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जिए केअधिकार जम्मो झन ल हे

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जिनगी ह काखरो जिनीस नोहे जेला कोन्हो घलो जब चाही तब नगा लीही।जिए के अधिकार जम्मो झन ल हे।चाहे वो चिरयी चुरगुन,जीव जनतु कोन्हो रहाय इहां तक रुख राई ल घलव जिए केअधिकार हे।फेर आजकल इंखर मन ले गये बीते मनखे मन के जिनगी के मोल नी हे।कतको सुने बर अउ देखे बर मिलथे के भीड़ ह फलाना मनखे ल पीट पीट के मार डारिन।बिना कसूर के एक झन मनखे ल लैका चोरैया कहिके मार देथे।कोनो मनखे ल गौ रकछा के नाव लेके मारथे।एक ठन गांव म बपरी माइलोगिन ल टोनही ए कहिके भीड़ के भीड़ ह बेज्जती कर कर के कूदा कूदा के मार डारिन।एमा ओखर घर के मन घलो संग देथे।

जादू टोना के चलत कतको मनखे मन अपन जीव बचाय खातिर इहां ले उहां भटकत हावें एक डाहर मनखे ह चंदा म अमरत हे त एक डाहर मनखे के हिंसा ह उजागर होवथे।एक हुंआ ते सब हुंआ वाले कहावत ल सिरतोन करत हे।भीड़ ह दंड देवैया कोन होथे का कानून सरकार नी हे गा एक झन ल सजा देबे हजार झन के का कर सकत हे।भीड़ ह भगवान नोहे जोन कोनो ल कुछ भी कर डारहि।

भीड़ के कोनो रोकैया न टोकैया न ओखर कोनो जात न धरम भीड़ भीड़ होथे।कहि नी करबे तब ले दोषी अउ करबे तब ले दोषी। भीड़ म शामिल होय ले पहिले सौ घव सोचे के हरय के असल म का बात हरे ।सजा पवैया एक झन अउ सजा देवैया हजार झन ए कहां के बहादुरी हरे।काखरो जिनगी ल बरबाद करना ठट्टा दिल्लगी नोहे ओखर बाद ओखर घर परिवार के का होही एला सोचके कदम उठाय के जरवत हे।सरकार ल घलव चाही के पीड़िति मनखे के बचाव बर कोनो ठोस कदम उठाये।मनखे मन कोनो कुकरी चिंगरी हो गे हे उंखर जिनगी के कोनो कीमत नी हे।जेखर उपर बीतथे तिही ह जानथे ओखर पीरा ल।बिना बिचारे कोनो ल मारना सताना दंड देना सबले बड़े अपराध जेखर सजा जरुर मिलथे चाहे कोनो रुप म मिले।

ललिता परमार
बेलर गांव, नगरी

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