Quantcast
Channel: गोठ बात Archives - gurtur goth
Viewing all 391 articles
Browse latest View live

भोजली तिहार : किसानी के निसानी

$
0
0

हमर छत्तीसगढ़ देस-राज म लोक संसकिरीति, लोक परब अऊ लोक गीत ह हमर जीनगी म रचे बसे हाबय। इहां हर परब के महत्तम हे। भोजली घलो ह हमर तिहार के रूप म आसथा के परतीक हावय, भोजली दाई।

भोजली ह एक लोक गीत हावय जेला सावन सुकुल पछ के पंचमी तिथि ले के राखी तिहार के दूसर दिन याने भादो के पहिली तिथि तक हमर छत्तीगढ़ राज म भोजली बोय के बाद बड़ सरद्धा भकती-भाव ले कुंवारी बेटी मन अऊ ़नवा-नेवरिया माईलोगन मन गाथे।

असल म ये समय धान के बोआई अऊ सुरूवात के निंदाई-गोड़ाई के काम ह खेत म खतम होत्ती आये रहिथे अऊ किसान के बेटी मन घर म बने बरसात अऊ बने फसल के मनोरथ मांगे के खातिर फसल के परतीकात्मक रूप म भोजली के आयोजन करथे।

सावन के दूसर पाख याने पंचमी याने नाग पंचमी के दिन गहूं या जवा ल चिखला के माटी ल लाके ओखर उपर राख ल छिंच के गांव म माता चौरा, ठाकुर देव या फेर घर के पूजा-पाठ वाले जगह म जिहां अंधियार रहय तिहां बोय जाथे अऊ हरदी पानी छिंच-छिंच के बड़े करथे। घर म कुंवारी कनिया, बेटी माई मन येखर बड़ सेवा-जतन करके पूजा करथे अऊ जइसना देवी मॉं के जसगीत नवरात्रि म गाथे वईसने भोजली बोय के बाद ओखर सेवा म सेवा गीत, सिंगार गीत जुर-मिल के गाथे।

पीयर भोजली
दोहा- ठैंया-भुईयां हमर गांव के, ठाकुर देव रखवार।
भोजली के सेवक जुरेन, झोंका हमर जोहार।।

आवा गियां जूर मिलके, भोजली जगईबो।
हां भोजली जगईबों।।
हरदी पानी छिंची-छिंची,सेवा ला बजाईबों।
ह हो देवी गंगा।।
उठा-उठा भोजली, तंु जागा होसियारा।
हो जागा होसियारा।।
सेवा करे आये हावन, झोंका अब जोहारा।
ह हो देवी गंगा।।

माईलोगन मन अपन भोजली दाई ल जल्दी-जल्दी बाढ़े बर अरज करथे अऊ कईथे-
देवी गंगा, देवी गंगा लहर तुरंगा।
हमरो भोजली देवी भीजे आठो अंगा।।
माड़ी भर जोंधरी, पोरिस कुसियार हो।
जल्दी बाढ़ौ भोजली, होवौ हुसियार।।

अंधियार जगह म बोय भोजली ह सुभाविक रूप ले पीऊरा रंग के हो जाथे। भोजली के पीऊरा होय के बाद माईलोगन मन खुसी परगट करथे अऊ भोजली दाई के रूप ल गौर बरनी अऊ सोना के गहना ले सजे बता के अपन अरा-परोस के परिस्थिति ल घलो गीत म मिलाथे।
सिंगार गीत

गये बजार, बिसाई डारे कांदा।
बिसाई डारे कांदा।।
हमरो भोजल रानी, करे असनांदा।
ह हो देवी गंगा ।।
देवी गंगा, देवी गंगा, लहर तुरंगा।
हो लहर तुरंगा।।
तुहरो लहरा भोजली, भिजे आठो अंगा।
ह हो देवी गंगा।ं।

बरसात दिन म किसान के नोनी मन जब कछु समय बर खेती-किसानी ले रिता होथे त घर म आगू के ब्यस्त दिन के पहिली ले धान ले चांऊर बनाय बर ढेंकी ले धान ल कुटथे अऊ पछिंनथे-निमारथे। जांता म राहेर, अरसी, चना, बउटरा ल पिसथे। ये काम म थोरकुन देरी हो जाथे त समय निकाल के संगी-जवरिहा मन करा मिलके भोजली दाई के सामने जाथे अऊ ओखर सामने म अपन मन के बात ल ये परकार ले कहिथे।
कुटी दारे धाने, पछिनी डारे कोड़हा।
लइके-लइका हन, भोजली झन करबे गुस्सा।।

सावन महिना के सुक्ल पछ के पंचमी तिथि से ले के सावन पून्नी याने राखी तक भोजली माता के रोज सेवा करथे अऊ ये सेवा म गाये जाने वाला पारंपरिक गीत ल ही भोजली गीत कहे जाथे। हमर छत्तीसगढ़ राज म अलग-अलग जगह अलग-अलग भोजली गीत गाये जाथे पर गाये के ढंग अऊ राग ह एकेच हावय।

सावन महिना के सुक्ल पछ के पंचमी तिथि से ले सावन पून्नी याने राखी तक भोजली के सेवा जतन करके भादो के पहिली तिथि के भोजली माता बिसरजन बर कुवांरी कनिया मन टुकनी मन लेके मुड़ी म बो के एक के पाछू एक करके गांव के तलाव म ले जाथे। जेला भोजली ठंडा करे जाथे, कईथे। ये पूरा बिसरजन यात्रा म बेटी माई मन भोजली गीत गावत जाथे अऊ संगे-संग मांदर, मंजीरा के थाप के सुघ्घर धुन ह मन म भकती के भाव अपने आप जगाये लगथे। पून्नी के दिन भोजली ठंडा करे समय साम के बेरा पूरा गांव म खुसी के अऊ भकती के माहौल बन जाथे। फेर भोजली दाई ल अच्छा फसल के मनोरथ के साथ तालाव के पानी म बिसरजन कर देथे। बेटी माइमन भोजली बिसरजन के बाद जस गीत के जईसे भोजली के बिरह गीत गाथे काबर के ये 10-12 दिन ले भोजली माता के सेवा जतन करे म वोखर से भावात्मक रूप से जुड़ाव हो जाये रईथे। भोजली के बिसरजन के बेरा थोरकन भोजली ल गांव के मनखेमन भगवान घलो म चढ़ाथे अऊ सियान मन ल येला दे के गोढ़ ल छू क आसीस लेथे। ये भोजली से छत्तीसगढ़ के बेटीमाई मन के भावात्मक संबंध हे ऐखरे कारन तो ये भोजली के दू-चार पउधा ल एक-दूसर के कान म खोंच के तीन-तीन पीढ़ी बर मितान, गिया बदथे अऊ सगा जइसे मानथे अऊ रईथे।

पर आज कल हमर ये परब मन अब केवल गांव-गांव म ही रह गे हे। सहर म तो केवल नेंग मात्र हो गे हे। संगवारी हो हमर ये सभयता अउ संसकिरीति, लोक परब, लोक गीत अउ तिहार मन ल नंदाय ले बचना हे जेखर ले हमर पहिचान हे अगर वो तिहार मन नंदा जाही त हमनके पहिचान नस्ट हो जाही।

प्रदीप कुमार राठौर ’अटल’
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला-जांजगीर चांपा
(छत्तीसगढ़)


अटल बिहारी वाजपेयी ‘‘राजनीतिज्ञ नई बलकि एक महान व्यक्तित्व रहिन’’

$
0
0

अटल बिहारी वाजपेयी के जनम 25 दिसम्बर बछर 1924 को ग्वालियर म एक सामान्य परिवार म होय रहिस। उंकर पिता जी के नाव कृष्ण बिहारी मिश्र रहिस। जे ह उत्तर परदेस म आगरा जनपद के प्राचीन असथान बटेश्वर के मूल निवासी रहिस। अउ मध्यपरसेद रियासत ग्वालियर म गुरूजी अउ एक कवि रहिस अउ उकर मॉं के नाम कृष्णा देवी रहिस। तीन बहिनी अउ भाई म सबसे छोटे अटल बिहारी ल उंखर दादी प्यार ले अटल्ला कई के बुलावत रहिस। काबर के अटल के पिता शिछक अउ कवि रहिस ये कारन ले अटल जी ल कविता बिरासत म मिलिस। अटल जी ह जब कछा 5 वीं म रहिस त एक प्रतियोगिता म अपन पहली भाषन दिहिस पर अटल जी अपन रटे भाषन ल बीचे म भूलागे त अटल ह कसम खाईस के कभू रटे भाषन नई दो। अटल जी जब 1939 म विक्टोरिया कालेज ग्वालियर म कछा 9 वीं म रहिस त पहली बार उंकर कविता कालेज के पत्रिका छपे रहिस। अटल जी विक्टोरिया कालेज (अब रानी लछमीबाई महाविद्यालय) ले बी.ए. करिस। येखर बाद दयानंद एंग्लो वैदिक महाविद्यालय ले राजनीति म स्नातकोत्तर करिस। बाद कानून म इसनातक करत रहिस त उंखर पिता घलो विधि में इसनातक बर अटल जी के कछा म ही दाखिला लिहिस अउ छात्रावास के एके ही कमरा म रईके पढ़ाई करत रहिस।

लोगनमन बाप-बेटा ल देखे बर आये करत रहिस, पर छात्र अटल ह कानून के पढ़ाई बीच म ही छोड़के पूरा निस्ठा से संघ के कार्य में जुट गे। अटल जी जब सन् 1942 म भारत छोड़ो आंदोलन म हिस्सा लीस अउ उनला जेल जाना पड़िस पर वो ह देस के आजादी खातिर पीछे नहीं हटिस। जब वो ह पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के संपर्क म आईस त उनला रास्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचार-प्रसार करे के मौका मिलीस। वा ह अपन जीवन रास्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के रूप म आजीवन अविवाहित रहे के संकल्प लेके सुरू करिस अउ अंतिम समय तक संकल्प ल पूरा निस्ठा से निभाईस। रास्ट्रीय जनतांतत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के पहली परधानमंतरी रहिस जेहा गैर कांग्रेसी परधानमंतरी पद के 5 साल बिना कोनो रूकावट के पूरे करिस। वो ह कई पारटी ल जोर के सरकार बनाये रहिस, कभी कोनो पारटी ह दबाव नई डारिस। येखर से उकर अद्भुत नेतृत्व छामता के पता चलते। उनला रास्ट्रधर्म पत्रिका (हिन्दी मासिक) के सम्पादन के घलो मौका मिलीस। येखर बाद आजादी के तुरंत बाद 14 जनवरी, सन् 1948 को मकर संक्राति के पावन पर्व पर अपने आवरण पृष्ठ पर भगवान श्री कृष्ण के मुख से शंखनाद के साथ श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संपादकत्व म पाचजन्य रास्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक के अवतरण स्वाधीन भारत म स्वाधीनता आन्दोलन के प्रेरक आदर्स अउ राष्ट्रीय लछय ल सुरता दिलाय के संकलप के उद्घोस रहिस। वाजपेयी जी अपन संपादकीय में लिखिस- कुरूक्षेत्र के कण-कण से पांचजन्य फिर हुंकार उठा है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अउ पं. दीनदयाल उपाध्याय के निरदेसन म राजनीति के पाठ तो पढ़िस संगे-संग पाचजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश अउ वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिका के संपादन के काम ल कुसलता के साथ करिस।

आजादी के बाद हिन्दी पत्रकारिता बर ये कम गौरव के बात नई हे कि कोखरो व्यक्तिगत स्वामित्व अथवा औघोगिक घराना के छत्र छाया से बाहर रहकर घलो ’’पाचजन्य’’ साप्ताहिक अपन स्वरन जयंति मानाइस अउ ओ स्वर्ण जयंति बछर म वोखर पहिली संपादक भारत के परधानमंतरी पद पर आसीन रहिस वो ह रहिस अटल बिहारी वाजपेयी जी।

अटल जी ल संसद के चार दसक के अनुभव रहिस। बछर 1955 म वोहा पहली बार लोगसभा के चुनाव लड़िस पर जीत नई मिलिस, पर वोहा हार नई मानिस अउ बछर 1957 म बलरामपुर जिला गोण्डा उत्तर प्रदेश से जनसंघ के प्रत्यासी के रूप म जीत के लोकसभा पहुॅचिस। वोहा बछर 1957 से संसद सदस्य रहिस। वोहा हिन्दु, मुस्लिम के बीच बहुत लोकप्रिय रहिस। वोहा 2,4,5,6,7,10,11,12,13,14 लोकसभा बर चुने गे रहिस। ये परकार ले वोहा 10 लोकसभा चुनाओं में चुन के आये रहिस। बछर 1962 व 1986 म वोहा राज्यसभा सदस्य रहिस। वोहा चार अलग-अलग राज्य उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, दिल्ली ले चुने जाने वाले देश के पहली सांसद आये। अटल जी ल सरकारी सुविधा के गलत इस्तेमाल करना बिल्कुल पंसंद नई रहिस। अटल जी ल सायकिल चलाये के बहुत सौक रहिस, जब वोहा ग्वालियर से लोकसभा सदष्य रहिस त अपन लोकसभा छेत्र म सायकिल म ही चल देत रहिस। अटल जी ल सिफारिस करना या करनवाना सक्त नापसंद रहिस। वोहा अपन परिवार अउ सगे संबंधी मन ल बोले करत रहिस के आगे बढ़ना हे त अपन दम म बढ़ा।

वाजपेयी जी ह कई संस्था मन के अस्थापना घलो करे रहिस। वो ह भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य म ले एक रहिस। बछर 1951,1968-1973 तक येखर अध्यक्ष घलों रहिन। बछर 1957 ले 1977, 20 वर्ष लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहिस। 1975 म जब आपातकाल के घोषना होइस त तत्कालीन जनसंघ ल घलो संघ के साथ प्रतिबंध लगा दिहिस अउ आपातकाल हटे के बाद जनसंघ के विलय जनता पार्टी में हो गे अउ केन्द्र में मोरारजी देसाई के परधानमंतरीत्व म मिलीजुले सरकार बनीस। मोरारजी देसाई सरकार म बछर 1977-1979 तक बिदेश मंतरी रहिस अउ बिदेशों म भारत के अच्छा छवि बनाईस।
अटल जी के एक ईच्छा रहिस के उनला मौका मिलतिस त कोनो बैस्बिक स्तर के सभा म अपन भासन हिन्दी म ही देतेवे। अटल जी जब विदेश मंत्री रहिस त वो अवसर बछर 1977 म आ ही गे जब वोहा संयुक्त रास्ट्र संध के समान्य सभा म अपन वक्तव्य हिन्दी म दिहिस अउ वो पहिली ऐसे भारतीय बनिस जे ह भारत के राजकीय भाषा हिन्दी ल बिश्व पटल म सुसोभित करिस। अटल जी हिन्दी के संगे-संग अंगरेजी भाषा घलो म बने पकड़ रहिस। वोहा बछर 2000 म अमेरिका म अंगरेजी भाषा म अपन वक्तव्य दिहिस जेखर ले पूरा सभा ताली ले गंूज गे।
बछर 1980 म जनता पार्टी ले असंतुष्ट होके वाजपेयी जी ह जनता पार्टी छोड़ दीहिस अउ भारतीय जनता पार्टी के अस्थापना करिस। 6 अप्रेल 1980 म बने भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के जिम्मेदारी घलो वाजपेयी जी सौपे गईस। बछर 1980 के समय जब भारतीय जनता पार्टी की अस्थापना के तैयारी चलत रहिस तब समस्या आईस के पारटी के चिन्ह का होही। काबर के अटल जी ल कमल के फूल बहुत प्यारा रहिस अउ ओखर कहना रहिस के कमल कीचड़ घलो म खिल के सुंदर दिखथे येखर कारन भारतीय जनता पारटी के चिन्ह कमल के फूल रखे गईस। अटल जी ह अपन कविता म भारतीय जनता पारटी के उदय के बिषय लिखथे-
अंधेरा छटेगा ,
सूरज निकलेगा,
कमल खिलेगा।

कवि के रूप में वाजपेयी – अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होय के संगे-संग एक कवि घलो रहिस। ‘‘मेरी इंक्यावन कविताएं’’ अटल जी के परसिद्ध काव्य संग्रह हे। वाजपेयी जी ल काव्य रचना के शैली बिरासत म मिले रहिस। उंखर पिता कृष्ण बिहारी वाजपयी ग्वालियर रियासत म अपन समय के जाने-माने कवि रहिन। वो ह बरज भाखा अउ खड़ी बोली म काव्य रचना करत रहिन। पारिवारिक वातावरण साहित्यिक अउ काव्यमय होय के सेतर ओकर घलो रूचि काव्य रचना रहिस। सित्तो म कोनो ह कवि हृदय कभू कविता से रिता नई रह सकय। राजनीति के संगे-संगे पूरा रूप म अउ रास्ट्र के परति उंखर वैयक्तिक संवेदनशीलता सुरू ले आखिरी तक परगट होत रहिस। ओखर संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थिति, राष्ट्रव्यापी आंदोलन, जेल-जीवन जईसे कई आयामों के परभााव अउ अनुभूति ह काव्य म हमेंसा अभिव्यक्ति पाय हावय। अटल जी के कविता ‘‘मौत से ठन गई’’ म अटल जी लिखते –
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई
यों लगा जिंदगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है?दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नही।
मैं ज़ी भर जीया, मैं मन से मरुॅ,
लौटकर आऊॅंगा, कूच से क्यों डरुॅ?
तू दबे पाव, चोरी छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

येखर अलावा वाजपेयी जी ह अनेक परकार के गद्य अउ कविता के रचना करिस जे ह उंकर कवि हृदय ल दिखाथे। उंखर रचना म- अमर बलिदान (लोकसभा में अटल जी के वक्तव्यों का संग्रह), कैदी कविराय की कुण्डलियां (आपात काल के दौरान लिखि कविताएं), संसद के तीन दशक, अमर आग है।, कुछ लेख कुछ भाषण, सेक्यूलर वाद, राजनीति की रपटीली राहें, बिन्दू-बिन्दू विचार, मेरी संसदीय यात्रा (चार भागों में), संसद के चार दशक (भाषणों का संग्रह), भारत की विदेश नीति के नए आयाम (विदेश मंत्री के रूप में दिए जाने वाले भाषण 1977-79),, शक्ति से शांति, क्या खोया क्या पाया परमुख हावय। गजल गायक जगजीत सिंह ह अटल जी के परसिद्ध कविता मन ल संगीतबद्ध करके एक एलबम बनाये हावय।
अटल जी ल मिले पुरूस्कार – बछर 1992 में पद्म विभूषण, 1994 मेें लोकमान्य तिलक पुरूस्कार, पं. गोविन्द वल्लभ पंत पुरूस्कार घलो ले सम्मानित किये गे हावय। पं. गोविन्द वल्लभ पंत पुरूस्कार उंहला सबसे अच्छा सांसद होय बर , बछर 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय ह उंनला डॉक्टरेट के मानद उपाधि ले सम्मानित करिस। 2015 म देस के सबले बड़का पुरस्कार भारत रत्न भारत सरकार उनला दे हे रहिस।
परधानमंतरी के रूप म अटल जी के कार्यकाल – वाजपेयी जी ने एक बार नई तीन बार गैर कांग्रेसी सरकार बनाइस। पहिली बार 16 मई 1996 ले 1 जून 1996 तक 13 दिन, दूसर बार 19 मार्च 1998 ले 22 मई तक 13 महिना अउ फेर बछर 2004 तक तीसरा कार्यकाल पूरा 5 बछर पूरा करिन।
परधानमंतरी के रूप म अटल जी के कार्यकाल मेे महत्वपूर्ण निरनय
1. भारत ल परमानु सक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनाना- अटल सरकार ह 11 व 13 मई 1998 म राजस्थान के पोखरण म 5 ठन जमीन के अंदर देस के दूसर परमानु परीक्षण बिस्फोट करके भारत ल परमानु सक्ति सम्पन्न देस घोसित कर दिहिस। ये कदम ले ओ ह भारत ल निरविवाद रूप ले बिस्व मानचित्र म एक सुदृढ़ बैस्विक सक्ति के रूप म अस्थापित कर दिहिस। ये सब येतका गोपनीय रूप ले करिस के बिकसीत जासूसी उपग्रह अउ तकनीकी ले सम्पन्न पश्चिमी दस घलो ल येखर भनक तक नई होईस। येखर बाद पश्चिमी देस मन भारत म कई परकार के पाबंदी लगा दिहिस पर वाजपेयी सरकार ह सबके दृढ़ता से सामना करत आरथिक बिकास के नवा उंचाई ल छू दिहिस। येखर ले उंकर दृढ़ इच्छा सक्ति दिखथे।
2. पाकिस्तान करा संबंध म सुधार के पहल- बछर 19 फरवरी 1990 म सदा-ए-सरहद नाव ले दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा सुरू करिस। येखर उद्घाटन करत पहिली यात्री के रूप म वाजपेयी जी ह पाकिस्तान के यातरा करके नवाज सरीफ करा मुलाकात करिस अउ आपसी संबंध म एक नवा जुग के सुरूवात करिस। संगे-संग खेल संबंध के मामला म अटल जी ह भारत अउ पाकिस्तान के बीच खेल ल बढ़ावा देहे बउ अटल जी ह कई खेलईया मन जइसे कपिल देव के संग फिलम जगत के मन ल जेमा देवानंद सामिल रहिन अपन प्रतिनिधि मण्डल के साथ पाकिस्तान ले के गईस अउ। अउ आपसी संबंध ल सुधारे के उदिम करे रहिस।
कुछ समय बाद पाकिस्तान के वो समय के सेना परमुख परवेज मुसर्रफ के सह पर पाकिस्तानी सेना अउ उग्रवादी मन कारगिल छेत्र म घुसपैठ करके भारत के कई पहाड़ी चोटी मन म कब्जा कर लिहिस। अटल सरकार ह पाकिस्तान के सीमा के उल्लंघन नई करे के अंतर्राष्ट्रीय सलाह के सम्मान करत धैर्यपूर्वक पर ठोस कार्यवाही करके भारतीय छेत्र ल छुड़वाईस। अटल जी ह बिघ्न -बाधा ले हार नई मानने वाला मन म ले एक रहिन। वो ह देस के कोनोे समस्या चाहे वो ह आंतरिक हों, चाहे राजनीतिक हों, चाहे अंतर्राष्ट्रीय हो, चाहे विदेशी मामला हो ओखर बड गंभीरता, धीरता एवं दृढ़ता पूरवक सबो ल साथ लेके हल करे के उदिम करय। उंखर कबिता ’’कदम मिलाकर चलना होगा ” कबिता ले हमन ल ये ही सीख मिलथे-
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम लिमाकर चलना होगा।

3. परधानमंतरी ग्रामीण सड़क योजना- वाजपेयी सरकार के केन्द्रीय मंत्रीमण्डल ह ये योजना के नाव ल अटल जी के नाव से चलना चाहिस पर अटल जी ह येला परधानमंतरी ग्रामीण सड़क योजना के नाव दिस अउ वो ह 1000 ले जादा के आबादी वाला गांव मन ल बारहमासी रद्दा के माध्यम ले सहर ले अउ रास्ट्रीय राज्यमार्ग ले जोड़ के गांव ले परिवहन माध्यम से जोड़ दिहिस जेखर ले गांव के चहँुमुखी बिकास सम्भव हो सकिस जो के पाछू 50 बछर म नई हो पाये रहिस। ओखर ये योजना के कारन आज देस के हर गांव ह मेन रोंड से जुड़ गे हावय। जेखर कारन आज गांव के अपन फसल, गोरस, सब्जी-भाजी मन ल बेचे बद अउ बिमार मनखे मन के ईलाज बर तुरते सहर पहुंच जावथे।
4. स्वर्णिम चतुर्भूज योजना- भारत देश के चारों कोना ल सड़क से जोड़े बर स्वर्णिम चतुर्भूज परियोजना (गोल्डन क्चाड्रिलेट्रल प्रोजेक्ट) जेला जी.क्यू. प्रोजेक्ट के नाव ले जाने जाथे के शुरूवात करिन। जेमा दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, अउ मुंबई ल राजमार्ग से जोड़े गईस। अइसनहा माने जाथे के अटल जी के शासनकाल म भारत म जेतना रद्दा बनिस ओतना सिर्फ शेरशाह सूरी के समय म ही होय रहिस।
5. सर्व शिछा अभियान- सर्व शिक्षा अभियान के शुरूवात अटल जी के कार्यकाल के एक बड़े उपलब्धि हे। जेमा वो ह प्राथमिक अउ पूर्व माघ्यमिक म पढ़िया लईकन मन के सिछा के स्तर ऊँचा करे बर हर 5 कि.मी. के दूरिहा म प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक इसकूल खोलिस। जेखर संगे-संग गुरूजी मन के भरती घलो करे गे रहिस जेखर से देस म बेरोजगारी के समस्या के कुछ हद तक समाधान होईस हावय।

संरचनात्मक ढाँचा बर कार्यदल, साप्टवेयर विकास बर सूचना अउ प्रौघौगिकी कार्यदल, विघुतीकरण म गति लाये बर केन्द्री विघुत नियामक आयोग के गठन करिस। 100 बछर ले जादा समय ले बिवादित चले आवत कावेरी नदी जल बिवाद ल सुलझाइस। राष्ट्रीय राजमार्ग अउ हवाई अड्डा के बिकास, नवा टेलीकाम नीति अउ कोंकन रेलवे के शुरूवात करके बुनियादी संरचनात्मक ढँाचा ल मजबूत बनाईस।

6. तीन राज के गठनः- बछर 2000 में तीन राज छत्तीसगढ, झारखण्ड अउ उत्तराखण्ड बनाये के निरनय लिहिस। आज जो हमर छत्तीसगढ़ राज ह बिकास के रद्दा म आघू बढ़त हावय वो ह अटल जी के अटल निरनय के कारन ही है। वो ह भारत माता के सच्चा सपूत रहिस।

अटल जी भाजपा पारटी के वो आदरस चेहरा हे जेखर आघू सबो राजनीतिक दल घलो नतमस्तक हो जाथे। बहुत बढ़िया कवि, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, महान राजनीतिज्ञ अउ एक सफल प्रधानमंत्री के रूप म अपन पहिचान बनाने वाला अटल जी आज हमर बीच म नई हे लेकिन ओखर आदरस, सिद्धांत,सादा जीवन जीये के कला, करतब्य परायनता, ईमानदारी गोठ-बात अउ उंखर कबिता मनखेमन के मन म जिन्दा अउ प्रासंगिक हे। आज अटल जी जईसे नेता खुद भाजपा म घलो कोनो नई हावय। रानजीतिक दल भी कईथे के अटल जी जईसे कोनो नई हे। अटल जी के बारे येहू कहे जाथे के वो ह अकेल्ला ही जनाधार के बल म सत्ता चला सकत रहिस। ओखरे कारन भाजपा ह एक नहीं तीन नही अब पांचवा पईत सत्ता म हावय। भले ही पहली पईत 13 दिन, दूसरी पईत 13 माह, और तीसरी, चौथी अउ पांचवा पईत पूरे 5 वर्ष तक शासन करिस अउ करत हावय। अटल जी के अंदर एक सुंदर कवि घलो हावय, जेहा समय-समय म देस के मनखे मन के बीच उपंिस्थत हो जात रहिस। ओखर छंद म बने मिठास घलो हावय। अइसना महान व्यक्तित्व के धनी ल जे भारत देस के गौरव है, देस के असनहा अनमोल रतन ल भारत रतन से सम्मानित करे गईस ते ह गौरव के बात हावय।
अटल जी ह अपन रचना ‘‘दो अनुभूति‘‘ शीर्षक कबिता म लिखे हावय-

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी,
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी,
हार नहीं मानूॅंगा,
रार नहीं ठानूॅंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हॅू
गीत नया गाता हॅूं।

अटल जी ह बछर 2005 म ये घोषना कर दिहिस के अब सक्रिय राजनीति म नई रहव पर संगठन बर काम करत रहूं। आज अटल बिहारी वाजपेयी जी हमर बीच नई हावय लेकिन जब ओला ओ समय पता चलिस होही जब वो बिमार रहिस अउ 16 वां लोकसभा म भाजपा पूरा बहुमत के साथ देस के सत्ता अपन हाथ म ले लेहे हावय त उंखर खुसी के ठिकाना नई रहे होही। जब बछर 1984 के 8 वां लोक साभा म ओ ह जे राजनीतिक दल के बीजारोपण कर ओला अपन मेहनत, लगन, निष्ठा अउ आदरसवादिता के पानी ले सींच के 2 लोकसभा सीट, 1989 – 9 वां लोकसभा म 85 लोकसभा सीट, 1991 – 10 वां लोकसभा म 120 सीटं, 1996- 11 वां लोकसभा म 161 सीट, 1998- 12 वां लोकसभा म 182 सींट 1999-13 वां लोकसभा म 182 सींट, 2004- 14 वां लोकसभा म 138 सींट, 2009- 15 वां लोकसभा म 116 सींट, के रूप म एक छोटे-से पउधा ल सुरछित रखे रहिस, वो ह आज 2014 – 16 वां लोकसभा म 282 लोकसभा सीट अउ 17 लोकसभा 303 सीट जी के एक बिशाल वट वृक्ष के रूप म अपन गहरा जड जमा के अपन प्रतिष्ठा प्राप्त कर ले हे हे त उंखर आत्मा ह बड़ खुस होवत होही। उंखर कबिता ’’ जीवन की ढलने लगी साँझ ” म ओ ह ये जीनगी के असल मतलब ल लेहे हावय-
जीवन की ढलने लगी साँझ
उमर घट गई
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी साँझ
बदलेे है अर्थ
शब्द हुए व्यर्थ
शांति बिना खुशियां है बांझ
सपनों में मीत
बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।
जीवन की ढलने लगी साँझ।

अटल जी के जीनगी के प्ररमुख तथ्य- अटल जी आजीवन अविवाहित रहिन। वो ह ओजस्वी वक्ता अउ हिंदी भाखा ले परेम करने वाला मन म लेे एक हिंदी के कबि ये। अटल जी सबसे लंबा समय तक सांसद रहिस अउ जवाहरलाल नेहरू अउ इंदिरा गांधी के बाद सबसे लंबा समय तक गैर कांग्रेसी परधानमंतरी घलो रहिस। वो ह पहिली प्रधानमंत्री रहिस जेहा गठबंधन सरकार ल न केवल स्थायित्व दिहिस बलकि सफलता पूरवक संचालित घलो करिस। देस के पहिली राष्टपति राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल जी ल अटल जी के परति बहुत लगाव रहिस। पूर्व परधानमंतरी चंद्रशेखर, अटल जी ल गुरू जी कहकर पुकारत रहिस। पूर्व परधानमंतरी डॉ.मनमोहन सिंह जी अटल जी ल भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह कईथे। लता मंगेशकर, मुकेश, मो.रफी अटल जी के पसंदीदा गायक अउ गायिका रहिस।

अटल जी के टिप्पनीः-
चाहे देस के बात होवय, चाहे क्रांतिकाारी के, चाहे अपन कबिता के होवय, चाहे नेता प्रतिपछ के होवय, चाहे परधानमंतरी के नपे-तुले अउ बेबाक टिप्पणी करे म अटल जी कभी नई चूकिस। ओखर कुछ टिप्पनी ये परकार ले हावयः-
भारत ल लेकर मोर एक दृष्टि है, अइसे भारत जो भूख, भय, निरछरता अउ अभाव से मुक्त हों।
क्रांतिकारी के साथ हमन नियाव नई करेन – देसबासी महान क्रांतिकारी मन ल भूलात हावय। आजादी के बाद अहिंसा के अतिरेक के कारन ये सब होवत हावय।
अटल जी की हर कबिता ले हमन ल आघू बढ़े के प्रेरना मिलथे अउ ओमा मानवता के दरसन होथे। उंखर कबिता ‘‘आओें फिर दिया जलाऐं’’ म ओ ह लिखथे:-
आओें फिर दिया जलाएॅं
भरी दुपहरी में अॅंधियारा,
सूरज परछाईयों से हारा,
अंतरमन का नेह निचोड़े-
बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओें फिर दिया जलाए।

देस के प्रतिनिधि मंडल के रूप म अटल जी की बिदेस यातारा- बाजपेयी जी कई बार देस के प्रतिनिधिमंडल के संग बिदेस मन होन वाला अंतर्राष्ट्रीय संस्था के सभा म सामिल होय बर यातरा करिन। सबसे पहिली ओ ह बछर 1965 म संसदीय सद्भावना सिष्टमंडल के साथ पूरब अफरीका के यातरा बर गे रहिस। वो ह भारत के संसदीय प्रतिनिधिमंडल के संग बछर 1967 म आस्ट्रेलिया, 1983 में यूरोपीय देस, 1987 म कनाडा घलो गे रहिस। वो ह राष्ट्रमण्डल संसदीय परिषद के सभा बर कनाडा म बछर 1996,1994, जाम्बिआ म 1980 भारतीय सिष्टमंडल के सदस्य म सामिल रहिन।
वो ह वा भारतीय प्रतिनिधिमंडल घलो म सामिल रहिन जे ह जापान म अंतर संसदीय संघ के कान्ॅफ्रेंस 1974, सिरीलंका म 1975, स्वीट्जरलैण्ड म 1984 म सामिल रहिस। वे संयुक्त राष्ट्र संघ के सभा म सामिल होने वाला भारतीय संसदीय सिस्टमंडल के नियमित सदस्य रहिस अउ 1988,1990,1991,1992,1993,1994,1996 म सामिल होईस।
वो ह मानवाधिकार आयोग सम्मेलन 1993 म जिनेवा म भारत के प्रतिनिधित्व करत भारतीय प्रतिनिधिमंडल के संग सामिल होईस अउ बाह्य कार्य स्थायी समिति म भारतीय प्रतिनिधिमंडल के रूप म गल्फ दस बहरीन, ओमान, कुवैत के घलो यातरा करिन।
एक पत्रकार, ओजस्वी वक्ता, जनकवि, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आपातकाल म मीसा बंदी, बिदेश मंत्री, मॉं भारती ल बिश्व म गौरवान्वित करने वाला, अपन भाखा हिंदी के मान रखने वाला अउ फेर एक परधाननमंत्री, भारतीय जनता पारटी के पितृ पुरूष अउ भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह के रूप सबो जगह अपन लोहा मनवाने वाला अटल जी कोनो एक दल के नेता नई हे बरन वो ह एक बैस्बिक नेता रहिन अउ आगू घलो रही। वो ह आज घलो पूरा भारत देस के लोगनमन के हिरदय म राज करथे अउ हमेसा करही। वो ह अद्वीतीय प्रतिभा के धनी रहिस। अब भले ही हमन ल उंखर भासन सुने बर नई मिलय पर उंखर लिखे कबिता अउ बोले भासन सुन के अइसे लगथे के आज भी अटल जी हमार सामने खड़े होके अपन ओजस्वी स्वर म मारगदरसन अउ प्रेरना देवत हे। युवा पीढ़ी ल उंखर जीनगी लेे प्रेरना लेना चाही। आज अटल जी हमार संग नई हे पर वो अटल सितारा जुग-जुग तक चमकत रही अउ ओखर परकास ले हमर जीनगी ल सही रद्दा अउ प्रेरना मिलत रही। ओ अटल महापुरूष ल बारम्-बार नमन।
प्रदीप कुमार राठौर “अटल“
ब्लाक कालोनी जांजगीर जिला-जांजगीर चांपा (छ.ग.)

छत्तीसगढ़ महतारी के रतन बेटा- स्व. प्यारे लाल गुप्त

$
0
0

हमर छत्तीसगढ़ ला धान के कटोरा कहे जाथे अउ ए कटोरा म सिरिफ धाने भर नई हे, बल्कि एक ले बढ़ के एक साहित्यकार मन घलाव समाए हावय। ए छत्तीसगढ़ के भुइंया म एक ले बढ़ के एक साहित्यकार मन जनम लिहिन अउ साहित्य के सेवा करके ए भुइयां मे नाम कमाइन। हमर छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा म स्व. प्यारेलाल गुप्त जी 17 अगस्त सन् 1891 में छत्तीसगढ़ के प्राचीन राजधानी रतनपुर में जनम लिहिन। प्राथमिक शिक्षा ल रतनपुर में ग्रहण करे के बाद आगू के पढ़ाई करे बर बिलासपुर आ गे रहिन हावय।

शिक्षक पिता के आदर्श, सरलता अउ सहजता के संगे-संग उॅखर साहित्य साधना के प्रभाव प्यारे लाल गुप्त में लइकई उमर में ही पर गे रहिस हावय। हालाकि इंखर शिक्षा मेट्रिक तक हो पाय रहिस हावय फेर स्वाध्याय के द्वारा हिन्दी, छत्तीसगढी,़ मराठी अउ अॅग्रेजी चारों भाषा म इंखर अच्छा पकड़ रहिस हावय। इंखर साहित्य साधना अउ स्वाघ्याय के गुन हर सदा बने रहिस। बहुत कम उमर में इंखर रचना कांशी के मासिक पत्र इन्दु में पहली रचना प्रकाशित होइस जउन हर बहुत सराहे गइस अउ फेर इंखर कलम हर गति धर लिहिस।

इंखर बहुत अकन रचना छत्तीसगढी़ अउ हिन्दी भाषा में गद्य अउ पद्य दूनो म पढ़े बर मिलथे। मूल रूप में इंखर छबि गद्य के रचनाकार के रूप में बने रहिस फेर हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा म बहुत अकन लोकप्रिय गीत के रचना घलाव इंखर पढे़ अउ सुने बर मिलथे। अइसे कोनो विधा नई हे जेमा इमन अपन कलम नई चलाय हे। प्रकृति चित्रण इंखर रचना के विशेषता रहिस हावय। इंखर कविता के कुछ पंक्ति हावय-

चली किसानिन धान लुवाने, सूर्य किरण की छॉव में।
कान में खिनवा, गले में सूता, हरपा पहिने पॉव में।।
एक जघा एमन लिखथें-
स्ूरज दिन में होली, चॉद खेलता रात में।
धरती की होती है होली, चार माह बरसात में।।
ए गीत म कतेेक सुग्घर भाव हर छिपे हावय जउन ला बाबू प्यारे लाल गुप्त हर अपन ग्यान अउ अनुभव ले लिखे हावय। होली म आप लिखे हव-
स्ूारज ने जब रंग बरसाया, किरणों की पिचकारी भर।
जोड़ी-जोड़ी बजे नगाड़े, गॉवों के चौराहों पर।।
गाने लगे फाग, दादरा, झांझ मजीरा के धुन में।
रंग-गुलाल, धूल से धूसर, हुए मस्त सब नारी नर।।

ए सब गीत हर तो एक बानगी भर आय। अइसे कतको रचना अपन कलम ले लिखे रहिन जेमा प्राचीन छत्तीसगढ़ इतिहास ग्रंथ , सुखी कुटुम्ब उपन्यास, लवंग लता उपन्यास, फ्रांस की राज क्रांति का इतिहास, ग्रीस का इतिहास, बिलासपुर वैभव गजेटियर, पुष्पहार कहानी संग्रह, एक दिन नाटक आदि हवय।

बिलासपुर वैभव बाबू प्यारे लाल गुप्त जी के एक अनुपम कृति आय जउन ला मध्य प्रदेश के डिप्टी कमिश्नर राय बहादुर हीरा लाल के कहे म गुप्त जी लिखे रहिन। ए किताब म अविभाजित बिलासपुर जिला के जम्मों जानकारी समाय हावय। फ्रांस की राज क्रांति का इतिहास अउ ग्रीस का इतिहास किताब हर तो अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा संचालित विशारद परीक्षा म पाठ्य पुस्तक के रूप म 20 से 25 बछर तक शामिल रहिस।

संवत् 2000 बछर पूरा होय के उपलक्ष्य म बाबू प्यारे लाल गुप्त जी छत्तीसगढ़ के प्राचीन राजधानी रतनपुर म अड़बड़ जतन करके विष्णु महायज्ञ के भव्य आयोजन करवाईन अउ ओखर सुरता में “श्री विष्णु महायज्ञ स्मारक ग्रंथ“ लिखिन जउन हर कांशी नगरी प्रचारिणी सभा में खूब सराहे गइस।
जब कभू भी छत्तीसगढ़ के इतिहास लिखे के बात होही तब बाबू प्यारे लाल गुप्त के महान कृति प्राचीन छत्तीसगढ़ के उल्लेख जरूर होही। ए किताब हर गुप्त जी के लगातार सात बरस के अथक परिश्रम, यात्रा, संस्मरण अउ अध्ययन करे के बाद लिखे गइस। ए किताब हर तो छत्तीसगढ़ के इतिहास जानने वाला मन बर अनमोल धरोहर हरय।

बाबू प्यारे लाल गुप्त जी अपन किताब में छत्तीसगढ़ के लोकगीत संस्कार, सोहर, बरूआ, ब्याह, सेवागीत, गउरा, भोजली, फाग, सुवा, रउताही, देवार, निरगुन, ददरिया, पंडवानी, आल्हा, बैना आदि ला उदाहरण सहित समझाय हावय। इंखर एक गीत हर तो खूब नाम कमाइस जउन हर आज घलाव सुने बर मिलथे-
हमर कतका सुंदर गांव, जइसे लक्ष्मी जी के पांव।
घर उज्जर लिपे पोते, जेला देख हवेली रोथे।
चरखा रोज चलाथन, गांधी के गुन गाथन।
हम सब लेथन राम के नाव।
हमर कतका सुंदर गांव।।
गांव वाले मन ला सुमति म रहे के संदेस देवत गीत-
भाई गांव म सुमता राखा, झन उर्रू बोली भाखा।
नान-नान बातन के खातिर, होथा गजब लड़ाई। भाई गांव……..

बाबू प्यारे लाल गुप्त जी छत्तीसगढी भाषा अउ कविता के अधिकारिक कवि रहिन। उॅखर जाए ले जउन खालीपन आय हावय वो हर कभू नई भर पावय।
चलौ-चलौ हंसा अमर लोक जइबो, इंहां हमार संगी कोनो नइये।
एक संगी हावय घर के तिरिया, देखे म जियरा जुड़ावय।।
14 मार्च 1976 में छत्तीसगढ़ के महान साहित्यकार दुलरवा बेटा बाबू प्यारे लाल गुप्त जी हमर बीच नई रहिन फेर उॅखर कृति हर आज घलाव हमर अंतस में ज्ञान के उजियारी बगरावत हावय। छत्तीसगढ़ के अइसन दुलरवा बेटा ला कोटि-कोटि नमन।

रामेश्वर गुप्ता, बिलासपुर

जतन करव तरिया के

$
0
0

पानी जिनगी के सबले बड़े जरूरत आय।मनखे बर सांस के बाद सबले जरूरी पानी हरे।पानी अनमोल आय।हमर छत्तीसगढ़ म पानी ल सकेले खातिर तरिया,डबरी अउ बवली खनाय के चलन रिहिस।एकर अलावा नरवा,नदिया अउ सरार ले घलो मनखे के निस्तारी होवय। तइहा के मंडल मन ह अपन अउ अपन पुरखा के नाव अमर करे खातिर तरिया डबरी खनवाय।जेकर से गांव के मनखे ल रोजगार मिले के संगे संग अपन निस्तारी बर पानी घलो मिलय। छत्तीसगढ़ मे बेपार अउ निवास करइया बंजारा जाति के मनखे मन जघा-जघा अबड अकन तरिया खनवाय हवय।

एक समे म तरिया ह पूरा गांव के मनखे के जरूरत रहय।नान्हे लइका मन तंउरे बर उंहचे ले सीखय।पार के रुख राई म डंडा पचरंगा खेलय।तरिया पार के पीपर के पीकरी अउ बर के लाहा के झूलना कतको झन ल अभी ले सुरता होही।कातिक नहई के समे तो भीड हो जावय घठौंदा मन म।पीतर पाख म पुरखा ल रोज तरिया म ही तो पानी देथे।कतको झन सियनहा मन सुरूज देव ल कनिहा भर पानी म बूडके अरघ देके पुन्य कमावय। गांव के जम्मो  मनखे नहवई-खोरई से लेके कपड़ा-लत्ता ल उंहे कांचे धोवय।देवी देवता के विसर्जन घलो तरिया म होवे।मरनी-हरनी के कारज म नाहवन के काम अउ अंतिम संस्कार के बाद मरईया मनखे के जम्मो कारज तरिया पार म ही निपटाय जथे।

समे धीरे-धीरे बदलत हे।अब सरकारी योजना के अंतर्गत गांव-गांव मे नल के सुविधा होगे हे।मनखे सरी बुता ल घर भीतर करत हे तेकर सेती अब तरिया के बिनास होवत हे।तरिया म अब मनखे अब नहाय खातिर नी जावय।अब तरिया ह कचरा फेंके के जघा बन गेहे।जम्मो कचरा ल मनखे तरिया म लान के डार देथे।तरिया के पानी अब नहाय के लइक नी रहिगे हे।जब मरनी हरनी के कारज मे नाहवन के बेरा मे नहाय के मजबूरी रथे त मनखे लटपट नहाथे।नहाय के बाद मनखे दोष लगाथे कि तरिया के पानी ले खस्सू खजरी होथे।मनखे अपन करनी ल भूला जथे।तरिया ल घुरवा बना डरे हे तेला।

एक समे म तरिया ह कभू सुन्ना नी रहय।दिनभर गांववाले मन के रेम लगे रहय।कपडा-लत्ता से लेके गाय-गरू के धोवई ह तको तरिया म होवय तभो ले तरिया के पानी ह निरमल रहय।बाद मे सरकार ह निस्तारी तरिया ल मछरी पालन के कारोबार बर दे दिस।मनखे ओमा लालच के मारे आनी बानी के जिनिस डारे के चालू कर दिस जेकर से मछरी भोगावय अउ फयदा जादा मिले किके।उही मेर ले दुरगति चालू होगे तरिया मन के।कतको जघा तरिया ल पाट पाट के घर बनावत हे मनखे ह।

बिन जतन के कोनो भी जिनिस के दुरगति हो जथे।आज तरिया मन घलो उही हालत म हवय।ए तरिया मन छत्तीसगढ़ के धरोहर आय।एला जतने के जरूरत हे।जम्मो मनखे अउ सरकार ल एकर जतन बर उदीम करे के जरूरत हे।नीते एक समे अइसे अही जब लोटा भर पानी म घर भीतर ले पुरखा ल पानी देबर लागही।

रीझे ‘देवनाथ’
टेंगनाबासा (छुरा)

आठे कन्हैया

$
0
0

हमर भारत देस ह देवता मन के भुइंया हे येखर कोना-कोना पुण्य भुंईया हेे। इहां पिरीथिवी लोक म जब-जब धरम के हानी होवत गईस तब-तब भगवान ह ये लोक म अवतार लिहीस। भगवान सिरी किसन जी ह अरजुन ल कुरूक्षेत्र म भागवत गीता के अध्याय 4 के स्लोक 7 अउ 8 म उपदेस देवत कईथे के-
यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। 4-7।।

परित्राणाय साधूनामं विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे।। 4-8।।

येखर मायने ये हावय के भगवान किसन कईथे के जब-जब भारत म धरत के हानि हो ही। तब-तब मैय ह अपन आप ल सिरिजन करहूॅं। सज्जन मन के रक्छा करे बर, दुस्ट मन के बिनास करे बर। अउ धरम के इस्थापना करे बर मैं जुग-जुग म जनम लेथव।
आठे कन्हैया वई दिन ये जे दिन भगवान सिरी बिसनु जी किसन जी के रूप अवतार ले रहिस। भादो महिना के घोर अंधियारी पाख के आठे तिथि म घनघोर बादर मन बरसत रहिस अउ ओ दिन कंस के कारागार म भगवान किसन के रूप म किसन भगवान ह अवतरे रहिस। माता देवकी अउ बासुदेव के बेटा बनके। येखरे कारन ये दिन ल हम हिंदू मन जन्मास्टमी या आठे कन्हैया के रूप म मनवात आवथन। भगवान बिसनु के किसन के रूप अवतार लेहे के परमुख कारन रहिस अधरमी कंस के बध। भगवान किसन के अवतरे के तुरते बासुदेव जी जमुना नदी ल पार करके गोकुल म नंद बाबा- देवकी के इहां छोड़ आथे।
ये दिन पूरा भारत देस म आठे कन्हैया के तिहार ल मनाये जाथे पर मथुरा जिहां भगवान सिरी किसन जी के जनम हो रहिस तिहां आठे कन्हैया तिहार ह बिसेस रईथे। ये दिन पूरा मथुरा नगरी ल फूल माला ले सजाये रईथे। भजन कीरतन रतिहा ले के दूसर दिन तक चलत रईथे।
जिहां-जिहां भगवान सिरी किसन जी के मंदिर हवय उंहा-उंहा ये दिन मेला भरथे। अउ गांव ले लेके सहर तक म मटकी फोड़े के परतियोगिता रखे जाथे।
बरज भुइंया म अस्टमी के दूसर दिन याने भादो के अंधियारी पाख के नवमी तिथि के दिन नंद महोत्सव बड़ धूम-धाम से मनाये जाथे। ये हू दिन मटकी फोड़ परतियोगिता रखे जाथे।
किसन भगवान के वईसे कई नाव हावय पर माखनचोर, नंदकिशोर, बंसीधर, कन्हैया, मुरलीमनोहर, योगेश्वर, मोहन, राधे मन जादा बोले जाथे।
हिंदी साहित्य म किसन भगवान- हिंदी साहित्य के इतिहास घलो म भक्तिकाल म सगुन भक्ति धारा के किसन भक्ति साखा के परमुख कबि सूरदास जी रहिन इंखर अलावा रसखान अउ मीरा बाई घलो किसन भगवान के भक्त रहिन।
सूरदास जी ह भगवान किसन के परति माता यशोदा के वात्सल्यता बाललीला के एतका बिसद बरनन कर देहिस के इंखर पहिली हिंदी साहित्य म नव रस रहिस पर इंहे ले दसवां रस वात्सल्य रस अस्थापित होगे तब ले हिंदी साहित्य म दसवां रस वात्सल्य रस होगे। सूरदास जी के रचना के उदाहरन देख सकत हन-
मैंया मैं तो चंद खिलौना लैहौं।
जैहांे लोटि धरनि मैं अबहि तेरी गोद न ऐहौं।
सुरभि का पयपान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहांे,
हृै हौ पूत नंदबाबा को तैरो सुत न कहैहौं।

रसखान कबि घलो किसन भगवान के भक्त रहिन। उहू ह किसन भगवान के बाललीला म उंखर बचपना के बड़ सुघ्घर बरनन करे हावय।
धूरि भरै अति सोभित श्याम जू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरै अंगना पग पैंजनी बाजती पीरी कछौटी।
वा कवि को रसखान विलोकत बारत काम कला निज कोठी।
काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ सौं ले गयो रोटी।

मीरा बाई के किसन भक्ति तो जग बिख्यात हावय। उहू ह पूरा जीवन किसन भक्ति म बिता दिहिस। वो ह अपन रचना म लिखथे-
पायो जी मैने नाम रतन धन पायो।
बस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो।
जनम-जनम की पंूजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढ़त सवायो।
सम की नाव खेवहिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरख-हरख जस गायो।

ये परकार ले देखा जाये त किसन भगवान के भक्ति घलों चहूं दिसा म होथे। जगतगुरू किसन भगवान के अवतार लेहे के दिन ह पूरा बिस्व म आनंद मंगल के संदेस देथे।

प्रदीप कुमार राठौर ‘अटल’
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला-जांजगीर चांपा (छ.ग.)

धरसींवा के शिव मन्दिर

$
0
0

चरौदा, धरसींवा रायपुर में स्थित शिव मन्दिर के इतिहास के बारे आप अगर गाँव सियान मन ल पूछहू त झटकुन ऊँखर जुबान म पहिली नाम बाबू खाँ के आथे, हाँ ये उही बाबू खाँ आए जब 45 साल पहिली जब पूरा देश आजादी के प्रभात फेरी अऊ जश्न मनाए म डूबे रिहिस त बाबू खाँ अपन मुस्लिम परिवार समेत तहज़ीब के नवा इबारत गढ़े म व्यस्त रिहिस |

रायपुर से 20 किमी दूर ग्राम चरोदा म तब बाबू खाँ सरपंच रिहिस अऊ गाँव वाले मन संग बहुत ही मिलनसार रिहिस कि गाँव वाले मन के आस्था ल देख प्रेरित होकर के आज ही के दिन 15 अगस्त 1973 के स्वतंत्रता दिवस के अवसर म गाँव वाला मन बर शिव मंदिर के स्थापना कर डरिस | अऊ सिर्फ स्थापना ही नहीं बल्कि जतका गाँव वाले मन में श्रद्धा शिव मन्दिर बर रिहिस वोतका श्रद्धा से ही शिव मन्दिर के देखभाल घलो करिन | छत्तीसगढ़ एक अईसे प्रदेश आए जहाँ घर्म के कभू लडाई नई रिहिस | इंहा हिन्दू मुस्लिम के मीत-मितानी अऊ हमदर्दी के परंपरा जियत आए हे हमर पुरखा मन |

हमर प्राचीन भारतीय सभ्यता के प्रतीक हे शिव मंदिर
हमर जुन्ना सभ्यता के प्रतीक हरय इहा के शिव मंदिर, जेन पहिली एहा टीला के रूप म रिहिस, टूटे फूटे पथरा के ऊपर म दू नारी मूर्ति रिहिस जेन ल मनखे मन महामाया के रूप म सुमरत रिहिन, ए टीला के पाछू ढहन एक ठन गड्ढा रिहिस जेमा हमेशा पानी भराय रहे, जेन ह आज बावली के रूप म हे ए गांव के मन एकर रहस्यमय ल जाने बर किला के खुदई १९६९ म शुरू करे गे, जेमे ईटा पथरा के टुकड़ा अउ टूटे फूटे कुछ पथरा के मूर्ति, बड़े बड़े खम्भा एक चरकोनहा नीव परकोटा मिलिस दूसर नीव के बीच म मुख्य मंदिर जेन जुन्ना भी रिहिस ओ टूटहा भाग निकरे के बाद गांव वाला मन ल ए विश्वास होगे कि भीतरी म दबे शिवलिंग जरूर हे, अउ खुदई के कुछ दिन बाद शिवलिंग के भी प्राप्ति होइस, अब एकर से ए अनुमान लगाय जा सकथे कि इहा पहिली काल म विशाल मंदिर रिहिस अउ सम्भव ही हमर ए क्षेत्र ल चारोधाम के नाव से जाने जात रिहिन जेन आज वर्तमान म चारोधाम से चरौदा होगे इहा प्राचीन माता के मंदिर के कारन ही गांव वाला मन मंदिर के निरमान बर निर्णय लीन अउ गांव के हर घर से चंदा अउ श्रमदान के बाद बहुत बड़े मंदिर के निर्माण करे गे जेन खुदई के बाद मिले शिवलिंग ल मुख्य मंदिर म सन १९७३ म प्रतिस्थापित करे गे बस उहि समय से इहा हर बछर पूर्णिमा म छेरछेरा के पुन्नी मड़ई होथे अउ माने जथे कि भगवान मुक्तेश्वर भोलेनाथ के दर्शन अउ बावली के पवित्र जल से असनान करे से सब भक्तमन के मनोकामना घलो पूरा होथे।

मंदिर के एक बार फिर से स्थापना
चरौदा के ऐतिहासिक शिव मंदिर के फिर से स्थापना कर जात हे सितम्बर२०१८ के तारिक़ १९,२०,२१ के पूरा पूजा अर्चना के बाद मूर्ति ल बाहिर निकाले गेहे, अभी मंदिर के स्थापना बर लगभग दु करोड़ रुपया लागत आंके गेहे, दानी मन के द्वारा मंदिर निर्माण समिति के खुले हाथ से करे जात हे, ग्राम पंचायत चरौदा के *सरपंच श्री प्रदीप वर्मा* अउ गांव के रहईया मन अपन जी जान अउ मेहनत से मंदिर के निर्माण म सहयोग देत हे।

मोर छत्तीसगढ़िया भाई बहिनी मन ले आग्रह हे कि धर्म के अन्धत्व के चश्मा ल फेंक के अपन पुराना संस्कृति ल झांकव अऊ बाबू खाँ जईसन कतकोन छत्तीसगढ़िया हमर पुरखा के नाम के या तो दब गे हे ओला आगु लाने म मदद करव तब हम हमर छत्तीसगढ़िया संस्कृति ल बचा पाबोन, तब हम सही रूप से छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ियावाद स्थापित कर पाबोन अऊ तभे बाहिर ले आए परदेशिया मन के शोषण ले छत्तीसगढ़ महतारी ल आजाद करा पाबोन।

प्रफुल्ल वर्मा
ग्राम परसतराई (धरसींवा)
जिला रइपुर

तीजा –पोरा के तिहार

$
0
0

छत्तीसगढिया सब ले बढ़िया । ये कहावत ह सिरतोन मा सोला आना सहीं हे । इंहा के मनखे मन ह बहुत सीधा साधा अउ सरल विचार के हवे। हमेशा एक दूसर के सहयोग करथे अउ मिलजुल के रहिथे । कुछु भी तिहार बार होय इंहा के मनखे मन मिलजुल के एके संग मनाथे ।

छत्तीसगढ़ ह मुख्य रुप ले कृषि प्रधान राज्य हरे । इंहा के मनखे मन खेती किसानी के उपर जादा निर्भर हे । समय – समय मा किसान मन ह अपन खुशी ल जाहिर करे बर बहुत अकन तीज – तिहार मनावत रहिथे ।
खेती किसानी के तिहार ह अकती के दिन ले शुरू हो जाथे । अकती के बाद में हरेली तिहार मनाथे । फेर ओकर बाद पोरा तिहार मनाय जाथे ।

पोरा तिहार  – पोरा पिठोरा ये तिहार ह घलो खेती किसानी से जुड़े तिहार हरे ।येला भादो महीना के अंधियारी पाँख ( कृष्ण पक्ष) के अमावस्या के दिन मनाय जाथे । ये तिहार ल विशेष कर छत्तीसगढ़,  मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र अउ कर्नाटक मा जादा मनाय जाथे ।

पोरा काबर मनाय जाथे –  पोरा तिहार मनाय के पाछु एक कहावत ये भी हावय के भादो माह (अगस्त)  में खेती किसानी के काम ह लगभग पूरा हो जाय रहिथे । धान के पौधा ह बाढ़ जाय रहिथे । धान ह निकल के ओमे दूध भराय के शुरु हो जाथे । या हम येला कहि सकथन के अन्न माता ह गर्भ धारण करथे । इही खुशी मा किसान मन ह पोरा के तिहार ल धूमधाम से मनाथे ।

बइला के पूजा  –  खेती किसानी बर सब ले उपयोगी पशु बइला हरे । बइला के बिना खेती के काम अधुरा हे । ये पाय के किसान मन ह आज के दिन बइला ल बढ़िया तरिया नदियाँ मा  नउहा के साफ सुथरा करथे अउ ओकर पूजा करथे ।
ये दिन बइला ल बहुत सुघ्घर ढंग ले सजाय जाथे । ओकर सींग मा पालिस लगाय जाथे । घेंच मा घाँघरा पहिनाय जाथे अउ किसम – किसम के फूल माला पहिना के सजाय जाथे ।

प्रतियोगिता के आयोजन  –  पोरा तिहार के दिन गाँव अउ शहर सबो जगा किसम – किसम के प्रतियोगिता भी रखे जाथे । कोनों जगा बइला दौड़ के प्रतियोगिता त कोनों जगा बइला सजाय के प्रतियोगिता रखे जाथे । गाँव के मन ह एकर खूब आनंद उठाथे ।

माटी के बइला –  ये दिन घरो घर मा लइका मन बर माटी या कठवा के बइला बजार ले खरीद के लाय जाथे । पहिली येकर घर मा विधि विधान से पूजा करे जाथे । ताहन लइका मन ये बइला ल खूब खेलथे । लइका मन भी एकर प्रतियोगिता रखथे अउ मजा लेथे ।

चुकी पोरा –  टूरा (लड़का)  मन ह माटी के बइला ल खेलथे त  टूरी (लड़की ) मन ह चुकी पोरा खेलथे ।
चुकी पोरा मा खाना बनाय के जम्मो समान ह रहिथे ।
जइसे  – चुल्हा , कराही,कलछुल,तोपना,तावा,चिमटा,जांता अउ सबो प्रकार बरतन रहिथे । येला लड़की मन ह मन लगा के खेलथे ।

बेटी-  बेटा बर पूजा –  पोरा तिहार के दिन सबोझन अपन – अपन घर मा चौसठ योगिनी अउ पशुधन के पूजा करथे । जेमे अपन संतान के लंबा उमर के कामना करे जाथे ।

आनी बानी के पकवान – आज के दिन घर -घर मा आनी- बानी के पकवान बनाये जाथे । छत्तीसगढ़ मा चीला, चौसेला, ठेठरी, खुरमी, गुझिया, बरा, सोंहारी, खीर -पुरी, गुलगुला भजिया अइसे किसम – किसम के पकवान बनाय जाथे अउ मिल बाँट के खाय जाथे ।

तीजा के तिहार –  भादो महीना मा अंजोरी पाँख (शुक्ल पक्ष) के तीसरा दिन तीजा के तिहार मनाय जाथे । छत्तीसगढ़ मा तीजा के तिहार ल माइलोगिन (औरत) मन बहुत ही धूमधाम से मनाथे । ये समय सबो दीदी बहिनी मन मइके मा आय रहिथे अउ अपन पति के लंबा उमर बर उपास रहिथे ।
दूसर दिन किसम – किसम के पकवान फल फूल अउ कतरा खा के फरहार करथे । तीजा के दिन सबो महिला मन नवा – नवा लुगरा पहिनथे अउ खेलकूद भी करथे ।

ये प्रकार से तीजा – पोरा के तिहार ल बहुत ही धूमधाम अउ उत्साह के मनाय जाथे । येकर से गाँव मा एक दूसर से मेलजोल बढथे अउ भाईचारा के भावना प्रगट होथे ।

महेन्द्र देवांगन माटी 
पंडरिया  (कवर्धा)
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

राजागुरु बालकदास : छत्तीसगढ़ गवाही हे

$
0
0

भिंसरहा के बात आय चिरइ चुरगुन मन चोंहचीव चोंहचीव करे लगे रहिन…अँजोरी ह जउनी हाथ म मोखारी अउ लोटा ल धरे डेरी हाथ म चूँदी ल छुवत खजुवावत पउठे पउठा रेंगत जात हे धसर धसर।जाते जात ठोठक गे खड़ा हो के अंदाजथे त देखथे आघू डहर ले एक हाथ म डोल्ची अउ एक हाँथ म बोहे घघरा ल थाम्हे दू परानी मुहाचाही गोठियावत आवत रहँय…दसे हाथ बाँचे रहिस होही सतवंतिन दीदी के मुँह माथा झक गय,जोहरीन दीदी के का पूछबे मुँह ला मटका मटका के गोठियई राहय कउ घघरा म भरे झिरिया के कंच फरी पानी छलक-छलक के कुँदाय असन डाढ़ी ले चुचवावत रहय रितउती ओरवाती असन।काहत राहय…भारी सुग्घर राजा बरोबर लइका अँवतरे हे सफुरा घर…छकछक ले गोरियानरिया लाम लाम हाथ गोड़ सूपाभर दई भोकण्ड हे लइका ह काहेक सुघर आँखी करिया करिया घुघरालू चूँदी अँइठे अँइठे बाँह नाक ह तो ऊपरे म माढ़े हे…मुँह के फबित ह मन ल मोहत हे।

पुरखा के आशीर्वाद नइते साहेब के भेजे काँही संदेश होही काहत रहिन सियान दाई मन लइका के छाती म परे चिन्हा ला… जोंकनँदिया के कंकरा म देखे रहेन बघवा के पाँव के चिन्हा ल तइसने डिट्टो दिखत हे लइका के छाती म छपे छप्पा ह…।

बने कब्खन देख के आ गेयेस बहिनी जोहरीन..ए दे महूँ ह पानी ल उतारतेसाट जाहूँ अउ आँखी भर देख के आहूँ अपन घासी के दुलरुवा ला…..।
पाँव परत हँव दीदी कहिथे अँजोरी ह सतवंतिन ला…जीयत रहा के आशीर्वाद अउ खबर ल पा के अँजोरी के अंतस ह गदगदा गय..मने मन मा पुरुषपिता ल सुरता करत मुड़ नवा के भज डरिस अउ गोठिया डरिस तोर महिमा अपरंपार हे पुरुषपिता दुखिया घासी के दुख ला हर लेये तैं..बेटा के बिछोह म कल्पत बपुरी सफुरा के गोदी म बेटा दे देये।

पुरुष तोर महिमा अपार…
गुरू हो तोर महिमा अपार…
बबा हो तोर महिमा अपार…गुनगुनावत गुनगुनावत झोरकी डहर उतर गय अँजोरी ह।

1795 के बछर भादो के अँधियारी पाख आठे के दिन आय सुरुज नारायण आधा घड़ी ठहर गे राहय घासी के अँगना म लइका ल देखे बर..लइका ल टकटक ले निहारिस तेजस्वी होय के आशीर्वाद देइस अऊ घासी संग सतनाम जोहार करत चल दिहिस अपन बूता म।तिहार के दिन परे रहय लइका ल देखे बर गाँव के नर-नारी मन के रेम लग गे घासी के अँगना म..पता नइ चलिस बेरा जुड़ाय लगिस फुरहुर फुरहुर पुरवई तन ल छुवे लगिस,हिरदे म पंथी के धुन उठे लगिस पाँव उसले लगिस हाथ के थपोरी ह लय ताल बनाय लगिस अउ खूंटी म ओरमे माँदर पता नइ चलिस कतका बेर गर म ओरम गे..कण्ठ ले पंथी गीत फूटे लग गे तन मन मा जोश के संचार होगे मँदरहा के चारो-मुड़ा गोल घेरा बन गे पंथी पहुँचे लगिस…अबाध अगास डहर गाँव शहर अउ ओ पुरुष के दरबार डहर…।

सन्ना ना नन्ना..ना नन्ना हो ललना
सन्ना ना नन्ना..ना नन्ना हो ललना

ए घासी के अँगना…ए घासी के अँगना
भेंट होगे संत गुरू राजा संग ना……..।

माँदर के ताल उही दिन अगास म ढिंढोरा पीट के बता दे रहिस गुरु घासीदास के ये ललना आघू चलके अपन पिता के पद चिन्हा म चलही जनमानस म शौर्य अउ सभिमान के भाव जगाही देश राज अउ समाज ल रीति नीति अनुशासन के गुरुमंत्र दीही, एकता के सूत्र म पिरोवत दया मया अउ महिनत के पाठ पढ़ाही,सतनाम पंथ(धर्म)के सादा धजा ला दुनिया दुनिया म फहराही।चारो दिशा म मनखे मनखे एक के संदेश गूँजे लगही…गुरु घासीदास बाबा अउ सतनाम के जय जयकार होय लगही तब समय रूपी शासक शूरवीर बालक के लोकप्रियता नेतृत्व क्षमता अउ सियानी करे के गुण ल देखही अउ देख के ढाल तलवार हाथी अउ लिखित म राजा के उपाधी भेंट करही।सच होगे…. राजागुरु बालक दास साहेब सादा के राजपगड़ी पहिरे हाथ म ढाल तलवार धरे हाथी म असवार हो के आजू बाजू अंगरक्षक महाबली सरहा जोधाई अउ लाव लश्कर के साथ निकले हे भंडारपुरी के महल के सींग दरवाजा ले।

ठँउका सुरता देवाये सुखदेव आज के दिन नेव परगे मानो लोकतंत्र के…छत्तीसगढ़ गवाही हे….।

सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

Rajaguru Balakdas


गणेश पूजा अउ राष्ट्र भक्ति

$
0
0

भारत के आजादी मा गणेश भगवान

अइसे तो भगवान गणेश के पूजा आदिकाल से होवत आत हे।कोनो भी पूजा, तिहार बार के शुरुआत गणेश के पूजा ले होथय।सनातन अउ हिन्दू रीति रिवाज मा गणेश ला प्रथम पूज्य माने गय हे। गौरी गणेश के पूजा बिन कोनो पूजा ला सफल नइ माने जाय। हमर देश मा सबले जादा गणेश पूजा महाराष्ट्र प्रांत मा होथय। इहा हर घर,हर जाति धरम के मनखे गणेश मा आस्था राख के पूजा पाठ करथे।
गणेश पूजा ला धार्मिक परब ले राष्ट्रीय परब बनाय के श्रेय हमर देश के आजादी बर लड़इया  पुरखा बालगंगाधर तिलक ला जाथे।बच्छर 1893 मा जब आजादी के लड़ाई बर सबो कति ले अंग्रेज मन के बिरोध होय लगिस तब अंग्रेज मन हमर मुखिया मन के बइठका उपर रोक लगा दिन। तब एखर तोड़ निकाले बर बालगंगाधर तिलक जी हा एक उदिम करिन। जौन गणेश पूजा घर घर मा होत रहिन ओला समाज के बीच मा लाके जन सहयोग अउ जन संगठन के परब बनाके नवा दिशा देइन।
गणेश पंडाल मा होवइया देसहा गीत संगीत नाचा पेखन मा जा जा के भारत के आजादी बर लोगन मन कर अपन बिचार ला रखँय अउ लोगन ला जगावँय।आजादी आंदोलन मा जोड़य।अंग्रेज मन एला समझ नइ सकय। न एला रोक सकय न एला होवन दे सकय। एखर  फायदा ये होइस कि आजादी पाय बर कहाँ -कहाँ कइसे-कइसे उदिम चलत हे सब लोगन ला जनाकारी हो जावय। आखिर मा 1947 मा विध्नहर्ता संकटमोचक के किरपा ले देश आजाद होइस।
वो बखत ले शुरू होय परंपरा आज ले पूरा  चलत भारत मा चलत हे।अब जतका उछाह ले महाराष्ट्र में गणेश पूजा होथे ओतका उछाह ले छत्तीसगढ़ अउ सबो प्रांत मा होवत हे।फेर अब जौन उद्देश्य ला धर के ये उदिम चले रहिस वो टूटत हे। देश मा एका होय ला छोड़ गाँव-गाँव, पारा-पारा, हा कुटी कुटी होवत हे। सब कर पइसा , राजनीतिक ताकत, होय के गुमान हे। एक गाँव मा चार पारा मा पाँच जगा गणेश बइठारत हे।चंदा उघात हे, दूसर पंडाल ले अपन ला जादा अच्छा देखाय मा लगे हे। माँहगी-माँहगी नाचा पेखन , सजावट, अउ देखावापन गणेश पूजा के अंग हो गे हावय। करोड़ो रुपया जौन गाँव के विकास मा लगतीस वो दिखावापन के भेंट चढ़त हे। कहा बालगंगाधर तिलक हा एकक मनखे ला जोड़े के उदिम बर गणेश परब सिखाइस।आजादी मिले पाछू ओखर सपना ला उलटा करत हावन। गणेश महराज कब किरपा करहीं अउ पारा- पारा मा बिगरे गाँव सहर के पँडाल तिलक के सपना ला सच करहीं।
हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा, जिला-गरियाबंद
Bharat Ki Aajadi Aur Ganesh

हमर देस राज म शिक्षक के महत्तम

$
0
0

कोनो भी देस के बिकास ह सिछक के हाथ म होथे काबर के वो ह रास्ट्र के निरमान करता होथे। वो ह देस के भबिस्य कहे जाने वाला लईकरन मन ल अपन हर गियान ल दे के पढ़ईया लईकरन मन ल ये काबिल बनाये के कोसिस करथे के वो ह देस के बिकास के खातिर कोनो भी छेत्र म सहयोगी बन सकय। हर मनखे के जीनगी म गुरू के बिसेस हमत्तम हावय। हमर देस राज म गुरू अउ सिस्य के परंपरा सनातन काल ले चले आवत हे। हर देस म कोनो बिसेस दिन सिछक दिवस के रूप म मनाये जाथे। हमरो भारत देस म आजादी के बाद के पहिली उपरास्ट्रपति अउ, पहिली रास्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकिसनन जी के जनम दिन याने 05 सितम्बर के हर बछर ओखर याद म सिछक दिवस के रूप म मनाये जाथे। डॉ राधाकिसनन एक महान सिछाबिद अउ दारसनिक रहिन। अउ सिछा से उनला बहुत लगाव रहिस।

‘‘सिछक वो नई जे ह छात्र के दिमाग म तथ्य मन ल जबरन ठूंसय, बलकि वास्तविक सिछक वो होथे जे ह छात्र ल आने वाला कल के चुनौती के लिए तैयार करथे।’’
डॉ. सर्वपल्ली राधाकिसनन

हमर देस ह सनातन काल ले आज तलक सिछा मे छेत्र म बहुत समरिध हावय अगर हमर देस भारत ल बिस्व गुरू कहे जाये त कोनो अचरज के बात नई हावय। सनातन काल ले हमर देस म गुरू के अस्थान ह भगवान ले उपर माने गे हावे। वईसे हर मनखे के पहिली गुरू वोखर मॉ-बाप ह होथे, जे ओला ये संसार म जनमाथे। येखर बाद हर मनखे के जीनगी म दूसर गुरू वो होथे जे ह जीवन म आघू बढ़े बर सिक्छा-दिक्छा देथे।

हमर देस म त्रेताजुग म भगवान बिस्नु ह सिरी राम के रूप म मनखे के अवतार म अवतरे रहिस बिस्वामित्र ल अपन गुरू बनाये रहिन। अउ ओखर आज्ञा के पालन करके अधरमी राछस मन ल मारके रिसी-मुनी, तपस्वी अउ लोगन मन के रछा करिस अउ धरम के अस्थापना करिस। अउ अपन गुरू के महत्ता अउ सनमान बनाये रखिन।

गोस्वामी तुलसीदास जी अपन रचना रामचरितमानस के बालकांड म लिखे हावय-
प्रातकाल उठिके रघुनाथा, मातु-पिता, गुरू नावहिं माथा।
आयसु मागि करहिं पुर काजा, देखि चरित हरषई मन राजा।।
गोस्वामी तुनसीदास रचित रामचरितमानस

  • जब रावन के आखिरी घरी आए रईथे त भगवान राम ह अपन भाई लछमन ल ओखर करा सिछा ले बर भेजथे काबर के राम ह जानत रईथे के रावन अधरमी जरूर हावय पर ओखर पहिली वो ह एक परकांड बिदबान हे।
  • भगवान दत्तसत्रय ह अपन जीनगी म 24 गुरू बनाये रहिस।
  • द्वापरजुग म फेर धरम के रछा अउ अधरम के नास करे बर भगवान बिस्नु ह सिरी किस्न के रूप म मनखे के अवतार म अवतरे रहिस अउ येहू जनम म ओ ह उज्जैन म रिसी संदीपनी के आसरम म रईके बिद्या अध्ययन करिन।
  • अई समय म कौरव अउ पांडव मन घलो गुरू द्रोनाचार्य जी के गुरूकुल म रई के अपन सिछा-दिछा पाईन।
  • चानक्य ह चंद्रगुप्त ल अपन सिस्य बनाके ओला मगध के एक बलसाली अउ बिदबान राजा बनाईस।
  • जैइसे महान गुरू वईसनहे महान चेला गुरू बसिस्ट केे चेला भगवान सिरी राम, गुरू संदीपनी के चेला भगवान सिरी किसन अउ गुरू द्रोनाचार्य के चेला अर्जुन, भीम युधीस्ठिर।
  • जिहां महान सिछक के नाव आथे ऊंहा महान सिस्य के घलो नाव लिये जाथे। जईसे गुरू द्रोनाचार्य के नाव आथे त सबले पहिली एकलब्य के नाव आथे जे ह गुरूदछिना म अपन जेनउनी हाथ के अंगूठा ल काट के गुरू के चरन म गुरूदछिना बर रख दिहीस।

अईसने गुरू भक्त आरूनी रहिस जे ह अपन गुरू के आज्ञा के पालन करे बर रतिहा भर खेत के मेड़ म पानी ल रोके बर पार म सुत गे।
कहे जाथे के

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुःगुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरूस्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरूवे नमः।।

पर आज कल इस्कूल अउ कालेज म अउ जिंहा सिछक हावय तिहा सिछक दिवस के दिन बहुत बड़े-बड़े आयोजन करके सिछक मन के सम्मान करे जाथे, ये ह बने बात हे पर येखरो ले बने वो सिछक के सिख के पालन करना वोखर ले बड़े बात हावय। सिछक ल सबले बड़े खुसी तब होथे जब ओखर पढ़ाय लईका ह अपन जीनगी म अपन मंजिल ल पा लेथे। त सिछक के मुड़ी ह गरब ले ऊंचा हो जाथे। सिछक समाज घलो बर एक महत्वपूर्ण अस्थान रखथे। एक सिछक के बिना कोना मनखे कुछू नई ये। एक सिछक ह कोनो ल डाक्टर, कोनो ल कलेक्टर, कोनो ल पुलिस कप्तान, देस के रछा करे बर सैनिक, सिपाही कोनो ल इंजीनियर, कोनो ल राजनेता, कोनो ल बैज्ञानिक अउ एक सिछक अउ न जाने कतका परकार के अधिकारी, करमचारी, ब्यवसायी बनाथे।

हर कोनो के जीनगी म सिछा जरूरी हावय, काबर के सिछा जीनगी के अलग-अलग चरन म कई भूमिका निभाथे। ये कारन ये जरूरी हावय के हमन सिछक के महत्तम ल जानन अउ वोखर बताये रद्दा म चल के अपन मंजिल ल पा सकथन। जे भारत म भगवान राम, किष्न ह मनुष्य अवतार ले के अपन गुरू से सिछा लिहिन अउ ओखर महत्तम ल बनाये रखिन त तो हमन साधारन मनखे हन। तुलसीदास, सूरदास, कबीरदास, रहीम, रसखान, मीराबाई, अइसनहा सिस्य रहिन जे अपन गुरू के नाव ल जुग-जुग तक अमर कर दिन। कबीर दास जी ह गुरू के महिमा ल बरनन करत लिखे हावय-

गुरू गोविंद दोऊ खड, काके लागंू पांय।
बलिहारी गुरू आपने गोविंद दियो बताय।।

आज लोगन मन केवल सिछक दिवस के दिन भासन ल बस दे देथे पर सिछक ल भुला जाथे अउ ओला सम्मान देहे कस नई करय। सिछक ह देस निरमाता घलो हावय अउ बिध्वंस केे छमता घलो रखथे पर सिछक अंतरआत्मा ले बिंध्वंसक नई हो सकय काबर के ओ अपन गरिमा अउ मरयादा ल जानथे। लेकिन आज-कल लोगन मन ल नई जाने का होगे हावय के ऊंखर सोच अउ बिचार ह परकिरीति के बिपरीत हो गे हावय। आज दुनिया म सिछक केवल सिछक ही रह गे हावय। आज के समय म देखिहा त ये दिन बिहनिया ले लेके रतिहा तक सोसल मिडिया म केवल संदेसा भेज के सिछक दिवस मनाये के इतिसिरी कर दिये जाथे। जे ह ठीक बात नो हय। आज कल लईकन मन संचार माध्यम म इंटरनेट के जमाना म वोईमा अपन सिछा के बिसय म खोज करत रईथे पर ये सब एक सिछक के भावना संवेदना अउ बिचार, अनुसासन, मारगदरसन नई कर सकय कहे के मतलब ये हावय के सिछक के अस्थान कोई दूसरा नई ले सकय। हमर जीवन म सिछक के महत्तम अउ सिछक के जीनगी ल समझना आसान नई हावय लेकिन हमन ओला बने मनखे बनके उपहार देके ओखर सम्मान रख सकथन।

प्रदीप कुमार राठौर ‘अटल’
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला-जांजगीर चांपा (छ.ग.)

जियत ले मारिस डंडा , मरिस त लेगिस गंगा

$
0
0

तइहा तइहा के बात आय। पैरी नदी के खंड़ म राजिम नाव के गांव रहय। राजिम म खालहे डहर महानदी अऊ पैरी नदी के संगम घला रहय। असाढ़ सावन म महानदी के पानी सिद्धा राजिम के गली म खुसर जाये तेकर सेती राजिम के घर दुवार म पानी भर जाय। बरसात के चार महिना म उहां के लोगन के जीना हराम रहय। राजिम के मनखे मन बहुतेच मेहनती रहय। रात दिन हकर हकर खेत खार म कमा कमाके अपन जान दे देवय। उंकर तिर पइसा के दुकाल नी रहय। राजिम के रहवइया ला सिरीफ एके ठिन परेसानी इही रहय के इलाज के सुबिधा अऊ पढ़हे लिखे के साधन सुबिधा अऊ बियापर के जगा नी रहय तेकर सेती बात बात बर रइपुर जाये बर परय। बरसात के दिन म रइपुर जाये बर घूम के बड़ दुरिहा रेंगे बर परय। पहिली पैरी नदी ला पार करय तहन महानदी ला पार करय। छोटे रसता म संगम परय फेर संगम के जगा अतेक गहेरी रहय के ओला पार करना असान नी रहय। पुरा पानी के दिन म संगम नहाके बर बड़ तकलीप होवय। संगम पार करे बर एक ठिन बड़े जिनीस डोंगा चलय। उहू तब चलय जब केंवट हा खेती खार के बूता काम ले निबरित होके अपन घर आके थिरा जाये अऊ पानी के धार देखके राजी हो जाये। डोंगा के किराया अतेक रहय के नानमुन मनखे मन डोंगा म नी चइघ सकय।

राजिम म सिरीफ अमीरेच मनखे नी रहय बलकी कुछ अइसे गरीब मन घला रहय जेकर मन तिर खुद के काम धनधा कुछु नी रहय। येमन खेत खार के दिन म खेत बनिहार बन जाये। बाचे दिन म काकरो घर बनाय। कभू छानी टपरई के बूता काम करय। अइसन बूता करइया कुछ मनखे मन अपन लोग लइका ला आगू बढ़हाये बर राजिम ला छोंड़े के फइसला करिस। येमन अपन घर दुवार ला बेंचके रइपुर के रसता धर लिस। फेर रईपुर के महंगई हा अस जियानिस के येमन ला अपन गांव वापिस होय बर मजबूर होय ला परगे। अइसन मनला राजिम म रेहे के जगा नी मिलीस तब येमन संगम के दूसर खंड़ म अपन नानुक बसती बसा डरिस जेकर नाव नवापारा धर दिस। बहुत बछर बाद नवापारा हा पारा ले गांव बनगे।

एक झिन कोसटा हा नवापारा गांव म महानदी खंड़ म झोफड़ी बनाके रेहे लागिस। ओहा रईपुर ले कपड़ा के काम धनधा सीख के आये रहय। जात के कोसटा रहय तेकर सेती ओला कपड़ा के समझ बहुत रिहीस। मांगा मंगठा के बूता बनेच जानय। ओहा नवापारा म कपड़ा के बेवसाय सुरू करिस। गांव गांव बजार बजार जाके दिन भर कपड़ा बेंचय। परिवार के गाड़ी जइसे तइसे खिंचा जाय। ओकर एक झिन ईसवर नाव के बेटा रिहीस। साधन सुबिधा के अभाव म पढ़हे लिखे नी पइस फेर अपन ददा के कपड़ा धंधा ला ननपन ले सीख गिस। ननपन ले गांव गांव बजार जाना करय। छेत्र म जान पहिचान घला बाढ़गे। तब तक नवापारा गांव हा सहराती रूप धरे लागिस। रईपुर ले नवापारा तक रेल चलगे। ईसवर बहुत मेहनती रिहीस। ओकर धनधा चल निकलिस। इही बीच ईसवर के बिहाव होगे। परिवार म दू बेटा एक बेटी के आगमन होके सनखिया बाढ़गे। ईसवर हा अपन मेहनत के बलबूता म नवापारा म दुकान बना डरिस। नवापारा हा बेवसाय के बड़का केंद्र बन चुके रिहीस। ईसवर के कायकल्प होगे। अभू ईसवर हा ईसवर सेठ बनगे। पइसा कमाके बड़का मनखे बन जाये के धुन म ईसवर हा अपन दई ददा उपर धियान नी दिस। सुख पाये के दिन म ओकर दई ददा ला भगवान लेगे। कुछ बछर म बेटी बेटा मन सग्यान होगे। बेटी के बिहाव बहुतेच सुघ्घर घर घराना देखके कर दिस। बेटा मन के बिहाव होगे अऊ वहू मन लोग लइका वाला होगे। बेटा बहू मन पढ़हे लिखे रिहीन। ओमन ईसवर के धंन्धा ला अऊ चमका दिन।

ईसवर तिर पइसा तो बहुत रिहीस फेर ओला कन्हो जानय निही। सधारन जान पहिचान तो बहुत रिहीस फेर ओकर नाव के कन्हो न सोर न पुछंता। जब पइसा हकन के कमा डरिस तब ओला नाव कमाये के भूत सवार होगे। ओहा नाव कमाये बर समाज म आना जाना अऊ समाजिक गतिबिधी म सामिल होय लगिस। धीरे धीरे समाज म ओकर जान पहिचान अऊ पकड़ बने लगिस। समाज म पदाधिकारी बन गिस। समाज सुधार के रंग रंग के ताना बुनत भासन देवय फेर ओकर बात के असर समाज म कन्हो ला नी परय। ओहा अपन बेटा बेटी मनले बिचार बिमर्स करिस तब ओला समझ अइस के महज भासन दे ले कुछ नी होवय बलकी करके देखाये बर परथे। करके देखइया के बात के असर समाज म परथे। जिनगी भर पाई पाई जोड़ के कन्हो मरहा खुरहा निचट गरीब तको ला एक पइसा के मदत नी करइया ईसवर ला काकरो मदत करे बर अपन खींसा ले एको पइसा खरचा करना बड़ भारी लगत रहय। नाव कमाये बर यहू कर लेहूं सोंचत रहय ईसवर हा।

एक दिन ईसवर ला पता चलिस के ओकर सास बिमार परगे। ओकर सास बपरी हा रांड़ी अनाथिन रहय। ओहा अपन मइके म रहय। ईसवर जानत रहय के ओकर सास तिर बहुत अकन खेत खार हाबे अऊ ओकर खवइया बेटा निये बलकी सिरीफ तीन झिन बेटी मन आय। ईसवर के दिमाग हा जिनगी भर हाय पइसा हाय पइसा सोंच सोंच के बिकरित हो चुके रिहीस। ओहा सास ला अपन घर लानके सेवा करे के बहाना ओकर खेत खार म हांथ मारे के सोंचिस। ओहा सोंचत रहय के सास डोकरी कतेक दिन जीही जइसे मरही तइसे ओकर खेत खार ला अपन बई के नाव करवाके कबजिया लेहूं अऊ अपन सास के बड़ सेवा करिस कहिके समाज म नाव घला कमा लेहूं। ओहा सास के लकवा मारे के खबर सुन अपन सास ला अपन घर लाने बर चल दिस। सास के मइके के मन ईसवर के कपटी दिमाग के आकलन नी कर पइस। बलकी घोर कलजुग म जिंहा कन्हो मनखे महतारी बाप के सेवा नी करय तिंहा सास के सेवा करे के बाना उठइया ईसवर ला अबड़ आसीरबाद घला दिन।

ईसवर के नाव के सोर उड़े लगिस। येती ईसवर के घर म नावा चरित्तर सुरू होगे। डोकरी के सेवा बहू मन ला जियाने लागिस। घर म कलह सुरू होगे। घर तीन कुटका म बंटागे। दुनों बेटा अपन अपन सुवारी ला धरके ईसवर के बनाये समपति म कबजा करके अलग अलग रेहे लगिस। ईसवर फेर वापिस उही तिर पहुंचगे जिंहां ले सुरुवात करे रिहीस। नानुक खोली म ईसवर ओकर बई अऊ ओकर बिमार सास के गुजारा बड़ मुसकिल होगे। ईसवर हा सास के जीते जियत सरी खेत खार ला बेंच के अपन साढ़हू भाई मन ला फुस्सी चंटा दिस। साढ़ू मन बिरोध नी कर सकिन। सेवा के नाव म लगभग पूरा समपति म हांथ मार दिस ईसवर हा। बड़े जिनीस नावा मकान बना डरिस। मकान के पिछू म नानुक छितका कुरिया म सास डोकरी के बेवस्था कर दिस। न समे म सास ला खाये बर मिलय न पुछनता रहय कन्हो। अतगितान कस परे रहय। ओकर बेटी तको अपन महतारी बर धियान नी देवय। घर के आगू कोती निकलके आके बइठे तक के इजाजत नी रहय बपरी ला। धोखागड़ी म अइच जाय त दमांद बेटी ले गारी बखाना सुनय। बपरी के बांहा ला हेचकार के उठा देवय अऊ ओकर खोली म वापिस पटक देवय। समाज के संगवारी मन सास के सेवा करत हे ईसवर हा कहिके बड़ सराहना करय। पास परोस के मन घला सिरीफ इहीच बात लेके ईसवर के मान सममान करय। परिवार के मन घला ईसवर ला सरवन बेटा कहिके अबड़ अलार दुलार देवय। ओकर सारी अऊ साढ़ू भाई मन असलियत जानय तभो ले ईसवर के बई के चरचरा मुहुं के सेती काकरो तिर बता नी सकय। डोकरी के ना इलाज होवय न जतन भाव। कतेक दिन ले जिही बपरी हा। एक दिन उदुपले डोकरी आंखी मुंद दिस। को जनी रात कुन के मरे परे रहय के सनझाती के ………. कन्हो जानिन निही। बिहिनिया पता चलिस। आनन फानन म मसान घाट लेगे के तियारी होगे। जिनगी भर सेवा करिस अऊ ताते तात लेगे कहिके समाज म चरचा के बिसे बनगे। समाज के मनखे मन जथा नाव तथा गुन कहिके ईसवर के परसंसा करत नी अघावत रहय।

राजिम के संगम जइसे पबरित जगा ला छोंड़के , समाज म नाव कमाये बर अऊ अपन दबदबा देखाये बर डोकरी के हाड़ा सरोये बर गंगा लेगे। बेटा बेटी मन घला समसिया के अंत देख बाप तिर फेर जुरियागे। मईपिल्ला मिलके दस दिन म किरियाकरम अऊ खात खवई के बहुतेच जोरदार बेवस्था करे रिहीन। एक कोती ईसवर के सारी मन मने मन ईसवर ला गारी देवत जियत ले महतारी ला दे दुख ला दबे जुबान से केहे नी सकत रहय। त दूसर कोती समाज के बड़का ले बड़का मनखे मन ओकर किरियाकरम म सामिल होके सास ला गंगा म सरोके मुक्त कर दिस कहिके ईसवर के बड़ गुन गइन। गांव के नऊ हा सांवर बनाये बर हमेसा ईसवर के घर आवय। उही हा ईसवर के जम्मो असलियत ला जानत रहय। किरियाकरम के दिन बाहिर के मनखे मन के मुहुं ले ईसवर के तारीफ सुन सांवर बनावत ओकर मुहुं ले बात निकलगे – जियत ले मारिस डंडा , मरिस त लेगिस गंगा। नऊ अबड़ गोठकार आय कहिके ओकर बात ला न कन्हो धरिन न समझे के परयास करिन। कुछ छोटे मनखे मन समझिन फेर , तइहा तइहा बड़का मनखे मन के बड़ दबदबा रहय तेकर सेती , ईसवर के फरजी बेवहार हा ओ समे चरचा के बिसे नी बनिस। फेर अभू कन्हो बेटा बेटी ला अपन दई ददा के सेवा नी करत देखथे अऊ मरे के पाछू दहाड़ मारके रोके परेम देखाके किरियाकरम म देखावटी मनमाने खरचा करथे तेकर मन बर , नऊ ठाकुर के उही दिन के बात हा हाना अऊ ठेही के रूप म परचलन म दिख जथे के – जियत ले मारिस डंडा , मरिस त लेगिस गंगा ।

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

चौसठ यांत्रिक कला के माहिर विश्वकर्मा

$
0
0

हमर देश मा आदिकाल से नवा नवा जिनिस के निर्माण अउ सिरजन चले आवत हे। शास्त्र मा अस्त्र शस्त्र से ले के नगर बसाय के गुण वाले देव धामी मन के जनम धरे के जानकारी हावय ।एमा निर्माण अउ सिरजन के देवता माने आज के शबद में आर्किटेक्ट , इंजीनियर , मिस्री के रुप विश्वकर्मा भगवान ला जाने जाथे।

माघे शुक्ले त्रयोदश्यां दिवापुष्पै पुनर्वसौ।
अष्टार्विंशति में जातो विश्वकर्मा भवनि च।।

विश्वकर्मा के जनम बर पुराण अउ शास्त्र मा अलग अलग कल्प मा अवतरण के अलग अलग कथा बताय गे हावय। एक जगा विश्वकर्मा के जन्म ला सागर मंथन से बताय गे हावय। अइसने एक जगा ओला ब्रम्हा के बेटा धरम जेकर बेटा वास्तुदेव ओखर बेटा विश्वकर्मा ला बताय गे हावय। एमा कोनोंं किसम के शंका नइ होना चाही।अलग अलग युग अउ कल्प मा अवतरण अलग हो सकत हे।

शास्त्र मा विश्वकर्मा के बनाय अलग अलग जगा के महल, नगर बसाय के किस्सा मिलथे।विचित्र बिचित्र महल, नगर, रथ वाहन, अस्त्र शस्त्र, सिंहासन इन्द्रप्रस्थ, हस्तिनापुर, अलकापुरी, सुदामापुरी, द्वारकापुरी, पांडवपुरी,जगन्नाथपूरी के मंदिर, यमपुरी अउ सोना के लंका बनाय मा विश्वकर्मा के जादू हवय। कहे जाथे कि विष्णु के सुदर्शन चक्र, शिव के त्रिशुल , डमरु, इन्द्र के वज्र, यमराज के कालदण्ड अउ करण के कवच कुण्डल ला विश्वकर्मा हा बनाय रहिस। तीन लोक के विचित्र रथ पुष्पक विमान ला विश्वकर्मा हा बनाय रहिस जौन हा जल ,थल अउ अगास मा चल सकत रहिस।बइठइया के संख्या के अधार ले छोटे बड़े हो सकत रहिस। ओला 64 यांत्रिक कला मा माहिर देवता माने जाथे। जइसे सुनारी,लोहारी,बढ़ई, सुतारी, मिस्त्री, वास्तुकला । एकर सेती जतका निर्माण बूता मा लगे मनखे हे तौन एखर पूजा करथे।

नान्हे से नान्हे अउ बड़े से बड़े कारखाना मा विश्वकर्मा जयंती के दिन पूजा पाठ करे जाथे।ये दिन मालिकमन अपन चाकर मन ला इनाम , बोनस घलाव देथे अइसे मानता हे कि विश्वकर्मा पूजा ले सिरजन बूता मा बढ़त मिलथे। काबर कि सब पूजा पाठ तीज तिहार के पूजा सुख शांति अउ धन संपत्ति बर होथे फेर विश्वकर्मा पूजा काम के बढ़ती बर करे जाथे। एखरे सेती निर्माण बूता मा लगे जम्मो मनखे मन अपन मसीन, छिनी हथौड़ी, के पूजा करथे।निर्माण बूता ले जुड़े मनखे ला विश्वकर्मा कहे जाथे।

विश्वकर्मा के पाँच बेटा होइस मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी अउ दैवज्ञ ।सबोमन अलग अलग कला मा माहिर रहिन। मनु लोहा के कला मा माहिर, मय लकड़ी(काष्ठ) कला में माहिर, त्वष्ठा तांबा कला मा ,शिल्पी ईंटा कला मा अउ दैवज्ञ स्वर्ण कला मा माहिर रहिन। चारो जुग मा विश्वकर्मा के बनाय जिनिस हा आज ले परसिद्ध हावय।

कलजुग के विश्वकर्मा मन के हालत भारत देश मा बनेच खराब हे। कतको इंजीनियर, कर्मचारी ला काम बूता नइ मिलत हे। कतको ला काम बूता ले बइठारत हावय। सम्मान तो दुरिहा सही दाम अउ पगार नइ मिलत हे। एक डहर देश भर विश्वकर्मा के पूजा सरकारी, गैरसरकारी, निजी, समुह रुप मा उछाह मा होवत हे दूसर डाहर मंगल अउ चंदा मा जवइया देश के विश्वकर्मा के दशा बर सोंचइया कोई नइ हे। यक्ष प्रश्न हावय कि सँउहत विश्वकर्मा के पूजा कब होही।

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा,जिला-गरियाबंद

जिए केअधिकार जम्मो झन ल हे

$
0
0

जिनगी ह काखरो जिनीस नोहे जेला कोन्हो घलो जब चाही तब नगा लीही।जिए के अधिकार जम्मो झन ल हे।चाहे वो चिरयी चुरगुन,जीव जनतु कोन्हो रहाय इहां तक रुख राई ल घलव जिए केअधिकार हे।फेर आजकल इंखर मन ले गये बीते मनखे मन के जिनगी के मोल नी हे।कतको सुने बर अउ देखे बर मिलथे के भीड़ ह फलाना मनखे ल पीट पीट के मार डारिन।बिना कसूर के एक झन मनखे ल लैका चोरैया कहिके मार देथे।कोनो मनखे ल गौ रकछा के नाव लेके मारथे।एक ठन गांव म बपरी माइलोगिन ल टोनही ए कहिके भीड़ के भीड़ ह बेज्जती कर कर के कूदा कूदा के मार डारिन।एमा ओखर घर के मन घलो संग देथे।

जादू टोना के चलत कतको मनखे मन अपन जीव बचाय खातिर इहां ले उहां भटकत हावें एक डाहर मनखे ह चंदा म अमरत हे त एक डाहर मनखे के हिंसा ह उजागर होवथे।एक हुंआ ते सब हुंआ वाले कहावत ल सिरतोन करत हे।भीड़ ह दंड देवैया कोन होथे का कानून सरकार नी हे गा एक झन ल सजा देबे हजार झन के का कर सकत हे।भीड़ ह भगवान नोहे जोन कोनो ल कुछ भी कर डारहि।

भीड़ के कोनो रोकैया न टोकैया।न ओखर कोनो जात न धरम भीड़ भीड़ होथे।कहि नी करबे तब ले दोषी अउ करबे तब ले दोषी। भीड़ म शामिल होय ले पहिले सौ घव सोचे के हरय के असल म का बात हरे ।सजा पवैया एक झन अउ सजा देवैया हजार झन ए कहां के बहादुरी हरे।काखरो जिनगी ल बरबाद करना ठट्टा दिल्लगी नोहे ओखर बाद ओखर घर परिवार के का होही एला सोचके कदम उठाय के जरवत हे।सरकार ल घलव चाही के पीड़िति मनखे के बचाव बर कोनो ठोस कदम उठाये।मनखे मन कोनो कुकरी चिंगरी हो गे हे उंखर जिनगी के कोनो कीमत नी हे।जेखर उपर बीतथे तिही ह जानथे ओखर पीरा ल।बिना बिचारे कोनो ल मारना सताना दंड देना सबले बड़े अपराध जेखर सजा जरुर मिलथे चाहे कोनो रुप म मिले।

ललिता परमार
बेलर गांव, नगरी

भोजली तिहार : किसानी के निसानी

$
0
0

हमर छत्तीसगढ़ देस-राज म लोक संसकिरीति, लोक परब अऊ लोक गीत ह हमर जीनगी म रचे बसे हाबय। इहां हर परब के महत्तम हे। भोजली घलो ह हमर तिहार के रूप म आसथा के परतीक हावय, भोजली दाई।

भोजली ह एक लोक गीत हावय जेला सावन सुकुल पछ के पंचमी तिथि ले के राखी तिहार के दूसर दिन याने भादो के पहिली तिथि तक हमर छत्तीगढ़ राज म भोजली बोय के बाद बड़ सरद्धा भकती-भाव ले कुंवारी बेटी मन अऊ ़नवा-नेवरिया माईलोगन मन गाथे।

असल म ये समय धान के बोआई अऊ सुरूवात के निंदाई-गोड़ाई के काम ह खेत म खतम होत्ती आये रहिथे अऊ किसान के बेटी मन घर म बने बरसात अऊ बने फसल के मनोरथ मांगे के खातिर फसल के परतीकात्मक रूप म भोजली के आयोजन करथे।

सावन के दूसर पाख याने पंचमी याने नाग पंचमी के दिन गहूं या जवा ल चिखला के माटी ल लाके ओखर उपर राख ल छिंच के गांव म माता चौरा, ठाकुर देव या फेर घर के पूजा-पाठ वाले जगह म जिहां अंधियार रहय तिहां बोय जाथे अऊ हरदी पानी छिंच-छिंच के बड़े करथे। घर म कुंवारी कनिया, बेटी माई मन येखर बड़ सेवा-जतन करके पूजा करथे अऊ जइसना देवी मॉं के जसगीत नवरात्रि म गाथे वईसने भोजली बोय के बाद ओखर सेवा म सेवा गीत, सिंगार गीत जुर-मिल के गाथे।

पीयर भोजली
दोहा- ठैंया-भुईयां हमर गांव के, ठाकुर देव रखवार।
भोजली के सेवक जुरेन, झोंका हमर जोहार।।

आवा गियां जूर मिलके, भोजली जगईबो।
हां भोजली जगईबों।।
हरदी पानी छिंची-छिंची,सेवा ला बजाईबों।
ह हो देवी गंगा।।
उठा-उठा भोजली, तंु जागा होसियारा।
हो जागा होसियारा।।
सेवा करे आये हावन, झोंका अब जोहारा।
ह हो देवी गंगा।।

माईलोगन मन अपन भोजली दाई ल जल्दी-जल्दी बाढ़े बर अरज करथे अऊ कईथे-
देवी गंगा, देवी गंगा लहर तुरंगा।
हमरो भोजली देवी भीजे आठो अंगा।।
माड़ी भर जोंधरी, पोरिस कुसियार हो।
जल्दी बाढ़ौ भोजली, होवौ हुसियार।।

अंधियार जगह म बोय भोजली ह सुभाविक रूप ले पीऊरा रंग के हो जाथे। भोजली के पीऊरा होय के बाद माईलोगन मन खुसी परगट करथे अऊ भोजली दाई के रूप ल गौर बरनी अऊ सोना के गहना ले सजे बता के अपन अरा-परोस के परिस्थिति ल घलो गीत म मिलाथे।
सिंगार गीत

गये बजार, बिसाई डारे कांदा।
बिसाई डारे कांदा।।
हमरो भोजल रानी, करे असनांदा।
ह हो देवी गंगा ।।
देवी गंगा, देवी गंगा, लहर तुरंगा।
हो लहर तुरंगा।।
तुहरो लहरा भोजली, भिजे आठो अंगा।
ह हो देवी गंगा।ं।

बरसात दिन म किसान के नोनी मन जब कछु समय बर खेती-किसानी ले रिता होथे त घर म आगू के ब्यस्त दिन के पहिली ले धान ले चांऊर बनाय बर ढेंकी ले धान ल कुटथे अऊ पछिंनथे-निमारथे। जांता म राहेर, अरसी, चना, बउटरा ल पिसथे। ये काम म थोरकुन देरी हो जाथे त समय निकाल के संगी-जवरिहा मन करा मिलके भोजली दाई के सामने जाथे अऊ ओखर सामने म अपन मन के बात ल ये परकार ले कहिथे।
कुटी दारे धाने, पछिनी डारे कोड़हा।
लइके-लइका हन, भोजली झन करबे गुस्सा।।

सावन महिना के सुक्ल पछ के पंचमी तिथि से ले के सावन पून्नी याने राखी तक भोजली माता के रोज सेवा करथे अऊ ये सेवा म गाये जाने वाला पारंपरिक गीत ल ही भोजली गीत कहे जाथे। हमर छत्तीसगढ़ राज म अलग-अलग जगह अलग-अलग भोजली गीत गाये जाथे पर गाये के ढंग अऊ राग ह एकेच हावय।

सावन महिना के सुक्ल पछ के पंचमी तिथि से ले सावन पून्नी याने राखी तक भोजली के सेवा जतन करके भादो के पहिली तिथि के भोजली माता बिसरजन बर कुवांरी कनिया मन टुकनी मन लेके मुड़ी म बो के एक के पाछू एक करके गांव के तलाव म ले जाथे। जेला भोजली ठंडा करे जाथे, कईथे। ये पूरा बिसरजन यात्रा म बेटी माई मन भोजली गीत गावत जाथे अऊ संगे-संग मांदर, मंजीरा के थाप के सुघ्घर धुन ह मन म भकती के भाव अपने आप जगाये लगथे। पून्नी के दिन भोजली ठंडा करे समय साम के बेरा पूरा गांव म खुसी के अऊ भकती के माहौल बन जाथे। फेर भोजली दाई ल अच्छा फसल के मनोरथ के साथ तालाव के पानी म बिसरजन कर देथे। बेटी माइमन भोजली बिसरजन के बाद जस गीत के जईसे भोजली के बिरह गीत गाथे काबर के ये 10-12 दिन ले भोजली माता के सेवा जतन करे म वोखर से भावात्मक रूप से जुड़ाव हो जाये रईथे। भोजली के बिसरजन के बेरा थोरकन भोजली ल गांव के मनखेमन भगवान घलो म चढ़ाथे अऊ सियान मन ल येला दे के गोढ़ ल छू क आसीस लेथे। ये भोजली से छत्तीसगढ़ के बेटीमाई मन के भावात्मक संबंध हे ऐखरे कारन तो ये भोजली के दू-चार पउधा ल एक-दूसर के कान म खोंच के तीन-तीन पीढ़ी बर मितान, गिया बदथे अऊ सगा जइसे मानथे अऊ रईथे।

पर आज कल हमर ये परब मन अब केवल गांव-गांव म ही रह गे हे। सहर म तो केवल नेंग मात्र हो गे हे। संगवारी हो हमर ये सभयता अउ संसकिरीति, लोक परब, लोक गीत अउ तिहार मन ल नंदाय ले बचना हे जेखर ले हमर पहिचान हे अगर वो तिहार मन नंदा जाही त हमनके पहिचान नस्ट हो जाही।

प्रदीप कुमार राठौर ’अटल’
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला-जांजगीर चांपा
(छत्तीसगढ़)

अटल बिहारी वाजपेयी ‘‘राजनीतिज्ञ नई बलकि एक महान व्यक्तित्व रहिन’’

$
0
0

अटल बिहारी वाजपेयी के जनम 25 दिसम्बर बछर 1924 को ग्वालियर म एक सामान्य परिवार म होय रहिस। उंकर पिता जी के नाव कृष्ण बिहारी मिश्र रहिस। जे ह उत्तर परदेस म आगरा जनपद के प्राचीन असथान बटेश्वर के मूल निवासी रहिस। अउ मध्यपरसेद रियासत ग्वालियर म गुरूजी अउ एक कवि रहिस अउ उकर मॉं के नाम कृष्णा देवी रहिस। तीन बहिनी अउ भाई म सबसे छोटे अटल बिहारी ल उंखर दादी प्यार ले अटल्ला कई के बुलावत रहिस। काबर के अटल के पिता शिछक अउ कवि रहिस ये कारन ले अटल जी ल कविता बिरासत म मिलिस। अटल जी ह जब कछा 5 वीं म रहिस त एक प्रतियोगिता म अपन पहली भाषन दिहिस पर अटल जी अपन रटे भाषन ल बीचे म भूलागे त अटल ह कसम खाईस के कभू रटे भाषन नई दो। अटल जी जब 1939 म विक्टोरिया कालेज ग्वालियर म कछा 9 वीं म रहिस त पहली बार उंकर कविता कालेज के पत्रिका छपे रहिस। अटल जी विक्टोरिया कालेज (अब रानी लछमीबाई महाविद्यालय) ले बी.ए. करिस। येखर बाद दयानंद एंग्लो वैदिक महाविद्यालय ले राजनीति म स्नातकोत्तर करिस। बाद कानून म इसनातक करत रहिस त उंखर पिता घलो विधि में इसनातक बर अटल जी के कछा म ही दाखिला लिहिस अउ छात्रावास के एके ही कमरा म रईके पढ़ाई करत रहिस।

लोगनमन बाप-बेटा ल देखे बर आये करत रहिस, पर छात्र अटल ह कानून के पढ़ाई बीच म ही छोड़के पूरा निस्ठा से संघ के कार्य में जुट गे। अटल जी जब सन् 1942 म भारत छोड़ो आंदोलन म हिस्सा लीस अउ उनला जेल जाना पड़िस पर वो ह देस के आजादी खातिर पीछे नहीं हटिस। जब वो ह पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के संपर्क म आईस त उनला रास्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचार-प्रसार करे के मौका मिलीस। वा ह अपन जीवन रास्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के रूप म आजीवन अविवाहित रहे के संकल्प लेके सुरू करिस अउ अंतिम समय तक संकल्प ल पूरा निस्ठा से निभाईस। रास्ट्रीय जनतांतत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के पहली परधानमंतरी रहिस जेहा गैर कांग्रेसी परधानमंतरी पद के 5 साल बिना कोनो रूकावट के पूरे करिस। वो ह कई पारटी ल जोर के सरकार बनाये रहिस, कभी कोनो पारटी ह दबाव नई डारिस। येखर से उकर अद्भुत नेतृत्व छामता के पता चलते। उनला रास्ट्रधर्म पत्रिका (हिन्दी मासिक) के सम्पादन के घलो मौका मिलीस। येखर बाद आजादी के तुरंत बाद 14 जनवरी, सन् 1948 को मकर संक्राति के पावन पर्व पर अपने आवरण पृष्ठ पर भगवान श्री कृष्ण के मुख से शंखनाद के साथ श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संपादकत्व म पाचजन्य रास्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक के अवतरण स्वाधीन भारत म स्वाधीनता आन्दोलन के प्रेरक आदर्स अउ राष्ट्रीय लछय ल सुरता दिलाय के संकलप के उद्घोस रहिस। वाजपेयी जी अपन संपादकीय में लिखिस- कुरूक्षेत्र के कण-कण से पांचजन्य फिर हुंकार उठा है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अउ पं. दीनदयाल उपाध्याय के निरदेसन म राजनीति के पाठ तो पढ़िस संगे-संग पाचजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश अउ वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिका के संपादन के काम ल कुसलता के साथ करिस।

आजादी के बाद हिन्दी पत्रकारिता बर ये कम गौरव के बात नई हे कि कोखरो व्यक्तिगत स्वामित्व अथवा औघोगिक घराना के छत्र छाया से बाहर रहकर घलो ’’पाचजन्य’’ साप्ताहिक अपन स्वरन जयंति मानाइस अउ ओ स्वर्ण जयंति बछर म वोखर पहिली संपादक भारत के परधानमंतरी पद पर आसीन रहिस वो ह रहिस अटल बिहारी वाजपेयी जी।

अटल जी ल संसद के चार दसक के अनुभव रहिस। बछर 1955 म वोहा पहली बार लोगसभा के चुनाव लड़िस पर जीत नई मिलिस, पर वोहा हार नई मानिस अउ बछर 1957 म बलरामपुर जिला गोण्डा उत्तर प्रदेश से जनसंघ के प्रत्यासी के रूप म जीत के लोकसभा पहुॅचिस। वोहा बछर 1957 से संसद सदस्य रहिस। वोहा हिन्दु, मुस्लिम के बीच बहुत लोकप्रिय रहिस। वोहा 2,4,5,6,7,10,11,12,13,14 लोकसभा बर चुने गे रहिस। ये परकार ले वोहा 10 लोकसभा चुनाओं में चुन के आये रहिस। बछर 1962 व 1986 म वोहा राज्यसभा सदस्य रहिस। वोहा चार अलग-अलग राज्य उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, दिल्ली ले चुने जाने वाले देश के पहली सांसद आये। अटल जी ल सरकारी सुविधा के गलत इस्तेमाल करना बिल्कुल पंसंद नई रहिस। अटल जी ल सायकिल चलाये के बहुत सौक रहिस, जब वोहा ग्वालियर से लोकसभा सदष्य रहिस त अपन लोकसभा छेत्र म सायकिल म ही चल देत रहिस। अटल जी ल सिफारिस करना या करनवाना सक्त नापसंद रहिस। वोहा अपन परिवार अउ सगे संबंधी मन ल बोले करत रहिस के आगे बढ़ना हे त अपन दम म बढ़ा।

वाजपेयी जी ह कई संस्था मन के अस्थापना घलो करे रहिस। वो ह भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य म ले एक रहिस। बछर 1951,1968-1973 तक येखर अध्यक्ष घलों रहिन। बछर 1957 ले 1977, 20 वर्ष लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहिस। 1975 म जब आपातकाल के घोषना होइस त तत्कालीन जनसंघ ल घलो संघ के साथ प्रतिबंध लगा दिहिस अउ आपातकाल हटे के बाद जनसंघ के विलय जनता पार्टी में हो गे अउ केन्द्र में मोरारजी देसाई के परधानमंतरीत्व म मिलीजुले सरकार बनीस। मोरारजी देसाई सरकार म बछर 1977-1979 तक बिदेश मंतरी रहिस अउ बिदेशों म भारत के अच्छा छवि बनाईस।
अटल जी के एक ईच्छा रहिस के उनला मौका मिलतिस त कोनो बैस्बिक स्तर के सभा म अपन भासन हिन्दी म ही देतेवे। अटल जी जब विदेश मंत्री रहिस त वो अवसर बछर 1977 म आ ही गे जब वोहा संयुक्त रास्ट्र संध के समान्य सभा म अपन वक्तव्य हिन्दी म दिहिस अउ वो पहिली ऐसे भारतीय बनिस जे ह भारत के राजकीय भाषा हिन्दी ल बिश्व पटल म सुसोभित करिस। अटल जी हिन्दी के संगे-संग अंगरेजी भाषा घलो म बने पकड़ रहिस। वोहा बछर 2000 म अमेरिका म अंगरेजी भाषा म अपन वक्तव्य दिहिस जेखर ले पूरा सभा ताली ले गंूज गे।
बछर 1980 म जनता पार्टी ले असंतुष्ट होके वाजपेयी जी ह जनता पार्टी छोड़ दीहिस अउ भारतीय जनता पार्टी के अस्थापना करिस। 6 अप्रेल 1980 म बने भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के जिम्मेदारी घलो वाजपेयी जी सौपे गईस। बछर 1980 के समय जब भारतीय जनता पार्टी की अस्थापना के तैयारी चलत रहिस तब समस्या आईस के पारटी के चिन्ह का होही। काबर के अटल जी ल कमल के फूल बहुत प्यारा रहिस अउ ओखर कहना रहिस के कमल कीचड़ घलो म खिल के सुंदर दिखथे येखर कारन भारतीय जनता पारटी के चिन्ह कमल के फूल रखे गईस। अटल जी ह अपन कविता म भारतीय जनता पारटी के उदय के बिषय लिखथे-
अंधेरा छटेगा ,
सूरज निकलेगा,
कमल खिलेगा।

कवि के रूप में वाजपेयी – अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होय के संगे-संग एक कवि घलो रहिस। ‘‘मेरी इंक्यावन कविताएं’’ अटल जी के परसिद्ध काव्य संग्रह हे। वाजपेयी जी ल काव्य रचना के शैली बिरासत म मिले रहिस। उंखर पिता कृष्ण बिहारी वाजपयी ग्वालियर रियासत म अपन समय के जाने-माने कवि रहिन। वो ह बरज भाखा अउ खड़ी बोली म काव्य रचना करत रहिन। पारिवारिक वातावरण साहित्यिक अउ काव्यमय होय के सेतर ओकर घलो रूचि काव्य रचना रहिस। सित्तो म कोनो ह कवि हृदय कभू कविता से रिता नई रह सकय। राजनीति के संगे-संगे पूरा रूप म अउ रास्ट्र के परति उंखर वैयक्तिक संवेदनशीलता सुरू ले आखिरी तक परगट होत रहिस। ओखर संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थिति, राष्ट्रव्यापी आंदोलन, जेल-जीवन जईसे कई आयामों के परभााव अउ अनुभूति ह काव्य म हमेंसा अभिव्यक्ति पाय हावय। अटल जी के कविता ‘‘मौत से ठन गई’’ म अटल जी लिखते –
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई
यों लगा जिंदगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है?दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नही।
मैं ज़ी भर जीया, मैं मन से मरुॅ,
लौटकर आऊॅंगा, कूच से क्यों डरुॅ?
तू दबे पाव, चोरी छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

येखर अलावा वाजपेयी जी ह अनेक परकार के गद्य अउ कविता के रचना करिस जे ह उंकर कवि हृदय ल दिखाथे। उंखर रचना म- अमर बलिदान (लोकसभा में अटल जी के वक्तव्यों का संग्रह), कैदी कविराय की कुण्डलियां (आपात काल के दौरान लिखि कविताएं), संसद के तीन दशक, अमर आग है।, कुछ लेख कुछ भाषण, सेक्यूलर वाद, राजनीति की रपटीली राहें, बिन्दू-बिन्दू विचार, मेरी संसदीय यात्रा (चार भागों में), संसद के चार दशक (भाषणों का संग्रह), भारत की विदेश नीति के नए आयाम (विदेश मंत्री के रूप में दिए जाने वाले भाषण 1977-79),, शक्ति से शांति, क्या खोया क्या पाया परमुख हावय। गजल गायक जगजीत सिंह ह अटल जी के परसिद्ध कविता मन ल संगीतबद्ध करके एक एलबम बनाये हावय।
अटल जी ल मिले पुरूस्कार – बछर 1992 में पद्म विभूषण, 1994 मेें लोकमान्य तिलक पुरूस्कार, पं. गोविन्द वल्लभ पंत पुरूस्कार घलो ले सम्मानित किये गे हावय। पं. गोविन्द वल्लभ पंत पुरूस्कार उंहला सबसे अच्छा सांसद होय बर , बछर 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय ह उंनला डॉक्टरेट के मानद उपाधि ले सम्मानित करिस। 2015 म देस के सबले बड़का पुरस्कार भारत रत्न भारत सरकार उनला दे हे रहिस।
परधानमंतरी के रूप म अटल जी के कार्यकाल – वाजपेयी जी ने एक बार नई तीन बार गैर कांग्रेसी सरकार बनाइस। पहिली बार 16 मई 1996 ले 1 जून 1996 तक 13 दिन, दूसर बार 19 मार्च 1998 ले 22 मई तक 13 महिना अउ फेर बछर 2004 तक तीसरा कार्यकाल पूरा 5 बछर पूरा करिन।
परधानमंतरी के रूप म अटल जी के कार्यकाल मेे महत्वपूर्ण निरनय
1. भारत ल परमानु सक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनाना- अटल सरकार ह 11 व 13 मई 1998 म राजस्थान के पोखरण म 5 ठन जमीन के अंदर देस के दूसर परमानु परीक्षण बिस्फोट करके भारत ल परमानु सक्ति सम्पन्न देस घोसित कर दिहिस। ये कदम ले ओ ह भारत ल निरविवाद रूप ले बिस्व मानचित्र म एक सुदृढ़ बैस्विक सक्ति के रूप म अस्थापित कर दिहिस। ये सब येतका गोपनीय रूप ले करिस के बिकसीत जासूसी उपग्रह अउ तकनीकी ले सम्पन्न पश्चिमी दस घलो ल येखर भनक तक नई होईस। येखर बाद पश्चिमी देस मन भारत म कई परकार के पाबंदी लगा दिहिस पर वाजपेयी सरकार ह सबके दृढ़ता से सामना करत आरथिक बिकास के नवा उंचाई ल छू दिहिस। येखर ले उंकर दृढ़ इच्छा सक्ति दिखथे।
2. पाकिस्तान करा संबंध म सुधार के पहल- बछर 19 फरवरी 1990 म सदा-ए-सरहद नाव ले दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा सुरू करिस। येखर उद्घाटन करत पहिली यात्री के रूप म वाजपेयी जी ह पाकिस्तान के यातरा करके नवाज सरीफ करा मुलाकात करिस अउ आपसी संबंध म एक नवा जुग के सुरूवात करिस। संगे-संग खेल संबंध के मामला म अटल जी ह भारत अउ पाकिस्तान के बीच खेल ल बढ़ावा देहे बउ अटल जी ह कई खेलईया मन जइसे कपिल देव के संग फिलम जगत के मन ल जेमा देवानंद सामिल रहिन अपन प्रतिनिधि मण्डल के साथ पाकिस्तान ले के गईस अउ। अउ आपसी संबंध ल सुधारे के उदिम करे रहिस।
कुछ समय बाद पाकिस्तान के वो समय के सेना परमुख परवेज मुसर्रफ के सह पर पाकिस्तानी सेना अउ उग्रवादी मन कारगिल छेत्र म घुसपैठ करके भारत के कई पहाड़ी चोटी मन म कब्जा कर लिहिस। अटल सरकार ह पाकिस्तान के सीमा के उल्लंघन नई करे के अंतर्राष्ट्रीय सलाह के सम्मान करत धैर्यपूर्वक पर ठोस कार्यवाही करके भारतीय छेत्र ल छुड़वाईस। अटल जी ह बिघ्न -बाधा ले हार नई मानने वाला मन म ले एक रहिन। वो ह देस के कोनोे समस्या चाहे वो ह आंतरिक हों, चाहे राजनीतिक हों, चाहे अंतर्राष्ट्रीय हो, चाहे विदेशी मामला हो ओखर बड गंभीरता, धीरता एवं दृढ़ता पूरवक सबो ल साथ लेके हल करे के उदिम करय। उंखर कबिता ’’कदम मिलाकर चलना होगा ” कबिता ले हमन ल ये ही सीख मिलथे-
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम लिमाकर चलना होगा।

3. परधानमंतरी ग्रामीण सड़क योजना- वाजपेयी सरकार के केन्द्रीय मंत्रीमण्डल ह ये योजना के नाव ल अटल जी के नाव से चलना चाहिस पर अटल जी ह येला परधानमंतरी ग्रामीण सड़क योजना के नाव दिस अउ वो ह 1000 ले जादा के आबादी वाला गांव मन ल बारहमासी रद्दा के माध्यम ले सहर ले अउ रास्ट्रीय राज्यमार्ग ले जोड़ के गांव ले परिवहन माध्यम से जोड़ दिहिस जेखर ले गांव के चहँुमुखी बिकास सम्भव हो सकिस जो के पाछू 50 बछर म नई हो पाये रहिस। ओखर ये योजना के कारन आज देस के हर गांव ह मेन रोंड से जुड़ गे हावय। जेखर कारन आज गांव के अपन फसल, गोरस, सब्जी-भाजी मन ल बेचे बद अउ बिमार मनखे मन के ईलाज बर तुरते सहर पहुंच जावथे।
4. स्वर्णिम चतुर्भूज योजना- भारत देश के चारों कोना ल सड़क से जोड़े बर स्वर्णिम चतुर्भूज परियोजना (गोल्डन क्चाड्रिलेट्रल प्रोजेक्ट) जेला जी.क्यू. प्रोजेक्ट के नाव ले जाने जाथे के शुरूवात करिन। जेमा दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, अउ मुंबई ल राजमार्ग से जोड़े गईस। अइसनहा माने जाथे के अटल जी के शासनकाल म भारत म जेतना रद्दा बनिस ओतना सिर्फ शेरशाह सूरी के समय म ही होय रहिस।
5. सर्व शिछा अभियान- सर्व शिक्षा अभियान के शुरूवात अटल जी के कार्यकाल के एक बड़े उपलब्धि हे। जेमा वो ह प्राथमिक अउ पूर्व माघ्यमिक म पढ़िया लईकन मन के सिछा के स्तर ऊँचा करे बर हर 5 कि.मी. के दूरिहा म प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक इसकूल खोलिस। जेखर संगे-संग गुरूजी मन के भरती घलो करे गे रहिस जेखर से देस म बेरोजगारी के समस्या के कुछ हद तक समाधान होईस हावय।

संरचनात्मक ढाँचा बर कार्यदल, साप्टवेयर विकास बर सूचना अउ प्रौघौगिकी कार्यदल, विघुतीकरण म गति लाये बर केन्द्री विघुत नियामक आयोग के गठन करिस। 100 बछर ले जादा समय ले बिवादित चले आवत कावेरी नदी जल बिवाद ल सुलझाइस। राष्ट्रीय राजमार्ग अउ हवाई अड्डा के बिकास, नवा टेलीकाम नीति अउ कोंकन रेलवे के शुरूवात करके बुनियादी संरचनात्मक ढँाचा ल मजबूत बनाईस।

6. तीन राज के गठनः- बछर 2000 में तीन राज छत्तीसगढ, झारखण्ड अउ उत्तराखण्ड बनाये के निरनय लिहिस। आज जो हमर छत्तीसगढ़ राज ह बिकास के रद्दा म आघू बढ़त हावय वो ह अटल जी के अटल निरनय के कारन ही है। वो ह भारत माता के सच्चा सपूत रहिस।

अटल जी भाजपा पारटी के वो आदरस चेहरा हे जेखर आघू सबो राजनीतिक दल घलो नतमस्तक हो जाथे। बहुत बढ़िया कवि, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, महान राजनीतिज्ञ अउ एक सफल प्रधानमंत्री के रूप म अपन पहिचान बनाने वाला अटल जी आज हमर बीच म नई हे लेकिन ओखर आदरस, सिद्धांत,सादा जीवन जीये के कला, करतब्य परायनता, ईमानदारी गोठ-बात अउ उंखर कबिता मनखेमन के मन म जिन्दा अउ प्रासंगिक हे। आज अटल जी जईसे नेता खुद भाजपा म घलो कोनो नई हावय। रानजीतिक दल भी कईथे के अटल जी जईसे कोनो नई हे। अटल जी के बारे येहू कहे जाथे के वो ह अकेल्ला ही जनाधार के बल म सत्ता चला सकत रहिस। ओखरे कारन भाजपा ह एक नहीं तीन नही अब पांचवा पईत सत्ता म हावय। भले ही पहली पईत 13 दिन, दूसरी पईत 13 माह, और तीसरी, चौथी अउ पांचवा पईत पूरे 5 वर्ष तक शासन करिस अउ करत हावय। अटल जी के अंदर एक सुंदर कवि घलो हावय, जेहा समय-समय म देस के मनखे मन के बीच उपंिस्थत हो जात रहिस। ओखर छंद म बने मिठास घलो हावय। अइसना महान व्यक्तित्व के धनी ल जे भारत देस के गौरव है, देस के असनहा अनमोल रतन ल भारत रतन से सम्मानित करे गईस ते ह गौरव के बात हावय।
अटल जी ह अपन रचना ‘‘दो अनुभूति‘‘ शीर्षक कबिता म लिखे हावय-

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी,
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी,
हार नहीं मानूॅंगा,
रार नहीं ठानूॅंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हॅू
गीत नया गाता हॅूं।

अटल जी ह बछर 2005 म ये घोषना कर दिहिस के अब सक्रिय राजनीति म नई रहव पर संगठन बर काम करत रहूं। आज अटल बिहारी वाजपेयी जी हमर बीच नई हावय लेकिन जब ओला ओ समय पता चलिस होही जब वो बिमार रहिस अउ 16 वां लोकसभा म भाजपा पूरा बहुमत के साथ देस के सत्ता अपन हाथ म ले लेहे हावय त उंखर खुसी के ठिकाना नई रहे होही। जब बछर 1984 के 8 वां लोक साभा म ओ ह जे राजनीतिक दल के बीजारोपण कर ओला अपन मेहनत, लगन, निष्ठा अउ आदरसवादिता के पानी ले सींच के 2 लोकसभा सीट, 1989 – 9 वां लोकसभा म 85 लोकसभा सीट, 1991 – 10 वां लोकसभा म 120 सीटं, 1996- 11 वां लोकसभा म 161 सीट, 1998- 12 वां लोकसभा म 182 सींट 1999-13 वां लोकसभा म 182 सींट, 2004- 14 वां लोकसभा म 138 सींट, 2009- 15 वां लोकसभा म 116 सींट, के रूप म एक छोटे-से पउधा ल सुरछित रखे रहिस, वो ह आज 2014 – 16 वां लोकसभा म 282 लोकसभा सीट अउ 17 लोकसभा 303 सीट जी के एक बिशाल वट वृक्ष के रूप म अपन गहरा जड जमा के अपन प्रतिष्ठा प्राप्त कर ले हे हे त उंखर आत्मा ह बड़ खुस होवत होही। उंखर कबिता ’’ जीवन की ढलने लगी साँझ ” म ओ ह ये जीनगी के असल मतलब ल लेहे हावय-
जीवन की ढलने लगी साँझ
उमर घट गई
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी साँझ
बदलेे है अर्थ
शब्द हुए व्यर्थ
शांति बिना खुशियां है बांझ
सपनों में मीत
बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।
जीवन की ढलने लगी साँझ।

अटल जी के जीनगी के प्ररमुख तथ्य- अटल जी आजीवन अविवाहित रहिन। वो ह ओजस्वी वक्ता अउ हिंदी भाखा ले परेम करने वाला मन म लेे एक हिंदी के कबि ये। अटल जी सबसे लंबा समय तक सांसद रहिस अउ जवाहरलाल नेहरू अउ इंदिरा गांधी के बाद सबसे लंबा समय तक गैर कांग्रेसी परधानमंतरी घलो रहिस। वो ह पहिली प्रधानमंत्री रहिस जेहा गठबंधन सरकार ल न केवल स्थायित्व दिहिस बलकि सफलता पूरवक संचालित घलो करिस। देस के पहिली राष्टपति राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल जी ल अटल जी के परति बहुत लगाव रहिस। पूर्व परधानमंतरी चंद्रशेखर, अटल जी ल गुरू जी कहकर पुकारत रहिस। पूर्व परधानमंतरी डॉ.मनमोहन सिंह जी अटल जी ल भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह कईथे। लता मंगेशकर, मुकेश, मो.रफी अटल जी के पसंदीदा गायक अउ गायिका रहिस।

अटल जी के टिप्पनीः-
चाहे देस के बात होवय, चाहे क्रांतिकाारी के, चाहे अपन कबिता के होवय, चाहे नेता प्रतिपछ के होवय, चाहे परधानमंतरी के नपे-तुले अउ बेबाक टिप्पणी करे म अटल जी कभी नई चूकिस। ओखर कुछ टिप्पनी ये परकार ले हावयः-
भारत ल लेकर मोर एक दृष्टि है, अइसे भारत जो भूख, भय, निरछरता अउ अभाव से मुक्त हों।
क्रांतिकारी के साथ हमन नियाव नई करेन – देसबासी महान क्रांतिकारी मन ल भूलात हावय। आजादी के बाद अहिंसा के अतिरेक के कारन ये सब होवत हावय।
अटल जी की हर कबिता ले हमन ल आघू बढ़े के प्रेरना मिलथे अउ ओमा मानवता के दरसन होथे। उंखर कबिता ‘‘आओें फिर दिया जलाऐं’’ म ओ ह लिखथे:-
आओें फिर दिया जलाएॅं
भरी दुपहरी में अॅंधियारा,
सूरज परछाईयों से हारा,
अंतरमन का नेह निचोड़े-
बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओें फिर दिया जलाए।

देस के प्रतिनिधि मंडल के रूप म अटल जी की बिदेस यातारा- बाजपेयी जी कई बार देस के प्रतिनिधिमंडल के संग बिदेस मन होन वाला अंतर्राष्ट्रीय संस्था के सभा म सामिल होय बर यातरा करिन। सबसे पहिली ओ ह बछर 1965 म संसदीय सद्भावना सिष्टमंडल के साथ पूरब अफरीका के यातरा बर गे रहिस। वो ह भारत के संसदीय प्रतिनिधिमंडल के संग बछर 1967 म आस्ट्रेलिया, 1983 में यूरोपीय देस, 1987 म कनाडा घलो गे रहिस। वो ह राष्ट्रमण्डल संसदीय परिषद के सभा बर कनाडा म बछर 1996,1994, जाम्बिआ म 1980 भारतीय सिष्टमंडल के सदस्य म सामिल रहिन।
वो ह वा भारतीय प्रतिनिधिमंडल घलो म सामिल रहिन जे ह जापान म अंतर संसदीय संघ के कान्ॅफ्रेंस 1974, सिरीलंका म 1975, स्वीट्जरलैण्ड म 1984 म सामिल रहिस। वे संयुक्त राष्ट्र संघ के सभा म सामिल होने वाला भारतीय संसदीय सिस्टमंडल के नियमित सदस्य रहिस अउ 1988,1990,1991,1992,1993,1994,1996 म सामिल होईस।
वो ह मानवाधिकार आयोग सम्मेलन 1993 म जिनेवा म भारत के प्रतिनिधित्व करत भारतीय प्रतिनिधिमंडल के संग सामिल होईस अउ बाह्य कार्य स्थायी समिति म भारतीय प्रतिनिधिमंडल के रूप म गल्फ दस बहरीन, ओमान, कुवैत के घलो यातरा करिन।
एक पत्रकार, ओजस्वी वक्ता, जनकवि, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आपातकाल म मीसा बंदी, बिदेश मंत्री, मॉं भारती ल बिश्व म गौरवान्वित करने वाला, अपन भाखा हिंदी के मान रखने वाला अउ फेर एक परधाननमंत्री, भारतीय जनता पारटी के पितृ पुरूष अउ भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह के रूप सबो जगह अपन लोहा मनवाने वाला अटल जी कोनो एक दल के नेता नई हे बरन वो ह एक बैस्बिक नेता रहिन अउ आगू घलो रही। वो ह आज घलो पूरा भारत देस के लोगनमन के हिरदय म राज करथे अउ हमेसा करही। वो ह अद्वीतीय प्रतिभा के धनी रहिस। अब भले ही हमन ल उंखर भासन सुने बर नई मिलय पर उंखर लिखे कबिता अउ बोले भासन सुन के अइसे लगथे के आज भी अटल जी हमार सामने खड़े होके अपन ओजस्वी स्वर म मारगदरसन अउ प्रेरना देवत हे। युवा पीढ़ी ल उंखर जीनगी लेे प्रेरना लेना चाही। आज अटल जी हमार संग नई हे पर वो अटल सितारा जुग-जुग तक चमकत रही अउ ओखर परकास ले हमर जीनगी ल सही रद्दा अउ प्रेरना मिलत रही। ओ अटल महापुरूष ल बारम्-बार नमन।
प्रदीप कुमार राठौर “अटल“
ब्लाक कालोनी जांजगीर जिला-जांजगीर चांपा (छ.ग.)


छत्तीसगढ़ महतारी के रतन बेटा- स्व. प्यारे लाल गुप्त

$
0
0

हमर छत्तीसगढ़ ला धान के कटोरा कहे जाथे अउ ए कटोरा म सिरिफ धाने भर नई हे, बल्कि एक ले बढ़ के एक साहित्यकार मन घलाव समाए हावय। ए छत्तीसगढ़ के भुइंया म एक ले बढ़ के एक साहित्यकार मन जनम लिहिन अउ साहित्य के सेवा करके ए भुइयां मे नाम कमाइन। हमर छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा म स्व. प्यारेलाल गुप्त जी 17 अगस्त सन् 1891 में छत्तीसगढ़ के प्राचीन राजधानी रतनपुर में जनम लिहिन। प्राथमिक शिक्षा ल रतनपुर में ग्रहण करे के बाद आगू के पढ़ाई करे बर बिलासपुर आ गे रहिन हावय।

शिक्षक पिता के आदर्श, सरलता अउ सहजता के संगे-संग उॅखर साहित्य साधना के प्रभाव प्यारे लाल गुप्त में लइकई उमर में ही पर गे रहिस हावय। हालाकि इंखर शिक्षा मेट्रिक तक हो पाय रहिस हावय फेर स्वाध्याय के द्वारा हिन्दी, छत्तीसगढी,़ मराठी अउ अॅग्रेजी चारों भाषा म इंखर अच्छा पकड़ रहिस हावय। इंखर साहित्य साधना अउ स्वाघ्याय के गुन हर सदा बने रहिस। बहुत कम उमर में इंखर रचना कांशी के मासिक पत्र इन्दु में पहली रचना प्रकाशित होइस जउन हर बहुत सराहे गइस अउ फेर इंखर कलम हर गति धर लिहिस।

इंखर बहुत अकन रचना छत्तीसगढी़ अउ हिन्दी भाषा में गद्य अउ पद्य दूनो म पढ़े बर मिलथे। मूल रूप में इंखर छबि गद्य के रचनाकार के रूप में बने रहिस फेर हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा म बहुत अकन लोकप्रिय गीत के रचना घलाव इंखर पढे़ अउ सुने बर मिलथे। अइसे कोनो विधा नई हे जेमा इमन अपन कलम नई चलाय हे। प्रकृति चित्रण इंखर रचना के विशेषता रहिस हावय। इंखर कविता के कुछ पंक्ति हावय-

चली किसानिन धान लुवाने, सूर्य किरण की छॉव में।
कान में खिनवा, गले में सूता, हरपा पहिने पॉव में।।
एक जघा एमन लिखथें-
स्ूरज दिन में होली, चॉद खेलता रात में।
धरती की होती है होली, चार माह बरसात में।।
ए गीत म कतेेक सुग्घर भाव हर छिपे हावय जउन ला बाबू प्यारे लाल गुप्त हर अपन ग्यान अउ अनुभव ले लिखे हावय। होली म आप लिखे हव-
स्ूारज ने जब रंग बरसाया, किरणों की पिचकारी भर।
जोड़ी-जोड़ी बजे नगाड़े, गॉवों के चौराहों पर।।
गाने लगे फाग, दादरा, झांझ मजीरा के धुन में।
रंग-गुलाल, धूल से धूसर, हुए मस्त सब नारी नर।।

ए सब गीत हर तो एक बानगी भर आय। अइसे कतको रचना अपन कलम ले लिखे रहिन जेमा प्राचीन छत्तीसगढ़ इतिहास ग्रंथ , सुखी कुटुम्ब उपन्यास, लवंग लता उपन्यास, फ्रांस की राज क्रांति का इतिहास, ग्रीस का इतिहास, बिलासपुर वैभव गजेटियर, पुष्पहार कहानी संग्रह, एक दिन नाटक आदि हवय।

बिलासपुर वैभव बाबू प्यारे लाल गुप्त जी के एक अनुपम कृति आय जउन ला मध्य प्रदेश के डिप्टी कमिश्नर राय बहादुर हीरा लाल के कहे म गुप्त जी लिखे रहिन। ए किताब म अविभाजित बिलासपुर जिला के जम्मों जानकारी समाय हावय। फ्रांस की राज क्रांति का इतिहास अउ ग्रीस का इतिहास किताब हर तो अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा संचालित विशारद परीक्षा म पाठ्य पुस्तक के रूप म 20 से 25 बछर तक शामिल रहिस।

संवत् 2000 बछर पूरा होय के उपलक्ष्य म बाबू प्यारे लाल गुप्त जी छत्तीसगढ़ के प्राचीन राजधानी रतनपुर म अड़बड़ जतन करके विष्णु महायज्ञ के भव्य आयोजन करवाईन अउ ओखर सुरता में “श्री विष्णु महायज्ञ स्मारक ग्रंथ“ लिखिन जउन हर कांशी नगरी प्रचारिणी सभा में खूब सराहे गइस।
जब कभू भी छत्तीसगढ़ के इतिहास लिखे के बात होही तब बाबू प्यारे लाल गुप्त के महान कृति प्राचीन छत्तीसगढ़ के उल्लेख जरूर होही। ए किताब हर गुप्त जी के लगातार सात बरस के अथक परिश्रम, यात्रा, संस्मरण अउ अध्ययन करे के बाद लिखे गइस। ए किताब हर तो छत्तीसगढ़ के इतिहास जानने वाला मन बर अनमोल धरोहर हरय।

बाबू प्यारे लाल गुप्त जी अपन किताब में छत्तीसगढ़ के लोकगीत संस्कार, सोहर, बरूआ, ब्याह, सेवागीत, गउरा, भोजली, फाग, सुवा, रउताही, देवार, निरगुन, ददरिया, पंडवानी, आल्हा, बैना आदि ला उदाहरण सहित समझाय हावय। इंखर एक गीत हर तो खूब नाम कमाइस जउन हर आज घलाव सुने बर मिलथे-
हमर कतका सुंदर गांव, जइसे लक्ष्मी जी के पांव।
घर उज्जर लिपे पोते, जेला देख हवेली रोथे।
चरखा रोज चलाथन, गांधी के गुन गाथन।
हम सब लेथन राम के नाव।
हमर कतका सुंदर गांव।।
गांव वाले मन ला सुमति म रहे के संदेस देवत गीत-
भाई गांव म सुमता राखा, झन उर्रू बोली भाखा।
नान-नान बातन के खातिर, होथा गजब लड़ाई। भाई गांव……..

बाबू प्यारे लाल गुप्त जी छत्तीसगढी भाषा अउ कविता के अधिकारिक कवि रहिन। उॅखर जाए ले जउन खालीपन आय हावय वो हर कभू नई भर पावय।
चलौ-चलौ हंसा अमर लोक जइबो, इंहां हमार संगी कोनो नइये।
एक संगी हावय घर के तिरिया, देखे म जियरा जुड़ावय।।
14 मार्च 1976 में छत्तीसगढ़ के महान साहित्यकार दुलरवा बेटा बाबू प्यारे लाल गुप्त जी हमर बीच नई रहिन फेर उॅखर कृति हर आज घलाव हमर अंतस में ज्ञान के उजियारी बगरावत हावय। छत्तीसगढ़ के अइसन दुलरवा बेटा ला कोटि-कोटि नमन।

रामेश्वर गुप्ता, बिलासपुर

कालजयी छत्‍तीसगढ़ी गीत : ‘अंगना में भारत माता के सोन के बिहनिया ले, चिरईया बोले’के गायक प्रीतम साहू

$
0
0

एक दौर था जब छत्‍तीसगढ़ में रेडियो से यह गीत बजता था तो लोग झूम उठते थे और बरबस इस गीत को गुनगुनाने लगते थे। छत्‍तीसगढ़ी लोक सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों के आरंभिक दौर में ददरिया, करमा और सुवा गीत जैसे पारंपरिक लोक छंदों के बीच अपनी भाषा में भारत वंदना गीत सुनकर आह्लादित होना छत्‍तीसगढि़यों के […]

The post कालजयी छत्‍तीसगढ़ी गीत : ‘अंगना में भारत माता के सोन के बिहनिया ले, चिरईया बोले’ के गायक प्रीतम साहू appeared first on gurtur goth .

लॉकडाउन म का करत हें असम के छत्‍तीसगढ़ वंशी

$
0
0

लाकडाउन के बीच कई दिन के बाद असम म रहइया कुछ छत्तीसगढ़िया मनखे मन ले बातचीत होइस। पहली बात होइस बामनवाड़ी निवासी ललित साहू ले जेकर काली जन्मदिन रहिस। ललित के पूर्वज धमतरी तीर के जंवरतला नाम के गांव ले चाय बागान म काम करे बर असम गे रहिन जिहां अभी उंखर पांचवा पीढ़ी निवास […]

The post लॉकडाउन म का करत हें असम के छत्‍तीसगढ़ वंशी appeared first on gurtur goth .

छत्तीसगढ़ गौरव के रचियता पंडित शुकलाल पांडेय

$
0
0

 प्रो. अश्विनी केशरवानी भव्य ललाट, त्रिपुंड चंदन, सघन काली मूंछें और गांधी टोपी लगाये सांवले, ठिगने व्यक्तित्व के धनी पंडित शुकलाल पांडेय छत्‍तीसगढ़ के द्विवेदी युगीन साहित्यकारों में से एक थे.. और पंडित प्रहलाद दुबे, पंडित अनंतराम पांडेय, पंडित मेदिनीप्रसाद पांडेय, पंडित मालिकराम भोगहा, पंडित हीराराम त्रिपाठी, गोविंदसाव, पंडित पुरूषोत्‍तम प्रसाद पांडेय, वेदनाथ शर्मा, […]

The post छत्तीसगढ़ गौरव के रचियता पंडित शुकलाल पांडेय appeared first on gurtur goth .

ढेलवा डोंगरी

$
0
0

हमर गांव डाहर झलप के तीर म ढेलवा डोंगरी हे। एकर ले संबंधित भीम अउ हिरमिसी कैना (हिडम्बनी) के एक कथा हे। ये डोंगरी म ओ कैना के महल रिहीस अउ झूले बर बड़े जनिक ढेलवा रिहीस। पंडो मन के बनवास के समय घूमत घामत एक दिन भीम ह ओ डोंगरी म आगे। ढेलवा झूलत […]

The post ढेलवा डोंगरी appeared first on gurtur goth .

Viewing all 391 articles
Browse latest View live