन कोति ताकत रहिन उहींच कोति ताकतेच रह गईन। पांव पिरथी म जम गे अउ पलक घलो थिर होगे हाथ मन लटक गईन।

राम परशुराम कहाँ हे, कहाँ गे हे परशुराम ? रिसी चायमान कोउन कोति गे हे अरे कोनो गोहारव जमदग्नि मात्र चायमान रिसी के सुनथे अउ राम ल वो ह सबले मया करथे।

एति राम परशुराम उण हाथ म उठाए अलहड़ हरिना असन चायमान चाल म उड़त आवम रहे। अइसन चाल परशुराम ल रिसी चायमान सिखोए रिहिन। जउन ल परवर्ती त्रेताजुग म हनुमान चाल कहे गे हे। राम हरदम बिन डरके, बिन द्ववन्द के रहे ओमा धरम संकट नई जगे। भीड़ ल खसकावत रद्दा ल आगू म आ गईन जोहार करिन रिसी चायमान घलो हांफत पाछु ले आ गईन। उनहा सब्बो कुछ सुन डाले रहिन फेर निरनय घलो ले लेहे रहिन काबर कि परशुराम कोति नवाक कुछु बुदबुदावत रहिन।

परशुराम जब्बर रिस म बगियावत रिहिन। अपन मयारूक महतारी ल देखतेज ताव म आ गईन। फेर पिता के सिवाए कोउनो दूसर महतारी ल अइसन पीरा देतिस त ओकर मुड़ी कबके कटा जाए रहतिस फेर परशुराम पिता के आग्या बर उनला देखत रह गईन अउ हाथ ल जोरे रहिन उनकर फरसा, उनकर तिरेच म काल असन चमचमात रहिस लोगन डर म कंपकंपा जाए ए परशु तो कभु नई चुके आज एला का होगे, परभु हमन के रक्छा करव।

राम मैं कहत हंव ना तैं इचिदे, ए रद्दा ले भटके रेणुका के मुड़ी ल काट दे, ए मारेच लइक हे, एला मार बेटा।

परशुराम एक छिन देरी नई करिन। राम फरसा जेवनी हाथ म धरिन अउ तिर म मुड़ी नवाए ठाढ़े महतारी के घेंच के पाछु कोति तान दिfहंन, डर अउ उहां ठाढ़े भीड़ ल मानो सांप सुंघगे। राम ल अभी कुछु कहिना अविरथा रिहिस अउ समे घलो नई रिहिस ? लोगन परशु के चले ले छिन म एक चमक देखे रहिन, अउ वोमन ह त्राहि-त्राहि चिचिया उठिन, कराटा रेणुका के कांधा के तिर पाछु कोति पड़िस अउ रेणुका हाय हाय तड़फड़ गिर परिस। लहू के तरिया बोहागे त फेर चायमान रिसी ह अपन ओन्हा ल फाड़के महतारी के घाव म रखके बोहावत लहू ल रोकिन रेणुका क पुतरी पलट के रिहिस अउ वो अचुक मार सेती मरे असन कलेचुप हो गइन परशुराम फरसा म लगे लहू ल बिन पोछे मुड़ी ल नवाए पिता के आगू म ठाढ़े रिहिन। राम अतकेच भर कfहंन पिता अउ कोउनो आदेश ?




रिसी जमदग्नि मारे लड़ियावत पहिली होए घटना ल भुलाके राम कोति अभय अउ वर मांगे बर हाथे ल उंचा करके कहिन-राम तैंहिच हे असल म मोर बेटा हस। मैं खुस हौं पिता के अइसन वज्र असन दुब्भर आदेश अउ बिन ना नकुर के सकेच बेरा म पूरा करे राम मांग तैंह वर मैं सिरतौन बहुत खुस हंवव।

पिता फेर आप मन खुस हंव त फेर वरदान देवव। देवत हंव, बोल काय वर देवव, मोर महतारी फेर जी जाए जउन होइस वो सब्बो भुला जाए।

तथास्तु अउ मोर परपंरा के रक्छक मोर महान पिता मोर बड़का भाईमन घलो पहिली असन हो जाए। अइसनेच होही।
परशुराम पिता के पांव म गिरे बर कुदिन फेर जमदग्नि ह बड़ मया ले ओला डाटिन- अरे तैं बड़ भोला हस अपन बर कुछु नई मांगे मांग अपन बर तैं मोला बड़का पियारा हस झट ले मांग ले।

परशुराम मुसकावत खुस हो उठिन। लोगन के भीउ़ बइहा कोलबिल करे लगिन-राम अपन अभ्युदय के वर मांग ले। हा राग। मांग ले सब्बो कुछ।

राम अपन गुरू रिसी चायमान कोति देखिन चायमान थोरहे बुदबुदाइन, उन ह राम उनकर संकोच म हाथ जोड़े मोर राम अपन बर कुछु मांग के अपन ल छोटे सिद्ध नई करना चाही रिसी चायमान तुमन राम के गुरू अउ पिता असन हव, तुहिमन उनकर सेती वर ल मांगव।
ब्रह्मरिसी मोर राम जुद्ध म हरदम विजयी अउ चिरंजीवी होवय। अइसनेच होही फेर अउ कुछु मांगव। अनके पइत राम कहिन-परभु आपमन खुस हवव त आपमन सब्बो घटना ल विसार देवव अउ हमन सब्बो झिन फेर मया परेम म रहेंन। अइसनेच होही अतका जब्बर जय-जयकार होइस कि अगास घलो फटे लगिस।

सब्बो परशुराम के कोति जय जयकार होवत देख जमदग्नि अपन अपेक्षा ल समझ गईन कि रिस म उनकर निरदई आदेश ल समाज ह नई मानिन अउ इहू घलो कि उनकर छमा अउ वरदान ह उनकर महता ल बढ़़ा देहे हे समाज म बड़ गहिरा समझ होथे। इहि मेर ले जमदग्नि के आसरम म राम के नांव परशुराम पड़िस। पहिली कभु-कभु कोउनो मन परशुराम कहें फेर रामेच नांव ह जादा नामचीन रहिस फेर अव सब्बोझिन परशुराम कटे लगिन। जउन कोति जाए उहि कोति उनकर चमकत फरसा ल देखके रूद्र के औतार माने लगे। परशुराम अउ रिसी चायमान के गुन ले परशुराम पालन करिन अउ अमर हो गईन।

गीता शर्मा
लेखिका



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छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पांचवा प्रान्‍तीय सम्‍मेलन

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नेवता
छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग
पांचवा प्रान्‍तीय सम्‍मेलन
‘भगवान राजीव लोचन’ के दुवार राजिम म आयोजित
(स्‍व.संत कवि पवन दीवान जी ल समरपित 28 अउ 29 जनवरी, 2017)

प्रणम्‍य/मयारूक साहित्‍यकार भाई/बहिनी
छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पांचवां प्रान्‍तीय सम्‍मेलन दिनांक 28 अउ 29 जनवरी, 2017 के राजिम म होही। कार्यक्रम के जम्‍मो नेवताए सगा मन के सानिध्‍य म हमर सम्‍मेलन के उछाह बाढ़ही। लिखये बेरा म खच्चित पहुंचिहा। तुंहर आये ले जुराव के फभित बाढ़ जाही।

दिन – 28 जनवरी, 2017
बेरा – बिहनिया 11.00 बजे ले
ठउर – पं.राम बिशाल पाण्‍डेय शास.उ.मा.शाला,
राजिम, जिला – गरियाबंद (छ.ग.)

स्‍वागताध्‍यक्ष                                                 डॉ. विनय कुमार पाठक
मान. चन्‍दूलाल साहू                                                  अध्‍यक्ष
सांसद, महासमुंद                                          छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग

श्री सुरजीत नवदीप                                               श्री गणेश सोनी
सदस्‍य                                                               सदस्‍य
छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग                             छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग

अगोरा म
आशुतोष मिश्रा                                                     डॉ.सुरेन्‍द्र दुबे
संचालक                                                                सचिव
संस्‍कृति उवं पुरातत्‍व विभाग                             छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग





कार्यक्रम
दिन 28 जनवरी, शनीवार, 2017
बिहनिया 9.00 बजे ले 11.00 बजे तक
स्‍वल्‍पाहार

उद्घाटन सत्र
बेरा -बिहनिया 11.00 बजे ले
नेवताए सगा मन के सम्‍मान

छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग के दुवारा प्रकाशित पुस्‍तक के विमोचन
1. शिव महापुराण, अनुवादक – श्रीमती गीता शर्मा
2. कातिक महात्‍म, अनुवादक – श्रीमती गिरजा शर्मा
अन्‍य साहित्‍यकार मन के पुस्‍तक
(छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग के आर्थिक सहयोग ले प्रकाशित)

पहिली सत्र
संत कवि पवन दीवान के उपर वरचा गोष्‍ठी
विसय:- संत कवि पवन दीवान : छत्‍तीसगढ़ पृथक राज्‍य आंदोलन, साहित्‍य अउ समाज
अध्‍यक्षता – डॉ. विनय कुमार पाठक, अध्‍यक्ष, छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग
वक्‍ता –
1. श्री कृष्‍णा रंजन
2. डॉ.विमल कुमार पाठक
3. श्री मुकुंद कौशल
4. डॉ.परदेशी राम वर्मा
5. श्री रवि श्रीवास्‍तव




जेवन
2.00 बजे ले 3.00 बजे तक

दूसाासत्र
मंझनिया 3.00 बजे ले संझाा 4.00 बजे तक
विसय :- छत्‍तीसगढ़ी अउ ब्रजभाषा म अंतर्सबंध
वक्‍ता –
1. डॉ. राकेश मधुकर, आगरा
2. श्री राघवेन्‍द्र दुबे, बिलासपुर

तीसर सत्र
संझाा 4.00 बजे ले 6.00 बजे तक
विसय :-
छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य म आधुनिकता बोध
संयोजक – श्रीमती सरला शर्मा, दुर्ग
संचालन – श्रीमती शशि दुबे, रायपुर
वक्‍ता –
1. डॉ.निरूपमा शर्मा, रायपुर
2. डॉ.नलिनी श्रीवास्‍तव, भिलाई
3. श्रीमती शकुन्‍तला शर्मा, भिलाई
4. श्रीमती सुधा शर्मा, राजिम
5. श्रीमती तुलसी तिवारी, बिलासपुर
6. डॉ. हंंसा शुक्‍ला, दुर्ग
8. श्रीमती अनसूया अग्रवाल, महासमुंद

गीत प्रस्‍तुति
संचालन – श्रीमती सुमन अनुपम बाजपेयी
वक्‍ता –
1. श्रीमती दीप दुर्गवी, कोरबा
2. श्रीमती वसंती वर्मा, बिलासपुर
3. डॉ.संध्‍या रानी शुक्‍ला, रायपुर
4. श्रीमती सुधा देवांगन, कोरबा
5. श्रीमती मीना वर्मा (सरगुजिया गीत)

चउथा सत्र
छत्‍तीसगढ़ी कवि सम्‍मेलन
संझाा 8.00 बजे ले
अध्‍यक्षता – श्री गणेश सोनी प्रतीक
संयोजक/संचालक/ – श्री पद्मलोचन शर्मा
सहयोगी संचालक –
1. श्री कौशल साहू
2. श्री काशीपुरी कुन्‍दन
3. श्री रामानंद त्रिपाठी
4. श्री अजय साहू
5. श्री प्रदीप पाण्‍डेय
काव्‍य पाठ – नेवताए सगा मन दुवारा।




दिनांक 29.01.2017, दिन इतवार
स्‍वल्‍पाहार
बिहनिया 9.00 बजे ले 10.00 बजे तक

पांचवा सत्र
बिहनिया 10.00 बजे ले 12.00 बजे तक

विसय:- लोकव्‍यवहार अउ राजकाज म छत्‍तीसगढ़ी
अध्‍यक्षता – श्री सुरजीत नवदीप
संचालन/संयोजन – डॉ.सुधीर शर्मा, रायपुर
वक्‍ता –
1. डॉ.बिहारी लाल साहू
2. डॉ.गणेश कौशिक
3. श्री विजय मिश्रा, रायपुर
4. डॉ.माणिक विश्‍वकर्मा
5. श्री श्‍याम वर्मा
6. डॉ. सोमनाथ यादव, बिलासपुर

छठवां सत्र
मंझनिया 12.00 बजे ले 2.00 बजे तक

विसय:- पाठ्यक्रम म छत्‍तीसगढ़ी
अध्‍यक्षता – डॉ. विनय कुमार पाठक
वक्‍ता – डॉ.दादूलाल जोशी, बी.रघु, डी.पी.देशमुख, डॉ.शैैल चंद्रा, डॉ.चंदशेखर सिंह, श्री नरेन्‍द्र वर्मा, दिनेश गौतम, रूपेन्‍द्र साहू, श्री सपन सिन्‍हा, डॉ.मोहन लाल सा‍हू, डॉ.सुरेश देशमुख




स्‍थानीय आयोजन समिति
संयोजक – श्री काशीपुरी कुन्‍दन – 9893788109
महिलाओं हेतु आवास व्‍यवस्‍था : आनंद गेस्‍ट हाउस, नयारापरा
पुरूषों हेतु आवास व्‍यवस्‍था : सरस्‍वती शिशु मंदिर, उ.मा.शाला, राजिम
आवास प्रभारी :- श्री गोविन्‍द चौधरी – 9826115900, श्री शिव कुमार ठाकुर – 9893015057

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हेलमेट के भूत

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हमर मइके रइपुर म नवा रहपुर बन गे हे, तेन ल तो तेहां जानत हस। टूरा के दाई ह अपन अउ अपन मइके के बढई सुनके खुस होगे। भला कोन माइलोगिन खुस नई होही। लडियावत कहिस- नवा रपुर बने ले कहां एको गे हंव मइके। मेहा कहेंव- ले ना ये बखत तोर पूजभजित मन के बिहाव के नेवता आही तक चल देबे। टूरा के दाई ह मगन होके कहिथे- अई ह, नवा रदपुर के रोड मन तो अब अब्बड चौंक-चाकर हावय कहिथें। जुन्ना रइपुर म मोटर गाडी के पीं-पों, मेला बरोबर खैमों-खैमों लागथे कहिथें। मेहा कहेंव- तैं तो सौंहत देखे बरोबर सबो ल बता डारे। फेर, आजकाल म एकठन भूत अमा गे हे। टूरा के दाई ह अचरित ले कहिस – भूत अमा गेहे? का भूत ये ऐहा? मेहा कहेंव- हेलमेट के भूत।
अतेक बड बाढे ले मेहा आज ले हमर मइके म काहीं भूत-परेत के नांव नई सुने हंव। दूसर डहर के भूत-परेत धरे मन ह बंजारी बाबा के मजार म आथें भूत भगाये बर। फेर ओ कइसन भूत आये ते। बंजारी बाबा के रहत ले हमर रहपुर म अमा गे हे। मेहा कहेंव- थोरिक दिन होये हे, रइपुर म फटफटी वाला मन ल धरत हे। नावां कानहून निकरे हे। सब फटफटी वाला मन ल मुड म हेलमेट खपले ला परथे। जउन नई खपलही तउन ल डांड पर जथे। दाई कहिस- अई.. कनौजी सहिक गोल मुड – म खपलाये रहिथे तउने ल हेमलेट कहिथे ओ..। ऐकर पहिरे ले का होथे। मेहा कहेंव- ऐकर पहिरे ले कोनो खराबी नइ होवय। बल्कि गिरे-परे ले मुड-कान ल नई लागय। टूरा के दाई कहिस – ऐहा बनेच बात आय। येहा भूत-परेत कइसे होइस? भूत-परेत मनखे ल सताथे। कभु-कभु जीव ल घलो ले लेथे।




मेहा कहेंव- ओ दिन एकझन संगवारी संग हमन रइपुर गे रेहेन। उहां जघा-जघा म हेलमेट के दुकान लगे राहय अड लेवइया मन ह माछी बरोबर झूमे रहय। अउ जउन फटफटी वाला मन हेलमेट नई पहिरे रहय तेन मन ल हेलमेट के भूत के दूत मन ह चलान करत रहंय। वोमन हमूमन ल रोक के कहिथे- हेलमेट हे? हेलमेट तो ए जघा नइये। हमन तो गंवई गांव के रहवइया आन। एकझन मरीज ल देखे बर मेकाहारा आय रेहेन। हमर मन के गोठ ले सुनके धमकावत कहिथे- तुम लोगों को नहीं मालूम है कि यहां बिना हेलमेट के मोटर साइकिल चलाना मना है। हमन कहेन- हमन तो नइ जानन साहब। हमन ल तो कोनो नइ बताय हे। पहिली तो नई लागत रिहिस साहब। पुलिसवाला कहिस- तुम लोगों को अंदर कर देंगे, क्या समझे? एक्सीडेंट हो जाएगा तो कोन जिम्मेदार होगा? चलो थाना। हमन थाना के नांव सुनके कांपे लगेन। एकझन छत्तीसगढी म किहिस- तुमन कोन गांव म रहिथो जी? वोकर बोली ल सुनके हमन ल थोकिन बल मिलिस। चल ये पुलिसवाला ह हमर छत्तीसगढिया भाई ए। हमन कहेन-महासमुंद रहिथन साहब। हमन ल छोड दव, गलती होगे। वो कहिस- थोर बहुत होही ते पान-परसाद बर दे दब अउ जावव भागव। हमर संगवारी ह पचास के नोट ल वोकर हाथ म धरा दीस। हमन तुरते भागेन।




तेलीबांधा के चंंउक म हेलमेट के भूत के दूत मन सादा-सादा पहिरे रहंय। हमन ल छेंक के पूछिस- लाइसेंस हे? हमन कहेन- हे। पुलिसवाला कहिस- हेलमेट कहां हे? हमन कहेन- नइये। तब कथे चलो अंदर तुम लोगों को चलान करते हैं। हमन कहेन- चलान बर तो नइये साहब, चाहा-पानी बर ले लौ। वो भूत के दूत कहिस- ठीक है साहब के लिए कुछ दे दो और जाओ भागो। येहू मन ल पचास के नोट दे के लकर-धकर भागेन। छेरीखेडी ल नाहकेन त हमर जीव ह हाय लागिस। भरपूर सांस लेवत मोर संगवारी ह कहिथे- वाह रे हेलमेट के भूत, तोर से ले-देये म बांचेन। इही बात ल सुरता करके मोला रहि-रहि के हांसी आथे। टूरा के दाई ह घलो सुन के खलखला के हांस डारिस। जब वोहा हांसत रिहिस त वोकर चेहरा म अपन मइके, याने राजधानी के बेटी होय के भाव झलकत रिहिस। अउ मोर उपर हेलमेट के भूत ह चघ के काहत रिहिस- मंय तुंहरो महासमुंद अउ जम्मो छत्तीसगढ म अमा जहूं। बस मोर ‘आका’ के फरमान भर मिल जाय।

बिट्ठलरम साहू ‘निश्छल’
महासमुंद



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साहित्य म भ्रस्टाचार

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हमर देस म कोनो छेत्र नइ बांचे हे जिंहा भ्रस्टाचार नइये। राजनीति म भ्रस्टाचार ह तो काजर के कोठी कस होगे हे। जेन राजनीति म जाथे वोकर उप्पर करिया दाग लगथेच। भ्रस्टाचार के पांव ह दूसर छेत्र म घलो पड गे हे। साहित्य छेत्र जिंहा अब तक मनीसी, चिंतक, साधु-संत जइसन मन के बोलबाला रिहिस आज उहां नकलची अउ भ्रस्ट लोगनमन के दबंगई चलत हे। दूसरमन के किताब ल अपन नांव ले छपवइया मन के घलो कमी नइये। छत्तीसगढ के साहित्य जगत म घलो अइसन होवत हे। पंडित मुकुटधर पांडेय, पदुमलाल पुन्नालाल बक्सी, आर.डी. तिवारी, लोचन परसाद पांडेय, डा. बल्देव मिस्र जइसे विभूति मन के माटी म आज काकर मन के बोलबाला हे येला सहज म देखे जा सकत हे।
सरकार ह अइसन मन ल भाग्यबिधाता बना दे हे जउन मन ये देवता भुइंया ल बाहिर वाले मन बर चरागन बनाके छोड दे हें। राज्योत्सव के कारयकरम मन म इहां के विभूति मन के उपेक्छा, तिरस्कार, भेदभाव कोनो नवा बात नोहय। बारम्बार अवाज उठाय के बाद सरकार के कान म तको नई रेंगत हे। राज्य पुरस्कार म बंदरबांट होथे, तेनो ल सबो जानत हें। परदेस म साहित्य म भ्रस्टाचार के चलत ए खेल ह कब रुकही? ऐला कोन रोकही? कभु रुकही के नई, तेला सरकार जानंय या फेर भगवान !

रामेश्वर वैष्णव
प्रोफेसर कालोनी, रायपुर



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पुरखा मन के दूत होथे कउवा

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चालीस-पचास बछर पाछू के बात आय। ममा गांव जावंव त पीतर पाख म ममा दाई ह बरा- सोहारी बनाय अउ तरोई के पाना म ओला रख के मोहाटी म मडा देवय। तहान ले जोर-जोर से कहाय- ‘कउंवा आबे हमर मोहाटी, कउंवा आबे हमर मोहाटी।’ ममा दाई के कहत देर नइ लागय अउ कांव-कांव करत अब्बड अकन कठउंवा  ह आवय अउ बरा-सोहरी ल  चोंच म दबा के उडा जावय। तब ममा दाई काहय – ‘कउंवा मन खाथे, तेला पुरखा मन पाथे।’ नानपन के ए बात ह अब सपना कस लागथे। काबर कि, अब पीतर पाख म कडउंवा नइ दिखय। सहर के दसा अउ खराब हे। सहरीया मन ह पीतर पाख म कउंवा मन ल अइसे खोजथें जानो-मानो नागमनि ल खोजथे।
पीतर पाख के आते साथ कउंवा के पूछा-परख ऐकर बर बाड जाथे कि कउंवा ल पुुरखा मन के दूत माने जाथे। जीयत ले जउन दाई-ददा ल मनखे फूटे आंखी देखन नइ भावय, उही सियान मन के मरनी के बाद पीतर पाख म उनला सुमीरत जल- तरपन अड बरा-सोहारी खवाय के करथें। अपन सुवारत म बूडे मनखे पीतर पाख म कउंवा के पाछू -पाछू दडउड्थे। मनखे के अइसन दोहरा चरितर ल कउंवा मन तको समझ गे हावंय। तेकरे सेती मनखे के तीर म वोमन नइ ओधंय। मनखे के अइसन दोहरा चरितर ले बने तो कउंवा के चरितर ल केहे गे हे। ‘मनखे जात तन ले तो बगुला भगत कस उज्जर-उज्जर दिखथे, फेर मन वोकर करिया होथे। फेर कउंवा के तन अड मन दूनों ले करिया होथे।’ साधु बन के भगत के पीठ म छुरी घोंपने वाला मनखे ले अच्छा कउंवा के चरितर आय। इही पाय के सियान मन कहे हावय – ‘तन उज्जर मन करिया ये बगुला के टेक, ऐकर ले तो कउंवा भला जउन भीतर-बाहिर एक।’




कउंवा अउ मनखे के रिस्ता बड जुन्ना आय। हमर पुरखा मन ह कउंवा के कतको किस्सा गडे हावंय। हमर पुरान अउ धरम गरन्थ म कउंवा के किस्सा ‘कॉकभुसंडि’ के नांव लिखाय हे। सुरदास जी तको ल किसन भगवान के दुलरवा चिरई बताय हावय। ‘कॉग के भाग बडे सजनी, हरी हाथ से लेगयो माखन रोटी।’ कउंवा के गिनती चिरई जगत म चतुर पंछी के रूप म होथे। वोहा रोटी-पीठा ल जरूरत ले जादा पा जाथे या फेर वोकर पेट ह भरे रहिथे तब वोहा रोटी-पीठा ल कोनो जघा लुका देथे अउ भूख के बेरा म वोला खाथे। कउंवा के ये सोच ह मनखे ल मुसीबत के बेरा बर चीज-बस ल बचा के राखे के सीख देथे। मनखे ल कउंवा मन चतुराई के संगे-संग आपसी भाई चारा ल बना के राखे के संदेसा तको देथे। काबर कि कोनो एक कउंवा के ऊपर मुसीबत आथे त कांव-कांव करत पचासों कउंवा झूम जथे। अउ, हमला करइया जीव ल अपन लोहा के खिला कस चोचकारी चोच म मार-मार के लहूलुहान कर देथें।
एक घाव जेला बइरी के रूप म कउंवा पहिचान लेथे तेला कभु भुलावय नइ। जेन जघा देखथे चोच मारे बर नई छोड़य। फेर, अइसन तेज सुभाव ल कोयली ह ठग देथे। कोयली अपन अंडा ल कउंवा के खोंदरा मन चुपे- चाप देथे। जेन ल कउंवा बिचारा अपन दूसर अंडा के संगे-संग ईमानदारी के साथ सेथे। अउ, अंडा ले निकले कोयली के केवची- केवची पखेरू मन ल पाल-पोस के बडे तको करथे।
मनखे समाज बर कउंवा के बडा महत्तम हावय। ऐहा अनाज के दुसमन जीव जइसे – कीरा-मकोरा, मुसवा ल मार के अनाज ल बचाथे। मरे जीव जन्तु ल खाके परयावरन ल साफ राखथे। फेर, बदलत बेरा म गांव-सहर म पेड के कटई, खेत- खलिहान म कीटनासक दवा के बाढत उपयोग ह कउंवा मन के काल बन गे हावय। कउंवा के नंदई मनखे बर करलई झन बन जाय तेय पाय के कउंवा ल काल के गाल म समाय ले बचाय के बेरा आगे हावय। थोर बहुत बाचे कउंवा मन बडे बिहनिया कांव- कांव करत ए बात ल चेतावत रहिथें।

विजय मिश्रा ‘अमित’
अग्रसेन नगर, रायपुर






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नवा पीढ़ी़ अउ छत्तीसगढ़ी़

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हमर छत्तीसगढ़़ म अभी जउन नवा पीढी के लइकामन पढ-लिख के तियार होवत हें तेन मन ह छत्तीसगढी़ भासा ले दूर भागत हें। वोमन छत्तीसगढी म बोले बर नई चाहंय। छत्तीसगढी भासा जउन ह हमर मातृ भासा ए, तेमा बोले बर लजाथें। घर म ददा-दाई, बबा, कका दाई मन लइकामन के संग छत्तीसगढी म कुछू पूछथें त वोमन वोकर जुवाब हिन्दी म देथें। येहा बड दु:ख के बात आय।
हमर देस के दूसर राज के लइकामन अपन ‘मातृभाषा’ बात करइ ल अपन सान समझथें। ऐकर ले उलट हमर छत्तीसगढ के पढे-लिखे लइकामन ह गांव- देहात, मेला-मडई या जेन जघा चार झन सियानमन बइठे हे अउ लइकामन ल कुछू पूछ देथें त वोकर जवाब लइकामन ह हिन्दी म देथें। इही हालत रहही त कुछ बछर म छत्तीसगढी ह नंंदा जही तइसे कि वोहा जिहां पइदा होइस, जिहां पलिस- बढिस हे उहां के भाखा ल बोले बर झन छोडंय।
लइकामन देखंय की कइसे हमर इहां के रहवइया गैर छत्तीसगढिया मन घलो छत्तीसगढी म गोठियाथें। चाहे वोमन कोनो धरम, जाति, परदेस के होवय। बाजार म, दुकान म कांही जिनिस बिसाय बर जाबे त वोमन छत्तीसगढी म गोठियाथें। दुरुग म एकझीन चीनी डाक्टर रहिथे। वोहा अपन मरीज मन संग सुघ्‍घर ढंग ले छत्तीसगढी म गोठियात रिहिस। वोला देखके मोला नाचे के मन होगे। जब गैर छत्तीसगढिया मन छत्तीसगढ म रहिके छत्तीसगढी म बात करे म नइ लजावंय त हमर नवा पीढी के पढे-लिखे छत्तीसगढिया लइकामन ल घलो छत्तीसगढी बोले-बतियाय म कोनो जघा लजाय के जरूरत नइये।&

कृष्णकुमार शर्मा
पद्मनाभपुर दुर्ग




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स्कूल म ओडिसी .. पंथी, करमा काबर नहीं …?

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छत्तीसगढ के जम्मो सरकारी स्कूल म पहली ले पाँचवी कक्षा तक पढईया लईका मन ला अब भाषा,गणित विज्ञान के अलावा ओडिसी नृत्य के घलो शिक्षा ले बर परही । ये नवा तुगलकी फरमान एन सी आर टी ह जारी करे हवय । ओकर कहना हवय के नृत्य के शिक्षा ले से लइका मन नृत्य के भाव भंगिमा के जरिया ठीक से खडे होना,सांस लेना अउ रीढ के हड्डी ल सीधा राख के चले के तरीका सिखाय जाही । शिक्षा विभाग के दावा हवय के ये नवा कोर्स ले लइका मन के रूझान कला के प्रति होही अडउ अपन आप ल व्यक्त करे के भावना घलो आही ।

सवाल ये कि पढई ल रोचक बनाए खातिर ओडिसी च नृत्य ही काबर, हमर छत्तीसगढ में कतकोन प्रकार के नृत्य हवय जेकर ले पढई ल रोचक बनाय जा सकथे । छत्तीसगढ म पंथी अउ करमा जइसन लोक नृत्य हवय जेकर ले लईका मन खडे होना,सांस लेना अउ रीढ के हड्डी ल सीधा राखे के तरीका सीख सकथे लेकिन छत्तीसगढी लोक कला के अनदेखी करके ओडिसी ल लईका मन उपर लादना उचित नई हे | शासन प्रशासन म बइठे उडिया आई.ए.एस. मन हमर संस्कृति के अनदेखा करके अपन उड्डिया संस्कृति ल हमर लईका मन उपर लादे के खेल खेलत हवय ये सर्वथा अनुचित हे । एन.सी.आर.टी. म बईये उडिया अधिकारी मन के द्वारा जारी करे ये तुगलकी फरमान ले हमर छत्तीसगढी संस्कृति ल भारी खतरा उत्पन्न होगे हवय ।

हमन ल ओडिसी नृत्य ले कोनो द्वेष नइ हे फेर हमर लईका जेकर रग-रग म छत्तीसगढी लोक कला बसे हवय अउ ओमा जीयत हे तेन ल जादा बने करही के बाहिर के आयातित लोक नृत्य ल । बात यदि पढई म रोचकता लाए के हे त हमर लईका अपन संस्कृति अपन लोककला म जतका झूम के नाच, गा के पढ सकथे वोतका दूसर के लोक कला म नई कर सकय ये बात ल उन उडिया आइ.ए.एस. मन ल समझना चाही । बिना सोचे समझे अपन संस्कृति ल हमर उपर लादे ले आघू चल के एकर दुष्परिणाम भी सामने आही जेकर जवाबदेही इन उडिया अधिकारी के संगे-संग राज सरकार के होही ।

बहरहाल अभी भी मउका हवय के राज सरकार ये तुगलकी फरमान ल तत्काल प्रभाव ले रद्द करय, अउ यदि नृत्य के शिक्षा देना ही हे त छत्तीसगढ के उत्कृष्ठ लोक कला के चयन कर के ओकर शिक्षा लइका मन ल दे के व्यवस्था करय ।

अजय ‘ अमृतांशु”







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नवा बछर के आवभगत

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अघ्घन अउ पूस के पाख चलत हे जेला सरमेट के अंगरेजी कलेंडर म दिसम्बर महिना कहे जाथे ! जब तक सुरुज निटोरही नही सहर भर जाड़ बरसत रइथे ! जाड़ के मारे ए मेर ल ओ मेर के मनखे मन सब गरम ओढ़ना मं दिखथैं !

गाड़ी-मोटर मन रात-बिकाल अउ बिहनहे के झुलझुलहा होत ले सरपट-सरपट दउँड़त रइथे ! गाड़ी मोटर तो बड़ बाय होगे हे हारन ल अतका बजाथें के कान के परदा घलो हर फुट जाही सड़क तीर के मन कइसे बसर करथें ओही मन जानहीं ! हमर छत्तीसगढ़ बर अघ्घन अउ पूस पाख ह बहुंते पावन होथे पूस पाख ह छत्तीसगढ़ म नव जन जागरिति के संदेस लेके आथे अघ्घन पाख के पहिलिच तारिख मं विस्व एड्स दिवस परथे जेमा कतको संगठन मन कार्यकरम कर कर के लोगन मन ल एड्स के जानकारी देथें ! उहिंचे हमर छत्तीसगढ़ सासन के डाहर ले विग्यापन,नाटक,पर्चा,गीत कईठन उदिम करके लोगन मन तक एड्स ले बांचे के सावचेत रहे के अउ दुखिया लंग कईसन बैवहार करना चाही एकर प्रति जागरुक होय के संदेस देथैं ! एड्स दिवस के बाद अघ्घन ५ सुक्ल के तुरते अघ्घन ४ दिसम्बर के जल सेना दिवस पड़िच ! जल सेना दिवस ल सासन बिभागी रुप म बने मनईस ,जल सेना के जानकारी पेपर अउ टीबी मन म देखाईस ! अब बात काहत अघ्घन ७ लग गे जेला अंगरेजी कलेंडर ६ दिसम्बर कइथे ! ६ दिसम्बर के वों परब आय जेन दिन आधुनिक भारत के पिता अउ हमर देस के संविधान सिल्पि बोधिसत्व बाबा साहब डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी के स्मृतिदिवस महापरिनिरबान होय रहिस अउ मानवता के महामानव ल छत्तीसगढ़ सासन के संगे संग छत्तीसगढ़िया जनता मन श्रध्दांजलि अरपित करके सुरता करिन !

महामानव के सुरता म दिन अइसे बितिच के गम नई लागिस के कब १० दिसम्बर आ गईस ! आज के दिन ल विस्व भर म मानवता के हक अधिकार के रुप म मनाय जाथे जेला हमन सब मानव अधिकार दिवस के नाव ले जानथन ! १० दिसम्बर ल यूनेस्को हर दुनिया भर के मनखे के हक अधिकार के दिन के रुप म घोसित करे हे जेला जम्में देस म मनाथैं !

अघ्घन १३ दिसम्बर १२ के ईदमिलादुन्नवी के तिहार मुसलिम भाई मन जोर सोर से मनाईन ! पुरा छत्तीसगढ़ एक दूसर ल ईद के बधाई लेईन अउ देईन !

पूस के कुड़कुड़ावत जाड़ हर सच म पावन पाख हे जेमा हमन ल अपन धरम,सुरक्छा,अधिकार के प्रति जागरुक होय के संदेस मिलथे ! ये धार ह अइसने नइ टूटै मिलकी मारत साठ पूस १ के १४ दिसम्बर के दिन उर्जा संरक्छन दिवस के रुप म जबर संदेस लेके आगे जोन हमला हमर भभिस के रक्छा करे के संदेस देथे ! उर्जा बचत करके भभिस ल घलो अंजोर राखे के गियान बांटिच ! आज के लकर लउहा जिनगी म बिजली के बड़ महात्तम हे बिजली बिना सरी दुनिया अंधियार हो जाथे , त हमला ये बचत करना बहुंते जरुरी हे !

देखते देखत पूस दिसम्बर के ओ दिन आगे जेन हमर छत्तीसगढ़ के राजकीय तिहार आय ये तिहार म सत,अहिंसा,छिमा, दया,करुना,परेम, परहित , मनखे ल मनखे लंग कोनो भेद नइ करे के, नारी ल सम्मान करे के, पसु उपर अत्याचार नइ करे के, संसार म मानवता बगराय के , समाजिक जागरिति के संगे संग अध्यात्म अउ धरम के जागरिति संदेस देथे ! पूस ५ के ये परब ल गुरुपरब के रुप म सिरोमनी गुरु घाँसीदास बाबा जी के जयंती १८ दिसम्बर के कारन मनाय जाथे जेमा सतगुरु जी के संदेस म जम्मे छत्तीसगढ़ झुमर झुमर के पंथी नाचथे अउ लहरत धौंरा पालो कस छत्तीसगढ़ के घट-घट ह पबरित हो जाथे ! येकर थोकिन दिन के बाद २४ दिसम्बर ल सरकार ह गिराहिक दिन घोसित करे हे जेमा गिराहिक मन के लाभ हानि के जानकारी दे जाथे अउ उपभोगता ल सजग होय के बात जगा जगा सुने ल मिलथे ! चार पाहर रात बितिच दूसर दिन २५ दिसम्बर के क्रिसमस डे आईस क्रिसमस हर पुरा संसार म बहुंते देस म मनाय जाथे , जेला छत्तीसगढ़ म हमर क्रिसचन भाई बहिनी मन धूम धाम ले मनाईन पुरा छत्तीसगढ़ क्रिसमस मनाय के बाद नवा बछर के आवभगत म लग गे ! नवा नवा कपड़ा लत्ता , बिसाइ चालू होइस, मिठाई,फटाखा, छप्पन भोग , कतको अपन परवार सहिंत कोनो चिड़िया घर घुमें जाय के तैयारी म लगे हें त कोनो , कोनो जगा के नदिया, मंदिर,धाम यातरा सबे जगा घुमें के तइयारी में लगे हें ! कतको जगा नाचा गम्मत के तइयारी हे त कोनो जगा कवि सम्मेलन के पुरा व्यवस्था चलत हे ! पूस १२ सुक्ल/रोहनी के ६ दिन बाद लकर धकर नवा बिहान लेके पूस सुक्ल ३ सरवन के नवा बछर लग गे आज पुरा संसार के संगे संग हमर भारत देस अउ हमर छत्तीसगढ़ घलो नवा बछर के आवभत म लगे हे सबला नवा बछर के बधाई देवत हें ! नवा बछर के बधाई अखबार, टीबी, सोसल मिड्या मन म सब एक दूसर ल देवत हें अउ लेवत हें !

नवा बछर के इतिहाल ल थोकिन आवव झांक लन …

बुड़ती(पश्चिमी) नवा साल के तिहार ४००० बछर पहिली बेबीलोन में मनात रहिन ! फेर वो बेरा म नवा बछर के तिहार ल २१ मार्च के मनात रहिन , जेन हर बसंत रितु के आगमन के दिन घलो आय !
निच्चट तइहा रोम के तानासाह जूलियस सीजर ह ईसा पहिली ४५ वे बछर मं जब जूलियन कलैंडर चालू करिस वो बखत दुनिया म पहिली बार १ जनवरी के नवा साल के तिहार मनाईन ! अईसन करे बर जूलियस सीजर ह पाछू बछर यानि ईसा पहिली ४६ इस्वी ल ४४५ दिन म बांट दिस !
हिब्रू नवा बछर :- हिब्रू मान्यता के अनुसार बिधाता हर दुनिया ल सात दिन म बनाईस ! इही सात दिन के गढ़े के बाद नवा बछर मनाय जाथे ! ये दिन ग्रेगरी के कलैंडर के अनुसार ५ सितम्बर ले ५ अक्टूबर के बीच आथे !
चीनी नवा बछर:- चीनी नवा बछर चीनी कलेंडर के अनुसार पहिली पाख के पहिली चंदा के दिन नवा बछर के रुप म मनाथैं ! ये हर अकसर २१ जनवरी ले २१ फरवरी के बीच परथे !

इसलामी नवा बछर :- इसलामी कलेंडर के नवा बछर मुहर्रम के दिन मनाय जाथे ! इसलामी कलेंडर पुरा पुरा चंदा के उपर अधारित होथे ! जेकर कारन एकर बारा महिना के चक्र ३३ बछर मं सुरुज कलेंडर ल एक बार घूम डारथे ! जेकर कारन नवा बछर चलागित ग्रेगरी कलेंडर म अाने-आने पाख म परथे !
भारतीय नवा बछर :- भारत अईसन देस हे जिहां अलग अलग बाखा बोली के अउ अलग अलग धरम मान्यता ल मानने वाला रईथें जे पाय के सबे सभियता वाले मन अपन अपन अनुसार से नवा बछर के खुसी मनाथैं ! भारत म अधिकतर नवा बछर के दिन ह मार्च अउ अप्रेल माने फागुन अउ चईत के दिन होथे ! हिंदू नवा बछर चईत नव रात्रि के पहिली दिन मनाय जाथे !

पंजाब म नवा बछर बइसाखी नाम ले १३ अप्रेल के मनाथैं ,सिख नानकसाही कलेंडर के अनुसार!
१४ मार्च होला तिहार होथे इही दिन के तिर तखार म बंगाली अउ तमिल नवा बछर घलो होथे ! तेलगु नवा बछर मार्च अप्रेल के बीच म आथे , आंध्रप्रदेस म एला उगादी कइथैं , एहर चईत पाख के पहिलिच दिन म मनाय जाथे ! तमिल म पोंगल १५ जनवरी के नवा बछर के रुप मं घलो मनाथैं !

कसमिरी कलेंडर वगेरह १९ मार्च के होथे ! महारास्ट्र म गुड़ी पड़वा के रुप म मार्च अप्रैल के महिना म मनाय जाथे ! कन्नड नवा बछर उगादी कर्नाटक के मन चइत पाख के पहिलीच दिन मनाथैं ! सिंधी नवा बछर चेडरी चंड उगादी अउ गुड़ी पड़वा एके दिन मनाय जाथे ! मदुरै म चईत पाख मं चित्रैय तिरुविजा नवा बछर के रुप म खुशी मनाथैं ! मारवाड़ी मन नवा बछर देवारी के दिन , गुजराती मन देवारी के दूसर दिन, जेन अक्टूबर या फेर नवम्बर मं आथे ! बंगाली नवा बछर पोहेला बइसाखी १४ या १५ अप्रेल के मनाथैं ! बुड़ती(पश्चिम) बंगाल अउ बांग्लादेस मं इही दिन मनाय जाथे ! सबे डहर नवा बछर के खुसी तिहार के रुप म अलग अलग बेरा म अलग अलग ढ़ंग ले मनाय जाथे ! फेर नवा बछर के आवभगत करे बर सब पहिली ले तईयार रइथैं !

आप सब ल हमर डाहर ले नवा बछर के गाड़ा-गाड़ा बधाई …

असकरन दास जोगी
ग्राम-डोंड़की,बिल्हा
मो. 9770591174

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छत्तीसगढ़िया मन कहां हें ?

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छत्तीसगढ़ राज सोनहा भुईयां हिरा बरोबर चमकत हे ! मयारू मैना के बासई ह मन ल हर लेथे , देखते-देखत म गोंदा, मोंगरा अऊ दौना के रंग अऊ महकई हर अंगना-दुआर ल पबरित कर देथे ! गांव-गांव गली-गली म लोक कला के घुंघरू,मांदर अईसे बाजथे के हिरदे ल हुंक्कार के मुह म गीत के राजा ददरिया सऊंहात आ जाथे तिहां छत्तीसगढ़ के मया-मरम , सुख-दुख के कहानी ल एकक ठन पढ़-पढ़ के ओरिया देथे !

आज छत्तीसगढ़ ल अलग राज बने 16 बछर होगे हे 17 बछर होवईया हे ! बिकास के लहर छत्तीसगढ़ के कोंटा-कोंटा म चलत हे फेर कईसन बिकास कोनो ल समझ नई आत हे ! नवा-नवा सड़क, बिल्डिंग,गार्डन, पर्यटन के बिकास , बैपार के बिकास , रोजगार के बिकास, सिक्छा म बिकास, चिकित्सा म बिकास , फिलिम जगत, गीद-गोबिंद , नाचा-पेखन सगरी उदिम ह बाढ़त हे अऊ जुन्ना छत्तीसगढ़ ह नवा-नेवरिया छत्तीसगढ़ बनत हे ! जुन्ना छत्तीसगढ़ ल सिरजाय अऊ पाय बर हमर जम्में पुरखा मन अपन जिनगी अरपन कर दिन ! हमर पुरखा मन के करम के परताप आय के आज छत्तीसगढ़ राज सिरजीस फेर ओमन जेन सपना देखे रहिन का ओ सपना आज पुरा होवत हे ? हमला तो चिटकून घलो नई लागत हे ! जुन्ना छत्तीसगढ़ ल आज राजनिति अजगर ह अईंठत हे गुरमेट के अऊ हमर भासा, संसकिरिति, धरती, बैपार, सिक्छा , रोजगार ये सब ल एकक कर के लिले परत हावय, आज फेर जरूरत हे ओ पुरखा मनके हमला !

देखव ग छत्तीसगढ़िया मन बने टकटक ले निहार के तुमन जात अऊ धरम म बंट-बंट के एक दूसर ल छोटे बड़े बताके जुझत राहव ” तुंहर गरभ तुंहला खाय कोरे-कोर छत्तीसगढ़ लुटाय ” छत्तीसगढ़ के नस-नस ल सोकटा करत हें अब तो जागव ग , अब नही त कब जागहव ? लागथे छत्तीसगढ़ महतारी ह चिहूर पारके रोही तब जागहव ?
छत्तीसगढ़ के बिकास होवत हे ये बात तव समझ म आत हे फेर छत्तीसगढ़िया के बिकास नई होवत हे ये अचरूज बात लागत होही ! भाई हो गुनव, देखव, परखव तब तो समझ आही ग ?
चलव छत्तीसगढ़िया भाई मन करा गुने बर पद राख देथन तब जरूर गुनहीं ,परखहीं अऊ जुरीयाय के उदिम करहीं :-

१ कतका झन छत्तीसगढ़िया मन करा गैस ऐजेन्सी हावय ?
२ कतका झन छत्तीसगढ़िया मन सो पेट्रोल,डिजल के ठेंका हे ?
३ छत्तीसगढ़िया मन करा कार,बाईक सोरूम हवय का ग ?
४ छत्तीसगढ़िया मन करा राईस मिल हावय धुन नही ?
५ कतका झन छत्तीसगढ़िया मन के बड़े-बड़े मॉल म आफिस-दुकान हावय ?
६ बड़े-बड़े बिल्डिंग, नवा-नवा सड़क ये सब ल बनाय बर कतका झन छत्तीसगढ़िया मन ठेंका लेथव अऊ बड़े बिल्डर कै झन छत्तीसगढ़िया हवव ?
७ कोनो छत्तीसगढ़िया कपड़ा के थोक बिकरेता हें का ?
८ बड़े-बड़े कतको इसकूल, कालेज, बिस्वबिदयालय हावय इंकर मन के मालिक छत्तीसगढ़िया मन हें का ?
९ छत्तीसगढ़िया मन करा फाईव स्टार होटल हावय धुन नही ?
१० राजनिति म छत्तीसगढ़िया मन के कतका चलथे, धुन हर बात ल अपन पार्टी के मानथैं भले छत्तीसगढ़ के बुरा होवय चाही भला ?
११ छत्तीसगढ़ म हिंदी फिलिम के हिरो-हिरवईन,गायक-गायिका मन ल मुंहमांगे पईसा देके नेवततथैं अऊ इहां के कलाकार मन ल कतका मिलथे ?
१२ ऑऊट सोर्सिंग नाव के बेमारी ल तो सुनेच होहू ?
१३ छत्तीसगढ़िया मन करा बड़े-बड़े हसपिटल हावय का ?
१४ छत्तीसगढ़िया भाई हो तुंहर करा बड़े-बड़े कारखाना हावय का जी ?
१५ कतका झन छत्तीसगढ़िया मन कलेक्टर, कमिसनर जईसन आला अधिकारी के पद म हें ?
१६ छत्तीसगढ़िया मन सो छापाखाना अऊ बड़का अखबार , टीबी चैनल हवय का जेकर ले अपन दुख-पिरा,मांग, अपन कला ये सब ल छाप सकव देखा सकव बिना काट-छांट रोक टोक के ?
१७ सोना,चांदी,हिरा के बैपारी छत्तीसगढ़िया मन होहू ग ?




कतका ल ओरियावंवं ग इहां सड़क म रेंगबे त सड़क के तीर तखार म बिहारी मन के ठेला दिखथे , बजार हाट जाबे त सिंधी, बनिया,मरवाड़ी,पंजाबी मन के सोरूम, दुकान दिखथे ! जगा-जगा आफिस,भवन म जाबे त उत्तर परदेस अऊ बिहार के गार्ड दिखथैं ! छत्तीसगढ़ म कोंटा-कोंटा म राजिस्थान अऊ हरियाणा के मनखे मन जमीन ल लीज म लेके साग-भाजी, फल-फलहरी के खेती करत हें बड़ फायदा उठात हावयं अऊ हमर किसान मन खेती ल बेंचे परत हें ! बाहर के मनखे मन दारू के ठेंका चलाके इहां के मनखे ल नसेढ़िया बनात हें , हमर छत्तीसगढ़ के कतको देबी-देवता के मंदिर टुटत फुटत हे अऊ बाहिर राज ल आके मनखे मन इहां मंदिर बनात हें हमर मंदिर टुटथे त कोनो चिंव-चावं नई करयं ,बाहिर वाले मन के बनाय मंदिर टुटे ल करथे त आंदोलन होय ल धर लेथे ! छत्तीसगढ़ के महापुरूष मन ल बदनाम करथैं कोनो चिंव नई करयं मन म सोंचथैं जेकर जात के महापुरूष तेने जानय हमला का फेर ये नई गुनयं आज ओकर उपर आय हे काल हमरो उपर आही , कोनो सरकारी आफिस, पराईबेट आफिस जाबे त छत्तीसगढ़ी के नाव लेवईया नईहे छत्तीसगढ़ी म गोठिया देबे त तोरे उपर हास देहीं अईसन हमर हाल हे ! भूमि अधिग्रहन जईसन बिमारी बिकास के नाव म नेवतत हें जेकर ले छत्तीसगढ़िया किसान के जमीन ल अधिग्रहित करके बाहर के बैपारी ल कारखाना , कम्पनी बनाय बर जमीन देहीं ओ कम्पनी म बाहर के मनखे मन ल काम-बुता म भरहीं हमर मन के घर,खेत,खार सब चले जाही अऊ छत्तीसगढ़िया मन धारे-धार बोहाहीं इंकर कोनो थिरबाहं नईहे !

छत्तीसगढ़िया,छत्तीसगढ़ी अऊ छत्तीसगढ़ के बिकास अईसने होही कईके हमर पुरखा मन देखे रहिन का ? सब जगा बाहिर ले आय मनखे मन रपोट के बईठ गे हावयं अब पुछत हवं बता दव ग….छत्तीसगढ़िया मन कहां हें ? …

असकरन दास जोगी
गांव : डोंड़की ( बिल्हा, बिलासपुर )
मो.नं. 9770591174



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दोसती

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एक गांव म आगी लगे रिहीस । चारों कोती अफरा तफरी मच गे रिहीस । जे दऊड़ सकय , तेमन दऊड़ के अपन परान बचा लीन । असक्त अऊ कमजोर मन आगी म लेसाए बर मजबूर रिहीन । फेर एक झिन अइसे मनखे घला रहय , जे कहींच अंग ले खंगे अऊ खिरे नि रहय , न कन्हो कोती ले कमजोर , फेर कतको जगा ओकर देहें म लेसाए भुंजाए के निसान रहय । पता करे गीस , तब जानिन के , ये वो मनखे आए जेहा कमजोर अऊ असक्त मनखे मनला बचाए के फेर म लेसात – भुंजात रिहिस ।

असक्त अऊ कमजोर मनखे मन ल बचा डरिस कइसनो करके । फेर एक झिन अंधरा ल बचाए बर जाबेच नि करत रहय । लोगन उहू ल बचाए के गुहार करीन , तब उही बतइस के , इही अंधरा के लगाये आगी आए , जेमा जम्मो लेसावत भुंजावत हाबन , एला बचा लेबो तंहले , फेर तपनी तप के उहीच बूता ल दोहराही ।

आगी हकन के लागे रहय । अभू अऊ भयंकर रूप ले डरिस । सहर ले गांव , मइदान ले बियारा , परसार ले घरो घर तक अमर गे वो आगी । अंधरा भागय बड़ जोर ले , फेर दिखय निही तेकर सेती आगीच म झपा जाये । अंधरा जरत रहय फेर , दूसर जरत मनखे मन के अहा अऊ दरद सुन के अपन पीरा ल भुला जाये , ओहा एक्को बेर बचाये के गुहार नि करीस । काबर बचइया मनखे ओला आगी लगाये के आगू , कतको घांव मना करे रिहीस , ओकर दुसपरिनाम ल जनाबा करे रिहीस , फेर ओ अंधरा नि माने रिहीस । जब जम्मो बांच गे , तब मुहू कान ल टड़ेर के , अंधरा ल घला “ मनखे समझ “ बचा डरीस । फेर वा रे अंधरा …….. , बचइया कोने तेला पूछीस तको निही । अपन असन मुहूं करके रेंग दीस दूसर डहर ।

कुछेच दिन पाछू , अंधरा फेर तियार होके पदोये लागीस । ए दारी आगी लगाना त बड़ चाहे , फेर बीते समे म , ले दे के अपन बांचे के कहिनी ओकर देहें ल पूस कस जाड़ कंपकंपा अऊ थरथरा देवय । बने मनखे संग दोसती करे के कोसिस करीस । कन्हो भाव नि दीस । तभे ओला अंधरा अऊ खोरवा के दोसती के कहिनी सुरता आगीस के , कइसे खोरवा ल , अंधरा ह अपन खांध म बइठार के मड़ई देखाये बर लेगे रिहीस । मजा पाये के साध अऊ दूसर ल परेसान करे के ओकर तिरिस्ना जोर मारे लागिस । तभू एक दिन , मऊका पाके एक झिन बने मनखे ल खोरवा बना दीस । बने मनखे ओला जान नि पइस । अंधरा ओकर इलाज घला करा दीस , बइसाखी धरा दीस । दूनो संगवारी बनगे । अभू ओ मनखे ह , मने मन अंधरा के धनबाद करत , गुन गावत , ओकरे बिसाये बइसाखी ल धरके रेंगे लागीस । अभू खोरवा हा , अंधरा के पिछलग्गू बनगे । अंधरा जइसे कहय , खोरवा तइसने देखय , तइसने सुनय अऊ तइसनेच कहय घला । अंधरा , कहूंच करा असानी ले आगी लगा देवय , कतको झिन ओ आगी म लेसा भुंजा जाये फेर , अंधरा ल कहींच नि होये , ओहा इही खोरवा ल खांध म बइठार के ओकर बताये रद्दा म निकल भागे , अऊ बांच जाये ।




कुछ बछर अऊ नहाकगे । अभू अंधरा देस के बड़ जिनीस मनखे बनगे । अंधरा मन अंधराच लइका पइदा करे लागीस । इंकर लइका बाला मनला , आगी लगाये के गुन विरासत म मिले रहय । उही ल अपन बूता अऊ करतब समझ , जगा जगा , समे कुसमे आगी लगा के टरक देंवय , फेर अपन बांचे बर केवल खोरवाच के तलास करय । ओकर सेती खोरवा के लइका मन घला अपन आप ल खोरवा बनाना सुरू कर दीन । यहूमन , अभू सरी मरम ल जान डरीन । अंधरा के खांध म चढ़हे के सुख के कलपना अऊ बइसाखी म रेंगे के इकछा इंकरो मन म पनपे लागीस । एमन जान डरीन के , जे खोरवा होके रिही , तिही ल अंधरा अपन खांध के सवारी कराही , अऊ कतको कस सुख जइसे बड़े जिनीस पद , पुरुसकार , पइसा सबेच दिहीं । एक गोठ अऊ , खोरवा मन के कन्हो सभा समागम बर साधन सुभित्ता घला इही अंधराच ह मुहइया कराही । आखिरी सोंच ये , के , बरचस्व अऊ नाम घला अंधराच के खांध म बइठने वाला पाहीं ।

आगी लगते रहय । जरत , लेसात , भुंजात मनखे मन , आगी लगइया ल जान घला डरे रहय । फेर अभू कती गोहारे ? ओमन ल बचा सकइया मनखे मन , खोरवा बन के अंधरा के हाथ बेंचा के , ओखर खांध म बइठके , मजा लेवत घूमत हे । जेन बने हे , तेमन खोरवा हो जाये के जुगाड़ करत हे , या खोरवा हो जाये के अगोरा । आघू चलके इही अंधरा मन राजनीति ( रजनीति ) के नाव ले अऊ खोरवा मन साहित्य ( साहित ) के नाव ले जनाबा होगिन दुनिया म , जेकर दोसती वाजिम म जबर हे ।

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा



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छत्तीासगढ़ी म परथंम धर्म उपदेशक संत गुरू घासीदास

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भारतीय इतिहास म 19वीं शताब्दी पुर्नजागरण के काल कहाथे। छत्तीासगढ़ म घलु इही काल के अलग पहिचान मिलथे। इतिहास कार मन के मुताबिक छत्तीिसगढ़ म कलचुरी राज 1000 ई. काल के तीर -तरवार ले सन् 1740 ई.तक माने जाथे। कलचुरी गोड़ राजा रहिस, येखर सेती छत्तीेसगढ़ के गाँव, कस्बा, डोगरी-पहाड़ म बसे लोगन म आज तलक गोड़ संस्कृति देखब म मिलथे। सन् 1740 म नागपुर के मराठा भास्कर पंत अपन सैनिक मन संग जुद्ध म कलचुरी राजा ल हराके सन् 1741म छत्तीासगढ़ ल हथियालिस तहां खुब्बेच लुटपाट अउ अइताचार करीन। छत्ती्सगढ़ हीनहर होगे। मराठा के लुटे ल जउन बांचगे रहिस तेला पिण्डारी डाकू दल लुट नगाके के चलदिन। भइगे ओ बखत छत्तीीसगढ़ लुट के ठउर होगे रहै।




छत्तीासगढ़ म सतपंथी नारनौल (पंजाब प्रान्त) ले आइन। औरंगजेब के अनियांव अउ अधर्मी नीति ले तंगाके सन् 1672 म शक्तिशाली मुगल शासक औरंगजेब से जुद्ध करीन। तोप, बारूद के आगू कहाँ टिकै, सतनामी जोद्धा हारगैं। तहाँ मुगल शासक सत पंथी उपर अति जुलुम करीन। अउ चुन-चुन के मारे बर आदेश दे दिस। का करै ? नारनौल ल छोड़े के सिवाय अउ कोनो रद्दा नई दिखिस। अपन वंश अउ संस्कृति ल बचाये खातीर भारत के आने-आने प्रान्त म बगरगै त कतको सतनामी अपन धरम बदल लिन। छत्तीेसगढ़ के वन गाँव म आके कतको झन शरण पाइन अउ भरूवा काट के बसगै। सतनामी वीर, अउ मेहनती रहिन। खेती-किसानी पुरखौती बेवसाय रहिस। अपन मेहनत, लगन के भरोसा बंजर (परत) भूमि म खेती करत कई ठन गाँव के गौटिया होगे। गुरू घासीदास के पूर्वज म पवित्र दास से मेदनी दास, दुकालदास, सगुनदास, मांहगू दास ले घासीदास के पीढ़़ी (1756 ले 1860) माने जाथे। छतीसगढ़ म सतनामी के संख्या अंगरी गिनऊ रहिस। तेखर सेती मराठा मन सन् 1740 ई. म सतनामी के जमीन अउ गौटयानी खेती ल लूट नगाके जमींदार बनगे। सतपंथी के जिनगी म बरोड़ा (संकट) आते रहिस।
भारत म बंटाये छोटे-छोटे रियासत के राजा अपन-अपन सुवारथ साधे बर एक दूसर के बइरी बने रहिन मउंका के फायदा उठावत अंग्रेज धीरे-धीरे अपन पांव देस भर म लमात छत्तीोसगढ़ आ धमकीन। गुरू घासी दास जी के जनम अंगेज अउ मराठा शासन के संधि काल रहिस।
छतीसगढ़ के किसान, बनिहार लुट-खसोट म एक कोती हीनहर होगे रहिन, त दूसर कोती छत्तीोसगढ़ी समाज म जात-पात, छुआछूत, सवर्ण, अवर्ण, रूढ़िवाद, पाखण्ड, पंगहा, टोना-जादू के बोलबाला रहिस। मया-पिरीत खउरा माते राहै। मराठा, पिण्डारी मन अइताचार तो करबे करीन, संग म पंडित, पुरोहित, पटेल अऊ जमींदार जइसन मातबड़ मन घलु लूट म पाछू नई रहिन। गइया गति होत लोगन के रक्षा खातीर सतगुरागी गुरूघासी दास बाबा जी के अवतरण समे के मांग रहिस।
गुरू घासी दास बाबा जी ज्ञानी, ध्यानी, त्यागी-तपसी दुःख-पीरा ले उबरइया, सत के संदेसिया अवतार लेके आइस अऊ बुद्ध असन तप-तपस्या म आत्मज्ञान पा के मानव जाति म सामाजिक क्रांति लाइस, जीवन म सतकर्म के बोध कराइस। अटके, भटके, डरे, थके ल पार नकाइस, कांटा-खुटी म छबड़ाये मनखे ल रद्दा बताइस, आसा अऊ बिसवास जगाइस। मनखे के करू-कस्सा मिटाके नवा-नवा नता-गोता, संगी-सजन, हितवा-मितवा जोरिस। मनखे-मनखे ल एक बरोबर बताके सतनाम! के अलख जगाइस।
अमरौतिन के कोरा म
छत्ती्सगढ़ के माटी म
गिरौदपुरी के छाती म
गुरू घासी जनम धरे न… (पुरानिक लाल चेलक)




मध्यप्रदेश ल अलगियाके 01 नवम्बर सन् 2001 म छत्तीीसगढ़ राज बनिस। इही नवा राज छत्तीेसगढ़ म नवा जिला बलौदाबाजार-भाटापारा (रायपुर) तहसील कसडोल के ग्राम गिरौदपुरी म छत्तीासगढ़िन माता अमरौतिन के कोख ले 18 दिसंबर सन् 1756 म मांघी-पुन्नी के छिटिक अंजोरी पहाती रथिया म बालक घासीदास के अवतरण होइस। पिता के नाव मांहगूदास रहिस। किसान परवार म जनमें बालक सतनाम पंथ के प्रवर्तक, युग-पुरूश अऊ छत्तीिसगढ़ के महान विभूति म गिने जाही, अइसन कल्पना कोनो नई करे रहिन होही।

सतनामी जाति म जनमें, पले, बढ़े बालक घासीदास गरीबी ल देखिस, भोगिस, छत्तीासगढ़ी समाज म उच्चनीच भेदभाव ल परखीस। भूखमरी, शोशण, ईरखा, छल-छद्म ले जुझीस। फेर कोनो ल कहे नई सकै। कलेचुप राहय, अकेल्ला म गुनान करै, कछु सुझै न रद्दा दिखै। उमर बाढ़त गिस, मन बियाकुल राहै, अशांत राहै, खेले खाय के उमर म समाज के दुर्दशा देख चिन्ता, म बुड़े दिखै। पिता मांहगू दास देख के संसो म परगे, भटकत मन ल बचाये बर अपन संग बुता-काम म लगा दै, तभो ले मन शांत नई होइस। पारा-परोस के सियान मन सुझाव दिन, घासी दास के बिहाव कर दे, गर म गेरूवा बंधा जही तहां अपने आप काम बुता धर लिही। बालक घासी के बिहाव सिरपुर निवासी अंजोरी दास के दुलौरिन बेटी सफूरा संग होगे। समे के धारा संग बोहात गृहस्थी के बसे ले चार संतान के पिता बनगे। तभो ले बियाकुल मन, शांति नई पाइस। पत्नी सफूरा के मोह-माया घलु रोके नई सकीस। दुःख हे त दुःख म मुक्ति के मारग घलु हे, सदी के पहली गौतम बुद्ध राजपाठ छोंड़के निकलगे। इतिहासकार मन के बताती म गाँव वाले के संग मन के शांति खातीर जगन्नाथ तीरथ यात्रा बर निकल जथे। सांरगढ़ पहुँचे पाये रहिस तैइसने मन म कछु सोचिस-बिचारिस, तुरते लहुट के सोनाखान जंगल के महराजी गाँव तीर छाता पहाड़ (छातानुमा शीला) उपर बइठिस तेहर उठबे नई करीस। कौंआताल के चंदनिहा गौटिया के सौधिया मन गिरौदपुरी के लोगन ल बताइन कि घासीदास छाता पहाड़ उपर बइठे हे। छः महीना के बीते ले गाँव गिरौद के मनखे मन घासी के आरो पाइन। छाता पहाड़ ले उठके गिरौद ले दू धाप दुरिहा अंवरा-धंवरा के खाल्हे म तप म बइठगे। इही ओ ठउर ए, तपस्या करत बाबा घासीदास जी ल आदि पुरूश (सत के स्वरूप) के दर्शन से सतनाम रूपि अमरित मिलीस। आत्मज्ञान मिले से हिरदे म सत के अंजोर बगरगे सबो समस्या के हल निकलेगे। पंथी गीत म गाथैं –
अंवरा-धौंरा पे़ड़ म धुनी रमाये हो
सतनाम पुरूश के दर्शन पाये हो ……………. ।

डॉ. ग्राण्ट सरकारी गजेटियर (1870) म लिखे हवय 28 दिसबर 1820म बिसाल जन समूह श्रद्धा म हाथ जोड़ें दिव्य पुरूश के दर्शन के खातीर डोंगरी के डहर कोती टकटकी लगाए देखत रइथे। गुरू घासीदास छः महीना के कठिन तपस्या के बाद गिरौद जंगल से निकल के आइस देखते देखत बाबाजी के जयकार म आकास गूंजे लगथे। सकलाये अपार जनसमूह ल दर्शन अउ असीस देत छत्तीसगढ़ी म दैवी संदेश देथे। इही उपदेश सतनाम के सात सिधांत के रूप म माने जाथे। ये संदेश है –

1 सत ल मानौ, सतनाम सार हे, जम्मो प्राणी के घट-घट म रमे हे।
2 ईश्वर निराकार हे, मूर्तिपूजा आडम्बर ए, सबो जीव उपर दया करौ।
3 सत, अfहंसा के मारग म चलौ, बलि देना मुरख पन ए येला बंद करौ।
4 दारू, मांस, भक्षण त्यागौ, सादा अन्न म पबरित विचार जनमथे।
5 मनखे-मनखे एक बरोबर ए, भेदभाव ल छोंड़व।
6 पर स्त्री ल माता मानौ, नारी सृश्टि के जननी होथे।
7 गाय भंइस ल नागर झन जोतबें।



गुरू घासीदास जी के बताये सात सिधांत सतनाम के मूल -मंत्र ए। ये सिधांत के पालन करे ले दुःख भरे जीवन से बचे जा सकथे।
अंग्रेज लेखक चाल्स ग्रान्ट के गजेटियर (1870) पहली एतिहासिक लेखन ए। जेमा गुरू घासीदास जी के बारे म घाद अकन लिखे हे। ग्रान्ट के लिखे घटना ल इतिहासकार मन प्रमाणित माने हे। बाबा गुरू घासीदास जी ल लेके ग्रान्ट ह लिखे हे कि – ‘‘इस अंचल के असल आश्चर्य अभी तक धरती के नीचे दबे हुए है। गुरू घासीदास उनमें से एक है जिन्होंने छत्तीेसगढ़ के भूमि दासो को जगाया और जाति प्रथा को समाप्त कर समतावादी समाज की रचना की।’’
राजा मोहन राय के सतीप्रथा आंदोलन के पहली छत्ती्सगढ़ अंचल म सामाजिक क्रांति के धजा गुरू घासी दास बाबा जी फहरा चुके रहिस। नारी जाति के सम्मान खातीर अपन उपदेश म कहिन – ‘‘पर नारी माता सनमान, नारी सृश्टि के जननी होथे, दाई-दाई होथे मनखे हो या पशु। जेन गाय के बछरू मर गेहे ओकर दुध झन पियव, गाय भैंस ल नागर मत जोंतव, अवइया ल रोकव झन, जवइया ल टोकव झन एक धुवा मारे तेनो तोर बरोबर आय (गर्भ मं पलते शिशु भी तुम्हारे समान है) अइसने बलिप्रथा के विरोध करत अमृतवाणी म कहे हे – ‘‘जीव मारब, fहंसा करब महा पाप आय।’’ बाबाजी के बताये उपदेश अऊ सिधांत ल भक्तगण अपन हिरदे म बसाइके सतपंथी कहाइन।
गोकुल प्रसाद (1921-24) के मुताबिक बालक बुधारू ल सांप डस दे रहिस। बालक घासीदास के भक्ति पूर्ण प्रार्थना अऊ इलाज ले बुधारू ल जीवन दान मिलगे। तउन समे ले चमत्कारी बालक के रूप म छत्तीासगढ़ अंचल म सोर उड़गे। कतको चमत्कारी कथा ‘‘गुरू घासीदास चरितम्’’ नामक संस्कृत महाकाव्य म पढ़े जा सकथैं जइसे – ‘‘बिना आगी पानी के भोजन बनाना, गरियार बइला से संवाद अउ नागर चलाना, पाँच काठा धान ल पाँच एकड़ म बों के भारी फसल लेना, समाधीरत छः महीना ले धरती म दफन पत्नी सफूरा ल जीवन दान देना, दंतेश्वरी देवी से संवाद’’ ये सब चमत्कार ले गुरू घासी दास अवतार के रूप म माने जाथे। एकर से ये बात के प्रमाण मिलथे कि दलित जाति म जनमें गुरूघासी के चमत्कार बिना नमस्कार कहाँ ले होतिस ? जबकि मानव समाज म जातिवाद छूआछूत, रूढ़िवाद, पाखण्ड जइसन बेमारी जड़ जमाये रहिस।




भोपाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ.. हीरालाल शुक्ल अपन पुस्तक ‘‘गुरू घासीदास संघर्श समन्वय और सिधांत’’ म लिखे हवै – ‘‘ गुरू घासी दास दलितों की विपन्न स्थिति से बहुत दुःखी थे। उच्च अध्यात्मिक विरासत के विद्यमान होने के बावजूद दलित शोषण के शिकार थे तथा उनका जीवन गुलामों से भी ज्यादा बद्तर हो गया था। उन्होने अपनी आत्मा को मार डाला था और माननीय सम्मान को पूरी तरह भूल गये थे। दलितों के राजनीतिक प्रशासनिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, नैतिक तथा अध्यात्मिक उत्थान के लिए गुरू घासी दास ने एक लम्बा संघर्श (1820 से 1830) किया था और इस रूप में भारत के स्वाधीनता आंदोलन के वे पुरोधक थे। भारतीय समाज में उनके जैसा आज तक दलितों को कोई मसीहा पैदा नही हुआ। डॉ.. शुक्ला जी आगू डहर लिखथैं कि- उच्चकोटि के व्यवहारीवादी तथा तथ्यान्वेशी ही नहीं थे अपितु महान दार्शनिक भी थे, जिन्होने विश्व के लिये एक नया ‘माडल’ दिया जिन्होंने नैतिकता के तेज बहाव से जनता की रक्षा की, जिन्होंने भारत में नवजागरण की प्रथम रश्मि फैलायी। उनका नवजागरण निरक्षर, किसान, मजदूरों के परिश्रम से सींचा गया था।
‘‘सत म धरती खड़े, सत म खड़े अगास
सत ले सृश्टि उपजे, कह गये घासी दास।’’

आदि युग ले सत के महिमा के बखान होत हे – धरती म जतेक संत, महात्मा, रिसि-मुनि अवतरिन, सत ल महान बताइन। सत ही संसार म सर्वोत्‍तम हे, सत ल कोनो काल म नकारे नई जा सकै। गीद गायन मन पंथी गीत म गाथैं –

‘‘सतनाम! सतनाम! सतनाम! सार
गुरू महिमा अपार, अमरित धार बोहाइदे
होई जाही बेड़ा पार, सत के महिमा लखाइदे।’’
सत ल धारण करना, सतमारग म चलना, आचार-विचार बेवहार म लाना ही सतनाम धर्म ए। छः महीना के कठोर तपस्या ले गुरू घासीदास जी सत से साक्षात्कार होइस। आगू चलके पूरा मानव समुदाय ल सतनाम रूपि अमरित पिलाइस। चाल्स ग्रान्ट के अनुसार – ‘‘गुरू घासीदास एक युग पुरूश थे। सन् 1870 में ही उन्हें देवदूत और एक मसीहा के रूप में भक्तगण मानने लगे थे। ‘‘बाबा जी के क्रांतिकारी विचार, आदर्श, सतज्ञान से जनसमूह खींचे चले आइन। लाखो केे समूह म अपन जात-धरम तेज के गुरू घासीदास बाबा के चलाये सतनाम पंथ म fमंझरगे अउ बाबा के बताये रद्दा धरलिन। भंडारपुरी गुरू घासीदास जी के कर्मभूमि माने जाथे, fजंहा ले सतनाम रावटी शुरू होके पूरा छत्ती्सगढ़ म सन् 1820 से 1830 तक जनक्रांति सतनाम आंदोलन चलिस। रूढ़ि, पाखण्ड, छुआछूत, मूर्तिपूजा ल छोड़के सामाजिक समता खातीर सेत धजा के खाल्हे अवइया भगत मन के संख्या दिनो-दिन बाढ़त गिस। येकर सेती छत्तीासगढ़ म सतनाम पंथी आज लाखो म हवयं।




आधुनिक युग के महान क्रांतिकारी संत गुरू घासीदास बाबा जी दुर्गम ल सरल, सामाजिक जीवन सादगी अउ सतकर्म म रहे बर लोकभाशा, छत्तीिसगढ़ी म अनगिनत उपदेश दे होही फेर ओ बखत लिखित साहित्य नई रहे ले अंग्रेज लेखक अउ पंथी गीत से जउन संदेश मिलथेे, इही संदेश बियालिस अमृतवाणी के रूप म प्रचलित हवय। रावटी म देये संदेश हे –
1 पंडित हो या पुरोहित, मुल्ला हो या मौलवी, साटीदार हो या भंडारी, महंत हो या संत सब ल संते जान।
2 जहाँ तोर-मोर, मोर-तोर के प्रपंच हवै उंहा ओ ह नइये अउ fजंहा ओ भेद ह नइये उहां ओ ह रथै।
3 मोर संत मन मोला काकरो ले बड़े झन कइही, नई त मोला हुदेसना म हुदेसन आय।
4 मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, संतद्वारा बनावन मोर मन भावै नई , तोला बनायेच बर हे त जलाशय बना, कुँआ बना, धर्मशाला बना, अनाथालय बना न्यायालय बनवा दुर्गम ल सुगम बना।
5 मंद झन पी, पीना हे त ज्ञान के अमृत पी, पीना हे त गाय के दुध पी, धरती माता के पसीया ल पी।
6 तैहा अपन बर बारह महीना के खरचा सकेल ले तब भक्ति-भाव करबे, नइते झन कर।
7 गीता पढ़, पुरान पढ़, कुरान पढ़, बाइबिल पढ़ ले, सुन ले, मुंदई के मुंदई ले, नई मुंदई तेला कहिबे झन।
8 मोला देख, तोला देख, बेरा देख, कुबेरा देख। जउन हे तउन ल बांट बिराज के खाले।
9 करिया हो चाहे गोरिया, बड़का हो या छोटका, ए पार के होय, चाहे ओ पार के होय मनखे-मनखे आय।
10 दाई ह दाई आय, मुरही गाय के दुध झन पीबे।
11 मझनिया नागर झन जोतव। भोजन खेत म झन ले जावव, गउ माता के सेवा करौं।
12 जीव मारव, fहंसा करब महा पाप आय।
13 जान के मरइहा तो मारब, कोनो ल सपना म मरइहा तो मारब आय।
14 पान, परसाद, नरियर सुपारी चढ़ावन सब ढोंग आय।
15 मरे के बाद पीतर मनई, मोला बइहई लागथे।
16 मांस ल झन खाबे, मांस ल कोन काहय? ओकर सहिनांव तक ल झन खाबे।
17 घमण्ड का के करथस ? सब नसा जाही।
18 झगरा के जर नई होय, ओखी ह खोखी होथे।
19 पराया धन, तोर कौड़ी आय।

20 दान के देवइया पापी, दान के लेवइया पापी।
21 बइरी संग घलो पिरीत रखौ।
22 पानी पीहू छान के, गुरू बनाहू जान के।
23 अपन ल हीनहर झन मानहू।
24 जइसे खाबे अन्न, तइसे होही मन।
25 मोर हीरा सबो संत के आय, अउ तोर हीरा ह मोर बर कीरा आय।
26 पहूना ल साहेब सनमान जानिहौ।
27 सगा के जबर बइरी सगा होथे।
28 इही जनम ल सुधारना सांचा ए।
29 सबर केे फल मीठा होथे।
30 दान झन मांगहू न उधार लेहू।
31 एक धुवा मारे तेनो तोर बरोबर आय।
32 दाई-ददा अउ गुरू ल सनमान दव।
33 दीन-दुःखी के सेवा सबले बड़े धरम ए।
34 काकरो बर कांटा झन बों।
35 जतेक हव सब मोर संत आव।
36 चुगरी चारी ले नव कोस दुरिहा रइहा।
37 रीस अउ भरम ल तियागथे, तेकर बनथे।
38 सत अउ ईमान म अटल रइहु।
39 अवइया ल रोकव झन जवइया ल टोकव झन।
40 तोर पीरा ओतकेच आय जतका मोर पीरा ह।
41 धन ल उड़ा झन, बने काम म खरचा कर।
42 ए धरती तोर ए, येकर सिंगार कर।




छत्तीोसगढ़ी भाखा म परथंम धर्म उपदेशक गुरू घासीदास बाबा जी हवैं। गुरूजी के महिमा पंथी गीत म गाये जाथे, पंथी गीत भक्ति-भाव ले तरबतर होथे।बाबाजी के बताये सात सिधांत अउ बियालिस अमृतवाणी म दुःख के निदान हें। कोनो ल दुःख-पीरा बियायै न डर-भय लागै, भइगे! जीवन दर्शन, उपदेश ल जाने, समझे अउ धरे बर लागही। मनखे के जिनगी संवर जाही।

अनिल जाँगड़े ‘गौंतरिहा’
ग्राम – कुकुरदी पो0 बलौदाबाजार
जिला – बलौदाबाजार-भाटापारा (छ.ग.)
पिन – 493332
मो. न. – 8435624604



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मानव सेवा –देहदान : जरूरत अउ महत्ता

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सरग इंहे, नरक इंहे । मरे के बाद कोन जीव कहाँ जाथे तेला कोनो नद जानय। बने करम करबे त ओकर सुख भोगे बर अउ घिनहा करम करबे त दु:ख भोगे बर इही भुइंया म फेर आना हे। सियान मन कहिथे के मरे के पहिली अइसन करम कर लव कि मरे के बाद जम्मो मनखे तुंहर सुरता राखय। दान, दक्षिणा, दीन-दुखी के सेवा, सहायता आदि कतको तरीका हवय जेकर ले आप पुन्न के काम करके मानवता के संदेश दे सकथव। दान करे के कई तरीका हे जइसे कोनो स्कूल बनवा दिस, कोनो धरमशाला बनवा दिस, कोनो चेरिटी म दान करथे, कतको झन रक्तदान करके जीते जी पुन्न के भागीदार बनथे। देहदान घलो इही कडी़ के हिस्सा आय। ये अइसन दान ये जेमा पईसा लागे न कौडी़ ,बिना खरचा के पुन्न कमाना ये।

देहदान काय ये ? – देहदान मनखे के मरे के बाद दे जाने वाला दान आय। मनखे ल अपन जीवनकाल म ही देहदान के घोषणा करे बर परथे, अउ मरे के उपरांत मनखे के देह ल उपयोग म लाय जाथे। देहृदान करे बर उम्र के बंधन नइ हे, नवजात लइका ले लेके 90 साल के बुजुर्ग घलो ह देहदान कर सकथे।

कइसे करन देहदान– जब भी आप देहदान करव त ओखर घोषणा सार्वजनिक रूप से करव। अपन समाज के बीच म, या कोनो बडे सार्वजनिक कार्यक्रम म जिहाँ लोगन सकलाय राहय, काबर येकर ले दूसर मनखे ल घलो देहदान के संबंध म जानकारी अउ प्रेरणा मिलथे। घोषणा करे के बाद देहदान के रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य हवय। आप कोनो भी मेडिकल कालेज, एम्स या मेडिकल रिसर्च सेन्टर म जा के देहदान के विधिवत पंजीयन करा सकथव।

देहदान के फायदा– देहदान करे ले पहिली फायदा पर्यावरण ल होथे, पाँच छह कोंटल लकङी के बचत, घी, राल, माटी तेल जम्मो जिनिस के बचत। लकडी जलाय ले पर्यावरण प्रदूषित होथे तेकर ले बचत। मनखे के हाडा ल बिनके अस्थि बिसर्जन करे जाबे तेकर बचत। अस्थि बहाये ले नदी ह प्रदूषित होथे तेखर बचत। असइने मुरदा शरीर ल पाटबे तभो खरचा आथे वोकरो बचत।

काबर करन देहदान -मरे के बाद मनखे के शरीर ल लोगन अपन-अपन धरम के रीति-रिवाज के अनुसार या तो जला दे जाथे या दफना दे जाथे। ये दूनो क्रिया म मनखे के शरीर ह कोनो काम नइ आवय। फेर मरे के बाद 1 मनखे के मृत शरीर के स्वस्थ अंग अउ टिशू ला दूसर जीवित मनखे के शरीर म प्रत्यारोपित करके लगभग 50 मनखे के जान बचाये जा सकथे। जइसे -दू आँखी ले दू मनखे के आँखी रोशन हो जाथे, दू किडनी ले दू मनखे के जिनगी बांच जाथे, अइसने फेफडा, लीवर, हृदय, कार्निया, टिशू, त्वचा आदि अंग ल अलग-अलग अइसन मनखे के शरीर म प्रत्यारोपित कर दे जाथे जउन मन एकर अभाव म मरनासन्न स्थिति म पहुंच जाय रहिथे। बाकी बांचे शरीर ह मेडिकल कालेज के विद्यार्थी मन के काम आथे, काबर कि चीर-फाड करे बर मनखे के शरीर बड मुसकुल म मिल पाथे। अइसने कोनो-कोनो देहदान करे रहिथे तेकर शरीर ह मेडिकल स्टूडेंट मन के काम आ जाथे।

नावा सोच के जरूरत– 21 सदी ह विज्ञान के जुग आए, रूढिवादी बिचार ल अब बदले के बेरा आ गे हे। कतकोन झिन ल कहत सुने होहु- आँखी ल दान करबे त दूसर जनम म अँधरा होबे मान्यता ल खतम करे जरूरत हवय। पहिली गुनव अउ गुने के बाद सही ल मानव। मनखे जीयत भर जम्मो प्रकार के सुख ल भोगथे, देहदान कर के हम मरे के बाद घलो कई झिन के जिनगी बचा सकथन। मरे के कुछ घंटा तक मानव शरीर के अंग ह सुरक्षित रहिथे तेखर सेती मनखे के के मृत शरीर के कई हिस्सा ह दूसर मनखे के शरीर म प्रत्यारोपित हो जाथे। माने कि मरे के बाद आप बिना खरचा करे पुन्न कमा सकथव। दुनिया भर म अंग नइ मिले के कारण हर बछर 5 लाख मनखे के मौत हो जाथे। देहदान करके इंकर जान बचाय जा सकथे। ये विचार करे विषय हे।

दूसर पहलु – हमर देश म जघा-जघा मेडिकल कालेज खुल गे हवय फेर मेडिकल विद्यार्थी के अध्ययन करे खातिर मानव शरीर के उपलब्धता बहुत कम हवय। मेडिकल बोर्ड के अनुसार हर डाक्टर के पाछू कम से कम 1 मानव शरीर (मृत) के प्रेक्टिकल करे खातिर होना चाही फेर मानव शरीर न मिल पाये के कारण मेडिकल के विद्यार्थी मन चित्र या डायग्राम के माध्यम ले शरीर के संचरना के अध्ययन करथे। प्रेक्टिकल तो तभे करही न जब मानव शरीर मिलही अइसन स्थिति म उंकर मेडिकल के पढई ल अधूरा कहे जा सकथे। यदि विद्यार्थी मन ल मानव के मृत शरीर मिल जाही त उन चीर फाड करके पूर्ण रूप से शरीर ल समझ पाही ये वजह से भी देहदान करे के बहुत जादा आवश्यकता हवय।

जरूरी गोठ – देहदान करे भर ले कुछ नइ होवय होवय, देहदान के घोषणा करना अउ ओकर रजिस्ट्रेशन करवा लेना तो आसान हवय फेर देहदान के क्रियान्वयन बड मुसकुल काम हवय। देहदान ह एक प्रकार ले संकल्प आय जउन ल पूरा करना चाही। देहदान करे के बाद आप तो नइ राहव त आपके ये संकल्प ल आपके अवईया पीढी या आपके करीबी रिश्तेदार ह पूरा करथे। येकर सेती देहदान करईया मनखे ल अवईया पीढी या अपन करीबी रिश्तेदार ल घेरी-भेरी चेता के राखे ल परही कि आपके अंतिम इच्छा का हे। उनला येह बता के राखे ल परही कि मरे के बाद तुरते बाद रजिस्ट्रेन सेंटर ल फोन करहू। अब आजकल तो 1 घंटा के भीतरी एम्बुलेंस पहुंच जथे ओकर बाद मृत शरीर ल सुरक्षित उठा के ले जाथे। मनखे के जेन-जेन हिस्सा बने रहिथे ओला तुरते उपयोग कर लिए जाथे बाकी शरीर ल मेडिकल छात्र मन चीर-फाड करके अध्ययन करथे| यदि मृत देह ल रजिस्ट्रेशन सेंटर भेजवाय म देरी होइस त मृत देह के कतको अंग हा खराब हो जाथे जेकर ले न तो देह के उपयोगिता रइही न देहदान के सार्थकता।

अदभुत उदाहण– भिलाई (छ.ग.) के बेटी अजीता पुरंग शाह बिहाव के बाद अमेरिका के न्यू जर्सी म रहत रहिस। ब्रेन हेमरेज के कारण ओकर मौत होईस, फेर मरे के पहिली अजीता ह देहदान करे रहिस। मरे के बाद अजीता के मृत देह ले 30 मनखे के जान बाचिस। अजीता के अलग-अलग अंग ल अलग-अलग मनखे ल प्रत्योरोपित करे गिस ये प्रकार ले मरे के बाद घलो अजीता ह देहदान करके मिसाल बनिस।

अजय ‘ अमृतांशु”
(लेखक अड उंकर धर्मपत्नी किरण साहू देहदान कर चुके हवय)




धमनी वाले श्री अजय शर्मा जी बतावत हे देहदान के महत्‍व




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विचार के लहर : सियान मन के सीख

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सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! हमला हर काम ला बने सोच-विचार के करना चाही रे। कभू अपन विचार ला खराब नई होवन देना चाही। हमला हर परिस्थिति में अच्छा सोच-विचार ले के ही कोनो काम ला करना चाही। फेर संगवारी हो हमन नई मानन। आज अतेक सुविधा होय के बावजूद हमर अतका बुता बाढ़ गै हावय के हमर करा सोचे के टाईम नई हे। अउ ए बात के हमला बहुत नुकसान उठाना परथे।
संगवारी हो हमर विचार के हमर जिनगी मा भारी महत्तम हावै काबर के हमर जउन भी उपलब्धि हावै वो हर हमर सोच के कारन हावै। हमर सोच-विचार मा बहुत असर होथे। हमर उपर तो हमर सोच के असर होबे करथे फेर हमर संग मा रहवइया मनखे मन उपर घलाव हमर सोच के असर होथे। हमर विचार हर अइसे होना चाही जेखर से सब के भला होवय अउ कखरो नुकसान झन होवय फेर कहूं हमर सोच हर उल्टा होगे तब एखर नुकसान घलाव हमला उठाए बर परथे। एक तरफ हमर बने विचार-धारा मा हमला इंसान से भगवान बनाए के ताकत होथे तो दूसर तरफ हमर खराब विचार-धारा मा हमला इंसान से हैवान बनाए के घलाव ताकत होथे। संगवारी हो हमर विचार के हमर रूप-रंग, हमर चाल-ढाल, हमर बोली-भाखा, हमर रहन-सहन, हमर खान-पान उपर भारी असर होथे। इंहा तक के हमन जउन-जउन जिनिस ला बउरथन ओ जम्मों जिनिस मा घलाव हमर विचार हर समा जाथे एखरे सेती तो हमन महामानव मन के जिनिस ला धरोहर के रूप मा बरसों-बरस सम्भाल के राखे रहिथन नई तो उॅखर ओढ़ना-कपड़ा अउ जूता-पनही मा अइसे का खास बात हावै जउन कि हमन ओला संग्रहालय बना के सुरक्छित राखे हावन। झांसी के रानी के तलवार में, महात्मा गाँधी के चस्मा में, चरखा में अइसे का खास बात हावै के ओला देखके आज भी उॅखर सत्य अउ अहिंसा के पाठ हर सुरता आ जाथे अउ हमर रोम-रोम मा उत्साह के संचार हो जाथे।




संगवारी हो हमन जिहा रहिथन-बसथन उहा वास्तव में हमर संगे-संग हमर विचार रहिथे-बसथे। हमर विचार हर हमर जिनगी ला बनाथे घलाव अउ बिगारथे घलाव। हमर सोना-जागना, हमर घूमना-फिरना ,हमर दोस्ती-दुस्मनी, हमर नफा-नुकसान, हमर मान-अपमान, हमर जिनगी के रद्दा मा उठाई अउ गिराई जम्मों बात हर हमर सोंच के परिनाम होथे। हमर स्वास्य् , हमर उमर के उपर घलाव हमर सोंच के असर होथे। ए बात ला तो वैग्यानिक मन घलाव सिद्ध कर डारे हावै के हमर सरीर मा हमर विचार के अनुसार रसायन बनथे जेखर अनुसार हमर हाव-भाव होथे। संगवारी हो सबले बड़े बात ए हरै के हमर सोंच ला केवल हमीं बदले सकथन, कोनो दूसर मा अतका ताकत नइ हे के वो हमर सोंच के विपरीत काम हमर से करवा सकय। हमर उत्तम विचार हर हमर चरित ला उत्तम बनाथे अउ हमर उज्जवल चरित के सुगंधित लहर हर दसों दिसा ला सुवासित कर देथे। तभे तो सियान मन कहिथे- बेटा! हमला हर काम ला बने सोच-विचार के करना चाही रे। कभू अपन विचार ला खराब नई होवन देना चाही। सियान बिना धियान नई होवय। तभे तो उॅखर सीख ला गठिया के धरे मा ही भलाई हावै। सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हवै।

रश्मि रामेश्वर गुप्ता



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करम के डोरी : सियान मन के सीख

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सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! करम के डोरी हर बड़ मजबूत होथे रे। फेर हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। तइहा जमाना म जब ग्वाला हर गाय चराय बर जावय तब का करय? गाय ला एक ठन रूख़ म बांध देवय अउ अपन हर कोनो मेर छॉव में बइठके बॉसुरी बजावत बइठे राहय अउ उॅहा ले गाय के उपर घलाव नजर राखे राहय। गाय हर रूख के चारो कोती के दूबी ला सुघ्घर किंजर-किंजर के चरत राहय। जब ग्वाला हर देखय के गाय हर तो रूख के चारो डाहर के दूबी ला चर डारे हावय तब ओखर बंघना ला थोरकन ढील का दय जेखर से गाय हर अउ दुरिहा के दूबी ला चरे सकय।
संगवारी हो हमर कका बाप हर कहय-बेटी! भगवान हर उत्तम ग्वाला आय। वो हर हमन ला ए दुनिया में अच्छा करम करे बर भेजे हावय। वो हर हमन ला दुरिहा ले देखत रहिथे। जब भगवान हर देखथे के हमन अपन चारो डाहर के बुता ला अपन ताकत अउ साहस भर कर डारे हवन तब वो हर हमर करम के डोरी ला थोरकन अउ ढील कर देथे जेखर से हमला पहिली ले अउ जादा अच्छा काम करे के अवसर मिल जाथे अउ हमन फेर अपन बुता-काम म नवा उमंग अउ उत्साह के संग लग जाथन। जउन मनखे हर जतका मन लगा के काम करथे ओखर करम के डोरी हर ओतके बाढ़त जाथे। जउन बेरा ग्वाला ल लगथे के अब सॉझ होवत हे जाय के बेरा होगे, अब चलना चाही ओ बेरा ग्वाला हर गाय के बंधना ला खोल के ओखर ठिहॉ तक पहुचा देथे वइसने जेन दिन भगवान ला लगही के अब हमर जाय के बेरा होगे ओ दिन हमर आत्मा ला ए दुनिया के बंधन ले मुक्त करके हमला अपन परमधाम में पहुचा देही। सियान बिना धियान नई होवय। तभे तो उॅखर सीख ला गठिया के धरे मा ही भलाई हावै। सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हावै।
रश्मि रामेश्वर गुप्ता

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होरी हे रिंगी चिंगी

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रंग मया के डारव संगी

फागुन के महिना रिंगी चिंगी रंगरेलहा अउ बेलबेलहा बरोबर हमर जिनगी मा समाथे। जिनगी के सुख्खा और कोचराय परे रंग मा होरी हा मया-पिरीत,दया-दुलार,ठोली-बोली,हाँसी-ठिठोली के सतरंगी रंग ला भरथे। बसंत रितु हा सरदी के बिदा करे बर महर-महर ममहावत-गमकत गरमी ला संगवारी बनाके फागुन के परघनी करथे। फागुन के आये ले परकीति मा चारों खूँट आनी-बानी के रिंगी-चिंगी रंग बगर जाथे। गहूँ के हरियर रंग,सरसों के पिंयर रंग,आमा मँउर के सोनहा रंग,परसा के आगी बरन लाली रंग,जवाँ,अरसी फूल अउ अँगना मा गोंदा, गुलाब,किसिम-किसिम के फूल घलो छतनार फुले फागुन के परघनी मा जुरियाय रथें। इंखर बिन का बसंत के गीत अउ का फागुन के फाग। कारी कोइली हा घलाव फागुन के फदगे के हाँका पारथे मा भिंङ जाथे।
जिनगी मा इही जम्मो रिंगी चिंगी रंग के घातेच महत्तम रथे। ए रंग-बिरंग के बिन सरी जग अउ जिनगी हा सुन्ना, सुक्खा अउ जुच्छा जइसन जनाथे। ए रंग के महत्तम सबले जादा फागुन मा दिखथे। परकीति के संगे संग मनखे मन मा घलाव हाँसी-ठिठोली,मया-पिरीत अउ उमंग-उछाह के मनरंगी रंग हा सबला अपन संग मा, अपन रंग मा रंगे बर बङ सधाय रथें। होरी हा सिरिफ परकीति के सातरंगिया रंग ले जादा हिरदे के रंग ला बगराय के तिहार हरय। एखरे सेती होरी तिहार मा मनखे के जिनगी मा दुख-दरद के काँटा-खूँटी ला बहार के बार दे के खच्चित जरुरत रथे। एखरे कारन ए तिहार हा हमर हदास जिनगी मा मया-दया के नवरंग भरथे। होरी के रंग गुलाल ले जादा मन के भाव मा जादा आनंद आथे। मन के भाव बिन जिनगी के सुख-सुबिधा के गुरतुर सोनहा रंग हा घलाव सिट्ठा अउ सोखर्रा लागथे। जिनगी के जम्मो खुसी मन ला जोर सकेल के सरी संसार ला देखाय के ,बताय के कोनो ओंङहर खोजथे परकीति हा। इही ओखी बसंत,फागुन अउ होरी हा हरय।
होरी तिहार हा हमर देस के एकठन सबले अलगेच सांस्किरतिक अउ अधियातमिक तिहार हरय। हमर भारत देस मा अलग-अलग रंग-रुप, बोली-भाखा, तीज-तिहार, खान-पान,रहन-सहन,भाखा-भेस अउ जम्मो जीनिस हा अलगेच हावय फेर रंग-बिरंगी होरी के रंग हा सरी देस ला एकमई सुमता के रंग मा रंगा देथे। अधियात्म के अर्थ होथे-: मनखे के ओखर ईसवर संग संबंध या फेर खुद के खुदेच संग संबंध होवई हरय। एखरे सेती होरी तिहार हा आत्मा ले परमात्मा के अउ मनखे के अपन खुद ले अपनेच खुद के संग साक्छातकार के परब आय। असल मा ए होरी तिहार हा अनन मन के भीतर उपजे दोस-बुराई के बिरुद्ध मा उठ खङे होय के तिहार आय। होरी हा हमला नवा ढ़ंग ले जिनगी जीये के अंदाज सिखोथे। सुवारथ ला लेसे के, जलाय के अउ पर-पीरा ला अपनाय के,सुख ला बाँटे अउ बगराय के, मनखे के संवेदना ला सकेले के उदिम करे के तिहार हरय। आनंद अउ उछाह के सबले बङे होरी तिहार हा ऊँच-नीच, छोटे-बङे अउ गरीब-बङहर के भेदभाव ला मेटा के हाँसी-खुसी, मया-पिरीत के रंग मा रंगथे अउ जिनगी ला सतरंगी बनाथे। होरी के मन मोहना रंग के फोहार मा पियार, सुमता अउ भाईचारा ले हमर समाज हा भिंजथे। रंग गुलाल हा चारों खूँट उङथे अउ नाच-गान करके सोर मचाथे अउ कथे सबले बढ़िया मया रंग हा होथे। ए रंग हा कभू नइ उतरय। मया-परेम के रंग मा आनी-बानी के रोटी-पीठा के संग होरी के तिहार मा जोस उछाह हा दुगुना हो जाथे। होरी हा जम्मो लइका,जेवान अउ सियान मन ला एकमई कर देथे। बैरी-दुसमनी के गांठ हा खुल जाथे अउ मया के बंधना मा बंधा जाथें। दुनिया भर मा हजारों किसिम के रंग हावय जउन हा जिनगी ला रंग बिरंगी बनाथे फेर ए मन के रंग नइ कहाय। सबले सुग्घर अउ सिरतोन पक्का रंग मन के होथे,मया के रंग होथे जउन हा जिनगी भर अपन संग नइ छोङय। मया के रंग के आगू मा जम्मो रंग हा फिक्का हावय।
दु दिन चलइया राग अउ रंग के परब होरी तिहार हा महीना भर पहिली ले अपन अघुवा बसंत ला बनाय रथे। मतौना बइहा बसंत हा होरी के परघनी मा कोनो कसर नइ छोङय। कोइली हा संदेशिया होथे। फागुन के फाग अउ बसंत के राग होरी के संगवारी हरँय। राग के मतलब गीत-संगीत अउ रंग के मतलब रंग-गुलाल होथे। फागुन महीना मा परकीति घलो हा अपन भरे जेवानी मा रथे। एखरे सेती होरी तिहार मा जम्मो जगत भर ला जेवानी छाय रथे अउ सबो मस्तियाय रथें। बसंत पंचमी ले गुलाल उङे के सुरुवात हो जाथे तेन हा फागुन महीना के पुन्नी अउ रंग पंचमी के आवत ले नइ सिरावय। गुलाल के सोर उङत रथे। बसंत पंचमी ले नंगाङा के गुरतुर धुन कान मा मिसरी घोरे ला धर लेथे। रुख, राई, फूल-फर, चिरई-चिरगुन अउ मनखे मन ला ए फागुन के नसा छा जाथे। किसान अपन खेत मा सरसों,जवा,अरसी अउ गहूँ के गेदराय बाली मन ला देख के मने मन मगन होथे। तन मन हा झुमे लागथे। इही खुसी मा होरी के उछाह हा दुहरी हो जाथे। ढ़ोलक-नंगारा, मांदर-झाँझ, मंजीरा के धुन हा फागुन के मतौना पुरवाही मा जम्मो जग हा बूङ जाथे, सना जाथे।
होरी सिरिफ रंग गुलाल उङाय,एक दुसर उपर लगाय के,पी खा के मेछराय के तिहार नो हे। ए तिहार हा अपन गरब-गुमान ला होरी के लकङी जइसन जला के, लेस के बैरी अउ दुसमनी ला भुलाय के, छमा अउ मया के रंग मा चिभोरे के, एकमई करे के तिहार हरय। ए परकीति घलाव हा हमला ए रिंगी चिंगी संसार मा सबले सुग्घर अउ जिनगी भर झन छुटय अइसन मया के रंग सिरिफ मनखे भर ला दे हावय। आवव ओखर भरपूरहा उपयोग करीन। चार दिनिया रंग ले बाँचे के जरुरत हावय। मया-पिरीत के रंग मा ए संगी-संगवारी अउ सरी संसार ला रंग डारिन जउन मरत ले झन छुटय। ए जिनगी हा मया-दया अउ पिरीत के रंग बिना अबिरथा हावय। हमर गरब-गुमान,धन-दोगानी,रुप-रंग सबो जीनिस हा मया-पिरीत के बिना जुच्छा हे, सुन्ना हावय। जइसे सुग्घर साग हा बिन नून के खइता हावय अइसने ए जिनगी हा बिन मया-पिरीत रंग के अधूरा हावय। ए होरी के तिहार हा हमला जिनगी जीये के रंग ढ़ंग ला सीखोथे। रंग हा दुसर बर मया देखाय के अउ बताय के एक ठन माधियम हरय। जम्मो रंग के एकेच परकिति हे के घुर के एकमई होवई अउ दुसर उपर समाना। रंग मन ला कभू एक दुसर उपर जबरपेली चढ़ाय नइ जाय। वोहा तो घुर के अपने अपन दुसर संग मा समा जाथे, एकमई हो जाथे। हमर धोबी-बरेठ भाई मन घलाव पहिली कोनो भी रंग ला घोरथे फेर वोमा कपङा ओनहा ला बुङोथे तभे रंगथे। अइसने हमर मन मा पहिली मया-पिरीत के रंग ला घोरे ला परही फेर दुसर के मन ला वोमा चिभोरे ला परही तभे वोहा हमर मया के रंगनी मा रंग जाही। एखर ले एके ठन गोठ समझ मा आथे के दुसर ला अपन रंग मा रंगे के पहिली खुद अपन आप ला ओही रंग मा रंगे ला परही जउन रंग मा हम दुसर ला रंगना चाहत हन। अइसने कोनो परानी हा पखरा नो हे जउन हा मया-पिरीत के आँच मा पिघलही नहीं। अइसन कोनो हिरदे नइ हे जउन हा परेम के रंग मा रंगना नइ चाहँय। हमला सिरिफ सही अउ उचित मनमरजी रंग के चिन्हारी करे के जरुरत हावय। मन के रंग हा मरत ले ना धोवाय ना छुटय। मया, दया, पिरीत, सत-इमान, आनंद- उछाह, सरद्धा, बिसवास, मान-गउन,छमा-असीस के पक्का रंग हा सबके जिनगी ला सतरंगी अउ मनरंगी बना दीही। आवव संगवारी हो ए दरी बजरहा रंग के जघा मा ए जम्मो जोरदरहा रंग ला जादा बउरन अउ अंतस ला रिंगी चिंगी करन।

*कन्हैया साहू “अमित”*
परशुराम वार्ड-भाटापारा
संपर्क-9200252055

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त्रिवेणी संगम म शाही स्नान के साथ राजिम महाकुंभ कल्प के होय समापन

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बिहनिया साधु-संत मन के निकली भव्य शोभा यात्रा
धर्मस्व मंत्री श्री अग्रवाल ह संगम म लगाईस डुबकी साधु-संत मन संग शोभा यात्रा मं होइस सामिल

रायपुर, 25 फरवरी 2017। छत्तीसगढ़ के प्रयागराज राजिम मं महानदी, पैरी अऊ सोंढूर नदिया मन के पवित्र संगम मं चलत राजिम महाकुंभ कल्प के कल महाशिवरात्रि पर्व म साधु-संत मन के शाही स्नान के अनुष्ठान के संग ही समापन हो गइस। नागा साधु मन अऊ आन साधु-संत मन सहित हजारों श्रद्धालु मन हर आज महाशिवरात्रि पर्व म संगम के शाही स्नान कुंड मं पावन स्नान करिन। माघ पूर्णिमा 10 फरवरी ले आयोजित राजिम महाकुम्भ कल्प के कल आखरी दिन रहिस। प्रदेश के धार्मिक न्यास अऊ धर्मस्व मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल, राजिम विधायक श्री संतोष उपाध्याय, नगरपालिका गोबरा नयापारा के अध्यक्ष श्री विजय गोयल मन घलोक त्रिवेणी संगम के शाही कुंड मं डुबकी लगाईन।
संत समागम स्थल ले बिहनिया नागा साधु मन के शस्त्र पूजा के संग कई सम्प्रदा, आश्रम, अखाड़ अऊ शक्तिपीठ मन के साधु-संत अपन संस्था मन के निशानी अऊ झंडा के संग शाही स्नान शोभा यात्रा मं सामिल होइन। धर्मस्व मंत्री श्री अग्रवाल, विधायक श्री उपाध्याय अउ नगर पालिका गोबरा नवापारा अध्यक्ष श्री गोयल घलोक शोभा यात्रा मं सामिल होइन। त्रिवेणी संगम म स्थित कुलेश्वर मंदिर मं महाशिवरात्रि के विशेष पूजा के कार्यक्रम आयोजित करे गए रहिस। कुलेश्वर मंदिर मं दिन भर दर्शन बर लोगन के भीड़ लगे रहिस।
नागा साधु मन सहित आन साधु-संत मन के शोभा यात्रा लोमश ऋषि आश्रम के तीर बनाय गए संत समागम स्थल से निकलिस अउ नवापारा के नेहरू घाट ले नवा पुल होके राजिम पहुंचिस। साधु-संत राजिम मं पं. सुंदर लाल शर्मा चौक ले शास्त्री चौक होत त्रिवेणी संगम म शाही कुंड तक पहुंचिन। शोभा यात्रा मं कइ अखाड़ा, आश्रम, शक्तिपीठ अऊ संप्रदाय के साधु-संत अपन ध्वजो के संग शोभा यात्रा मं सामिल होइन। शोभायात्रा मं नागा साधु मन के दल सबले आगू चलत रहिस। बहुत अकन आश्रम अऊ अखाड़ा के प्रमुख साधु-संत घोड़ा अऊ बग्गि मन मं सवार होके शोभा यात्रा के शान बढ़ात चलत रहिन। नवापारा अऊ राजिम शहर मं लोगन मन जघा-जघा शोभा यात्रा मं सामिल साधु मन के भव्य स्वागत करिन। शोभा यात्रा मं सामिल नागा साधु मन के संग आन साधु मन अपन शस्त्र मन के संग सुघ्‍घर करतब घलोक दिखात रहिन।

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दारु भटठी बंद करो

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बसंती ह अपन गोसइन बुधारू ल समझात रहिथे के – तेंहा रात दिन दारू के नशा में बुड़े रहिथस।लोग लइका घर दुवार के थोरको चिंता नइ करस ।अइसने में घर ह कइसे चलही ।दारू ल छोड़ नइ सकस ?
बुधारू ह मजाक में कहिथे – मेंहा तो आज दारू ल छोड़ देंव वो।
बसंती चिल्लाथे — कब छोड़े हस, कब छोड़े हस ? फोकट के छोड़ देंव कहिथस ।
बुधारू – अरे आज होटल में बइठे रेहेंव न,आधा बाटल दारू ल उही जगा छोड़ देंव ।
बसंती — हाँ तेंहा तो हरिसचंद दानी हरस ।ओइसने छोड़े ल नइ कहात हों।तोर पीयई खवई ल बाईकाट बंद करे ल कहात हों।
बुधारू – मेंहा दारू पीये ल छोड़हू त सरकार के घाटा हो जाही वो।अऊ ओकर साथ कतको झन के रोजी रोटी बंद हो जाही वहू ल तो सोंच।
बसंती – तोर दारू छोड़े से का सरकार के घाटा होही ? अऊ काकर रोजी रोटी बंद हो जाही ? तेंहा हमला जादा बुद्धु झन बना।
बुधारू – अरे सरकार ह तो जगा जगा दारू भट्ठी खोलत हे।एकर से तो ओकर आमदनी होथे अऊ उही पइसा ल जनता करा बांटथे।
जब आदमी दारू पीये बर छोड़ दिही त होटल अऊ ठेला वाला मन के रोजी रोटी बंद हो जाही ।वो बिचारा मन काला कमाही अऊ का खाही ?
बसंती के दिमाग खराब हो जाथे अऊ जोर – जोर से चिल्ला – चिल्ला के कहिथे – तोला सबके फिकर हे , फेर डऊकी लइका के फिकर नइहे ।काकर घाटा होही अऊ काकर फायदा होही तूही ल संसो हे।अइसे कहिके बाहरी ल धर के बुधारू डाहर दऊड़ीस।
बुधारू ह जान डरिस के बसंती ह अब जादा गुसियागे अब मोला नइ छोड़े।वोहा पल्ला मार के घर से भागीस ।
ओकर मन के कलर – कलर ल सुन के सुधा, दुलारी, लता, चंद्रकला ,शकुन सबो परोसी मन सकलागे अऊ पूछथे – का होगे बहिनी काबर लड़ई झगरा होवत हो वो ?




बसंती – का दुख ल बताबे बहिनी।मोला तो अब अइसने में मर हर जांहू तइसे लागत हे।

सुधा – काबर मरबे बहिनी।का बात ए तेला बने फोर के बता।

दुलारी – बता बहिनी अपन दिल के बात ल बताय ले मन हलका हो जाथे ।

बसंती – हमर घर के सोनू के बाबू ल कहिथो वो।रात दिन पी खाके आथे अऊ अइसने झगरा मताथे।कुछु समझाबे त भासन दे ल लग जाथे ।

लता — जब ले गाँव में दारु भट्ठी खुले हे ,इहीच हाल हे वो।हमरो घर के ह आज पइसा नइ रिहिसे त एक ठन बटकी ल बेच दीस वो।
बात ह निकल गे त बतावत हो बहिनी कोनों ल झन बताहु वो।

शकुन – ए पीयइया खवइया मन के इहीच हाल हे वो।हमरो घर तो चार दिन होगे काम बुता में गे नइहे ।बस संगवारी मन संग पी खाके गुलछर्रा उड़ावत हे।साग बर तक पइसा नइ बांचे हे बहिनी।

चंद्रकला – उही हाल तो हमरो घर हे बहिनी ओकर मारे तो धोये चांउर ह नइ बाचत हे वो।जब ले दारू भट्ठी खुले हे ,बड़े ते बड़े नान – नान लइका मन तको पीये ल सीख गे हे वो।

सुधा – हौ सही बात ए बहिनी।नान नान रेंमटा मन ,जेकर छटठी बरही ल हमन करे हन ते मन ह आज हमीं ल आंखी देखावत हे।

दुलारी – अब अइसने में बात नइ बने बहिनी।हमी मन ल कुछु करे बर परही।तभे बात बनही ।नही ते गाँव के गाँव पूरा बिगड़ जाही ।




लता – हमन सबो बहिनी आजे गाँव के सबो बहिनी दीदी ल सकेलथन अऊ दारू भट्ठी ल बंद करवाथन ।गाँव में जुलुस निकालबो, धरना देबो अऊ जे आदमी ल पीयत देखबो वोला डंडाच डंडा मारबो ।तभे चेतही।

सबो कोई – बने कहात हस बहिनी , चलो गाँव के मन ल बलाबोन ।
सबो कोई मिलके गाँव के मन ल सकेलिन अऊ एक ठन सामाजिक संगठन “महिला क्रांति सेना ” बनाइस ।
वो मन ह गाँव में जुलुस निकालिस अऊ दारू भट्ठी में जाके बइठगे ।जेन भी दारू ले बर आय वोला डंडा देखाय।
काकरो हिम्मत नइ चलीस तीर में आय के ।दूसर दिन पूरा रोड ल घेर के बइठगे मोटर गाड़ी के आना जाना बंद होगे ।
ए बात ह सरकार तक पहुंचिस । पुलिस, सिपाही, कलेक्टर,नेता, मंत्री आगे अऊ ओमन ल समझाय लागिस।
तब लता दीदी ह बोलीस – जब तक ए दारू भट्ठी ह बंद नइ होही , तब तक हमन इंहा ले नइ टरन ।चाहे कुछु हो जाय।
सब माइलोगिन मन जोर जोर से नारा लगाय ल धर लीन-दारू भट्ठी बंद करो, दारू भट्ठी बंद करो।
तब सब ल सांत कराये गीस अऊ तुरते दारू भटठी ल बंद करे के आदेश निकालीस ।तब सब माईलोगिन मन ऊंहा ले उठीन।
अइसने संगठन ल गाँव – गाँव में बनाना जरूरी हे।तभे सरकार के आंखी उघरही अऊ दारू भट्ठी ह बंद होही ।

प्रिया देवांगन “प्रियू”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला — कबीरधाम ( छ ग )
मो नं 9993243141
Email — priyadewangan1997@gmail.com




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संगवारी के पंदोली

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नानपन के संगवारी आय कुंवरसिंह अऊ नरोत्तम ।कुंवर सिह मन चार भाई होथे जेमा अपन तीसर नम्बर के आवय। ददा के किसानी जादा नई राहय जेकर सेती ओमन आघू पढ़े नई सकीन अऊ किसानी के बुता म धियान लगाईंन। ददा ह संग ल अबेरहा छोड़ दिस। चारो भाई मिलके महतारी संग रहीन।समे आवत गिस बड़ेभाई अऊ मंझला के बर बिहाव घलाव होगे , बहू के हाथ के पानी पीके असीस देवत दाई घलाव एक-दू बच्छर म संग ल छोड़ के चल दिस। दसकरम के दिन सबो नत्ता गोत्ता मन सकलाय रहीस। कारकरम बने बने निपटिस।दूसर दिन कुंवर के बड़े अऊ मंझला भाई मन परिवार कर बात राखिन कि अब हमन अलग खाबो हमर पुरखा के खेतखार ल बांट देवव। समझाय बुझाय म नई मानिन त सगा मन भाई बंटवारा कर दिन।फेर कुंवर अपन छोटे भाई संग रहे लागिस समिलहा खेती करे , बनीभूति जाय अऊ खाय कमाय।चार बच्छर पाछू कुंवरसिंह गबरु जवान होगे।गांव म खेती किसानी के सब मरम ल सीख गे अऊ बेरा बेरा म गांव के लोगन ल बतावय सिखावय लागिस।छोटे भाई ल गांव म पान दुकान धरवा दिस। ऐसो दूनो भाई के बिहाव करके दुनोझन घलाव सुम्मत ले अलग अलग रहे लागिन।
ओती नरोत्तम अपन ददा के एक बेटा ,पढ़े लिखे म हुसियार।आई टीआई कर लिस। गांव ले थोकिन दूरिहा सहर के कारखाना म नौकरी लग गे।ओकर बिहाव कुंवर के बिहाव के एक बच्छर आघू होय रहीस। नरोत्तम के ददा के खेतखार नई रहिस फेर नरोत्तम ल किसानी करे के अड़बड़ संऊख रहाय।ओहा सहर ले गांव आय त कुंवर के खेत म संगेसंग चल देवय।हरियर-हरियर धान,गहूं ल देख ओखर जी हरियाय जाय। चार बच्छर म कुंवर अऊ नरोत्तम के दू-दू झन लईका आगे। अब दूनो ल परिवार चलाय के चिंता होय बर लगिस। दूनो संगवारी बईठ के अपन अपन काम -बुता के उतार चढ़ाव ल गोठियाय। कुंवर कहाय अब किसानी म फायदा नई हे यार, आय दिन अंकाल दुकाल, रोग राई म धान नई ऊपजय।कमती किसानी म काला कमाबो, का ऊपजाबो अऊ काला बचाबो।परिवार बाढ़त हे लईका मन के भविस के का होही,नरोत्तम घलाव बताथे सहर म रहवई कतका दुभर हे तेला का बतावंव।लिखरी लिखरी म पईसा लागथे। दूसर महंगई ह दुब्बर बर दूअसाढ़ होथे। नून तेल से लेके चाऊंर दार सबो ल बिसा के खातन।साग भाजी के मंहगई ह कनिहा टोर देथे। कम तनखा म सहर म जीये ले मुस्कुल हो गेहे । कुंवर कहिथे हमरो चारो भाई बंटवारा नई होय रहितेन अऊ सगेरहा कमातेन खातेन त पुर जातिस।कोनो डोली म धान,कोनो म चना, तिवरा, उरीद, मूंग कोनो डोली म बरबटी, सेमी, गोभी,पताल,भांटा, मिरचा धनिया, बो देतेन। बेरा बेरा के साग भाजी ऊपजातेन। मेड़पार म बिही, आमा, चिरईजाम, केरा ,आंवरा के पेड़पऊधा लगा देतेन। फेर ये सब अब सपना होगे।
नरोत्तम कहिथे सहर म सबो जिनिस मिल जाथे फेर मंहगई के सेती सब पहुंच ले बाहिर। फेर ओमा सुवाद घलाव नई राहय, सब रसायनिक हो गेहे जौन ल खाय म फायदा कम नकसान जादा हे।नरोत्तम कहिथे,यार रेगहा लेके खेत कमा सकत हस।हव संगवारी, रेगहा मिलथे फेर ओकर बर पईसा चाही। बक्खर ,बियासी, खातू-कचरा ,दवई बुटई,से मींजई तक। मोर कर एकरेच कमती हे। जांगर अऊ किसानी करे के गियान हावय फेर ओखर उपयोग नई होवत हे। सही कहात हस, हमरो उही किस्सा हे पेट काट के अपतकाल बर पईसा बचाथन वहू ह बैंक म रहिथे । मंहगई के सेती खरचा करेबर जी नई खंधय।
गोठबात करत करत एक दूसर ल देखत नरोत्तम कहिथे– अइसन म बनतीस का। तैं रेगहा खेत ले के बो अऊ जौन सपना तैं देखे हस ओला सिरजा। पईसा जतका लागही मैं लगाहूं। एकठन एहू ऊदिम करके देखथन। मैं तोला पंदोली देवत हंव तैं मोला पंदोली देबे। कुंवर कहिथे, मोला बने बुझा संगवारी फोर के समझा।तोर कर एकेच ठन कमती हे पईसा के तौन ल मैं पूरती करहूं अऊ मोर चाऊंर, दार, साग, भाजी के तै पूरती करबे। तोर बुता म मैं सहारा बनहूं।मोर बर तैं सहारा बनबे। दूनो संगवारी राजीनामा होके मंझनिया खेत कोती गईन। सरपंच अपन खेत म बोर खनवात रहय। बोर खनईया ले गोठिया के कुंवर के खेत म बोर खनवा दिस। नरोत्तम ह पईसा के बेवस्था करदीस। कुंवर ह खेत म पानी देख के गजबेच खुस होगे। ऐसो दस एकड़ के किसानी करेबर सोचिस। चार एकड़ म धान ,एक एकड़ म केरा, आधा एकड़ म गोभी, अइसने भांटा, पताल, मिरचा, धनिया ,मुरई , सेमी, बरबट्टी के बीजा डार दिस। मेड़ म राहेर ल छीत दिस। अक्कल अऊ जांगर लगाके कमाके तीन महिना म अपन सपना ल सिरजत अपने आंखी म निहारे लागिस। एती आठ-आठ दिन म नरोत्तम घलाव गांव आय लागिस।कुंवर के महिनत ल देख के मन म खुसियाली बगरे लगीस।सहर म सागभाजी के बेपारी संग कुंवर के भेंट करवा दिस।बेपारी के गाड़ी आके सबो साग भाजी ल बिसा के ले जाय। ऐसो धान घलाव उपराहा होईस। दूनो संगवारी के खाय बर भरपूर होगे। धान लुवाय के पाछू चना अऊ ऊरीद बोवा दीस। साग भाजी के किसम ल बदल दिस। गाड़ी-गाड़ी सागभाजी सहर जाय लगिस। तीन साल म खेती बाड़ी के मिहनत ह कुंवर ल लखपती के लईन म खड़े कर दिस। ओती नरोत्तम ल चाऊंर,दार , साग ,भाजी सब फोकट म मिले लगीस।कतको मंहगई म ओला घर के उपजाय जिनिस खाय बर मिले लागिस।

कुंवर अपन दूनो लईका ल सहर के अंगरेजी इस्कूल म पढ़ेबर भेज दिस।नरोत्तम घर रहिके चारो ल ईका एके संग एके इस्कूल म पढ़े जाय। अब न कुंवर ल पईसा के चिंता होय न नरोत्तम ल महंगई के। दूनो एक दूसर ल पंदोली देवत सुख के जिनगी बितावत हे।
आज हमर समाजिक बेवस्था अतका बिगड़ गेहे तेकर बखान नई किये जा सकय।भाई भाई म बंटवारा होय के पाछू पूछय नहीं के का करत हस। नौकरी वाला टेस म मरत हे फेर रोना रोवत हे।तनखा के पईसा कमती हो जाथे। किसानी करईया के मरे बिहानी।आज एक दूसर ल पंदोली देय के आगू बढ़े अऊ बढ़ाय के जरुरत हावय।

रचना:-हीरालाल गुरुजी” समय”
छुरा, जिला गरियाबंद
9575604169

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सीख : एक लोटा पानी

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मोनी! तोर बबा ल एक लोटा पानी दे दे ओ। कुरिया बाहरत दाई ह अपन बारा बच्छर के बेटी ल हांक पारिस। लइका दाई के रेरी ल कान नई धरिस अऊ खोर म जाके बईठ के मोबाइल म गेम खेलत रहिगे। एती खटिया म सूते बबा घेरी बेरी चिचियावत राहय।लइका के अरदलीपन ल देख के ओकर दाई खुदे पानी लेग के दे दिस अऊ गुने लगिस, कि मोर बेटी, जौन ल अड़बड़ अकन पैसा भरके अंगरेजी इस्कूल म पढ़ावत हौ, वो एक लोटा पानी देय बर नई सीखत हे। हे भगवान! मोर ले कहाँ चूक होगे जौन अपन लइका ल संस्कार नई दे पायेंव। मोर दाई-ददा सिखाय रहिस कि एक लोटा पानी के कतका महत्तम हे। ये हमर संस्कार आय। पियासे ल एक लोटा पानी पियाय ले सबले बड़े पुन्य माने गे हावय। हमर ककादाई बताय जब गांव आय-जाय बर मोटर-गाड़ी नई रहिस तब पइदल नईते बईला गाड़ी म गांव जावय, बीच म जेन गांव परय उहां पानी पियय अऊ थिराके आगू बढ़य। चिनहार अनचिनहार कोनो राहय जेकर मोहाटी म जाय ओला एक लोटा पानी मिल जाय, कभू कभू नान्हे लइका ल बासी भात घलाव मिल जाय। ठिहा म पहुंचते बहू बेटी मन सबले पहिली एक लोटा पानी देय अऊ पांव पलगी करय।
गांव म जिकर घर सियान अऊ संस्कार हे उहां आज घलाव ये चलन हावय। फेर आज हमर सहरी संस्कृति अऊ अंगरेजी पढ़ई ले घर म अपन परिवार के सियान मन ल पानी नई देवाय सकत हन। पढ़े लिखे अऊ नउकरी करईया बहूमन ये संस्कार ले दुरिहावत हे। अइसने गुनत आओकर मन मरगे। मोनी के दाई अपन लईका ल संस्कार सिखायबर उदिम करेबर सोचिस। भात खाय के बेरा मोनी के साग म उपराहा पिसे मिरचा ल डार के खाय बर दिस। पहिलीच कांवरा म लइका चुरपुर के मारे अकबका गिस। एती-ओती पानी खोजेबर लागिस, नई दिखीस त दाई ल गोहार पारिस-दाई पानी! रंधनी कुरिया के कपाट के ओधा म लुकाय महतारी सब ल देखत राहय। लइका ल हिचकत देखके टप ले एक लोटा पानी लान दिस। चुरपुर मरत मोनी सपर-सपर आधा लोटा पानी ल पी डारिस। पाछू ओकर दाई ह समझाईस कि हमर जिनगी म एक लोटा पानी के कतका बड़ महत्तम हावय। बिहनिया के सुरता देवइस। मोनी ल बात समझ म आगे अऊ अब ओ अपन महतारी के सब्बो कहना माने लागिस।फेर हमर तीर अइसने अंगरेजी इस्कूल म पढ़इया अड़बड़ अकन लइका जेन ल संस्कारित करेबर परही। एकर बर महतारी मन ल आगू आयबर परही इही समय के मांग आवे।

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा, जिला-गरियाबंद

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बजरहा होवत हमर तीज तिहार

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छत्तीसगढ़ म आठोकाल बारो महिना कोई न कोई तिहार आते रथे। चइत, बइसाख , जेठ, अषाढ़, सावन ,भादो, कुंवार, कातिक, अग्घन ,पूस ,मांग, फागुन सबो महिना हमन तीज तिहार मनाथन। हमर पुरखा मन काम काज ले फुरसुद अऊ मगन होके इरखा द्वेस ल भुलाय खातिर तिहार ल सिरजाय रहिन।मया-पीरा, सुख-दुख भुलाय बर अऊ घर-परिवार, गांव-समाज म मेल जोल नाना परकार के बाहना ओला उही मन जानय ।फेर ऊंखर बनाय तीज तिहार ल अब हमन बजरहा बना डारेन।पुरखा मन देश, काल, इस्थिति-परिस्थिति अऊ बेरा कुबेरा ल देख ताक के तिहार बनाय रहीन। फेर सेठ साहूकार, बेपारी मन अपन मुनाफा बर हमर तिहार ल बजरहा के रंग म पोत डारिन। पुरखा मन तिहारबार के रोटी पीठा, मीठ पकवान ल अपन बारी बखरी तीर तखार में उपजे जिनीस ले परिवार संग मिलके बनात रहीस।अब तिहार के जम्मो जिनीस बजार ले बिसा के लानथे अऊ तिहार मनाथे।कोन जिनिस के जरूरत हे एहू ल नई जानय। जेन जिनीस ल हाथ म दुकानवाला सेठ धरादिस उही ल घर लानथन अऊ तिहार मनातन। बहिनी, बेटी, महतारी मन तिहार के दु-चार दिन पहिली ले चना,ऊरीद दरे, चाऊंर गहूं ल जांवता म पीसय। समे बदलिस आज येमन पढ़ लिख बरिन अऊ नउकरी करत हे।ऊंकर करा समय नई हे। तिहार के दिन होटल के मिठई, बरा-भजिया, मिच्चर, केरा, अंगूर, सेव , ठंडई पानी बिसा लेन खाइन अऊ तिहार मनागे। चइत महिना के नवरात्रि म गांव के माता देवाला म जवांरा बोवय, येमा बेपारी ल कुछु नई मिलय तब ओमन जोत जलाय के आदत बनवाईन।अब छोटे ले बड़े सबो मंदिर, सबो भगवान म जोत जलत हे। टीपा टीपा तेल सिरात हे बेपारी घर पईसा बरसत हे परियावरन ल जब्बर नकसान होत हे तौन अलग। रामनम्मी ल छत्तीसगढ़ म पावन दिन माने हे, बर बिहाव बर सुघ्घर मुहुरत फेर यहू दिन ल बेपारी मन अपन फायदा के दिन बना बारिन,चंदा उगाह के भंडारा करायबर सीखादिन।अइसने बैइसाख के अक्ति तिहार काबर मनाय जाथे डाक्टर, इंजीनियर एमबीए पढ़े छत्तीसगढ़िया नई बता सकय।चलत बच्छर म सरगसिधारे परिवार मन ल मिलाय के दिन आवय ।पांच पसर पानी देयबर भुलागे।किसान मन खेती सिरजाय बर धरथे वहू भुलागे।पुतरा पुतरी बिहाव नई होवय।जिहां होवत हे उहां दाईज डोल। यहू ल बाजार ह लील डारिस। बिहाव के सवांगा दुकान म बेचावत हे। मऊर , झांपी, पतरी, गिलास, मड़वा, रंधईया सब बजार म मिलथे।चिकचिकी लगे टोपी,आलमारी, दीवान,पलंग,सोन-चांदी। असाढ़ के दुजडोल के रथ खिचईया मन एक रंग के अंगरखा पहिरही ,डीजे धुन म मोटियारा मन बिधुन होके नाचथे।छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार हरेली ल कहे जाथे। फेर आज हरेली के लोंदी, जड़ीबूटी सब नंदावत हे। घर घर म लीम डारा, मोहाटी म खीला ठोंकना सब भठत हे।अब हरेली ह सरकारी “हरेली परब” होगे। बड़का बड़का पोसटर, पंडाल, करोड़ो के खरचा म लाखो पेड़ पऊधा कागद म लगथे। राखी गिफट तिहार होगे। रेसम के डोरी ह सोना चांदी के ब्रेसलेट बनगे। तीजा ,कमरछट ह लुगरा तिहार होगे। पोरा के बईला दुकान दुकान म किंदरत हे। आठे कन्हैया म झांकी मरकीफोर, सोभायातरा म लाखो रुपया देखावा के नांव लेके बजार मे फूंकावत हे। भादो के गनेस चऊत, बीसकरमा म रंगारंग कार्यक्रम ,मूरती, पंडाल ,सजावट,बिजली के अंजोर, डीजे, सब बजरहा होगे।पीतरपाख के पन्दरा दिन बफर पार्टी होथे। कुंवार के नवरात, दसरहा के रुप ल देखबे त मने मन बर गारी गुप्तार निकल जाथे ।कातिक महिना के तिहार देवारी, जेठौनी, मातर म कमईया के घेंच ल बजार ह चमचम ले चपकथे। लिपई-पोतई,घर के सजई, रऊत के सोहई, सब बजरहा होगे। देवारी में कपड़ा-लत्ता, फटाका, दिया-चुकी, पकवान-मिठई सब दुकान म मिलथे।बजार म रंग बिरंग के जिनिस बेचाथे।अगहन, पूस,मांग अऊ फागुन के तिहार घलाव नई बाचिस ईन बेपारी मन ले।नाना परकार के रंग गुलाल बजार म बेचावत हे।सब ले बड़का अऊ बढ़िया बेपार मंद दारु के चलथे। आठोकाल बारो महिना, दुख-सुख, गनेस,दुरगा, बीसकरमा बिसरजन ,बर-बिहाव,छट्ठी -बरही, मड़ई मेला ये सब बिना दारू के नई निभय। गांव गांव म भागवत, रामायण के आयोजन घलाव बजरहा होगे हावय।कुछ हद तक टीवी, मोबाइल ल एकर दोसी मान सकत हन। अब येकर ले ऊबरे के उदिम करेबर परही। कब तक अईसने फंदाय रबो। दू सौ बच्छर हमर देस ह बेपारी मन के बंधना म बंधाय रहीस।अपन ऊपजाय अनपानी के मान करेबर सीखे परही। पढ़े लिखे भाई बहनी मनला नव रद्दा बनाय पर परही तभे बजरहा बने ले बांचबो अऊ गरीबी रेखा ले ऊपर ऊठबो।महंगाई ल काबू करबो।

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा-जिला गरियाबंद
9575604169







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