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सुग्घर कविता अउ गीत, चाहे हिन्दी के हो, चाहे छत्तीसगढ़ी के, सुन के मन के मँजूर मस्त होके नाचना सुरु कर देथे. इही मस्ती मा महूँ अलवा-जलवा कविता लिखे के उदीम कर डारेंव. नान्हेंपन ले साहित्यिक वातावरन मिलिस. कविता अउ गीत त जइसे जिनगी मा रच-बसगे. बाबूजी के ज्यादातर कविता छन्द मा लिखे गये हें ते पाय के मोरो रुझान छन्द बर होना सुभाविक हे.
अलग-अलग छन्द के बारे मा जाने के, सीखे के अउ लिखे के बिचार करके दुरूग, भिलाई, रइपुर, बिलासपुर के किताब दुकान मन ला छान मारेंव फेर कोन्हों दुकान मा छन्द बिधान के किताब नइ मिलिस. इही चक्कर मा जबलपुर अउ लखनऊ के घला चक्कर मार के आ गेंव फेर कोन्हों सफलता नइ मिलिस. किताब दुकान मन मा हिन्दी बियाकरन के किताब मिलै जेमा दस-बारा पन्ना छन्द के रहाय. उहू मा दू-चार छन्द के बारे मा थोर-बहुत जानकारी रहाय.
इंटरनेट मा खोजत-खोजत एक घाव ओपन बुक्स आन लाइन वेबसाइट मा पहुँच गेंव. येहर सीखे सिखाये के मंच आय सरी दुनियाँ मा अइसन सुग्घर मंच अउ कहूँ मोला नजर नइ आइस. इहाँ मोला कई किसिम के छन्द के जानकारी मिलगे. येखर सदस्य बने के बाद मँय अलग-अलग छन्द मा हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी मा लिखना सुरु करेंव.
इही बरस (२०१५) के सुरुवात मा मोर हिन्दी छन्द संग्रह के किताब “शब्द गठरिया बाँध” अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद ले परकासित होईस जेमा दोहा, रोला, कुण्डलिया, आल्हा, मरहठा, मरहठा-माधवी, सरसी, कामरूप, गीतिका, उल्लाला, चौपई,घनाक्षरी, छन्न-पकैया अउ सवैया छन्द जइसन अलग-अलग प्रकार के छन्द मा लगभग दू सौ ले ऊपर छन्द बद्ध कबिता के संग्रह हे. इही किताब मा कह-मुकरी के घला संग्रह हे.
हिन्दी के बाद अब मँय छत्तीसगढ़ी मा लिखे छन्द अधारित कविता के संग्रह परकासित करत हँव जेकर नाम हे “छन्द के छ” . येमा अलग-अलग किसिम के ५० छन्द मा लिखे मोर कविता के संग्रह हे. मोर हिन्दी के पहिली छन्द संग्रह “शब्द गठरिया बाँध” ला आप मनन पसन्द करे हौ . कुछ संगवारी मन कहिन कि छन्द के नाम के संगेसँग कोन छन्द के लिखाई मा कोन –कोन नियम देखे जाथे , लिखे रहे ले हमू मन छन्द लिखे के उदीम करे रहितेन.
संगवारी मन के ये सुझाव ला धियान मा धर के मँय अपन छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह “छन्द के छ” आप मन ला समरपित करत हँव. ये किताब मा हर कविता के आखिरी मा यहू जानकारी लिख दे हँव कि फलाना छन्द के नियम का हे अउ वोहर कइसे लिखे जाथे. छन्द लिखे बर सुरुवाती जानकारी अपन अनुभव के अधार मा प्रस्तुत करे हँव.
मँय कोन्हों छन्द के बिद्वान नोहौं भाई, बस अपन लगन अउ रुझान के कारन कई जघा ले छन्द ऊपर जानकारी सकेल के हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी मा छन्द लिखे के कोसिस करे हँव. मँय अपन डहर ले कोसिस करे हँव कि पढ़इया मन अउ छन्द बिधा मा लिखे के सऊँक रखइया संगवारी मन ला छन्द के बारे में सही-सही अउ सुरुवाती जानकारी मिल सकै. तभो ले ये किताब छन्द बिधान बर कोन्हों किसिम के दावा नइ करै. एती-ओती ले जउन भी जानकारी मिल पाइस हे, आप मन संग साझा करत हँव.
–अरुण कुमार निगम
एच.आई.जी. १ / २४
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
छन्द के बारे में जाने के पहिली थोरिक नान-नान बात के जानकारी होना जरूरी है जइसे अक्छर, बरन, यति, गति, मातरा, मातरा गिने के नियम , डाँड़ अउ चरन, सम चरन , बिसम चरन, गन . ये सबके बारे मा जानना घला जरूरी हे. त आवव ये बिसय मा थोरिक चर्चा करे जाये.
आपमन जानत हौ कि छत्तीसगढ़ी भाखा हर पूरबी हिन्दी कहे जाथे. हिन्दी के लिपि देवनागरी आय अउ छत्तीसगढ़ी भाखा घला देवनागरी लिपि मा लिखे अउ पढ़े जाथे.जेखर बरनमाला मा स्वर अउ बियंजन रहिथे. ये बरन मन ला बोले मा जतका बेर लागथे ओखर हिसाब ले नान्हें माने लघु अउ बड़कू माने गुरु बरन माने गे हे. साधना के रूप मा ये उदीम ला कई बछर पहिली आचार्य पिंगल मन करिन. पहिली दूसरी मा हमन बाराखड़ी पढ़े हन –
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अ:
ह्रस्व – एमा “अ” “इ” “उ” अक्छर के अलावा “ऋ” अउ चन्द्रबिन्दु के मातरा वाले सबो स्वर अउ बियंजन ला ह्रस्व माने नान्हें माने लघु माने गे हे.
उदाहरन –
क कि कु कृ कँ
प पि पु पृ पँ
इनकर मातरा ला एक गिने जाथे .येमन ला बोले मा समझौ के एक चुटकी बाजे बरोबर समय लागथे.
बड़कू (गुरु) – आ ई ऊ ए ऐ ओ औ अं अ: ये सबो स्वर अउ इनकर मेल ले बने अक्छर मन ला बड़कू मातरा वाले माने गुरु, बरन माने गे हे. एमन ला बोले मा ह्रस्व माने नान्हें माने लघु ले दुगुना बेर लागथे .
उदाहरन –
का की कू के कै को कौ कं क:
पा पी पू पे पै पो पौ पं प:
कई बछर पहिली पिंगल बबा मन छन्द ऊपर बहुत साधना करीन वोमन नान्हें बर “I” अउ बड़कू बर “S” के चीन्हा बनाइन. पिंगल बबा के नियम मन ला नवा जुग के छन्द सास्त्री पंडित जगन्नाथ प्रसाद भानु मन वइसने के वइसने स्वीकार करीन. हिन्दी बरन माला के तीन बियंजन क्ष , त्र अउ ज्ञ मन जुड़वा अक्छर आँय. क्ष बने हे क् अउ ष के मेल ले . त्र बने हे त् अउ र के मेल ले . ज्ञ बने हे ज् अउ ञ के मेल ले तभो ले एखर मातरा एक माने जाथे . हाँ, जब ये तीन अक्छर मन कोन्हों सबद के बीच मा आथे तब दू मातरा के असर डारथे, एला बाद में अउ बने ढंग ले समझाए के उदीम करहूँ .
मातरा गिने के नियम – सबद , अक्छर मन के मेल ले बनथे, हर अक्छर अपन उच्चारन के हिसाब से बोले मा समय लेथे तेखर हिसाब ले नान्हें अउ बड़कू ला देख के गिनती करे जाथे .
मन = म + न = नान्हें + नान्हें = १ + १ = २
मान = मा + न = बड़कू + नान्हें = २ + १ = ३
मना = म + ना = नान्हें + बड़कू = १ + २ = ३
माना = मा + ना = बड़कू + बड़कू = २ + २ = ४
मँय = म + यँ = नान्हें + नान्हें = १ + १ = २
चन्द्रबिन्दु के मातरा वाले सबो स्वर अउ बियंजन ह्रस्व माने नान्हें माने लघु माने जाथे.
उदाहरन –
सँझकेरहा = सँ + झ + के + र + हा = नान्हें + नान्हें + बड़कू+ नान्हें + बड़कू
= १ + १ + २ + १ + २ = ७ ( इहाँ स ऊपर चन्द्रबिन्दु हे एला एक गिने जाही)
साँझ = साँ + झ = बड़कू+ नान्हें = २ + १ = ३
इहाँ “स” ऊपर आ के मातरा हे साथ मा चन्द्रबिन्दु हे. “स” , आ के मातरा के कारन अइसने बड़कू होगे हे ते पाय के “साँ” के मातरा २ माने बड़कू गिने गे हे .
अम् के मातरा वाले अक्छर चाहे सुरु मा आये चाहे बीच मा, बड़कू गिने जाथे .
संझा = सं + झा = बड़कू+ बड़कू= २ + २ = ४
मंतर = मं + त + र = बड़कू+ नान्हें + नान्हें = २ + १ + १ = ४
कमंडल = क + मं + ड + ल = नान्हें + बड़कू + नान्हें + नान्हें = १ + २ + १ + १ = ५
आधा अक्छर – जब आधा अक्छर ले कोन्हों सबद सुरु होथे तब ओला मातरा के रूप मा नइ गिने जाय
स्तर = त + र = नान्हें + नान्हें = १ + १ = २
जब आधा अक्छर बीच मा आथे अउ ओखर पहिली ले अक्छर नान्हें रहे तब पहिली के अक्छर मा मातरा दू हो जाथे.
बस्तर = बस् + त + र = बड़कू + नान्हें + नान्हें = २ + १ + १ = ४
इहाँ धियान देने वाले बात हे कि अगर आधा अक्छर के पहिली वाले अक्छर बड़कू रहे तब ये आधा अक्छर गिनती मा नइ आवय
मास्टर = मास् + ट + र = बड़कू + नान्हें + नान्हें = २ + १ + १ = ४
इहाँ देखौ “मा” अपन आप मा बड़कू हे ते पाय के आधा स् हर गिनती मा नइ गिने गये हे.
जुड़वा अक्छर (संयुक्ताक्षर)
भ्रम = भ्र + म = नान्हें + नान्हें = १ + १ = २
अभ्रक = अभ् + र + क = बड़कू + नान्हें + नान्हें = २ + १ + १ = ४
क्रम = क्र + म = नान्हें + नान्हें = १ + १ = २
वक्र = वक् + र = बड़कू + नान्हें = २ + १ = ३
प्रलय = प्र + ल + य = नान्हें + नान्हें + नान्हें = १ + १ + १ = ३
विप्र = विप् + र = बड़कू + नान्हें = २ + १ = ३
अब “क्ष”, “त्र” अउ “ज्ञ” के मातरा के गिनती ला देखौ कि ये अक्छर मन ले सबद के सुरुवात होय ले गिनती कइसे होथे अउ ये अक्छर मन जब सबद के बीच मा आथे तब मातरा गिनती कइसे होथे. उदाहरन –
क्षमा = क्ष + मा = नान्हें + बड़कू = १ + २ = ३
रक्षक = रक् + ष + क = बड़कू + नान्हें + नान्हें = २ + १ + १ = ४
त्रय = त्र + य = नान्हें + नान्हें = १ + १ = २
पत्र = पत् + र = बड़कू + नान्हें = २ + १ = ३
ज्ञान = ज्ञा + न = बड़कू + नान्हें = २ + १ = ३
यज्ञ = यज् + ञ = बड़कू + नान्हें = २ + १ = ३
ऊपर के उदाहरन ले साफ़ हे कि “क्ष”, “त्र” अउ “ज्ञ” जब सबद के सुरुवात मा आथैं तो इनकर मातरा एक माने नान्हें माने लघु गिने जाथे. जब सबद के बीच मा आथे तब मातरा दू माने बड़कू माने गुरु गिने जाथे.
बिसेस – एक ठन अउ बात इहाँ धियान देये के हे कि ऊपर बताये सबो आधा अक्छर मन अपन पहिली वाले अक्छर के संग मातरा भार के कारन ओला बड़कू माने गुरु बना देथे फेर कोन्हों कोन्हों सबद मा आधा अक्छर में भार ओखर पहिली अक्छर ऊपर नहीं परै. अइसन सबद मा आधा अक्छर के पहिली वाले अक्छर हर नान्हें माने लघु च रहिथे जइसे कुम्हार सबद मा आधा अक्छर म् के भार पहिली के अक्छर कु ऊपर नहीं परत हे. बोले मा कुम् हार नहीं बोले जाय, कु म्हार के उच्चारन होथे ते पाय के कु अक्छर के मातरा नान्हें माने लघु गिने जाथे. अइसने कन्हैया मा आधा न् के भार क ऊपर नहीं परत हे. तुम्हार मा आधा म् के भार तु ऊपर नहीं परत हे. अइसन सबद मन मा मातरा के गिनती करत समय बिसेस धियान रखे जाना चाही.
उदाहरन –
कुम्हार = कु + म्हा + र = १ + २ + १ = ४ मातरा
कन्हैया = क + न्है + या = १ + २ + २ = ५ मातरा
तुम्हार = तु + म्हा + र = १ + २ + १ = ४ मातरा
डाँड़ (पद) –
छन्द रचना मन डाँड़- डाँड़ मा तुकबंदी करके लिखे जाथे. येखर एक पद ला एक डाँड़ कहे जाथे. पहिली के ज़माना मा जब लिखे के साधन नहीं रहीस तब कवि मन अपन छन्द रचना ला गावत रहयँ अउ सुनइया मन सुन-सुन के आनंद पावत रहीन. एक डाँड़ (पद) गाये मा हफरासी झन लागे अउ साँस ऊपर घला जोर झन परे इही बिचार करके हर एक डाँड़ के बीच मा नियमानुसार रुक के साँस लेहे के बेबस्था करे गे होही . इही रूकावट ला यति कहे जाथे . एक डाँड़ मा एक घाव रुके ले वो डाँड़ दू बाँटा मा बँट जाथे .डाँड़ के इही टुकड़ा मन चरन कहे जाथे. छन्द के नियम के अनुसार एक डाँड़ मा दू या दू ले ज्यादा चरन हो सकथे .
सहर गाँव मैदान ला, चमचम ले चमकाव (पहिला डाँड़)
गाँधी जी के सीख ला, भइया सब अपनाव (दूसरइया डाँड़)
अब ये दू डाँड़ के छन्द रचना ला देखव. एहर दोहा कहे जाथे
यति -“सहर गाँव मैदान ला” कहे के बाद छिन भर रुके के बेबस्था हे माने एक यति होगे. तेखर बाद “चमचम ले चमकाव” कहिके पहिली डाँड़ या पद पूरा होइस हे.
अब दूसर डाँड़ ला देखव “गाँधी जी के सीख ला” कहे के बाद छिन भर रुके के बेबस्था हे माने एक यति होगे. तेखर बाद “भइया सब अपनाव“ कहिके दूसरइया डाँड़ या पद पूरा होइस हे.
चरन –
अब चरन ला जाने बर फेर धियान देवव –
सहर गाँव मैदान ला (पहिली चरन ), चमचम ले चमकाव (दूसरइया चरन )
गाँधी जी के सीख ला (तिसरइया चरन ), भइया सब अपनाव (चउथइया चरन )
साफ़-साफ़ दीखत हे कि दू डाँड़ (पद) के दोहा छन्द मा पहिला डाँड़ यति के कारन दू चरन मा बँट गे हे . वइसने दूसर डाँड़ घला यति के कारन दू चरन मा बँट गे हे. याने कि दोहा के दू डाँड़ मन चार चरन बन गे हें .
पहिली चरन अउ तिसरइया चरन ला बिसम चरन कहे जाथे. वइसने दूसरइया चरन अउ चउथइया चरन ला सम चरन कहे जाथे. त भइया हो डाँड़ अउ चरन के भेद ला इही मेर बने असन समझ लौ.
.
दोहा छन्द मा एक यति आये ले एक डाँड़ दू चरन मा बँटे हे. वइसने छन्द त्रिभंगी के एक डाँड़ दू यति आये ले तीन चरन मा बँटथे अउ कहूँ-कहूँ तीन यति आये ले चार चरन मा घला बँटथे. कहे के मतलब जउन छन्द के जइसे नियम हे तउन हिसाब ले यति होथे अउ चरन के गिनती तय होथे. मोर बिचार ले आप मन यति के बारे में समझ गे होहू .
अब गति (लय) के बारे में जान लौ. कोन्हों छन्द मा गढ़े रचना हो पढ़े या गाये मा सरलग होना चाही इही ला गति या लय कहिथे.
साफ़ – सफाई धरम हे , ये मा कइसन लाज
रहय देस मा स्वच्छता , सुग्घर स्वस्थ समाज
(ये दोहा ला गा के देखौ, गाये मा कोनों बाधा नइहे त कहे जाही बने गति या लय हे )
अब इही दोहा के सबद मन ला थोरिक आगू-पाछू करके गा के देखौ –
धरम साफ़ – सफाई हे , ये मा कइसन लाज
देस मा स्वच्छता रहय , सुग्घर स्वस्थ समाज
(कोनों नवा सबद नइ डारे गे हे बस उही सबद मन ला थोरिक आगू-पाछू करे गे हे. ये मा पहिली असन सरलगता नइ हे. कवि के यही काम हे कि कोन सबद ला कहाँ रखे जाये कि सरलगता कहूँ झन टूटय.)
तुकांत / पदांत
डाँड़ / चरन के आखिर मा एक्के जइसन मातरा अउ उच्चारन वाले सबद रहे ले कहे जाथे कि डाँड़ / चरन मन तुकांत हें. ऊपर के दुन्नों दोहा के डाँड़ के आखिर मा देखव –
चमकाव/ अपनाव अउ लाज / समाज ये सबद मन डाँड़ के आखिर मा आयँ हें इनकर मातरा अउ उच्चारन एक्के जइसन हे. एमन तुकांत कहे जाथे. .
बरन गिने के नियम –
बरन गिनत समय मातरा अउ आधा अक्छर ला धियान मा नइ रखे जाय. जउन सबद मा जतिक अक्छर याने बरन हे वोला वइसने के वइसने गिने जाथे.
साफ़ – सफाई धरम हे , ये मा कइसन लाज
रहय देस मा स्वच्छता , सुग्घर स्वस्थ समाज
ये दोहा के पहिली डाँड़ के पहिली चरन मा बरन के गिनती अइसन होही –
सा + फ + स + फा + ई + ध + र + म + हे (१+१+१+१+१+१+१+१+१=९)
दूसर चरन के गिनती – ये + मा + क + इ + स + न + ला +ज (१+१+१+१+१+१+१+१=८)
दूसर डाँड़ के पहिली चरन मा बरन के गिनती अइसन होही –
र + ह + य + दे + स + मा + स्व + च्छ + ता (१+१+१+१+१+१+१+१+१=९)
दूसर डाँड़ के दूसर चरन मा बरन के गिनती अइसन होही –
सु + ग्घ + र+ स्व + स्थ + स + मा + ज = (१+१+१+१+१+१+१+१=८)
गन – छन्द मा सुंदरता बढाए बर अउ सरलगता के अलग-अलग खाँचा बनाये बर गन के नियम बनाये गये हे .खास कर सवैय्या जइसन छन्द मा गन के उपयोग उनकर सुंदरता ला कई गुना बढ़ा देथे. गन के मतलब समूह होथे . तीन-तीन बरन मा बड़कू अउ नान्हें के समूह बनाये जाये त आठ ठन समूह बनथे.
नान्हें बड़कू बड़कू यमाता १२२ यगन ISS
बड़कू बड़कू बड़कू मातारा २२२ मगन SSS
बड़कू बड़कू नान्हें ताराज २२१ तगन SSI
बड़कू नान्हे बड़कू राजभा २१२ रगन SIS
नान्हें बड़कू नान्हें जभान १२१ जगन ISI
बड़कू नान्हें नान्हें भानस २११ भगन SII
नान्हें नान्हें नान्हें नसल १११ नगन III
नान्हें नान्हें बड़कू सलगा ११२ सगन IIS
एला सुरता राखे बर “ (यमाता राजभान स)लगा “ मंतर ला रट डारव. एमा सगन के मातरा बताये बर सलगा लिखे गये हे, वइसे “लगा” के कोन्हों मतलब नइ हे, सयमा कहे ले घला उही बात रहितिस.
ये मंतर के खासियत ला देखौ, सुनौ अउ गुनौ – मंतर के कोन्हों एक अक्छर ला चुनव. ओला अउ ओखर बाद के दू अक्छर के संग तीन अक्छर के समूह बनावौ . जउन अक्छर ला चुने हौ तेन गन के नाम हो गे अउ समूह के मातरा हिसाब ले वो गन के मातरा होही.
जइसे मान लव “रा” अक्छर ला चुने हौ . गन के नाम होही “रगन” अउ तीन अक्छर के समूह राजभा बनत हे, जेखर मातरा बड़कू, नान्हे,बड़कू माने २,१,२ रही.
अब देखौ “भगन” का हे जाने बर “भा” अक्छर ला चुनौ. एखर बाद के दू अक्छर “न” अउ “स” हें. तीन के समूह बनिही भानस जेखर मातरा बड़कू, नान्हें, नान्हें माने २,१,१ होही.
छन्द के किसम : छन्द के दू किसम होथे. मातरिक छन्द अउ बारनिक छन्द
मातरिक छन्द- जउन छन्द मा डाँड़ अउ चरन मा मातरा पहिली ले तय रहिथे ओला मातरिक छन्द कहिथें. ज्यादातर मातरिक छन्द मन दू डाँड़ अउ चार चरन के होथें. (सब्बो नइ होंय)
मातरिक छन्द के भी तीन किसम होथे सम मातरिक छन्द, अर्ध सम मातरिक छन्द अउ बिसम मातरिक छन्द
सम मातरिक छन्द – हर डाँड़ मा एक्के बरोबर मातरा होथे. जइसे चौपाई मा १६-१६ , चौपई मा १५-१५ , कज्जल मा १५-१४ उल्लाला मा १३-१३
अर्ध सम मातरिक छन्द – हर डाँड़ के मातरा तो बराबर होथे फेर हर डाँड़ दू या ज्यादा चरन मा बंटे रहिथे. अलग-अलग चरन के मातरा अलग-अलग रहिथे. बिसम –बिसम चरन के मातरा बरोबर रहिथे अउ सम –सम चरन के मातरा बरोबर रहिथे. जइसे दोहा १३,११ सरसी १६-११, आल्हा १६-१५
बिसम मातरिक छन्द – सम मातरिक छन्द अउ अर्ध सम मातरिक छन्द मा जउन छन्द आथे वोला छोड़ के बाकी छन्द मन बिसम मातरिक छन्द कहे जाथे. एमा हर डाँड़ के मातरा बराबर नइ रहाय . ज्यादातर दू अलग-अलग छन्द के मेल मा बिसम मातरिक छन्द बनथे.
जइसे कुण्डलिया के छै डाँड़ मा पहिली दू डाँड़ १३,११ / १३-११ अउ बाद के चार डाँड़ ११-१३ / ११-१३ के हे. छप्पय छन्द अउ अमृत ध्वनि छन्द घला बिसम मातरिक छन्द आय.
बारनिक छन्द – जउन छन्द मा डाँड़ अउ चरन मा बरन मन खास बेवस्था के नियम मा पहिली ले बंधे रहिथे ओला बारनिक छन्द कहिथें. जइसे सवैया छन्द, घनाक्छरी छन्द.
बारनिक छन्द मा मातरा ऊपर धियान नइ दिये जाय, एमा बरन के गिनती करे जाथे. सवैया जइसन छन्द मा गन के बेवस्था देखे जाथे. घनाक्छरी मा गन नइ रहाय फेर डाँड़ अउ चरन मन मा बरन के गिनती करे जाथे . बारनिक छन्द ज्यादातर चार डाँड़ के होथे अउ आपस मा तुकांत होथे. बारनिक छन्द मा घला सम, अर्ध सम अउ बिसम के भेद होथे. जइसे मातरिक छन्द मा मातरा के अनुसार भेद होथे वइसने बारनिक छन्द मा बरन के गिनती के हिसाब मा भेद जाने जाथे.
– अरुण कुमार निगम
एच.आई.जी. १ / २४
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
गांव के चौपाल ले निकल के हमर छत्तीसगढ़ी गीत संगीत अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मा छागे हावय। मोला सुरता हे सन् 1982 में जब मोर गाय गीत ‘पता दे जा रे पता ले जा गाड़ीवाला…’ पहिली बार पॉलीडोर कम्पनी ले रिकार्ड बन के बाजार मा आय रिहिस अउ बीबीसी लंदन के रेडियो में बाजे रहिस त छत्तीसगढ़िया मन के छाती हर बड़े-बड़े सोंहारी कस फूल गे रिहिस। ये गीत हर राइपुर दूरदर्शन केन्द्र के उद्धाटन के बेरा म तको बाजे रहिस।’
छत्तीसगढ़ी लोकगीत संगीत के संगे संग ‘पानी बचाओ अभियान’ म सबले आगू रहइया लोक गायिका के नाव कविता वासनिक आय। गरीबी म पल बढ़ के आज लोककला यात्रा के चालीस बछर पूरा करत-करत कविता हर छत्तीसगढ़ सरकार के ‘पानी बचाओ अभियान’ म राजनांदगांव जिला के मोहरा गांव म बोहावत शिवनाथ नदी के पानी ल बचाय बर नदिया के तीर सटे अपन एक एकड़ उपजाऊ कीमती जमीन ल खुसी-खुसी दान दे दीस। मोर जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ म अइसन कोनो लोक गायिका के तरफ से अतेक बड़ दानसिलता के एहर पहला उदाहरण आय।
18 जुलाई 1962 में कविता के जनम भरकापारा राजनांदगांव निवासी स्वर्गीय रामदास हिरकने जी के निर्धन परिवार म होय रहिस। दूब्बर पातर अउ संकोची सुभाव के नोनी ल देख के कोनो सोंचे भी नइ रहिस के एक दिन इही ननकी चिरैया हर छत्तीसगढ़ी लोकगीत के कोकिला बन जाही। फेर कहिथे न कि पूत के पांव पालना मा दिखे लागथे। कविता के पिता हिरकेन जी हर ओखर जादुई कंठ ल पहिचानीस अउ लग गे ओला सांवरे खातिर। इही रद्दा म आगू बाढ़त स्कूल म पहिली बार फ्राक पहिनी ननकी चिरैया हर चल मेरे हाथी ओ मेरे साथी। गाना ल गाइस त बड़े-बडे सुनइया देखया मन के आंखी फाट गीस अउ ऊंखर हाथ के ताली रोके नइ रूकिस। अइसे मजेदार ढंग से सुरू होइस कविता के गीत-संगीत के यात्रा हर।
गीत-संगीत के यात्रा म कविता हर चालीस बछर ले जादा जिनगी बिता दीस हावय। कतको मान सम्मान अउ पुरस्कार वोला ये यात्रा म मिले हे फेर ओखर गायिकी, अउ गरब रहित व्यवहार म कोनो बदलाव नइ आय हावय। जबकि फेर नवा नेवरिया कलाकार चारेच दिन म गरब म परके गोड़ ला भुइंया नइ माड़न दे। ये बारे म कविता के कहना है कि कलाकार के सबले बड़े दुसमन गरब हर होथे। एखर चक्कर म पड़के ‘में हर तो सब जान गे हंव’ के भरम म कलाकार बूड़ जाथें। ये भरम ले दूरिहा मेहर तो गुरुनानक देव के मंत्र ला सही मानथों। उन केहे हवंय कि- नानक नन्हे बने रहो, जैसे नन्ही दूब। बड़ी घास जल जाएगी, दूब खूब की खूब।
छत्तीसगढ़ लोकगीत संगीत ल छत्तीसगढ़ राज बने के बहुत बड़े कारण बतावत कविता जी कहिथे कि कोनो भी राज के पहिचान वहां के संस्कृति हर होथे। हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति ल बचाय अउ बढ़ाय बर इहां के महिला कलाकार मन के बड़ भागीदारी हावय। जेमा समाज के फिदा बाई, पद्मा बाई, किस्मत बाई के कोनो मुकाबला नइ कर सकें। कतको गरीबी अउ आंधी, पानी के चोट खावत अइसन कलाकार मन छत्तीसगढ़ी लोककला ल अपन खून-पसीना म सींचे हवय। इही मनके लाइन म आज संगीत चौबे, अनुराग ठाकुर, ममता चन्द्राकर, पुष्पलता कौशिक, साधना यादव के नाव ल तको लेना सही होही। ये सब कलाकार मन छत्तीसगढ़ी गीत संगीत खातिर अपन सुख ल भुला के दुख के रद्दा म तको रेंगना पसंद करीन हे। इन कलाकार के सम्मान म सुरता करथों ये दे लाइन ल- कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे में ढल गए कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे में बदल गए।
0 लोककला यात्रा में काखर-काखर खास सहयोग मिलीस?
– दाऊ रामचंद्र देशमुख, दाऊ महासिंह चन्द्राकर, खुमानलाल साव, गिरजा सिन्हा, संतोष टांक अउ मोर जीवन साथी विवेक वासनिक के घलो जबड़ हाथ हावय। ओहर खुद कलाकारी के दुनिया म रात-दिन तंउरत रहिथे।
0 चालीस बछर ले लोकगीत गावत कभू थकासी या उबाऊपन नई लागे ?
-कविता जी कहिथे कि ‘विजय भाई, अपन दाई के जइसन लइका के लगाव रहिथे ओसने मोला लोकगीत संगीत संग हावय। अब तिंही बता महतारी बेटी अलग हो सकत हावय का? मोर प्रान घलो निकलत रिही तभो मैं हर गाहूं- करमा, ददरिया अउ सुआ गीत।’
0 पुराना गायिकी अउ आज के छत्तीसगढ़ी गायिकी में भारी बदलाव आ गे हावय। एकर बारे म ओखर कहना हे कि अब तो छत्तीसगढी ग़ाना सुनबे त अइसे लागथे फिलिम के गाना सुनत हाववों। ‘ए हर सबो गुनोवइया मन बर चिंता-फिकर के बात बन गे हे। अतका बोलत ओ हर एक ठिन लम्बा सांस छोड़िस अउ बोलिस ‘फेर रेलगाड़ी के आय ले बइला गाड़ी के अस्तित्व हर खतम नइ होइस। न कभू खतम होही। अइसनेह हमर लोकगीत-संगीत ला कोनो पछाड़ नई सकय। फेर हां, एकर बर सब पुराना कलाकार मन ला एक संग मिलजुल के नवा कलाकार मन ला सिखाना संवारना पड़ही। हमर संस्था अनुराग धारा मा नवा-नवा कलाकार मन आथें। हमन ओमन ला फिल्मी रंग ढंग ला छोड़ के छत्तीसगढ़ी कला के बारीकी ला अपनाय के सीख दे थन।’
गांव गली अउ खेत खलिहान मां गूंजने वाला लोकगीत अब रेडियो, टेलीविजन, वीडियो सिनेमा में जगा पाके देस बिदेस म बगरत हावय। ऐला देख सुन के कविता जी के कहना हे कि ‘येहू हर समय के फेर आय। गांव के चौपाल ले निकल के हमर छत्तीसगढ़ी गीत संगीत अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मा छागे हावय, लेकिन मोला सुरता हे सन् 1982 में जब मोर गाय गीत ‘पता दे जा रे पता ले जा गाड़ीवाला…’ पहिली बार पॉलीडोर कम्पनी ले रिकार्ड बन के बाजार मा आय रिहिस अउ बीबीसी लंदन के रेडियो में बाजे रहिस त छत्तीसगढ़िया मन के छाती हर बड़े-बड़े सोंहारी कस फूल गे रिहिस। ये गीत हर राइपुर दूरदर्शन केन्द्र के उद्धाटन के बेरा म तको बाजे रहिस।’
अब तो उंडेला पूरा कस छत्तीसगढ़ी गीत के भरमार हो गे हावय। मोला बड़ा दुख लागथे जब नवां नवां गीत ला सुनथों त। काबर कि अइसन गीत मा इतिहास रचे के ताकत नई दिखय। ओमा जनमानस ला बांधे के रस नई मिलय। असल मा पहिले के गीतकार (जइसे नारायण लाल परमार, श्यामलाल चतुर्वेदी, रामेश्वर वैष्णव, मुकुन्द कौशल, लक्ष्मण मस्तूरिया) संगीतकार, गायक, गायिका पसीना के आवत ले मेहनत करें। अंतस ले बूड़ के लिखयं-गावयं-बजावयं। अब तो ये सब हर सपना बरोबर लागथे।
0 छत्तीसगढ़ी राज बने के बाद इहां के कला संस्कृति के दसा दिसा के बारे में कविता के कहना हे कि पथरा बने अहिल्या के जैसे उध्दार होइस तइसने हे छत्तीसगढ़ बने के बाद इहां के कला संस्कृति के उध्दार होगे। अब तो छोटे बड़े सबो कलाकार मन ला दूसर-दूसर राज मा जाके कला देखाय के मौका मिलत हे। गांव-गांव मा लोककला महोत्सव होवत हे। सरकारी खर्चा मा कलाकार मन के इलाज होवत हे। फेर अतेक सुविधा अउ साधन पायके बाद भी पुराना कलाकार मन कस असली कला ला छोड़ के फूहड़ नाच-गाना म नवा कलाकार मन मातें हावयं। ये मन ला मोर इही कहना हे कि मूल से भागे के भूल करके कभू मंजिल तक कोनो नइ पहुंच सकय।
छत्तीसगढ़ लोकसंगीत ला बुलंदी म पहुंचोइया श्रीमती कविता वासनिक जी भारतीय स्टेट बैंक राजनांदगांव म अधिकारी पद म सेवारत हैं। छत्तीसगढ़ी लोकगीत ला छत्तीसगढ़ राज अउ छत्तीसगढ़ के बाहिर राज जइसे हिमालच प्रदेश, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखण्ड म तको देखाय हावय।
विजय मिश्रा ‘अमित’
हमर भारत देश कई ठिन राज हवय जिहां नाना प्रकार के किस्सा कहिनी फूल कस महमहावत, मइनखे मन के गुन सब्बो कर्ता बगरावत रइथे…। यही कर्रा महाराष्ट्र के सिवाजी महराज के एक ठिन किस्सा आप मन बतावत हवंव। एक के गोठ हे सिवाजी के एक झन सेनापति हर कलियान के किला लरई जीत गिस। अतंक परकार के संपति ओखर हाथ आइस के वोहर कूल के कृपा होगे रहय। तइहा के बेरा जीते राजा सेनापति संपति अस्त्र शस्त्र के संगे संग उहां के रानी अउ दासी घला भेंट स्लरुप मिलय। सेनापति वो रानी के सुंदरता देखके मोहा गे अउ अन राजा देहे खातिर अपन संग ले आनिस…।
सिवाजी के महल में राजा अपन दरबार मंतरी, सेनापति अउ दरबारी मन संग गोठियावत बतरावत रइथे..। उहां पहुंच के सेनापति कइथे महराज पुराना किला ने मैहर एकठिन अब्बड़ सुग्गर जीनिस लाने हंव तुउर वोला स्वीकारा..। अउ बोहर डोला बइठे कुवारी कनिया कती अंगठी बता दिस। सिवाजी महराज अपन आसन ले उिठन अउ ओला मेर आके झूलत परदा टार के देखे लागेन…। अनेक सुग्गर नोनी लइका देखके महराज लजा गिन अउ तुरुत अपन मुड़ तरी कर लिस। अउ कइथे… कास..। हमर महतारी घला अतेक सुग्गर होतिस हमु हमर महतारी कस सुग्गर होतेन। अब सेनापति कुति मुंह करिन अउ कइथे कस सेनापति तहर अतेक दिन मोर संग हे तभो ले मोर सुभाव नई जान पाय.. मैहर दूसर के दाई-बहिनी अपन महतारी कर जान थंव.. जा ऐला जिहां ले लाने हस उहां छोर के आ…। आज के बेग अइसन कहां देखे बर मिलथे…। जगा जगा दाई बहिनी, महतारी मन के हील हुज्जत करत छोकरा पिला मन जहां तहां किंजरत, अपन जात चिन्हावत मसर मोटी करत मिल जाथे। जब तक हमन अपन दाई बहिनी के इज्जत नई करबो तब तक हमर देस विकास नइ करही…। आज जगा जगा महतारी, के अपमान देखे बर मिलथे…। एहर हमन सब्बो मइनखे के अपमान हे…। गली, सड़क मोहल्ला अउ इसकुल जावत लइका मन संग छेड़छाड़ अउ सासारिक सोसन अब रोज के गोठ हो गे हवय। एला रोकव…।
परसंग: महिला अपराध
लता राठौर
बिलासपुर
(दैनिक भास्कर ‘संगवारी’ ले साभार)
Human Body Parts in English, Hindi and Chhattisgarhi
English – Head, Skull, Brain, Hair, Forehead, Eye brow, Eye, Eye ball, Eye lid, Eye lash, Ear, Ear drum, Temple, Collarbee, Nose, Nostril, Cheeks, lip, Tooth, Gum, Jaw, NIolar Teeth, Dens Serotinous, Tongue, Palate, Throat, Neck, Gullef, Mouth, Chin, Saliva, Snout, Moustache, Shoulder, Trunk, Armpit. Chhattisgarhi – मूड़, मुडी के हाड़ा, खोल, दिमाग, डिमाग, भेजा, चूंंदी, माथ, माथा, भौंह, भौंव, आंखी, पुतरी, बिरौनी, बरौनी, कान, कनपटी, चेथी, नाक, नथुना, गाल, गलवा, ओंठ, होठ, दांत, मस्कुरा, जबड़ा, दाढ़ा, अक्कल दाढा, जीभ, तालू, घेंंच, टोंंटा, गरदन, नरेटी, मुंह, ठोढी, लार, मेंछा, खांध, धड़
छत्तीसगढ़ पर्यटन मण्डल कोति ले ट्विटर म जारी सूचना के अनुसार छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल अउ पर्यटन के बारे म प्रतियोगिता म भाग लेवईया संगी मन के खींचे फोटू ल इनाम के रूप म मंडल के कलेंडर म छापे जाही। जानकारी अंग्रेजी भाषा म ये फोटू म हावय, त संगी लउहे फोटू खींचव अउ भेज दव, हमर छत्तीसगढि़या भाई मन मत पछुवावव. व्हाट्स एप नं. 9111009055 म व्हाट्स एप करके जानकारी ले सकत हव.
14.12.2016, इटारसी म संगीत नाटक अकादमी कोति ले 5 दिन के ‘देशज’ कार्यक्रम के शुभारंभ मध्य प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष सीता सरन शर्मा ह करिन। नगर पालिका इटारसी अउ संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली के संघरा आयोजन म पांच दिनों तक कई प्रदेश के कलाकार मन अपन प्रस्तुती देहीं। 14 दिसम्बर के दिन पांच राज्य के समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के दर्शन इटारसी म होईस। इटारसी के सांस्कृतिक इतिहास म येकर रंगारंग उदघाटन के संग गांधी मैदान के मुक्त आकाश म बने मंच म देश के पांच राज्य के लोक कलाकार मन के प्रस्तुति ह उपस्थित हजारों दर्शक मन ल जाड़ के बावजूद बांधे रखिस। करीब ढाई घंटा के सधेे प्रस्तुति म छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु अउ उत्तराखंड के लोक कलाकार मन अपन क्षेत्रीय संस्कृति के प्रदर्शन करिन। सबले पहिली छत्तीसगढ़ के चंदैनी गोंदा के लोक कलाकार मन आतेच लोगन मन के मन मोह लीन। ठेकवा, राजनांदगांव के खुमान लाल साव अउ उखंर ग्रुप ह छत्तीसगढ़ के पारंपरिक नृत्य अउ गीत के प्रस्तुति दीन। ‘जय हो जय सरसती दाई…’ अउ ‘भजो मन गनपति महराज …’ के पाछू करमा अउ ददरिया नृत्य गीत के प्रस्तुति दीन जेमा अड़बड़ ताली बजिस। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार ले सम्मानित खुमान लाल साव के डॉ. शर्मा ह अभिनंदन घलव करिन। येकर पाछू महाराष्ट्र के लोक जागृति संस्था ह दंडार नृत्य प्रस्तुत करिन। कार्यक्रम के पाछू चंदैनी गोंदा ग्रुप के कलाकार मन के सम्मान एमजीएम कालेज के प्राचार्य प्रो.व्ही.के. सीरिया मन करिन।
कार्यक्रम के बाद खुमान साव अउ उंखर कलाकार मन संग फोटू खिंवाये खातिर दर्शक मन झूम गए। अइसे अक्सर फिल्मी कलाकार मन बर देखे जाथे फेर इटारसी के संगीत प्रेमी रसिक मन के मया ल देख के कलाकार मन गदगद होगे। उंहा के समाचार-पत्र मन छत्तीसगढ़ के प्रस्तुति ल सराहत लिखिन के छत्तीसगढ़ के कलाकार मन नृत्य विधा ले लोक संस्कृति मुखरित होईस, छत्तीसगढ़ अंचल के नृत्य मन म अभिव्यक्ति के अलग भाषा दिखिस अउ नृत्य के माध्यम ले सुघ्घर भावना के आदान-प्रदान होईस जेला दर्शक मन महसूस करिन। छत्तीसगढ़ी गीत मन म श्रृंगार रस के अईसे झरना फूटिस मानों निर्मल भाव प्रस्फुटित होवत हे।
छत्तीसगढ़ के पावन माटी में बहुत झन स़ंत महात्मा अऊ महापुरुष मन जनम लेहे। समय समय में ये मन ह हमन ल रसता देखाइस अऊ सत्य के रसता में चले बर बताइस। संत महात्मा मन के जनम ह जगत के कलियान खातिर होथे। ओइसने हमर छत्तीसगढ़ के माटी में 18 दिसंबर सन् 1756 में एक गरीब किसान परिवार के घर गांव गिरौदपुरी जिला रायपुर में एक महान पुरुस घासीदास जी के अवतरन होइस । घासीदास जी बचपन से ही गुनी अऊ होनहार लइका रिहिसे। वो समय जात पात अऊ छुवाछुत के भेदभाव बहुत जादा रिहिस। नीच जाति के मन ल मंदिर में चढ़हन नइ देवत रिहिसे। ये सब ल देखके घासीदास जी ह बहुत दुखी होइस अऊ ये सब कुरुति ल मिटाय के बारे में सोचे ल धरलीस।
सत्य के खोज – घासीदास जी के मन में सत्य ल जाने के बहुत इच्छा रिहिसे। वोहा सत के तलाश करे खातिर गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड़ में समाधि लगा के बइठ गीस। ओकर बाद सोनाखान के जंगल में तको सत अऊ गियान के खोज करे बर बहुत दिन तक तपस्या करीस।
सतनाम पंथ – गुरु घासीदास जी ह सतनाम पंथ के निरमाता आय। वोहा बताइस के “सतनाम” शब्द में बहुत ताकत हे। ये एक मंत्र हरे। सतनाम शब्द से परान ऊरजा निकलथे अऊ जीवन से मुकती मिलथे।
गुरु घासीदास जी बताइस के मनखे मनखे एक समान हरे। कोई ल भेदभाव नइ करना चाही। सबके ऊपर दया अऊ परेम करना चाही। ये परकार से सब झन ल उपदेश दीस।
गुरु घासीदास जी के संदेश –
- गुरु घासीदास जी संदेश दीस के सादा जीवन उच्च विचार रखो
- मांसाहार पाप हरे
- जीव हत्या पाप हरे
- पेड़ पौधा में भी जीव होथे
- पेड़ ल नइ काटना चाही
- पर नारी ल माता के समान समझो
- छुवाछूत ल दूर करो
- अंधविश्वास ल दूर करो
जैतखाम – गुरु घासीदास जी ह सतनाम पंथ ल मानने वाला बर जैतखाम गड़ाना अनिवार्य बताय हे। जैतखाम में सादा रंग के झंडा ह सत्य, अहिंसा अऊ विश्व शांति के परतीक हरे। गुरु घासीदास जी ह समाज ल एक नया दिशा दीस हे। ओकर बताये मारग में चले से आदमी के जीवन में सुधार आथे। आज के युवा पीढ़ी जे समाज से भटक चुके हे वोला बाबाजी ह सत के रसता में चल के सही जीवन जीये के प्रेरना देहे।
गुरु घासीदास बाबा की जय।
– महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला – कबीरधाम (छ. ग)
पिन- 491559
मो.- 8602407353
Email -mahendradewanganmati@gmail.com
सृष्टि के पहिली कुछु नइ रिहिस, ना तो अंतरिक्ष अउ ना अगास रिहिस, लुकाए रिहिस वो ह हिरण्यगर्भ गुफा म अनचिन्हार असन, जउन ल कौउनो नइ समझ सकिन अउ नइ कौउनो चिन्हे सकिन। वेद पुरान मन म सृष्टि के रच्इया ल ब्रम्हा कहे गे हे फेर इनकर सिरजन ल धरर्ईया वसुधा त महिंच अंव, महिंच वो वसुधा अंव, जेकर उपर म ब्रम्हा ले सिरजन, विष्णु ले पालन अउ शिव ले संहार करे गए हे। मुण्डकोपनिषद् 2/1/3 म कहे गए हे कि “पृथ्वी विश्वसय धारिणी” मानें जम्मों विश्व ल धारन करने वाली पिरथी माने वसुधा ये। कई हजारन पईत सृष्टि होईस, हज़ारन पईत ब्रहमा बनिन, बिगड़िन फेर मैं उहिच मेर हावंंव, इहि मेर मोरेच गोदी म, हजारन लाखन देवता, राक्षस, दानव, मनखे, गंधर्व मन जनमिन अउ नास होइन फेर मैं ह अभी तक वइसनहेच दसा म ठाढ़ हाावंव। सबों छिन ल एकेच ढंग ले धरें हावंव, अड़बड़ पहिली के नवां-नवां अउ जुन्ना बखत ले बहुते व्यवस्था-अव्यवस्था में मैं ह रहेंव, मै ह उहि वसुधा आंव।
मोरेे गोदि म खेलइया भारत ह छोटेच कन मोर अंस ये, मैं ह बहुतेच बडका हवं। मै अपन भीतर म कतकोन रहस्य लुकाए हावंव, कतकोन विरासत, चीज-बस मोर भितरी म हवय, मै ह ओला नइ बतावंव, मैं ह कुछु कहि देहुँ त रहस्य के परदा उघर जाही। मैं ह काल के साखी आंव, काल घलो मोला चिन्हे म असमर्थ हे, जम्मों मानवता ह मोरेच म समोय हवय। मै ह एकदम धीर अउ निच्छल भाव ले उहिच मेर ठाढ़े हावंव, सबो ल एकेच असन धरें हावंव, हजारन उलट फेर होवत चले गे, एको झिन मोर परवाह नई करिन, काल के घुमरत चकरी के फेर म कतको इतिहास बनिस अउ मेटा गईस, फेर मैं सबो ल जानत हंव तभो ले थिर ठाढ़े हंव।
सबले पहिली मै ह लइकई म रहे़व, हरियर हरियर रहेंव, मोर मेर थिर हवा, निरझर-निरमल आरूग पानी रिहिस। सबो डहर खुसी के व्याप्त रहिस, जइसन के पूरा सरगेच ह मोरेच म उतर गे होवय, मोरो मन लइकई असन चंचल रिहिस। अचानक अबड़ बदलाव होइस जइसन के कउनो लइकई ले छिन म जवानी म भितरा गे हो, बदलाव-बदलाव बस बदलाव। थोथहा राज सुख बर लरर्ई-झंझट-अतलंग। मैं ह रो डारेंव, ब्रम्हा ले सिरजे रचना उपर तरस आ गे, का उन हा अइसन सृष्टि ल रचिंन?? तभो ले मै ह टस ले मस नइ होंयेंव, काबर मोर उपर काकरो राज नइ हे, मैं ह थिर हंव धीर हंव।
मोरेच ततकेच कन कुटका ल पाके अनंद भास करर्इया वाले मन कभु सोचेव, कुटका का कर डरे हव, काकर कुटका होइस? सोचेव कभु? जउन के उपर म डेरा बनाके रहत हवव, ओखर कुटका करके कतका अनंद पाए हो हु? अरे!!! पीरावत हे मोरो देह ह, पीरा म छटपट-छटपट करत हंव तभो ले चुप हंव, चल जान दे सोचके। काबर मोला तो तुमन ल धरना हे, मै ह तो सबो झिन ल एकेच भाव ले धरें हंवव, एकेच भाव ले देखत हवंव, मै ह नइ बनाएंव हिन्दू – मुसलमान फलानां ढेकाना। मै ए सबले आहत हावंव जेकर पीरा ल बता नई सकंव। कोउन सिखाईस अईसन ??? काकर अतका हिममत?? का मै वसुधा अंवं!!!? मै वसुधा अंव!! मै इनकर वसुधा अंव? का मै ह ए सेती मानवता संस्कृति सभ्यता ल धारन करे हंव??
मोर उपर रहईया तुमन कुछु करहू त पीरा मोहिंच ल होही। तुहंर कुटका करे ले मै कुटका नइ हो सकंव। मोर बडकापन मोर चिन्हार ये, मोर आन मोर आत्मा ये, तुहंर अउ मोर संग नता कईयो जुग ले हे। तुुहंर पहिचान मोर सेती ले हे, तुमन जउन कुछु करहू ओखर फल तुंंहर संगे-संग महुं भोगहूं।
तुमन सुघ्घर राज करहूं, महुं घलो तुमन के भलाई करहूं। तुमन बीज डारहू त मै तुमन ल फसल देके खुस करहुँ, तुमन रूख लगाहु त तुमन ल हरिहर हरियर आरूग वातावरण देहूं। तुमन के फरज हे साफ-सफई रखेके, मोला जतने के, तुमन जतका मोला आरूग रखहु मैं ह ओतकेच तुमन ल जिनगी देहूं। मोर अन्न, जल, हवा, परकास ल दोहन करहू मै तुमन ल भितराए गहिर रहस्य कोति इसारा करहूं। मै ह तुमन के हरेक हरकत उपर नजर रखे हंव, तुमन मोला बरबाद करहू त मोर संगेच संग तुमन के नास हो जाहि। जब तुम अउ मै एकेच हन त फेर का बर अतका असांत हवव? तुमन चलथव त छाप मोर उपर परथे, तुमन कुछू करथव ओखर परिनाम मोला भोगना परथे, माने तुम अउ मै बंधना म फंदाए हवन। त फेर छोड़ देवव अबिरथा-अनख-इरसा ल, तुमन के हाथ म मोर जिनगी हे, मै सिसकत हंव मोला जतनव तुमन, मै रोवत हंव मोर कलियान करव, झन करव तार-तार मोला, मां अंव तुमन के, मां के भलई करव। आज मै ह जरत हंव, पियास म तडफत हंव, सांस नइ ले सकत हंव। जिनगी मोर खतरा म हे, मोला बचाव कोउनो…!
मोर जिनगी तुमन सबो झिन बर जरूरी हे, हाथ ल जोर के बिनति करत हंव… बचा लेवव मोला बचा लेवव…. का मानवता मर चुके हे… तडफत हे मोर वसुधा, तार-तार होगे हे मोर वसुधा… का ए तुमन के फरज नइ हे?? बोम पारके रोवत हे कहत हे … ये मोर भितर के ताप ह बाढत हे, मानवता के असितत्व खतरा म हे। ओ ह अगाह करत हे कि ओ ह गरम होवत हे, अब हमन ओखर उपर बोझा हो गे हन। ओखर सिसकी ल सुन लेवव, ओखर परचंड भाव ल लेवव, इसारा-इसारा म समझावत हे ओला समझव…. ओ ह वसुधा ये ओला बचा लेवव। एक दिन आहि ओ ह टूट जाहि, जउन दिन ओ ह बिफरही वो दिन कोनो नइ बचही, जब उहि नइ रहिही त फेर का के मनखे अउ ओखर असतित्व, अउ कहा के मानवता रहिही…… इहि बताए बर आए हे मोर वसुधा… मोर वसुधा……
जय जोहार जय छत्तीसगढ़….
– गीता शर्मा
सबले पहिली आप सबो ला नवा बछर के नंगत बधई अउ शुभकामना हावय। मोर अंतस के इही उद्गार हे के सरी संसार हा हांसत-गावत अउ मुसकावत नवा बछर के सुवागत करयं अउ पूरा बछर भर हा बिघन-बाधा के बिन बित जावय। कोनो हा पाछू साल के कोनो गलती ला कोनो गलती ले झन दोहरावय। नवा साल हा दगदग ले, रगरग ले सूरुज कस अंजोर हम सबके जिनगी मा बगरावय अउ अगियान के, गरब-गुमान के अंधियारी ला मेट दय। नवा बछर के सरी दिन हा नवा उछाह, नवा उमंग , नवा खुशी अउ नवा आनंद मा बितय इही उमीद एसो के नवा बछर ले हावय। नवा साल मा नवा सूरुज के नवा बिहान हा सरी संसार भर मा सुख-सांति के नवा-नवा अंजोर बगरावय। पाछू बछर के अधूरा परे कोनो सपना हा आंखी मा काजर कस अंजाय परे हा ए नवा बछर मा सच हो जाय, सकार हो जाय। नवा बछर मा नवा जोस, नवा उरजा के संग नवा कारज करे बर बल मिलत रहय। सत के सरी कारज करे खातिर सबके मन मा बिसवास के संचार सरलग होवय ए नवा बछर मा। पाछू साल के बांचे अटके जम्मो कारज हा नवा बछर मा सिद्ध पर जाय, बिगङ़े बुता हा एसो के बछर मा संवर जाय, सुफल हो जाय। मन मा पाछू साल के गुरतुर सुरता हा बसेरा बना के आगू-आगू खुशी के अगोरा मा अघुवा बनय जउन हा हा नवा बछर मा सबला खच्चित मिलय। मन ले बैर भाव के मइल हा मेटा जाय, सुनता अउ सहजोग के सुग्घर भाव हा सबके अंतस मा समा जाय। लबारी अउ लालच के ए जीवलेवा बीमारी हा जर ले उजर जाय। नवा बछर मा नसा अउ जुआ-चित्ती,सट्टा-पट्टी मा संसार के सरी सुख के अधार खोजइया अटके-भटके मनखे मन ला सत अउ इमान के करम कमई के महत्तम समझ आ जाय नवा साल मा। सइता मा सरी संसार के सुख अउ सुबिधा समाय रथे। पोगरी रपोटे मा कोनो फाइदा नइ हे इहां। सरी सांसारिक जीनिस हा इहां नास होवइया हरय अउ इहंचे छोड़ के परलोक जाना परथे सबला। एखरे सेती मिल बांट के सइता ले सरी सुख-सुबिधा ला भोगना चाही। ए संसार मा सइता ले बढके कोनो सुख नइ हे। अइसन सोच अउ समझ सबके मन मा परमातमा हा भर दय इही नवा बछर के मोर मंगल कामना।
वइसे ए नवा बछर के उत्सव हा भारतीय परमपरा अउ हिन्दू धरम के हिसाब ले नवा बछर नो हे। फेर मनखे के इतिहास मा मनखे हा खुशी मनाय के अउ ओला देखाय के ओखी खोजत रथे। अइसने खुशी मनाय अउ देखाय के सबले जुन्नटहा ओढहर के रुप नवा बछर मनाय के उतसव हा हरय। नवा बछर के अनुभूति हा अंतस मा वइसने हरय जइसे बरसा के पहिली बून्द हा देंह ला छुथे। घर मा पहिलावत लइका के जनम, नवा बिहान के अगवानी मा चिरई-चिरगुन मन के चिहुर,आरुग फूल के महर-महर अउ कोनो बरफ के पहाङ़ ले नान्हे नंदिया के अवतरन ला देख के मन मा अनुभव होथे। खुशी ला नापे के कोनो माधियम नइ हे फेर एला देखाय बताय के एकेच ठन माधियम हावय उतसव मनाना,तिहार मनाना। मनखे दिन-रात के बुता-काम ले हक खा जाथे। थक-हार जाथे। जिनगी मा दरद-पीरा, झंझट-फटफट ले रोजेच भेंट होवत रथे फेर खुशी अउ आनंद मंगल ला खोजे ला परथे। जिनगी मा इही खोज हा उतसव अउ तिहार कहाथे। अइसने एक ठन संसार के सबले बङ़े आनंद तिहार नवा बछर के उतसव हा हरय। उतसव ला सबो चिन्हार-अनचिन्हार संघरा मनाय ले एहा महाउतसव बन जाथे। नवा बछर के तिहार हा हमर भारतीय परमपरा के तिहार नो हे तभो ले आज एला पूरा भारत भर मा बङ़ धूमधाम ले मनाय जाथे। एखर पाछू एके ठन कारन हे के ए धरती हा सबके महतारी हरय अउ सरी संसार हा एखर संतान हरय। जम्मो जग हा एक परवार अउ कुटुंब बरोबर हावय। एखर सेती खुशी मनाय के मउका ला कोनो अपन हाथ ले जावन नइ दँय। लगभग सरी संसार भर हा ए तिहार मा एक परवार बरोबर एकमई होके उतसव मनाथे। ए नवा बछर मनाय के पाछू 4000 बछर जुन्ना इतिहास के कहिनी हावय। नवा साल के उतसव ला तिहार के रुप मा सबले पहिली बेबीलोन शहर मा मनाय गे रहीस। एखर पहिली नवा साल के उत्सव ला 21 मार्च के मनाय जावत रहिस जउन हा बसंत के आये के शुभ समे माने जावत रहीस। पराचीन रोम राज मा घलाव इही समे मा नवा बछर के उतसव मनाय जावत रहीस फेर उहां के तानाशाह जूलियस सीजर हा ईसा के पहिली 45वां बछर मा जब जूलियन कलेंडर के इस्थापना करीन तभे उी समे ले पहिली घांव 1 जनवरी के दिन नवा साल के उत्सव मनाय गीस। अइसन करे बर जूलियस सीजर ला पाछू साल ला याने ईसा पाछू 46वां साल ला 445 दिन के करे ला परीस। तब ले आज तक नवा बछर के उत्सव ला सरी संसार भर मा 1 जनवरी के दिन मनाय ला धर लीन। सरी संसार मा नवा बछर के ए उतसव ला मनाय अउ देखाय के रंग-ढंग भले अलग-अलग हावय, तिथि घलाव अलगेच हावय फेर संदेशा एकेच हावय। जिनगी मा खुशी के पल निकालव अउ वोला हांसी खुशी ले जी भर के जीयव। नवा बछर के सुवागत सबो संघरा नाच-गा के, मउज-मसती करके करथें। संसार के अलग-अलग जघा मा नवा साल के तिहार अलग-अलग तिथि मा मनाय जाथे। नवा बछर के उत्सव मनाय के पाछू सिरिफ इही संदेशा हावय के बीते पाछू के पछतावा झन करव अउ आघू के समे ला झन बिगाड़व। अवइया समे या फेर कही लव संग मा चलइया वरतमान समे ला सोनहा समे बना लव। कभू सुरता आवय बीते समे हा ता कोनो पछतावा झन होवय।
1 जनवरी के दिन संसार के जादा ले जादा जघा मा नवा बछर के उत्सव मनाय जाथे। नवा बछर के शुभ दिन आये के हफ्ता दिन भर पहिली 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस जेला बड़े दिन कहे जाथे बड़ धूमधाम ले मनाय जाथे। बड़े दिन के उत्सव के संगे संग नवा साल के शुभ दिन के सुवागत मा तिहार मनाय के तियारी शुरू हो जाथे। एक दुसर ला बधई दे बर बधई के कारड, उपहार,बधई संदेश ले-दे के,भेजे के पहिली ले तियारी शुरू हो जाथे। पालटी के बेवसथा नवा साल के सुवागत मा पहिली ले हो जाथे। सब्बो झन नवा बछर के अगोरा मा एक गोड़ मा ठाड़हे रथे।
31 दिसम्बर के अधरतिहा 12 बजते साठ सरी संसार भर मा उच्छल-मंगल धूमधाम के संग शुरू हो जाथे। फटक्का फुटे ला धर लेथे, मिठाई बंटे ला धर लेथे चारो डहर। राते कन आनंद-मंगल के बाजा मा खुशी के नाच शुरू हो जाथे। 1 जनवरी के दिन नवा बछर के सुवागत मा नाच-गान, मउज-मसती,पालटी अउ फिलिम के रिंगी-चिंगी सुरुवात संगी-जहुंरिया,परवार अउ लगवार संग हो जाथे। नवा बछर के ए उत्सव के अगोरा सरी संसार ला साल भर ले होथे। नवा साल के ए तिहार हा सरी संसार भर मा सबले बड़का अउ समरिद्ध बनत जावत हावय। आज शहर के संगे संग गांव-गंवई मा घलाव नवा साल के उछाह देखे ला मिलथे। फेर ए नवा साल के तिहार समरिद्धी के संगे-संग दुसित घलो होवत जावत हे। नाच-गान, खान-पान अउ मउज-मसती मा दारु-मास के बेवसथा नवा बछर मा करे के फेशन सुरु होगे हावय। ए अलकरहा मंद-मंउहा अउ मास-मछरी के सेवन के फेसन हा तन-मन-धन बर नसकानी आय। अइसन हिजगहा फेसन ले खुद बांचव अउ दूसरो ला घलाव बचावव। सरल,सवच्छ अउ सवसथ तरीका ले नवा बछर के बधई देवंय अउ लेवंय। कोनो परकार के नसकानी अउ हलकानी काखरो बर कहूं कभू झन होवय। नवा बछर के उत्सव के सारथकता ला बनाय खातिर हमला नवा-नवा बुता-काम करे के संकल्प लेना चाही। सिरिफ संकल्प ले भर ले नवा साल शुभ अउ मंगलमय नइ होवय। एखर बर हमला अपन संकलप ला हर हाल मा पूरा करना चाही। पाछू साल के संकलप के समीक्छा खुद ला अपन आप मा करना चाही। नवा बछर मा नवा सफलता के कहिनी अपन-अपन जिनगी मा लिखना चाही, गढना चाही अउ आगू-आगू बढना चाही। मन मा धीर अउ बिसवास के बीजा बोना चाही अउ वोला सत इमान के पानी पलोना चाही, मिहनत के खातू डारना चाही। ए उदिम मा सिरतोन मा सफलता के मीठ फर हमला मिलही। बिन मिहनत मिले फोकटिहा सुख सुबिधा अउ संपत्ति हा कभू शुभ फलदायी नइ होवय। एखर ले बढिया अपन जांगर ला पेर के करम कमई ले कमाय अलवा-जलवा जीनिस हा घलाव असल सुख-सांति देथे। करिया मन अउ करिया धन हा सरी संसार बर दुखदायी होथे। लालच-लबारी अउ भस्टाचार हा हमला आखिर मा बिनास के रद्दा मा रेंगा के हमर सतियानाश कर देथे।
कन्हैया साहू ‘अमित’
हथनी, भाटापारा
सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन एक ठन हाना पारय। कहय-बेटा! नवा बइला के नवा सिंग, चल रे बइला टिंगे-टिंग। फेर संगवारी हो हमन उॅखर हाना ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। जब नवा जिनिस के बात आथे तब हमर मन म अपने-आप नवा खुसी के लहरा समा जाथे। चाहे वो नवा बछर होय के नवा घर होय। नवा के नाव लेते हमर मन हरियर हो जाथे। संगवारी हो जब हमर मन म खुसी होथे तब हमर उत्साह घलाव दुगुना हो जाथे अउ जब हमन कोनो काम ला उत्साह के संग करथन तब हमन ला वो काम में सफलता घलाव आसानी से मिल जाथे।
संगवारी हो अगर अंतस ले सोचे जाय त हमर जिनगी के हर स्वास नवा होथे, हमर हर पल, हर छिन नवा होथे, हमर हर दिन, हर महीना, हर बछर नवा होथे काबर के जउन भी समय एक बार गुजर जाथे वो हर फेर लहुट के दुबारा कभू नई आवय। कबीर दास जी के दोहा हावय- स्वास-स्वास में नाम ले, वृथा स्वास मत खोय। न जाने किस स्वास का, आवा होय न होय।। संगवारी हो हमन ला अपन जिनगी के हर पल, हर छिन ला नवा मोहलत समझ के जागृत अवस्था में जी लेना चाही। जब हमन अपन जिनगी ला जागृत अवस्था में जीबो तब हमन सोझ रद्दा म रेंगबो अउ जब हमन अपन हर स्वास ला नवा समझ के जीबोन जब हमर मन मा कतका उत्साह के संचार होही एखर कल्पना नई करे जा सकय। हमर समाज बर, हमर देस बर अउ दुनिया बर भलाई के काम करना आसान नई हे। एखर बर हमन ला बहुत अवरोध-विरोध के सामना करे बर परथे। फेर जेखर जिनगी में नवापन होथे, मन में उत्साह होथे, उमंग होथे ओखर आगू म कोनो बाधा टिक नई पावय। सियान बिना धियान नई होवय। तभे तो उॅखर सीख ला गठिया के धरे मा ही भलाई हावै। सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हावै।
रश्मि रामेश्वर गुप्ता
कोनो तीज तिहार होय, अंचल के रीत-रिवाज जहां के संस्कृति अऊ परम्परा ले जुड़े रथे। सबो तिहार म धार्मिक-सामाजिक संस्कार के संदेश हमला मिलथे। तिहार मनाय ले मनखे के मन म बहुते उमंग देखे जाथे। आज मनखे ला काम बूता के झमेला ले फुरसद नइ मिले। ओला तिहार के ओखी म एक-दू दिन काम-बूता ले उरिन होके घूमे-फिरे अऊ अपन हितु-पिरितु संग मिले भेंटे के मौका मिलथे। तिहार के ओखी घर-दुवार के साफ-सफाई लिपाई-पोताई हो जथे। गांव म डीह डोंगर के देवी देवता के ठऊर ल बने साफ करके लिपई पोतई करथें। देवता धामी के बने मान-गौन होथे तब उहू मन बस्ती अवइया बिघन बाधा बर छाहित रथे। इही पाय के हमर पुरखा मन तीज तिहार मनाय के परम्परा चलाय हें, जेमा एक ठन तिहार गांव के मड़ई मेला ल घलो माने जाथे।
मड़ई मेला परब मनाय के चलन कब ले शुरू होय हे, येखर कोनो ठोस परमान तो नइ मिलय फेर सियान मन अपन पुरखा मन ले सुने मुंहजबानी कथा अइसन किसम के बताथें। द्वापर जुग म भगवान कृष्ण हा देवराज इन्द्र के पूजा नई करके गोबरधन पहाड़ के पूजा करिस, तहान इन्द्र ह अपने अहंकार के मारे मुसलाधार बारिस करके सब गोप-ग्वाल ल विपत म डार दिस। तब भगवान कृष्ण ह अपने छिनी अंगरी म गोबरधन पहाड़ ल उठाके सबके रक्षा करिस। संगे-संग गोप-ग्वाल मन ल अपन-अपन लऊठी पहाड़ म टेकाय बर कहिके एकता म कतका ताकत हे येकर मरम बताइस। ओ दिन विपत ले बांचे के खुशी म गोप-ग्वाल खूब नाचे गाये लगिन। उही दिन ले राऊत नाचा अऊ मड़ई मनाय के परम्परा शुरु होइस।
जिहां तक हमर छत्तीसगढ़ के बात हे, देवारी तिहार म गोबरधन के पूजा करथन। किसान के नवा फसल आथे, ओकर बाद म मड़ई मेला मनाय के सिल-सिला शुरु हो जथे। ओ जुग म भगवान कृष्ण ह प्रकृति के पूजा करके इन्द्र के अहंकार ल टोरिस अऊ ग्वाल बाल के रक्षा करिस तब कृष्ण ल अपन रक्षक मान के ओकर पूजा करिन। उही पाय के आज घलो गऊ माता के चरवाहा मन भगवान के कथा ले जुड़े दोहा बोलथें अऊ नाच-कूद के खुशी मनाथे। अब भगवान कृष्ण के संगे-संग अऊ कतकोन देवी देवता के पूजा अऊ मान गौन करथें। देवी देवता के चिन्हारी के रूप में मड़ई बैरक सिरजा के मड़ई मेला के तिहार ल सामूहिक रूप म मनाय जाथे।
मड़ई मेला के परब हमर जम्मो छत्तीसगढ़ म मनाय जाथे भले विधि-विधान म थोर-बहुत अंतर रथे। ये तिहार ल मनाय के तारीख तिथि पहिली ले तय नइ राहय फेर अतका बात जरूर हे, जे गांव म जौन दिन हाट बजार होथे उही दिन मड़ई मनाथें। जेन नान्हे गांव म हाट बजार नइ होय उहां कोनो दिन अपन सहूलियत देख के मड़ई तिहार मना लेंथे। कोनो-कोनो गांव जिहां हफ्ता म दू बेर हाट बजार लगथे अऊ बस्ती बड़े होथे उहा दू बेर मड़ई मेला के परब मना लेथें। येकर उलट कोनो-कोनो गांव म अपन गांव के परम्परा के मुताबिक कुछ साल के अन्तराल म मनाय जाथे। जइसन के जिला मुख्यालय गरियाबंद म तीन बच्छर म मड़ई मेला मनाय के परम्परा चलत हे। उही जिला के पांडुका गांव म छेरछेरा पुन्नी के बाद अवइया बिरस्पत (गुरुवार) के दिन मड़ई पक्का रथे। कोनो ला बताय के जरूरत नइ राहय। कई ठन गांव म हमर देश के परब गणतंत्र दिवस के दिन बड़ धूमधाम ले मड़ई मेला के तिहार मनाथे।
मड़ई मेला के तइयारी बर गांव के सियान पंच सरपंच एक जगा सकलाथें अऊ एक राय होके चरवाहा मन ला बताथें। दिन तिथि बंधाथे तहान मड़ई मेेला के जोखा गड़वा बाजा, नाच पेखम के बेवस्था अऊ जरूरी जिनिस ल बिसाके लानथे। अलग-अलग गांव म अलग-अलग देवी देवता बिराजे रथे। जइसन के महावीर, शीतला माता, मावली माता, सांहड़ा देवता के संगे-संग गांव के मान्यता के मुताविक अऊ देवी-देवता जेमे बावा देवता, हरदेलाल, राय देवता, नाग-नागिन देवता, बाई देवता अइसने कई किसम के नाव सुनब म आथे, ऊंकरो मान गौन करथें। गांव म कतको झन अपन पुरखौती देवी देवता मानथे जेला देवताहा जंवरहा कथे ओमन मड़ई बैरक राखे रथें उंकरो मान गौन करथें। मंडई म परमुख शीतला माता, मावली माता, महावीर, कोनो के पोगरी देवी देवता के मड़ई रथे। दू ठन कंदई मड़ई रथे जेमा कपड़ा के पालो (ध्वजा) नइ राहय। कंदई मड़ई म कंदई के अनगिनत पालो लगे रथे। डांग (बांस) के बीचोंबीच म चार पांच जगा ढेरा खाप पंक्ति लगा के ओमा मोवा डोरी गांथ के कंदई के पालो लगाय रथे। ओकर ऊपरी फोंक म मयूर पांख के फुंचरा बांधे रथे जेहा सबो मड़ई के शोभा बढ़ाथे।
मंड़ई मेला के परब म पौनी पसारी के मदद लेना बहुत जरूरी रथे। पौनी पसारी म गांव के पुजारी बईगा, किसान के गाय चरवाहा राऊत अऊ देवी देवता के पूजा पाठ बर दोना-पतरी देवइया नाऊ ठाकुर के सहयोग जरूरी होथे। इंकर बिना मड़ई के परब नई मना सकय। मड़ई के कामकाज करइया गांव के अगला मन पूजा पाठ के जिनिस, नरियर, सुपारी, धजा, वइसकी, लिमऊ बंदन, गुलाल, हूम धूप, अगरबत्ती के जोखा कर के राखे रथे। मड़ई के दिन सबले पहिली नरियर सुपारी अऊ बाजा-गाजा संग गांव के बइगा ल नेवता देथें, तब बईगा हा गांव के सब देवी देवता ल जेकर जइसन मान-गौन होथे ओ जिनिस ला भेंट कर के नेवता देथे। तहान गांव के परमुख सियान मन ला पिंवरा चाऊंर अऊ सुपारी भेंट कर के नेवता देथें। मंड़ई के दिन बाजार चौक म बिहिनियां ले दूकान वाला बैपारी मन अपन सामान लान के अपन दुकान सजा के तइयारी कर लेथें। जइसने बेरा चढ़त जाथे ओइसने बाजार के रौनक बढ़ते जाथे। मड़ई म मिठई, दुकान, खिलौना दुकान, मनियारी दुकान, होटल, पानठेला, किराना दुकान अऊ संगे संग साग-भाजी के बेचइया मन के पसरा घलो लगथे। मड़ई के दिन सबो दुकान के सामान खूब बेचाथे। वैपारी मन खूब आमदनी कमाथें। लोगन के मन बहलाय बर ढेलवा रहचुली झुलइया घलो आथें फेर अब ओहा धीरे-धीरे नंदावत हे।
संझाती बेरा नेवताये पहुना मन ओसरी-पारी आवत जाथे। ऊंकर मन बर सुन्दर मंच बनाके बईठे बर कुरसी, दरी बिछाय रथे। पहुना के आते साथ गुलाल लगा के स्वागत करके बइठारथें उही बेरा राऊत मन मड़ई (बैरक) लेके बाजा-गाजा संग नाचत-कूदत आथें अऊ अपन राउत नाचा के कला देखाथें। उहां ले राउत मन बिदा होके मड़ई ला ऊंकर ठऊर म अमराके ओती मंच म बईठे पहुना मन मड़ई मेला के विषय म भासन उद्बोधन देथे। ओकर बाद पहुना मन ला एक-एक नरियर दे के बिदा करथें।
मड़ई मेला के परब हमर छत्तीसगढ़ के अलग पहिचान बनाथे। हमर छत्तीसगढ़ के कतको रीति रिवाज हा आज के नवा जमाना म नंदावत हे ये हमर बर संसो के बात हे। हमर छत्तीसगढिय़ा बुद्धिजीवी मन ला हमर पुरखौती संस्कार अऊ परम्परा ल संजोके राखे बर ठोस उदिम करे बर जरूरी है। संगे संग हर तीज तिहार म मंद मऊहा अऊ जुवा के रोकथाम बर हमला जागरुक होना बहुते जरूरी हे।
नोहर लाल साहू अधमरहा
गांव हसदा
मगरलोड जिला धमतरी (छ.ग.)
–अजय अमृतांशु
प्राईमरी (कक्षा पहली ले पॉचवी) तक महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म पढई काबर नइ होत हे? ये दाहकत सवाल हमर बीच हवय। येखर पीरा तो जम्मो छत्तीसढिया मन ल हवय फेर सब ले जादा पीरा साहितकार मन ल हवय। अउ होही काबर नहीं? साहितकार बुद्धिजीवी वर्ग आय, भाखा के संवर्धन अउ क्रियान्वयन के सब ले बडे जिम्मेदारी साहितकार मन के होथे। आखिर का वजह हे कि छत्तीसगढ़ी म पढई लिखई ल पाठ्यक्रम म लागू नइ करे जात हे? पाठ्यक्रम म लागू करना अउ नइ करना पूर्ण रूप ले राजनीतिक गोठ आय। सरकार चाहय तो काली पाठ्यक्रम म लागू हो जाय फेर सरकार नइ चाहय काबर कि येखर ले उन ल कोनो जादा राजनीतिक लाभ तो होना नइ हे। येकर सेती सरकार ह येला लागू करे बर चिटकुन गंभीर नइ हे। अइसने बात विपक्ष के हवय विपक्षी मन घलो कभू भी छत्तीसगढ़ी ल प्रायमरी तक के शिक्षा म लागू करे बर कोनो मेर बात नइ उठाय हें काबर उहू ल कोनो जादा फायदा ये मुद्दा म मिलही अइसन नइ दिखत हे।
अब सवाल ये हे कि सरकार ल कइसे मजबूर करे जाय? कि छत्तीसगढ़ी ह प्रायमरी स्तर तक लागू हो जाय। हमन घेरी-भेरी राजभाषा आयोग डहर देखथन अउ आस लगाय रहिथन कि आयोग ह सरकार ल मजबूर करही। हम ये काबर नइ सोच सकन कि आयोग ह घलो सरकार के अंग आय अउ सरकार के अधीनस्थ काम करथे। आयोग ह सरकार ल केवल सुझाव दे सकथे अउ निवेदन कर सकथे येकर ले जादा आयोग ह कुछु नइ कर सकय। आयोग ह सरकार ल न तो आदेश दे सकय अउ न मजबूर कर सकय कि सरकार ह छत्तीसगढ़ी ल पाठ्यक्रम म लागू करय। येकर सेती आयोग से हम जादा उम्मीद नइ कर सकन। तब ये समस्या के हल का हे …?
ये समस्या के एके ठिन हल अउ रस्ता दिखथे वो रस्ता हे आंदोलन के। जम्मो साहितकार वरिष्ठ अउ कनिष्ठ एक जघा, एक मंच के तरी सकलाव अउ आंदोलन के रूपरेखा तय करव। नवोदित साहितकार के संगे संग एम.ए. छत्तीसगढ़ी करइया युवा अउ छत्तीसगढ़ी के लोक कलाकार मन ल घलो ए आंदोलन म सामिल करव। सबो झिन मिल के एक मजबूत संगठन तैयार करके आंदोलन के रूपरेखा के रूपरेखा तय करव। पहिली सरकार ल सांकेतिक रूप से चेतावनी दव, ओकर बाद धरना, प्रदर्शन फेर आंदोलन करे जाय। हमर बात ल नइ मानही तब तक क्रमिक भूख हडताल अउ अन्त म आमरण अनशन म घलो बइठे जाय। जब सबो झिन जुरमिल के ये कदम उठाबो तब कहूँ सरकार ह अपन कुंभकर्णी नींद ले जागही। जेन दिन सरकार ल ये अहसास हो जाही कि अब छत्तीसगढ़ी ल पाठ्यक्रम म सामिल नइ करबो त स्थिति ह विस्फोटक हो जाही तब उंकर आँखी खुलही। यदि हम साहितकार मन ही चुपचाप बइठे रहिबों त ये आवाज ल उठाय बर कोन आही ..? कोनो नइ आय। कोनो ल अतका फुरसत नइ हे छत्तीसगढ़ी के बारे म सोंचे के अइसन म छत्तीसगढ़ी ल पाठ्यक्रम म सामिल करे बर बेरा ले कूबेरा हो जाही।
अगर शांति पूर्ण आंदोलन के अवहेलना करे जाही त स्थिति ह विस्फोटक घलो हो सकथे। आंदोलन के एक हिस्सा येहू तय होय कि हम जम्मो साहितकार नेता मन ल ये बात के अहसास देवावन कि जेन नेता विधानसभा अउ मंत्रालय म छत्तीसगढ़ी म नइ बोलही वोला ये दरी जनता ह वोला वोट नइ देवय। कम से कम विधान सभा म सवाल अउ जवाब तो छत्तीसगढ़ी म करे जा सकथे। जब तक इन नेता मन छत्तीसगढ़ी म गोठ-बात नइ करही तब तक सरकारी करमचारी मन घलो छत्तीसगढ़ी बोलय अउ न ही पाठ्यक्रम म येकर क्रियान्वयन करय। छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के दर्जा मिले 9 बछर होगे हे फेर आज तक कोनो नेता मन मंत्रालय या विधानसभा म छत्तीसगढ़ी म नइ गोठियांय। जम्मो साहितकार अउ लोक कलाकार मन अपन-अपन क्षेत्र के नेता, विधायक मंत्री अउ सांसद ल ये बात के अहसास करावय कि विधानसभा म कम से कम गोठ-बात तो छत्तीसगढ़ी करव, खाली चुनाव के बेरा छत्तीसगढ़ी बोले ले काम नइ बनय अउ चुनाव जीतना हे त विधानसभा म घलो छत्तीसगढ़ी बोले ल परही अउ पाठ्यक्रम म घलो सामिल करे बर परही ये बात के अहसास देवाना जरूरी हवय।
आंदोलन बर प्रदेश, जिला, तहसील अउ विकासखण्ड स्तर तक साहितकार अउ लोक कलाकार मन पदाधिकारी अउ कार्यकारिणी के गठन करे जाय संगे-संग हर स्तर मा आंदोलन के जिम्मेदारी सौंपे जाय। हमन बडे-बडे साहित्यिक आयोजन/सम्मेलन तो करथन फेर ये आयोजन म कभू आंदोलन के बात नइ करन। हमर आयोजन ह केवल लेखन, चर्चा अउ परिचर्चा तक ही सीमित रही जाथे। लेखन अपन जघा हवय आंदोलन अपन जघा। आंदोलन बर अब नवा प्लेटफार्म तईयार करे के जरूरत हवय। एक ठिन कहावत हे “बिना रोय तो महतारी घलो लडका ल दूध नइ पीयाय” जब तक हम चिल्लाबों नहीं सरकार ह अपन कुंभकर्णी नींद ले नइ जागय। जब चार झिन बंगाली म अनशन म बइठ के अपन बात ल मनवा सकथे त हमन काबर नहीं? चरण बद्ध तरीका ले जिला अउ प्रदेश स्तर म आंदोलन करे जाय। बात नइ माने के स्थिति म मंत्री तक के घेराव करे जाय तब जाके कहूँ हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी ह प्रायमरी म लागू हो पाही।
रायपुर, 09 जनवरी 2017! प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आगामी 26 जनवरी को नई दिल्ली म आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह म छत्तीसगढ़ के दू बहादुर लईका मन ल राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार 2016 ले सम्मानित करहीं। जेमा बेमेतरा जिला के ग्राम हरदी के श्री तुषार वर्मा अउ ग्राम मुजगहन, पोस्ट लोहरसी के कुमारी नीलम ध्रुव शामिल हें। ये लइका मन ल उंखर हिम्मती काम खातिर सम्मानित करे जाही। छत्तीसगढ़ राज्य बाल कल्याण परिषद कोति ले छत्तीसगढ़ के पांच लईका मन के प्रस्ताव राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार खातिर भेजे गए रहिस। तेमा ले इन दू लईका के चयन ये पुरस्कार खातिर होए हे।
तुषार वर्मा – ग्राम हरदी, पोस्ट भिभोरी तहसील बेरला, जिला बेमेतरा
भूलूराम वर्मा के घर के पाछू कोठा म रात के लगभग 9 बजे मच्छर भगाए खातिर जलाए छेना ले आगी लग गए। घर म केवल दू सियान मनखे रख्हत रहिन। सियान श्री भूलूराम वर्मा ह जइसे कोठा के ऊपर आग जलत देखीस वो ह जोर-जोर से चिल्लाए लागिस। कोठा के ऊपर दू गाड़ी पैरा अउ भूसा घलव रखे रहिस। कोठा म तीन गाय अउ दू बईला बंधाए रहिस। भुलूराम के आवाज सुनके परोसी मन दौड़के ओकर घर अइन। उहें तीर म रहवईया डोगेश्वर वर्मा के 15 बछर के बेटा तुषार वर्मा अपन घर म खाना खावत रहिस। आग-आग के आवाज सुनके तुषार वर्मा खाना छोड़के घर ले बाहर निकलीस अउ आग लगे घर म दौड़के पहुंच गए। उहां परोसी अपन-अपन घर ले पानी ला-ला के आगी बुझाए के उदीम करत रहिन। बालक तुषार तुरते कोनो तरा ले कोठा के ऊपर चढ़के खल्हे परोसी मन ले पानी झोंक-झोंक के आगी बुताये के उदीम करे लगिस। आग के लपट तेज होए के कारण वोला बड़ तकलीफ घलव होए लगिस, फेर वो ह हिम्मत नइ हारिस अउ आगी बुताए म लगे रहिस। जब तक कोठा के ऊपर बांस-बल्ली मन म लगे आगी बुता नई गीस, तब तक ले वो ह रतिहा 11 बजे तक आगी बुताये म लगे रहिस। गांव वाले मन के सहायता ले कोठा के नीचे बंधे मवेशी मन ल बाहिर निकाले गीस। ये घटना म बालक तुषार आगी ले झुलस तको गए। तुषार के प्राथमिक उपचार कराए गीस।
कुमारी नीलम ध्रुव – ग्राम मुजगहन
19 मई 2016 को अपन सहेली कुमारी टिकेश्वरी ध्रुव के सेग गांव के शीतला तालाब म नहावत रहीस। उही समय म टिकेश्वरी ध्रुव के पांव बिछले के कारण वो ह तालाब के गहीर पानी म चले गए अउ बूड़े लगीस। टिकेश्वरी ल तालाब म डूबत देख के कुमारी नीलम ह अपन जान के परवाह करे बिना वोला बचाए बर तालाब म कूद परिस। अड़बड़ उदीम के पाछू वो ह टिकेश्वरी के मूड़ी के चूंदी ल धरके खींचत तालाब ले बाहिर निकालीस। नीलम के बहादुरी ले वोकर सहेली के जान बांच गए।
एकर पहिली छत्तीसगढ़ के चार हिम्मती लईका मन ल राज्य शासन कति ले राज्य गीरता पुरस्कार के घोषणा होए हे। वो लईका मन के हिम्मत के कहानी ये दे जघा म हवय – http://www.gurturgoth.com/chhattisgarh-rajya-bal-virata-purskar/
जिनगी मा दान दक्छिना के घातेच महत्तम हावय, असल सुख-सान्ती दान पुन मा समाय हावय। हमर देश अउ धरम मा दान अउ तियाग के सुग्घर परमपरा चले आवत हे, भले वो परमपरा मन के नाँव अलग-अलग रहय फेर असल भाव एकेच होथे- दान अउ पुन। अइसने एकठन दान पुन करे के सबले बङ़े लोक परब के नाँव हे छेरछेरा परब। लोक परब एकर सेती कहे जाथे के एहा जन-जन के जिनगी मा रचे बसे हे, समाय हे। हमर छत्तीसगढ के जीवन सइली मा तो छेरछेरा हा नस मा लहू रकत बरोबर दउङत हावय। छेरछेरा के बिना छत्तीसगढ हा अधूरा हावय। हाँसी-खुशी ,उछाह के सतरंगी परब के ताना बाना हरय हमर छत्तीसगढ के छेरछेरा तिहार हा। पुस अंजोरी पुन्नी के महादान के परब छेरछेरा ला मनाय जाथे। सुनता अउ भाईचारा के भाव मा दान देवइया अउ दान लेवइया मन हा एकमई दिखथे।हमर देश राज मा छेरछेरा के बङ़ सुग्घर समाजिक समभाव दिखे ला मिलथे। लइका जवान अउ सियान मा ए तिहार के परभाव एक बरोबर परथे।
छत्तीसगढ के आतमा हा गँवई-गाँव मा बसे हे अउ गँवई-गाँव के आतमा खेती-किसानी मा बसे हावय। इही खेती-किसानी ले लोक परब छेरछेरा के जनम हा होय हे इहां। किसान बच्छर भर किसानी करथे, असाढ मा धान बोथे अउ पुस के सिरावत ले धान ला कोठार-बियारा मा मिस-सकेल डारथे। छै महीना के जाँगर टोर मिहनत के सोनहा सरी फर ला अपन कोठी-डोली मा पा के किसान अब्बङ खुश होथे। अंतस मा आनंद के भाव भर जाथे। पुस मा धान मिसई हा सिराय ला धर लेथे। पुस पुन्नी के आवत ले सरी किसान अपन खेत के धान ला मिस-बटोर के धर डारथे। जब मिसई हा आखिरी होथे ता वोला छेवर कथे, बढोना घलाव कथे। ए हा खुशी के समे होथे अउ एला घर भर उछाह ले मनाथे। सबो किसान के छेवर किसानी के हिसाब ले अलग-अलग आगू-पाछू होवत रथे फेर पुस पुन्नी के सबो झन एकमई सुनता ले छेवर ला छेरछेरा के रुप मा मनाथे। छेरछेरा हा बिसेस रुप मा किसान अउ किसानी के चिन्हारी हरय। छेरछेरा के माने सबके कलयान होथे अउ किसानी ले सरी संसार के कलयान हावय। दान पुन ले देवइया अउ लेवइया दुनो के कलयान होथे,जस अउ पुन मिलथे।
छेरछेरा लोक कथा मा :-
छेरछेरा परब के संबंध मा एकठन परचलित अउ परसिद्ध लोककथा हावय जउन हा अइसन हावय। एक समे के गोठ हे के किसान मन (भुँईयाँ मालिक) किसानी ले उपजाय धान-पान ला पोगरी अपन कोठी-डोली मा भर लँय,धर लँय किसान (बनिहार/कमिया) मन भूखन-लाँघन मरय। धरती दाई हा अपन सपूत कमिया किसान मन के दुखदायी दशा ला देख के दुखी होगे अउ अपन कोंख ले अन्न उपजाना बन्द कर दीस। घोर अकाल परगे, चारो डहर हाहाकार मातगे। अकाल ले उबरे बर , पार पाय बर भुँईयाँ के मालिक किसान मन धरती मईयाँ के पूजा-पाठ सुरु कर दीन। सात दिन के सरलग पूजा-अरचना ले धरती मईयाँ हा परगट होगे। धरती मईयाँ हा कहीस के सबो किसान मन अपन फसल के थोरकुन हिसा ला गरीब कमिया किसान ला घलाव देहू अउ कोनो ला छोटे-बङ़े झन कहिहव। एकर सेती सबो झन धान के दान देहव। अइसन करे ले ही ए अकाल हा मेटाही। जम्मो किसान मन हा धरती मईयाँ के बात ला मान लीन। तभे धरती मईयाँ हा अन्न-जल अउ साग के बरसा कर भंङार भर दीस। चारो मुङ़ा हा सुख मा भर गे। जेखर हाथ जउन जीनिस आइस तउन ला धर के मारे खुशी मा नाचे-गाए ला धर लीन। तभे ले ए परब मा नाच-गान के परचलन सुरु होगे। अन्न-जल अउ साग के बरसा करे के कारन धरती मईयाँ के नाँव साकम्भरी देवी परिस। अन्न-जल अउ साग के बरसा होइस तब छर-छर के अवाज होय लगीस। एखरे सेती ए परब हा छेरछेरा कहाइस। ए तिहार ला *साकम्भरी जयन्ती* के नाँव ले घलाव जाने जाथे। ए दिन सबो मनखे मन हा जात-पात,ऊँच-नीच,गरीब-बङहर धरम के भेदभाव ला भुला के धान के दान ला माँगे ला निकलथे अउ घरोघर दुवारी मा जाके कहिथे:- छेरछेरा-माई कोठी के धान ला हेरहेरा।
कइसे परीस परमपरा :-
छत्तीसगढ़ मा जब कलचुरी राजा मन हा अपन राज इस्थापित करीन ता रतनपुर ला अपन राजधानी बनाइन। राजा हा लगान मा अनाज लेवय। छेरछेरा याने पुस पुन्नी के दिन बाजा बजावत अउ गीत गावत, उतसव मनावत लगान वसूलत रहीस। फेर मराठा मन के राज मा लगान वसूलना बन्द होगे। तब पुस अंजोरी पुन्नी के दिन हा छेरछेरा तिहार मनाय के दिन बनगे। लगान वसूली ला जमींदार मन ला सउप दे गीस। अंग्रेज सासन काल मा घलाव छेरछेरा मनावत रहीस।
हैहयवंसी कोसल राजा परजापालक कलयान साय हा मुगल सम्राट जहाँगीर (कतकोमन हा जहाँगीर के जघा अकबर कथें) के सानिध्य मा आठ बच्छर अपन राजनीतिक गियान अउ युद्धकला बगराय के पाछू मा सरयू नदी के तीर के बामहन मन ला संग ले के अपन राजधानी रतनपुर लहुटीस। राजा ला घर आय सुनीन तहाँ ले परजामन हा रतनपुर मा दरस बर जुरियागे। छत्तीसगढ़ के जम्मो छत्तीस गढ़ के राजा मन घलाव राजा कलयान साय के सुवागत मा रतनपुर पहुँचीन। महल के मुहाँटी मा परजामन अपन राजा के दरसन करे बर खङ़े रहीन।
रानी फुलकेना हा मारे खुसी के परजामन ला सोना चाँदी के सिक्का निछावर करीन। कोसल राज मा भरपूरहा पइदावार होय रहीस। राजा कलयान साय हा परजा के परेम ला देख के सब्बो छत्तीसगढ़पति मन ला फरमान जारी कर दीस के अवइया पुस पुन्नी के दिन ला अपन राजा के घर लहुटे के सुरता ला बनाय राखे बर एला तिहार के रुप मा मनाय जाही। समे बीते ले ए तिहार हा छत्तीसगढ़ मा छेरछेरा तिहार के रुप मा मनाय जाय ला धर लीन। एखर संगे संग नजराना लुटाय के परतीक मा घर के दुवारी मा अवइया लोगन मन ला धान के दान दे जाय लगीन।
(यह कहानी हिन्दी में मेरे ब्लाॅग आरंभ में यहां पर है)
छेरछेरा सब्द के उत्पत्ति :-
जनश्रुति के अधार मा एक बेर भयंकर अकाल-दुकाल परीस, जीव-जंतु मन मरे ला धर लीस। मनखे मन दाना-दाना बर तरसे लगीन। तब एक झन महातमा हा कहीस के सौ आँखी वाली देवी दाई के पूजा-अरचना करे ले ए अकल-दुकाल हा टल जाही। महातमा के बात मान के गाँव-गाँव मा देवी पूजा-अरचना होय ला धरलीस। राजा हा खजाना खोल के पूजा ला पूरा करवाइस। देवी के आँखी ले अतका आँसू निकलीस के धरती के पियास बुझागे। खेती-बारी, किसानी हा फेर बने होय ला दर लीस। तब देवी हा आसीरबचन देवत कहीस – श्रेय: श्रेय:। याने सबके भला होवय। आगू चलके श्रेय: श्रेय: सब्द हा छेरछेरा मा बदलगे।
पउरानिक कथा के हिसाब ले वामन भगवान अउ राजा बलि के दान-पुन कथा ले छेरछेरा के संबंध जोङ़े जाथे। भगवान बिसनु हा वामन रुप धर के राजा बलि करा तीन पाँव भुँईयाँ माँगिस ता राजा बलि हा खुसी-खुसी भगवान ला दान दे दीस। एही कथा ले प्रेरना ले के लइकामन ला वामन रुप मान के गाँव मा घरो-घर धान के दान लेथे-देथे।
छेरछेरा के महत्तम :-
पुस अंजोरी पाख के पुन्नी के दिन सरी छत्तीसगढ़ हा उछाह अउ उमंग ले भरे होथे। सरी डहर आनंद के मेला लग जाथे। आज के दिन सबो झन बरोबर होथे,एकमई होथे। जात-पात, छुआछुत,भेदभाव अउ गरीबहा-बङ़हर के भाव ला तियाग के सुनता के गीत गाथे। दान दे ले जादा दान ले मा खुसी मानथे। छेरछेरा हा एक परब ले जादा तिहार अउ अंतस के उतसव बन जाथे। ए परब-तिहार हा समाजिक समरसता के,सुनता के, आरथिक समानता अउ गरीब-असहाय मन के सहायता करे के संदेस बगराथे। हमर करम कमई मा सबो जीव-जंतु के सहजोग अउ हिसा रथे ता मनखे मन के तो होबेच करथे, पोगरी हमरेच भर नो हे। इही भाव ए छेरछेरा तिहार के सुग्घर संदेस हरय जेला जन-जन मा बगराय जाथे। रपोटे-सकेले ले जादा बाँटे-लुटाय मा सुख अउ सान्ती हावय। ए तिहार हा हमला अपन रोटी मिल बाँट के खाय के सिक्छा देथे। छेरछेरा हमर छत्तीसगढ़ राज के सुवसथ अउ स्वच्छ परंपरा हे।
छेरछेरा मा डंडा नाच :-
छेरछेरा परब के एक महीना पहिली ले जवान चेलिक मन हा आपस मा डंडा नाच सीखे ला धर लेथें। एमा पन्दरा-बीस जहुँरिया मन के नान-नान दल-टोली बना लेथे। जेमन मुङ़ मा पागा पहिने रहिथें। पागा ला मंजूर पाँख अउ कउङ़ी ले रिऔगी-चिंगी सजाय रहिथें। नचइया मन हा अपन जेवनी हाथ मा डंडा धरके गोल घेरा बनाके नाचथें अउ एक दुसर के डंडा ला मारथें। नाच के बीच-बीच मा *”कू है, कू है”* के अवाज मुँह ल निकालथें अउ नाच ला अलग-अलग रंग देथें। गीत के सचरुवात गांव देवता के बंदना ले होथे। तहाँ *”तरी हरी मोर नाना, मोर नाना रे भाई”* कहिके गाना सुरु करथें। नाचे के तरीका अउ गीत अलग अलग होय के कारन ए नाच के नाँव घलाव अलग अलग नाँव होथे।
कइसे मनाथे छेरछेरा :-
हिन्दू धरम के मानियता अनुसार बच्छर भर के बारो महिना मा पुन्नी के संग कोनो ना कोनो तीज-तिहार अउ परब हा जुङ़े हावय। पुस अंजोरी पुन्नी के दिन दान-पुन के सरेस्ठ परब छेरछेरा के नाँव जुङे हावय। ए परब ला असनांद अउ दान के नाँव ले घलाव जाने जाथे। छेरछेरा के दिन बङ़े फजर ले असनांद के अपन देवता-धामी के पूजा-पाठ करके दान-पुन करे के सुग्घर परंपरा हावय। आज के दिन दान देवइया हा राजा बलि कस सुख अउ जस पाथे अउ दान लेवइया हा भगवान बिसनु बरोबर मने मन हरसाथे। ए दिन दुवारी मा आये याचक मन ला अपन समरथ अनुसार दान दे के अमर होय के,पुन कमाय के पबरित दिन आय। वामन रुप लइकामन सबले जादा ए छेरछेरा के परब मा खुस रहीथे। बङ़े बिहनिया ले इस्नान के छेरछेरा मांगे बर लइका,जवान अउ सियान मन हा अकेल्ला या फेर टोली बनाके,नाचत गावत,ओली, झोला,चुमङ़ी, बोरा, टोपली,टुकना,काँवर,कटोरा धर के घरो घर जाथे। गीत,भजन,डंडा-पचरंगा,सुआ, करमा, ददरिया गा-बजा अउ नाच के दान दाता ला रिझा के दान मांगथे। छेरछेरा के दिन नंदिया मा नहाना अउ दान पुन करना बङ सुभ माने जाथे। ए दिन नंदिया तीर देवइस्थल मा मेला खच्चित भराथे। लइकामन मा सबले जादा मेला जाय के सउख होथे। छेरछेरा कूटे मा सबले जादा जोस इंखरे मन मा होथे। घरो घर जाके मुहाँटी मा जोर से एके संघरा कहीथे :-
छेरी के छेरा बरकनिन छेरछेरा
माई कोठी के धान ला हेरहेरा।
अरन बरन गोटी बरन
जभ्भे देबे तभ्भे टरन।
तारा रे तारा पीपर के तारा,
जलदी जलदी बिदा करव,
जाबोन दुसर पारा।
छेरछेरा के मतलब होथे कलयान। हमर सास्त्र मा कलयान के अरथ छत्तीसगढ़ मा छेरछेरा ले लगाय जाथे। छेरछेरा मा आनंद के गुरतुर गीत मा ए तिहार के दरसन अइसन हावय।
अन्नदान के परब आगे, घर मा झन लुकावा जी।
झोला,बोरी,ओली मा छेरछेरा के धान झोकावा जी।
डंडा नाचा करके संगी, ए तिहार ला मनाबो जी।
सुमत सुमत के ददरिया गाबो, जिनगी ला सरग बनाबो जी।
बोबरा सोंहारी नरियर के भोग, लछमी दाई मा चढ़ावा जी।
अन्नदान के परब आगे, घर मा झन लुकावा जी।
कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक
मोतीबाङी भाटापारा (छ.ग)
संपर्क ~ 9200252055
जुन्ना समे म काकरो बनत काम ल बिगाडे बर, ककरो बिगडे रद्दा ल बनाय बर, एक-दूसर ल झगरा-लडुई कराय बर नारद मुनि के परमुख बुता राहय। सतजुग, त्रेता, दुवापर जम्मो जुग म वोहा कोनो न कोनो जघा, बेरा-बखत म खचित उहां पहुंच जाय। अपन बुता ल नेते तभेच दूसर काम म मन लगाय। नारद मुनि ह न ककरो ले इरसा रखाय न कोकरो बिगाड करे के सोचय। वोहा जब देखय के ककरो उप्पर अलकर समे हे वो बात ह बता देवय अउ समसिया ल सुलझाय पर अचूक उदिम घलो समझा देवय। भले वोला जम्मोझन चुगलहा के नांव ले जानय, फेर वोहा घेरी-बेरी काकरो न काकरो भलईच के काम करय अड कराय के सेती एक्को पइसा दान-पुन नई लेवत रिहिस। सियान मन कहिथें- तइहा के बात ल बइहा ले गे। ये समे घलो नारद हे। ऐकरो काम वो पाहरो के नारद जइसन हे। फेर, वो बखत एके झन नारद राहय जडन ह जम्मो जुग के काम-बुता ल सरकाय। ऐ समे क्लदुष्ट ग हे। त नारद मन के संखिया जादा हेंरै गे हे। काबर कि वो समे भगवान मन के संखिया कमती रिहिस हे। अब भगवान मन के गिनती म बढोतरी हो गे हे। इंकर परकार ह घलो बदल के दू परकार हो गे हे। पहिली म बडका भगवान अउ दूसर म नान्हे भगवान।
लखपति, करोड्पति, अरबपति, खरबपति जइसन उद्योगपति अड राजनीतिक बिभाग के बडका-बडका कुरसीपति मन ह बडका भगवान के गिनती म आथे। अउ, इंकर ले खाल्हे कुरसी म बइठइया बडका साहेब, अधिकारी मन ह दूसर परकार के भगवान होथे। त भगवान के बिचार के मुताबिक परिचे अड पहुंच ल जादा अड कमती ल देखके नारद मन के घलो कद अउ पद ह घटत-बढत रहिथे। इंकरो परकार ह बदलत रहिथे। येमन काकरो काम बनही कि नइ बनय, काकरो उप्पर अलकर समे अवइया हे कि नइ अवइया हे अउ ककरो समसिया ह सुधरही कि नट सुधरय, जम्मो बात ल कुछु समे आघू बता देथे फेर ये समे के नारद मन ल ये जम्मो बात ल जाने बर दान-पुन करे बर परथे।
छोटे किसम के नारद मन तो गांव-गांव अउ घर-घर म होगे हे, जडउन ह मनखे संग मनखे ल लडाय के, मारपीट करवाय के अउ थाना-कचहरी म पहुंचाय के बुता करथे। इंकर सेती ये समे घरोघर ह कबड्डी के मइदान बनगे हे अउ गांव-गांव ह कुरुछेत्र। बडका परवार देखव म नई मिलय। लइका मन के बर-बिहाव होइस तहां ले नारद मन के दया-मया ले अकेल्ला अउ हरहिंछा जिनगी जिये बर धर लेथें। दाई-ददा ले बांटा-हिस्सा ले लेथें। एकठन अउ बात हे। वो समे के नारद मुनि ह बबा जात रिहिस हे। अब के नारद मन ह बबा जात अउ माइलोगन जात दूनों किसम ले देखे बर मिलथे। ये जम्मो मयारूक नारद मन के हिरदे म अनख अड इरखा ह गाडा-गाडा भरे रहिथे। काकरो बनत अड बढहत परवार के सुनता-सुलाह ल के, एक-दूसर म झगरा-लडुई के करिया चारा ल डार देथें। तहां ले थाना-कछेरी पहुंचा के दूनों डाहर ले, यहू पार अड बहू पार के मनखे मन करा ले दुहानू गाय के बरवाही बरोबर जतेक बिचार होथे वोतेक पइसा ल ओसरी-पारी दूहत रहिथें। ये समे के नारद मन ह अडचन आय म ठडका बखत म पहुंच जथे, फेर एकाद कन भोग लगाय बिना, दान-पुन चढाय बिना थोरको काम नई करय। तेकर सेती इंकर मन के नांव ल हाइटेक के जमाना म बदल के दलाल के नांव ले सुने बर मिलथे। इही मन ह कलजुगी नारद आय।
–बीरेन्द्र कुमार साहूू
नेवई, दुर्ग, छत्तीसगढ़
हमर देस ह संचार माध्यम के अतका बिकास करे ह हे जेकर बखान करना मुसकुल हे। संचार माध्यम म बिकास होय ले नुकसान जादा अउ फायदा कम दिखथे। मोबाइल अउ टीवी चैनल ह मनखे के जिनगी के रफ्तार ल बढादीस। मोबाइल आय ले चिट्ठी-पतरी लिखे बर मनखे भुलागे। इहां तक हमर साहित्य के छेत्र ह दिनोंदिन कमतियावत हे। आज के लइकामन मन साहित्य ले दूरिहावत हें। मोबाइल अड टीवी म अतेक भुलावय हावय के साहित्य लिखे-पढे छोड्त हें। चार दिन के जिनगी म मनखे ल थोरबहुत चैन से जिनगी जीना चाही। हाय-हाय तो जीयत भर लगे हे। फेर, ये संचार के विकास ह सबझन ल व्यस्त कर देहे। काकरो तीर बोले-बतियाय के बेरा नइये। आज के लइकामन ल दाई-ददा, संगवारी मन ल चिट्टी-पतरी लिखे बर कहि देबे त नइ लिखंय। पहिली के जमाना म डाकबाबू के अगोरा अइसे करंय, जइसे अमरित मिलइया हे।
अब तो मोबाइल म दू सेकंड बात करले, बस। सियान मन के कहिना सच निकलगे। वोमन काहंय के एक समे अइसे आही जब गोठ-बात करे बर पइसा देबर परही। मोबाइल आय ले आज वोहा सहिच होगे। संचार माध्यम बाढे ले कुरीति घलो बाढगे। फोकट के फोन करके परेसान करथें। टीवी चैनल के सेती तो मनखे मन के सुवास्थ म बुरा असर पड्त हे। पहिली टीवी नइ आय रिहिस त मनखेमन रातकुन जे-खाय के टहलें। संगी-संगवारी मन संग बइठ के गोठियांय-बतरांय। ये सब खतम होगे। भोजन करके टीवी देखथे अउ सुत जथें। ऐकर सेती सुवास्थ बिगड्त हे।
जमाना के मुताबिक मनखे ल चलना जरूरी हे। ऐला कोनो नई बदल सकय। तभो ले जुन्ना समे, साहित्य अड साहित्यकार मन के सुरता आथे। साहित्य के उत्थान जरूरी हे। पढे-लिखे मनखे मन ल बने साहित्य पढना चाही, ऐकर से मन बने रहिथे। चिंतन करे के मठका मिलथे। लिखे के प्रेरना मिलथे।
–प्रदीप ताम्रकार ‘साहित्यचार्य’
धमधा (दुर्गा)