Quantcast
Channel: गोठ बात Archives - gurtur goth
Viewing all 391 articles
Browse latest View live

बुद्ध-पुन्नी

$
0
0





बईसाख के अंजोरी पाख के पुन्नी के दिन ल बुद्ध-पुन्नी काबर कहे जाथे ? त एखर उत्तर म ये समझ सकत हन के आज ले लगभग अढ़ई हजार बछर पहिली इही दिन भगवान बुद्ध ह ये धरती म जनम धरके अईस, अउ पैतीस बछर के उमर म इही दिन ओला पीपर रूख के नीचे म बईठे रहिस त ओखर तपस्या के फल माने सच के गियान ह अनुभव म अईस, अउ इहीच्च दिन अस्सी बछर के उमर म वो ह अपन देह ल छोड़ के ये दुनिया ले चल दिस| तब ले बौद्ध धरम म ये दिन के बड़ महिमा हे | हिंदु धरम म घलो ये दिन ल बुद्ध पुन्नी के रूप म मनाय जाथे, काबर के भगवान बुद्ध ल हिंदू धरम म होय चोबीस अवतार में एक ठन अवतार के मान मिले हे|
भगवान बुद्ध ह सिद्धार्थ नाव धर के राजा शुद्धोधन अउ रानी महामाया के घर जनम धरीस, कुछ दिन बाद रानी महामाया ह अपन सरीर ल छोड़ के भगवान घर चल दिस, तब सिद्धार्थ ल ओखर मौसी मां गौतमी ह पालीस, ते पा के सिद्धार्थ ल गौतम नांव मिलिस| जनम के बाद एकझिन साधु-महात्मा ह राजा ल बताय रहिस हे के तोर लईका ह या तो बहुत बड़ परतापी राजा बनही या बहुत बड़े गियानी महात्मा| तब ले राजा ह गौतम ल महात्मा झिन बनय कहिके बड़ सुख म पालीस, अउ वोला साधु-महात्मा के संग झन मिलय अउ कोनो भी परकार के दुख के कारन ले ओखर सामना झिन होवय ये बात के बड़ धियान रखिस| गौतम जब सोलह बछर के होईस त ओखर राजकुमारी यशोधरा संग बिहाव कर दिस, कुछ बछर म राहुल नांव के एकझिन लईका घलो होगे, बड़ सुख म दिन बीतत रहिस हे, फेर होनी ल कोन टाल सकत हे, एकदिन गौतम ह घोड़ा-गाड़ी म अपन राज म घूमे बर निकलिस त का देखथे एकझिन बीमरहा आदमी ह कल्हरत रेंगत जावत रहे, त वो ह सारथी ल पूछथे, ये कोन हरे अउ ये ह काबर कल्हरत हे, त सारथी ह बताथे के ये आदमी ल बीमारी घेर लेहे अउ दरद म कल्हरत हे, र्सोंच म परगे के का महुं बीमार परहूं महुं ह दरद म कल्हरहूं, थोरकिन देर म एकझिन बुढ़वा आदमी ल देखिस, ओखर बारे म सारथी ले जानिस, अउ सोंचे ल धरलिस के का महुं ह बुढवा होहूं, ओखर बाद एकठन लास ल देख डरिस, तब सोंचिस के का महुं ह मर जहूं, अंत म एकझिन साधु ल देखिस, त अपन सारथी ल फेर पूछिस, ये कोन हरे, त सारथी कहिथे- ये ह साधु-महात्मा हरे, जे ह जीवन के सच ल जाने खातिर अपन घर बार ल छोड़ के तपस्या करे म लगे हाबय, तब गौतम ह सारथी ल पूछिस त का सहीं म ये साधु मन ल सच के पता चल जथे? त सारथी ह हां कहि देथे| अब गौतम ह रात दिन इही सोंच म रहय के ये सरीर ह एकदिन खतम हो जही, ये चकाचक जिनगी, ये जेन भी दिखत हे, सबो एकदिन खतम हो जही, ये सब झूठ हरे जेन दिखत हे, त जीवन के सच का हरे ? अईसनें सोंचत सोंचत एक दिन सच ल पाय खातिर घर-परवार ल छोड़ के हमेसा बर निकल जथे, अउ जंगल म जा के पुरा छै-बछर कठिन तपस्या करथे, अईसनहे एकदिन वो ह पीपर रूख तरी बईठे रहिथे, तब वोला जीवन के यथार्थ सच के गियान हो जथे, जेला संबोधि घलो कहे जाथे, अउ तब ले वोखर नांव ह गौतम ले गौतम बुद्ध पर जथे| सच के गियान ल पाय के बाद मानव जाति के कल्यान खातिर अपन अनुभव ल पुरा दुनिया म बगराय बर घुमथे| वोखर गियान के खास महिमा ये हे के वो ह जेन बात ल आज ले अढंई हजार बछर पहिली कहे रहिस हे, वो ह आज घलो सोला आना खरा उतरथे | ओखर अनुसार सच के गियान ल यदि पाना हे, त ये संसार म चार ठन सच्चाई हे, जेला मान के चलना परही- १, संसार म दुख हे, २, ये दुख के कारन- अंतस के चाहना अउ जलनखोरी हरे, ३, ये दुख ह अब्बड़ अकन हे, ४, ये दुख ले दुरिहाय के उपाय घलो हे|
ये चारो सच्चाई ल अनुभव म लाये बर भगवान बुद्ध ह हमन ल जउन उदीम करे बर कहे हे, वो हे- अस्टांग मारग म सरलग चलना| अस्टांग मारग म सार बात ये कहे हे- हमेसा सम-स्थिति म अपन सोंच ल रख के चलव, या हमेसा बीच के रद्दा ल अपनावव, माने- न तप म अति करव अउ न ही संसार ल भोगे म अति करव|भगवान बुद्ध ह आगे कहिस- ये बीच के रद्दा म चलत चलत अहिंसा,दया, सेवा अउ हमेसा सच बोलना ह हमर जीवन के परम धरम होना चाही, तभे सच के गियान ल अनुभव म लाये जा सकत हे | ये रद्दा म सिरिफ दुए परकार के साधक ह फेल होथे, १-जेन ह रद्दा म चले बर सुरूवाते नइ करय, २- जेन ह रद्दा म चलत चलत बीचे म रद्दा ल छोड़ देथे|
भगवान बुद्ध ल जब कोनो ये पुछ दय के- का दुनियां म भगवान हे ? तब वो ह चुप राहय, जवाबेच नइ दय, येमा ओखर सोंच ये राहय के जेन बात के उत्तर ल समझाये नइ जा सकय ओखर उत्तर देत समय चुप रह जाना चाही, इही जवाब ह अईसन सवाल के सबले बढ़िया जवाब होथे| लेकिन कई झन ओखर चुप रहई ल देख के ये कहि देथे के बुद्ध ह भगवान ल नइ मानत रहिस हे| फेर असलियत म अईसन बात नइ हे, भई जे चीज ह इंद्रिय गियान के पहुंच ले बाहिर हे ओला इंद्रिय मन ले कईसे जाने जा सकत हे|
भगवान बुद्ध के बताय रद्दा ह आज घलो सोला आना खरा हे, काबर के वो ह साधक के बुद्धि म जमे जम्मो कचरा ल सफाई करत करत बुद्धि ल निरमल बना देथे, या कहे के बुद्धि ल तरक ल तरक ले काटत काटत तरकतीत म पहुंचा देथे, जिहां सच के गियान ह बगबग ले साधक के अनुभव म आ जथे| कहे जाथे के भगवान बुद्ध के समय म बांकी बुद्ध के मुकाबला सबले जादा मनखे मन सच के गियान के अनुभव ल पईन| आज के जुग ह घलो घोर बुद्धि के जुग हे, त यदि आज के मनखे मन भगवान बुद्ध के बताय रद्दा म चलही त ये तय हे के जीवन के परमसुख सच्चा गियान ल पाय म बड़ असानी होही|

ललित वर्मा “अंतर्जश्न”
छुरा






The post बुद्ध-पुन्नी appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).


बेरा के गोठ : गरमी म अईसन खावव पीयव

$
0
0




जेवन ह हमर तन अऊ मन बर बहुतेच जरुरी हे।खानपियन ल सही राखबो त हमर जिनगी ह सुघ्घर रही।भगवान घलो हमर जनम के पहिली ले हमर खायपिये के बेवस्था कर देते।अभी गरमी के मऊसम चलत हे ऐ मऊसम म सबला खाय पीये के धियान रखना चाही।सबले जादा हमर काया ल गरमी म पानी के जरुरत पड़थे।तन अऊ मन ल ठंढा राखे के अऊ पोसक तत्व के बहुतेच जरुरत हे। एकरे सेती हमनल धियान रखना हे कि कोन जिनिस ल खायपिये म संघेरन।हमर सियान गियानिक मन गरमी के दिन म खायबर अऊ पियेबर जौन जिनीस ल बताय हे ओकर परयोग करना चाही।प्रकृति ह घलो मऊसम के अनुसार फर फूल अऊ सागभाजी के बेवस्था ल करथे।इही ल हमला समझना अऊ समझाना हे।सबो जिनीस हमर अरोस परोस म मिल जाथे,बजार ले बिसाय बर जादा नई परय।खायपिये के रुप म ऐला संघेर सकत हन।

1. लिमऊपानी–घर म नई ते आस परोस म लिमऊ मिल जाथे , रोज दू गिलास पानी म एकर रस मिलाके पी लेना चाही।एकर ले तन मन ठंढा रहिथे।
2. मही(छाछ)–मही म कैल्सियम, पोटेसियम , जिंक रथे जौन तन म फुरती लाथे। एक गिलास रोजीना पीये जा सकथे।एला खाय के पाछू पिये ले अऊ जादा फायदा होथे।छत्तीसगढ़ म महीबासी खाय जाथे।

3. खुसियार(गन्ना) रसा– गरमी के घुमई फिरई म पानी के कमती हो जाथे।घाम में घुमत बेरा एक गिलास खुसियार सरबत पी लेना चाही।

4. कलिंदर(खरबूज,तरबूज)– कलिंदर में 80 परतिसत पानी रहिथे ।एमा सबो बिटामिन बी1, बी2, बी5, बी6 ,पोटैसियम , सोडियम रहिथे । एला सरबत बनाके पीये जा सकत हे नई ते सीधा खा सकत हन।

5. पदीना सरबत– पदीना पान के रसा निकाल के सरबत बना के पीये ले गजबेच फायदा मिलथे। लू लगे म नान्हे लईका बर रामबान माने जाथे।

6. नरिहर पानी– नरिहर पानी म अड़बड़ अकन पदारथ रथे जौन हमर तन ल सुघ्घर ठंढा राखथे।

7. आमा के अमरसा / पना– आमा ह गरमी काटे के सबले बड़े फर आय।कच्चा अऊ पक्का दूनो आमा ह फायदा करथे। आया म आयरन अऊ बिटामिन रहिथे जौन हमर तनबर फायदा करथे। आमा के पना गरमी म बड़ फायदा करथे।

8. खीरा / ककड़ी– हमर जेवन म खीरा ककड़ी ल संघेरना चाही। बन सकय त रोजीना एक गिलास खीरा के सरबत बना के घलो पीना चाही।

9. बेल के सरबत– गरमी म हमर प्रकृति ह एक अमरित असन फर बेल देय हावय। एकर सरबत बनाके पीये ले कतको गरमी रथे ओ हा भाग जाथे।

10. कटहर– कटहर के फर गरमी म आथे। एला छत्तीसगढ़िया मन साग रांध के खाथे। बरबिहाव म कटहर साग ल अड़बड़ मागथे।गरमी म बीपी बाढ़े के जादा सिकायत रथे, कटहर खाय ले बीपी कमती हो जाथे।

11. तुमा(लौकी)– तुमा के तरकारी ह सबो मऊसम म मिलथे।कतको झन ऐला पसंग नई करय फेर एमा पानी के मातरा जादा होय ले सियान मन तुमा साग ल खाय के सलाहा देथे।

12. गोंदली(पियाज)– गोंदली ल तामसिक जिनिस कहे जाथे।ये ह गरमी लाथेफेर एला सलाद बनाके खाय म गजबेच फायदा मिलथे।

13. गुलकंद– एला जेवन करे के पाछू खाय जाथे।

अईसने किसम के अऊ जिनीस कांदाभाजी, अमारी भाजी, करमत्ता भाजी, लाल भाजी हावय जेन ल खाय ले बिमारी ले रोकथाम होथय अऊ ठंढा राखथे।संगे संग बताय हे कि गरमी म तेल अऊ मसालादार साग , मास, मछरी ,अंडा, दूध,दही, लेवना, के जादा खवई पियई नई करना चाही। काजू,किसमिस, बदाम (ड्राई फ्रूट्स) के परहेज करना चाही। चाय, काफी गरमी देवईया आय ओला बंद कर देय ले आधा बिमारी अईसने कमती हो जाथे ” जीयेबर खाना हे खायबर जीना नई हे” ।

हीरालाल गुरुजी” समय”
छुरा, जिला–गरियाबंद




The post बेरा के गोठ : गरमी म अईसन खावव पीयव appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

लगिन फहराही त बिहाव माढ़ही

$
0
0

बर बिहाव के दिन म जम्मों मनखे इहिच गोठ म लगे रथे, अऊ ठेलहा मनखे हा तो ये मऊका म जम्मों झन के नत्ता जोरे बर अइसे लगे रथे जइसे ओखर नई रेहे ले दुनिया नई चलही, इंजीनियर, डागटर ल घलो ऊखर मन के गोठ सुने ल परथे। छोकरी-छोकरा मन के दाई-ददा ले ज्यादा ओखर घर के सियान मन ल संसो रथे, ओमन तो छोकरी-छोकरा के काच्चा ऊमर ले पाछू परे रथे, ओमन सोचथे के परलोक सिधारे के पहिली नाती-पोता मन के बर-बिहाव देख लेवन। बड़ कन समाज म छोकरी घर छोकरा हा हांथ मांगे बर जाथे, ये परंपरा जुन्ना हरे, पहिली बर बिहाव म छोकरा के मनमर्जी राहय त ये परंपरा के सेतन कतको छोकरी ल बिन पसंद के छोकरा संग बिहाव करे ल परे, फेर अब जमाना उलट गे हे, अब छोकरी के मनमर्जी चलथे त अब इही परंपरा के सेतन छोकरी खोजत ले छोकरा वाला मन हा हलाकान हो जथे, काबर के नवा जुग म नवा-नवा नखरा हो गे हे। कोनहो करा छोकरा के नखरा त कोनहो करा छोकरी के। अब अइसन म ठेलहा मनखे किंजर-किंजर के मजा उड़ाथे त बुता काम वाला मनखे के मुड़ पीरा हो जथे। पहिली सोजहे में पारा परोस अऊ चिन-पहिचान के घर म नत्ता बना लेवय, वोहा तईहा के गोठ होगे। अब तो बिहाव के दू-तीन बछर पहिली ले जोड़ी खाप खाये अऊ अपन घर म मिंझर जाये तइसन छोकरी अंताजे जाथे, अऊ असल नजारा तो छोकरी देखे बर नवा कपड़ा-लत्ता अऊ नवा पनही पहीर के ऊखर घर पहुंचथे ततका बेर रथे, पहिली तो घर वाला मन आदर के संग बइठारथे, भीतर ले छोकरी के बहिनी हा आके परदा लगाथे अऊ परदा के पाछू ले झांक के छोकरा ल देख के लहुट जथे, छोकरा उही ल छोकरी समझ के खुश हो जखे, अऊ कई घंव तो सटका अऊ अपन संगवारी मन ल मोला छोकरी पसंद हे कइके घलो कही डरथे। छोकरा भले कतको नकटा राहय फेर ओतका बेर जम्मों लाज-सरम ओखरे भीतर हमा जाये रथे, सिधवा गाय सरीक मुड़ी ल गड़िया दे रथे कोनहो कही पुछथे ततकी बेर मुड़ ल उचा के दू भाखा जवाब देथे, जम्मों झन वो बपूरा ल आंखी बटेर के गोड़ के नख अऊ मुड़ के चुंदी ले देखत रथे, त बपूरा अतका तो लजाहिच, अब छोकरी के निकरे के अगोरा म दुनिया भर के गोठ सियान मन कर डारथे, इंहा के ठन स्कूल हे नोनी कहां पढे हे, इंहा के सरपंच कोन आय, फला-फला ल चिन्थस का, अऊ कते कते गांल म नत्तेदारी हे, इंहा के बाजार कब लगथे, भाई-बहिनी मन का करथे, जम्मों गोठ बात होथे फेर छोकरा छोकरी के बिसय म कोनहो घसलाहा मनखे जाय रथे तिही गोठियाथे नई ते ओखर तो गोठ होबे नई करय। बड़ अगोरा म छोकरी बिस्कुट अऊ मिच्चर धर के निकलथे, बईठक कुरिया म ओखर गोड़ राखते साठ फेरन लबली अऊ स्नो ममहाथे, पऊडर मुहु म अल्लिग दिखत रथे, छोकरी ल देख के छोकरा अपन होय भोरहा ल मने-मन हांसथे, सोंचथे के पहिली निकरे रीहिस तेला छोकरी समझ के हव कहूं सोचें रेहेंव, फेर अब येखर बर सोचे ल परही। अऊ ओती छोकरी हा पलेट ल टेबुल म मढ़ा के जम्मों झन के पांव परथे, ताहन सियान मन गाय-गरु छांटे सरीख परखे लागथे, गोड़ बने माढ़त हे के नही, आंखी कान बने हवय के नही, मोठ हे के पातर हे, धार मुहु हे के गोल थोथना हे, गोरी हे के बिलई हे, अऊ ताहन पेशी चालू होथे नोनी तोला रांधे-गढ़े ल आथे के नही, का पढ़े हस, कतका ऊंच हस, के भाई-बहिनी होथव, कतका प्रतिशत ले पास होथस, बिहाव के बाद नौकरी करबे का, अऊ गोत्र ल तो खच्चित पुछे जाथे, अऊ लफरहा मन हा तो तोला छोकरा पसंद हे के नही कइके सबके आघूच म पुछ देथे, छोकरी जम्मों सवाल के जवाब ल लजा-लजा के देथे, अऊ जेन हा नई लजावय तेन ल आज के आधुनिक जमाना में घलो छोकरा घर वाला मन कम पसंद करथे, इही करा हमर समाज के सच हा दिख जथे।
अब छोकरा के पेशी के बारी आथे छोकरा ल छोकरी के भाई, कका, नइते जीजा ह बुला के भीतर डाहन लेगथे, अऊ आघु म बईठार देथे, अब छोकरा के लजाय अऊ नई लजाय म ज्यादा फरक नई परय, जइसन छोकरी ले सवाल जवाब होय रथे वइसने छोकरा ले घलो होथे, फेर दू-चार ठन सवाल ऊपराहा पुछे जाथे जइसे कतका कमाथस का करथस, तुमन बांटा होगे हव का, हमर नोनी ल कहां राखबे, अऊ सबले फंसऊला सवाल की पीथस-खाथस का? ये सवाल के जवाब पहिली जम्मों छोकरा पीये ते झन पीये नहीच म देवय, फेर अब कतको झन कभू-कभू चलाय ल परथे कही देथे। अऊ छोकरा बड़े नौकरिहा हे त ये सब सवाल जवाब ल औपचारिकता म पुछे जाथे, अऊ छोटे नौकरी, धंधा, किसानी वाला मन ल तो पुछ-पुछ के पछिना छोड़वा डरथे। अऊ कोनहो बेरोजगार होगे त कोन जनी बिचारा ल छोकरी मिलही घलो के नही। इही हाल नौकरिहा छोकरी मन संग होथे, ओमन अपन मन के छोकरा छांट के अऊ जब मन आथे तब बिहाव करे के सोंचथे, ओमन अपन दाई-ददा के घलो नई सुनें, अऊ कतको छोकरी मन के ऊमर बाढ़ जथे फेर बिहाव नई हो सकय। अब अतका होय के बाद ऊंहा ले बिदा लेके छोकरा मन लहुटथे, त मोटर म गोठ-बात शुरु होथे, सटका हा छोकरा ल कथे कइसे जी तोला छोकरी मन अईस के नही त बपूरा लजा के कथे तुमन जानो मोला झन पुछो अऊ कतको झन ठेठ हाँ, नही घलो बता देथे। त दुसर कथे मोला तो एक कन आंखी टेड़गा लागिस, त फेर एक झन कथे मोला तो मोठ देहे हे त अलाल होही लागथे, हमर घर के बुता ल सकही के नही ते! त फेर एक झन मोठ नई हे यार मोला तो पातर लागिस, अऊ बिहाव के बाद सब सपोटा हो जथे, कोनहो पढ़ई ल कम हे कथे, त कोनहो रंग ल सांवली हे कथे, चार झन के मुहु ले चार गोठ निकलथे, अऊ घर म बइठे अपन नोनी ले सुग्घर छोकरी म घलो कमी नजर आ जथे, अऊ ये बात तय होथे के अभी दू चार जगा अऊ छोकरी देख लिया जाय। छोकरी वाला मन घलो कम नई राहय, छोकरा कोनहो बड़े नौकरी, अऊ जायदाद वाला नइये त बारा बहाना करके टरका देथे। अऊ अतका अकन तामझाम धरे के धरे रही जथे।
बर बिहाव म सटका, ढेड़हा-ढेड़ही, अऊ सारी-सारा, समधी-समधीन के जबर बुता रथे, येमन बिहाव मढाये ले लेके बिहाव के सिरात ले जम्मों बुता संग हंसी ठिठोली घलो करके बिहाव म रंग जमावत रथे। येखर छोड़ अऊ कई ठन बात हा बिहाव टोरे, जोरे बर बुता करथे, कोनहो मूल,जेठ,मंगली-मंगला के गोठ करथे त कतको झन पंचांग के बहाना करथे, कोनहो चरितर ऊपर सक करथे, त उढरिया भागे रथे तेखर भोगना ल परवार भोगथे, ये ऊपराहा उदीमेच हा हमर समाज के ढकोसला हरे, ये गोठ हा हमर बर हांसे के बिसय हो सकत हे फेर कतको परवार इही म सिरजथे-उजरथे, हमर समाज जतकी आघू बढ़त हे ओतकी पछवाय दिखथे। सिरतोन कबे त भगवान ऊपर ले जोड़ी बना के भेजे रथे, जब जेखर लगिन फहराही तेखर बिहाव माढ़ही।

ललित साहू “जख्मी” छुरा
जिला-गरियाबंद (छ.ग.)
9993841525

The post लगिन फहराही त बिहाव माढ़ही appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

बिचार : नैतिकता नंदावत हे

$
0
0




आज में ह बजार कोती जात रहेंव, त रसता म मोर पढ़ाय दू-झिन लईका मिलिस, वोमा के एक झिन लईका ह मोला कहिथे- अउ गुरूजी, का चलत हे ? त तूरते दूसर लईका कहिथे- अउ का चलही जी, फाग चलही| अतका कहिके दुनोंझिन हांसत हांसत भगागे, में ह तो ये सब ल देख-सुन के सन्न रहिगेंव, देख तो! ये लईका मन ल, गुरूजी ल घलो नइ घेपत हे, मोर करा ये हाल हे त दूसर करा अउ का नइ कहत-करत होही| एक हमर जमाना रहिसहे, जब गुरूजी ल दुरिहा ले आवत देखन त चुप्पे कोनो कोती लुका जन, नहिते दूसर गली म भाग जन, अब्बड़ डर लागय ग गुरूजी ले |देखते देखत अईसन बदलाव कईसे आगे, गुने ल परही|का ये बदलाव ह समय के मांग हरे, के का लईका मन भटकत जात हे |
बहुत सोंचे के बाद मोला तो एक्केठन बात ह समझ म आथे, वो हे- नैतिकता म गिरावट आ जाना| त ये नैतिकता म गिरावट ह कईसे अईस होही, ये बात म थोरकिन बिचार करे के जरूरत हे — लईका मन सबले जादा अपन समय ल अपन परवार म बिताथे, ओखर बाद ईस्कुल के नंबर आथे|आज परवार के रहन-सहन अउ बात-बेवहार म बिकास के सेती भारी बदलाव दिखथे, घर-घर म आज टेलीविजन पहुंच गेहे, जेमा रोज पस्चिमी-कचरा परोसे जात हे,जेमा सिरियल,कारटून, फिलिम,बिग्यापन परमुख हे, समाचार घलो म हत्या, अपराध, बलत्कार जइसे नकारात्मर खबर जादा रहिथे, जे ह हमर धरम-बेवहार अउ संस्कृति ल बड़ नकसान पहुंचावत हे|वईसने आज हर हांथ म मोबाईल पहुंच गेहे, जेमा आनी बानी के संदेस भेजे अउ पढ़े जात हे, जईसे हलो, हाय,कोनो रिस्ता ल आहत करत चुटकूला अउ मजाक, अलकरहा मजाक| ये सब आम बात होगे हे, नेट के महिमा तो अउ बड़ भारी हे, ये सब ह हमर बेवहार-संस्कार अउ संस्कृति ल बड़ नकसान पहुंचावत हे|
ईस्कुल म घलो अभी सिक्छा के अधिकार आय हे, जेमा नवाचार करे जात हे के लईका मन ल बिना डर भय के खेल-खेल म सिक्छा देना हे, एखर पाछू तरक ये दे गेहे के लईका मन खेलत खेलत हुदुक ले सीख जथे, त गुरूजी मन घलो लईका बन के लईका संग खेलत हे, ये बिधि ह सीखे सीखायबर तो बहुत अच्छा हे, फेर अनुसासन ल बिलकुल खतम कर देहे, लईका मन अब गुरूजी ल नइ घेपत हे, घेक्खर बन गेहे, गुरूजी जघा कांही भी बोल देथे, जेखर बानगी ह ये लेख के सुरूवात म दिखे हे|
परवार अउ ईस्कुल दुनो जघा हमर बिचार-बेवहार म पहिली ले बड़ फरक आय हे, जेखर नकसान हमर परवार, समाज अउ देस ल होवत हे, इही नैतिकता हरे जेखर सेती हमर देस ह बड़ अकन जाति धरम के लोगन संग एक सूत म बंधे हाबय, इही नैतिकता हरे जेखर ले हमन उमर, पद अउ नाव के के हिसाब से अपन बेवहार ल निभाथन, इही नैतिकता हरे जेखर सेती पुरा दुनिया के महामानुस मन हमर देस के संस्कृति के अब्बड़ बड़ई करथे| मोला लागत हे के हमर एकता के ये सूत ल टोरे खातिर हमर संस्कृति ल छोटे समझईया ये पस्चिमी सोंच के लोगन मन आधुनिकता के आड़ म हमन ल चौंधिया के हमर एकता रूपी पेड़ के जर ले जुरे नैतिकता के माटी ल बड़ जोर लगा के खिसकावत हे| जेखर असर हमर लईका मन के चाल ढाल म दिखत हे| आज लईका मन बड़े मन ल घेपय नहीं, पांव परेबर कहिबे त आनाकानी करथे, उंकर बेवहार म अभद्रता, गाली-गलौच ह आम बात होगे हे| आज बड़े मन घलो एखर कू-परभाव म फंसत जात हे, जे खातिर आज परवार अउ समाज म बिखराव, धरम के पाछु झगरा, बाल सुधार घर, बुढ़वा आश्रम मन बाढ़त जात हे|
आज ये नैतिकता अउ नैतिक सिक्छा के बारे म गंभीरता ले धियान दे के जरूरत हे, यदि लईका मन जेमन हमर देस के अवईया करनधार ये एखर सिक्छा-दिक्छा के खातिर हमर अईसनहे लापरवाही चलत रईही त ये मन अउ जादा ढिल्ला हो जही, जेखर ले हमन ल पाछू बड़ पछताय ल परही| त आप मन ले मोर बिनती हे के यदि हमला हमर भविस्य ल सुघ्घर गढ़ना हे त परवार अउ ईस्कुल दुनो जघा नैतिक सिक्छा ल बढ़ावा दे बर सरकार जघा अपन अवाज ल पहुंचाय ल परही, अउ घर म लईका मन का करत हे, टेलीबिजन म का देखत हे, मोबाईल म का करत हे एमा घलो परवार के बड़े मन ल सावचेत रहे ल परही, संगेसंग ईस्कुल कोती चलत सिक्छा के अधिकार कान्हून म घलो सुधार करवाय ल परही, काबर के अनुसासन मुक्त वातावरन ह लईका का कोनो ल भी उच्छृंखल बना देथे| लईका बिगड़गे, तहां ले हमर भविस्य घलो बिगड़गे |

ललित वर्मा”अंतर्जश्न”
छुरा




The post बिचार : नैतिकता नंदावत हे appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

महतारी दिवस 14 मई अमर रहे : महतारी तोर महिमा महान हे

$
0
0




महतारी शब्द के अर्थ ला संसार के जम्मो जीव-जन्तु अउ परानी मन हा समझथें। महतारी के बिन ए संसार के कल्पना करना बिलकुल कठिन हे। महतारी हमन ला सिरिफ जनम भर नइ देवय बलकि करम ला घलाव सिखाथे। वो करम जेखर बिन हमर एक पाँव रेंगना असंभव होथे। मया पियार दुलार के संगे-संग अमोल संस्कार ला घलो सिखोथे। जिनगी जीये के बीज बोथे। नौ महीना लइका ला अपन ओदरा मा बोह के सरी बुता-काम ला सरलग करइया एके झन जीव ए जगत मा हे जेखर नाँव हरय महतारी हावय। वो ए पीरा ला अपन लइका के मुसकान मा निछावर करइया अद्भुत जीव हरय। महतारी, अम्मा, माँ, माई, दाई ए सब एके झन के मया भरे नाँव हे। अपन परान ले जादा अपन लइका के परान ला जादा कीमती समझइया महतारी हा होथे अउ कोनो हा नइ होय। महतारी के मया भरे अँचरा हा महतारी के परिभासा होथे। महतारी हा जिनगी देवइया देवता हरय, एखरे सेती महतारी के मान सरग ले बढके हावय। देवता घलाव मन अपन जनम देवइया दाई के माँथ नवाथें। महतारी वो मया-दया के फुलवारी हरय जेमा के फूल कभूच नइ मुरझावय। महतारी ममता के मूरत हरय। महतारी के ममता हा वो महासागर हरय जौन कभू नइ अटावय।
वइसे तो अतका जादा महतारी उपर लिखे/कहे जा चुके हे मोर लिखना हा काँहीं नइ हे उंखर आगू मा। कोनो महतारी ला देवी ता कोनो महतारी ला भगवान के सरूप मानथें। इंखर कहना हा कोनो गलत घलाव नइ हे। महतारी हा घर चलाथे ता देवी लछमी होते, रँधनी घर मा अन्नपूर्णा होथे, अपन लोग-लइका ला सिखाथे-पढाथे ता सरसती सरूप होथे अउ बिपत ले जूझे बर देवी दुरगा होथे। जइसन समे परथे तइसन रूप मा महतारी हा अपन आप ला रंगथे अउ दिखथे। भगवान ला तो कोनो देखे नइ हे फेर मोला अइसन लागथे के भगवान हा जरुर महतारी बरोबर होही जौन बिना सुवारथ के सबके सेवा करथे। धरती मा भगवान के कमी ला महतारी हा अपन इही सेवा भाव ले पूरा करथे। महतारी बङे फजर उठ अधरतिया के होवत ले बिन थके-हारे अपन परवार के सुख-सान्ति बर समरपित हरिथे। घर-दुवार, खेत-खार, आफिस अउ लइका-सियान के सकला-जतन, देख-रेख एके झन महतारी हा पूरा करे मा अकेल्ला समरथ रथे। वोला काखरो मदद के जरुरत नइ परय फेर सबला महतारी के मदद के जरुरत खच्चित परथे। कोई भी जिमेदारी होवय वोला ईमानदारी ले निभाय मा महतारी के बरोबरी कोनो नइ कर सकँय। तियाग-तपस्या,मया,ममता करुना, दया,जप-तप,भक्ति अउ बिसवास के जीयत मूरती होथे महतारी हा। महतारी के बखान ला शब्द मा करना असंभव हावय। ए हा वो जीवनदायिनी हवा हरय जेखर बिन संसार के एको जीव जिन्दा एक छिन नइ रही सकँय।
महतारी हमर रूप रंग अउ व्यकितत्व के चिन्हारी होथे,एखर बिन ए जग मा हमर अवतरन अउ पहिचान नइ हो सकय। दाई हमर हिरदे ले जुरे रथे। वो हमर छँइहाँ बरोबर सदा आगे-पाछू रहिथे। सुख-दुख, बने-गिनहा बेरा मा हमर संग मा हमर हाथ धर के खङे रथे। दाई हमला कभू अकेल्ला नइ छोंङय भले हमन वोला अकेल्ला छोङ देथन। जिनगी के इस्कूल के पहिली गुरु हमर महतारी हा होथे जौन हा हमला जीये के सहीं अन्दाज सिखाथे। अपन सिखोना ला लइका कतका अउ कहाँ तक पालन करथे एकरो घरी-घरी धियान देथे दाई हा। महतारी अपन अनुभव के खजाना ला फोकट मा अपन लइका उपर लुटाथे ताकि लइका उपर काँही अलहन झन आवय। दाई ला सब जिनिस पता रहिथे के मोर लइका बर का सहीं हे अउ का गलत हे। एकरे सेती महतारी हा सबले जादा समे अपन घर-परवार ला देथे। हमर महतारी हमर मन के सबले बङे हितवा अउ प्रशंसक होथे। वो हा अपन लइका-सियान अउ घर के उपलब्धि मा सबले जादा खुश होथे अउ ओखर अथक प्रचार-प्रसार घलाव करथे। दाई हमला सदा सत मारग मा चले के सुग्घर सीख देथे जिनगी भर। आसा अउ बिसवास के पाठ हर बखत पढाते महतारी हा। महतारी के सिखोना ही जिनगी के डहर ला सरल अउ सुग्घर बनाथे। दाई जीयत भर इही आस मा जीथे के मोर लइका मोर बताय रद्दा मा रेंगय अउ दुनिया मा नाँव कमाय। दाई कभू नइ चाहय के मोर लइका हा गलत संगत मा परके गलत करम मा बूङय। एकरे सेती दाई हा रात-दिन चोबीसो घन्टा लइका के संसो अउ आरो करत रथे। लइका ला आँखी-आँखी देखत रहीथे।
महतारी के महिमा ला भगवान घलाव पार नइ पा सके हे। बङे-बङे गियानी-धियानी, संत-महात्मा अउ बिद्वान मन घलाव दाई के हिरदे ला समझे मा फेल खागें। दाई जतका कोंवर होथे ओतके कठोर घलाव होथे। महतारी शब्द हा एकठन जादू बरोबर लागथे जेखर नाँव लेते साठ सबो दुख-पीरा हा गायब हो जाथे। अइसे नो हे के महतारी एक अबूझ पहेली हरय। महतारी ला दिल मा जघा देले सबो अपने आप समझ आथे फेर दिमाग मा राखे मा अउ मुसकुल हो जाथे। ए पबरित रिश्ता के डोर दिल ले जुरथे ता जादा मजबूत होथे अउ दिमाग ले जोरे मा ओतके कमजोर होथे। महतारी के ममता अपन लइका के जतन मा जिनगी भर मासूम रही जाथे अउ लइका कब बाढथे पता नइ चलय। इही कारन महतारी बर ओखर बुढुवा बेटा घलाव नान्हे लइका लागथे। इही महतारी के ममता के आरुग भाव हरय जौन हा जिनगी मा बर के छँइहाँ बरोबर जुङवास करथे। दाई ले ए जिनगी सबल बनथे।
महतारी के महत्तम जिनगी मा उही बने बता सकथे जेखर जिनगी मा महतारी के कमी हावय। जेवन के महत्तम ला अघाय मनखे हा जादा बने ढंग ले बता सकय जतका लाँघन मनखे बता सकथे। दाई हा दरद के नाँव हरय फेर लइका ला पखरा कस पोठ बना के जिनगी के रद्दा मा रेंगाथे। महतारी ले हमर चिन्हारी हे, ए जिनगी हा महतारी के अभारी हे। परवार मा मेल-मिलाप के मजबूत पुलिया महतारी हा होते,एखर बिन परिवार बगर जाथे। महतारी सबो ला एकमई राखथे अपन मया, ममता अउ दया ले। आज जरुरत हे महतारी के मान अउ महत्तम ला समझे के। जइसे रुख-राई मन हमर बिन जी सकथे फेर हमन बिन रुख-राई के एक छिन नइ जी सकन वइसने महतारी के बिन हमन नइ जी सकन, महतारी हमर बिन जी सकथे। महतारी के जघा कोनो आसरम मा नइ हे हमर घर-अँगना,हमर हिरदे मा हावय। महतारी बिन जिनगी के कोनो मोल नइ हे, कोनो चिन्हारी नइ हे।।

कन्हैया साहू “अमित”
परसुराम वार्ड~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9753322055/9200252055




The post महतारी दिवस 14 मई अमर रहे : महतारी तोर महिमा महान हे appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

बेटी ऊपर भरोसा रखव

$
0
0

गांव के रंगमंच म रतिहा 8 बजे जेवन खा के सकलाय के हांका परत रहिस ।आज रमेसर के बेटी के आनजात होय के निपटान के बैइठक हे। रमेसर के बड़े बेटी कामनी ह पऊर कालेज पढ़ेबर सहर गय रहिस। रगी (गरमी) छुट्टी म आईस त मांग म सेंदुर, हाथ म चूरी पांव म माहुर लगा के दमांद धर के आगे।गांव म आनी बानी के गोठ होय लागिस। समेसर गांव समाज म अपन पीरा ल राखे खातिर बईटका बलाय रहिस।रतिहा सबो सियान मन लईकामन के ऊमर, राजीनामा ले बिहाव अऊ सरकारी पंजीयन के जनाकारी कर ऊंकर बिहाव ल सही मानके संगे जिनगी बीताय बर फईसला कर दिन। बिहनिया रामकुमार जब तोरन घर चाय पियेबर गईस,तब देखथे तोरन माथा धर के मुड़ी गड़ियाय बैईठे हे। भऊजी ह रामकुमार ल बताईस कि रतिहा बईटका ले आय के पाछू ले अईसने होय हे। बने खोधर के पूछिस तब तोरन बताईस, रामकुमार भैईया पऊर ले मोरो दू झन बेटी मन ल दूसर सहर म अकेल्ला भेजे हंव। बड़े बेटी डाक्टरी पढ़ही अऊ मंझली ईंजीनिरिंग करही। अवईया बच्छर म छोटे बेटी ह घलो सहर जाय बर तियार हे।फेर कामनी के हाल ल देख सुन के अऊ आज के बेरा देखत मोला कहीं रद्दा नई दिखत हे।काय करंव तैईसे जी लागत है।रामकुमार कहे लागिस सुन भाई तोरन , पहिली के सियान मन कहाय “कालेज जाय काल कराय” फेर आज अइसन नई हे ।लोग लईका मन घर के संस्कार ले घलाव आगू बढ़थे।सबो लईका के मति अलग होथे। तोर बेटीमन बने संस्कार पाय हे। आज दुनिया में बेटी मन सबो कोती नाम कमाथे अऊ बेटा मन सही बुता करत हे। मास्टर,डाक्टर,इंन्जीनियर ,पुलिस, तहसीलदार, कलेक्टर अऊ पायलट तक बनत हे।चंदा म पहुंच गेहे। राजनीति म परधानमंतरी अऊ रास्टरापती घलो बन गेहे।बेटी जतका पढ़ सकय ओतका पढ़ाना चाही।बेटी ल पढ़ाय के संगे संग संस्कार अऊ नानम परकार के कला घलो सिखाना चाही जौन ओला अपन परवार म मान देवाय।नारी म ममता , नांव के गुन भगवान ह अलगेच देय हे । हां, नऊकरी करे के बेरा म बिचार अलग अलग हो सकत हे। एक जैन मुनि नारी के सिच्छित होय ल बने कहात रहीस फेर नऊकरी बर जरुरत म करेबर सुझाव देत रहीस।नऊकरी वाला नई ते बेपार वाला दमांद मिले ले बेटी ल नाऊकरी झन कराव। बेटी परवार के मान बढ़ईया सबो नत्ता ल बटोरईया हरे।हमन अपन बेटी ऊपर भरोसा रखबो तभे तो आगू बढ़ा पाबो। हमर जिला अस्पताल के बड़े डाक्टरिन बंगाल परांत ले आय ,जिला के अपर कलेक्टर उत्तर परांत के हरय। मितानिन सुपरवाईजर दीदी आने जिला ले इहां आय हे।पर प्रान्तिक बेटी मन पढ़े अऊ नऊकरी करेबर छत्तीसगढ़ आथय,अईसने छत्तीसगढ़ के बेटी मन दूसर परांत म जाथय। मोला देख मोर बेटी रिंकी के दाखिला मैं भारत देस ले बाहिर परदेस म कराय हंव।ऊहां मोर दाई के सगा न ददा के तभो ले पढ़े बर भेजे हौं। बेटी पराया होथे फेर पढ़ाय लिखाय के जिम्मेवारी हमर आय , अईसन झन करव। बेटी ऊपर भरोसा रखव।

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा,जिला–गरियाबंद
8720809719

The post बेटी ऊपर भरोसा रखव appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

नमस्कार के चमत्कार

$
0
0

हमर पुरखा-पुरखा के चलाय मान-सम्मान परमपरा मा सबले जादा एक दुसर के अभिवादन ला महत्तम दे गे हावय। ए परपपरा हा आज घलाव सुग्घर चले आवत हे फेर चाहे एखर रकम-ढकम हा बदलत जावत हावय। हमन ए अभिवादन परमपरा मा देखथन के एक दुसर ला नमस्ते या नमस्कार करथन फेर एखर का अरथ हे सायदे जादा झन मन जानथन। आवव आज ए लेख के माधियम ले जाने के परयास करबो के अभिवादन मा नमस्ते कहे के का मतलब हावय।
हिन्दू धरम सास्त्र मन के हिसाब ले ले अभिवादन के कुल पाँच परकार होथे अइसे कहे जाथे। एमा सबले परमुख हे नमस्ते या नमस्कार। नमस्कार ला तो कई परकार ले देखे अउ समझे जाथे। संस्कृत सब्द के रुप मा एखर अरथ ला अइसन रूप मा समझे जा सकथे:- नम:+असते। ए मेर नम: के अरथ होथे नव गे, झुक गे अउ असते के अरथ होथे वो मुँङी, वो सिर जौन हा गरब अउ गुमान ले भरे हे। एखर मतलब इही होथे के मोर अहंकार ले भरे सिर हा आप मन के आगू मा नव गे, झुक गे। नम: के एकठन अउ अरथ अइसन हो सकथे के न+मे यानि के मोर नहीं सब आपके हे।
अभिवादन के पाँच परमुख परकार अइसन हे।
1- प्रत्युथान- ककरो सुवागत मा उठ के खङा हो जाना।
2-नमस्कार- दुनो हाँथ जोर के सत्कार करना।
3-उपसंग्रहन- अपन ले बङे-बुजुर्ग अउ गुरुजी मन के पाँव परना।
4-सास्टाँग- पाँव, माँङी, पेट, मुँङ अउ हथेरी के बल भुँइयाँ मा सुत के सम्मान करना।
5- प्रत्याभिवादन- अभिनंदन के अभिनंदन ले जवाब देना।

ए पाँच परकार के अभिवादन पुरखा-पुरखा ले चले आवत हावय। धीरे-धीरे एहू मन हा बिदेसी परेम के कारन नंदावत जावत हे। आजकाल हमन हा पयलगी, प्रणाम अउ पाँव छुवे ला भुलावत जावत हन। एखर जघा मा हाय, हलो, गुडमारनिंग अउ गुड नाईट कहे ला धर ले हन। अइसन सब्द मन के अरथ अउ अनर्थ कुछू काँहीं के पता नइ चलय। बस एक दुसर के देखा सीखी मा नकल करत चले जावत हन। पता नहीं ए नकल संस्कीरति हा हमला कहाँ अउ कती ले के जाही।
पाँव, पयलगी करे ला छोंङ के माँङी अउ जाँघ ला छु के छाती मा हाँथ लगाथें। अइसन करनी हा बङ अलकर लागथे देखे भर मा। ए सब बिदेसी फेसन के परभाव हरय जौन हमर पुरखा के पबरित संस्कीरति ला पाछू धकेले के उदिम हरय। नमस्कार के जघा मा सरी संसार भर मा हाँथ मिलाय अउ हलाय के उटपटांग संस्कीरति के चलन हा बाढत हावय। हमर भारत भुँइयाँ हा घलाव ए छूत के बेमारी ले नइ बाचे हे। चितरी कस चपलत हे हमर नमस्कार संस्कार के सोनहा फसल ला।
नमस्कार सब्द हा संस्कृत के नमस सब्द ले जनमे हावय जेखर अरथ होथे ए आत्मा हा दुसर आत्मा के आभार परगट करना। नमस्कार करे के सइली भले जुन्ना होगे हावय फेर एखर पाछू मा छुपे बैज्ञानिक रहस्य बहुते हावय। हमन जब भी अपन दुनो हाँथ ला जोर के नमस्कार करथन ता अपन छाती के आगू मा जोरथन जिहाँ अनाहत चक्र इस्थापित होथे। ए चक्र हा मया, परेम अउ दया ला उजागर करथे जौन हा हमर संपर्क भगवान ले कराथे। एखर सेती नमस्कार के समय ए हाँथ जोरे के प्रक्रिया ला पूरा करना चाही। अइसन करे ले मनखे बीच मा मनमोटाव हा दुरिहाथे अउ मया-परेम हा बाढथे। नमस्कार करे ले हमन मनखेमन के चहेता तो बनबोच फेर हाँथ जोरे ले भगवान के घलाव दुलरवा बने के मउका मिलथे। एखर सेती दुनो हाँथ जोर के सादर नमस्कार करना चाही।
नमस्कार करे के सहीं तरीका- सोज खङे होके अपन दुनो हाँथ ला एक सीध मा लान के साँटना चाही। अंगरी मन हा एक सँघरा जुङे रहय अउ अंगठा हा थोरिक दुरिहा छट्टा मा रहय। धीर लगा के अपन दुनो जुरे हाँथ ला अपन छाती के तीर मा लान के नमस्ते कहत, बोलत अपन मुँङ ला थोरिक नवाना चाही।

नमस्कार मन, बचन अउ सरीर ए तीनों मा से कोनो एक ठन माधियम ले करे जाथे। नमस्कार करत समे हथेरी ला दबाय ले या फेर जोरे ले हिरदे चक्र अउ आज्ञा चक्र मा सक्रियता आथे जेखर ले जागरन बढथे। ए जागरन ले मन सान्त अउ आत्मा मा परसन्नता आथे। एखर संगे-संग हिरदे मा ताकत आथे अउ डर-भय हा पल्ला भागथे। हमर देस मा नमस्कार करई हा एक मनोबैज्ञानिक पद्धति हरय। नमस्कार करत समे हमन हाँथ जोर के जोरदरहा बोल नइ सकन, जादा गुस्सा नइ कर सकन अउ एती-तेती भाग नइ सकन। नमस्कार,पयलगी करे ले हमर आगू मा खङे मनखे हा अपनेच आप बिनम्र हो जाथे। हमर भाव-भजन ला देख के वोहू हा एकदम सोजबाय सिधवा बन जाथे
नमस्कार करे के महत्तम अउ फायदा- नमस्कार या फेर पयलगी करई हा एक ठन मान-सम्मान हरय, एक संस्कार हरय पाँव परई हा एक यौगिक प्रक्रिया हरय। अपन ले बङे-बुजुर्ग मन ला हाँथ जोर के नमस्कार, प्रणाम करे ले घलाव बैज्ञानिक महत्तम हावय। नमस्कार के अध्यात्मिक महत्तम घलाव हावय। जेवनी हाँथ अचार याने धरम अउ डेरी हाँथ विचार याने दरसन के होथे। नमस्कार करत समे जेवनी हाँथ अउ डेरी हाँथ ले जुङथे। देंह के जेवनी पार इङा अउ डेरी पार पिंगला नाङी हा होथे। अइसन मा नमस्कार करत बखत इङा हा पिंगला के तीर मा पहुँचथे अउ मुँङी हा सरधा ले नव जाथे।

नमस्कार करत समे हाँथ जोरे ले सरीर के लहू-रकत,नस नस मा सुग्घर प्रवाह आ जाथे। मनखे के आधा सरीर मा सकारात्मकता के समावेस हो जाथे। कोनो ला प्रणाम करे ले आसिरबाद मिलथे अउ उही आसिरबाद हा हमर बिपत ले जुझे बर बल बनथे। आसिरबाद हा धन-दोगानी, रुपिया-पइसा मा नइच मिलय। ए आसीस के अनमोल खजाना हा सरधा ले मुँङी नवा के, हाँथ जोर के पयलगी करे ले फोकटिहा मा मिलथे। काखरो से मिलत समे हमला अपन दुनो हाँथ एक सँघरा जोर के नमस्कार करना चाही। रोज कोनो ना कोनो मनखे ले हमन मिलथन या फेर हमर ले मिलथें, जेला हमन नमस्कार करथन या फेर वो हा हमला नमस्कार करथे। कभू भी अपन एक हाँथ ले नमस्कार नहीं करना चाही ना अपन घेंच ला हला के नमस्कार करना चाही। हमला हमेसा सदा दुनों हाँथ ला जोर के ही नमस्कार करना चाही एखर ले हमर आगू वाला मनखे के मन मा हमर प्रति अच्छा भावना के बिकास होथे। नमस्कार ला औपचारिक अभिवादन नइ समझना चाही। अइसन ढंग ले करे गे नमस्कार के चमत्कार हमन ला अपने आप दिखही। नमस्कार हा हमर भारतीय संस्कार के अधार हरय, एखर अस्तित्व ला बचाय के उपाय हर हाल मा करना हमर पहिली कर्तब्य हरय। हमला हाय हलो ला छोङ के दुनो हाँथ जोर के नमस्कार करना चाही।

कन्हैया साहू “अमित”
परसुराम वार्ड भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9753322055

The post नमस्कार के चमत्कार appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

छत्तीसगढ़ी गोठियावव अऊ सिखोवव –बेरा के गोठ

$
0
0

ऐसो हमर परोसी ठेकादार पवन अपन टूरी अऊ टूरा ल 18 किमी दूरिहा सहर के अंगरेजी इस्कूल म दाखिला कराईस। ऊंखर लेगे बर बड़का मोटर (बस) इस्कूल ले आही कहिस।नवा कपड़ा, बूट, पुस्तक कापी, झोरा( बैग ) जम्मो जिनिस बर पईसा देय के इस्कूल ले बिसाईस हे। पवन के गोसाईन ह बतावत रहिस उहां पैईसच वाला धनीमानी मनखे , अधिकारी, मंतरी मन के लईका मन पढ़थे। रोजीना नवा नवा कलेवा जोर के भेजे बर कहे हे। इस्कूल म लईका मन अंगरेजीच म गोठियाही कहात रहिस। हमन तो ठेठ छत्तीगढ़िया आवन । कोन जनी कईसे पढ़ई चलही।पवन ठेकादार के कार डरावर नकुल के टूरी घलो पढ़े बर ऐसो गांव के इस्कूल जाही।ओकर टूरी बड़ चटरी।इस्कूल जाय के पहिलीच ओला सौ तक गिनती , अनार, आम, ए बी सी डी सबोच जानडरे हे,चटर चटर सुना देथे।नकुल बड़ गुमान करथे अपन बेटी ऊपर फेर अपन इस्थिति जानथे। नकुल एक दिन ईलाज करायबर अपन गोसाईन संग बड़का अस्पताल गय रहिस।उहां के बड़का डाक्टरिन ल अलवा जलवा टूटहा फूटहा छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियात सुन दूनो परानी हांस डरिस। डाक्टरिन पूछिस- काबर हांसथव। नकुल कहिस- तुंहर अलकरहा गोठ सुनके हांसी आ जाथे डाक्टरीन । डाक्टरिन कहिस- मैं बड़का सहर के अंगरेजी इस्कूल म पढ़े हंव।घर म कोनो छत्तीसगढ़ी नई बोलय।मोर गोसईया बड़का इंजीनियर हे, वहु बड़े सहर म पढ़े हे । छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाय नई जानत रहिस। हमर बदली एती होईस तब मरीज मन हमेड़ी (हिंदी) नई जानय। अपन रोगराई ,पीरा छत्तीसगढ़ी म बतावय त ओला हमुमन समझबूझ नई सकन, ऊंखर ईलाज करे म दिक्कत होवय।तब हमर कम्पोटर ललित बीच म आके बुझावय।हमर गोसईया दऊरा जाथय उहां मजूर मिस्तीरी मन छत्तीसगढ़ीच गोठियाथे। कतको मन कामबुता म दिक्कत, तनखा पगार , मेट, मुंसी के बेवहार अऊ सिकायत बतावय। आधा समझाय आधा नई समझाय। दूसरईया घनी फेर ऊहीच गोठ। एक दिन हमन दूनो परानी किरया खायेन , कुछू उदीम करके पांच महिना म छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाय बर सीखबो।हमन घर के बाहरे बटोरे बर माईलोगिन रखेन। ओखरे संग छत्तीसगढ़ी म गोठियांव। सरकारी गाड़ी के डरावल तो रहिस फेर घर के कार बर गांव ले डरावल बलायेन।अस्पताल ले छुटे पाछू बजार हाट होवत आवंव। जईसन बन सकय ,जादा ले जादा छत्तीसगढ़ी गोठियायबर मिले उहां जावंव। अभी चार महीना पूरे हावय।अतका गोठियायबर सीखेहंव। डाक्टरिन कहिस– आज कम्पूटर,मोबईल के बेरा बखत चलत हे,अंगरेजी इस्कूल म अपन लईका दाखिला करायबर मुठा मुठा पईसा फेंकत हे।फेर पढ़ लिख के काय करही? नऊकरी , बेपार, राजनीति, समाजसेवा ईहीच तो।नान्हे करमचारी होय कि बड़े अधिकारी कोनो परकार के नऊकरी करय, छत्तीसगढ़ी गोठियाय बर परही। सिंधी , मड़वारी, गुजराती , बिहारी, छत्तीसगढ़िया कोन्हो बेपारी मन बिना छत्तीसगढ़ी गोठियाय अपन धंधा नई कर सकय ।राजनीति करईया नेता मन सबले पहिली छत्तीसगढ़ीच गोठियाय बर सीखथे अऊ भोकवा जनता ल भरमाथे।आने परांत ले आय मनखे छत्तीसगढ़ी सीख के मंतरी संतरी बन गे। डाक्टरिन कहिस -आज कलेक्टर, तहसीलदार बने के परिच्छा म घलो छत्तीसगढ़ अऊ छत्तीसगढ़ी भाखा के सवाल पुछथे। तुहंर लईका अंगरेजी इस्कूल म पढ़के छत्तीसगढ़ी ल भुला जाही अऊ नऊकरी पायबर घलो पाछू हो जाही। कोनो भी परांत अऊ देस के पहिचान ऊंकर भाखा बिना नई होवय।हमर देस म परांत घलो भाखाच ले बने हे।जौन परांत म कमाय खाय बर जाबे , ऊहां के भाखा सीखे बर परथे।
हमर परांत के दुरभाग आय ईहां के रहईया अपन ल छत्तीसगढ़िया कथे फेर गोठियाय बर लजाथे। सरकारी आदेस के ठोसलगहा पालन दुसर परांत ले आय अधिकारी मन नई होवन दय।हमन ल ऐकरबर एक होके गोठियायबर परही।

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा, गरियाबंद

The post छत्तीसगढ़ी गोठियावव अऊ सिखोवव – बेरा के गोठ appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).


घर तीर के रुखराई जानव दवई : बेरा के गोठ

$
0
0




हमर पुरखा मन आदिकाल ले रुख राई के तीर मा रहत अऊ जिनगी पहात आवत हे। मनखे ह जनमेच ले जंगलीच आय। जंगल मा कुंदरा मा रहे।रुख राई बिन ओखर जिनगी नई कटय। हजारो बच्छर बीत गे , मनखे अपन मति ल बऊर के जंगल ले निकल के सहर बना डरिस फेर रुख राई के मोहो ल नई तियाग सकिन।घर मा फुलवारी बनाके जीयत हे। आज गांव अऊ सहर घर ,अरोस परोस म गजबेच रुख राई के दरसन परसन होथे।बर, पीपर, आमा, अमली, लीम, लिमऊ, जाम ( बीही), चिरईजाम ( जामुन), कटहर,मुनगा,पपीता,केरा अऊ नानम परकार के नान्हे बड़े रुखराई तीर खार म रहिथे।बेदपुरान मा बताय रद्दा ल धरके मनखे रुख राई मा देबी देवता के वासा अउ भगवान मानके पूजा पस्ट करथे।रुखराई ले आरूग हावा, दानापानी, अउ नानम परकार के जिनिस मिलथे।ऐला बिग्यानिक मन परमानित करे हावय।हमर घर, बारी–बखरी तीर तखार के ये रुख राई मन सिरीफ फर,फूल,लकड़ी,छंईहाच भर नई देवय ये हा डाक्टर अऊ बईद के बुता घलाव करथे।आज मनखे लईका,जवान,सियान,दाई,माई, बेटी महतारी सबोच कोई न कोई नान्हे बड़का रोगराई ल धरे हे।ऐकर निदान रुखराई म हावय।जौन ल रोजीना देख के हमन अपन आंखी मुंद लेथन ऊही रुख राई के पाना,फूल,फर,जर,डारा, छोलटा ह दवई आय।
आवव जानन कोन कोन रुख राई हमर दवई बनथे।

1.आंवरा–ऐलाआयुरबेद अमरित फर मानथे।ऐहा बिटामिन “सी” के खदान आय।ऐहा कसहा होते।ऐकर रसा आंखी के जोत बढ़ाय बर रामबान आय।ऐकर खायले हाजमा बने होथय।पेट म गैस बनन नई देवय।एखर खाय ले जवान अऊ बुढ़वा ल ताकत मिलथे।हर्रा बहेरा संग मिंझार के तिरफला बनाय जाथे।चुंदी घलो पढ़ाते।आंवरा ल कइसनो खाय मा फायदा मिलथे।

2. आमा–आमा के दुसर नाव देवफर, राजाफर, आरुगफर (पवित्रफल) हावय।ऐकर पाना, छोलटा,डारा ,फर ,सबो पूजा पाठ म बऊरे जाथे।आमा घलो नानम परकार के रोग राई के दवई आय ।जौन मनखे म लहू कमती हे ओहा आमा खाय ,ये ह लहू बढ़ाते ।पक्का आमा ल दूध संग पीये ले थकासी मेटाथे अउ नवा ऊरजा लानथे।रोग राई ल रोके के ताकत (रोग प्रतिरोधक) बढ़ाथे।गरमी मा ऐकर पना बना के पीये ले लू नइ लगय।

3. लीम–लीम ल गांव के दवई दुकान (दवाखाना) कहे जाथे।ऐकर सुवाद करु रहिथे फेर लाख पीरा के एक दवई लीम आय।रोजीना बिहिनिया ले लीम के दतोन करेबर हमर पुरखा मन सिखोय रहिस फेर फेसन ह ब्रस धरादिस अउ मसकुरा पायरिया घलो धर डारेन। लीम के पाना फुसमंहा चाबे ले नइ ते एक चम्मच रसा पिये ले कभू कोन्हो रोग नइ हमाय । बिच्छी मारे , दतिया चाबे जगा म पाना ल पीस के लगाय म पीरा झींकते। फोरा–फुनसी, खाज– खजरी,घाव के रामबान दवई आय। लीम गुठलू ल पीस के भुरका बनाके खाय ले शक्कर बिमारी (मधुमेह/डायबिटीज) मा फायदा करथे।

4.लिमऊ– लिमऊ बारो महीना मिले वाला फर आय।ये बिटामिन सी के सगरी आय।जौन जादा मोटाय हावय अउ पातर दूबर होना चाहत हे त लिमऊ खाय। कब्ज,गैस बिमारी वाले मन जेवन संग जरुर लेवय अउ जौन जादा तेलहा मसलहा खाथे ओहा जरुर रोजीना लिमऊ खाय। लिमऊ ल हाजमा बढ़ायबर, चेहरा मोहरा के करियापन ल सफई करेबर बऊर सकत हव।चना पिसान हरदी संग लिमउ रसा मिंझार के चुपरे ले मुहूं ओग्गरा (गोरिया) जाथे।

5. मुनगा– संसार मा सबले जादा पुस्टई रुख कोई हावय त ओखर नांव मुनगा आय। ऐला पर परांत , परदेस म बिलगे नांव ले जानत होही।आयुर्वेद मा मुनगा ले 300 रोग राई ल बने करे जा सकत हे।ऐमा बिटामिन ए गाजर ले 4गुना, बिटामिन सी संतरा ले 7गुना, कैलसियम दूध ले 4गुना, पोटेशिसम केरा ले 3गुना अउ प्रोटीन दही ले 3गुना रहिथे।ऐकर पाना के रसा निकाल नान्हे लइका ल पियाय ले पेट के कीरा मारथे। साठिका,गठिया,बात (वातरोग) मा फायदा करथे। लोकवा मारे मनखे ल मुनगा साग खवाना चाही।हाड़ा ल पोठ बनाय बर मुनगा खावव। जचकी ले उठे सेवारी ल एकरे सेती पुस्टइ मुनगा खवाय जाथे।छत्तीसगढ़ मा छठ्ठी के दिन मुनगा बरी रांधे के परंपरा हावय।

6. कटहर–कटहर गरमी मा बर बिहाव मा अड़बड़ खायबर मिलथे। कटहर हा आयरन के देवइया फर आय।ऐकर खाय ले लहू बाढ़थे। कटहर पाना के रसा पिये ले अल्सर घलो बने हो जाथेे। सबले जादा फायदा आजकल के परमुख रोग ब्लडप्रेसर मा करथे।

7. जाम (बीही)– बीही लइका सियान सबो के मयारुक फर आय।ऐला गरीब के सेव कहिथे। मलरिया बुखार मा बीही खाय ले बुखार कमती हो जाथे।बीही मा नून मिंझार के खाय ले पेट पीरा माड़थे। बीही के पाना ल पीस के करिया नून मिंझार के चाटे मा फायदा करथे।बवासीर वाला मनखे ल 2–3 सौ ग्राम बीही रोजीना खाय ले अराम मिलही।जेवन करे के पाछू जाम खाय ले पचोय म सहजोग करथे।हाजमा बने राखथे।

8.चिरईजाम– ये गरमी के जाती अउ असाढ़ के निंगती म फरथे।बारो महीना हरियर रहईया रुख आय। ऐकर तासीर ठंडा होथे।मुहुं भीतरी गरमी फूटे म खाय ले माढ़ जाथे। चिरईजाम हाजमा ल बने करथे।भूख बढ़ाथे।आमाजुड़ी (पेचीस) ल बने करथे।चिरईजाम के गुठलू ल पीस के दही संग मिझार के खाय ले पथरी ह फेका जाथे।बाढ़े शक्कर मा ऐकर पाना ल पीस के खाय ले शक्कर कमती हो जाथे। ऐकर छोलटा, पाना, गुठलू तीनो ल सुखाके पिसान असन पीस के खाय ले घलो फायदा मिलथे।

9.पपई(पपीता)–ऐला आरम पपाई घलो कहिथे।पपई कच्चा होय कि पक्का दूनो म खाय जाथे।दवई असन घलो बऊरे जाथे। पिलीया होय मनखे ल पपई खाय मा फायदा होथे।जौन छेवारी (जचकी होय) के थन मा दूध कमती आथे ओला रोजीना पपई खाय ले फायदा होथे।डेंगू नांव के बुखार मा पपई पाना के रसा पिये ले फायदा मिलथे।रतिहा जेवन करे के पाछू पपई खाय ले बिहनिया पखाना साफ होथे।नवा पनही पहिरे पाछू पांव म फोरा परे ले काचा पपई पीस के लगाय ले तुरते अराम मिलथे।

10. केरा–केरा सबले सस्ता,गांव सहर सबो जगा मिलइया फर अऊ गरीब के मिठई आय।अब किसान मन एकर खेती घलो करथे।यहू दवई बुटई बरोबर घलो बउरे जाथे। गैस, कब्ज, खट्टा ढकार ल दुरियाथे।जादा टट्टी (पेचिस) होय मा केरा संग दही मिंझार के खाय ले टठियाथे।आगीबुगी मा जरे पाछू फोरा परे मा पक्का केरा ल पिचक के छाबे ले रगरगई कमती होथे।पक्का केरा अउ आंवरा के रसा मा शक्कर मिंझार के खाय ले घेरीबेरी किसाब (पेशाब)जवई कमती हो जाथे। बिहनिया केरा खाके दुध पिये ले ताकत मिलथे। रतिया जेवन पाछू केरा खाय ले पचे मा सुभीता होथे।

11.अमली–अमली के फर कच्चा मा हरियर अउ अम्मट रहिथे।पाके मा लाल अउ अमसुर मीठ हो जाथे। अमली पाचुक होथे।पेट पीरा,कान पीरा, चक्कर, बुखार उतारे,गैस, कब्ज, सुजन मा अराम, मोटई कमती करे,जादा टट्टी होय ल मढ़ाय के लहू सफई करे के दवई आय।पीलिया बर अमली खाय म फायदा होथे। दारु के निसा उतारे के रामबान दवई आय। लिमउ रसा संग अमली रसा मिझार के पियाय मा दारु के नसा उतर जाथे।अमली के बीजा ले नानम परकार के दवई बनथे

अईसने कइ रिकिम के रुखराई हे जौन ल सियान मन जानथे फेर आज सब पइसा वाला बनगे हावन। अंगरेजी दवई खा के नवा नवा रोगराई लावत हन।अति सबो जगा बरजे जाथे।जिनीस ल दवई बरोबर खाय ले फायदा होथे।असाढ़ अउ बरसात म आनी बानी के रोग राई होथे ,सावचेत रहे बर परही।अड़हा बईद ले सावचेत रहव।

संकलन
हीरालाल गुरूजी “समय”
छुरा, जिला –गरियाबंद







The post घर तीर के रुखराई जानव दवई : बेरा के गोठ appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

असाढ़ के आसरा हे

$
0
0




सूरुज नरायन ला जेठ मा जेवानी चढ़थे। जेठ मा जेवानी ला पाके जँउहर तपथे सूरुज नरायन हा। ताते-तात उछरथे, कोनो ला नइ घेपय ठाढ़े तपथे। रुख-राई के जम्मों पाना-डारा हा लेसा जाथे, चिरई-चिरगुन का मनखे के चेत हरा जाथे। धरती के जम्मों जीव-परानी मन अगास डाहर ला देखत रथें टुकुर-टुकुर अउ सूरज हा मनगरजी मा मनेमन हाँसत रथे मुचुर-मुचुर। सूरुज के आगी ले तन-मन मा भारी परे रथे फोरा,आस लगाय सब करत हें असाढ़ के अगोरा। गरमी के थपरा परे ले सबो के तन मा अमा जाथे अलाली अउ असाढ़ के पहिली दरस मा समाय रथे खुशहाली। इही खुशहाली के अगोरा मा जम्मो परानी अल्लर परे असाढ़ के परघनी करे बर सधाय रथें, कोनो पियासे ता कोनो भूँखे-लाँघन अउ कोनो खखाय रथें। असाढ़ हा अपन संग मा आस अउ बिसवास लाथे, जम्मो परानी मन के आलस अउ निरास ला भगाथे। असाढ़ के अगुवानी हवा, गर्रा, बड़ोरा अउ बुन्दा-बाँदी भरे बादर मन हा जुरियाय के करथें। असाढ़ के परघनी मा बादर हा दमा-दम बाजा बजाथे अउ बिजली चमचम-चम चमकाथे। बादर के हड़बड़ी बाढ़ जाथे, थार-थीर एक जघा बइठ नइ सकय।बिचित्र रंग-रूप बना के एती-तेती सरलग भाग-दउँड़ मा भिड़़ जाथे बादर हा।
सूरुज के घाम ले धरती के जम्मो परानी पाक के कोचराहा परे ला धर लेथें, फेर असाढ़ हा आके एकदम से हबेड़ के उठा देथे। असाढ़ हा सबला नवा जिनगानी देथे। भुँइयाँ घलाव हा जेठ के घाम अउ गरमी मा भुँजाय ला धर लेथे। एहू ला असाढ़ के अगोरा रथे, बादर ले निहोरा रथे। धरती के भीतर जीव लुकाय परानी मन ला घलाव अपन परान बचाय खातिर असाढ़ के अगोरा रथें। असाढ़ के सुवागत बर बर नान्हें-बड़े सरी जीव मन बयाकुल होगे अगोरा मा बइठे रथें। असाढ़ आही ता हमर परान बचाही। असाढ़ के हाथ मा सबके जिनगी के साथ हावय। असाढ़ बिन जिनगी मा हदास अउ निरास के मेकराजाला छाय ला धर लेथे। सबके जिनगी असकटहा अउ गरू लागे ला धर लेथे। असाढ़ ले अमरित बरसा के आस रथे सरी संसार ला। असाढ़ जिनगी मा आस अउ बिसवास के बरदान हरय, धरती मा रहइया जीव मन बर भगवान हरय। बिन असाढ़ जिनगी अबिरथा हे, खइता हे।
असाढ़ जोरदरहा गाजा-बाजा संग खूब चमकत आथे। असाढ़ के परघनी मा कोनो कमी ए धरती के भीतर अउ बाहिर मा रहइया जीव मन नइ करँय। असाढ़ सबके पियास ला ,हदास ला अउ निरास ला मिटाथे। एखर खुशी मा नवा-नवा नान्हें जीव मन के मेला लग जाथे। आनी-बानी के रंग-बिरंगी जीव मन धरती मा पटा जाथे अउ मनमाने मगन होके गाए-बजाए ला धर लेथे। कीरा-मकोरा, बेंगवा-बिच्छी, मेचका-टेटका, साँप-फाँफा, चाँटी-माछी अउ अइसनहे अनगिनती जीव मन पलपला जाथे। असाढ़ के आये ले बिधुन होके नाचे-गाए ला धर लेथें। असाढ़ आए ले जिहाँ खुशी बाढ़ते वइसने बुता-काम घलाव बाढ़़ जाथे। सबो परानी अपन-अपन ठउर-ठिकाना के बेवसथा चउमास बर पोठ अउ ठोसलगहा करे खातिर भिड़ जाथें। मनखे जीव उपर तो सबले जादा परभाव होथे असाढ़ के। खेती-किसानी हा बिन असाढ़ के होना मुसकुल हे। गरमी ले उसनाय अउ अधमरा परे तन-मन ला असाढ़ हा आके नवा परान फूँकथे। असाढ़ के आए ले अल्लर परे, हाथ मा हाथ धरे मनखे मन हा सावचेत हो के तियार होथे। असाढ़ के अगोरा सबले जादा हमर किसान भाई मन ला होथे। असाढ़ के अगुवानी मा किसान मन हा सबले आगू रथें। काबर के सियान मन हा केहें के *डार के चुके बेंदरा अउ असाढ़ के चुके किसान* कोनो काम के नइ रहय। इही पाय के किसान मन हा असाढ़ आय के पहिली अकती तिहार मान के असाढ़ के परघनी मा भिड़े रथें। असाढ़ के आए के खुशी अउ बादर के बदबदई मा किसान हा संसो फिकर मा पर जाथे के असाढ़ अवइया हे अउ मोर काँही बुता हा सिद्ध नइ परे हे। का होही अउ कइसे होही। घर के छानी-परवा मा खपरा लहुटे नइ हे, परछी बर जिझारी बँधाय नइ हे, कोठार-बियारा, बारी-बखरी के परदा मा पलानी चढ़ेच नइ हे, पैरा-भूँसा हा कोठार ले घर धराय नइ हे, खातु-माटी खेत मा पलाय नइ हे, खेत के मुँही-पार बँधाय नइ हे, काँटा-खूँटी बिनाय नइ हे अउ अइसने कतको बुता हा होय नइ हे अउ असाढ़ हा अवइया हावय। बैला-भैसा के जोंड़ी, नाँगर-बख्खर, गैंती, रापा, कुदारी, झँउहाँ, भँदई-अकतरिया, गाड़ी के जुड़ा, खूँटा अइसन सब के हियाव होय ला धर लेथें। ए मन ला सिरजाय ला लग जाथे किसान मन हा। अकरस जोंतई के संसो घलो रथे किसान ला असाढ़ के आगू। फेर चेतलगहा किसान हा अइसन सबो बुता-काम ला आगू ले आगू असाढ़ आए के पहिली पूरा करे मा लग जाथे। धंकिसान बर खेत धान बोंवाई हा असाढ़ मा हर हाल मा हो जाना चाही नहीं ते बोनी पछुवाय ले फसल के उत्पादन मा फरक परथे। जेन किसान ए बुता मा पछुवागे वो किसान बने किसान नइ माने जाय। वइसे तो धान बोंवाई हा असाढ़ के पहिली अकती के दिन हो जाय रथे फेर असाढ़ के अमरित बरसा ले बीजा हा जिनगानी पाथे। एखर सेती सबला असाढ़ के अगोरा रथे।
नाँगर-बइला, भइसा अउ किसान के जोंड़ी हा खेत-खार मा बड़ सुग्घर फभथे। खेती-किसानी हा नाँगर अउ बइला के संगे संग किसान के करम कहिनी कहिथे। बिन जाँगर के जिनगी अबिरथा हे एखर पाठ असाढ़ हा पढ़ाथे हमला। असाढ़ हा इही जाँगर अउ नाँगर के मरम ला अमर करथे। असाढ़ हा सुते जाँगर ला जगाय के एकठन बड़ महान परब हरय। असाढ़ के बिन सबके जिनगानी आधा अधूरा, जुच्छा अउ सुन्ना हावय। अन्नदाता किसान घलाव असाढ़ बिन अधमरा हावय। आसाढ़ के आए ले किसान के संगे संग जन-जन के बुता-काम हा कोरी खइरखा बाढ़ जाथे। असाढ़ ले धरती के सबो परानी मन ला जब्बर आस रथे। रुख-राई, तरिया-नँदिया, कुआँ-बावली, नरवा-नहर, जीव-जन्तु सबो ला असाढ़ मा पानी के आसरा रथे। असाढ़ ले आसरा के संगे संग संसो फिकर घलाव बादर मा छा जाथे। किसान ला जतका खुशी असाढ़ के अगोरा मा रथे वोतके संसो असाढ़ के आए ले हो जाथे। पानी गिरही के नहीं, पानी जादा गिरगे तभो मरन, पानी कमती गिरगे तभो मरन। इही संसो हा किसान के मन मा बादर कस घुमरत रथे। असाढ़ मा कहूँ पानी नइ गिरय तहाँ ले मनखे मन किसिम-किसिम के उदीम करे ला धर लेथें। देबी-देवता ला मनाय बर, बरखा रानी ला बलाय बर, परकीति ले अमरित पाय बर, पूजा-पाठ, जग-हवन अउ भजन-कीरतन मा लगथें। कइसनो करके असाढ़ मा अमरित के धार धरती मा बोहाय अउ जम्मो जीव जगत के परान ला बचाय।असाढ़ मा कहूँ सरीउदीम ले पानी नइ गिरय ता मेचका-मेचकी मन के बर-बिहाव घलाव करे जाथे। बिन पानी के सुन्ना सबके जिनगानी हे। असाढ़ के पहिली बरसा हा अमरित समान सबला नवा जीवन दान देथे। धरती दाई घलाव एखर अगोरा बियाकुल रथे। वइसे हमर भारत भुँइयाँ मा मउसम के दशा ला अटकर लगा के जाने जाथे। किसान घलाव असाढ़ मा बरसात के अटकर लगा के, करजा-बोड़ी करके बीजहा-खातू के बेवसथा जोरदरहा ढ़ंग ले कर डारे रथे। करिया-करिया बादर अउ ओकर गरजाई-घुमराई ला देख के किसान के मन मा आस संचरथे, बिसवास बाढ़ जाथे। जिनगानी के सुग्घर उज्जर आस हरय असाढ़ के करिया-करिया बादर हा, चमचम चमकत बादर के बिजली हा, बादर के बाजत बाजा हा। असाढ़ हे ता आस हे अउ आस हे ता असाढ़ हे।आस मा ये सरी संसार हा चलत हे। आस हा संचरथे ता जिनगी मा जोस भरथे अउ मनखे अचरज भरे काम-बुता ला घलो कर डारथे। बिन आस के जिनगी मुरदा जइसे हो जाथे। आस तो मनखे एक खास गुन हरय जौन वोला जिनगी जीये बर सरलग प्रेरित करत रथे।असाढ़ हा जम्मो जीव ला नवा जिनगानी, नवा जोस अउ नवा उरजा देथे। उछाह अउ उमंग के बरसा करथे असाढ़ हा जिनगी मा। असाढ़ हा करम के पाठ पढ़ाथे अउ एला सुरता घलाव देवाथे। असाढ़ ले हमर जिनगानी मा आस, आसरा अउ आस्था संचरथे जेखर ले हमला जिनगी जीये बर रद्दा मिलथे।असाढ़ बिन ए जिनगी के कुछू मोल नइ हे, असाढ़ एला जीए बर नवा मउका देथे अउ कथे के आस के अँचरा ला कभू झन छोंड़व। आवव असाढ़ के आस अउ बिसवास ले अगुवानी करीन के एसो हमर आस ले आगर हमला पानी दय, सबला जिनगानी दय। असाढ़ के अंतस ले अभिनंदन हे।

कन्हैया साहू “अमित”
परसुराम वार्ड~ भाटापारा
जिला – बलौदा बाजार (छ.ग)
संपर्क~9753322055







The post असाढ़ के आसरा हे appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

मोला करजा नई सुहावय

$
0
0

सार गोठ (मोर अंतस के सवाल ये हरे कि करजा नई सुहावय त जनम ले दाई-ददा हमर बर जे करे रथे वो करजा मुड म लदाय रथे तेला काबर नई छुटय? अऊ सिरतोन कबे त करजा करे के कोनो ल साद नई लागय फेर अपन लइका बर, परवार बर, जिनगी के बिपत बेरा म करजा घलो करे ल परथे।)
एक झन नौकरिहा संगवारी हा, अपन दाई ल मोटर म चघइस। ओ सियानिन हा चिरहा झोला ल मोटराये रहय अऊ मोटर म चघेच के बेरा ओकर पोलखर हा झोला ले गिर गे, बिचारी लटपट पोलखर ल उचइस अऊ मोटर म बइठ गिस। मे पुछेंव कहां भेजत हस जी सियानिन ल। ओ कहिस रइपुर भेजत हंव जी। मे फेर पुछेंव ते कहां जावत हस। त कथे “जाय बर तो महू रइपुर जाहूं फेर दाई संग फटफटी में जाय बर नई सुहावय”। मे अऊ कहि पारेंव संग म नई जावस त तोर मन.! फेर ओहा चिरहा झोला ल मोटराय हे जी.! एको ठन संदूक बिसा दे रते। “आज मोर खिसा जुच्छा हे ना, जतका पइसा हे ते सब गनती के हावय अऊ मोला करजा करना, करजा राखना नई सुहावय, जतका सकथंव ततकी खरचा करथंव, करजा करके कोनो बूता नई करंव”। सुन के बड आनंद अइस। अइसने एक झन दुकान वाला हा कहात रहिस के “महू ल करजा करना नई सुहावय, मोर करा ले कोनहो करजा लेगथे तेला सहि जथों फेर मेहा काकरो करा करजा नई करंव”। ओकरो बात बने लागिस।
सिरतोन कहिबे त अब मनखे पढ-लिख डरे हवय त करजा म लदाय ले का होथे तेला जान डरे हे। अऊ अब जम्मों झन करा अपन बुता हल करे बर अब्बड अकन रद्दा घलो बन गे हवय। सरकारी नौकरी नई मिलही तभो ले मिहनत करईया मनखे बर अब बुता-काम के कमी नई हे।
फेर मोर भेजा म सवाल रिहिस कि ये नौकरी कइसे पइस होही ? त मेहा पूछेंव कइसे भाई आज तेहा जे सरकारी नौकरी करत हस तेहा तो लटपट म मिलथे। तेहा कहाँ पढे लिखे कतका मिहनत करे त ये नौकरी ल पाये हस? त ओहा कथे “हव तेहा सिरतोन कहात हस मेहा दिनरात एक करके पढे हंव। पंदरा-सतरा घंटा पढई करे हंव जी..! तब ये नौकरी ल पाये हंव”। मेहा फेर पुछेंव “बने स्कूल म पढे होबे? अऊ सहर म टियुसन कथे तइसन घलो करे होबे? अऊ कापी किताब के खरचा घलो बिक्कट लागिस होही”? वो अपन सांस ल जोर के झिकिस अऊ कथे “झन पुछ रे भाई फारम भरेच म हजारो रुपिया सिरा गिस होही। रहना-खाना, अवइ-जवइ, के खरचा तो उपराहा खरचा हरे। पढई-लिखइ अऊ कापी-किताब मन घलो बड मंहगी मिलथे”। मे कहेंव “फेर सरकार घलो तो बने पढईया ल पढई के खरचा देथे का जी अऊ सुने हंव रेहे, खाय के बेवस्था(हास्टल) घलो करथे”? “ओहा अब्बड नंबर आये रथे ते मन ल मिलथे जी। मेहा तो अपने खरचा म किराय के कुरिया ले के राहत रेहेंव अऊ बासा ले डब्बा में भात मंगवा के खावत रेहेंव उहीच म कतको पइसा सिरागे”। मे कहेंव अच्छा..! त तेहा हुसियार नई रेहे का जी..! ओहा चिढ गे अऊ लडबडा के कथे रेहेंव..जी! फेर मोरो ले अऊ हुसियार रिहिस ते मन ल मिलिस। मोर अंतस के सवाल के जवाब अभी नई मिले रिहिस। मेहा केहेंव तुमन बड पइसा वाला होहू जी..! अतका खरचा करके पढ लिख डरे..! घर म सोन-चांदी के भंडार होही..! तोर ददा मालगुजार होही..! ओ कथे “नई भाई हमर तो चार एकड खेत के छोड अऊ कहिच नई रहिस, अऊ दाई करा घलो कभू गहना-गुट्ठा नई देखे हंव, दाई-ददा खेत कमाय बर जाय, बहिनी हा भात रांधे अऊ मेहा पढई करंव। मोर ले नई रेहे गिस त मेर फेर केहेंव त खरचा बर अतका अकन पइसा कहाँ ले अइस जी। ओकर थोथना ओरम गे अऊ धिरलगहा किहिस ददा कोनहो डाहर ले भिडाय रिहिस हे।
में अऊ कुछु नई केहेंव, फेर मोर अंतस के सबो बात सफ्फा होगे। ओहा अपन ददा के काम-बुता कहीं म संग नई दे रिहिस अऊ ओकर ददा-दाई हा करजा बोडी करके ओला पढाय रिहिस, गहना गुट्ठा ल घलो जमानत राख के पइसा भिडाय रिहिस। अऊ अब येहा साहब बन के टेसी मारत राहय अऊ ते अऊ ओला अपन दाई संग रेगें बर घलो नई सुहावत हे। अइसनहेच कहिनी तो ओ दुकान वाला के घलो रिहिस वहू ल ओकर ददा हा अपन जिनगी भर म दरर-दरर के बनाये खेत मे के आधा खेत ल बेच के दुकान लगा के दे रिहिस, अऊ दुकान बर बैंक ले करजा निकारे के बेरा म बाचे खेत ल जमानत धरे हावय। अब दुकान बने चलत हवय अऊ बने पइसा घलो कमावत हवय। अब तो ओ मन हा कहिबेच करही “मोला करजा नई सुहावय”। हव रे भई, तुंहरे सुग्घर जिनगी बर तुंहर दाई-ददा करजा म लदाय हवय अऊ हमर देस हा घलो बिदेसी करजा म लदाय हवय। अब तुही मन ल करजा नई सुहावय अऊ तुमन सोचत होहू कि तुंहर दाई-ददा अऊ देस ल तो साद लागे हवय..? फेर मोर अंतस के सवाल ये हरे कि करजा नई सुहावय त जनम ले दाई-ददा हमर बर जे करे रथे वो करजा मुड म लदाय रथे तेला काबर नई छुटय? अऊ सिरतोन कबे त करजा करे के कोनो ल साद नई लागय फेर अपन लइका बर, परवार बर, जिनगी के बिपत बेरा म करजा घलो करे ल परथे।
करजा घलो कई किसम के होथे। चीज-बस जमीन-जइदाद के करजा ल मनखे हा भारी करजा समझथे, अपन ल बडे बताय बर अपने आप ल धोखा म राखथे। फेर सिरतोन म देखबे त दाई-ददा, परवार, समाज, देस के करजा ल लादे बइठे रथे। जे दाई-ददा अऊ समाज हा अपन खून-पछीना बोहा के ओला आघू बढाय रथे, आघू बढे के बाद उही मनखे अपन दाई-ददा, समाज अऊ देस ल निच्चट समझथे अऊ आज कली तो बिरोध म गोठियात घलो दिखथे। पहिली लोगन हा बने पढई-लिखई ये पाय के करवाय कि ओहा पढ लिख के अपन दाई-ददा के बने सेवा-जतन कर सकही अऊ पइसा कमा के समाज अऊ देस ल आघू बढाय के उदीम कर सकही। फेर आज पढई अऊ पइसा ल मनखे अपन टेसी जताय के साधन बना ले हवय। अऊ अब तो उही मन जइसे कहि तइसे माने बर परही काबर कि अब पढे लिखे अऊ पइसा वाला मनखे के बिचार ल अडहा अऊ गरीब मनखे कइसे काट सकबे।

ललित साहू “जख्मी”
छुरा, जिला – गरियाबंद (छ.ग.)
मो.नं.- 9993841525

The post मोला करजा नई सुहावय appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

मंजूर के गांव मंजूरपहरी : सियान मन के सीख

$
0
0





सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! मंजूरपहरी हर मंजूर के गांव आय रे। फेर हमन नई मानन। वि.खं.-बिल्हा, जिला-बिलासपुर के गांव सीपत ले लगभग 18 कि.मी. के दूरी में एक ठन गांव हवै मंजूरपहरी । ए गांव के नाम मंजूरपहरी कइसे परिस ए बारे मा जानकारी मिलस ए गांव के सरपंच श्री मती रमौतिन बाई पति श्री राम नेताम से। ए गांव मा जइसे प्रवेश होथे हमन ला एक सुघ्घर पहाड़ी मिलथे जउन ला दुरिहा ले देखे मा अइसे लगथे जइसे कोनो मंजूर बइठे हावय अउ ए पहाड़ी हर वास्तव में मंजूर मन के गढ़ आय। ए गांव के सियान मन बताथें कि तइहा जमाना में हमन बइठे रहन अउ कई ठन मंजूर मन ए पहाड़ी ले उतर के हमर तिर मा किंजरय। आज घलाव कभू-कभू मंजूर मन उतर के नीचे आथे फेर अब उॅखर संख्या धीरे-धीरे कम होवत जात हे। सुन के थोरकन दुख होइस के आज काबर इंखर संख्या कम होवत जात हे? संगवारी हो ए गांव हर पूर्ण रूप से प्रकृति के कोरा में बसे हे।

ए गांव के सुन्दरता देखते बनथे अउ ए गांव ला अतका अच्छा सरपंच मिले हावय जउन हर ए गांव के साफ-सफाई करे बर स्वयं बहरी धर के भिड़ जाथे। ए हर कानो सुने बात नोहय बल्कि आॅखी ले देखे बात हरै। महूॅ ला एक घंव उॅखर संग मा गांव के हर गली खोर मा घूमें के मौका मिलिस तब हमू मन अपन स्कूल के जम्मों लइका मन ला लेके प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक अउ हाई स्कूल के जम्मों शिक्षक साथी मन के संग मा जम्मों गांव के घर-घर जाके स्वच्छता संबंधी जानकारी स्वच्छ पानी अउ शौचालय के जानकारी देके आय रहेन। पूरा गांव ला घूम के आत्मा आनंदित हो गै रहिस हे। ए गांव के कोनो गली में गंदगी तो नजर में ही नई आत रहिस हे। ए गांव ला जउन बसाय हवै तउन परिवार के महतारी ले जरूर भेंट होइस। ए गांव के एक ठन अउ बात में मोर अंतस हर द्रवित हो उठिस- जब हमन 26 जनवरी के दिन बिहनिया प्रभात फेरी बर निकलेन। लइकन मन आगू-आग महात्मा गांधी, भारत माता के अउ माता सरस्वती के फोटो ल लेके अउ तिरंगा झंडा लेके फेरी लगाथे तब हर गली में दाई बहिनी मन गंगाजल अउ दूध से वो लइकन मन के पांव पखारथे।

ए गांव के हर लइका अउ सियान के मन में भारत भुइंया बर अतका प्रेम अउ समर्पन देख के आत्मा भावविभेार हो गे। ए गांव के सरपंच श्री राम नेताम जी ला गांव के एक झन दिव्यांग बेटी बर शौचालय बनवाय खातिर एनडी टीवी इंडिया में बुला के महान कलाकार अमिताभ बच्चन के द्वारा सम्मानित घलाव किये जा चुके हे। अइसे नई हे कि ए काम ला उमन कोनो ईनाम पाए खातिर करे रहिन हे बल्कि आज भी दोनो पति-पत्नि के मन में हमनला पूरा गांव अउ हमर देस के खातिर प्रेम अउ समर्पन देखे बर मिलिस। केवल सरपंच ही नई ए गांव के जम्मों निवासी मन के मन हर बहुॅत ही पावन नजर आइस। इंहा के लइकन मन के मन हर घलाव वइसने निश्छल अउ सेवाभाव अउ अतिथि सत्कार के भाव ले भरे नजर आइस।

ए गांव में जायके बाद मनखे ला शहर के धुर्रा अउ गंदगी छू भी नई पावय। शुद्ध प्राकृतिक हवा अउ पानी वाला पहाड़ी के नीचे बसे हरियर गांव हरै मंजूरपहरी। पहरी के मतलब होथे पहाड़ी अउ पहाड़ी में मंजूर पाए के सेती ए गांव के नाम मंजूरपहरी रखे गे हावय। संगवारी हो दुनिया भर में सब ले सुन्दर पक्षी मंजूर ला माने जाथे। मंजूर ला पक्षी मन के राजा घलाव कहे जाथे। मंजूर के सिर उपर राजा के मुकुुट सहीं सुघ्घर कलगी घलाव होथे। नर मंजूर के कई ठन अति सुघ्घर लंबा-लंबा पाखी होथे। मंजूर के पाखी में सुघ्घर आॅखी असन इंद्रधनुशी रंग के कई ठन निशान बने रइथे जउन हर सबके मन ला मोह लेथे। अइसे लगथे के कोनो बहुॅत बडे़ कलाकार हर एखर पाखी के सजावट करे हावय तभे तो भगवान कृश्ण हर घलाव अपन सिर में मंजूर के पाखी ला धारण करे हावय।

वइसे तो मंजूर हर ज्यादातर अपन पाखी ला नई फइलावय फेर बसंत ऋतु अउ बरसात के दिन में जब मंजूर हर खुश होके अपन जम्मों पाखी ला फइला के नाचथे तब ओखर सुंदरता देखते बनथे। एखर सुंदरता ला देखके हमर भारत सरकार हर 26 जनवरी सन् 1963 के एला राश्ट्रीय पक्षी घोशित करे हावय। मंजूर हर केवल भारत देस के ही नइ बल्कि श्री लंका के घलाव राश्ट्रीय पक्षी आय। एखर वैज्ञानिक नाम पावो क्रिस्टेटस हरै। एखर मूल स्थान दक्षिणी अउ दक्षिण पूर्वी एशिया हरै। मंजूर हर दक्षिण एशिया के देसी तितर परिवार के बड़का पक्षी आय। दुनिया के अउ दूसर भाग मेें मंजूर हर अर्धजंगली के रूप में परिचित हे। मंजूर हर खुला जंगल या खेत में पाए जाथे जिहाॅ उॅखर चारा बर अनाज मिल जाथे फेर मंजूर हर सांप, नपल्ली, मुसुवा अउ गिलहरी ला घलाव खाथे। जंगल में अपन तेज आवाज के कारन इंखर पता आसानी से लगाए जा सकथे। मंजूर हर शेर सहीं अपन शिकारी ला अपन उपस्थिति के पता घलाव देथे।

इमन जादातर अपन पैर मा चलथे अउ उडे़ से बचे के कोशिस करथे। मंजूर के पाखी से कई ठन सजावट के समान घलाव बनाए जाथे अउ कई ठन कुर्सी के डिजाइन घलाव मंजूर के पाखी कस बनाए जाथे। एखर पाखी के अड़बड़ महत्तम हावै जेखर बखान नई करै जा सकै। हमर छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाला राजा पक्षी के संरक्षण के प्रयास हमर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा होना चाही। जइसे हमर छत्तीसगढ़ में मगर के संरक्षण बर पार्क बनाए गे हावय वइसने मंजूरपहरी में मंजूर के संरक्षण करके मंजूर पार्क बनाए जा सकथे। फेर कोनो भी हालत में ए गांव के प्राकृतिक रूप खतम नई होना चाही। आज 5 जून के विश्व पर्यावरण दिवस मनाए जाथे। आज विश्व पर्यावरण दिवस में मोर यही शुभकामना हावै कि मंजूरपहरी में मंजूर के संरक्षण जरूर होना चाही। जम्मों ग्रामवासी के घलाव यही प्रार्थना हावै। सियान बिना धियान नई होवय। तभे तो उॅखर सीख ला गठिया के धरे मा ही भलाई हावै। सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हावै।

रश्मि रामेश्वर गुप्ता







The post मंजूर के गांव मंजूरपहरी : सियान मन के सीख appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

कबीर जयंती : जाति जुलाहा नाम कबीरा बनि बनि फिरै उदासी

$
0
0





परमसंत कबीर दास जी अईसन कलम के बीर हरे जे ह अपन समय के समाज म चलत धरम अउ जाति के भेदभाव, कुरीति, ऊंचनीच,पाखंड, छूवाछूत अउ आडंबर के बिरोध म अपन अवाज ल बुलंद करिस अउ समाज म समता लाय खातिर अपन पूरा जीवन ल लगा दीस । ओ समय म लोग-बाग मन एक तरफ तो मुस्लिम राजा मन के अत्याचार म त्रस्त राहय त दूसर तरफ हिंदू पंडित मन के कर्मकांड, पाखंड अउ छुवाछुत ले। वईसे तो कबीर दास जी ह पढ़े-लिखे बर नइ जानत रहिस हे, फेर वो ह जउन भी बोलय ओला ओकर सिस्य मन तूरते लिख के रख लय, उही ह आज हमर बर ओकर धरोहर हे।
कबीर दास जी के जनम के बारे म कई ठन बात पढ़े-सुने बर मिलथे, कोनो कहिथे- वो ह विधवा बम्हनीन के लईका रहिस हे जउन ह रामानंद जी के आसिरबाद ले होय रहिस हे जे ह विधवा ल सधवा नारी के धोखा म दे डरे रहिस हे, जेला वो विधवा बम्हनिन ह लोक लाज के डर म कांसी तीर के गांव लहरतारा के तरिया म छोड़ दे रहिस हे, जेला एकझन जुलाहा परवार ह पालीस हे। कोनो कहिथे वो ह मुसलमान लईका रहिस हे।अउ कबीरपंथी मन तो लहरतारा के तरिया के कमल फूल म अवतरे लईका हरे कहिथे। वईसने ओकर जनमकाल म घलो मतभेद हे, कोनो संवत् १४५५ कहिथे, त कोनो संवत् १४५१-५२ के बीच कहिथे । कबीर दास जी के बिहाव ह बैरागी कन्या ‘लोई’ संग होय रहिस हे, जेकर ले एक बेटा ‘कमाल’ अउ एक बेटी ‘कमाली’ होय रहिस हे । कबीरपंथी मन कहिथे के कबीर दास जी के बिहाव नइ होय रहिस हे, कमाल ओकर सिस्य अउ कमाली अउ लोई ओकर सिस्या रहिन हे ।
कबीर दास जी ह अपन आप ल जुलाहा मानय, एक जघा कहे घलो हे –
जाति जुलाहा नाम कबीरा बनि बनि फिरै उदासी ।
कबीर दास जी ह रामानंद जी ल अपन गुरू मानय, राम नाम के दिक्छा पाय के बाद कबीर दास जी ह हमेसा राम नाम जाप म डुबे राहय,
“पीवत राम रस लगी खुमारी”।
कबीर दास जी ह अपन समय म धरम म चलत पाखंड के बिरोध करके समाज ल बड़ झकझोरिस, जइसे:
पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहाड़।
कांकर पाथर जोर के, मस्जिद लियो बनाय
ता चढ़ि मुल्ला बाग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।
मो को कहां ढूंढो बंदे, मैं तो तेरे पास में
न मैं बकरी न मैं भेंड़ी, न छूरी गंडास में
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे-कैलाश में
न तो कौनों क्रियाकर्म में, नहिं जोग बैराग में ……
अईसने अपन बिरोधी मन ल कहिस के

मेरा तेरा मनवा कैसे एक होई रे
मैं कहता हौं आंखन देखि, तू कागद की लेखी रे
भगवान ल पाय खातिर का करना चाही, येकर बर अपन अनुभव ल साधु-समाज बर साझा करिस, जइसे
१, पिछे लागा जाइ था, लोक बेद के सांथ ।
आगे थे सतगुरू मिला, दीपक दिया हांथ ।।
२, मन रे जागत रहिये भाई ।।
गाफिल होई बसत मति खोवै, चोर मुसै घर जाई ।।
३, हम तो एक एक कर जाना।।
दोई कहै तिनही को दो-जख, जिन नाहिन पहिचाना ।। …
कबीर दास जी के उलटबांसी ह घलो बड़ परसिद्ध होईस, जईसे
एक अचंभा मैंनें देखा नदिया लागी आग।
अंबर बरसै धरती भीजै, यहु जाने सब कोई।
धरती बरसै अंबर भीजै, बूझे बिरला कोई।।
गावनहारा कदे न गावै, अनबोल्या नित गावै।
नटवर पेखि पेखना पेखै, अनहद बेन बजावै।। …..
धरम के नाव म लड़ईया मन बर कबीर दास जी कहिस
एकै पवन एक ही पानी, एक जोति संसारा।
एक ही खाक धड़े सब भांडे, एक ही सिरजनहारा।।…
संसार के असारता बर घलो कबीर दास जी कहिस के
रहना नहि देस बिराना हे।
यह संसार कागद की पुड़िया, बूंद परे घुल जाना है।
यह संसार कांट की बाड़ी, उलझ उलझ मरि जाना है।
यह संसार झार और झांखर, आग लगे बरि जाना है। …
कबीर दास जी ह अपन जिनगी के पूरा समय ल कांसी म बितईस अउ अाखरी समय ल मगहर म बितईस, काबर के ओ समय ये कहे जाय के कांसी म जउन भी मरथे वो ह मुक्ति पाथे, अउ मगहर म जउन मरथे वो ह वो घोर नरक भोगथे, ये भरम ल टोरे खातिर कबीर दास जी ह मगहर म मरना पसंद करिस।
कबीर दास जी ल हिंदु-मुसलमान दुनों मन अपन जाति के मानय, त कहे जाथे के जब कबीर दास जी ह अपन सरीर ल छोड़िस त ओकर सरीर के जघा म बहुत अकन फूल मिलीस, जेला हिंदु मुसलमान दुनो मन बांट लिन अउ अपन अपन रीत के मुताबिक माटी दीन।
कबीर दास जी के महिमा के बखान नइ करे जा सकय, समाज म समता लाय खातिर वो ह अपन पूरा जिनगी ल लगा दिस, संगेसंग भगवान ल कईसे पाय जा सकत हे, ओकर रद्दा बतईस। आवव ओकर जनमदिन म हमन कसम खईन के समाज म समता भाव ल रखबोन अउ
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय।।
इही भाव ल संग रख के हमन अपन अवईया जिनगी ल बितईन।

ललित वर्मा “अंतर्जश्न”
छुरा







The post कबीर जयंती : जाति जुलाहा नाम कबीरा बनि बनि फिरै उदासी appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

पर भरोसा किसानी : बेरा के गोठ

$
0
0

रमेसर अपन घर के दुवारी मा मुड़ धर के चंवरा मा बैइठे हे उही बेरा बड़े गुरुजी अपन फटफटी मा इस्कूल डाहर जावत ओला देख परीस।खड़ा होके पूछिस का होगे रमेसर? कइसे मुड़धर के बइठे हस ? रमेसर पलगी करत कहिस- काला काहंव गुरुजी, बइला के सिंग बइला बर बोझा। तुही मन सुखी हव।गुरजी कहिस-तब कहीं ल बताबे कि अइसने रोते रबे, बोझा ल बांटबे त हरु होही।बिमारी के दवाबूटी करे जाथे। रमेसर हाथ मा मुड़ी धरे कहे लगीस- किसानी के दिन बादर आगे गुरजी ,हाथ मा एकोठन रुपया नइ हे। पाछू बच्छर के करजा छुटाय नइ हे।फेर खेती किसानी करना हे कइसे होही कहिके मुड़ी धर के बइठे हंव।असाढ़ के बादर घुमत हे खेती संवारे बर तुतारी देवत हे।गुरुजी कहिस- देख रमेसर कहे जाथे “खेती अपन सेती” फेर आज तुमन पर भरोसा खेती किसानी करत हव। परोसी के हाथ म सांप मरवाय ले काय होथे तेला जानत हस।आज धान के बिजहा नइ राखत हव।हाइब्रिड के चक्कर मा पइसा लुटावत हव ।घुरवा के गोबर खातू स्वचछता अभियान के चढ़ावा मा चल दिस।रसायनिक खातू,दवई मा खरचा करत हव। कमाय बर कोढ़िया होगेव ।नांगर बइला उन्नत खेती मा फंदागे।टेक्टर मा जोतई बोवई अऊ मतई करत हव।सब पर भरोसा।पइसा नइ हे तब करजा बोड़ी करत हव।इही उन्नत खेती आय।निंदई नइ करके निंदानासक बउरत हव।धान ल कतकोन बिमारी ले बचाय खातिर, बाढ़े अऊ, पोटराय खातिर आनी बानी के रसायनिक दवई डारत हव।आखिर मा लुवाई अऊ मिजाई घलाव ल टेक्टर थ्रेसर हारवेस्टर मा करत हव। अतका होय के पाछू धनलक्ष्मी ल अपन घर मा नइ लावव, बहिरे बहिर भाड़ा करके मंडी भेजवा देवत हव। अब बता रमेसर कोन करा तै अपन जांगर खपाय अऊ कोन करा पइसा बचाय।तोर खेती मा तैं नांगर नइ जोते, धान नइ बोय, निंदई नइ करे,खातू कचरा नइ डारे, लुवई मिंजई नइ करे तब तैं करजा मा नइ बूढ़बे त कइसे करबे।पर भरोसा खेती करत हस तभे मुड़ धरके रोवत हस। रमेसर मूहूं फार दिस।गुरुजी के सबो गोठ सुन के ओकर बुध पतरा गे। थोकिन साहंस भरके कहिस- सही कहात हव गुरुजी फेर कइसे कर सकत हन। पढ़े लिखे बहू आय हे ओ खेत नइ जान कहिथे।बेटा पढ़ लिख के नउकरीच खोजत हे।खेती नइ करंव कहिथे। गाय गरु झन रखव कहिके बइला ल बेंचवा दिन हे।हमर मन के उमर बाढ़त हे अऊ जांगर खंगत हे।बनिहार नइ मिलय।तब खेत ल परिया घलो नइ पार सकन।ऐकर सेती अइसने किसानी करत हन। गुरुजी पूछिस – तोर खेत मा तो बोर खनाय हस का? के फसल लेथस। कहां गुरुजी , बोर मा पानी कम निकलिस त धान के एक फसल लेथंव। बस इही तोर करजा मा लदाय के कारन आय। आजकल तीन फसल के खेती होवत हे अउ तैं एक फसल मा घिरयाय हस। मोर बात ल मान अउ ऐसो ले कम से कम तीन फसल लेय के उदिम कर ,कम पानी वाला फसल लगा एकर बर ग्राम सहायक मन संग मिल अउ गोठिया।अतका सुनके रमेसर के मुड़ी ले हाथ उतर गे। गुरुजी कहिस – सुन रमेसर आज करजा मा खेती तोरेच गलती नइ हे एकर बर बहुत झन जिम्मेदार हावय।बिदेसी नकल,सरकार के नीति अऊ सरकारी अधिकारी, उन्नत खेती के भरम, दवई बेचाईया कंपनी ,सही जनकारी नइ होना अउ पर भरोसा खेती।

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा जिला-गरियाबंद

The post पर भरोसा किसानी : बेरा के गोठ appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

ब्लाग लिखईया मनखे मन ला दे-बर परही GST

$
0
0

नवा जी.एस.टी. कानून ह लागू होए म 3 दिन बांचे हे, 1 जुलाइ ले जी.एस.टी. होवत हे लागू, जी.एस.टी. के बारे में विस्तार ले कतको गजट, समाचार, पतरिका म जानकारी मिल जाही। एखर अनुसार हमन ला बुनियादी पदारथ मा 0%, 5%, 12%, 18% and 28% (+अउ लक्जरी समान मा सेस अलग ले) लगही।
अईसे तो सियान मन विस्तार ले बताहीं के कामा कतका-कतका जी.एस.टी. लगही, कुछु ह मंहगा होही त कुछु ह सस्ता, मै हर तो अतके बताए बर लिखत हौं भई के अब हम ब्लागर मन के बिरादरी बर जी.एस.टी. हर भारी परईया हे।
वइसे तो ब्यापारी भाई मन ल 20 लाख तक के टर्न ओभर मा जी.एस.टी. के रजिस्ट्रेशन मा सरकार छूट देवत हे। फेर सेंटरल जी.एस.टी. एक्ट के धारा 24 कहिथे के जउन मनखे के आमदनी के स्रोत भारत देश के बाहिर के होही, तेन ला एको रुपिया के छूट नइ मिले, ब्लागर भाई मन ह इंटरनेट ले अपन ब्लाग म एडसेंस अउ आन विज्ञापन के जरिए एको रुपिया के कमाई होही त उनला, जी.एस.टी. बर रजिस्टर होए ल लागही अऊ जी.एस.टी. तक देहे ल लागही, येमा जी.एस.टी. के रेट हर होही 18% परसेंट। तो भाई मन तिहार मनावव अउ तियार हो जावव, जी.एस.टी. रजिस्टेशन बर।
gst.gov.in म जावव, इहां रजिस्ट्रेशन कइसे करना हे विस्तार जानकारी मिलही।

प्रमोद अचिन्त्य
नवसिखिया ब्लागर







The post ब्लाग लिखईया मनखे मन ला दे-बर परही GST appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).


अंगाकर रोटी कइसे चुरही

$
0
0

तीन बच्छर पूरगे पूनाराम अपन बेटी मोनिका ल पुरखौती गांव नई लेगे हावय। गरमी के छुट्टी मा जाबो कहिके मनाय रहिस।छुट्टी सुनाय पाछू ऐसो मोनिका जिदेच कर दिस। बेटी के मया अउ जिद के आगू थोरको नइ बनिस। शनिचर के संझा बेरा जाय के मुहुरत बनिस। पूनाराम ल भेलई मा रहिते सहरी जिनगी कभू कभू गरु लागथे। कतको घांव गांव आयबर सोचथे फेर आ नइ सकय। बेटी के जिद ह एक मउका अऊ दे हावय।गांव जाय के पहिली दिन ओला नानपन मा गरमी के दिन के सुरता आ जथे।तरिया मा बर अऊ आमा रुख ले कूद के तउंरई, छू छुवउल,आमा बगीचा ले आमा गिरायबर पखरा मा मारे के निसाना मा दांव लगाना, चोराना, अमली बीजा के चिचोल ले तिरीपासा खेलना सबो सुरता आथे। माटी के घर , खपरा छानी, गोबर लिपे दुवार अंगना, बैसाख जेठ के गरमी मा मंझनिया आमा के अथान संग बासी अउ रतिहा अंगना मा बबा के गमछा के पंखा के हावा मा सुताई सब सुरता आ जाथे। गांव के ओकर जादा संगवारी मन के नउकरी नइ लगीस त ओमन हा पेट रोजी बर पर परांत कमाय खाय चल दिस। बांचे संगवारी मन गांव मा अपन जिनगी पहात हे। फेर आज भुसरेंगा गांव ओ पुराना गांव नइ रहिगेहे। गांव तक पक्की सड़क बन गेहे।




पूनाराम संझकेरहा गांव जायबर मोनिका संग फटफटी मा निकलगे। तीनेच बच्छर मा गांव ह बदले बदले कस लागत हे। गांव पहुंचती मा अब गच्छी वाला घर दिखत हे। पूनाराम अपन पुरखौती घर मा उतरिस। ओकर घर मा एकझन किराया मा रहिथे। चाय पानी पीके अउ घर के हियाव धियाव ल सरेखत बइठिस।गांव अमरत ले संझा होगे। कका काकी घर बइठेबर गिस।पांव पलगी होय के पाछू कका के नान्हे बहू चाय पानी धर के लानिस। चाय ल देखतेसाट मोनी कहे लागिस- लाली चाहा आय, मै नइ पियंव।पूनाराम घलाव देखिस, ओकर आंखी अपन कका तनी घूमीस। तुरते काकी कहिस– हव बेटी, हमन गाय गरु ल बेंच डरे हन। पूनाराम अकबका गे। काय केहे काकी, गाय गरु मन बेचागे! कइसे ? काबर? काकी बताय लगीस–अब हमर उमर होगे हावय। गोबर कचरा करेबर, पेरा भूसा करेबर, पानी पसिया देयबर, बांधेछोरे बर जांगर खंग गे हावय। ऐसो घर मा टाइल लगवाय हन। गाय गरु एती रेंगथे त बहू बेटा मन मुहू मुरेरथे। खेती खार कमाय बर टेक्टर, थ्रेसर हावय। अऊ काला काला गोठियांव।चाय पीये अऊ गोठबात के पाछू पूनाराम अपन नानपन के संगवारी परमोद करा बइठे जायबर उठिस। परमोद गांव मा नानकुन किराना दुकान धरे हावय।ओकर दुकान के आघू मा चार पांच झन पेपर पढ़इया बइठे हावय। भीतरी ले परमोद देखीस त पूनाराम ल घर मा बलाईस अऊ अपन लोग लइका मन संग भेट पलगी कराइस। नउकरी नइ लगीस अऊ उमर पूरगे त परमोद गांव मा अपन जीनगी ल संवारत हावय। मोनी अउ परमोद के बेटी कुमकुम संगवारी बनगे।




घर परवार,दुख सुख, रोजी पानी, अऊ पुराना दिन के सुरता, गोठ बात होय के पाछू घर आय बर निकलगे। रद्दा मा आवत आवत गांव के सियान मन संग भेंट पलगी करत घर अइस।रतिहा खाय पिये पाछू सुतगे।बिहनिया पूनाराम के कका चाय पिये बर अउ रोटी खायबर बलाय आइस। बाप बेटी काकी ल गोहार लगात भीतरी डाहर निंगीस।काकी ह सोफासेट मा बइठार के आगू मा टी टेबल लगाईस अऊ पलेट मा इटली ल पताल चटनी संग परोस दिस,कहिस-बहू हा इही ल बनाय हे बाबू, लेव खावव। पूनाराम कहिस- बने अंगाकर रोटी बनाय रहितेव काकी, घीव संग खाय रहितेन। अड़बड़ दिन होगे अंगाकर रोटी खाय।काकी के मुहूं नानचक होगे, कहिस- काला बताव बाबू, घर मा छेना लकड़ी नइ हे गैस चूल्हा मा रांधथन।गैस चूल्हा मा अंगाकर रोटी कइसे चुरही। बहू ल अंगाकर बनायबर नइ आवय।पूनाराम पाछू दिन के सुरता करत राहय, इही काकी आय जौन गोरसी मा छेना रचके चाउंर पिसान ल बासी के सीथा संग नून डार के पिचकोल के थपटय ओकर खाल्हे ऊपर पाना जठा के छेना के रगरगात अंगरा मा मढ़ा देवय।दू घांव पलटय फेर लाल होवत ले चुरय तहान सबझन बर कुटका करके पताल चटनी नइ ते घीव संग खायबर देवय। वो अंगाकर बर रोटी आज घलो लार बोहाथे। काकी कहात हे -ऐती सरकार घलो सबझन ल डरवात हे,चूल्हा, छेना लकड़ी ल बंद करव आँखी फूट जाही।गैस चूल्हा जलावव। पूनाराम सोचत हे अब अंगाकर खाय के सउंख कब पूरा होही। गांव ले अंगाकर रोटी नंदा जाही त कहां चुरही।




अइसने हमर छत्तीसगढ़ के अड़बड़ अकन रोटी पीठा नंदावत हे।लइका ल हिन्दी अंग्रेजी बड़का बड़का इस्कूल मा पढ़ावत हन फेर सीखत काय हे?बजार के खाना ,बजार के गाना, पर परांत के संस्कृति, अइसने मा हमर संस्कृति ह नंदा जाही।

हीरालाल गुरुजी समय
छुरा जिला – गरियाबंद



The post अंगाकर रोटी कइसे चुरही appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

गुरू-पून्नी

$
0
0

गुरू के महत्तम बर संत मन के कहना हे के यदि बरम्हा-बिस्नु-महेस ह ककरो ले घुस्सा होगे हे त ओकर ले ये दुनिया म एक-अकेल्ला गुरू ही हे जउन ह तिरदेव के घुस्सा ले बचा सकत हे, फेर यदि गुरू ककरो बर घुस्सा होगे त ये दुनियां म अइसन कोन्हों नइहे जउन ह गुरू के घुस्सा ले बचा सकय, तिरदेव मन घलो नइ बचा सकय| गुरू-पुन्नी के सुघ्घर पबरीत बेरा म आवव गुरू काला कहिथे अउ गुरू के परकार के होथे, ओकर बारे म सास्त्र-सम्मत बिचार करिन..
गुरू दू अक्छर ले मिल के बने हे, गु = अंधियार अउ रू = दूरिहा करईया, मतलब जेन ह ये मानुस तन ल माया के घटाघोप अंधियार ले निकाल के भगवत्-उजियार म लेग के बइठार देथे उही ल गुरू कहे जाथे|
सास्त्र म गुरू के तीन परकार बताय गेहे, १- प्रारंभिक गुरू, २- सद्गुरू, अउ ३- समरथ गुरू| प्रारंभिक गुरू वोला कहिथे जउन ह साधक ल संसार लेे हटा के परमारथ कोती झुका देथे,अउ हमेसा सत् करम म लगाय रहिथे, फेर मन ले मन ल उपदेस देबर ये ह नइ जानय, मंतर-जाप, जग्य-हवन, सांस खींचना-रोकना आदि करम-कांड म खुदे लगे रहिथे अउ साधक मन ल घलो लगाय रहिथे|
सद्गुरू वो हरे जउन ह उपासना के मरम ल जानथे अउ साधक मन ल उपासना कराथे, उपासना माने भगवान के तीर म बईठना या अपन ईस्ट म अपन मन ल लगा देना| संत मन सद्गुरू के घलो चार ठन भेद बताय हे, यथा-





गुरू है चार प्रकार के अपनें अपनें अंग|
गुरू पारस दीपक गुरू मलयागिरी गुरू भृंग||

मतलब, पहला सद्गुरू ह पारस जईसे होथे, पारस म एकठन गुन होथे, वोला लोहा ले छुवा दे त लोहा ह सोना बना बन जथे, यानें पारस सद्गुरू ह जेन भी साधक ल चाहही वोला अंतर्यात्रा म कुछ उप्पर उठा दिही, फेर इहु सद्गुरू म कुछ कमी रहिथे, के वो ह साधक ल अपन जइसे नइ बना सकय, जइसे पारस ह लोहा ल छू के सोना तो बना देथे, फेर लोहा ल पारस नइ बना सकय न, ठीक वोईसने | दूसर सद्गुरू हे दीपक सद्गुरू-जउन ह अपन सद्ग्यान रूपी दिया म साधक के अंतस के सुप्त-गियान रूपी दिया ल छुवा के जला देथे, फेर येमा एकठन सरत ये हे के साधक म लगन बने रहय अउ गुरू के प्रति स्रद्धा-बिस्वास म कोनो कमी मत राहय| यदि साधक म लगन अउ स्रद्धा-बिस्वास म कमी हे याने साधक के अंतस-रूपी दिया म स्रद्धा-बिस्वास रूपी तेल बाती के कुछ कमी हे त दीपक गुरू ह साधक के गियान के दिया ल नइ जला सकय| तीसर सद्गुरू हे मलयागिरी सद्गुरू,यथा-

मलयागिरी के निकट जो सब द्रूम चंदन होंहि|
कीकर सीसम चीर तरू हुये न कबहु होंहि||



यानें एकर सत्संग म जउन भी साधक आथे, वो ह कभु न कभु वोकरे जइसे हो जाथे| फेर इहु म कुछ कमी हे, के यदि साधक मूढ़ अउ अविवेकी हे त मलयागिरी गुरू ह घलो साधक ल सहारा नइ दे सकय| मानस ह एकरे बर कहे घलो हे

मूरख हृदय न चेत जो गुरू मिलहि बिरंचि सम|

चउथे सद्गुरू भृंगी सद्गुरू कहाथे, जइसे भृंगी कीरा ह कोनो भी कीरा ल अपन कैद म कर लेथे त डर के मारे कैदी कीरा ह अपन चित्त ल भृंगी कीरा कोती लगायच रथे, त कुछ दिन म कैदी कीरा के सरीर म घलो पंख जाम जथे, अउ भृंगी के रूप धर के उड़े ल घलो धर लेथे|वोईसने साधक मन घलो धीरे धीरे अपन गुरू के गुन ल धारन कर लेथे| भृंगी सद्गुरू म कोनो परकार के कमी नइ राहय, फेर साधक यदि मूढ़ हे त वोला अपन ईस्ट के दरसन करे बर ये परकार के गुरू संग भी जादा समय लग जथे|
अब समरथ गुरू के बारे म बिचार करिन, समरथ गुरू वो गुरू हरे, जउन म उप्पर के जम्मों गुरू के गुन ह समाय रहिथे| दया उमड़थे त वो ह साधक ल छन भर म भगवान के तीर म पहुंचा देथे, या कहे जाय के समरथ गुरू ह एक परकार ले भगवानेच आय|संत सहजो बाई ह अपन गुरू चरनदास जी बर कहे हे –

चरणदास समरथ गुरू सर्व अंग तिहि मांहि|
जैसे को तैसा मिले रीता छोड़े नाही||

कबीर दास जी घलो अपन गुरू रामानंद जी बर कहे हे –

साहेब सम समरथ नहिं गरूवा गहर गंभीर|
अवगुन मेटे गुन रहे छनिक उतारे तीर||

आज हमन अपन चारो डाहर देखथंन त ये पाथन के थोरकन सास्त्र-गियान होय के बाद लोगन मन गुरू बने के जतन म लग जथे, अउ साधक मन ल छलत अउ लूटत रहिथे| अईसन म बिचारा साधक मन असल गुरू के पहिचान कईसे करय, एकर बर कबीर दास जी कहे हे-

गुरू मिला तब जानिये मिटै मोह संताप|
हर्ष शोक ब्यापै नहीं तब गुरू आपै आप||

मानें अईसन भगत ल अपन गुरू बनाव जेकर तीर म रहे के मन करथे, जेकर उपदेस ल सुन के मोह, दुख-सुख हरा जथे, अउ जेकर तीर म रहे ले सांति के अनुभव होथे|
भगवान सबो उप्पर दया अउ किरपा करय, इही मोर कामना हे|

ललित वर्मा,”अंतर्जश्न”,
छुरा



The post गुरू-पून्नी appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

शिवशंकर के सावन सम्मार

$
0
0

हमर हिन्दू पंचांग के दिन तिथी के नामकरन हा कोनो ना कोनो देवी-देवता मन ले जुड़े हावय। सब्बो सातो दिन के नाँव के कथा हा अलग-अलग हावय। सनातन धरम मा जम्मों तिथी के नाँव हा देवता मन ले जुड़े मिलथे। सातो दिन पहिली मा सबले पहिली दिन इतवार के संबंध भगवान सूरुज नरायन ले माने जाथे। तीसरइया दिन मंगलवार के संबंध हा संकट मोचन हनुमान ले माने जाथे। कोनो कोनो जघा मा कोनो कोनो मन हा ए दिन गनेस देवता के दिन मानथे। बुधवार के दिन भगवान बुध के बिधि-बिधान ले पूजा होथे जौन हा सान्ति के देवता हरय। बिरसपत के दिन केरा पेड़ मा अपन गुरुदेव के पूजा के दिन होथे। सुकरवार के दिन हा देवी दाई संतोसी माता बर जग परसिद्ध हावय।सनिचर के दिन महाकाल के रुप भैरव बाबा अउ महाकाली माता के पूजा-पाठ करे जाथे। ठीक अइसने सम्मार के दिन हा शिवशंकर के पूजा सबले जादा होथे। सनातन धरम मा कहे जाथे के भले कोनो दिन शिवमंदिर भगवान शंकर के दरस बर जावव के झन जावव फेर सम्मार के दिन खच्चित जावव। ए दिन शंकर जी के दरसन बड़ सुभ फलदायी होथे। सम्मार सुफल वार कहाथे।




शिवशंकर के पूजा पाठ सम्मार के दिनेच काबर होथे एला जाने के परयास करथन। सबले पहिली ए सात दिन के जनम के बारा मा बिचार करथन। सहीच मा देखे जाय ता ए सात दिन तिथी हा भगवान शंकर ले ही प्रगट होय माने जाथे। ए परकार ले भगवान शंकर हा ए सातो दिन के जनम देवइया ददा बरोबर हरय। शिव महापुरान के हिसाब ले जम्मो परानी मन के अवरदा ला निरधारन करे बर भगवान शंकर हा ए तिथी अउ दिन के रचना ला रचिस। अवरदा के बेवसथा ला बनाय बर दिन तिथी के बिचार ला बिचारिन। सबले पहिली अंजोर देवइया जोत के रुप मा सूरुजनारायन के रुप मा प्रगट होके रोग-राई के नास करे बर पहिली दिन इतवार ला सिरजाइन। जग कल्यान बर अपन सबला सौभाग्य देवइया शिवशक्ति बर दुसरइया दिन के बिचार मढ़ाइन। एखर पाछू अपन बड़े बेटा कुमार बर तीसर दिन ला शिवजी हा सिरजाइन। सरी लोक के रक्छा के भार धरइया अपन संगवारी सिरी बिस्नु अउ चउथा दिन के रचना रचीन। अपन देवता मन के गुरु के नाँव ले पचवइया दिन ला रचीस अउ ओखर मालिक यमदेवता ला बनाइन। राक्छस मन के गुरु के नाँव ले छठवइया दिन ला रचीस अउ ओखर मालिक ब्रम्हा ला बनाइन अउ सतवइया दिन ला सिरजा के एखर मालिक इन्द्र ला बनाइन। नछत्तर ग्रह मा सात असल ग्रह हा भर दिखथे एखरे सेती शिवशंकर हा सूरुजनरायन ले शनि देवता तक के सात दिन के रचना ल रचीन। राहू अउ केतू छँइहाँ ग्रह होय के खातिर नइ दिखय एखरे सेती इंखर बर कोनो दिन तिथी ला नइ सिरजाइन। वइसे तो भगवान शंकर के पूजा-पाठ उपास-धास अलग-अलग दिन अलग-अलग फल देथे।





“आरोग्यं संपदा चैव व्याधीनां शांति रेव च।
पुष्टि रायुस्तथा भोगोमृतेहार्यनिर्यथाक्रमक।।”

स्वास्थ, संपती रोगनास, अवरदा, भोग अउ अकाल मिरित्यु ले बाँचे बर इतवार ले शनिच्चर तक भगवान शंकर के अराधना करना चाहिए। जम्मों तिथी वार मा जब शंकर भगवान हा फल देथे ता सम्मार के दिन के धरे बाँधे काय हे, का ए सम्मार के दिन शंकर भगवान के अराधना ला मनखे हा अपन सुबिधाबर बाँधे हे!! आवव ए बात ला जाने के परयास करथन के सम्मार के दिन शिवशंकर के पूजा के कुछू खास बात हे का?

पुरान मन के हिसाब ले सोम के अर्थ चन्दा होथे अउ चन्दा हा भगवान शंकर के मूँड़ मा मुकुट बरोबर सोभा पाथे। चन्दा ला कपटी, कलंकी, कामी, तिरछन, मरहा-खुरहा, चोरहा-लबरा होवत घलाव भगवान शंकर हा छमा करके अपन माथ के मुकुट बनालीच। अइसने हमरो अपराध अउ पाप ला छमा करके शिवशंकर हा हमर उपर किरपा करके जिनगी ला सफल बनाही। अपन चरन मा भगत मन ला सरन दीही इही गोठ ला सुरता राखेबर सम्मार के दिन ला शिवशंकर के दिन बना दीन। सोम के अर्थ होथे उमा के संग शिव। सिरिफ औघड़दानी शिव भर के उपास-धास नइ करके इंखर संगिनी भगवती शक्ति के घलो संग मा पूजा पाठ, अराधना करना चाही। काबर के बिन शक्ति अउ शिव के भेद ला समझना बड़ मुसकिल हावय। एखरे सेती शिवशक्ति के पूजा-पाठ, उपास-धास करे बर भगत मन हा सम्मार के दिन ला बाँधे हावय। सोम के अर्थ सौम्य होथे, भगवान शंकर हा जबर सान्त समाधि मा रहइया देवता हरय। इही सौम्य सुभाव के कारन भोलेनाथ नाँव घलाव पाये हें शंकर जी हा। सोम मा ऊँ हा समाय हावय, भगवान शंकर ऊँ के रुप हरय। ऊँ के अराधना, ऊँ के उपासना हा भगत मन ला नवा उछाह अउ उरजा देथे। एखरे सेती ऊँकार भगवान शिव ला सम्मार के देवता कहे जाथे। बेद मन मा सोम के अर्थ जौन जघा हे ओ जघा सोमवल्ली के रुप मा ग्रहण करे गे हावय। जइसे सोमवल्ली मा सोमरस रोग-राई के नास करइया अउ सरीर ला पोठ करके अवरदा बढ़ाथे, वइसने भगवान शिवशंकर हा हमर मन बर कल्यान करइया बनय इही पाय के सम्मार के दिन शिव के पूजा करना चाही। सोम के अर्थ चंदा होथे अउ चंदा मन के प्रतीक हरय। हमर जड़ अउ मुरुख मन ला चेतना ले अंजोर करइया भगवान हा होथे। मन ला चेतना के अंजोर मा रेंगा के हमन परमात्मा करा पहुँच सकथन। एखरे सेती देवता मन के देवता महादेवता महादेव शिवशंकर के उपास, पूजा-पाठ, अराधनाअउ साधना सम्मार के दिन करे के बिधान बनगे हावय।




ए प्रकार सम्मार के दिन शिव उपासना अउ अराधना सुभ अउ मनमरजी फल देवइया माने जाथे। सोला सम्मार के उपास हा मनमरजी बरदान पाये बर एक सरल अउ सहज उदिम हरय। सोला सम्मार के सुरुवात हा सावन सम्मार ले होथे। सावन महीना ला बड़ पबरित महीना माने जाथे अउ सावन महीना के सम्मार हा सोन मा सोहागा बरोबर गुनकारी माने गे हावय। एखरे सेती सावन सम्मार के दिन भगवान शिवशंकर के पूजा-पाठ, उपास-धास अउ अराधना के बड़ महत्तम हावय। सावन महीना भक्ती अउ पूजा-पाठ के सबले पबरित महीना माने गे हे। माँस, मंद-मउहा अउ मेछा-दाढ़ी ला घलाव सावन महीना भर हाथ नइ लगावँय। साकाहार के पालन सावन महीना भर सरधा भक्ती ले करे जाय के नियम हावय। कुँवारी कनिया मन सावन भर सम्मार मा शिवशंकर के पूजा-पाठ, उपास-धास ला बिधि-बिधान ले बने घर-दुवार, ससुरार अउ जोंही पाये बर करथें। बिहाता नारी मन हा अपन घर-परवार के खुसहाली, समरिद्धि अउ सम्मान पाये बर सावन सम्मार मा भगवान भोलेनाथ के पूजा-पाठ ला करथें। सावन सम्मार ला पुरुस जात मन घलो बड़ मन लगाके मानथे अउ पूजा-अराधना करथें। अपन बुता-काम, रोजी-रोजगार, धंधा-पानी, पढ़ई-लिखई मा मनमाफिक सफलता पाये बर सावन सम्मार मा शिवशंकर के सेवा भक्ती भाव ले करथें। सावन महीना भर शिवशंकर के मंदिर मा भगत मन के भारी भीड़ उमड़थे फेर सम्मार के दिन सबले जादा रथे। सावन महीना के जम्मों सम्मार के दिन के उपास-धास, पूजा-पाठ के फल हा बच्छर भर के के सम्मार पूजा ले जादा फलदायी माने गे हावय।

सावन महीना के पुन्नी के दिन सरवन नछत्तर होय के कारन ए महीना के नाँव सावन परे हावय। सावन महीना मा भगवान शिवशंकर हा अपन ससुरार कैलासधाम आथे, एखरे सेती अउ सावन महीना शिवशंभू के प्रिय होय के सेती सावन महीना के सब्बो पूजा-पाठ, अराधना हा जलदी फल देवइया माने गे हावय। भगवान भोला भंडारी “आसुतोस” जौन हा सबले जलदी खुस होथे, सबले जलदी संतुष्ठ होथे अइसन महादेव के मनौती के पबरित सावन महीना के सम्मार हा होथे। धरती के चारोखूँट हरियर-हरियर सिंगार अउ बादर ले बरसत अमरित धार हा तन मन ला सांत अउ सीतल बना देथे। इही सीतल अउ सांत समय हा भक्ति अउ अराधना के सबले पबरित बेरा होथे। सबले बड़े देवता महादेव शिवशंकर भोलेभंडारी के सहज, सरल भक्ती अउ सेवा-सत्कार के सोनहा समय सावन महीना अउ सावन सम्मार हा हरय। ए सोनहा समय ला कोनो शिवभक्त मा कोनो हाल मा चुकना नइ चाहँय।

कन्हैया साहू “अमित”
परशुराम वार्ड-भाटापारा
जिला-बलौदा बाजार (छ.ग)
संपर्क-9753322055



The post शिवशंकर के सावन सम्मार appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

कलाकार के कला के नई रहिगे हे मोल

$
0
0

अभी के बेरा म छत्तीसगढ़ म कला के कमी नई हे अउ कलाकार मन के घलोक कमी नई हे, फेर कला के मान करईया मन के कमी होंगे हे। अब सब झन कला या कलाकार ल पइसा म तौलथे, ओखर जीवन भर के महेनत सम्मान के कोई अहेमियत नई समझे। छत्तीसगढ़ के भासा ल सविधान म सामिल नई करे गे हे तेखर कारन ईहा के कलाकार जेन मन अपन महतारी भाखा म अपन कला ला बगरावत हे तेखरो कमे पुछैया हे,तेखर सेती अतका बड़े कलाकार मन ला अपन कला ल पहिचान दिलाये के खातिर मंच म बइठ के लड़ना पडत हे। तभो ले कोनो कोती ले भी उखर कला के सम्मान नई होवत हे। छत्तीसगढ़ी कला ल भासा के माध्यम से चाहे गीत संगीत नाटक के माध्यम से कोनो न कोनो रूप म विस्व ईस्तर तक हमर छत्तीसगढ़ के कलाकार मन पहुचाये हे। फेर छत्तीसगढ़ अउ पण्डवानी ल विस्व इसतर म पहिचान दिलाने वाला स्वर्गी पूनाराम निषाद जी जात-जात येला दिखा दिस की एक छत्तीसगढ़ी कला कर के का हाल हे ये सब्बो कला कार मन बर शिख हे की अपन कला ला बगराये के पहली अपन महतारी भाखा ला बगराये ला लगही तभे उखर कला के मान हो पाही। नई तो कईथे न कुकुर असन गती हो जाही। दूसर राज के मनखे मन इहाँ आके मजा ले थे अउ हमरे राज के मनखे मन ल सम्मान नई मिलत हे अपन पहिचान बर लड़ना पडत हे। जो मनखे मन अपन जनम देवइया भूमि के अपन महतारी भाखा के मान नई कर सकय तेला दुसरो मन मान नई देवय। फेर हमर कला कर मन अपन कोती ले अपन महतारी भाखा बर लड़त हे तभो ले कुछु कमी तो रही गे हे जेखर कारन अपन भाखा ला मान सम्मन नई देवापात हन।
जतका छत्तीसगढ़िया संगी संगवारी मन हे चाहे कलाकार हो साहित्यकार हो क्रांतिकारी हो सब्बो झन मिल के अपन महतारी भाखा बर आधु आही तभे बात बन पाही।



सब ल मिल के एक जगहा ले अपन महतारी भाखा ल पहिचान दिलाये के खातिर आघु आये ल लगही। आघु देखहु त कुछु कुछु बदलाव दिखही बस संसो कर के अपन काम ल करे ल लगही फेर सब बने-बने हो जाही।
फेर छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी भाखा के मान के जिम्मा कोई कलाकार या कोई साहित्यकार मन नई ले हे। ये तो सब्बो छत्तीसगढ़िया मन के बुता हे। अपन बोली भाखा ल बगराना चाही सब्बो डहर जब दूसर राज के मनखे मन अपन भाखा ल हमर राज म आके बड़ हिम्मत ले बोलथे त फेर हमन इहा के रहईया मनखे मन अपन बोली भाखा ल बोले बर काबर लजाथन जब तक अपन बोली भाखा ल नई बोलबो नई सिखबो तब तक अपन अउ अपन राज के विकास नई कर सकन। त येखर बर सब्बो माई लइका सियान ल आघु आये ल लगही अउ अपन महतारी भाखा ल आघु बढ़ाये ल लगही।
जय जोहार,जय छत्तीसगढ़, जय छत्तीसगढ़ी क्रांति सेना।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर (छ.ग)
प्रशिक्षण अधिकारी आईटीआई मगरलोड धमतरी
मो:- 7722906664,7987766416


The post कलाकार के कला के नई रहिगे हे मोल appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

हमर हरेली तिहार

$
0
0


हमर हिन्दू धरम मा बच्छर भर के पबरित महीना सावन ला माने गे हे। भक्ती, अराधना, आस्था अउ बिसवास के पावन महीना सावन हा कहाथे। असाढ़ महीना हा जेठ के जउँहर जीवलेवा गरमी ले अधमरा अउ अल्लर परे जम्मों जीव जगत ला हबेड़ के उठाथे। सावन महीना धूमधाम ले आके सबो परानी मन के तन मन के पियास ला बुझाथे। सावन महीना सुग्घर रिमझिम फुहार ले खुशी के बिरवा ला पोसथे। चारो खूँट धरती दाई के कोरा हा हरियर-हरियर भर-भर दिखे ला धर लेथे।



जेठ के जबरहा घाम ले सबो परानी तन अउ मन ले लेसाय, झँउहाँय परे रथे। बरसा के चउमासा असाढ़, सावन, भादो अउ कुवाँर मा बादर जम के बरसथे। असाढ़ मनखे ला करम के पाठ पढ़ाथे। सबले जादा असाढ़ सावन के अगोरा हमर माटी के मितान अनदाता किसान मन ला होथे। बिन सावन के सरी संसार हा सुन्ना लागथे। सावन के बिना सबो के जिनगानी हा अबिरथा लागथे। हमर जिनगी के रखवार सावन महीना हा होथे। इही सुखदेवा सावन के संग मा खुशी अउ आस के बरसा हा संघरा संचरथे। एखर संगेसंग सावन के पबरित महीना मा तीज-तिहार के बहुतेच बढ़िया सुरुवात हो जाथे। इही पावन सावन महीना मा हमर छत्तीसगढ़ मा बच्छर के पहिलावँत तिहार हरेली हा घलाव हरियावत आथे। हरियर हरियर हरेली तिहार सबो झन बर खुशी के बरसात लाथे। ए हरेली तिहार हा जतका खुशी, उछाह, नवा उरजा अउ नवा जोस के तिहार हरय वोतका आस्था, बिसवास, परम्परा अउ अंधबिसवास के तिहार घलो हरय। वइसे तिहार हा मूल रुप मा मनखे के मन के खुशी अउ उछाह ला देखाय के एकठन उदिम हरय।
जब सावन के पबरित महीना मा धरती दाई के हरियर-हरियर अँचरा हा लहराथे ता सावन अमावसिया के दिन सुग्घर हरेली तिहार ला मनाथें। ए हरेली तिहार हा पुरखा के परमपरा ला पोठ करे के खाँटी देसी उदिम हरय। असाढ़ अउ सावन के आये ले जाँगर टोर कमइया कमिया किसान बर खाय-पीये के फुरसत घलाव नइ मिलय, बेरा-कुबेरा खवई-पियई चलथे। सावन के अधियावत ले खेती-किसानी के बुता-काम बोवाई-बियासी हा सिरा जाथे या फेर सिराय ला धर लेथे। अपन जाँगर अउ नाँगर संग सहमत देवइया सहजोगी मन ला मान अउ आदर दे बर हरेली तिहार ला सिरजाय गे हावय अइसन लागथे। किसानी मा काम अवइया जम्मों अउजार मन के संगे-संग भँइसा, बइला अउ गाय-गरवा मन ला नहा-धोवा के पूजा-पाठ करे के सुग्घर परंपरा हे ए तिहार मा। उँच अउ सुक्खा जघा मा मुरुम दसा के जम्मों किसानी के अउजार ला धो-पोछ सफा करके गुलाल, बंदन, चंदन-चोवा लगा के सदा संग साथ दे के आसीरबाद माँगे जाथे। संगे संग संगवारी बन के संग दे बर सादर धन्यवाद घलाव दे जाथे। हूम-धूप, अगरबत्ती जला के गुरहा गुरतुर चीला चढ़ाय के सुग्घर परमपरा हावय। नरियर फोर के परसाद बाँटे जाथे। किसान के किसानी मा सहजोगी पसुधन के मान-गउन इही दिन होथे। पसुधन ला नहा-धोवा के पूजा-पाठ करके इँखर बर जंगली जरी-बूटी, कान्दा अउ हरियर साग-भाजी ले बने खिचरी ला खवाय के परमपरा हावय। ए खिचरी हा पसुधन मन ला रोग-माँदी ले बचाय मा सहायक होथे। ए दिन इँखर रहे के ठउर कोठा के खँचवा-डीपरा ला पाट के बने बरोबर चुकचुक ले लीप बहार के साफ सुथरा कर दे जाथे। जरी बूटी ले बने खिचरी ला खवा के इही सफा जघा मा दिनभर बर बाँध के राखथें। ए दिन बाहिर भाँठा चारा चरे बर पसुधन मन ला नइ जान दँय। किसानी मा किसान के हाँथ-पाँव इँखर पसुधन अउ किसानी अउजार हा होथे। इँखर मान-गउन अउ सुरक्छा के बेवसथा ए तिहार के असल उदेश्य हरय।



हरियर-हरियर हरेली तिहार हा छत्तीसगढ़ के रग-रग मा बसे हे, रचे हे। एखर असल रंग हमर गाँव-गँवई मा सबले जादा देखे ला मिलथे। गाँव-गँवई के रहइया, खेती-किसानी कमइया हमर किसान भाई मन बर ए तिहार हा बड़ हाँसी-खुशी, उछाह अउ सरधा, बिसवास जताय के पबरित परब हरय। हरेली तिहार के दिन बड़े फजर ले तरिया-नँदिया मा असनाँद के अपन खेती-किसानी मा मदद करइया जम्मों अउजार मन ला धोथे-माँजे जाथे। खेती-किसानी के कारन सबके घर मा चूल्हा बरथे, जम्मों जीव-जगत ला दाना-पानी हमर किसानी ले मिलथे। इही सोच-समझ के किसान अपन किसानी के संगवार नाँगर, बख्खर, कोपर, रापा, चतवार, कुदारी, हँसिया, टँगिया, बसुला, पटासी, बिंधना, साबर काँवर अउ सबो समान जौन किसानी मा काम अवइया हर जीनिस के हियाव करके ओखर उचित मान-गउन पूजा-पाठ करथे। गुर अउ चाँउर पिसान के बने चीला, चौसेला, खीर ला सबो जीनिस मन मन ला भोग लगा के नरियर फोरे जाथे। हरेली ला नाँगर तिहार घलाव कहे जाथे। पूजा-पाठ के पाछू घर के लइकामन बर बाँस के गेड़ी साजे जाथे। लइकामन हा गेड़ी चढ़हे बर लकलकात रहिथें। गेड़ी मा चढ़के लइका जवान मन हा बड़ खुश हो जाथे। लइकामन एखर सेती ए तिहार ला गेड़ी तिहार के नाँव ले जादा जानथे। गेड़ी चढ़हे के पाछू मानता हे के सावन के आये ले, बादर के बरसे ले चारो खूँट चिखला मात जाय रथे, पानी भर जाथे। इही चिखला-पानी ले अपन ला बचाय के एकठन उदिम के रुप मा गेड़ी के चलन सुरु होय हावय अइसन मोला लागथे। सवनाही चिखला ले बाँचे के साधन के रुप मा गेड़ी के खोज हरय जउन खेल अउ सउँख के जीनिस बन गे। हरेली तिहार हा नवाबच्छर के पहिलावँत तिहार होय के सेती ए दिन लइका, जवनहा अउ सियान जम्मों झन मा नवा उरजा, नवा उछाह हा जबर झलकथे। इही उमंग अउ उछाह मा हरेली के दिन आनी बानी के खेलकूद अउ मनोरंजन के अयोजन दिन भर होवत रथे। हरेली के दिन जुरमिल के गुल्ली डंडा, खो-खो, फुगड़ी, बिल्लस, कबड्डी, खुरसीदउड़, डोरी कुदउल, दउड़ अउ गेड़ी दउड़ के संगेसंग रंग-रंग के बाजी लगाके नरियर फेकउला होथे। सुमता के दरशन हरेली तिहार के खेल अउ खेलाड़ी मा देखे ला मिलथे। हरेली के दिन गाँव भर मा जम्मों झन जोश अउ उछाह ले छलकत रथें। चारो खूँट धरती दाई के अँचरा ला हरियाय देख के मनखे के तन मन हा घलो उलहा पाना सरीक हरिया जाथे। सावन के सवनाही पानी परे ले जिनगी घलो नवा जोश अउ उमंग ले भर जाथे। हरियर परकीति ला देख के मन घलो मगन हो के झूमे नाचे ला धर लेथे, खुशी मनाय ला धर लेथे अउ अपन इही खुशी ला देखाय के माधियम होथे अइसन तीज-तिहार के अयोजन।
हरेली के दिन हमर गाँव-गँवई मा सबले पहिली अपन गाँव के देबी-देवता मन के मान-मनउव्वल, पूजा-अरचना करे जाय के बिधान हावय। गाँव ला कोनो परकार के रोग-राई, अलहन अउ परसानी ले बचाय खातिर ग्राम देवता के मान-गउन गाँँव के बइगा हा करथे। खेती-किसानी मा किसान के सबो सहजोगी मन घलो हरेली के दिन अपन-अपन बुता करे मा भिड़ जाथे। गाँव के राउत भाई मन हा गाँव भर मा जम्मों घर के सिंग दुवार मा लीम डारा ला खोंचथे। संगे-संग लोहार भाई मन सिंग दुवारी के चौखट मा लोहा के खीला ला ठोंकथे। हरेली के दिन गाँव के बइगा गुनिया अउ राउत पहाटिया मन हा पानी बरसात के बेमारी ले बचाय बर मनखे अउ मवेशी मन बर दसमूल कान्दा, बनगोन्दली अउ गहूँ पिसान के लोंदी के संग खम्हार पान ला अण्डा या फेर बगरण्डा पान संग खाय अउ खवाय बर देथे। ए उदिम मनखे अउ मवेशी मन ला रोग माँदी ले सुरक्छा करे खातिर करे जाथे। हरेली आय के आगू सावन महीना मा गँवई-गाँव मा अपन-अपन घर ला कोनो अलहन अउ अहित ले बचाय खातिर घर के बाहिर भिथिया मा गोबर ले हाथ के अंगरी मन ले सोज लकीर खींचे जाथे। ए सोज लकीर खिंचई हा एक परकार के सुरक्छा घेरा माने जाथे। गोबर के सोज्झे रेखा के संगे-संग मनखे के परतिक चिन्ह, सेर, गाय, बइला अउ आनी बानी के परतिक चिन्हा ला देवाल मा लिखे जाथे। अइसन घर-परवार अउ पसुधन ला कोनो नकसान ले बचाय बर करथे।
हरेली तो हरियर-हरियर चारो मूँड़ा बगरे हरियाली ला देख के अपन खेत-खार, धनहा-डोली मा धान के हरियर नान्हे पोठ पउधा ला देख के हरसाय के तिहार आय। हरियर-हरियर परकीति मा बगरे, सँवरे हरियर रंग हा मनखे मन ला घलो खुशहाली के हरियाली मा भर देथे। आँखी अउ मन मा हरियर रंग समा जाथे। इही हरियर रंग के सुग्घराई के सेती ए तिहार के नाँव हरेली परे हावय। हरेली तिहार हा बिसेसकर गँवई-गाँव अउ जंगलिहा राज मा जादा जरी जमाय हावय, सहर मा हरेली नंदावत हावय।



. गँवइहा जन जीवन के नस-नस मा लहू कस बोहावत ए हरेली तिहार हा आस्था अउ बिसवास के संगेसंग अँधबिसवास के घलो चिन्हउटा हरय। ए तिहार संग जतका मनखे मन के आस्था अउ विसवास जुरे हे ओतके टोटका, जादू-टोना अउ जन्तर-मन्तर के अँधबिसवास घलो भरे हावय। सावन अमावसिया, भादो अमावसिया, कुँवार अमावसिया अउ कातिक अमावसिया के दिन हा जन्तर-मन्तर अउ तन्तर बर बड़ शुभ माने गे हे। सावन अमावसिया के रतिहा हा सिद्धी अउ उपासना बर सबले जादा महत्तम रखथे। हरेली के दिनमान हा हाँसी-खुशी अउ खेल-तमाशा मा बित जाथे फेर रतिहा बेरा जंतर-मंतर के अनैतिक खेल हा शुरु हो जाथे। हरेली के रतिहा हा बइद, बइगा, जदुवा-टोनहा अउ टोनही जइसन साधना करइया मन बर बरदानी रतिहा माने गे हे। इही दिन कई ठन गँवई-गाँव मा नगमत साधना घलाव करे जाथे जौन हा साँप काटे के ईलाज ले संबंधित हावय। अइसन गोठ के कोनो अधार नइ रहय। जिहाँ असिक्छा अउ अगियान के अँधियारी छाहित हे उँहे अइसन अँधबिसवास हा जादा फूलथे-फरथे। गियान के अँजोर ले भरम अउ अँधबिसवास के जरी जर जाथे। एखर संगे-संग ए तिहार मा आज आधुनिकता के नाँव मा मंद-मँउहा अउ माँस के चलन भारी बाढ़ गे हे। गाँव मा तो हरेली के दिन माहोल हा मतवार मन के लायक बढ़िया रहीथे। हरेली ला गाँव मा लोगन मन हा छोटे होरी के नाँव ले घलाव जानथे। होरी जइसन पीये-खाय भकुवाय परे रथे हरेली तिहार के ओखी करके। नंदावत हरेली के परंपरा ला आज पोठ करे के जरुरत हावय। आधुनिकता के भेंट चढ़हत हमर आस्था अउ बिसवास ला बचाय के उदिम हमला अपन अवइया नवा पीढ़ी बर करना चाही। बच्छर के पहिली तिहार ला हाँसी-खुशी, सुमता-सुलाह अउ उच्छल मंगल ले मनाना चाही। खुशहाली के हरियाली मा अगियान अउ अँधबिसवास के अबरबेल हा सुग्घर समाज बर बने बात नो हे। हरेली तिहार के हरियर-हरियर, सुग्घर-उज्जर रीति-रिवाज ला पुरखा के परंपरा मान के एला पोठ करे के सरी उदिम आज समाज ला करना चाही। हरेली तिहार हा काखरो सुवारथ साधे के, कोनो के अहित करे के, कोनो ला दुख-पीरा दे के तिहार बिलकुल नो हे। टोनही-टोनही, ठुआ-टोटका मन हा सिरिफ मन के भरम आय अउ कुछू नो हे। असिक्छा, अगियान अउ अँधबिसवास हा कोनो देस अउ समाज बर कभू हितवा नइ हो सकय। हरेली हा इही संदेश देथे के हाँसी-खुशी मन मा हे ता सरी दिन हरेली होही। अंतस मा गियान के हरियाली हा असल हरेली कहाथे। इही असल हरेली ला सरी संसार भर मा बगराय के जतन करना चाही।

कन्हैया साहू “अमित”
परशुराम वार्ड-भाटापारा(छ.ग)
संपर्क~9753322055

उत्छाह के तिहार हरेली – संतोष कुमार सोनकर ‘मंडल’



The post हमर हरेली तिहार appeared first on गुरतुर गोठ : छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi).

Viewing all 391 articles
Browse latest View live